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मन में मेरे बहुत सवाल थे.मैंने पिताजी को देखा जो आराम से अपने कमरे में बैठ कर जाम पीते हुए अपना काम कर रहे थे. मैं चाची के पास गया तो पाया की वो खाने की तयारी कर रही थी . सफ़ेद लहंगे और नीले ब्लाउज में बड़ी कड़क लग रही थी वो. चाची ने ओढनी नहीं ओढ़ी हुई थी तो तंग ब्लाउज में मचलती छातिया और लहंगे में उनकी मदमस्त जांघे , फूली हुई चूत की वी शेप का उभार साफ दिख रहा था . मैं अपने लंड को खड़ा होने से रोक नहीं पाया.
मैं चाची के पास गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया
चाची- क्या करता है . रात पड़ी है न ये करने के लिए
मैं- आज बड़ी गंडास लग रही हो रुका नहीं जा रहा
चाची- ऐसा क्या है आज
मैंने चाची की चूची को मसला और बोला- इस जोबन से पूछो जो दिन दिन हाहाकारी हुए जा रहा है . ये नितम्ब जब तुम चलती हो तो न कसम से न जाने गाँव के कितने दिल सीने से बाहर आकर गिरजाते होंगे.
चाची- इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं ये मस्का मत लगा और बता क्या बात है
मैं- बात क्या होगी बस लेने का मन है मेरा.
चाची- तो मैं कौन सा मना कर रही हूँ . सोयेंगे तब कर लेना
मैं- थी है पर एक बार लहंगा उठाओ मुझे देखनी है
चाची- तू भी न
चाची ने अपना लहंगा पेट तक उठाया . गोरी जांघो के बिच दबी चाची की काले बालो से भरी मदमस्त चूत . उफ्फ्फ मैं सच में ही चाची को हद से जायदा पसंद करने लगा था. मैं उसी पल चूत की एक पप्पी लेना चाहता था पर चाची ने मुझे मौका नहीं दिया. तभी बाहर से मंगू की आवाज आई तो मै बाहर की तरफ चला गया .
मैं- क्या हुआ मंगू
मंगू- वो अभिमानु भैया कहके गए थे की कुवे पर मिले उनसे तो चल
मैं- मुझसे तो कुछ नहीं कहा भैया ने
मंगू- उनसे ही पूछ लेना चल तो सही
मैं- साइकिल निकाल मैं गर्म कपडे पहन लू जरा और हाँ तू चलाएगा साइकिल
मंगू- ठीक है जल्दी आना
भैया ने रात में हमें क्यों बुलाया था खेतो पर सोचने वाली बात थी . खैर, हम दोनों चल दिए कुवे की तरफ .
मंगू- लगता है की आजकल खुराक कुछ ज्यादा खाई जा रही है भारी हो गया है भाई तू
मैं- अच्छा,
मंगू- खिंच नहीं रही साइकिल
मैं- बहाने मत बना
बाते करते हुए हम लोग पहुँच गए देखा की भैया की गाड़ी पहले से खड़ी थी पगडण्डी के पास. हम लोग कुवे पर पहुंचे तो देखा की भैया ने अलाव जलाया हुआ था और बोतल भी खोल रखी थी .
मैं- महफ़िल लगाई हुई है आज तो
भैया-अरे कुछ नहीं, ठण्ड में इतनी तो चाहिए ही
मंगू- सही कहा भैया
मंगू ने बिना की शर्म के बोतल उठाई और अपना जुगाड़ करने लगा.
मैं- यहाँ क्यों बुलाया
भैया- घर पर पिताजी है उनको मालूम होगा तो फिर गुस्सा करेंगे
मैं- सो तो है
मैंने कुछ मूंगफली उठाई और खाने लगा.
भैया- मैंने न कुछ जमीन और खरीदने का सोचा है
मंगू- ये तो बहुत बढ़िया विचार है भैया
भैया- पर सवाल ये है की हम उस जमीन का करेंगे क्या . खेती तो हम पहले ही बहुत बड़े रकबे पर कर रहे है .
मैं- वो आप सोचो . मैं और मंगू तो किसानी करते आये है किसानी ही करेंगे .
मंगू ने भी हाँ में हाँ मिलाई .
भैया- मैंने पिताजी से बात की थी उनका विचार है की चीनी का कारखाना लगा ले हम
मैं- भैया, मजाक के लिए हम लोग ही मिले क्या आपको . चीनी के गन्ना चाहिए और हम उगाते है सरसों. गेहूं . सब्जिया. अपने इलाके में दूर दूर तक गन्ना उगा है ऐसा सुना कभी क्या .
भैया- तुम्हारी बात सही है पर हमें कृषि को नए मुकाम पर ले जाना होगा . मैंने क्रषि अधिकारी से मुलाकात की थी . वो कहता है की मेहनत की जाये तो गन्ने की फसल उग सकती है .सोचो चीनी के लिए खुद का गन्ना होगा तो हमें कितना फायदा होगा. मुझे तुम दोनों पर पूरा भरोसा है . इस बार थोड़ी जमीन पर गन्ना बो कर देखते है . क्या बोलते हो
मंगू- विचार तो ठीक है भैया
भैया ने पेग दिया मुझे .
मैं- करेंगे कोशिश .
बहुत देर तक हम लोग ऐसे ही बैठे अपनी अपनी बाते करते रहे योजना बनाते रहे और फिर घर की तरफ लौट गए. दरवाजा बंद करते ही मैंने चाची को अपनी बाँहों में भर लिया एक तो वो बड़ी खूबसूरत लग रही थी दूजा मुझे भी सुरूर था .
चाची- दारू पीकर आया तू
मैं- भैया बोले ठण्ड में जरुरी होती है
चाची- ये अभिमानु भी न तुझे बिगाड़ ही देगा
मैं- तुम सुधार क्यों नहीं देती मुझे
मैंने चाची के नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा.
चाची- बल्ब बुझा दे.
मैं- रहने दे रौशनी , इस जिस्म का कभी तो दीदार करने दो मुझे
मैंने दो पल में ही चाची पूरी नंगी कर दिया और खुद के कपड़े भी उतार फेंके. चाची के लाल होंठ अपनी मिठास मेरे मुह में घोलने लगे थे. पांच फूट की गदराई औरत मेरे सीने से लगी मुझे वो सपना दिखा रही थी जिसमे मजा ही मजा था. नितम्बो से फिसलते हुए मेरे हाथ चाची की गुदा पर रगड़ खाने लगे थे. इस हरकत से चाची के बदन में हिलोरे उठने लगी थी .
उसका हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया और वो मुट्ठी में लेके उसे हिलाने लगी. सहलाने लगी. मेरी जीभ से रगड़ खाती चाची की जीभ वो आनंद दे रही थी जो शब्दों में लिखा ही नहीं जा सकता. मैंने चाची को पलंग के किनारे झुकाया और चौड़ी गांड को फैलाते हुए निचे बैठ कर चाची की रसीली चूत पर अपने होंठ टिका दिए.
“ओह्ह कबीर ” बड़ी मुश्किल से चाची बस इतना ही कह पाई . अगले ही पल मेरी जीभ का कुछ हिस्सा चाची की चूत में घुस चूका था. नमकीन रस का स्वाद जैसे ही मुझे लगा. कसम से मैं पिघलने लगा. जब तक चाची की चूत का रस मेरे चेहरे को भिगो नहीं गया मैं चूत को पीता ही रहा.
मैं चाची के पास गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया
चाची- क्या करता है . रात पड़ी है न ये करने के लिए
मैं- आज बड़ी गंडास लग रही हो रुका नहीं जा रहा
चाची- ऐसा क्या है आज
मैंने चाची की चूची को मसला और बोला- इस जोबन से पूछो जो दिन दिन हाहाकारी हुए जा रहा है . ये नितम्ब जब तुम चलती हो तो न कसम से न जाने गाँव के कितने दिल सीने से बाहर आकर गिरजाते होंगे.
चाची- इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं ये मस्का मत लगा और बता क्या बात है
मैं- बात क्या होगी बस लेने का मन है मेरा.
चाची- तो मैं कौन सा मना कर रही हूँ . सोयेंगे तब कर लेना
मैं- थी है पर एक बार लहंगा उठाओ मुझे देखनी है
चाची- तू भी न
चाची ने अपना लहंगा पेट तक उठाया . गोरी जांघो के बिच दबी चाची की काले बालो से भरी मदमस्त चूत . उफ्फ्फ मैं सच में ही चाची को हद से जायदा पसंद करने लगा था. मैं उसी पल चूत की एक पप्पी लेना चाहता था पर चाची ने मुझे मौका नहीं दिया. तभी बाहर से मंगू की आवाज आई तो मै बाहर की तरफ चला गया .
मैं- क्या हुआ मंगू
मंगू- वो अभिमानु भैया कहके गए थे की कुवे पर मिले उनसे तो चल
मैं- मुझसे तो कुछ नहीं कहा भैया ने
मंगू- उनसे ही पूछ लेना चल तो सही
मैं- साइकिल निकाल मैं गर्म कपडे पहन लू जरा और हाँ तू चलाएगा साइकिल
मंगू- ठीक है जल्दी आना
भैया ने रात में हमें क्यों बुलाया था खेतो पर सोचने वाली बात थी . खैर, हम दोनों चल दिए कुवे की तरफ .
मंगू- लगता है की आजकल खुराक कुछ ज्यादा खाई जा रही है भारी हो गया है भाई तू
मैं- अच्छा,
मंगू- खिंच नहीं रही साइकिल
मैं- बहाने मत बना
बाते करते हुए हम लोग पहुँच गए देखा की भैया की गाड़ी पहले से खड़ी थी पगडण्डी के पास. हम लोग कुवे पर पहुंचे तो देखा की भैया ने अलाव जलाया हुआ था और बोतल भी खोल रखी थी .
मैं- महफ़िल लगाई हुई है आज तो
भैया-अरे कुछ नहीं, ठण्ड में इतनी तो चाहिए ही
मंगू- सही कहा भैया
मंगू ने बिना की शर्म के बोतल उठाई और अपना जुगाड़ करने लगा.
मैं- यहाँ क्यों बुलाया
भैया- घर पर पिताजी है उनको मालूम होगा तो फिर गुस्सा करेंगे
मैं- सो तो है
मैंने कुछ मूंगफली उठाई और खाने लगा.
भैया- मैंने न कुछ जमीन और खरीदने का सोचा है
मंगू- ये तो बहुत बढ़िया विचार है भैया
भैया- पर सवाल ये है की हम उस जमीन का करेंगे क्या . खेती तो हम पहले ही बहुत बड़े रकबे पर कर रहे है .
मैं- वो आप सोचो . मैं और मंगू तो किसानी करते आये है किसानी ही करेंगे .
मंगू ने भी हाँ में हाँ मिलाई .
भैया- मैंने पिताजी से बात की थी उनका विचार है की चीनी का कारखाना लगा ले हम
मैं- भैया, मजाक के लिए हम लोग ही मिले क्या आपको . चीनी के गन्ना चाहिए और हम उगाते है सरसों. गेहूं . सब्जिया. अपने इलाके में दूर दूर तक गन्ना उगा है ऐसा सुना कभी क्या .
भैया- तुम्हारी बात सही है पर हमें कृषि को नए मुकाम पर ले जाना होगा . मैंने क्रषि अधिकारी से मुलाकात की थी . वो कहता है की मेहनत की जाये तो गन्ने की फसल उग सकती है .सोचो चीनी के लिए खुद का गन्ना होगा तो हमें कितना फायदा होगा. मुझे तुम दोनों पर पूरा भरोसा है . इस बार थोड़ी जमीन पर गन्ना बो कर देखते है . क्या बोलते हो
मंगू- विचार तो ठीक है भैया
भैया ने पेग दिया मुझे .
मैं- करेंगे कोशिश .
बहुत देर तक हम लोग ऐसे ही बैठे अपनी अपनी बाते करते रहे योजना बनाते रहे और फिर घर की तरफ लौट गए. दरवाजा बंद करते ही मैंने चाची को अपनी बाँहों में भर लिया एक तो वो बड़ी खूबसूरत लग रही थी दूजा मुझे भी सुरूर था .
चाची- दारू पीकर आया तू
मैं- भैया बोले ठण्ड में जरुरी होती है
चाची- ये अभिमानु भी न तुझे बिगाड़ ही देगा
मैं- तुम सुधार क्यों नहीं देती मुझे
मैंने चाची के नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा.
चाची- बल्ब बुझा दे.
मैं- रहने दे रौशनी , इस जिस्म का कभी तो दीदार करने दो मुझे
मैंने दो पल में ही चाची पूरी नंगी कर दिया और खुद के कपड़े भी उतार फेंके. चाची के लाल होंठ अपनी मिठास मेरे मुह में घोलने लगे थे. पांच फूट की गदराई औरत मेरे सीने से लगी मुझे वो सपना दिखा रही थी जिसमे मजा ही मजा था. नितम्बो से फिसलते हुए मेरे हाथ चाची की गुदा पर रगड़ खाने लगे थे. इस हरकत से चाची के बदन में हिलोरे उठने लगी थी .
उसका हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया और वो मुट्ठी में लेके उसे हिलाने लगी. सहलाने लगी. मेरी जीभ से रगड़ खाती चाची की जीभ वो आनंद दे रही थी जो शब्दों में लिखा ही नहीं जा सकता. मैंने चाची को पलंग के किनारे झुकाया और चौड़ी गांड को फैलाते हुए निचे बैठ कर चाची की रसीली चूत पर अपने होंठ टिका दिए.
“ओह्ह कबीर ” बड़ी मुश्किल से चाची बस इतना ही कह पाई . अगले ही पल मेरी जीभ का कुछ हिस्सा चाची की चूत में घुस चूका था. नमकीन रस का स्वाद जैसे ही मुझे लगा. कसम से मैं पिघलने लगा. जब तक चाची की चूत का रस मेरे चेहरे को भिगो नहीं गया मैं चूत को पीता ही रहा.