• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Ouseph

New Member
92
437
53
नई कहानी हेतु धुन शुभकामनाएं । उम्मीद है कि यह कहानी भी आपकी पूर्व की कहानियों की भांति आपकी लेखनी के जादू से पाठकों को रस विभोर करेगी तथा सफलता के नए आयाम गढ़ेगी।
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,450
87,239
259
#1

“तेज और तेज ” घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .



“न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र ” कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

“बस थोड़ी देर की बात और है ” कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

“अब तुमको क्या हुआ ” कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

“क्या मुसीबत है ” कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

“आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा ” अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

“सियार ” उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

“जरा तेज तेज चला साइकिल को ” मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .



“इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ ” कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

“कोई है ” कोचवान ने आवाज दी .

“कोई है , ” उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

“क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो ” उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

“ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का ” उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

“मंगू, साइकिल रोक जरा, ” मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .

“आईईईईईईईईईईईइ ”जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
 

Mastmalang

Member
239
739
108
#1

“तेज और तेज ” घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .



“न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र ” कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

“बस थोड़ी देर की बात और है ” कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

“अब तुमको क्या हुआ ” कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

“क्या मुसीबत है ” कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

“आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा ” अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

“सियार ” उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

“जरा तेज तेज चला साइकिल को ” मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .



“इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ ” कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

“कोई है ” कोचवान ने आवाज दी .

“कोई है , ” उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

“क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो ” उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

“ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का ” उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

“मंगू, साइकिल रोक जरा, ” मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .


“आईईईईईईईईईईईइ ”जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
Welcome back
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
708
4,360
123
मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है
वोही एहशास, वोही अंदाज़ .... पात्र अलग और हालात अलग.
बेहद, ही उम्दा अंश था भाई ।
शुभारंभ के लिए शुभकामनाएं ।
 
Top