अत्यंत लाजवाब एवं हृदयस्पर्शी कथा। कहानी बहुत ही रोमांचक मोड़ ले रही है।
इस रोचक कथानक की प्रस्तुति के लिए साधुवाद
इस रोचक कथानक की प्रस्तुति के लिए साधुवाद
Ohh My god.#10
“इस गाँव का हर घर मेरा है , हर आदमी मेरा भाई-बेटा है . हर औरत मेरी बहन-बेटी है . इस गाँव की खुशहाली के लिए हम सब ने मिलकर कुछ नियम बनाये है ताकि भाई-चारा बना रहे. इस गाँव में बहुत सी जाती के लोग बसे हुए है पर आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे किसी भी गाँव वाले का सर झुका हो. इस प्रेम प्यार का एकमात्र कारण है हमारे उसूल जिन पर हम सब चलते आ रहे है . लाली हम में से एक थी पर उसने पर पुरुष का साथ किया जो की अनुचित है . चूँकि पंचायत के माननीय सदस्यों ने निर्णय कर ही लिया तो हम सब को निर्णय का उच्चित सम्मान करना चाहिए ” पिताजी ने कहा .
पिताजी की बात सुनकर मुझ बहुत गहरा धक्का लगा राय चंद जी एक अनुचित काम को समर्थन दे रहे थे .
“पंचायत के निर्णय को मैं अपनी जुती की नोक पर रखता हूँ , मैं देखता हूँ कौन हाथ लगाता है मेरे होते हुए इन दोनों को ” मैंने गुस्से से कहा .
“तुम अपनी सीमा लांघ रहे हो कबीर ” पिताजी की आवाज में तल्खी थी.
“कुंवर, आपको हमारे लिए इन लोगो से झगडा करने की जरुरत नहीं है . आपने हमें समझा यही बड़ी बात है , ये झूठी शान में जीने वाले लोग कभी प्रेम को नहीं समझ सकते. हमारी नियति में जो है वो हमें मिलेगा.” लाली ने अपने हाथ मेरे सामने जोड़ते हुए कहा .
मैं- जीवन इश्वर का अनमोल तोहफा है और किसी को भी हक़ नहीं उसे नष्ट करने का सिवाय इश्वर के.
इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था . जिस पिता ने कभी ऊँगली तक मेरी तरफ नहीं की थी उसने पुरे गाँव के सामने मुझे थप्पड़ मारा था .
“हमने कहा था न की अपनी सीमा मत लाँघो कबीर. इस दुनिया में किसी की भी हिम्मत नहीं की हमारी बात काट सके.पंचायत की निर्णय की तुरंत तामिल की जाए ” पिताजी की गरजती आवाज चौपाल में गूँज रही थी .
तुंरत ही कुछ लोग लाली की तरफ लपके .
मैं- खबरदार जो इन दोनों को किसी ने भी हाथ लगाया जो हाथ लाली की तरफ बढेगा उस हाथ को उखाड़ दूंगा मैं.
पिताजी- निर्णय की पालना में यदि कोई भी अडचन डालता है तो खुली छूट है उसे सबक सिखाने की .
पिताजी का निर्णय गाँव वालो के लिए पत्थर की लकीर थी पर मेरी रगों में भी राय साहब का खून था. जिन गाँव वालो के साथ मैं बचपन से खेलता आ रहा था जिनके साथ हंसी खुशी में मैं शामिल था उनसे भीड़ गया था मैं. दो चार को तो धर लिया था मैंने पर मैं कोई बलशाली भीम नहीं था भीड़ मुझ पर हावी होने वाली थी . मेरी पूरी कोशिश थी की लाली को कोई हाथ भी नहीं लगा पाए.
मैंने एक पंच की कुर्सी उठा ली और उसे अपना हथियार बना लिया. जो भी जहाँ भी जिसे भी लगे मुझे परवाह नहीं थी . पंचायत की जिद थी तो मेरी भी जिद थी मेरे रहते वो लोग लाली को फांसी नहीं दे सकते थे . पर तभी अचानक से सब कुछ बदल गया . मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया . पीछे से किसी ने मेरे सर पर मारा था . वार जोरदार था . मैंने खुद को गिरते हुए देखा और फिर मुझे कुछ याद नहीं रहा.
आँख खुली तो मैंने खुद को अपने चौबारे में पाया . चाची, भाभी, मंगू, चंपा सब लोग आस पास बैठे हुए थे . मैं तुरंत बिस्तर से उठ बैठा .
“लाली , ” मैंने बस इतना कहा
भाभी- शांत हो जाओ देवर जी, चोट लगी है तुम्हे
भाभी ने एक गिलास पानी का मुझे दिया कुछ घूँट भरे मैंने पाया की सर पर पट्टी बंधी थी और दर्द बेशुमार था .
“लाली के साथ क्या किया उन्होंने ” मैंने कहा
चंपा- भाड़ में गयी लाली, हमारे लिए तुम महत्वपूर्ण हो कबीर. क्या जरुरत थी तुम्हे फसाद करने की मालूम है कितनी चोट लगी है तुम्हे.
चाची की आँखों में आंसू थे पर मेरा दिल जोर से धडक रहा था .मैं बिस्तर से उतरा और एक शाल लपेट पर चोबारे से बाहर निकल गया .
“कहाँ जा रहे हो भाई ” मंगू ने कहा पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया. साइकिल उठा कर मैं चौपाल पर पहुंचा जहाँ पर पेड़ से दो लाशे लटक रही थी . मेरी आँखों से झर झर आंसू गिरने लगे. बेशक लाली और उसका प्रेमी मेरे कुछ नहीं लगते थे पर मुझे दुःख था .
“माफ़ करना मुझे , मैं तुम्हे बचा नहीं पाया ” मैंने लाली के पांवो को हाथ लगा कर माफ़ी मांगी. मेरा दिल बहुत दुखी था . . मन कच्चा हो गया था मेरा. बहुत देर तक मैं उधर ही बैठा रहा .सोचता रहा की कैसा सितमगर जमाना है ये . क्या दस्तूर है इसके.
जब सहन नहीं हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल गया . ब्यथित मन में बहुत कुछ था कहने को. बेखुदी में भटकते हुए न जाने कब मैं जंगल में उधर ही पहुच गया जहाँ दो बार मैं इत्तेफाक से था. दुखी मन थोडा और विद्रोही हो गया . मैंने साइकिल उधर ही पटकी और पैदल ही भटकने लगा जंगल में.
वन देव की मूर्ति के पास बैठे बैठे कब मेरा सर भारी हो गया मालूम ही नहीं हुआ. पर जब तन्द्रा टूटी तो मैंने खुद को अन्धकार में पाया. गहरी धुंध मेरे चारो तरफ छाई हुई थी और मैं ठण्ड से कांप रहा था . रात न जाने कितनी बीती कितनी बाकि थी. सर के दर्द के बीच थोडा समय जरुर लगा समझने में की मैं कहाँ पर हूँ. आँखों के सामने बार बार लाली, हरिया और वो बुजुर्ग जिसे मैं नहीं जानता था के चेहरे आ रहे थे .मैंने उसी पल जंगल में अन्दर जाने का निर्णय लिया.
दूर कहीं झींगुरो की आवाज आ रही थी . कभी सियारों और जंगली कुत्तो की आवाजे आती पर मैं चले जा रहा था . कंटीली झाडिया उलझी कभी कांटे चुभे पर फिर मैंने एक ऐसी जगह देखि जो यहाँ थी कम से कम मैं तो नहीं जानता था .
वो एक तालाब था . जंगल की न जाने किस हिस्से में वो तालाब जिसमे लहरे हिलोरे मार रही थी . वो पक्का तालाब जिसकी एक दिवार मेरे सामने खड़ी थी किसी हदबंदी की तरह और तालाब के पार वो काली ईमारत जिसका वहां अपने आप में अजूबा था . चाँद की रौशनी में तालाब का पानी बहुत काला लग रहा था .
तालाब के पास से होते हुए मैं उस ईमारत की तरफ लगभग आधी दुरी तय कर चूका था की पानी में जोर से छापक की आवाज हुई . मैंने मुड कर देखा पानी में कोई नहीं था बस लहरे उठ रही थी . शायद मछलिय होंगी इसमें मैंने खुद को तसल्ली दी और इमारत की सीढिया चढ़ते हुए ऊपर चला गया .
प्रांगन में जाते ही मैं समझ गया की ये कोई प्राचीन मंदिर रहा होगा जिसे वक्त ने और हम जैसो ने भुला दिया . हर तरफ जाले ही जाले लगे थे . सिल के पत्थरों की नक्काशी चांदनी में चमक रही थी . खम्बो से चुना झड़ रहा था . मैं थोडा और आगे बढ़ा . मैंने देखा की चार छोटे खम्बो पर टिकी छत के निचे कोई मेरी तरफ पीठ किये बैठा था . मेरी आँखे जो देख रही थी वो यकीन करना मुश्किल था . कड़कती ठण्ड की रात में जब धुंध ने हर किसी को अपने आगोश में लिए हुए था. इस सुनसान जगह पर कोई शांति से बैठा था . पर किसलिए. मेरे दिल में हजारो सवाल एक साथ उठ गए थे .
“रातो को यूँ भटकना ठीक नहीं होता ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा. न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .
उसकी आवाज इतनी सर्द थी की ठण्ड मेरी रीढ़ की हड्डी में उतर गयी .
“कौन हो तुम ” मैंने पूछा
वो साया उठा और मेरी तरफ. मेरे पास आया. मैंने देखा की वो एक लड़की थी .काली साडी में माथे पर गोल बिंदी लगाये. कुलहो तक आते उसके काले बाल. चांदनी रात किसी आबनूस सी चमकती वो लड़की एक पल को मैं उसमे खो सा गया पर फिर मैंने पूछा- कौन हो तुम
वो मेरे पास आई और बोली- डायन ............................
कबीर की तकदीर उसे कहाँ ले जाएगी कौन जाने. इस एपिसोड के माध्यम से मैंने समाज के उस पहलू को दिखाने की कोशिश की है जो झूठे नियमो मे डूबा हुआ है, क्या मालूम हो कौन होगी जो कबीर को पहले संसर्ग का सुख देगीहर बीतते भाग के साथ कबीर का चरित्र और भी बेहतर लगने लगा है। बढ़िया चरित्र गढ़ रहें हैं आप कहानी के नायक का।
अभी तक तो कबीर और उसके बड़े भाई के बीच एक बहुत ही गहरा बंधन नज़र आ रहा है। भाइयों से बढ़कर दोस्ती का रिश्ता.. परंतु कहीं न कहीं अंदेशा हो रहा है कि भविष्य में दोनों के मध्य एक दरार पड़ती नजर आ सकती है। कारण क्या होगा, यदि ऐसा हुआ तो? भाभी?
चाची.. मेरे ख्याल में चाची ही वो पहली महिला होगी जिसके संग कबीर प्रथम बार संभोग सुख प्राप्त करेगा। अभी तक केवल चाची और चम्पा.. दो ही स्त्रियां नज़र आईं हैं कहानी में जिनका कबीर संग ऐसा रिश्ता बनता दिख रहा है। उस अनजान प्राणी द्वारा कबीर के लिंग पर काटने के पश्चात हुई घटना, कबीर का चम्पा और चाची को देखना, कबीर का चाची को इस बात से अवगत कराना कि वो चम्पा और उनके मध्य हुई घटना देख चुका है और इस अध्याय में सुबह का दृश्य.. कहीं न कहीं सब चीज़ें एकत्र होकर इसी ओर इशारा करती नजर आ रहीं हैं कि शायद जल्द ही..
कबीर के पिता, राय साहब का रुतबा भी कुछ हद तक सामने आ रहा है। शायद गांव के सरपंच हैं वो, या शायद सरपंच से भी अधिक रसूखदार। परंतु जो स्वर आज कबीर ने उनके और पंचों के समक्ष उठाया है, चाहे कबीर की बात जायज़ थी, तब भी इस स्वर की गूंज आगे तक सुनाई देने वाली है। पिता – पुत्र के मध्य एक बार शुरू हुई खींचतान कहां रुकेगी, कहना मुश्किल है। इसका मुख्य कारण, कबीर का सच्चा होना है। यदि राय साहब ने कबीर की जायज़ बात पर भी उसे दंड दे दिया, तो बेशक कहानी और कबीर का जीवन एक नया मोड़ लेगा।
लाली के मामले में राय साहब का निर्णय ही शायद अंतिम निर्णय होगा। देखना रोचक रहेगा कि वो कबीर की बात पर क्या फ़ैसला सुनाते हैं। मेरे ख्याल में अधिक से अधिक, वो मृत्युदंड की सजा वापिस ले सकते हैं, परंतु लाली को सजा वो देंगे ही, वैसे मृत्युदंड वापिस होने के आसार भी काम ही हैं। उस लाश का मुद्दा उठना बाकी है अभी, क्या वो कबीर के ही गांव का था, या किसी और गांव का? क्या कबीर का नाम उस मामले में उछलेगा? किसीने देखा होगा कबीर को उस लाश के साथ? एक बात तो तय है कि उस जंगल के भीतर ही छुपा है वो रहस्य जो शायद कबीर का जीवन है..
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतियां थी दोनों ही, बिल्कुल वही पुरानी छाप आपकी रचनाओं की। परंतु इस बार लगता है कि शायद इस कहानी में नायक का चरित्र और भी सुदृढ़ होने वाला है, आपकी पिछली कहानियों के निस्बत। बढ़ते रहिए!
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
अभी सोचा नहीं दूसरी के बारे मेकर दिया बगावत का झण्डा खडा जबकि खुद का डण्डा तो सूजा पडा है।
हीरोइन तो दो ही होती है आपकी कहानी में एक चंपा तो दूसरी काैन?
ThanksInteresting update