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तुमसे क्या छिपा है मेरी जान . सब कुछ जानती तो हो तुमये राज का पर्दाफाश ना जाने कब होगा..
एक राज अधूरा खुलता है , दो और तैयार हो जाते हैं,
क्यों परीक्षा ले रहे हो पाठकों की,
अगले भाग की प्रतीक्षा में,
~ साइलेंट रीडर
तुमसे क्या छिपा है मेरी जान . सब कुछ जानती तो हो तुमये राज का पर्दाफाश ना जाने कब होगा..
एक राज अधूरा खुलता है , दो और तैयार हो जाते हैं,
क्यों परीक्षा ले रहे हो पाठकों की,
अगले भाग की प्रतीक्षा में,
~ साइलेंट रीडर
कहानी अपने हिसाब से आगे बढ़ रही है भाई. धीमी आंच पर पक रही हैमेरा भी यही कहना है इतना राज जो खुल ते साथ वो खुद राज बन जाता हैं
ये बात कितनी बेतुकी सी लगी,भैया- उसके दिल को ऐसे तस्सली मिलती है तो मुझे ये आरोप मंजूर है छोटे.मैं तेरे मन की व्यथा समझता हूँ पर तू इतना जरुर समझना तेरा भाई ऐसा कुछ नहीं करेगा जिस से तुझे शर्मिंदा होना पड़े.
ऊंट कभी इस करवट कभी उस करवट...#72
मैं- उस से भी पूछूँगा पर अभी मैं तुमसे जानना चाहता हूँ. मैं कविता और तुम्हारे किस्से सुनना चाहता हूँ .और मेरा विश्वास कर , मैं तुझे जुबान देता हूँ ये ठाकुर कबीर का वादा है तुझसे . तेरे गुनेहगार को सजा जरुर मिलेगी.
रमा- जुबान की कीमत जानते हो न कुंवर
मैं- तू चाहे तो आजमा ले मुझे , मैं जानता हूँ की तेरा दिल कहीं न कहीं विश्वास करता है मुझ पर
रमा- मेरी बेटी की लाश ठाकुर अभिमानु लाया था .जिस्म नोच लिया गया था मेरी बेटी का . सब कुछ तार तार था. अभिमानु ने उसकी लाश रखी कुछ गद्दिया फेंक गया और हम रह गए रोते-बिलखते . बहुत मिन्नते की हमने पंचायत में गए पर किसी ने नहीं सुनी. कोई सुनता भी कैसे मेरी ठाकुर अभिमानु के सामने कौन जुबान खोलता अपनी.
मैं- राय साब भी तो थे. उन्होंने इन्साफ नहीं किया
रमा- वो बस इतना बोले जो हुआ उसे भूल जाओ और नयी शुरुआत करो जीवन की. थोड़े दिन पहले ही मेरा पति खेत में मरा हुआ पाया गया था . मैंने किस्मत का लिखा समझ पर समझौता कर लिया था पर अपने कलेजे के एक मात्र टुकड़े को ऐसे छीन लिया गया मैं तडप कर रह गयी . क्या करती मैं वहां पर , इसलिए यहाँ आकर बस गयी .
मैं- तू फिर कभी मिली भैया से
रमा-बहुत बार, पैर भी पकडे उस निर्दयी के जानना चाह की क्या किया था मेरी बेटी के साथ . क्यों किया पर वो पत्थर बना रहा .
मैं- ये तो थी तेरी वजह नफरत करने की . प्यार करने की और बता तुम दोनों भैया या फिर पिताजी किस से चुद रही थी .
मेरी बात सुन कर रमा के चेहरे पर अजीब सा भाव आया . उसने पानी के कुछ घूँट भरे और बोली- दोनों में से किसी से भी नहीं.
मेरा तो दिमाग ही घूम गया .
मैं- ऐसा कैसे हो सकता है . मेरे पास सबूत है की कविता पिताजी का बिस्तर गर्म कर रही थी . और फिर ये किताबे ये महंगे अंतर्वस्त्र उन दोनों में से कोई और नहीं लाया तो फिर कौन लाया.
रमा- कविता और मैं एक सी थी. जवानी और जोश से भरपूर . इस गाँव में हमारे जैसा हुस्न किसी का नहीं था . हमें भी मजा आता था जब लोग आहे भरते थे हमें देख कर. और यही मजे हम पर भारी पड़ गए. ऐसे ही एक दिन जोहड़ पर हमें नहाते हुए ठाकुर जरनैल ने देख लिया. ठाकुर सहाब के बारे में हमने बहुत सुना था की वो बहुत जोशीले मर्द है . गाँव की कोई ही औरत रही होगी जिसके साथ वो सोये नहीं होंगे. न जाने कैसा जादू था उनमे. हम भी उनकी तरफ खींचे चले गए. वो ख्याल भी बहुत रखते हमारा. धीरे धीरे जिस्म पिघलने लगे. हमें भी उनसे कोई शिकायत नहीं थी वो अगर हमसे कुछ लेते तो बहुत कुछ देते भी थे. वो तमाम सामान ठाकुर साहब ने ही लाकर दिया था.
चाचा जरनैल के बारे में ऐसा खुलासा सुन कर मुझे ज्यादा हैरत नहीं हुई . क्योंकि बीते दिनों से सबके बारे में कुछ न कुछ मालूम हो ही रहा था ये भी सही फिर.
रमा- फिर एक दिन राय साहब ने हमें पकड लिया रंगे हाथो चुदाई करते हुए. उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा पर छोटे ठाकुर को बहुत मारा. मैं खड़ी खड़ी देखती रही . राय साहब को इतना गुस्से में पहले कभी नहीं देखा था . पर छोटे ठाकुर भी जिद्दी थे उन्होंने अपने भाई का कहना नहीं माना . कभी कभी तो वो पूरी पूरी रात मुझे चोदते. मेरे लिए भी मुश्किल होने लगी थी क्योंकि मेरा भी घर बार था. और ऐसी बाते छिपती भी नहीं . मेरा आदमी कहता नहीं था मुझसे पर उसकी नजरे जब मुझ को देखती तो मैं कटने लगी थी . एक दिन मैंने सब कुछ ख़त्म करने का सोचा. मैंने छोटे ठाकुर से कह दिया की अब ये बंद होना चाइये और उन्होंने भी मेरी बात मान ली.
सात-आठ महीने बीत गए. सब ठीक चल रहा था की एक दिन मेरा आदमी मर गया. जैसे तैसे खुद को संभाला था की फिर बेटी मर गयी. जिंदगी में कुछ नहीं बचा था .
मैं- जब तुम अकेली थी तो फिर चाचा ने दुबारा तुमसे नाता जोड़ने की कोशिश नहीं की.
रमा- नहीं
मैं- क्यों . लम्पट इन्सान तो ऐसे मौके ढूंढते है .
रमा-मेरे मलिकपुर आने के कुछ महीनो बाद ही छोटे ठाकुर गायब हो गए और फिर तबसे आजतक कोई खबर नहीं उनकी तुम जानते तो हो ही.
मैं- सूरजभान से तुम्हारी क्या दुश्मनी
रमा- मुझे लगता है की सूरजभान भी शामिल था मेरी बेटी के क़त्ल में .
मैं- अगर वो शामिल हुआ तो कसम है मुझे उसकी खाल नोच ली जाएगी और मैं भैया से भी सवाल करूँगा इस मामले में . कबीर किसी भी अन्याय को बर्दास्त नहीं करेगा. ये बता की रुडा की लड़की से मुलाकात कहाँ हो पायेगी.
रमा-कल उसका और रुडा का झगड़ा हुआ वो रात को ही शहर चली गयी.
मैं- रमा तुझ पर भरोसा किया है ये टूटना नहीं चाहिए .
उसने हाँ में सर हिलाया मैं वापिस मुड गया.
“आयाशी विरासत में मिली है खून में दौड़ती है ” रस्ते भर ये शब्द मेरे कानो में चुभते रहे.
भैया मुझे खेतो पर ही मिल गये.
मैं- भैया आपसे कुछ बात करनी है
भैया- हाँ छोटे
मैं- रमा को जानते है आप
भैया- जानता हूँ.
मैं- उसे गाँव छोड़ कर क्यों जाना पड़ा. हम उसे यही आसरा क्यों नहीं दे पाए. आप कहते है न की इस गाँव का प्रत्येक घर की जिम्मेदारी हमारी है तो फिर क्यों जाना पड़ा उसे.
भैया- उसका परिवार खत्म हो गया था . अवसाद में गाँव छोड़ गयी वो .
मैं-उसकी बेटी को किसने मारा.
भैया- मैं नहीं जानता
मैं- उसकी लाश आप लेकर आये थे .
भैया- लाया था पर कातिल को नहीं जानता मैं
मैं- ऐसा कैसे हो सकता है . किसका हाथ था उसके क़त्ल में मुझे बताना होगा भैया . क्या आपने मारा था उसकी बेटी को
भैया- जानता है न तू क्या बोल रहा है
मैं- तो फिर बताते क्यों नहीं मुझे .उसकी लाश आपके पास कैसे आई.
भैया - जैसे कविता की लाश तुझे मिली थी. तू ही लाया था न उसकी लाश को गाँव में . तो क्या तुझे भी कातिल मान लू. उसकी लाश जंगल में मिली थी मुझे. मिटटी समेटने को मैं ले आया. चाहता तो वहीँ छोड़ देता पर मेरा मन नहीं माना . कम से कम उसके शरीर का तो सम्मान कर सकता था न मैं.
मैं- रमा कहती है की आपने मारा उसकी बेटी को
भैया- उसके दिल को ऐसे तस्सली मिलती है तो मुझे ये आरोप मंजूर है छोटे.मैं तेरे मन की व्यथा समझता हूँ पर तू इतना जरुर समझना तेरा भाई ऐसा कुछ नहीं करेगा जिस से तुझे शर्मिंदा होना पड़े.
भैया ने मेरे सर पर हाथ फेरा और चले गये. एक बार फिर मैं अकेला रह गया.
रमा शायद अपना पूरा सच बता चुकी है, बस उसपर जो धूल पड़ी है उसे हटाने की जरूरत है।रमा ने कुछ राज और खोले जो कि फिर से आधे अधूरे ही रहे,
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सबसे बड़ा राज ये खुला, कविता और रमा का सम्बन्ध राय साहेब से नहीं चाचा जी के साथ था..
रमा के अनुसार उनके सम्बन्ध गांव की ज्यादातर महिलाओं के साथ थे,
.
रमा ने गांव छोड़ा क्यूंकि उसके जीने की वजह को छीन लिया भगवान ने,
रमा ने कहा अभिमन्यु उसकी बेटी की लाश को लाया ,
कबीर ने पूछा अपने भाई से आखिर क्या हुआ था तो भाई का जवाब था कि वो भी तो कविता की लाश लाया था.. पर प्वाइंट ये है आखिर उसने यानी अभिमन्यु ने गद्दियां क्यों फेंकी थी.. जबकि कोई भी गुनेहगार एसा जरूर करेगा किसी अपने को बचाने के लिए, जरूर ये कार्य सूरजभान के द्वारा किया गया होगा.. या फिर चाचा जी के द्वारा ,
सही पड़ा आपने , रमा की बेटी के साथ जबरजस्ती करने वाला कोई और नहीं बल्कि चाचा जरनैल हो सकते हैं , इसी के कारण समाज में ना सही, पारिवारिक
इज्जत के लिए राय साहेब ने उन्हें सजा के तौर पर गांव से दूर भेज दिया हो.
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बहुत सुंदर अपडेट,
प्रतीक्षा अगले भाग की
आपकी अभिमन्यु वाली संभावना में दम है, वरना कौन ऐसे अपने शौक छोड़ देता है, वो भी मंजिल मिल जाने पर।मंदिर श्रापित है ऐसा लोग मानते है,क्योंकि शायद हुआ ये होगा की जिसने भी खजाने को पाने की कोशिश की होगी मारा गया होगा
पर मंदिर श्रापित नही है इसलिए निशा ने एक अपडेट में कहा था की लोग अंधविश्वासी है डरते है और पाखंड करते है,इसलिए झूठ बोला गया होगा ताकि लोग मंदिर से दूर रहे
भाभी अभिमानु का असली प्यार है अभी तक देख कर लगता नहीं है, हो सकता है भाभी झूठ बोल कर फिर से गेम खेल रही हो
क्योंकि अगर भाभी उसका प्यार होती तो चाची को थोड़ा बहुत पता तो होता ही
जिसकी फोटो कबीर को अभिमानु के कमरे में मिली(शायद रूढ़ा की बेटी) वो शायद उसका असली प्यार होगी, भाभी से शादी शायद कोई मजबूरी होगी
अय्याशी इस परिवार के खून में दौड़ती है कबीर की हरकत और राय साहब के किस्से से ये समझ आता है, अभिमानु के किस्से तो बस खुलने शुरू ही हुए है हो सकता है अभिमानु भी कुंदन के भाई ठाकुर इंद्र को तरह हो
ये तो आगे ही पता चलेगा की अभिमानु कितना अय्याश है और सच में अय्याश है भी या नही
शायद जनरैल सिंह इतना अय्याश था इसलिए चाची ने कभी उसे ढूंढने की कोशिश नही की,
भाई एक अपडेट और देदो please और चंपा का राज खोल दो,