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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Lust_King

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#67

मैं- कैसा फर्ज भैया

भैया- बस इतना समझ ले छोटे , उसे भी थाम कर रखना है मुझे

मैं- ये मुमकिन नहीं हो पायेगा भैया . मैं हद नफरत करता हु उससे . एक दिन आयेगा जब या तो वो रहेगा या मैं

भैया- जब तक मैं हूँ वो दिन कभी नहीं आएगा.

भैया ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अन्दर चले गए. मैंने देखा भाभी मुझे ही देख रही थी .तमाम चीजो के बीच सिर्फ यही राहत थी की फिलहाल के लिए उस आदमखोर के हमले रुके हुए थे. गाँव वालो को भी थोडा चैन था . कुछ तो भैया छिपा रहे थे मुझसे पर क्या. राय साहब और भैया दोनों में एक बात एक सी थी की दोनों के कोई दोस्त नहीं थे. और जब आदमी अकेला होता है तो उसके इतिहास को तलाशना और मुस्किल हो जाता है .

एक बार फिर मैं दोपहर को रमा के अड्डे पर था.

रमा- पर तुम प्रकाश से जानकारी कैसे निकल्वाओगे

मैं- तुम्हारी मदद से , तुम्हारे हुस्न पर फ़िदा है वो तुम उसे अगर उलझाये रखो तो मैं उसके घर से कागज तलाश लूँगा.

रमा- मैं उसे जायदा देर तक नहीं उलझा पाउंगी , क्योंकि मैं उसे बस रिझा सकती हूँ उसकी मनचाही नहीं करुँगी. दूसरी बात वो बहुत धूर्त है समझ जायेगा की तुम्हारे कहने पर मैं कर रही हूँ ये

मैं- तो क्या करे.

रमा- रात की जगह तुम ये काम दिन में करो . दिन में वो अदालत में रहता है या फिर तुम्हारे पिता के साथ

.

रमा की बात में दम था . और दस्तूर भी क्योंकि प्रकाश का घर आबादी से दूर मलिकपुर के पिछले हिस्से में था. मैंने रमा को साथ लिया और हम उसके घर में घुस गए. घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरे थे और एक छोटी सी रसोई. एक कमरे में उसके कागज थे कचहरी के . मैंने वसीयत के कागज तलाशे पर कुछ नहीं मिला. पूरा कमरा देख लिया. दुसरे कमरे में बस बिस्तर पड़ा था . पर तीसरे कमरे में कुछ ऐसा था जिसने मेरे मन को और मजबूत किया की प्रकाश धूर्त ही नहीं गलीच भी था. कमरे में औरतो की कछिया पड़ी थी . फटे हुए ब्लाउज पड़े थे. मतलब की यहाँ पर वो औरतो को चोदने के लिए लाया करता था .

मैं- देख रही हो रमा क्या काण्ड हो रहे है ये

रमा- समझ रही हूँ .

मेरी नजर रमा की छातियो पर पड़ी जो जोर से ऊपर निचे हो रही थी . बेशक उसने शाल ओढा हुआ था पर फिर भी मैं उसकी गोलाइयो को महसूस कर पा रहा था . एक पल को लगा की उसने मेरी नजरे पकड़ ली है.

रमा- वो कागज महत्वपूर्ण है उन्हें खुले में तो नहीं रखेगा . किसी तिजोरी जैसी जगह में रखेगा.

मुझे जायज लगी उसकी बात. मैंने एक बार फिर से गहनता से तलाशी शुरू की पर हालात वैसे के वैसे थे.

मैं- घी जब सीधी ऊँगली से नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है प्रकाश अब खुद कागज देगा मुझे .

हम लोग वापिस रमा के ठिकाने पर आ गए.

रमा- जबसे तुम इधर आने लगे हो सूरजभान और उसके साथी आते नहीं इधर

मैं- मेरी वजह से तुम्हारा धंधा कम हो गया .

रमा- वो बात नहीं है

मैं- क्या उन्होंने तुमसे कहा नहीं की क्यों बिठाती हो मुझे .

रमा- अभी तक तो नहीं .

मैं- और रुडा

रमा- रुडा ज्यादातर बाहर ही रहता है . उसमे पहले वाली बात नहीं रही . किसी ज़माने में उसका सिक्का चलता था पर अब उम्र भी तो हो गयी है .

मैं- और उसकी बेटी

रमा- वो बाहर पढ़ती थी बड़े शहर में पुरे पांच बरस बाद लौटी है . रुडा और उसकी कम ही बनती है .जब वो आती है तो रुडा घर नहीं रहता रुडा आये तो वो चली जाती है . इतने दिन बाद आई है तो कोई विशेष कारण ही होगा.

मैं- ब्याह नहीं किया रुडा ने उसका

रमा- सुना है की वो करना नहीं चाहती ब्याह.



“भैया ने भी पुरे पांच साल बाद मलिकपुर की धरती पर कदम रखा क्या सूरजभान की बहन ही वो वजह थी . वो भी पांच साल बाद लौटी है क्या अतीत में इनके बीच कुछ था ” मैंने खुद से ये सवाल किया. वापिस गाँव आने के बाद मैं कोचवान हरिया के घर गया .

“कैसी हो भाभी ” मैंने पूछा

भाभी- बस जी रहे है कुंवर

मैं- जीना तो है ही भाभी, अपने लिए न सही इन बच्चो के पालन के लिए हरिया की कमी तो जिन्दगी भर रहेगी उसकी जगह तो कोई भर नहीं सकता पर जीवन में आगे बढ़ना भी जरुरी है

भाभी- बात तो सही है पर मेरे लिए मुश्किल हो रहा है तीन बच्चो और बूढ़े सास-ससुर को संभालना , पहले बालको का बापू कमा कर लाता था तो घर चलता था .

मैं- तुम्हे किसी भी चीज से परेशां होने की जरुरत नहीं है भाभी . ये तो मेरी कमी हुई जो तुम्हारा ध्यान नहीं रख पाया . घर में ये हालात है और तुम एक बार भी मुझसे कह नहीं पाई. ये तो गलत है न भाभी,

भाभी- किस मुह से कहे कुंवर. हाथ फ़ैलाने के लिए भी कलेजा लगता है

मैं- ये कह कर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया भाभी

मैंने जेब से पैसे निकाले और भाभी के हाथ में रख दिए.

भाभी- मैं कहाँ से चूका पाऊँगी

मैं- कोई जरूरत नहीं है भाभी और तुम्हे काम भी मिल जायेगा तुम हमारे खेतो पर काम करो . अपनी मेहनत से पैसा कमाओ .

भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.

मैं- शर्मिंदा मत करो

वापसी में मैंने बनिए से कह दिया की हरिया कोचवान के घर छ महीने का राशन तुरंत पहुंचा दे. घर आकार मैंने खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया पर आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी . कभी इधर करवट कभी उधर करवट दिल में बस एक ही सवाल था .

“क्या परेशानी है नींद नहीं आ रही जो ” चाची ने कहा

मैं- चाची क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे . ................

#67

मैं- कैसा फर्ज भैया

भैया- बस इतना समझ ले छोटे , उसे भी थाम कर रखना है मुझे

मैं- ये मुमकिन नहीं हो पायेगा भैया . मैं हद नफरत करता हु उससे . एक दिन आयेगा जब या तो वो रहेगा या मैं

भैया- जब तक मैं हूँ वो दिन कभी नहीं आएगा.

भैया ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अन्दर चले गए. मैंने देखा भाभी मुझे ही देख रही थी .तमाम चीजो के बीच सिर्फ यही राहत थी की फिलहाल के लिए उस आदमखोर के हमले रुके हुए थे. गाँव वालो को भी थोडा चैन था . कुछ तो भैया छिपा रहे थे मुझसे पर क्या. राय साहब और भैया दोनों में एक बात एक सी थी की दोनों के कोई दोस्त नहीं थे. और जब आदमी अकेला होता है तो उसके इतिहास को तलाशना और मुस्किल हो जाता है .

एक बार फिर मैं दोपहर को रमा के अड्डे पर था.

रमा- पर तुम प्रकाश से जानकारी कैसे निकल्वाओगे

मैं- तुम्हारी मदद से , तुम्हारे हुस्न पर फ़िदा है वो तुम उसे अगर उलझाये रखो तो मैं उसके घर से कागज तलाश लूँगा.

रमा- मैं उसे जायदा देर तक नहीं उलझा पाउंगी , क्योंकि मैं उसे बस रिझा सकती हूँ उसकी मनचाही नहीं करुँगी. दूसरी बात वो बहुत धूर्त है समझ जायेगा की तुम्हारे कहने पर मैं कर रही हूँ ये

मैं- तो क्या करे.

रमा- रात की जगह तुम ये काम दिन में करो . दिन में वो अदालत में रहता है या फिर तुम्हारे पिता के साथ

.

रमा की बात में दम था . और दस्तूर भी क्योंकि प्रकाश का घर आबादी से दूर मलिकपुर के पिछले हिस्से में था. मैंने रमा को साथ लिया और हम उसके घर में घुस गए. घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरे थे और एक छोटी सी रसोई. एक कमरे में उसके कागज थे कचहरी के . मैंने वसीयत के कागज तलाशे पर कुछ नहीं मिला. पूरा कमरा देख लिया. दुसरे कमरे में बस बिस्तर पड़ा था . पर तीसरे कमरे में कुछ ऐसा था जिसने मेरे मन को और मजबूत किया की प्रकाश धूर्त ही नहीं गलीच भी था. कमरे में औरतो की कछिया पड़ी थी . फटे हुए ब्लाउज पड़े थे. मतलब की यहाँ पर वो औरतो को चोदने के लिए लाया करता था .

मैं- देख रही हो रमा क्या काण्ड हो रहे है ये

रमा- समझ रही हूँ .

मेरी नजर रमा की छातियो पर पड़ी जो जोर से ऊपर निचे हो रही थी . बेशक उसने शाल ओढा हुआ था पर फिर भी मैं उसकी गोलाइयो को महसूस कर पा रहा था . एक पल को लगा की उसने मेरी नजरे पकड़ ली है.

रमा- वो कागज महत्वपूर्ण है उन्हें खुले में तो नहीं रखेगा . किसी तिजोरी जैसी जगह में रखेगा.

मुझे जायज लगी उसकी बात. मैंने एक बार फिर से गहनता से तलाशी शुरू की पर हालात वैसे के वैसे थे.

मैं- घी जब सीधी ऊँगली से नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है प्रकाश अब खुद कागज देगा मुझे .

हम लोग वापिस रमा के ठिकाने पर आ गए.

रमा- जबसे तुम इधर आने लगे हो सूरजभान और उसके साथी आते नहीं इधर

मैं- मेरी वजह से तुम्हारा धंधा कम हो गया .

रमा- वो बात नहीं है

मैं- क्या उन्होंने तुमसे कहा नहीं की क्यों बिठाती हो मुझे .

रमा- अभी तक तो नहीं .

मैं- और रुडा

रमा- रुडा ज्यादातर बाहर ही रहता है . उसमे पहले वाली बात नहीं रही . किसी ज़माने में उसका सिक्का चलता था पर अब उम्र भी तो हो गयी है .

मैं- और उसकी बेटी

रमा- वो बाहर पढ़ती थी बड़े शहर में पुरे पांच बरस बाद लौटी है . रुडा और उसकी कम ही बनती है .जब वो आती है तो रुडा घर नहीं रहता रुडा आये तो वो चली जाती है . इतने दिन बाद आई है तो कोई विशेष कारण ही होगा.

मैं- ब्याह नहीं किया रुडा ने उसका

रमा- सुना है की वो करना नहीं चाहती ब्याह.



“भैया ने भी पुरे पांच साल बाद मलिकपुर की धरती पर कदम रखा क्या सूरजभान की बहन ही वो वजह थी . वो भी पांच साल बाद लौटी है क्या अतीत में इनके बीच कुछ था ” मैंने खुद से ये सवाल किया. वापिस गाँव आने के बाद मैं कोचवान हरिया के घर गया .

“कैसी हो भाभी ” मैंने पूछा

भाभी- बस जी रहे है कुंवर

मैं- जीना तो है ही भाभी, अपने लिए न सही इन बच्चो के पालन के लिए हरिया की कमी तो जिन्दगी भर रहेगी उसकी जगह तो कोई भर नहीं सकता पर जीवन में आगे बढ़ना भी जरुरी है

भाभी- बात तो सही है पर मेरे लिए मुश्किल हो रहा है तीन बच्चो और बूढ़े सास-ससुर को संभालना , पहले बालको का बापू कमा कर लाता था तो घर चलता था .

मैं- तुम्हे किसी भी चीज से परेशां होने की जरुरत नहीं है भाभी . ये तो मेरी कमी हुई जो तुम्हारा ध्यान नहीं रख पाया . घर में ये हालात है और तुम एक बार भी मुझसे कह नहीं पाई. ये तो गलत है न भाभी,

भाभी- किस मुह से कहे कुंवर. हाथ फ़ैलाने के लिए भी कलेजा लगता है

मैं- ये कह कर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया भाभी

मैंने जेब से पैसे निकाले और भाभी के हाथ में रख दिए.

भाभी- मैं कहाँ से चूका पाऊँगी

मैं- कोई जरूरत नहीं है भाभी और तुम्हे काम भी मिल जायेगा तुम हमारे खेतो पर काम करो . अपनी मेहनत से पैसा कमाओ .

भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.

मैं- शर्मिंदा मत करो

वापसी में मैंने बनिए से कह दिया की हरिया कोचवान के घर छ महीने का राशन तुरंत पहुंचा दे. घर आकार मैंने खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया पर आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी . कभी इधर करवट कभी उधर करवट दिल में बस एक ही सवाल था .

“क्या परेशानी है नींद नहीं आ रही जो ” चाची ने कहा

मैं- चाची क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे . ................
Dheere Dheere Purani Parat khul rahi h .. Aage dekhte h kya hota .. very nice update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Vah bhai gajab update diya kya baat hai.
Wakil to goli de gaya ab kabir ko hi khoj been karni hogi.
Champa bhi sari baat gol kar gai per usne swikar to liya ki raay ne usko pela hai
Or abhimanu kis farj ki baat kar raha hai.
अब कबीर अपने मिशन पर है वो मालूम कर ही लेगा इतिहास के पन्ने खुलने लगे है अभिमन्यु का इतिहास उम्मीद है कि रोचक होगा
 

Sanju@

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#65

सुबह जब मैं जागा तो निशा जा चुकी थी . बाहर आकर देखा की भाभी, चंपा और मंगू तीनो ही खेतो पर थे. मैंने एक नजर उन पर डाली और जंगल में चला गया. वापिस आते ही चंपा ने मुझे चाय का गिलास पकडाया . मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो हमें ही देख रही थी . मैं उनके पास गया .

मैं- इतनी सुबह आप खेतो पर

भाभी- कभी कभी मुझे भी घर से बाहर निकलना चाहिए न .

मैं- सही किया जो आप आ गयी मैं आ ही रहा था आपसे मिलने

भाभी- मुझसे क्या काम

मैं- वसीयत के चौथे टुकड़े के बारे में बात करनी थी

भाभी - मैं नहीं जानती उसके बारे में

मैं- पर मुझे जानना है . चाची, भैया और मैं हमसे अजीज और कौन है पिताजी के लिए . क्या चंपा का नाम है उस चौथे हिस्से में

भाभी- वो इतनी भी महत्वपूर्ण नहीं है .

मैं- तो बता भी दो मुझे

भाभी- मुझे जरा भी दिलचस्पी नहीं है जायदाद में कबीर .

मैं- इतना भी प्रेम नहीं बरस रहा इस परिवार में की ना आप हिस्सा चाहती है न भैया और न चाची. आप सब को इस जमीन में दिलचस्पी नहीं है तो क्या चाहते है आप लोग क्या ख्वाहिश है आप सब की

भाभी- परकाश नाम है उसके पुरखे मुनिमाई करते थे राय साहब के यहाँ उसने वकालत का पेशा चुना . राय साहब और तुम्हारे भैया के सारे क़ानूनी मामले वही संभालता है. वो ही बता सकता है क्या था उस हिस्से में .

मैं- क्या भैया को मालूम है उस चौथे हिस्से के बारे में

भाभी- क्या तुम जानते हो तुम्हारे भैया को

भाभी- परकाश से मिलो . खैर , क्या अब भी उस डाकन से मिलते हो तुम

मैं- मिलना क्या है पूरी रात साथ ही सो रहे थे हम

मैंने भाभी से कहा और वापिस मुड गया. मैंने देखा नहीं भाभी के चेहरे पर क्या भाव थे .मैंने मंगू को देखा जो खाली खेतो को देख रहा था .

मैं- कहाँ गया था तू भैया के साथ

मंगू- टेक्टर लेने , भैया का कहना है की जमाना बदल रहा है हल की जगह खेती में टेक्टर का उपयोग करना चाहिए . पैसे भर आये है जल्दी ही आ जायेगा.

मैं- भैया वो जो नई जमीन के बारे में कह रहे थे वो जमीन देखने कब जायेंगे

मंगू- मुझे नहीं पता

मैं- मंगू बुरा मत मानियो पर मुझे लगता है की कविता का तेरे आलावा किसी और से भी चक्कर चल रहा था .

मंगू ने अजीब नजरो से देखा मुझे

मंगू- वो चालू औरत नहीं थी

मैं- क्या कभी उसने तुझे कुछ बताया

मंगू- हम ज्यादा बाते नहीं करते थे बस मिलते चुदाई करते और अलग हो जाते.

मुझे लगा की चंपा सच कहती थी की कविता बस इस्तेमाल कर रही थी मंगू का . कविता के बारे में कुछ तलाशना था तो उसके घर से ही शुरुआत करनी थी . मैंने पता लगाया की वैध किसी दुसरे में गाँव में गया हुआ है मैं चुपके से उसके घर में घुस गया. एक तरफ दुनिया भर की शीशिया थी जिनमे दवाइया और उन्हें बनाने का सामान था . मैंने कविता के कमरे में तलाशी शुरू की . दीवारों में बने खाने औरत के कपड़ो से भरे थे .

कमरा वैसे तो कुछ खास नहीं था एक पलंग था . पास में एक मेज थी जिस पर औरतो का कुछ सामान लाली-पोडर पड़ा था. मेज की दराज खोली तो उसमे तरह तरह की कच्छी पड़ी थी . रेशमी, जालीदार और भी कई तरह की . मैंने उनको हाथ में लेकर अच्छे से देखा. गाँव में मनिहारिन तो ऐसी नहीं बेच सकती थी मैं दावे से कह सकता था . मुझे कुछ जेवर मिले . गाँव की एक आम औरत जिसकी आर्थिक स्तिथि इतनी अच्छी भी नहीं थी की वो इतने जेवर बनवा ले इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया.



मैंने कमरे को और अच्छे से खंगाला. मुझे एक छोटा बक्सा मिला जिसमे सौ-सौ के नोटों की गद्दिया थी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया . एक वैध की बहु के पास इतना पैसा कहाँ से आया. किसने दिया. इतनी रात में जब आदमखोर का आतंक मचा हुआ है कविता जंगल में जाती है , जाहिर है उसे कुछ तो ऐसी प्रचंड लालसा रही होगी या फिर कोई गहरी मज़बूरी सिर्फ इन्ही दो सूरतो में वो जा सकती थी . कुछ तो कुकर्म कर रही थी वो .मंगू के आलावा कौन पेल रहा था उसे. कविता के जेवरो को वापिस रख ही रहा था की मेरी नजर आईने के पास पड़ी डिबिया पर पड़ी.

उत्सुकता वश मैंने उसे खोला . उसमे कांच की चुडिया थी . ऐसा लगा की मैंने इनको पहले देखा हो पर याद नहीं आ रहा था मैंने थोडा जोर दिया और जब याद आया तो ऐसा याद आया की सर्द मौसम में भी मैं अपने माथे पर आये पसीने को नहीं रोक सका. मैंने अपनी जेब से टूटी चूड़ियां निकाली और मिलान किया . मामला शीशे की तरह साफ़ था . ये चुडिया, ये पैसे और ये महंगे जेवर चीख चीख कर कह रहे थे की ये सब राय साहब की ही मेहरबानी थी . राय साहब ही वो दुसरे शक्श थे जो कविता को चोदते थे.



गरीबो का मसीहा, सबके लिए पूजनीय राय साहब का ऐसा चेहरा भी हो सकता था कोई विश्वास नहीं करे अगर मैं किसी से कहूँ तो पर सच शायद ये ही था. पर यहाँ एक सवाल और मेरे सामने आ खड़ा हुआ था की वसीयत का चौथा हिस्सा कविता का नहीं हो सकता क्योंकि कविता तो मर चुकी थी . वो शायद बस दिल बहलाने के लिए ही हो . निशा ने कहा था हवस , अयाशी खून में दौड़ती है . अब मुझे ये सच लग रहा था कितनी आसानी से मैंने चाची को चोद दिया था . कितनी ही मचल रही थी चंपा मुझसे चुदने के लिए.

वैध के घर से आने के बाद मैं चौपाल के चबूतरे पर बैठे सोच रहा था की राय साहब को रंगे हाथ चुदाई करते हुए पकड़ने के लिए मुझे एक ठोस योजना बनानी पड़ेगी जिसके लिए मुझे दो लोग तलाशने थे एक जो राय साहब का बिलकुल खास हो और जो उनके खिलाफ हो. खैर सुबह मुझे प्रकाश से मिलना ही था . कुछ सोच कर मैं रमा के ठेके की तरफ चल दिया. वहां पहुन्चा तो पाया की काफी लोग दारू पी रहे थे पर सूरजभान या उसका कोई साथी नहीं था.

मैंने रमा को देखा उसने मुझे इशारा किया और हम ठेके के पीछे बने कमरे में आ गए.

रमा- कैसे है कुंवर जी

मैंने रमा की भरपूर खिली हुई चुचियो पर नजर डाली और बोला - बढ़िया तुम बताओ

रमा- वो मुनीम का छोरा प्रकाश बहुत चक्कर लगा रहा है मलिकपुर के रुडा से खूब मिल रहा है

मैं- वकील है न जाने कितने लोगो का काम देखता होगा.

रमा-बड़ा धूर्त है वो .

मैं- क्या प्रयोजन हो सकता है उसका

रमा-रुडा की लड़की सहर से पढ़ कर आई है . मुझे लगता है की उसी के चक्कर में जाता होगा .

मैं- जान प्यारी नहीं क्या उसे . परकाश को क्या नहीं मालूम की ठाकुरों की बहन-बेटियों पर बुरी नजर डालने का क्या अंजाम होगा.

रमा- बहन-बेटी तो सबकी समान होवे है कुंवर जी, कोई माने या ना माने वैसे भी हर औरत निचे से एक जैसी ही होती है .

बातो बातो में रमा ने मुझे बताया की पहले वो मेरे गाँव में ही रहती थी फिर उसके पति की मौत हो गयी तो वो मलिकपुर आ गयी यहाँ भी तक़दीर ने उसे दुःख ही दिए.

हम बात कर ही रहे थे की बाहर से कुछ चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी तो हम ठेके की तरफ गए और वहां जो मैंने देखा ...................
चूड़ियों के टुकड़ों से एक बात तो साफ हो गई कि राय साहब और कविता के बीच संबंध है और हो सकता है वह जंगल में राय साहब से ही मिलने आई हो और उसे राय साहब ने ही मारा हो भाभी ने वसीयत के चौथे टुकड़े के बारे में जानने के लिए परकाश के बारे में बताया अब प्रकाश से जानना जरूरी है चाहे कैसे भी करके । भाभी की बाते रहस्यमयी हैं हर बात में कोई न कोई राज छुपा हुआ है देखते हैं अब कबीर क्या करता है
 

HalfbludPrince

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भाई व् राय का कोई दोस्त इसलिए नही है की दोनों ठर्कियों की दोस्तनियाँ है उनसे मालूम करना चाहिए कबीर को लेकिन चम्पा तो बेहद चालू है कबीर को ऐडा बनाती है

भाई का मलिकपुर में पुराना लव एंगल भी है क्या भाभी को ये पता है तो कबीर को भाभी को बता के दोनों को लड़वाना चाहिए शायद कोई राज़ खुल जाये
जो भी था बहुत दूर नहीं है कबीर से बाप हो या भाई इतिहास मे कुछ गलत किया है तो वर्तमान में हिसाब देना ही होगा
 

HalfbludPrince

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hmm to ruda ki beti aur abhimanu ka affair raha hai par shadi ho na saki ye kabir ke liye ek crucial news hai par sirf isli liye kabir surajbhan par mehanrban nahi ho sakta kuch to aur hai

kabir ke liye Rma ek solid support bani hai par parkash ke ghar bhi kuch hath nahi laga

Biggest backstabber for kabir so far has been champa n old friend too, , to an extent a his father and of course his bhabhi. Father par to zor chalega nahi bhabhi could have helped much more
अभी पक्का नहीं है कबीर जांच करेगा इस सत्य की. रमा का क्या मकसद है कबीर की इतनी मदद करने का इस पर भी विचार करना जरूरी है
 

HalfbludPrince

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Kabir ki soch sahi way me jati dikh rhi hai bhaiya or rudaa ki beti ka 5 saal baad ana ye koi ittefaq nhi ho skta. Zrur indono ka koi past rha hai. Bhaiya ne kaha woh din uske rhte kbhi nhi ayega iska mtlb ane wale time me shayad bhaiya kabir ke samne khade hote dikhenge itihas gawaah hai ldki ke chakkar me bhai-2 or beta baap ke samne khada hua hai. Baat jo bhi ho surajbhan bhot bure kaam kiye hai usko maut milni chahiye abhimanyu usko bacha kr khud glt ka sath de rha hai. Prakash ke ghar chhan Bin krke kuch nahi mila sala woh bhi aiyaas nikla. Rama ki smjhdari kabir ke bhot kaam ane wali hai baap or bhaiya ke koi frnd nhi hai to jin aurton se hai unse pta krne chahiye. Kabir ka ajib funda hai na khud khayega na baap ko khane de rha hai uska Kya ghis rha hai ghis to champa ka rha hai. Ab sochta hu champa ka abortion bekar hi kraya fulne deta peit. Skekhar ko bhi to pta chalta uski biwi akele nhi arhi ek bacha bhi leke arhi hai uske mehnat ke bina. Ab chachi aai hai kehti hai Kya paresani hai jo nind nhi arhi hai. Sali jab help hi nhi krna to puchti kyo hai bhai ji mujhe lgta hai ye log aise kuch nhi btayengi kabir ko inke sath thoda darindgi dikhana chahiye roughly behave kre Tab shayad kuch btaye.
Kabir ki yahi baat usko sbse alg krta hariya ke pariwar ki madad krke ek aches insaan ka kartvya nibhaya hai

Aisa hi hona chahiye champa ko jitna Ho ske zaleel kre Kya pta uske atma ko chot pahunche jisse kabir ke samne sbkuch bak de. Sala mujhe to ab ye bhi lgne lga hai ray sahab shekhar se kuch soch smjh ke shadi krwa rhe honge taki champa ki bajate rhe
दरअसल कबीर की दिक्कत ये नहीं कि उसका बाप चम्पा से अवैध सम्बंध बनाए हुए है दिक्कत ये है कि नियम सबके लिए बराबर क्यों नहीं. चम्पा ने अपनी तरफ से स्पस्ट कर दिया कि वो राय सहाब के पाले मे है. भैया का मालिक पुर से क्या सम्बंध है सोचने वाली बात है उम्मीद है कि जल्दी ही इस विषय से पर्दा हटेगा. वकील क्या छिपा रहा है वसीयत मे क्या है चौथा हिस्सेदार कौन है ये जानना दिलचस्प रहेगा
 
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