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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Sanju@

Well-Known Member
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#108

बाहर आते ही मैं भाभी से टकरा गया . जो थोडा गुस्से में थी .

भाभी-ताला क्यों तोडा चाबी मांग लेते मुझसे

मैं- नया लगा लो

भाभी- किस चीज की तलाश है तुमको

मैं- भैया ने आपको नहीं बताया क्या

भाभी- नहीं तुम ही बता दो

मैं-मैं पल पल मर रहा हूँ भाभी, अपने हिस्से की जिन्दगी तलाश रहा हूँ

भाभी इस से पहले की कुछ और कहती सरला आ गयी रसोई में तो मैं वहां से बाहर निकल गया. बाहर आकर मैंने सरला से कहा की थोडा दूध ले आए मेरे लिए. मैंने पत्तल ली और खाना खाने के लिए बैठ गया . अंजू ने मुझे देखा तो मेरे पास आई.

अंजू- इतने बड़े होकर भी दूध पीते हो .

मैं-पीना तो मैं बहुत कुछ चाहता हूँ पर तुम बुरा मान जाओगी

अंजू- मैं क्यों बुरा मानूंगी बताओ क्या पीना चाहते हो मैं ले आती हूँ

मैं- रहने दे तू

अंजू पास ही बैठ गयी और मेरे साथ ही खाना खाने लगी.

अंजू- पूरा दिन कहा गायब थे .

मैं- तुझे याद आ रही थी क्या मेरी .

अंजू- इतना भी नहीं है तू की मरी जा रही हूँ तेरी याद में

मैं- तो फिर क्यों पूछती है कहीं भी जाऊ मैं

अंजू- तू भी नहीं था अभिमानु भी नहीं था . अकेली का टाइम पास नहीं हो रहा था मेरा.

मैं- तू कहे तो पूरी रात टाइम पास कर सकते है

अंजू- इस से आगे भी दुनिया है तू कब तक इसी में अटका रहेगा.

मैं- जहाँ तक तुझे समझा है , प्रकाश से तेरे सम्बन्ध वैसे नहीं थे जैसे तू बताती है

अंजू- मैंने आज मंगू से बात करने की कोशिश की थी पर वो राय साहब के साथ कहीं चला गया .

मैं- तुझे बुरा नहीं लगा जब तूने देखा की प्रकाश रमा को चोद रहा था तेरे जैसी गदराई साथी होने के बाद भी वो रमा के पास गया अजीब है न

अंजू- कितनी बार कहा है मेरे निजी मामले में मत घुस

मैं- घुसने तो तूने नहीं दिया परकाश को वर्ना वो क्यों जाता रमा के पास

अंजू- मुह तोड़ दूंगी तेरा

मैं- शायद तेरे नसीब ने चुदाई का सूख है ही नहीं

अंजू- तू खुश रह मैं जा रही हूँ

मेरी निगाह चाची पर थी जिसकी मटकती गांड मुझे पागल किये हुए थी. कितने ही दिन बीत गए थे मैंने चाची को नहीं पेला था . कुवे पर चुदाई का रिस्क नहीं ले सकता था मैं निशा अगर आ निकली तो मामला काबू से बाहर हो सकता था . लोगो से भरे घर में कहा चूत मारू खाना खाते हुए मैं ये ही सोच रहा था



जिन्दगी में इतना सब कुछ हो रहा था की मैं करू तो क्या करू कल रात आदमखोर को छत पर देख कर मैं समझ गया था की ये साला भी कुछ न कुछ करने की ताक में है . खैर मैं चाची के पास गया .

मैं- चाची कुछ भी कर आज देनी ही पड़ेगी

चाची- देखती हूँ जगह भी तो नहीं है न

मैं- सुन मेरी बात , बिस्तर सीढियों पर बने छज्जे पर लगा ले. सबके सोने के बाद उधर मिलेंगे सीढियों का दरवाजा बंद कर लेंगे किसी के आने का डर भी नहीं रहेगा.

चाची- चल ठीक है

मैंने मौका देख कर चाची की गांड को सहला दिया. आंच तापते हुए मुझे इंतज़ार था सबके सोने का ताकि चूत का सूख प्राप्त कर सकू . तभी बाप की गाडी आ गयी वो सीधा अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर लिया. मैं हमेशा सोचता था की ये बंद दरवाजे के पीछे करता क्या होगा. धीरे धीरे करके बत्तिया बुझने लगी.पूरी तरह से सुनिश्चित करने के बाद मैं चाची के घर जा ही रहा था की गली में मूतने के लिए रुक गया. मूत ही रहा था की मैंने राय साहब को पैदल ही घर से बाहर निकलते देखा.



इतनी रात ओके बाप कहाँ जा रहा था एक तरफ चूत थी एक तरफ ये जानने की इच्छा की बाप कहाँ जा रहा था. मैंने तुरंत पीछा करना शुरू किया. थोड़ी दूर पीछा करने के बाद मैं समझ गया था की बाप कहाँ जा रहा था . वो रमा के घर जा रहा था . राय साहब के घर में घुसते ही मैं पीछे वाली खिड़की की तरफ गया और जब वहां पहुंचा तो हैरान रह गया . खिड़की पर अंजू पहले से ही मोजूद थी .

“ये बहन की लौड़ी यहाँ क्या कर रही है ” मैंने खुद से कहा और अंजू से थोड़ी दुरी बना कर खड़ा हो गया. खिड़की से अन्दर दिख रहा था . कमरे में राय साहब थे थोड़ी देर बाद रमा भी कमरे में आई, पूर्ण रूप से नग्न रमा शायद नाहा कर आई थी क्योंकि बदन से पानी टपक रहा था . उनकी चुदाई शुरू हो गयी . अंजू खिड़की से हट गयी और मेरी तरफ आने लगी.

मैं- हट क्यों गयी अपने मामा की रास लीला तो देख ले

अंजू- रमा पर नजर थी मेरी पर यहाँ तो कुछ और ही चल रहा है

अंजू का सीना तेजी से ऊपर निचे हो रहा था .

मैं- मैंने तुझसे कहा था न मेरा बाप वैसा नहीं है जैसा दीखता है

अंजू-चल चलते है यहाँ

मैं- कहाँ चलेंगे

अंजू-घर और कहा

मैं- बात तो सुन

अंजू-घर चल कर करेंगे जो भी बात करनी होगी.

मैं- ऐसा क्यों लगता है की तू कुछ छिपा रही है मुझसे

अंजू- मैं क्या छिपा रही हूँ तू ही बता

मैं- देख अंजू , तेरी जो भी तलाश है रमा उसकी बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है . ये औरत उनसब से चुद रही है जिनको हम जानते है

अंजू- जानती हूँ ,

मैं- इतना तो मालूम कर ले इ मेरा बाप क्यों पेल रहा है इसे.

अंजू- करुँगी पता

मैं- तेरा मन करता है क्या चुदाई करने का

अंजू- करेगा तब भी तुजसे नहीं करुँगी ये सब

मैं- क्यों

अंजू- मेरी मर्जी .

घर आते ही अंजू चौबारे मे जाने लगी. मैं चाची के पास जाने को मुड़ा ही था की अंजू ने मुझे आवाज दी.

“अब कहाँ जा रहा है ”

मैं- एक काम याद आ गया निपटा के आता हूँ

अंजू- काम तो चोबारे में भी करना होगा , आजा ऊपर.

मैं- ठीक है .


ऊपर जाने से पहले मैंने सोचा की दरवाजा बंद कर देता हूँ . मैंने दरवाजे को पकड़ा और गीलेपन से मेरा हाथ सन गया......................मैंने तुरंत पीछे मुड कर देखा अंजू सीढियों पर नहीं थी पर गली में दरवाजे के ठीक सामने............
कबीर और अंजू के बीच संवाद अच्छा था कबीर की कही बाते अंजू अच्छी तरह से समझ रही है लेकिन खुल कर नही बोल पा रही है रमा के घर कि खिड़की पर अंजू को देखकर चौकाने वाली बात नही है क्योंकि वो तो हमेशा भटकती रहती है लेकिन उसे किस की तलाश है राय साहब के बारे में भी पता चल गया अंजू को लेकिन बोला कुछ नहीं कबीर को मौका दे दिया है लेकिन अचानक क्या हुआ ?????!
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#112

मैंने निशा को साथ लिया और हम लोग उस जगह पर आ गए जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. समाधी अभी भी वैसी ही थी जैसा मैं उसे छोड़ कर गया था .

मैं- अगर वो सुनैना की समाधी थी तो ये किसकी समाधी है

निशा- मैं क्या जानू , पर इतना जानती हूँ की सुनैना की समाधी वहां है जहां मैं तुझे लेकर गयी थी चाहे तो तस्दीक कर ले.

मैं- मानता हु तेरी बात तो फिर राय साहब ने झूठ क्यों कहा. क्या छिपा रहे थे वो.

निशा- अब आये है तो ये भी तलाश लेते है , जंगल बड़ा रहस्यमई है , इसकी ख़ामोशी में चीखे है लोगो की . देखते है यहाँ की क्या कहानी है. उम्मीद है ये रात दिलचस्प होगी.

मैंने मुस्कुरा कर देखा उसे. अपनी जुल्फों को चेहरे से हटाते हुए वो भी मुस्कुराई और टूटी समाधी को देखने लगी.

निशा- यहाँ भी धन पड़ा है

मैं- यही तो समझ नही आ रहा की ऐसा कौन हो गया जो खुले आम अपने धन को फेंक गया. अजीब होगा वो सक्श जिसे दुनिया की सबसे मूल्यवान धातु का मोह नहीं.

पता नहीं निशा ने मेरी बात सुनी या नहीं सुनी वो उन दो कमरों की तरफ बढ़ गयी थी . पत्थर उठा कर बिना किसी फ़िक्र के उसने बड़े आराम से दोनों कमरों के ताले तोड़ दिए. उसके पीछे पीछे मैं भी अन्दर आया. कमरे बस कमरे थे , कुछ खास नहीं था वहां . एक कमरा बिलकुल खाली था , दुसरे में एक पलंग था जिसकी चादर बहुत समय से बदली नहीं गयी थी . मैंने निशा को देखा जो गहरी सोच में डूब गयी थी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- इस जगह को समझने की कोशिश कर रही हूँ. इन कमरों का तो नहीं पता पर जहाँ तक मैं समझी हूँ तेरे कुवे और मेरे खंडहर से लगभग समान दुरी है यहाँ की . इस सोने को देखती हूँ , तालाब में पड़े सोने को देखती हूँ तो सोचती हूँ की कोई तो ऐसा होगा जो इन तीनो जगह को बराबर समझता होगा. पर यहाँ लोग आते है खंडहर पर कोई आता नहीं



निशा कुछ कह रही थी मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था .इस जगह से बड़ी आसानी से कुवे पर और निशा के खंडहर पहुंचा जा सकता था तो इस जगह का इस्तेमाल चुदाई के लिए भी सकता था . खंडहर का कमरे में चुदाई हो सकती थी तो यहाँ भी हो सकती थी, और अगर मामला चुदाई का था तो चाचा वो आदमी हो सकता था जो दोनों जगह के बारे में जानता होगा

मैं- ठाकुर जरनैल सिंह वो आदमी हो सकता है निशा जिसका सम्बन्ध तीनो जगह कुवे, यहाँ और खंडहर से हो सकता है. वसीयत का चौथा पन्ना हो न हो चाचा के बारे में ही है. और अगर चाचा तीनो जगह इस्तेमाल करता था तो पिताजी भी करते होंगे क्योंकि आजकल वो भी चाचा की राह पर ही चल दिए है , दोनों भाइयो के बीच झगडा किसी औरत के लिए ही हुआ होगा.

निशा- क्या लगता है तुझे रमा हो सकती है वो औरत .

मैं- चाचा के जीवन म तीन प्रेयसी थी , कविता, सरला और रमा. सबसे जायदा सम्भावना रमा की है . कविता हो न हो उस रात चाचा से मिलने ही आई होगी , पर बदकिस्मती से उसकी हत्या हो गयी.



निशा- पर ठाकुर जरनैल कहाँ है और छिपा है तो क्यों , किसलिए



मैं- कहीं चाचा तो आदमखोर नहीं . जब कविता उस से मिली उस समय शायद उसका रूप बदला हो और उसने कविता को मार दिया हो. सम्भावना बहुत ज्यादा है इस शक की क्योंकि कई बार मैंने भी महसूस किया है की आदमखोर से कोई तो ताल्लुक है मेरा. इसी बीमारी के कारन चाचा को छिप कर रहना पड़ रहा हो .

निशा- ऐसा है तो विचित्र है ये .

मैं- जंगल ने जब इतने राज छिपाए हुए है तो ये राज भी सही . राय साहब ने चौथा पन्ना इसलिए ही रखा होगा की चाचा का राज कभी कोई समझ नहीं पाये. जब जब राय साहब काम का बहाना करके गाँव से गायब होते है तो जरूर वो अपने भाई की देख रेख ही करते होंगे. राय साहब अक्सर चांदनी रातो में ही गायब होते है .



निशा- पुष्टि करने के लिए हमें इस जगह की निगरानी करनी होगी.



मैं- मैं करूँगा ये काम. चाचा से मिलने को सबसे बेताब मैं हूँ . बहुत सवाल है मेरे उनसे. पर एक चीज खटक रही है अभी भी मुझे की गाड़ी कहाँ छिपाई गयी चाचा की .

निशा- ठाकुर साहब इधर है तो गाडी भी यही कहीं होनी चाहिए. देखते है



हम लोग बहुत बारीकी से निरक्षण करने लगे. ऐसा कुछ भी नहीं था जो असामान्य हो .

“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबकी नजरो में तो हो पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाए ” अंजू के शब्द मेरे जेहन में गूंजने लगे.

“क्या है वो जो आम होकर भी खास है . ” मैंने खुद से कहा.

मेरे ध्यान में आया की कैसे खंडहर में मुझे वो कमरे मिले थे . मैंने वैसे ही कुछ तलाशने का सोचा . एक बार फिर मैं उस कमरे में आया जहाँ कुछ भी नहीं था . अगर इस कमरे में कुछ भी नहीं था तो इसे बनाया क्यों गया . कुछ तो बात जरुर थी . सब कुछ देखने के बाद भी निराशा मुझ पर हावी होने लगी थी .

“मैं सोच रही हूँ की जब सुनैना यहाँ नहीं तो फिर उसकी समाधी यहाँ क्यों बनाई ” निशा ने कहा

मैं- समाधी, निशा, समाधी. ये कोई समाधी नहीं है निशा ये एक छलावा है . जिसमे मैं फंस गया . दिखाने वाले ने जो दिखाया मैं उसे ही सच मान बैठा. दिखाने वाले ने मुझे सोना दिखाया मैं उसमे ही रह गया. जो छिपाया उसे सोने की परत ने देखने ही नहीं दिया.

निशा- क्या .

मैं- आ मेरे साथ .

एक बार फिर हम लोग समाधी के टूटे टुकडो पर थे.

मैं- मैंने इसे गलत हिस्से में खोदा. बनाने वाले या यूँ कहूँ की छिपाने वाले ने बहुत शातिर खेल रचा निशा. जो भी देखता पहले हिस्से को ही देखता , पहले हिस्से में उसे सोना मिलता, धन का लालच निशा, फिर उसे और कुछ सूझता ही नहीं . जबकि खेल यहाँ पर हैं .

मैंने समाधी के पिछले हिस्से को देखा तो ऊपर की नकली परत हटते ही कुछ सीढिया मिली.

निशा- सुरंग

मैं- हाँ सुरंग, अब देखना है की ये खुलती कहाँ है .


निशा ने कमरे में रखी चिमनी उठा ली और हम सीढियों से उतरते गए. अन्दर जाते ही निशा ने चिमनी जला की और मैंने परत वपिस लगा दी. मैं नहीं चाहता था की किसी को मालूम हो हम लोग यहाँ है . एक एक करके निशा सुरंग की मशालो को जलाती गयी और चलते हुए हम लोग ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ की हमने तो क्या किसी ने भी कल्पना की ही नहीं होगी.
घर की दहलीज....
 

Riky007

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अगर ये सीढ़ियां राय साहब के घर पहुंची है तो यहाँ से भाभी नन्दिनी जी व् चाची राय साहब के साथ चुदने को आती होंगी
चंपा के घर पहुंच गए दोनो
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Trivdev ki kahani or is jungle me tin jagh wo bhi samaan duri par kya matlab ho sakta hai iska kabir ka anumaan ghatna kram ke anusaar thik to lagta hai. Jaha nisha hoti hai waha kaam sahi hone lagte hai akela kabir khud me hi uljh jaata hai.

Na jaane kitni hi baar hum yaha aaye lekin sach aaj saamne aaya na jaane kyu man bahot utsuk hai ye jaanne ke liye ki wah surang kaha jaati hai or us jagah me kya hai.. jo bhi honga kabir ke pariwaar se juda honga itna to pakka hai.

Ghupt hai to rahasya chauka dena wala hi honga nahi to gaav se dur is jungle me ye sab karne ki koi khaas hi wajh hongi.. itna samjh me aa raha hai ki tino jagh judi hui hai. Waise humara anumaan hai khandhar par jaayegi surang ya fir kahi nahi...

Aaz kabir sahi jagh dimaag laga raha hai dekhte hai aage kya hota hai jaldi se agla update de do bahot hi romanchak update tha.
 

Riky007

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तीन जगह, तीनों समान दूरी पर।

1 कुआं- चाचा
2 समाधि - ?
3 खंडहर - ?

त्रिदेव....
 

Avinashraj

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मैंने निशा को साथ लिया और हम लोग उस जगह पर आ गए जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. समाधी अभी भी वैसी ही थी जैसा मैं उसे छोड़ कर गया था .

मैं- अगर वो सुनैना की समाधी थी तो ये किसकी समाधी है

निशा- मैं क्या जानू , पर इतना जानती हूँ की सुनैना की समाधी वहां है जहां मैं तुझे लेकर गयी थी चाहे तो तस्दीक कर ले.

मैं- मानता हु तेरी बात तो फिर राय साहब ने झूठ क्यों कहा. क्या छिपा रहे थे वो.

निशा- अब आये है तो ये भी तलाश लेते है , जंगल बड़ा रहस्यमई है , इसकी ख़ामोशी में चीखे है लोगो की . देखते है यहाँ की क्या कहानी है. उम्मीद है ये रात दिलचस्प होगी.

मैंने मुस्कुरा कर देखा उसे. अपनी जुल्फों को चेहरे से हटाते हुए वो भी मुस्कुराई और टूटी समाधी को देखने लगी.

निशा- यहाँ भी धन पड़ा है

मैं- यही तो समझ नही आ रहा की ऐसा कौन हो गया जो खुले आम अपने धन को फेंक गया. अजीब होगा वो सक्श जिसे दुनिया की सबसे मूल्यवान धातु का मोह नहीं.

पता नहीं निशा ने मेरी बात सुनी या नहीं सुनी वो उन दो कमरों की तरफ बढ़ गयी थी . पत्थर उठा कर बिना किसी फ़िक्र के उसने बड़े आराम से दोनों कमरों के ताले तोड़ दिए. उसके पीछे पीछे मैं भी अन्दर आया. कमरे बस कमरे थे , कुछ खास नहीं था वहां . एक कमरा बिलकुल खाली था , दुसरे में एक पलंग था जिसकी चादर बहुत समय से बदली नहीं गयी थी . मैंने निशा को देखा जो गहरी सोच में डूब गयी थी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- इस जगह को समझने की कोशिश कर रही हूँ. इन कमरों का तो नहीं पता पर जहाँ तक मैं समझी हूँ तेरे कुवे और मेरे खंडहर से लगभग समान दुरी है यहाँ की . इस सोने को देखती हूँ , तालाब में पड़े सोने को देखती हूँ तो सोचती हूँ की कोई तो ऐसा होगा जो इन तीनो जगह को बराबर समझता होगा. पर यहाँ लोग आते है खंडहर पर कोई आता नहीं



निशा कुछ कह रही थी मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था .इस जगह से बड़ी आसानी से कुवे पर और निशा के खंडहर पहुंचा जा सकता था तो इस जगह का इस्तेमाल चुदाई के लिए भी सकता था . खंडहर का कमरे में चुदाई हो सकती थी तो यहाँ भी हो सकती थी, और अगर मामला चुदाई का था तो चाचा वो आदमी हो सकता था जो दोनों जगह के बारे में जानता होगा

मैं- ठाकुर जरनैल सिंह वो आदमी हो सकता है निशा जिसका सम्बन्ध तीनो जगह कुवे, यहाँ और खंडहर से हो सकता है. वसीयत का चौथा पन्ना हो न हो चाचा के बारे में ही है. और अगर चाचा तीनो जगह इस्तेमाल करता था तो पिताजी भी करते होंगे क्योंकि आजकल वो भी चाचा की राह पर ही चल दिए है , दोनों भाइयो के बीच झगडा किसी औरत के लिए ही हुआ होगा.

निशा- क्या लगता है तुझे रमा हो सकती है वो औरत .

मैं- चाचा के जीवन म तीन प्रेयसी थी , कविता, सरला और रमा. सबसे जायदा सम्भावना रमा की है . कविता हो न हो उस रात चाचा से मिलने ही आई होगी , पर बदकिस्मती से उसकी हत्या हो गयी.



निशा- पर ठाकुर जरनैल कहाँ है और छिपा है तो क्यों , किसलिए



मैं- कहीं चाचा तो आदमखोर नहीं . जब कविता उस से मिली उस समय शायद उसका रूप बदला हो और उसने कविता को मार दिया हो. सम्भावना बहुत ज्यादा है इस शक की क्योंकि कई बार मैंने भी महसूस किया है की आदमखोर से कोई तो ताल्लुक है मेरा. इसी बीमारी के कारन चाचा को छिप कर रहना पड़ रहा हो .

निशा- ऐसा है तो विचित्र है ये .

मैं- जंगल ने जब इतने राज छिपाए हुए है तो ये राज भी सही . राय साहब ने चौथा पन्ना इसलिए ही रखा होगा की चाचा का राज कभी कोई समझ नहीं पाये. जब जब राय साहब काम का बहाना करके गाँव से गायब होते है तो जरूर वो अपने भाई की देख रेख ही करते होंगे. राय साहब अक्सर चांदनी रातो में ही गायब होते है .



निशा- पुष्टि करने के लिए हमें इस जगह की निगरानी करनी होगी.



मैं- मैं करूँगा ये काम. चाचा से मिलने को सबसे बेताब मैं हूँ . बहुत सवाल है मेरे उनसे. पर एक चीज खटक रही है अभी भी मुझे की गाड़ी कहाँ छिपाई गयी चाचा की .

निशा- ठाकुर साहब इधर है तो गाडी भी यही कहीं होनी चाहिए. देखते है



हम लोग बहुत बारीकी से निरक्षण करने लगे. ऐसा कुछ भी नहीं था जो असामान्य हो .

“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबकी नजरो में तो हो पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाए ” अंजू के शब्द मेरे जेहन में गूंजने लगे.

“क्या है वो जो आम होकर भी खास है . ” मैंने खुद से कहा.

मेरे ध्यान में आया की कैसे खंडहर में मुझे वो कमरे मिले थे . मैंने वैसे ही कुछ तलाशने का सोचा . एक बार फिर मैं उस कमरे में आया जहाँ कुछ भी नहीं था . अगर इस कमरे में कुछ भी नहीं था तो इसे बनाया क्यों गया . कुछ तो बात जरुर थी . सब कुछ देखने के बाद भी निराशा मुझ पर हावी होने लगी थी .

“मैं सोच रही हूँ की जब सुनैना यहाँ नहीं तो फिर उसकी समाधी यहाँ क्यों बनाई ” निशा ने कहा

मैं- समाधी, निशा, समाधी. ये कोई समाधी नहीं है निशा ये एक छलावा है . जिसमे मैं फंस गया . दिखाने वाले ने जो दिखाया मैं उसे ही सच मान बैठा. दिखाने वाले ने मुझे सोना दिखाया मैं उसमे ही रह गया. जो छिपाया उसे सोने की परत ने देखने ही नहीं दिया.

निशा- क्या .

मैं- आ मेरे साथ .

एक बार फिर हम लोग समाधी के टूटे टुकडो पर थे.

मैं- मैंने इसे गलत हिस्से में खोदा. बनाने वाले या यूँ कहूँ की छिपाने वाले ने बहुत शातिर खेल रचा निशा. जो भी देखता पहले हिस्से को ही देखता , पहले हिस्से में उसे सोना मिलता, धन का लालच निशा, फिर उसे और कुछ सूझता ही नहीं . जबकि खेल यहाँ पर हैं .

मैंने समाधी के पिछले हिस्से को देखा तो ऊपर की नकली परत हटते ही कुछ सीढिया मिली.

निशा- सुरंग

मैं- हाँ सुरंग, अब देखना है की ये खुलती कहाँ है .


निशा ने कमरे में रखी चिमनी उठा ली और हम सीढियों से उतरते गए. अन्दर जाते ही निशा ने चिमनी जला की और मैंने परत वपिस लगा दी. मैं नहीं चाहता था की किसी को मालूम हो हम लोग यहाँ है . एक एक करके निशा सुरंग की मशालो को जलाती गयी और चलते हुए हम लोग ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ की हमने तो क्या किसी ने भी कल्पना की ही नहीं होगी.
Nyc update bhai
 
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