कहानी का मूल मंत्र जंगल में है सही है लेकिन कहानी के सस्पेक्ट विल्लियंस या कहो खलनायिका और खलनायिकाओं का क्या उनको सज़ा के बजाये मज़ा मिल रहा है जैसे की हरामी प्रकाश की गाँड टूटने के बजाये उसको गाँड तुड़वाने वाली अंजू मिळवा दी
ये तो हद हो गई कुछ ऐसा ही मंगु चंपा के साथ हो रहा है ऐसे ही कोई हूर परी उस हरामी सूरजभान के साथ होगा पहले से ले के आखरी तक सब कबीर के लिए पहेली हैं कबीर से खेल रहे हैं लेकिन कबीर किसी के लिए भी पहेली नहीं है बस इसका जोर पहले चाची पर चला बाद में सरला पर और रमा ने तो इसे घास भी नही डाली बल्कि वो बेहया तो वैध के सूखे बूढ़े लंड से चुदती रही उपर्लिखित बातों का पाठकों के मनोबल पर बहुत घातक असर हो रहा है