Riky007
उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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कम से कम अंत ही बता दीजिए उसका, असली खलनायक कौन है उसमे?उसकी नियति मे यही लिखा है
कम से कम अंत ही बता दीजिए उसका, असली खलनायक कौन है उसमे?उसकी नियति मे यही लिखा है
छज्जे वाली??हाँ लेकिन वो छज्जे वाली कहानी ऐसी थी की दिल चाहता रहा खत्म ही ना हो और इस कहानी में तो लग रहा था की अब खत्म तो अब खत्म लेकिन ये तो अभी तक फर्राटे से दौड़ रही है
नही हो सकता है, लॉजिकली पॉसिबल है, शारीरिक नही मानसिक रूप से संभव है ऐसा होना।कभी-कभी कहानियो मे लाजिक को इग्नोर करना चाहिए, लाजिक से देखे तो आदम खोर का किरदार ही नहीं होता
एक सरला ही क्या तीनों वैसी ही थी, कविता ने भी अपने पति को मरवाया, रमा ने तो पति के साथ बेटी की बलि भी ले ली।Bahot majedaar scene tha mangu ko maar khata dekh maza aa raha tha kabir ko taklif isiliye hoti hai kyuki wah har kisi ko dil se apna samjh leta hai or unka asli chahra saamne aane par taklif to hoti hi hai.. waise ye sarla bina kapdo ke hi lad rahi thi kya
Hawas ki aag ne itna andha kar diya tha sarla ko ki usne apne hi pati ko maar daala, ye tino aurat ne apne husn ke jalwe dikha kar na jaane kya kya barbaad kar diya, aaj iske saath to kal uske saath, waykti ki buri soch or karm hi use le dubte hai..
Bahot badiya update tha gussa to itna aa raha tha kya hi kahe, sarla ko yu hi jaane mat dena, nisha ki yaad satye use bulao ab, intzaar rahega...
मुझे तो पूरी बिसात निशा की बिछाई लग रही है, उसकी सच्चाई कबीर ने बस उसकी जुबानी ही जानी है, कही से क्रॉस चेक नही किया, वैसे भी प्रेम में पड़ा आशिक है, आंख मूंद के विश्वास करेगा।निशा......
निशा के अतीत का एक शब्द भी नंदिनी ने नहीं बताया... ना अभिमानु ने
जबकि दोनों ही उसके बारे में सबकुछ जानते हैं
और जानते हैं... कबीर के पिताजी.... राय साहब
निशा राय साहब की सरपरस्ती में नहीं... राय साहब निशा की सरपरस्ती में हैं... इसीलिए अब तक जिन्दा रहकर बिसात पर मोहरे बिछाकर खिलाड़ी बने हुये हैं
जैसे 'दिल अपना प्रीत पराई' की जस्सी मोहरा ना होते हुये भी राणा हुकुम सिंह की ना सिर्फ पूरी बिसात... बल्कि पूरे खेल की सरपरस्त थी...
मोह... मोह, माया से भी ज्यादा खतरनाक है... ये जिसे होता है ना सिर्फ उसे, जिससे होता है ना सिर्फ उसे... बल्कि इनसे जुड़े हर किसी को बर्बाद कर देता है...
प्यार में सिर्फ आँखें मुंदी रहती हैं... मोह में तो हमेशा के लिये अन्धे हो जाते हैं
अब फौजी भाई कुछ भी लिख दें यहाँ लेकिन इस सच को वो जानते भी हैं, ('द डार्क साइड सागा' में देखें) भुगत भी चुके हैं और यहाँ एक कमेन्ट में मान भी चुके हैं
जो जानते हुये भी चुप रहकर गलत होने दे उसके बारे में हमारे राष्ट्रकवि 'दिनकर' जी ने कहा है
"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध!
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी अपराध!!"
इस कहानी में जितने शुद्ध रूप से विलेन थे वो या तो मर चुके हैं या फिर अभी कहानी से दूर हैं, बाकी आप जिसकी भी बात कर रही हैं, उसका कोई मुनासिब कारण होगा इस सबके पीछे।आप अतीत के बारे में सिर्फ उतना ही जानते हैं,
जितना आपको बताया गया
जरूरी नही राय साहब विलेन हो,
कोई बात नही भाई, बर्फ गिरी है तो धूप भी निकलेगी एक दिन, हम वक्त का इंतजार करेंगेबर्फ गिरने लगी है ये है परेशानी
Na bhai na aisa mat karna. Warna Kabir or hum sabka dil toot jayega.निशा हुई तो फिर मायने ही बदल जाएंगे कहानी के, जैसा मैंने कहा अंत को रक्त से लिखना है तो ये विचार बेमिसाल है
वो नियति है।Na bhai na aisa mat karna. Warna Kabir or hum sabka dil toot jayega.