#122
“तो आदमखोर की आड़ में इनका अलग ही नाटक चल रहा है , ”निशा ने मंगू के छिपाए हुए बक्से को उठा कर खोलते हुए कहा .
मैं- न जाने किस लालच की पट्टी पड़ी है मंगू की आँखों में , उसे बिलकुल नहीं करना चाहिए था ये, गलती तो मेरी भी है उसे तभी रोकना चाहिए था जब मुझे पहली बार पता चला था की वो क्या कर रहा है .
निशा- उस से पूछ तो लो क्यों वो नकली आदमखोर बन कर घूम रहा था . आदमखोर के खौफ को हद से ज्यादा मंगू ने बढ़ा दिया है . हमें मालूम करना ही होगा की उसका क्या उद्देश्य है .
मैंने निशा से उस नकली आदमखोर की खाल को लिया और उस पर आंच लगा दी. धू धू करके जलता धुआ मेरे सीने की आग को और भड़का गया.
निशा- वक्त आ गया है कबीर, तुम्हे ऊँगली टेढ़ी करनी होगी. समय रिश्ते-नातो का लिहाज करने का नहीं रह गया है.
मैं- सही कहती हो सरकार. फिलहाल मुझे उस आदमखोर की तलाश करनी है , तुम पर हाथ डाल कर उसने ठीक नहीं किया.
निशा- बात सिर्फ मेरी नहीं है, बात चंपा की भी है जिसके साथ अन्याय हो गया .
तमाम बातो के बीच मुझे भैया की गाड़ी खटक रही थी , भैया को ये गाडी बहुत ही प्यारी थी . इसे अचानक से यहाँ छोड़ कर जाना , हो न हो भैया जंगल में ही होंगे. और इस वक्त जंगल में होने का सिर्फ एक ही मतलब हो सकता था . कहीं ना कहीं मेरा शक यकीन में बदलता जा रहा था की भैया ही वो आदमखोर तो नहीं.
मैं- निशा , मैं तुमको छोड़ आता हूँ
निशा- तुम्हे अकेला छोड़ कर जाउंगी कैसे सोचा तुमने
मैं- तुम्हे थोडा आराम करना चाहिए . हम दिन में मिलेंगे .
निशा- मैं कही नहीं जाने वाली कबीर.
मैं- बात को समझो तुम.
निशा- इस जंगल को मैं भी उतना ही जानती हूँ कबीर , जितना की तुम. और हम दोनों फिलहाल एक ही चीज को तलाश रहे है .
मैं जानता था की वो सच कह रही है पर मेरे मन में ये भावना जोर मार रही थी की भैया ही वो आदमखोर ना हो . मैं निशा के सामने ये बात नहीं लाना चाहता था . कम से कम इस वक्त तो नहीं . इसलिए मैं उसे भेजना चाहता था .
निशा- ये एक कहानी नहीं है कबीर, ये दो कहानिया है . एक कहानी सोने की और दूसरी उस आदमखोर की . हो सकता है की दोनों कहानिया एक दुसरे से जुडी हो या अलग हो . पर हमें इस गुत्थी को सुलझाने के लिए दो दिशाओ का सहारा लेना पड़ेगा.
मैं- समझ चूका हूँ इस बात को . हो सकता है की कविता को आदमखोर ने नहीं मंगू ने मारा हो .
निशा- अचानक से बिजली का कटना और ठीक उसी समय पर हमला होना . इतना अचूक हमला योजना बना कर ही हो सकता है .
मैं- इसी बात को समझ नहीं पा रहा हूँ मैं निशा
निशा- क्यों
मैं- क्योंकि टेंट में जो था वो असली आदमखोर था , उसकी ताकत को . उसकी गंध को पहचाना है मैंने.
निशा- ऐसा भी तो हो सकता है की टेंट में असली वाला हो और मंडप में मंगू ने ये काण्ड कर दिया हो .
निशा की बात सुनकर मुझे वो पल याद आया जब रमा और मंगू आपस में खुसरपुसर कर रहे थे .
निशा ने मेरा हाथ थामा और बोली- जानती हूँ मन पर बहुत बोझ है . इसे मुझे दे दो. तुम अकेले नहीं हो इस सफ़र में . थोडा आराम कर लो
मैं- आराम हराम हो गया मेरी सरकार. किस मुह से घर जाऊंगा वापिस. सोचा तो ये था की चंपा को विदा करते ही तुम्हे इस घर ले आऊंगा पर देखो हालात क्या हो गए है
निशा- मैं तुमसे कहाँ दूर हु कबीर. हम दोनों संभाल लेंगे सब कुछ भरोसा रखो
मैं- तुम पर ही तो भरोसा है
निशा ने आगे बढ़ कर मेरा माथा चूमा .इस से पहले की मैं उसे कुछ कह पाता, आसमान उस चिंघाड़ से गूँज उठा . एक पल के लिए हम दोनों हैरान रह गये.
निशा-यही कहीं है वो
हम सामने खेतो पर आये.
निशा- जंगल में
हम दोनों लगातार आती आवाजो की दिशा में दौड़ पड़े. चांदनी रात की वजह से दूर तक देखना आसान था , भैया की दी हुई पुडिया ने बहुत काम किया था मेरे लिए . पर हमें ये समझ नहीं आ रहा था की असल में आवाजे किधर से आ रही थी , आदमखोर लगातार चिंघाड़ते हुए जंगल में दौड़ रहा था .
मैं- समझ नही आ रहा , क्या हो रहा है ये . किस किस्म का खेल खेल रहा है वो
निशा- खेल नहीं है, लगता है की तकलीफ में है वो . कहीं तुमने घायल तो नहीं कर दिया उसे.
मैं- पक्के तौर पर नहीं कह सकता इस बारे में
निशा- चिंघाड़ से तो ऐसा ही प्रतीत होता है .
इस बार आवाज ऐसे लगी की बहुत पास से आई हो . हम पेड़ो के दाये से दौड़ते हुए संकरे रस्ते से थोडा और अन्दर की तरफ गए उस वो ही जगह थी जहाँ पर मैंने राय साहब को आदमखोर होने का शक किया था . उस बड़े से पत्थर के पार जाते ही मोड़ पर पहुचे ही थे की तभी निशा किसी से टकरा गयी और जब सामने वाले के चेहरे पर मेरी नजर पड़ी तो होंठो से बस इतना निकला, “तुम . तो तुम ही हो वो..................”