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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Pankaj Tripathi_PT

Love is a sweet poison
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#38

मैं- क्या है ये निशा

निशा- इसे कलाई में बांध लेना ये रक्षा करेगा तुम्हारी

मैने वो धागा जेब में रख लिया.

निशा- ऐसे क्या देख रहा है

मैं- दिल करता है तुझे ही देखता रहू

निशा- देखा था न फिर मुड के देखा नहीं तूने .

मैं- समझता हूँ

निशा- समझता नहीं तू, समझता तो दारा की खाल नहीं उतारता

मैं- तुझे मालूम हो गया .

निशा- कुछ छिपा भी तो नहीं मुझसे

मैं- मुझे बहुत अफ़सोस है उस बात का , हालाँकि मैं उसे मारना नहीं चाहता था बस सबक सिखाना चाहता था ताकि फिर किसी मजलूम को सताए नहीं वो.

निशा- जो किया ठीक किया पर कबीर इस रक्त की महक से बच कर रहना , जब इसका सुरूर चढ़े तो फिर कुछ खबर न रहे.

मैं- मैं वैसा नहीं हूँ निशा, मैंने कभी किसी से ऐसा-वैसा कुछ नहीं किया उस दिन भी बस मैं उसे अहसास करवाना चाहता था की मजलूमों को नहीं सताना चाहिए. दारा को मुझसे दिक्कत थी तो मिल लेता पर उसने नीच हरकत की .

निशा- ये दुनिया बड़ी जालिम है धीरे धीरे तुम भी समझ जाओगी

मैं-ठण्ड बहुत है कहो तो अलाव जला लू या अन्दर बैठ सकते है

निशा ने सितारों की तरफ देखा और बोली- कुछ देर और ठहर सकती हूँ

मैं- अगर कभी तुम्हे दिन में मिलना हो तो .....

निशा-मेरा साथ करना है तो इन अंधेरो की आदत डाल लो . मेरा यकीन करो ये अँधेरे तुम्हारे उजालो से भी ज्यादा रोचक है .

मैं- फिर भी अगर कभी दिन में मुझे तुम्हारी जरूरत हुई तो .

निशा- तो क्या मैं आ जाउंगी पर ये समझना मेरी कुछ हदे है

मैं- चंपा कहती है की डायन का नाम लेने से वो रात को घर पर आ जाती है

निशा- वो कहती है तो ठीक ही कहती होगी.

रात के तीसरे पहर तक हम दोनों कुवे की मुंडेर पर बैठे बाते करते रहे. फिर उसके जाने का समय हो गया . दिल तो नहीं कर रहा था पर रोक भी तो नहीं पा रहा था उसे. उसके जाने के बाद मैंने भी साइकिल उठाई और गाँव का रास्ता पकड़ लिया. मैंने देखा की जब तक आबादी शुरू नहीं हुई सियार मेरे साथ साथ ही रहा और फिर ख़ामोशी से मुड गया.

देखा की चाची अभी तक जाग रही थी .

मैं- सोयी नहीं अभी तक

चाची- जिनका जवान लड़का इतनी रात तक बाहर हो वो कैसे सो सकती है.

मैं- थोड़ी देर हो गयी .

चाची- वैसे मुझे भी लगता है की बहुरानी ठीक कहती है तेरा किसी न किसी से तो चक्कर जरुर है . गाँव में ऐसी कौन हो गयी जो रातो को तेरे साथ है , मालूम तो कर ही लुंगी मैं.

मैं- ऐसी कोई बात नहीं है चाची

चाची- ऐसी ही बात है तू ही बता भला और क्या वजह है जो तू बहाने कर कर के गायब हो जाता है , मैं जानती हूँ खेतो की रखवाली भी तेरा बहाना ही है

मैं- सच सुनना चाहती हो

चाची- सुनकर ही मानूंगी

मैं- तो सुनो , मेरी जिन्दगी में कोई आ गयी है ये बात मैं मानता हूँ

चाची- वाह बेटे अब बता भी दे वो कौन है

मैं- वो एक डायन है .

चाची के माथे पर शिकन छा गयी मेरी बात सुन कर

चाची ने उसी समय आंच जलाई और लाल मिर्च कोयलों पर फूक कर मेरे सर से पैर तक उसे घुमाया और बोली- रात बहुत हुई सो जा.

मैं- मैं ऐसा करने से क्या होगा.

चाची- तसल्ली रहेगी मुझे. और हाँ अबकी बार ऐसे बहाना करके गया न तो मैं अभिमानु को सब बता दूंगी .

मैंने चुपचाप बिस्तर पकड़ा और आँखे बंद कर ली. सुबह मेरा कंधा बहुत जोर से दुःख रहा था शायद कुछ सुजन भी थी तो भैया मुझे शहर के लिए दिखाने के लिए. डॉक्टर ने बताया की मांस सड रहा है , उसने अच्छे से देखा और फिर अपने औजार लेकर कुछ चीर फाड़ करने लगा. बेशक मुझे दवाई दी थी सुन्न करने की पर फिर भी दर्द हो रहा था .मुझसे बाते करते हुए डॉक्टर कभी नुकीले औजार इधर घुसाता कभी उधर.

बहुत देर बाद उसने कंधे के अन्दर से कोई तीन-चार इंच लम्बा एक टुकड़ा बाहर निकाला. जो देखने में किसी हड्डी सा लग रहा था .

डॉक्टर- इसकी वजह से तुम्हारा मांस लगातार सड रहा था .

मैं- पर ये क्या है

डॉक्टर- शायद ये दांत हो सकता है उस जानवर का जिसने तुम्हे काटा था .

ये सुन कर मेरी रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ गयी. जिस बात को मैं लगातार मानने से इंकार कर रहा था डॉक्टर ने उसकी पुष्टि कर दी थी . उस रात बेखुदी की हालत में अवश्य ही उस हमलावर ने मुझे काट लिया था .

“क्या इस की वजह से ही मुझे रक्त की महक इतनी प्यारी लगने लगी थी .” मैंने खुद से सवाल किया और जवाब के ख्याल से ही मैं घबरा गया .

डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाइया दी. कुछ मरहम दिए जो जख्म को जल्दी भरने में मदद करने वाले थे . साथ ही हिदायत दी की हर तीसरे दिन पट्टी बदली जाए और जितना हो सके मैं आराम करू ताकि कंधे पर जोर कम से कम आये.

“अब तुम जा सकते हो ” डॉक्टर ने कहा

मैं उठ कर बाहर को चला ही था की तभी मेरे मन में आया की लिंग की सुजन के बारे में क्या इनसे बात की जाये. पर हिम्मत नहीं हुई की जिक्र कर सकू. भैया ने एक मोटा कपडा ख़रीदा कंधे की अतिरिक्त सुरक्षा के लिए. हमने दोपहर का खाना शहर में ही खाया . भैया के एक दो जानने वालो से मिले और घर आते आते अँधेरा छाने लगा था. वापसी में भैया ने गाँव से थोडा पहले गाडी रोक दी .

मैं- क्या हुआ

भैया - कुछ नहीं बैठते है थोडा फिर चलेंगे.

भैया ने गाड़ी में से एक बोतल निकाली और बाहर उतर गए . मैं भी उनके पीछे हो लिया . पास में ही एक लकड़ी का लट्ठा पड़ा था हम उस बैठ गए . भैया ने एक पेग बनाया और मुझे दिया .

मैं- नहीं भाई

भईया- अरे ले कुछ नहीं होता. ये तो दवाई है इतनी सर्दी में खांसी-जुकाम से भी तो बचना है .

मैंने गिलास थाम लिया और एक चुस्की ली. कडवा पानी कलेजे पर जाकर लगा.

मैं- भैया ये तो कोई नयी ही चीज है

भैया- हाँ, अंग्रेजी है

मैंने कुछ घूँट और भरे.

भैया- कबीर .

मैं- हाँ भैया ..

भैया- कबीर , कुछ नहीं जल्दी से पेग ख़त्म करते है रात घिर आई है घर चलते है .

मुझे लगा की भैया कुछ पूछना चाहते है पर पूछ नहीं पा रहे है

मैं- क्या बात है भैया. होंठ कुछ पूछ रहे है आपका दिल रोक रहा है

भैया- नहीं रे कुछ नहीं

मैं- आप पूछ सकते है आपसे झूठ बोल सकू इतना बड़ा नहीं हुआ मैं अभी .

भैया- दारा की हत्या के बारे में क्या ख्याल है तेरा


भैया की बात सुनकर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया जिसे मैं भैया की नजरो से छुपा नहीं सका..............
Nisha ji ka ye caring nature kabir ke liye sach me yrrr dil kadh gai. Dhaga bandhne se kabir ko surukshit Rhega. Kabir ke jakham na bharne piche uske kandhe me narbhkshi ki daant hona tha jisse jkhm sadne lga tha.. Bhaiya ko gaon or dara ke bich ki fight ke sara khabar hai. Ab kabir Kya btata hai ye baat dekhna bhut dilchasp hoga. Ek baat or ye ki bhaiya ko ye Sari jankari kaise milti hai.? Inke guptchar har jagah phaile hue hai Kya? Bhai ab jldi update dijiye Sabra nhi Ho rha
 

Studxyz

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ये कहानी एक दिलकश नज़राना बनती जा रही है भाई फौजी मुझे क्यों ऐसा लग रहा है की ये कहानी रोमांस, रोमांच व् सस्पेंस में "दिल अपना प्रीत पराई" को टक्कर देने वाली है बस फ़र्क़ ये नज़र आया की उसमे किरदार बहुत अधिक थे इसमें कुछ कम

निशा ने जो धागा दिया वो कबीर को दिया वो इसने जेब में रखा बजाय की उसको हाथ में बाँध लेता है और ये धागा कहीं चाची या चम्पा-वम्पा के हाथ लग गया तो उनकी कहीं गांड ही ना फाड़ दे :vhappy:

डॉ ने जो हड्डी निकाली या दांत वो किसका था जानवर का या इंसान का ? इस से ही कुछ हमलावर का पता लगता
 
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Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Jis tarah se humara is kahani ke prati lagaav ho gaya hai thik waise hi nisha or kabir ke bich hai or iski shuruwaat parwaah se hi to hoti hai or ab silsila kaha jaake thamega kise pata, khair diwali ki ye mulakat bahot khubsurat thi bas itna hi kahege hum to. Wo siyaar nisha ka hi hai aisa mujhe lagta hai.

Bade bhai ki baato ka do hi matlab ho sakta hai pahla ya to unhe kabir par shak hai ya fir wah sahaj hi is baare me puch rahe hai waise mujhe to lagta hai unhe pata hai. Khun ka nasha ek baar Chad jaaye to utarta nahi lekin kai baar aisa hota hai jaha ye jaruri hota hai..
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#38

मैं- क्या है ये निशा

निशा- इसे कलाई में बांध लेना ये रक्षा करेगा तुम्हारी

मैने वो धागा जेब में रख लिया.

निशा- ऐसे क्या देख रहा है

मैं- दिल करता है तुझे ही देखता रहू

निशा- देखा था न फिर मुड के देखा नहीं तूने .

मैं- समझता हूँ

निशा- समझता नहीं तू, समझता तो दारा की खाल नहीं उतारता

मैं- तुझे मालूम हो गया .

निशा- कुछ छिपा भी तो नहीं मुझसे

मैं- मुझे बहुत अफ़सोस है उस बात का , हालाँकि मैं उसे मारना नहीं चाहता था बस सबक सिखाना चाहता था ताकि फिर किसी मजलूम को सताए नहीं वो.

निशा- जो किया ठीक किया पर कबीर इस रक्त की महक से बच कर रहना , जब इसका सुरूर चढ़े तो फिर कुछ खबर न रहे.

मैं- मैं वैसा नहीं हूँ निशा, मैंने कभी किसी से ऐसा-वैसा कुछ नहीं किया उस दिन भी बस मैं उसे अहसास करवाना चाहता था की मजलूमों को नहीं सताना चाहिए. दारा को मुझसे दिक्कत थी तो मिल लेता पर उसने नीच हरकत की .

निशा- ये दुनिया बड़ी जालिम है धीरे धीरे तुम भी समझ जाओगी

मैं-ठण्ड बहुत है कहो तो अलाव जला लू या अन्दर बैठ सकते है

निशा ने सितारों की तरफ देखा और बोली- कुछ देर और ठहर सकती हूँ

मैं- अगर कभी तुम्हे दिन में मिलना हो तो .....

निशा-मेरा साथ करना है तो इन अंधेरो की आदत डाल लो . मेरा यकीन करो ये अँधेरे तुम्हारे उजालो से भी ज्यादा रोचक है .

मैं- फिर भी अगर कभी दिन में मुझे तुम्हारी जरूरत हुई तो .

निशा- तो क्या मैं आ जाउंगी पर ये समझना मेरी कुछ हदे है

मैं- चंपा कहती है की डायन का नाम लेने से वो रात को घर पर आ जाती है

निशा- वो कहती है तो ठीक ही कहती होगी.

रात के तीसरे पहर तक हम दोनों कुवे की मुंडेर पर बैठे बाते करते रहे. फिर उसके जाने का समय हो गया . दिल तो नहीं कर रहा था पर रोक भी तो नहीं पा रहा था उसे. उसके जाने के बाद मैंने भी साइकिल उठाई और गाँव का रास्ता पकड़ लिया. मैंने देखा की जब तक आबादी शुरू नहीं हुई सियार मेरे साथ साथ ही रहा और फिर ख़ामोशी से मुड गया.

देखा की चाची अभी तक जाग रही थी .

मैं- सोयी नहीं अभी तक

चाची- जिनका जवान लड़का इतनी रात तक बाहर हो वो कैसे सो सकती है.

मैं- थोड़ी देर हो गयी .

चाची- वैसे मुझे भी लगता है की बहुरानी ठीक कहती है तेरा किसी न किसी से तो चक्कर जरुर है . गाँव में ऐसी कौन हो गयी जो रातो को तेरे साथ है , मालूम तो कर ही लुंगी मैं.

मैं- ऐसी कोई बात नहीं है चाची

चाची- ऐसी ही बात है तू ही बता भला और क्या वजह है जो तू बहाने कर कर के गायब हो जाता है , मैं जानती हूँ खेतो की रखवाली भी तेरा बहाना ही है

मैं- सच सुनना चाहती हो

चाची- सुनकर ही मानूंगी

मैं- तो सुनो , मेरी जिन्दगी में कोई आ गयी है ये बात मैं मानता हूँ

चाची- वाह बेटे अब बता भी दे वो कौन है

मैं- वो एक डायन है .

चाची के माथे पर शिकन छा गयी मेरी बात सुन कर

चाची ने उसी समय आंच जलाई और लाल मिर्च कोयलों पर फूक कर मेरे सर से पैर तक उसे घुमाया और बोली- रात बहुत हुई सो जा.

मैं- मैं ऐसा करने से क्या होगा.

चाची- तसल्ली रहेगी मुझे. और हाँ अबकी बार ऐसे बहाना करके गया न तो मैं अभिमानु को सब बता दूंगी .

मैंने चुपचाप बिस्तर पकड़ा और आँखे बंद कर ली. सुबह मेरा कंधा बहुत जोर से दुःख रहा था शायद कुछ सुजन भी थी तो भैया मुझे शहर के लिए दिखाने के लिए. डॉक्टर ने बताया की मांस सड रहा है , उसने अच्छे से देखा और फिर अपने औजार लेकर कुछ चीर फाड़ करने लगा. बेशक मुझे दवाई दी थी सुन्न करने की पर फिर भी दर्द हो रहा था .मुझसे बाते करते हुए डॉक्टर कभी नुकीले औजार इधर घुसाता कभी उधर.

बहुत देर बाद उसने कंधे के अन्दर से कोई तीन-चार इंच लम्बा एक टुकड़ा बाहर निकाला. जो देखने में किसी हड्डी सा लग रहा था .

डॉक्टर- इसकी वजह से तुम्हारा मांस लगातार सड रहा था .

मैं- पर ये क्या है

डॉक्टर- शायद ये दांत हो सकता है उस जानवर का जिसने तुम्हे काटा था .

ये सुन कर मेरी रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ गयी. जिस बात को मैं लगातार मानने से इंकार कर रहा था डॉक्टर ने उसकी पुष्टि कर दी थी . उस रात बेखुदी की हालत में अवश्य ही उस हमलावर ने मुझे काट लिया था .

“क्या इस की वजह से ही मुझे रक्त की महक इतनी प्यारी लगने लगी थी .” मैंने खुद से सवाल किया और जवाब के ख्याल से ही मैं घबरा गया .

डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाइया दी. कुछ मरहम दिए जो जख्म को जल्दी भरने में मदद करने वाले थे . साथ ही हिदायत दी की हर तीसरे दिन पट्टी बदली जाए और जितना हो सके मैं आराम करू ताकि कंधे पर जोर कम से कम आये.

“अब तुम जा सकते हो ” डॉक्टर ने कहा

मैं उठ कर बाहर को चला ही था की तभी मेरे मन में आया की लिंग की सुजन के बारे में क्या इनसे बात की जाये. पर हिम्मत नहीं हुई की जिक्र कर सकू. भैया ने एक मोटा कपडा ख़रीदा कंधे की अतिरिक्त सुरक्षा के लिए. हमने दोपहर का खाना शहर में ही खाया . भैया के एक दो जानने वालो से मिले और घर आते आते अँधेरा छाने लगा था. वापसी में भैया ने गाँव से थोडा पहले गाडी रोक दी .

मैं- क्या हुआ

भैया - कुछ नहीं बैठते है थोडा फिर चलेंगे.

भैया ने गाड़ी में से एक बोतल निकाली और बाहर उतर गए . मैं भी उनके पीछे हो लिया . पास में ही एक लकड़ी का लट्ठा पड़ा था हम उस बैठ गए . भैया ने एक पेग बनाया और मुझे दिया .

मैं- नहीं भाई

भईया- अरे ले कुछ नहीं होता. ये तो दवाई है इतनी सर्दी में खांसी-जुकाम से भी तो बचना है .

मैंने गिलास थाम लिया और एक चुस्की ली. कडवा पानी कलेजे पर जाकर लगा.

मैं- भैया ये तो कोई नयी ही चीज है

भैया- हाँ, अंग्रेजी है

मैंने कुछ घूँट और भरे.

भैया- कबीर .

मैं- हाँ भैया ..

भैया- कबीर , कुछ नहीं जल्दी से पेग ख़त्म करते है रात घिर आई है घर चलते है .

मुझे लगा की भैया कुछ पूछना चाहते है पर पूछ नहीं पा रहे है

मैं- क्या बात है भैया. होंठ कुछ पूछ रहे है आपका दिल रोक रहा है

भैया- नहीं रे कुछ नहीं

मैं- आप पूछ सकते है आपसे झूठ बोल सकू इतना बड़ा नहीं हुआ मैं अभी .

भैया- दारा की हत्या के बारे में क्या ख्याल है तेरा


भैया की बात सुनकर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया जिसे मैं भैया की नजरो से छुपा नहीं सका..............
मैं- दिल करता है तुझे ही देखता रहू

निशा- देखा था न फिर मुड के देखा नहीं तूने .

deep....
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई इस कहानी में निशा डायन जी को अंत में पूजा व् आयत जैसी बनाना जस्सी जैसी नहीं :vhappy1:
फौजी भाई ने पहले ही बता दिया की कबीर की मां का कोई रोल नहीं है इस कहानी में।
 
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