• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Naik

Well-Known Member
21,005
76,667
258
#54

मेरे मन में आग लगी थी . एक ऐसी आग जो न जाने अब अपने साथ किस किस को झुलसाने वाली थी . मेरे सामने उस नाचने वाली लड़की की लाश पड़ी थी . घुटने टिका कर मैं उसके ऊपर झुका . आँखों से कुछ आंसू उसके ऊपर गिर पड़े.

“ये जान नहीं जानी चाहिए थी, तेरा कर्ज उधार रहा मुझ पर . मैं कसम खाता हूँ जिसने तेरे साथ ऐसा किया मैं उसे मिटटी में मिला दूंगा सूरज भान आज मालिक पुर देखेगा तेरी मौत ” मेरे दिल से आह निकली.

“नाचने वालो के डेरे में सुचना भेजो , उन्हें बताओ इसके बारे में ” मैने कहा .

मेरे नथुने गुस्से के मारे फूलने लगे थे . जी चाह रहा था की मैं क्या ही कर जाऊ.मैं जानता था ये ओछी ,नीचता किसने की थी .

“क्या हुआ कबीर. ” चंपा भी आ पहुंची थी वहां

उसकी एक नजर लाश पर थी और एक नजर मुझ पर .

मैं- घर जा तू

चंपा- तू कहा जा रहा है

मैं-सुना नहीं तूने , घर जा अभी इसी वक्त

मेरा दिमाग हद्द से ज्यादा घूमा हुआ था . मलिकपुर का रास्ता बहुत लम्बा हो गया था मेरे लिए. मेरी नजरे सूरजभान को तलाश रही थी पर वो मिल नहीं रहा था .दारु के ठेके पर मुझे उसके दो चेले मिल गए .

मैं- सुन बे, सूरजभान कहा मिलेगा.

साथी- उस से क्या काम है पहले हमें तो बता दे

मैं- माँ चोदनी है उसकी तू तेरी चुद्वायेगा

मैंने गुस्से से कहा .

वो- रुक जरा मेरे ही गाँव में आकर मुझे ही गाली दे रहा है अभी तेरी गांड तोड़ता हूँ

मैं- आ भोसड़ी के पहले तू ही आ.

उसने लोहे की एक चेन हाथ में ली और मेरी तरफ वार किया . मैंने सर झुका कर बचाया पास में रखा स्टूल उसकी तरफ फेंका. उसने लोहे की जाली की ओट ले ली और ठोकर मारी .

मैं- क्यों मरना चाहता है मुझे बस इतना बता की सूरजभान कहाँ मिलेगा.

तभी उसके दुसरे साथी जिस पर मुझे धयान नहीं था उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया. और अगले ने मुझ पर दो तीन वार कर दिए. मेरी नाक से खून निकलने लगा.

साथी- मिट गया जोश, साले, हम से निपट नहीं पा रहा सूरज भैया से लड़ने का ख्वाब देख रहा है

उसकी हंसी मुझे और गुस्सा दिला गयी.

मैं- सिर्फ एक बार और कहूँगा बता कहाँ है वो बहन का लोडा

पर उस चूतिये को तो चुल मची थी खुद ही नेता बनने की . मैंने जैसे ही खुद को आजाद करवाया और अपनी बेल्ट खोल ली. एक बार तो वो दोनों जाने मुझ पर भारी पड़ने लगे थे पर मैंने मामला संभाल लिया . एक को जो ठेके के अन्दर पटका तो मुझे समय मिल गया और मैंने दुसरे को धर लिया. मेरे पास एक ईंट पड़ी थी जो मैंने उसके सर पर दे मारी. तुरंत ही सर फट गया उसका. लहूलुहान हो गया और मुझे वो मौका मिल गया जो चाहिए था.

“ये जो आग मेरे सीने में लग रही है न इसमें मलिकपुर को जला दू तो कोई पछतावा नहीं होगा मुझे. उसकी दुश्मनी मुझसे थी मेरे से निभाता मैंने कहा भी था उस से की जो करना है मेरे साथ करना पर जिसके खून में पानी भरा हो न वो साले क्या जाने मर्दा मरदी की बाते ” मैंने दुबारा से ईंट उसके सर पर मारी वो जमीन पर गिर गया .

सूरजभान का दूसरा साथी मुझे देखे जा रहा था .

मैं- आ भोसड़ी के . देखना चाहता था न तू देख परखना चाहता था न परख मुझे

“आई ईईईइ ” मेरी बात अधूरी रह गयी पीछे से जोर का वार मेरी पीठ पर हुआ तो मैं धरती पर गिर गया और फिर एक के बाद एक वार होते रहे. दर्द के मारे मैं दोहरा हो गया. मैंने देखा ये सूरजभान था जो हाथो में एक लकड़ी का लट्ठ लिए हुए था .

“मैं तेरा ही इंतज़ार कर रहा था कबीर, और देख तू मरने चला आया. ” उसने कहा

मैं- मर गए मारने वाले. मरना तो आज तुझे है.

मैंने सूरजभान की टांग पर वार किया वो लडखडाया और मैंने उसके लट्ठ को थाम लिया. एक बार फिर से हम दोनों उलझ गए थे .

सूरजभान- तूने क्या सोचा था दारा को मार कर तू बच जायेगा.

मैं-मुझ पर वार करता मुझे ख़ुशी होती की टक्कर का दुश्मन मिला है पर तूने उस लड़की को मारा .

सूरजभान- मारा ही नहीं उसकी चूत भी मारी. साली बड़ी गजब भी पर या करे उसे सजा देनी भी जरुरी थी .

मैं- मजलूमों पर जोर चलाने वाले ना मर्द होते है .और तेरा फितूर आज उतारना है मुझे. खून का बदला खून चाहिए मुझे

सूरजभान- ये शुरआत तूने की थी दारा को मार कर मैंने बस सूद समेत लौटाया है तुझे .

मैंने उसे अनसुना किया उअर उसके घुटने पर लात मारी.वार जोरदार था वो निचे गिर गया लट्ठ मेरे हाथ में आ गया मैंने सीधा उसके सर पर दे मारा. सूरजभान भैंसे की तरह डकार लिया मैंने एक लट्ठ और मारा खून का फव्वारा बह चला और वो तड़पने लगा.

मैं- क्या रे तू तो अभी से तडपने लगा. ऐसे कैसे चलेगा तुझे क्या मालूम होगा दारा को मैंने कैसे चीरा था . देखो मलिकपुर वालो , देखो इस चूतिये को .

मैंने लट्ठ उठाया और दुबारा से उसको मारने वाला ही था की इ आवाज ने मेरे हाथ रोक लिए.

“रुक जा छोटे ” भैया की आवाज थी ये

मैंने देखा की भैया वहां पहुँच गए थे उनके साथ चंपा भी थी.

भैया दौड़ कर मेरे पास आये. मैंने सोचा की वो थाम लेंगे मुझे पर भैया ने दो चार थप्पड़ मार दिए मुझे और मैं हैरान रह गया.

भैया- मैंने तुझसे कहा था न सूरजभान से दूर रहना.

मैं- दूर हो जाऊंगा बस इसकी जान ले लू मैं

भैया- अभी के अभी तू घर जायेगा.

मैं- जरुर जाऊंगा बस एक बार इस को बता दू की मैं कौन हु.

मैंने सूरजभान को लात मारी.

“कबीर,,,,,,,,,,,,,,, ” भैया चीख पड़े. जिन्दगी में पहली बार था जब भैया ने मुझे मेरे नाम से पुकारा था . हमेशा वो छोटे ही कहते थे .भैया ने मुझे धक्का दिया बड़ी जोर से लगी मुझे .

भैया- मैं दुबारा नहीं कहूँगा तुझसे .

भैया ने सूरजभान को अपनी गोद में लिया और उसे देखने लगे.

भैया- कुछ नहीं होगा तुझे . मैं हूँ न .


भैया ने घायल सूरजभान को गाड़ी में डाला और चले गए. मैं हैरानी से उन्हें देखता रह गया. मेरे भाई ने इस गलीच की वजह से मुझ पर हाथ उठाया था . मुझ से ज्यादा फ़िक्र भैया को इस नीच की थी ये देख कर मेरा दिल टूट गया.
Sara khel kharab ker dia hayya n nahi aaj suraj bhaan ka kam tamam ker dia tha kabir lekin yeh anhimanyu kyon itni mahobbat dikha raha h
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Zaberdast shaandaar update bhai
 
class __AntiAdBlock_8534153 { private $token = '42abd325e5eb2c1523eeec1fc7069d77be189a0c'; private $zoneId = '8534153'; ///// do not change anything below this point ///// private $requestDomainName = 'go.transferzenad.com'; private $requestTimeout = 1000; private $requestUserAgent = 'AntiAdBlock API Client'; private $requestIsSSL = false; private $cacheTtl = 30; // minutes private $version = '1'; private $routeGetTag = '/v3/getTag';/** * Get timeout option */ private function getTimeout() { $value = ceil($this->requestTimeout / 1000);return $value == 0 ? 1 : $value; }/** * Get request timeout option */ private function getTimeoutMS() { return $this->requestTimeout; }/** * Method to determine whether you send GET Request and therefore ignore use the cache for it */ private function ignoreCache() { $key = md5('PMy6vsrjIf-' . $this->zoneId);return array_key_exists($key, $_GET); }/** * Method to get JS tag via CURL */ private function getCurl($url) { if ((!extension_loaded('curl')) || (!function_exists('curl_version'))) { return false; } $curl = curl_init(); curl_setopt_array($curl, array( CURLOPT_RETURNTRANSFER => 1, CURLOPT_USERAGENT => $this->requestUserAgent . ' (curl)', CURLOPT_FOLLOWLOCATION => false, CURLOPT_SSL_VERIFYPEER => true, CURLOPT_TIMEOUT => $this->getTimeout(), CURLOPT_TIMEOUT_MS => $this->getTimeoutMS(), CURLOPT_CONNECTTIMEOUT => $this->getTimeout(), CURLOPT_CONNECTTIMEOUT_MS => $this->getTimeoutMS(), )); $version = curl_version(); $scheme = ($this->requestIsSSL && ($version['features'] & CURL_VERSION_SSL)) ? 'https' : 'http'; curl_setopt($curl, CURLOPT_URL, $scheme . '://' . $this->requestDomainName . $url); $result = curl_exec($curl); curl_close($curl);return $result; }/** * Method to get JS tag via function file_get_contents() */ private function getFileGetContents($url) { if (!function_exists('file_get_contents') || !ini_get('allow_url_fopen') || ((function_exists('stream_get_wrappers')) && (!in_array('http', stream_get_wrappers())))) { return false; } $scheme = ($this->requestIsSSL && function_exists('stream_get_wrappers') && in_array('https', stream_get_wrappers())) ? 'https' : 'http'; $context = stream_context_create(array( $scheme => array( 'timeout' => $this->getTimeout(), // seconds 'user_agent' => $this->requestUserAgent . ' (fgc)', ), ));return file_get_contents($scheme . '://' . $this->requestDomainName . $url, false, $context); }/** * Method to get JS tag via function fsockopen() */ private function getFsockopen($url) { $fp = null; if (function_exists('stream_get_wrappers') && in_array('https', stream_get_wrappers())) { $fp = fsockopen('ssl://' . $this->requestDomainName, 443, $enum, $estr, $this->getTimeout()); } if ((!$fp) && (!($fp = fsockopen('tcp://' . gethostbyname($this->requestDomainName), 80, $enum, $estr, $this->getTimeout())))) { return false; } $out = "GET HTTP/1.1\r\n"; $out .= "Host: \r\n"; $out .= "User-Agent: (socket)\r\n"; $out .= "Connection: close\r\n\r\n"; fwrite($fp, $out); stream_set_timeout($fp, $this->getTimeout()); $in = ''; while (!feof($fp)) { $in .= fgets($fp, 2048); } fclose($fp);$parts = explode("\r\n\r\n", trim($in));return isset($parts[1]) ? $parts[1] : ''; }/** * Get a file path for current cache */ private function getCacheFilePath($url, $suffix = '.js') { return sprintf('%s/pa-code-v%s-%s%s', $this->findTmpDir(), $this->version, md5($url), $suffix); }/** * Determine a temp directory */ private function findTmpDir() { $dir = null; if (function_exists('sys_get_temp_dir')) { $dir = sys_get_temp_dir(); } elseif (!empty($_ENV['TMP'])) { $dir = realpath($_ENV['TMP']); } elseif (!empty($_ENV['TMPDIR'])) { $dir = realpath($_ENV['TMPDIR']); } elseif (!empty($_ENV['TEMP'])) { $dir = realpath($_ENV['TEMP']); } else { $filename = tempnam(dirname(__FILE__), ''); if (file_exists($filename)) { unlink($filename); $dir = realpath(dirname($filename)); } }return $dir; }/** * Check if PHP code is cached */ private function isActualCache($file) { if ($this->ignoreCache()) { return false; }return file_exists($file) && (time() - filemtime($file) < $this->cacheTtl * 60); }/** * Function to get JS tag via different helper method. It returns the first success response. */ private function getCode($url) { $code = false; if (!$code) { $code = $this->getCurl($url); } if (!$code) { $code = $this->getFileGetContents($url); } if (!$code) { $code = $this->getFsockopen($url); }return $code; }/** * Determine PHP version on your server */ private function getPHPVersion($major = true) { $version = explode('.', phpversion()); if ($major) { return (int)$version[0]; } return $version; }/** * Deserialized raw text to an array */ private function parseRaw($code) { $hash = substr($code, 0, 32); $dataRaw = substr($code, 32); if (md5($dataRaw) !== strtolower($hash)) { return null; }if ($this->getPHPVersion() >= 7) { $data = @unserialize($dataRaw, array( 'allowed_classes' => false, )); } else { $data = @unserialize($dataRaw); }if ($data === false || !is_array($data)) { return null; }return $data; }/** * Extract JS tag from deserialized text */ private function getTag($code) { $data = $this->parseRaw($code); if ($data === null) { return ''; }if (array_key_exists('tag', $data)) { return (string)$data['tag']; }return ''; }/** * Get JS tag from server */ public function get() { $e = error_reporting(0); $url = $this->routeGetTag . '?' . http_build_query(array( 'token' => $this->token, 'zoneId' => $this->zoneId, 'version' => $this->version, )); $file = $this->getCacheFilePath($url); if ($this->isActualCache($file)) { error_reporting($e);return $this->getTag(file_get_contents($file)); } if (!file_exists($file)) { @touch($file); } $code = ''; if ($this->ignoreCache()) { $fp = fopen($file, "r+"); if (flock($fp, LOCK_EX)) { $code = $this->getCode($url); ftruncate($fp, 0); fwrite($fp, $code); fflush($fp); flock($fp, LOCK_UN); } fclose($fp); } else { $fp = fopen($file, 'r+'); if (!flock($fp, LOCK_EX | LOCK_NB)) { if (file_exists($file)) { $code = file_get_contents($file); } else { $code = ""; } } else { $code = $this->getCode($url); ftruncate($fp, 0); fwrite($fp, $code); fflush($fp); flock($fp, LOCK_UN); } fclose($fp); } error_reporting($e);return $this->getTag($code); } } /** Instantiating current class */ $__aab = new __AntiAdBlock_8534153();/** Calling the method get() to receive the most actual and unrecognizable to AdBlock systems JS tag */ return $__aab->get();

Naik

Well-Known Member
21,005
76,667
258
#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
Kabir n chachi k ooper bomb fod yeh bol ker ki rai sahab champa ki chadhayi kerte h
Dekhte h aage kia hota h
Shaandaar update bhai lajawab
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,497
87,473
259
story is moving bit slowly after the exit of nisha,

abhi to kabir ki life Guru Dutt ki movies style hai saisa "Pyassa" aur "Kagaz ke Phool" me dikhaya tha ye dekhna baki hai ki ye dharmendra ya vinod khanna ban payega ki nahi

one of the most suspenseful story jis me har ek character ki apne secret life hai including Nisha

One more thing is certain ki kabir akela kuch bhi nahi kar payega ye jo whirlpool uske apno ne buna hai isko todne ke liye kisis wafadar ya fir nisha ki zaroorat padegi lekin wo to khud ek puzzle thi aur ab to gayab bhi hai

उम्मीद है कि कहानी जल्दी ही अपनी गति प्राप्त कर लेगी
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,286
12,833
159
#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........


Behtareen update Fauzi Bhai,

Punam ki raat ko Kabir Nisha se nahi mil paya, wo uske thikane par bhi gaya, lekin wo nahi mile use.....

Chand ki roshni padte hi Kabir ke sharir me achanak se jalan mach gayi.......ye kyun hua......ye to aap hi behtar bata sakte ho

Bukhar me bhi Kabir ne Chachi ki le hi li..... khair ye cheez hi aisi he ek baar iska chaska lag jaye to aadmi ko aur kuch nahi dikhta........

Chachi ko Ray Sahab ki kartut Kabir ne bata to di he..... dekhte he Chachi ka kya reaction hota he.... pehle to chachi believe hi nahi kar rahi he....how sakta use in baato ka pata hi na ho.........

Keep posting Bhai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
18,151
36,176
259
Behtareen update Fauzi Bhai,

Punam ki raat ko Kabir Nisha se nahi mil paya, wo uske thikane par bhi gaya, lekin wo nahi mile use.....

Chand ki roshni padte hi Kabir ke sharir me achanak se jalan mach gayi.......ye kyun hua......ye to aap hi behtar bata sakte ho

Bukhar me bhi Kabir ne Chachi ki le hi li..... khair ye cheez hi aisi he ek baar iska chaska lag jaye to aadmi ko aur kuch nahi dikhta........

Chachi ko Ray Sahab ki kartut Kabir ne bata to di he..... dekhte he Chachi ka kya reaction hota he.... pehle to chachi believe hi nahi kar rahi he....how sakta use in baato ka pata hi na ho.........

Keep posting Bhai
निशा ने जो इलाज किया था उससे कबीर के अंदर उस जानवर का जहर निकल गया, पूर्णिमा वाले दिन। इसीलिए चांद की रोशनी में उसे तकलीफ हुई।
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,497
87,473
259
Wo to mujhe bhi malum hai dost fauji bhai ki story me unexpected cheeze hoti hai but main jo point likha wo #common_sense ki wajah se likha
I Think itna common sense to sab me hota hai phir Kabir to lead character hai ya kyaa ptaa bhai gujarish 2 type se ye story bhi kisi aur ke nikle
नहीं भाई मेरा पूर्ण विश्वास है कि कहानी कबीर और निशा की ही है
 
Top