#92
मैंने कुछ गिलास पानी पिया और वहीँ पर बैठ गया चाची भी तबतक पास आ चुकी थी .
मैं- आज यहाँ पर कैसे.
चाची- कई दिन हो गए थे इस तरफ आना ही नहीं हुआ. सोचा की घूम आऊ खुली हवा पर थोडा हक़ मेरा भी तो है न .
मैं- मंगू, सरला नहीं आये आज.
चाची- पता नहीं मेरी कोई बात नहीं हुई उनसे. तू बता कहाँ गायब रहता है आजकल.
मैं- बस उलझा हूँ कुछ कामो में .
चाची- क्या काम है ऐसे की अब मुझसे भी नजरे चुराने लगा है
मैं- ब्याह करने वाला हूँ कुछ दिनों में उसी में उलझा हूँ
चाची- देख कबीर, बेशक अपनी पंसद की छोरी से कर ले पर एक बार जेठ जी को तो बता दे, उनको बाद में मालूम हुआ तो कहीं नाराज न हो जाये वो.
मैं- मुझे फर्क नहीं पड़ता चाची. पर क्या तू मुझे बता सकती है की रुडा और चाचा की लड़ाई किस बात पर हुई थी .
चाची- तू पहले भी पूछ चूका है ये बात, तेरे चाचा घर से बाहर क्या करते थे मैं नहीं जानती .
चाची के ब्लाउज से बहार को झांकती चुचिया मुझे ललचा रही थी की आ हमें दबा ले. मसल ले . मैं करता भी ऐसा पर मेरी नजर सरला पर पड़ी जो हमारी तरफ ही आ रही थी तो मैंने विचार बदल दिए.
मैं- चाची मैं चाहता हूँ की जब मेरी दुल्हन आये तो तू उसे अपने घर में रहने की इजाजत दे.
चाची- ये कोई कहने की बात है क्या , और मेरा घर तेरा भी है ये क्यों भूल जाता है तू.
मैंने सरला से थोडा पानी गर्म करने को कहा, मैं नहाना चाहता था . थोड़ी देर और चाची के साथ बाते करने के बाद नहा कर मैं मलिकपुर की तरफ निकल गया. रमा का ठेका आज भी बंद था उसके कमरे पर भी ताला लगा था. मैं उस से मिलना चाहता था पर वो थी नहीं . घूमते घूमते मैं प्रकाश के घर की तरफ चला गया जहाँ उसके अंतिम संस्कार की तयारी चल रही थी मैंने देखा की पिताजी और भैया भी थे वहां तो मैं वापिस मुड गया.
मैं अंजू को देखना चाहता था , जानना चाहता था की प्रकाश की मौत का कितना फर्क पड़ता है उस पर. पर अंजू थी कहाँ . रमा भी गायब , खैर वापिस आना तो था ही , तभी मुझे ध्यान आया की रमा ने बताया था की अंजू जब भी मलिकपुर आती है तो वो स्कूल में बच्चो को पढ़ाती है तो मैं वहीँ पर पहुँच गया, और किस्मत देखिये मुझे शहर में उसका पता भी मिल गया.
सहर जाते समय जिन्दगी में पहली बार मैंने सोचा की मेरे पास भी भैया के जैसे गाड़ी होनी चाहिए , खैर , उस पते पर जब मैं पहुंचा तो हैरत से मेरी आँखे फट गयी. अंजू का घर, दरअसल उसे घर कहना तोहीन होती , वो घर नहीं हवेली ही थी, अंजू अमीर थी जानता था मैं पर इतनी अमीर होगी ये नहीं सोचा था .
पर वहां कोई दरबान नहीं था . दरवाजे पर एक बड़ी सी घंटी लटकी थी जिसे जोर लगा कर मैंने बजाया तो अन्दर से एक नौकरानी आई और मुझ से सवाल करने लगी. मैंने उसे कहा की अंजू से मिलने कबीर आया है. वो अन्दर गयी और थोड़ी देर बाद दरवाजा खोल कर मुझे अदब से अपने साथ ले गयी. घर क्या था हमें तो महल ही लगता था .
दीवारों पर तरह तरह की तस्वीरे थी जो मुझे समझ नहीं आई. किताबे इधर उधर बिखरी पड़ी थी . पर बाकी सब कुछ सलीके से था . कुछ देर बाद अंजू आई, उसकी आँखे लाल थी शायद बहुत रोई होगी वो रोती भी क्यों न .....
“तुम यहाँ क्यों आये ” उसने पूछा
मैं- आपसे मिलने
अंजू- कबीर, मेरा मूड बहुत ख़राब है आज, मैं परेशान हूँ
मैं- जानता हूँ , आपके लिए सदमे से कम नहीं है
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- जानता हु आप पर क्या बीत रही है , आप बाहर से कितना भी मजबूत क्यों न हो पर आपके मन की बेचैनी, उसकी बेदना समझता हूँ मैं इसीलिए मैं यहाँ आया. बेशक मैं इस दुःख को कम नहीं कर पाऊंगा पर फिर भी मुझे लगा की इस वक्त आपके साथ होना चाहिए मुझे. मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने सीने से लगा लिया और तब तक लगाये रखा जब तक की उसका दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.
मैं- मालूम कर लूँगा ये किसका काम है
अंजू- जरुरत नहीं , ये काम मैं खुद करुँगी.
मैं- कभी कभी लगता है की आपकी और मेरी मंजिल एक ही है
अंजू- कैसी मंजिल
मैं- आपको भी जंगल में किसी चीज की तलाश है मुझे भी .
अंजू- किसने कहा की मैं जंगल में कुछ ढूँढने जाती हूँ.
मैं- अनुमान है मेरा .
अंजू- मुझे भला क्या जरुरत
मैं- यही मैं जानना चाहता हूँ की क्यों नहीं जरूरत आपको किसी भी चीज की .
मैंने जेब से सोने के कुछ सिक्के निकाले और अंजू के हाथ में रख दिए.
“तो इनकी वजह से तुम यहाँ चले आये, तुमको क्या लगा था की इनके लिए मैं जंगल में जाती हूँ ” उसने मुझे घुर कर कहा.
मैं- क्या आपको इनका कोई मोह नहीं, क्या आप नहीं चाहती इनको पाना .
अंजू- नहीं , जो मेरा है उस से मुझे भला क्या मोह होगा. और जो मेरा है उसे क्या पाना
अंजू ने जो रहस्योद्घाटन किया था मेरे तमाम ख्याल , तमाम धारणाओं को ध्वस्त होते देखा मैंने .
मैं- कैसे ,,,,,,,,,,,
अंजू- मेरी माँ सुनैना, बंजारों की टोली के सबसे सिद्ध थी वो. उसने खोजा था इस सोने को. कबीर, सोना एक ऐसी चीज है जो कभी अपना नहीं हो सकता, मिला हुआ, पड़ा हुआ सोना या वो सोना जो तुम्हारा नहीं है पर तुमने कब्ज़ा लिया है तुम्हे कभी सुख नहीं देगा, मान्यता है की मिला हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है . ये सत्य है . मेरी माँ की मौत का असली कारण सोना था . राय साहब जानते है इस बात को . राय साहब की कोई बहन नहीं थी ,मेरी माँ को सगी बहन से भी ज्यादा स्नेह करते थे वो. मरते हुए मेरी माँ ने राय साहब को उस सोने का राज बताया जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हुई. राय साहब ने वक्त आने पर वो राज मुझे बताया. पर मैंने इसे नकार दिया. दुनिया इस सोने को लालच के रूप में देखेगी पर मैं इसमें मेरी माँ के खून को देखती हूँ .
मैं- पर रुडा आपकी माँ से बहुत प्रेम करता था .
अंजू- प्रेम नहीं था वो , रुडा इस सोने से प्रेम करता था , जब वक्त आया हमें अपनाने का तो उसके हाथ कमजोर पड़ गए. वो चाहते तो कोई मेरी माँ का बाल भी बांका नहीं कर सकता था .
मैं- तो क्या राय साहब से तल्खी का कारन भी ये सोना ही है
अंजू- बड़ी देर से समझे तुम.
चूँकि चालाक अंजू पर मुझे विश्वास कम ही था तो मैंने एक सवाल और पूछा .
मैं- क्या आप जानती है की ये सोना कहाँ है
अंजू- जानती हूँ , और तुम्हे भी बताती हूँ तुम्हे चाहिए तो तुम ले सकते हो . सोना मेरी माँ की समाधी के निचे है .मैंने अपना माथा पीट लिया . सोना वहां कैसे हो सकता था.
मैं- पक्का सोना वहीँ पर है
अंजू- जब मैंने आखिरी बार देखा था तो सोना वहीँ पर था .
मैं - और ये आखिरी बार कब था
अंजू- ठीक तो याद नहीं पर शायद सात-आठ साल पहले.
बहुत से सवालों का जवाब मिल चूका था मुझे.
मैं- यदि सोने से आपको कोई वास्ता नहीं तो फिर इतनी अमीर कैसे है आप .
अंजू-तुम एक बात भूल गए मैं सुनैना की बेटी हूँ , उस सुनैना की जिसे राय साहब ने बहन माना था .
इसके आगे मुझे कुछ भी कहने की जरूरत नहीं थी . मैंने अंजू से विदा ली और दरवाजे की तरफ मुड़ा ही था की सामने लगी तस्वीर ने मेरे कदम रोक लिए.......................................