Lust_King
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Dh
#67
मैं- कैसा फर्ज भैया
भैया- बस इतना समझ ले छोटे , उसे भी थाम कर रखना है मुझे
मैं- ये मुमकिन नहीं हो पायेगा भैया . मैं हद नफरत करता हु उससे . एक दिन आयेगा जब या तो वो रहेगा या मैं
भैया- जब तक मैं हूँ वो दिन कभी नहीं आएगा.
भैया ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अन्दर चले गए. मैंने देखा भाभी मुझे ही देख रही थी .तमाम चीजो के बीच सिर्फ यही राहत थी की फिलहाल के लिए उस आदमखोर के हमले रुके हुए थे. गाँव वालो को भी थोडा चैन था . कुछ तो भैया छिपा रहे थे मुझसे पर क्या. राय साहब और भैया दोनों में एक बात एक सी थी की दोनों के कोई दोस्त नहीं थे. और जब आदमी अकेला होता है तो उसके इतिहास को तलाशना और मुस्किल हो जाता है .
एक बार फिर मैं दोपहर को रमा के अड्डे पर था.
रमा- पर तुम प्रकाश से जानकारी कैसे निकल्वाओगे
मैं- तुम्हारी मदद से , तुम्हारे हुस्न पर फ़िदा है वो तुम उसे अगर उलझाये रखो तो मैं उसके घर से कागज तलाश लूँगा.
रमा- मैं उसे जायदा देर तक नहीं उलझा पाउंगी , क्योंकि मैं उसे बस रिझा सकती हूँ उसकी मनचाही नहीं करुँगी. दूसरी बात वो बहुत धूर्त है समझ जायेगा की तुम्हारे कहने पर मैं कर रही हूँ ये
मैं- तो क्या करे.
रमा- रात की जगह तुम ये काम दिन में करो . दिन में वो अदालत में रहता है या फिर तुम्हारे पिता के साथ
.
रमा की बात में दम था . और दस्तूर भी क्योंकि प्रकाश का घर आबादी से दूर मलिकपुर के पिछले हिस्से में था. मैंने रमा को साथ लिया और हम उसके घर में घुस गए. घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरे थे और एक छोटी सी रसोई. एक कमरे में उसके कागज थे कचहरी के . मैंने वसीयत के कागज तलाशे पर कुछ नहीं मिला. पूरा कमरा देख लिया. दुसरे कमरे में बस बिस्तर पड़ा था . पर तीसरे कमरे में कुछ ऐसा था जिसने मेरे मन को और मजबूत किया की प्रकाश धूर्त ही नहीं गलीच भी था. कमरे में औरतो की कछिया पड़ी थी . फटे हुए ब्लाउज पड़े थे. मतलब की यहाँ पर वो औरतो को चोदने के लिए लाया करता था .
मैं- देख रही हो रमा क्या काण्ड हो रहे है ये
रमा- समझ रही हूँ .
मेरी नजर रमा की छातियो पर पड़ी जो जोर से ऊपर निचे हो रही थी . बेशक उसने शाल ओढा हुआ था पर फिर भी मैं उसकी गोलाइयो को महसूस कर पा रहा था . एक पल को लगा की उसने मेरी नजरे पकड़ ली है.
रमा- वो कागज महत्वपूर्ण है उन्हें खुले में तो नहीं रखेगा . किसी तिजोरी जैसी जगह में रखेगा.
मुझे जायज लगी उसकी बात. मैंने एक बार फिर से गहनता से तलाशी शुरू की पर हालात वैसे के वैसे थे.
मैं- घी जब सीधी ऊँगली से नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है प्रकाश अब खुद कागज देगा मुझे .
हम लोग वापिस रमा के ठिकाने पर आ गए.
रमा- जबसे तुम इधर आने लगे हो सूरजभान और उसके साथी आते नहीं इधर
मैं- मेरी वजह से तुम्हारा धंधा कम हो गया .
रमा- वो बात नहीं है
मैं- क्या उन्होंने तुमसे कहा नहीं की क्यों बिठाती हो मुझे .
रमा- अभी तक तो नहीं .
मैं- और रुडा
रमा- रुडा ज्यादातर बाहर ही रहता है . उसमे पहले वाली बात नहीं रही . किसी ज़माने में उसका सिक्का चलता था पर अब उम्र भी तो हो गयी है .
मैं- और उसकी बेटी
रमा- वो बाहर पढ़ती थी बड़े शहर में पुरे पांच बरस बाद लौटी है . रुडा और उसकी कम ही बनती है .जब वो आती है तो रुडा घर नहीं रहता रुडा आये तो वो चली जाती है . इतने दिन बाद आई है तो कोई विशेष कारण ही होगा.
मैं- ब्याह नहीं किया रुडा ने उसका
रमा- सुना है की वो करना नहीं चाहती ब्याह.
“भैया ने भी पुरे पांच साल बाद मलिकपुर की धरती पर कदम रखा क्या सूरजभान की बहन ही वो वजह थी . वो भी पांच साल बाद लौटी है क्या अतीत में इनके बीच कुछ था ” मैंने खुद से ये सवाल किया. वापिस गाँव आने के बाद मैं कोचवान हरिया के घर गया .
“कैसी हो भाभी ” मैंने पूछा
भाभी- बस जी रहे है कुंवर
मैं- जीना तो है ही भाभी, अपने लिए न सही इन बच्चो के पालन के लिए हरिया की कमी तो जिन्दगी भर रहेगी उसकी जगह तो कोई भर नहीं सकता पर जीवन में आगे बढ़ना भी जरुरी है
भाभी- बात तो सही है पर मेरे लिए मुश्किल हो रहा है तीन बच्चो और बूढ़े सास-ससुर को संभालना , पहले बालको का बापू कमा कर लाता था तो घर चलता था .
मैं- तुम्हे किसी भी चीज से परेशां होने की जरुरत नहीं है भाभी . ये तो मेरी कमी हुई जो तुम्हारा ध्यान नहीं रख पाया . घर में ये हालात है और तुम एक बार भी मुझसे कह नहीं पाई. ये तो गलत है न भाभी,
भाभी- किस मुह से कहे कुंवर. हाथ फ़ैलाने के लिए भी कलेजा लगता है
मैं- ये कह कर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया भाभी
मैंने जेब से पैसे निकाले और भाभी के हाथ में रख दिए.
भाभी- मैं कहाँ से चूका पाऊँगी
मैं- कोई जरूरत नहीं है भाभी और तुम्हे काम भी मिल जायेगा तुम हमारे खेतो पर काम करो . अपनी मेहनत से पैसा कमाओ .
भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.
मैं- शर्मिंदा मत करो
वापसी में मैंने बनिए से कह दिया की हरिया कोचवान के घर छ महीने का राशन तुरंत पहुंचा दे. घर आकार मैंने खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया पर आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी . कभी इधर करवट कभी उधर करवट दिल में बस एक ही सवाल था .
“क्या परेशानी है नींद नहीं आ रही जो ” चाची ने कहा
मैं- चाची क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे . ................
Dheere Dheere Purani Parat khul rahi h .. Aage dekhte h kya hota .. very nice update#67
मैं- कैसा फर्ज भैया
भैया- बस इतना समझ ले छोटे , उसे भी थाम कर रखना है मुझे
मैं- ये मुमकिन नहीं हो पायेगा भैया . मैं हद नफरत करता हु उससे . एक दिन आयेगा जब या तो वो रहेगा या मैं
भैया- जब तक मैं हूँ वो दिन कभी नहीं आएगा.
भैया ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अन्दर चले गए. मैंने देखा भाभी मुझे ही देख रही थी .तमाम चीजो के बीच सिर्फ यही राहत थी की फिलहाल के लिए उस आदमखोर के हमले रुके हुए थे. गाँव वालो को भी थोडा चैन था . कुछ तो भैया छिपा रहे थे मुझसे पर क्या. राय साहब और भैया दोनों में एक बात एक सी थी की दोनों के कोई दोस्त नहीं थे. और जब आदमी अकेला होता है तो उसके इतिहास को तलाशना और मुस्किल हो जाता है .
एक बार फिर मैं दोपहर को रमा के अड्डे पर था.
रमा- पर तुम प्रकाश से जानकारी कैसे निकल्वाओगे
मैं- तुम्हारी मदद से , तुम्हारे हुस्न पर फ़िदा है वो तुम उसे अगर उलझाये रखो तो मैं उसके घर से कागज तलाश लूँगा.
रमा- मैं उसे जायदा देर तक नहीं उलझा पाउंगी , क्योंकि मैं उसे बस रिझा सकती हूँ उसकी मनचाही नहीं करुँगी. दूसरी बात वो बहुत धूर्त है समझ जायेगा की तुम्हारे कहने पर मैं कर रही हूँ ये
मैं- तो क्या करे.
रमा- रात की जगह तुम ये काम दिन में करो . दिन में वो अदालत में रहता है या फिर तुम्हारे पिता के साथ
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रमा की बात में दम था . और दस्तूर भी क्योंकि प्रकाश का घर आबादी से दूर मलिकपुर के पिछले हिस्से में था. मैंने रमा को साथ लिया और हम उसके घर में घुस गए. घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरे थे और एक छोटी सी रसोई. एक कमरे में उसके कागज थे कचहरी के . मैंने वसीयत के कागज तलाशे पर कुछ नहीं मिला. पूरा कमरा देख लिया. दुसरे कमरे में बस बिस्तर पड़ा था . पर तीसरे कमरे में कुछ ऐसा था जिसने मेरे मन को और मजबूत किया की प्रकाश धूर्त ही नहीं गलीच भी था. कमरे में औरतो की कछिया पड़ी थी . फटे हुए ब्लाउज पड़े थे. मतलब की यहाँ पर वो औरतो को चोदने के लिए लाया करता था .
मैं- देख रही हो रमा क्या काण्ड हो रहे है ये
रमा- समझ रही हूँ .
मेरी नजर रमा की छातियो पर पड़ी जो जोर से ऊपर निचे हो रही थी . बेशक उसने शाल ओढा हुआ था पर फिर भी मैं उसकी गोलाइयो को महसूस कर पा रहा था . एक पल को लगा की उसने मेरी नजरे पकड़ ली है.
रमा- वो कागज महत्वपूर्ण है उन्हें खुले में तो नहीं रखेगा . किसी तिजोरी जैसी जगह में रखेगा.
मुझे जायज लगी उसकी बात. मैंने एक बार फिर से गहनता से तलाशी शुरू की पर हालात वैसे के वैसे थे.
मैं- घी जब सीधी ऊँगली से नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है प्रकाश अब खुद कागज देगा मुझे .
हम लोग वापिस रमा के ठिकाने पर आ गए.
रमा- जबसे तुम इधर आने लगे हो सूरजभान और उसके साथी आते नहीं इधर
मैं- मेरी वजह से तुम्हारा धंधा कम हो गया .
रमा- वो बात नहीं है
मैं- क्या उन्होंने तुमसे कहा नहीं की क्यों बिठाती हो मुझे .
रमा- अभी तक तो नहीं .
मैं- और रुडा
रमा- रुडा ज्यादातर बाहर ही रहता है . उसमे पहले वाली बात नहीं रही . किसी ज़माने में उसका सिक्का चलता था पर अब उम्र भी तो हो गयी है .
मैं- और उसकी बेटी
रमा- वो बाहर पढ़ती थी बड़े शहर में पुरे पांच बरस बाद लौटी है . रुडा और उसकी कम ही बनती है .जब वो आती है तो रुडा घर नहीं रहता रुडा आये तो वो चली जाती है . इतने दिन बाद आई है तो कोई विशेष कारण ही होगा.
मैं- ब्याह नहीं किया रुडा ने उसका
रमा- सुना है की वो करना नहीं चाहती ब्याह.
“भैया ने भी पुरे पांच साल बाद मलिकपुर की धरती पर कदम रखा क्या सूरजभान की बहन ही वो वजह थी . वो भी पांच साल बाद लौटी है क्या अतीत में इनके बीच कुछ था ” मैंने खुद से ये सवाल किया. वापिस गाँव आने के बाद मैं कोचवान हरिया के घर गया .
“कैसी हो भाभी ” मैंने पूछा
भाभी- बस जी रहे है कुंवर
मैं- जीना तो है ही भाभी, अपने लिए न सही इन बच्चो के पालन के लिए हरिया की कमी तो जिन्दगी भर रहेगी उसकी जगह तो कोई भर नहीं सकता पर जीवन में आगे बढ़ना भी जरुरी है
भाभी- बात तो सही है पर मेरे लिए मुश्किल हो रहा है तीन बच्चो और बूढ़े सास-ससुर को संभालना , पहले बालको का बापू कमा कर लाता था तो घर चलता था .
मैं- तुम्हे किसी भी चीज से परेशां होने की जरुरत नहीं है भाभी . ये तो मेरी कमी हुई जो तुम्हारा ध्यान नहीं रख पाया . घर में ये हालात है और तुम एक बार भी मुझसे कह नहीं पाई. ये तो गलत है न भाभी,
भाभी- किस मुह से कहे कुंवर. हाथ फ़ैलाने के लिए भी कलेजा लगता है
मैं- ये कह कर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया भाभी
मैंने जेब से पैसे निकाले और भाभी के हाथ में रख दिए.
भाभी- मैं कहाँ से चूका पाऊँगी
मैं- कोई जरूरत नहीं है भाभी और तुम्हे काम भी मिल जायेगा तुम हमारे खेतो पर काम करो . अपनी मेहनत से पैसा कमाओ .
भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.
मैं- शर्मिंदा मत करो
वापसी में मैंने बनिए से कह दिया की हरिया कोचवान के घर छ महीने का राशन तुरंत पहुंचा दे. घर आकार मैंने खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया पर आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी . कभी इधर करवट कभी उधर करवट दिल में बस एक ही सवाल था .
“क्या परेशानी है नींद नहीं आ रही जो ” चाची ने कहा
मैं- चाची क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे . ................