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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Tiger 786

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#111

भाभी और मेरे बीच ख़ामोशी छाई हुई थी , पर दिल में तूफान आया हुआ था .

भाभी- जानती हूँ तुझे यकीन नहीं आयेगा पर तेरी दोस्ती के आगे भी दुनिया है कबीर.

मैं- ऐसी क्या वजह थी जिसके लिए मंगू ने परकाश को मारा

भाभी- वजह है कबीर, वजह है राय साहब है वो वजह. प्रकाश राय साहब को ब्लैकमेल कर रहा था. बाद जब हद से आगे बढ़ गयी तो राय साहब ने अपना काँटा निकाल लिया

मैं- और आपको कैसे पता चला ये .

भाभी- मैंने राय साहब और मंगू को बात करते समय सुना था .

मैं- पिताजी के टुकडो पर पलने वाले नौकर ने ही पिताजी को ब्लेकमेल किया पर क्यों

भाभी- इसकी तह तो नहीं निकाल पाई पर प्रकाश श्याद वसीयत के चौथे पन्ने के हक़ की मांग कर रहा था .

मैं- पर चौथे पन्ने में कुछ भी तो नहीं था .

भाभी- कबीर मैं कभी नहीं चाहती थी की तुम इस परिवार के अतीत को देखो पर मैं रोक नहीं पाई. आज मैं बेचैन हूँ , मैं आने वाले कल को देख रही हूँ . और उस कल को मैं देखना नहीं चाहती.

मैं- आने वाला कल खूबसूरत होगा भाभी

भाभी- राय साहब को अपना गुरुर सबसे प्यारा है वो कभी नहीं झुकेंगे

मैं- आसमान भी झुकता है , झुकाने वाला चाहिए.

भाभी- इसी बात से तो मैं डरती हूँ.

मैं- मंगू से आज ही बात करूँगा मैं

भाभी- ये ठीक समय नहीं

मैं- बात करना बेहद जरुरी है , अंजू को मालूम हुआ तो आग लग जाएगी और जलना मुझे पड़ेगा. मंगू की क्या मज़बूरी है की वो राय साहब का पालतू बन गया है ये जानना ही होगा. राय साहब के पापो में उसका भी हाथ है .

मैं- त्रिदेव की कहानी बता क्यों नहीं देती भाभी मुझे तुम

भाभी- तू अपने जीवन की नयी शुरात करने जा रहा है कबीर. मैं एक बार फिर कहूँगी इन बातो को जानने की जिद छोड़ और आगे बढ़. वो चार दीवारे जिन्हें तुम घर कहते हो, वो घर मर चूका है कबीर. उसके जनाजे के बोझ को तुम उठा नहीं पाओगे . सपना देखा है तुमने, उसे पूरा करो. अंजू आदमखोर नहीं है विश्वास करना मेरी बात पर.

भाभी के जाने के बाद भी बहुत देर तक मैं उनकी कही बाते समझने की कोशिश करता रहा . वसीयत का चौथा पन्ना जिसे मैं देख नहीं पाया था राय साहब ने जो बताया वो मैंने मान लिया था .

“तुम अकेले नहीं हो जिसने अपने राज यहाँ छिपाए है , तुमसे पहले और भी थे जिन्होंने अपनी जिन्दगी इस जंगल में जी है ”



“तेरे हिस्से का सच तेरी दहलीज में है ”

मेरा सर इतना भारी हो गया था की मैं पागल ही हो जाता अगर वहां से नहीं चलता तो. जेब में पड़ी चाबी मेरे घर का हिस्सा ही तो थी . चाचा की अमानत जिसका न जाने क्या मोल था . घर आने के बाद मैं नहाया और आंच के पास बैठ गया . अंजू से दो चार बार नजरे मिली तो सही पर बात नहीं हो पाई.

रात का अन्धकार मुझे लील ही जाने वाला था की , सामने खड़ी उसे देख कर बस देखता ही रह गया. डाकन एक बार फिर से मेरी दहलीज पर खड़ी निहार रही थी मुझे. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली एक नजर ऊपर चौबारे पर और उसकी तरफ चल दिया. उसने पीठ मोड़ी और बाहर की तरफ चली की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया .

“अपने घर आई है तू , कब तक बचेगी ” मैंने कहा

निशा-बचना तो तुझे है मेरे सनम . ये जिन्दगी जो तू दांव पर लगाये हुए है ये मेरी अमानत है .

मैं- तो फिर अपनी अमानत को थाम ले बाँहों में , चोरी छिपे क्यों मिलना फिर ज़माने को बता दे की इश्क किया है इस डाकन ने .

निशा- बस तुझे देखना चाहती थी .

मैं- थाम ले फिर इस रात को और देख जी भर के मुझे . आ मेरे साथ इन खुशियों में शामिल हो .

निशा- तू जानता है न मुझे खुशिया रास नहीं आती

मैं- आदत डाल ले तू अब

मैंने निशा को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर लिया. उसकी सांसे मेरी साँसों में उलझने लगी.

निशा- क्या चाहते हो

मैं- तुमसे प्यार करना

निशा- करती तो हूँ तुमसे प्यार

मैं- जताती क्यों नहीं फिर

निशा- आ चल फिर साथ मेरे, यहाँ की हवा ठीक नहीं

मैं- चल फिर.

उसका हाथ थामे मैं उसके साथ चलते हुए खेतो पर आ गया.

निशा- मुझे मालुम हुआ की कल फिर तू भिड़ा उस आदमखोर से

मैं- हाथ लगते लगते रह गया .

निशा- कबीर, अब जब हम दोनों जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर है,तुझे ये समझना होगा की तुझ को अगर कुछ हो गया तो फिर मेरा क्या होगा. पहले कभी मेरा हाल ऐसा ना हुआ पर कुछ दिनों से मैं डरती हूँ तुझे खोने से.

मैं- तू मेरे साथ है तो फिर क्या हो सकता है मुझे . पर मुझे तुझसे कुछ बताना है .

निशा- सुन रही हूँ

मैंने उसे तमाम बाते बताई, वसीयत के चौथे पन्ने का जिक्र भी किया . बहुत देर तक वो सोच में डूबी रही फिर बोली- चल, देखते है सुनैना की समाधी को .

मैं- इस वक्त

निशा- हाँ अभी इसी वक्त.

हम दोनों चल दिए. जंगल में अन्दर घुसते गए. और फिर एक जगह आकर निशा ने गलत राह पकड़ ली.

मैं- इधर कहा जा रही है.

निशा- सुनैना की समाधी नहीं देखनी क्या

मैं- पर वो तो उस रस्ते पर है न

निशा ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- कल के हमले के बाद शायद हिल गए हो तुम या फिर अँधेरे का असर है . आ जल्दी से .

मैं कुछ नही बोला बस उसके पीछे चलता गया . कुछ देर बाद वो एक जगह रुकी जहाँ पर बड़े पत्थरों से एक समाधी बनाई गयी थी जिसे चिना नहीं गया था . कच्चे पत्थर रखे थे एक के ऊपर एक .

निशा- तो आ गए हम

मैं- निशा ये सुनैना की समाधी नहीं है

निशा- क्या बोल रहा है तू कबीर. बंजारों की समाधी का नहीं मालूम क्या तुझे कच्ची चिनाई वो ही तो करते है . और फिर मुझे नहीं मालूम होगा क्या इस जगह के बारे में

मैं- अगर ये सुनैना की समाधी है तो फिर वो जगह क्या है .

निशा- कौन सी जगह

मैं- वसीयत के चौथे पन्ने का सच वही छिपा है निशा, हमें अभी के अभी वहां पर जाना होगा.
Jitne bi readers hai unki soch ko salaam yaar kaya kaya sochte ho Kamal hai mai to pehle kehta hu jab bi fauji bhai ya dr.chutiya ki kahani padhni ho to dimagh ko ghar pe rakh aao.bas story ko injoy karo. jo hoga manzure khudha hoga.fauji bhai ❤️❤️💯💯💯💯💯💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥
 
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Lutgaya

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HalfbludPrince अपडेट बढा दो मित्र अब तो कहानी पूरे शवाब पर है। इन्तजार करना काफी मुश्किल है।
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Sone ki gufa jaha anginat sona hai waah lekin ye kiska ho sakta hai gaav me jo bhi hua atit me ho na ho isi ki wajah se hua hai sone ki laalch me hua hai khair chacha ki maujudgi ka sabot bhi mil gaya lekin filhaal wo kaha hai ye abhi tak nahi pata chala.

Kul milkar tin jagah sona hai smadhi me samadhi ki gufa me or paani ke niche lekin nisha ne kaha sona shrapit hai iska kya matlab samjhe hum, khair dekhte hai bank se kya jaankari milti hai ye raat bahut se khulase karke gayi hai.
 

Mehup

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#113

आँखे जो देख रही थी , समझ नही आ रहा था की आँखे झूठ कह रही या दिल नहीं मान रहा था . जंगल ने जो छिपाया हुआ था कोई सोच भी नहीं सकता था. हमारी आँखे मशाल की रौशनी में उस पीली धातु को देख रही थी जिसके पीछे इन्सान पागल हो जाये. धरती ने अपनी कोख में इतना सोना छिपाया हुआ था जो इस जन्म में तो क्या कई जन्म तक गिना नहीं जा सके. हम धरती के निचे सोने की खान में थे.

“तो ये है जंगल का वो सच जो सबसे छिपाया गया है. जो भी हो रहा है इसके लिए ही हो रहा है. प्रकाश इस सच को जान गया होगा जिसकी कीमत उसने जान देकर चुकाई. अंजू इस जगह की तलाश में है ” मैंने कहा

निशा- सोना रक्त से शापित है. कोई ताज्जुब नहीं इसे पाने की कोशिश करने वाले को जान देनी पड़ी.

मैं- ये सोना राय साहब का भी नहीं हो सकता , कब्ज़ा है उनका बस .

निशा- अब क्या

मैं- दूसरा मुहाना देखते है कहाँ खुलेगा.

खान में चलते चलते हम आगे बढ़ने लगे. कुछ देर बाद ऊपर जाने को वैसी ही सीढिया थी जैसी की हम समाधी से होकर आये थे. निशा ने ऊपर की परत को सरकाने की कोशिश की तो हमारे लिए एक आश्चर्य और था.

मैं क्या हुआ

निशा- ताला लगा है इस पर कुछ दे मुझे तोड़ने के लिए

तभी मुझे कुछ ध्यान आया . मैंने जेब से चाबी निकाली और निशा को देते हुए बोला- ये चाबी लगा जरा.

और किस्मत देखो. चाबी घूम गयी . और साथ में मेरी आँखे भी . तो ठाकुर जरनैल सिंह का ताला था ये . ताला खोलते ही निशा आगे उस जगह में घुस गयी. मशाल की रौशनी में देखा की वो एक बड़ा कमरा था . कमरा ही कहना उचित था उसे. खान के किसी हिस्से को काट कर बनाया गया . जिसमे दो पलंग पड़े थे. छोटा मोटा जरुरत का समान था जिस पर मिटटी ने कब्ज़ा कर लिया था. पलंग खस्ताहाल थे. साफ़ मालूम होता था की बरसों से यहाँ किसी ने दस्तक नहीं दी .

निशा ने आस-पास तलाशी लेनी शुरू की , उसे वो ही नंगी तस्वीरों वाली किताबे मिली जिनके कागज वक्त की मार के आगे पीले पड़ चुके थे. पर उसका ध्यान किताबो से जायदा उस छोटे बक्से पर था जो गहनों से भरा था .

मैंने उसके हाथ से बक्सा लिया और गौर से देखने लगा. मेरा दिल इतनी जोर से धडक रहा था की पसलियों में दर्द होने लगा. मैं बहुत कुछ समझ रहा था . ये गहने , अगर मैं सही समझा था तो ये वो गहने होने चाहिए थे जो चाचा ने मलिकपुर के सुनार से बनवाये थे. इन गहनों का यूँ लावारिस पड़े होना बहुत कुछ ब्यान करता था .

चाचा और राय साहब के बिच जिस झगडे की बात मुझे सरला ने बताई थी वो झगडा कभी भी चूत के लिए नहीं हुआ था . वो झगड़ा हुआ था इस सोने के लिए.

“कबीर इधर आ ” निशा की आवाज ने मेरा ध्यान तोडा मैं उसके पास गया. दो पल में ही हम लोग ऐसी जगह खड़े थे जहाँ से मेरा कुवा थोड़ी ही देर थे. हम लोग खेतो पर थे. खेतो पर एक तरफ घने पेड़ो के पास. ये एक गुप्त रास्ता था . आज मुझे समझ आया की क्यों पिताजी ने मेरे बार बार कहने पर भी इन पेड़ो को कटवाया क्यों नहीं था .

प्रकाश , अंजू को इस गुप्त रस्ते की तलाश थी . इस गुप्त रस्ते को वो लोग कभी खोज ही नहीं पाये थे .

निशा- ठाकुर जरनैल सिंह ही वो आदमी है जो तीनो जगह से जुड़ा है. कमरे में मिले समान पुष्टि करते है इस बात की .

मैं- नहीं , चाचा कुवे और समाधी से तो जुड़ा है पर खंडहर से नहीं .

निशा- क्यों

मैं- समझ , चाचा के पास जब यहाँ इतना सोना पड़ा था तो वो सोना पानी में और उस कमरे में क्यों छिपाएगा . दूसरी बात रमा और सरला ने कभी नहीं कहा की चाचा उनको खंडहर में ले जाता था . हमेशा ये ही कहा की चाचा हमेशा उनको कुवे पर ही लाता था , और चाचा इतना तो समझदार रहा ही होगा की वो इस राज को अपने सीने में ही दबाये रखता. इतने बड़े खजाने का जिक्र करना मुश्किल होता किसी के लिए भी .

निशा- तो फिर खंडहर पर सोना कैसे पहुंचा.

मैं- चोरी मेरी जान, किसी ने यहाँ से चोरी की . सोने को खंडहर में ले गया. और खास बात ये की ये काम एक बार में नहीं किया गया. बार बार किया गया.

निशा- हो सकता है पर गौर करने वाली बात ये भी है की अय्याशी का समान इधर भी उधर भी है . ठाकुर साहब रसिया थे हो सकता है की वो ही अपने भाई की पीठ में छुरा घोंप रहे हो.

मैं- हो सकता है पर फिर चाचा की रांडो को खंडहर की जगह क्यों नहीं मालूम

निशा- सम्भावना कबीर, हो सकता है की झगडे के बाद चाचा ने अपनी राह अलग चुन ली हो . उन्होंने अपना ठिकाना खंडहर में बनाया हो पर इस से पहले की वो अपनी दोस्तों को वहां ले जा पाते बदकिस्मती से वो गायब हो गए.

मैं- मुझे लगता है की राय साहब का हाथ है चाचा के गायब होने में

निशा- हालात देखते हुए शक कर सकते है

मैं- बस चाचा की गाडी मिल जाये तो बात बन जाये

निशा- सुन एक काम कर. कल तू बैंक जा , वहां मालूम कर चाचा ने अपने खाते से कब कब लेन देन कियाहै . आदमी को पैसे की जरूरत तो पड़ेगी ही . अगर इतने दिन से वो सोना लेने नहीं आया तो इसका मतलब है की उसने पहले ही अपना जुगाड़ कर लिया होगा.

मैं- कल देखता हूँ .

निशा- किसी को भी भनक नहीं होनि चाहिए की हम जानते है इस राज को . हम यहाँ आने वाले को रंगे हाथ पकड़ेंगे. तभी कोई बात बनेगी.

मैं- सही कहा तूने .

निशा ने आसमान की तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है

मैं- मत जा

निशा- कुछ दिनों की बात है फिर तो तेरे साथ ही रहना है न .


उसके जाने के बाद मैंने कुवे पर बने कमरे का दरवाजा खोला और बिस्तर में घुस गया. सुबह होने में थोड़ी ही देर थी. पर मैं आने वाले तूफान को समझ नहीं पा रहा था .
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