#104
मैं- दिल हार चूका हूँ भाभी उसके प्यार में, निशा को पाना मेरी कोई जिद नहीं है भाभी,पर इतना जरुर है की उसके बिना जी पाना मुश्किल होगा. यूँ तो ज़माने में कोई और भी मिल जाएगी पर निशा जैसी तो बस वो अकेली ही है न, मैं जानता हूँ आप इस रिश्ते को मान्यता क्यों नहीं दे रही है पर भाभी मैं आपकी परवरिश हूँ , अपनी परवरिश पर थोडा भरोसा तो रखिये.
भाभी- इसलिए ही तो मेरा जी घबराता है . जान गयी हूँ की तू उसका साथ किसी भी सुरत में नहीं छोड़ेगा. मैं ये भी जानती हूँ कबीर, की तेरा फैसला ठीक है . आज से नहीं तेरे अन्दर के विद्रोह को सबसे पहले मैंने ही समझा था .ये लाल जोड़ा मैं निशा को देना चाहती थी पर फिर खुद को रोक लिया क्योंकि मुझे डर है .
मैं- इस डर को दिल से निकाल दो भाभी. दिल हारा हूँ उसके प्यार में दुनिया से जीत लाऊंगा मैं. जिस राज को तुम छिपाए बैठी हो,बताने से घबरा रही हो मैं जानता हूँ उस राज को
भाभी के चेहरे का रंग बदल गया .
मैं- भाभी , डाकन के हाथ को थामा है मैंने, दुनिया को ये बताने दो मुझे की वो मनहूस नहीं है , उसके कदम किसी भी घर में अँधेरा नहीं करते. वो भी मेरे जैसी ही है. उसके सीने में भी एक दिल धडक रहा है जो जीना चाहता है , जो उड़ना चाहता है आसमान में. जब वो आएगी , इस घर को , इस आँगन को, जीवन को खुशिओ से भर देगी वो .
भाभी- राय साहब नहीं मानेगे उनका अहंकार नहीं मानेगा
मैं- किसे परवाह है उस चूतिये की . माँ के जाने के बाद भी मुझे कभी मा की कमी महसूस नहीं हुई, तुम्हारा आँचल सदा मेरे सर पर छाया बन कर रहा . उस माँ ने तो जन्म दिया था इस माँ ने जीवन दिया मुझे, पाला-पोसा सही गलत का फर्क बताया. इस माँ से अपना हक़ मांगता हूँ मैं. इस लाल जोड़े में तुम इस घर में आई थी इसी लाल जोड़े में मैं उसे लाऊंगा.
भाभी- यही लाल जोड़ा रत से रंग जाएगा कबीर. मैं चाह कर भी रोक नहीं पाउंगी . अभिमानु कभी भी राय शाब के सामने अपनी आवाज ऊँची नहीं करेंगे. बाप बेटे में तलवारे चल जायेंगी
मैं- भैया ने वादा किया है मुझसे
भाभी- यही तो मेरी चिंता है उनके एक तरफ भाई होगा दूसरी तरफ बाप धर्मसंकट में वो न जाने क्या करेंगे.
मैं- वो जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे. मेरी पूरी कोशिश होगी की मैं ही सुलझा लू सब राजी ख़ुशी, आपकी ग्रहस्थी पर मेरी वजह से कोई आंच नहीं आएगी.
भाभी- तुझ पर जो आंच आयेगी दर्द मेरे कलेजे को ही होगा ना.
मैं- अपने आंचल तले हमारे प्यार को पनाह दे दो भाभी . हमें जीने दो
मैंने भाभी के आगे हाथ जोड़ दिए.
“ले आ उसे, लेकर ही आना ” भाभी ने अपना हाथ मेरे पर रख दिया.
“नंदिनी क्या कर रही है कितनी आवाज लगा चुकी हूँ सुनती ही नहीं ” कमरे में दाखिल होते हुए चाची ने कहा .
भाभी- इस गाँव को दुल्हन की तरह सजवा दो चाची. तैयारिया और बढ़ा दो.अआप्का बेटा ,मेरा देवर इस घर की नयी बहु ला रहा है .
चाची- नयी बहु मैं समझी नहीं . मुझे तो लगा था की ये ऐसे ही मजाक करता है
भाभी- वो सच कहता था हमेशा से
चाची- जेठ जी से तो बता देते
भाभी- ये हवाए ही बता देंगी उनको. जा कबीर तय वक्त पर उसे ले आना, ये नंदिनी ठकुराइन कह रही है तुझसे ,जा जी ले अपनी जिन्दगी.
आगे बढ़ कर भाभी ने मुझे अपने गले से लगा लिया
“प्यार किया है निभाना जरुर ” हौले से भाभी ने मेरे कान में कहा और अलग हो गयी.
नीचे आते हुए मैंने महसूस किया की हवाए सच में महक उठी थी. ढलते केसरिया सूरज की रौशनी में मैंने मोहब्बत को देखा. निचे उतर भी नहीं पाया था की मैंने गाडी घर में आते देखा , गाड़ी से अंजू उतरी.
मैं- तुम यहाँ
अंजू- मुझे तो आना ही था वादा जो किया था तुमसे पूनम की रात का , नंदिनी भाभी कैसी है आप
अंजू भाभी के गले लग गयी जाकर.
“कबीर , चाय ” मैंने मुड कर देखा चंपा थी.
मैं- चाय नहीं रोटी परोस भूख लगी है .
अंजू- ये कोई समय है खाना खाने का
मैं- क्या करे तुम्हारी तरह खून तो नहीं पि सकता न
अंजू- तुम बच कर रहना , मुझे तलब है तुम्हारे रक्त की
भाभी- अंजू,
अंजू- कुछ नहीं भाभी बस थोडा मजाक कर रही थी कबीर के साथ .
मैं चंपा के पीछे रसोई में गया.
“तो साइकिल वाली संग ही इश्क कर बैठे ” उसने कहा
मैं- तुझे अच्छी लगी वो
चंपा- तुमने पसंद की है अच्छी तो होगी ही .
मैं- बहुत अच्छी है वो .
चंपा ने थाली परोसी. मैं खाने लगा.
चंपा- अच्छा है ब्याह के बाद तू भी जीवन में आगे बढ़ जायेगा .
मैं- तेरी कमी तो रहेगी न इस दिल में एक कोने में थोड़ी जगह तूने खाली जो कर दी
चंपा- तेरी तमाम शिकायते सर माथे पर
मैं- दोस्ती निभा नहीं पाई तू
चंपा- जानती हूँ . सदा अफ़सोस रहेगा मुझे
खाना खाने के बाद मैंने छोटे मोटे काम देखे , अंजू ने मेरे कमरे में अपना डेरा जमा लिया था मुझे पसंद नहीं आई ये हरकत पर मेहमान थी तो लिहाज जरुरी था . रात को मैं कुछ देर रस्मो में शामिल हुआ. और फिर मैंने अपने कदम घर से बाहर बढ़ा दिए. ठण्ड में अपनी जाकेट को गले तक कसे हुए मैं बस चले जा रहा था .
न जाने कितना वक्त हुआ होगा. सारा जहाँ जब नींद में डूबा था . मैं उस हवेली के आगे खड़ा था जिसका दरवाजा खुला था चलते हुए मैंने उस दरवाजे को पार किया. अँधेरे में डूबी इमारत शान से खड़ी थी . मुख्य द्वार तक आने में कुछ देर लगी पर आहिस्ता से मैंने दहलीज पर पैर रखा और अन्दर घुस गया .
सब कुछ अँधेरे में डूबा था . सन्नाटा इतना घना था की सांसो की आवाज भी गूँज उठे. सीढिया चढ़ते हुए मैं दूसरी मंजिल पर पहुंचा . पूरी हवेली में बस यही पर लालटेन की रौशनी थी. कमरे का दरवाजा खुला था . टेबल पर लालटेन जल रही थी . उसकी पीठ थी मेरी तरफ नजरे खिड़की पर ..................