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Non-Erotic दूध का कर्ज।

Manju143

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अब आते से असल कहानी मैं।


अनामिका जब कमरे पहुंची तो सामने ८२ साल का बुड्ढा था। वही बुड्ढा मेवा था। मेवा ने जब अनामिका को देखा तो मुस्कुराते हुए बोला "आ गई तुम ? इतने देर बाद ?"

अनामिका अपने ब्लाउज का हुक खोलते हुए bra में बुड्ढे के बगल लेटी। बूढ़े की तरफ करवट बदली और उसे अपने बाहों में भरते हुए बोला "अब आराम से अपना पेट भरो। वैसे भी काफी भूख लगी होगी ना ?"

"हां बहुत भूख लगी है।" मेवा स्तनपान करने लगा।

अनामिका नींद में सो गई और मेवा दूध पीकर सीधा लेट गया। कुछ देर बाद उड़ी तो अनामिका ने साड़ी ठीक किया और मेवा के बगल सो गई। देखते देखते शाम के 5 बजे और अंधेरा होने लगा। ठंडी का मौसम था। चंपा ने दरवाजा खोला और अनामिका को उठाकर बोली "चलिए चाय पी लेते है।"

अनामिका अंगड़ाई लेते हुए बाहर आई और ठंडी का लुफ्त उठाते हुए बाहर गरम चाय के साथ चंपा से बात कर रही थी।

"तो अनामिका तुम खाना अपने घर खाओगी या यहां पर ?"

"अरे हां बातो बातो में भूल गई। आज रात मैं यहां रहूंगी। और कल से २ दिन की छुट्टी है।"

"ठीक है तो फिर आप कहां सोएंगी ?"

"में मेवा के साथ सोनेवाली हूं। रात को दूध भी पी लेगा।"

"काफी थकी हुई लग रही है आप।" चंपा ने कहा।

"हां। चलो चंपा मैं थोड़ी देर मेवा के साथ वक्त बिता लूं। अकेले अंधेरे में लेटे होंगे।"

"ठीक है मैं लालटेन लेकर आती हूं।"

अनामिका साड़ी के पल्लू को अलग किया। ब्लाउस पेटीकोट में वो भरी ठंडी में मेवा के साथ रजाई में घुसी। मेवा को पीछे से जकड़ते हुए अनामिका बोली "उठो भी। बहुत सो लिए। चलो उठो।"

"हम्म्म सोने दो ना। तुम बोल तो ऐसे रही हो जैसे आज रात यहां रूकनेवाली हो।"

"उठो न। दिल्ली में पूरे दो दिन यहां रहनेवाली हूं।"

यह सुनकर मेवा खुश हुआ और तुरंत अनामिका की तरफ पलट गया और बोला "फिर तो अच्छा हुआ। वैसे भी ऊब जाता हूं अकेले रहकर।"

"हां हां। लेकिन सुनो मेवा आज पता नही मुझे सोने का मन कर रहा है।"

"चंपा कहा है। अरे सुन चंपा इधर आ।"

वैसे आपको बता दूं चंपा मेवा की बेटी है। चंपा लालटेन लेकर कमरे में आई और पूछी "क्या हुआ बाबूजी ?"

"चंपा तुम आज जल्दी सो जाओ। अब मैं भी सोनेवाला हूं।"

अनामिका बोली "हां लेकिन पहले दूध पी लो। आओ मेरे पास।"

अनामिका ने मेवा को बाहों में भर लिया और दूध पिलाने लगी। अनामिका की आंखे बंद और चेहरे पे मुस्कान थी। एक बुड्ढे बेसहारा और अपना बहुत कुछ खो देनेवाले बुड्ढे आदमी की सेवा करने में उसे आनंद आ रहा था। फिर आंखे खोलते हुए खुद के सीने से चिपक हुए स्तनपान कर रहे बुड्ढे के सिर पर हाथ से घूमते हुए बोली खुद से बोली " इतनी राहत कभी न मिली मुझे।"

मेवा दूध पीने के बाद बोला "क्या मैं तुम्हारे स्तन के साथ खेलूं ?"

अनामिका बोली "ये कोई पूछनेवाली बात है ? मेरे राजा बच्चे खेलो। लेकिन इससे पहले तुम्हारे पैर दबा दूं।"

अनामिका मेवा का पैर दबाने लगी। उसकी नंगे स्तन को देखते हुए मेवा बोला "इस दूध ने ही मुझे जिंदा रखा है। अनामिका क्या तुम्हे बूरा नहीं लगता कि एक बदसूरत बुड्ढा रोज तुम्हारे स्तन को चूसता है और बजाने बहकाव में आकर तुम्हारे स्तन से खेलता है ?" मेवा ने उदास होकर पूछा।

अनामिका ना मैं सिर हिलाया और पैर दबाने लगी। मेवा ने फिर आगे कहा "जवाब दो ना अनामिका।"

कुछ देर तक चुप रहने के बाद जब अनामिका ने पैर दबाया उसके बाद मेवा के बगल लेटकर कहा "किस बात का मुझे बुरा लगेगा ? मेरा दूध मेरी मर्जी जिसे पिलाऊं। मुझे अच्छा लगता है जब तुम दूध पीते हो और इसके मिठास की तारीफ करते हो और रोज कहते हो अनामिका आज पेट भर गया। फिर रही बात खेलने को मेरे स्तन के साथ तो क्या बुराई है इसमें। तुम्हे इसके साथ खेलता देख तुम्हे क्या पता किस्त अच्छा लगता है।"

"क्या तुम सच बोल रही हों ?"

अनामिका ने मेवा से कहा "मेरे सीने पे हाथ रखो।"

मेवा सीने पे हाथ रखा।

अनामिका पूछी "कुछ महसूस हुआ ?"

"हां।" मेवा ने कहा।

"अब जरा मेरे सीने पे सिर रखकर अंदर को धड़कन को सुनो।"

मेवा ने का चेहरा अनामिका के स्तनों के बीचों बीच पड़ा।

अनामिका पूछी "कैसी आवाज आ रही है ?"

"बहुत मधुर आवाज आ रही है।"

"तो समझा लो मेवा इसका मतलब में तुम्हे अपना दूध पिलाकर और तुम्हारी सेवा करके बहुत खुश हूं।"

मेवा रोने लगा। रोते हुए बोला "तुम महान हो अनामिका।"

अनामिका ने आंसू पोंछे हुए कहा "अब रोना बंद करो वरना चली जाऊंगी।"

"नही नही कहीं मत जाना।" मेवा उठकर बैठ गया।

अनामिका पूछी "एक स्तन का दूध बाकी है। पियोगे ?"

"हां लेकिन एक तुम मुझे अपनी गोदी में सुलोगी और मुझे दूध पीने देगी।"

अनामिका उठकर बैठी और मेवा को गोदी में सुलाकर बोली "पियो मेरे बच्चे जी भरके दूध पियो।"

"लेकिन दूध पीने के बाद आज इसके साथ (स्तन के साथ)खेलूंगा।"

"हां हां खेलना। पर चलो अब जल्दी से मेरे प्यारे बच्चे दूध पियो।"
कहानी बहुत अच्छी है.
 
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Manju143

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सुबह के दस बजे थे और अनामिका खाना बना रही थी। रसोई बहुत ही बड़ा था। सभी के लिए खाना बना रही अनामिका सब्जी काट रही थी। रसोईघर में मेवा आ पहुंचा। अनामिका को एक आदर्श गृहिणी को रारह देख उसका मन प्रफुल्लित हुआ। मेवा पीछे से अनामिका से लिपट गया। अनामिका ने देखा की पीछे मेवा है तो हल्की सी मुस्कान लिए बोली "मेवा बाकी सब अभी कहां है ?"

मेवा बोला "मणि बगीचे का काम कर रहा है तो बाबा साफ सफाई कर रहे है अपने कमरे की। "

"लगता है तुम्हे अभी कुछ काम नहीं।"

"मुझे तो इस वक्त एक ही काम दिख रहा है और वो है मेरी अनामिका के साथ रहने का।" मेवा अनामिका के sleveless में दिख रहे चीन कंधे को चूमते हुए बोला।

"मेवा तुम तो सबसे चंचल हो।"

"अनामिका मैं कह रहा था की खाने के बाद दोपहर को मेरे साथ चलो। किल्ले के एक सुंदर जगह तुम्हे ले जाऊंगा।"

"अच्छा कौन सी जगह है वो ?"

"ए तो तुम्हे जल्द ही पता चल जाएगा। हम दोनो दोपहर को एक दूसरे के साथ खूब वक्त बिताएंगे। मेरी अनामिका।" मेवा अनामिका के चेहरे को अपनी तरफ किया और चूम लिया।

"हां मेरे मेवा अब जल्दी से खाना बना लूं फिर हम दोनो पूरी दोपहर साथ में रहेंगे।" अनामिका ने मेवा के होठ को हल्के से चूमते हुए कहा।

दोपहर के एक बजे थे। अनामिका को लेकर मेवा किल्ले के भीतर एक जगह ले गया। उस जगह को देख अनामिका की आंखे चार हो गई। वो जगह एक तालाब था। सालो से इस तालाब के पानी को बाबा ने शुद्ध रखा था। मेवा अनामिका को बाहों में भरते हुए कहा "अब चलो अनामिका थोड़ा साथ में वक्त गुजारे और थोड़ा सा प्यार भी कर ले।"

मेवा ने अनामिका के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा "कैसी लगी यह जगह।"

"यह तो सच में स्वर्ग से कम नहीं।"

मेवा अपने कपड़े उतारकर तलब में घुसा। वहां से अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने अपने साड़ी को उतारा और अंगवस्त्र ब्रा और पेटीकोट में तालाब के अंदर आई। मेवा बस अनामिका के बदन को देखता रह गया। इतना गोरा जिस्म के जैसे रोज दूध से नहाती हो। मेवा अनामिका के गले लगा और अनामिका ने मेवा को अपनी बाहों में भर लिया।

"मेरी अनामिका कितनी सुंदर है। अगर बुरा न मानो तो एक चीज मांगू ?"

"बोलो मेवा।"

"आज मेरा जहां दिल करे वहां तुम्हे चूम सकता हूं ?"

"ये कोई पूछने वाली बात है ? मेरे मेवा का जहां मन करे और जो मन करे वो करे।"

मेवा अनामिका के होठ पे होठ रखकर चूमने लगा। दोनो ने बहुत देर तक एक दूसरे के होठ को चूमा। मेवा ने अनामिका का ब्रा उतारकर बाहर फेक दिया और फिर पेटीकोट को भी फेक दिया। अनामिका के बदन पर एक भी कपड़ा न रहा। मेवा फिर अनामिका ने होठ को चूमने लगा। अपनी जुबान को अनामिका के जुबान से मिलाया। एक हाथ नीचे ले जाकर अनामिका के नितंब को दबाया और दूसरे हाथ से योनि की सेवा की। दोनो ठंडे पानी में मस्त थे।

"मुझे ऐसा लग रहा है की अब मेरा मेवा बदमाश होता जा रहा है।" अनामिका ने हल्के से मजाक में कहा।

"ऐसा क्यों ?"

"अभी जो तुम मेरे साथ कर रहे हो ऐसा पहले तो नही किया। अब बहुत बदमाशी कर रहे हो।"

"तुम हो ही इतनी खूबसूरत। तुम्हे यहां लाने का कारण यही था। आज तो सब कुछ करूंगा। इसके बाद मैं भी मणि की तरह तुम्हारा प्यार हो जाऊंगा। फिर उसी की तरह खुलकर तुमसे प्यार करूंगा और शरीर का आनंद लूंगा। उसके बाद जैसे तुम मणि को प्यार करती हो वैसे मुझे भी करोगी। सिर्फ दूध नहीं तुमपे मेरा भी हक होगा।"

अनामिका ने मेवा को रोका और कहा "ये क्या कह रहे हो तुम ? ये सही नही।"

"इसमें क्या गलत है ?"

अनामिका मेवा से अलग हुई और बाहर निकल गई तालाब से। मेवा को कुछ समझ में नहीं आया और वो अनामिका के पीछे पीछे चलने लगा।

"क्या हुआ अनामिका मैने कुछ गलत कहा ?"

अनामिका गुस्से से बोली "अभी जो तुमने कहा मुझे अच्छा नही लगा।"

"क्या ?"

"तुम्हारा कहना यह है कि मैं सिर्फ मणि को ही अपना प्यार देती हूं ? तुम्हे नही ?"

"मेरा वो मतलब नहीं था।"

"तो फिर क्या था ?"

"देखो अनामिका आज तक हमने सिर्फ एक दूसरे से दिल का रिश्ता बनाया। मैंने सिर्फ तुम्हारे दूध की मिठास चखी। जिस्म और मोहोब्नत की नही। कभी कभी मेरा भी मन करता है कि तुम्हे एक प्रेमी की तरह प्यार करूं। लेकिन डरता इसीलिए हूं कि तुम इसे गलत न समझो। तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हे चूमना नहीं है सारी जिंदगी। तुम्हारे जिस्म से खुद की जिस्म की गर्मी से प्यार की जिंदगी जीना चाहता हूं। मुझे भी तुम्हारे साथ एक प्रेमी की जिंदगी गुजारनी है।"

"मणि के पहले कौन था मेरा ? तुम। मैंने अपने शर्म को पीछे छोड़कर तुम्हारे लिए नग्न अवस्था में तुम्हे दूध पिलाया। किस वजह से मैं इस गांव में खुश थी ? तुम। कौन था वो जिसने मुझे नई जिंदगी दी ? तुम। जब तुम नही होते तो मुझे वो दिन सूना लगता। हर रात एक आदत होती तुम्हारी। कभी खुद से लिपटने से रोका तुमको ? जब तुम मुझे कहते की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैंने भी तुमसे प्यार की बात की। तुम्हे में अपना मानती हूं। एक बार मुझसे कह देते में सब कुछ तुम पर लूटा देती। तुमने सोच भी कैसे लिया कि में तुमसे रिश्ता तोड़ दूंगी। मेवा अगर यही तुम सोच रहे हो तो मैं जा रही हूं।" इतना कहकर अनामिका जाने लगी।

मेवा ने तुरंत अनामिका का हाथ पकड़ा और अपनी और खींचा। उसके नाजुक होठ को चूमने लगा। अनामिका जैसे शांत होने लगी। मेवा ने अनामिका का हाथ पकड़ा और बगल एक बड़े से कोठरी में ले गया। वहां एक बिस्तर पे अनामिका के नंगे बदन को लिटाया।

"अनामिका मैं तुमसे जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं।"

अनामिका कुछ न बोली बस शर्म से भरी आंखों से मेवा को मुस्कुराते हुए देखी।

मेवा आगे बढ़ा और अनामिका के पैर को चूमने लगा।

"इसी को पाने का सपना देख रहा था। उम्म्म इसे जी भरके प्यार करूंगा।"

"मेवा तुम हो तो बदमाश। मेरे बदन से खेलने में तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।"

"लेकिन आज एक प्रेमी बन चुका हूं तुम्हारा सच कहा न ?"

"प्रेमी ? वो तो तब पता चलेगा जब मेरा मेवा मेरे बदन को तहस नहस करेगा।"

अपने काले शरीर को अनामिका के दूध सा बदन के ऊपर टिका दिया। दोनो हाथो से अनामिका के स्तन को दबा रहा था। जुबान बाहर निकलकर अनामिका के चेहरे को चाटने लगा फिर गला और दोनो स्तन को बारी बारी से चूम रहा था। अनामिका के बदन में बिजली दौड़ने लगी। वो मदहोशी सा महसूस करने लागी। मेवा अनामिका के योनि का सेवन करने लगा। योनि पर मेवा की जुबान पड़ते ही अनामिका छटपटाने लगी और सिसकारी भरने लगी।

"मेवा कितना तड़पाओगे मुझे। अब जल्दी से मेरी जवानी को अपने शरीर के साथ निचोड़ दो।"

मेवा अपने बड़े लिंग को अनामिका के योनि में डालते हुए कहा "अब अनामिका तुम मेरी हो। अब से जब मेरा जी चाहेगा तब तुम्हे अपने पास बुलाऊंगा और संभोग करूंगा। तुम जानती नही कितना बेताबी है इस जिस्म में। हर रोज तुम्हारे जिस्म से प्यार की प्यास बुझाऊं यही मेरा काम है।"

मेवा लगातार धक्का देता रहा और आखिर में अनामिका के ऊपर झड़ गया। दोनो थके हुए सो गए। शाम की अंधकार में आखिर दोनो की नींद खुली। अनामिका मेवा की आंखों में देख बोली "बना दिया न इस भोली भाली जवान औरत को अपने प्यार का गुलाम।"

"अब इसी जवान औरत का रस चखूंगा।"

"हां लेकिनन चले वरना बाबा यहां आ जायेंगे।"

दोनो अपने कपड़े पहन आगे बढ़े। रात के अंधेरे में अनामिका रसोई घर गई और सबके लिए खाना बनाया। सभी ने खाना खाया। मणि अनामिका को लेकर कमरे में गया और फिर दोनो ने काफी वक्त तो संभोग किया। रात के २ बजे अनामिका बाहर निकली कमरे से तो सामने बाबा को पाया।

"बाबा इतनी रात आप यहां ? आपको नींद नही आ रही ?"

"नही अनामिका वो बस काल कोठरी गया था हल्दी से मिलने।"

"क्या मेरे पीछे जन्म वाला आदमी ?"

"हां इसी के बारे में बात करनी थी।"

"बताइए ना बाबा क्या कहना चाहते है आप ?"

"वक्त आ गया है अनामिका कि तुम उसकी दिव्या बनो। अब उसकी सेवा करने का वक्त आ गया।"

"कब से सेवा करनी है ?"

"कुछ ही दिनों में। लेकिन इसके लिए तुम्हे मेरे साथ कुछ दिनों के लिए हनुमंत गांव में चलना होगा जहां हल्दी और दिव्या के जिंदगी की शुरुआत हुई। तुम्हे दिव्या के बारे में जानना होगा। अब जल्दी से समान बांधो और मेरे साथ चलो। हम अब एक हफ्ते के लिए वहां रहेंगे।"

"मेवा और मणि का क्या ?"

"उनकी चिंता न करो। वो सब इस बारे में जानते है।"

"तो फिर चलिए मैं आई।"

फिर रात के अंधेरे में अनामिका और बाबा चल दिए एक सुनसान और अनजान रास्ते में। वहां एक घोड़ा गाड़ी दिखा जिसे चला रहा था ९० साल का बुड्ढा। वो बुड्ढा असल में दिव्या का नौकर था जिसे दिव्या रमा काका कहकर बुलाती थी। रमा काका अनामिका को देखता रह गया। अनामिका की खूबसूरती में जैसे एक वक्त के लिए खो गया।

"इनसे मिलो अनामिका ये है रमा। दिव्या के हवेली के नौकर और उसी हवेली का खयाल रखते है। अब इन्ही के साथ हम दोनो चलेंगे।"

अनामिका ने अपने नरम हाथ रमा काका के हाथो में दिया। उसी के सहारे टांगे पे चढ़ी। फिर बाबा अनामिका और रमा तीनो टांगे में बैठ अंधेरे में गायब हो गए।

सुबह ७ बजे करीब ६० किलोमीटर का रास्ता तय करके तीनों एक खंडर सी हवेली में घुसे। उस हवेली में कोई रौनक न था। जैसे भूतो का बसेरा हो। धूल मिट्टी और कंकड़ से भरा था। करीब २० कमरे है इस हवेली में। लेकिन रमा ने सालो से इस संभाला। रमा काका लगातार अनामिका की खूबसूरती को देख रहा था। वैसे आपको बता दूं कि पिछले जन्म की कहानी अभी पूरी तरह से नहीं बताई गई।


दरअसल दिव्या का शारीरिक संबंध सिर्फ हल्दी नही बल्कि उसे बुड्ढे भाई रमा काका के साथ भी था। रमा काका हल्दी का भाई था। वो भी हल्दी दिव्या के साथ भागना चाहता था लेकिन हल्दी ने उसे मना किया। वो रमा को हवेली में रहने को कहा ताकि सुरेश पर नजर रख सके। बदले में रमा बीच बीच में दोनो से मिलता। एक दिन रमा ने दिव्या से अपनी दिल की बात बताई। वो दिव्या को पसंद करता था। दिव्या को हमेशा से उसने सहारा दिया। इसी का मान रखकर दिव्या ने रमा काका से रिश्ता बना लिया। हल्दी ने भी अपनी रजामंदी दी। रमा काका से दिव्या को एक बच्चा भी हुआ।

इतने सालो बाद अनामिका को देख रमा काका अपनी नजर को रोक न पाया। रमा के आंखों में जैसे अनामिका बस गई। बाबा सब जानते थे और रमा का साथ देने के लिए हवेली से बाहर एक झोपड़ी में रहने का फैसला किया। पूरे हवेली में अनामिका और रमा एक दूसरे के साथ रहे इसीलिए ये सब किया।

अनामिका को रमा काका ले गए दिव्या के कमरे जिसे बहुत अच्छे से साफ किया गया। था। अनामिका के लिए सारे अच्छी साड़ी को व्यवस्था को रमा ने। अनामिका ने थोड़ी देर आराम किया और नहा धोकर दिव्या के कपड़े को पहना। लाल sleveless ब्लाउस और सफेद रंग की साड़ी में वो नीचे के कमरे पहुंची जहां रमा काका था।

"काका मैं पूछ रही थी को रसोईघर कहां है ?"

अनामिका को दिव्या के साड़ी में देख रमा चौक गया। स्वर्ग से आई हुई सुंदरी लग रही थी। वो बस टुकुर टुकुर देखता रहा। फिर अनामिका ने चुटकी बजाते हुए फिर से पूछा "रसोईघर कहां है ? आप सुन तो रहे है न ?"

अपने सपने भरी दुनिया से बाहर आ गया रमा और हड़बड़ाते हुए कहा "यहां से बाए तरफ।"

अनामिका चली गई। रमा पीछे पीछे चलते हुए पूछा "वहां किस लिए जा रही है आप ?"

"सोने ले लिए जा रही हूं। क्या आप भी ना। कैसा सवाल पूछ रहे है। खाना बनाने जा रही हूं।"

"गलत कर रही है आप।" रमा ने कहा।

"मतलब ?"

"आप यहां दिव्या को जानने आई है ताकि आप दिव्या बनके मेरे भाई का इलाज करो। दिव्या यहां कभी काम नहीं करती थी।"

अनामिका रमा की बात सुनकर चौकी और पूछी "क्या कहां आपने ? मेरा भाई ? मतलब हल्दी आपका भाई है ?"

"हां हल्दी मेरा बड़ा भाई है।"

"तो और क्या बता सकते है आप"

"सब कुछ बताऊंगा। अगले सात दिन में सब कुछ बताऊंगा। आप अब आराम करिए।"

"ठीक है काका।" अनामिका बोली।

"काका नही रमा सिर्फ रमा कहकर बुलाओ।"

"ठीक है रमा।" अनामिका मुस्कुराते हुए बोली।

अनामिका थोड़ी देर के लिए बाबा की झोपड़ी में गई। बाबा उस वक्त ध्यान मुद्रा में थे। अनामिका के आते ही उनकी आंखे खुल गई। अनामिका ने पैर छुआ।

"खूब आगे बढ़ो। अनामिका आओ बैठो।"

अनामिका सामने पड़ी चार पाई पे बैठी।

बाबा पूछे "तो बताओ अनामिका कैसा लगा ये खंडर हवेली ?"

"हवेली तो ठीक लेकिन दिव्या के कमरे को खूब अच्छे से सजाया हुआ है। लेकिन बाबा एक सवाल पूछना है आपसे।"

"पूछो ।"

"पता नही बाबा रमा मुझे क्यों इतना घूरता है। मुझसे ऐसे बात करते है जैसे दिव्या के साथ उनका घनिष्ट सम्बन्ध था।"

बाबा ने अनामिका को झोपड़ी का दरवाजा बंद करने को कहा। अनामिका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और बाबा के बगल बैठी।

बाबा हल्के से मुस्कुराते हुए बोले "सब समझ में आ जायेगा। तुम बस वक्त का इंतजार करो।"

"बाबा नजाने क्यों इस हवेली में मुझे शांति महसूस हो रही है जैसे किल्ले में होती थी। आपको यहां कैसा लग रहा है ?"

"जहां तुम खुश वहां मैं।"

अनामिका हल्के से मुस्कुराते हुए बोली "आपका जवाब बहुत उलझा उल्जा सा रहता है।"

बाबा अनामिका का हाथ थामते हुए बोले "शायद तुम न मानो लेकिन मेरा और तुम्हारा रिश्ता बहुत गहरा है। तुम्हारी फिक्र हमेशा रहती है मुझे।"

अनामिका बाबा का हाथ थामते हुए बोली "बाबा आप है तो मैं हूं। मुझे आपके खुशी और शांति के सिवा कुछ नहीं चाहिए।"

बाबा अनामिका को बाहों में भरते हुए बोले "यही बात तो मुझे तुम्हारी अच्छी लगती है। तुम जिसे अपना मान लो उसकी हो जाती हो।"

अनामिका बोली "लेकिन बाबा दुनिया में जहां आप वहां मैं। मैं सबको आपके लिए छोड़ सकती हूं। मेवा मणि या कोई भी।"

बाबा अनामिका के चेहरे को सीने से लगाते हुए बोले "नही अनामिका मैं मणि, मेवा, हल्दी तुम्हे कहीं नहीं छोड़कर जाएंगे। अब हमारे साथ ही तुम्हे जिंदगी गुजारनी है।"

अनामिका हल्की सी मुस्कान लिए बोली "आज जैसे शांति और सुख की अलग सी ताजगी महसूस हो रही है। आपके लिपटकर ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूं।"

बाबा हल्के से अनामिका के के गाल को चूमते हुए बोले "में तो स्वर्ग में ही हूं।"

अनामिका ने अपने साड़ी के पल्लू को उतार और खटिया पर ले गई। बाबा को बुलाते हुए कहा "कुछ देर मुझे आपके पास रहना है।"

"अनामिका मुझे संभोग नही करना तुम्हारे साथ। ये वक्त नहीं है।"

अनामिका उठकर बैठ गई और पूछी "तो कब आएगा वो वक्त।"

"ये कहना मुश्किल है। लेकिन तुम्हे प्यार की कमी नही होगी आगे जाके। अनामिका शायद वक्त बहुत लग जाए।"

"मुझे इंतजार रहेगा।"
बहुत अच्छा लिखा है. पढ़कर मजा आया.. अनामिका बारी बारी से सभी बूढ़ों को स्तनपान कराएगी. क्या इसका वर्णन अगले भाग में किया जा सकता है?
 
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Vegetaking808

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Bhai Xforum pe ye same story koi " Basic " name wala copy karke post kar raha hai
Agar ye " valkoss "hai to koi baat nahi
 
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Vegetaking808

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Thread ka name hai बुढ़े लोगों की सेवा
 

Valkoss

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Bhai Xforum pe ye same story koi " Basic " name wala copy karke post kar raha hai
Agar ye " valkoss "hai to koi baat nahi
Bhai bilkul bhi copy nahi
 

Manju143

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Story me Anamika baki ke budhe logo ko bhi stanpan karati hai..

Ye dikhana agale part me 👆👆

Next part please
 

Manju143

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सुबह के दस बजे थे और अनामिका खाना बना रही थी। रसोई बहुत ही बड़ा था। सभी के लिए खाना बना रही अनामिका सब्जी काट रही थी। रसोईघर में मेवा आ पहुंचा। अनामिका को एक आदर्श गृहिणी को रारह देख उसका मन प्रफुल्लित हुआ। मेवा पीछे से अनामिका से लिपट गया। अनामिका ने देखा की पीछे मेवा है तो हल्की सी मुस्कान लिए बोली "मेवा बाकी सब अभी कहां है ?"

मेवा बोला "मणि बगीचे का काम कर रहा है तो बाबा साफ सफाई कर रहे है अपने कमरे की। "

"लगता है तुम्हे अभी कुछ काम नहीं।"

"मुझे तो इस वक्त एक ही काम दिख रहा है और वो है मेरी अनामिका के साथ रहने का।" मेवा अनामिका के sleveless में दिख रहे चीन कंधे को चूमते हुए बोला।

"मेवा तुम तो सबसे चंचल हो।"

"अनामिका मैं कह रहा था की खाने के बाद दोपहर को मेरे साथ चलो। किल्ले के एक सुंदर जगह तुम्हे ले जाऊंगा।"

"अच्छा कौन सी जगह है वो ?"

"ए तो तुम्हे जल्द ही पता चल जाएगा। हम दोनो दोपहर को एक दूसरे के साथ खूब वक्त बिताएंगे। मेरी अनामिका।" मेवा अनामिका के चेहरे को अपनी तरफ किया और चूम लिया।

"हां मेरे मेवा अब जल्दी से खाना बना लूं फिर हम दोनो पूरी दोपहर साथ में रहेंगे।" अनामिका ने मेवा के होठ को हल्के से चूमते हुए कहा।

दोपहर के एक बजे थे। अनामिका को लेकर मेवा किल्ले के भीतर एक जगह ले गया। उस जगह को देख अनामिका की आंखे चार हो गई। वो जगह एक तालाब था। सालो से इस तालाब के पानी को बाबा ने शुद्ध रखा था। मेवा अनामिका को बाहों में भरते हुए कहा "अब चलो अनामिका थोड़ा साथ में वक्त गुजारे और थोड़ा सा प्यार भी कर ले।"

मेवा ने अनामिका के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा "कैसी लगी यह जगह।"

"यह तो सच में स्वर्ग से कम नहीं।"

मेवा अपने कपड़े उतारकर तलब में घुसा। वहां से अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने अपने साड़ी को उतारा और अंगवस्त्र ब्रा और पेटीकोट में तालाब के अंदर आई। मेवा बस अनामिका के बदन को देखता रह गया। इतना गोरा जिस्म के जैसे रोज दूध से नहाती हो। मेवा अनामिका के गले लगा और अनामिका ने मेवा को अपनी बाहों में भर लिया।

"मेरी अनामिका कितनी सुंदर है। अगर बुरा न मानो तो एक चीज मांगू ?"

"बोलो मेवा।"

"आज मेरा जहां दिल करे वहां तुम्हे चूम सकता हूं ?"

"ये कोई पूछने वाली बात है ? मेरे मेवा का जहां मन करे और जो मन करे वो करे।"

मेवा अनामिका के होठ पे होठ रखकर चूमने लगा। दोनो ने बहुत देर तक एक दूसरे के होठ को चूमा। मेवा ने अनामिका का ब्रा उतारकर बाहर फेक दिया और फिर पेटीकोट को भी फेक दिया। अनामिका के बदन पर एक भी कपड़ा न रहा। मेवा फिर अनामिका ने होठ को चूमने लगा। अपनी जुबान को अनामिका के जुबान से मिलाया। एक हाथ नीचे ले जाकर अनामिका के नितंब को दबाया और दूसरे हाथ से योनि की सेवा की। दोनो ठंडे पानी में मस्त थे।

"मुझे ऐसा लग रहा है की अब मेरा मेवा बदमाश होता जा रहा है।" अनामिका ने हल्के से मजाक में कहा।

"ऐसा क्यों ?"

"अभी जो तुम मेरे साथ कर रहे हो ऐसा पहले तो नही किया। अब बहुत बदमाशी कर रहे हो।"

"तुम हो ही इतनी खूबसूरत। तुम्हे यहां लाने का कारण यही था। आज तो सब कुछ करूंगा। इसके बाद मैं भी मणि की तरह तुम्हारा प्यार हो जाऊंगा। फिर उसी की तरह खुलकर तुमसे प्यार करूंगा और शरीर का आनंद लूंगा। उसके बाद जैसे तुम मणि को प्यार करती हो वैसे मुझे भी करोगी। सिर्फ दूध नहीं तुमपे मेरा भी हक होगा।"

अनामिका ने मेवा को रोका और कहा "ये क्या कह रहे हो तुम ? ये सही नही।"

"इसमें क्या गलत है ?"

अनामिका मेवा से अलग हुई और बाहर निकल गई तालाब से। मेवा को कुछ समझ में नहीं आया और वो अनामिका के पीछे पीछे चलने लगा।

"क्या हुआ अनामिका मैने कुछ गलत कहा ?"

अनामिका गुस्से से बोली "अभी जो तुमने कहा मुझे अच्छा नही लगा।"

"क्या ?"

"तुम्हारा कहना यह है कि मैं सिर्फ मणि को ही अपना प्यार देती हूं ? तुम्हे नही ?"

"मेरा वो मतलब नहीं था।"

"तो फिर क्या था ?"

"देखो अनामिका आज तक हमने सिर्फ एक दूसरे से दिल का रिश्ता बनाया। मैंने सिर्फ तुम्हारे दूध की मिठास चखी। जिस्म और मोहोब्नत की नही। कभी कभी मेरा भी मन करता है कि तुम्हे एक प्रेमी की तरह प्यार करूं। लेकिन डरता इसीलिए हूं कि तुम इसे गलत न समझो। तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हे चूमना नहीं है सारी जिंदगी। तुम्हारे जिस्म से खुद की जिस्म की गर्मी से प्यार की जिंदगी जीना चाहता हूं। मुझे भी तुम्हारे साथ एक प्रेमी की जिंदगी गुजारनी है।"

"मणि के पहले कौन था मेरा ? तुम। मैंने अपने शर्म को पीछे छोड़कर तुम्हारे लिए नग्न अवस्था में तुम्हे दूध पिलाया। किस वजह से मैं इस गांव में खुश थी ? तुम। कौन था वो जिसने मुझे नई जिंदगी दी ? तुम। जब तुम नही होते तो मुझे वो दिन सूना लगता। हर रात एक आदत होती तुम्हारी। कभी खुद से लिपटने से रोका तुमको ? जब तुम मुझे कहते की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैंने भी तुमसे प्यार की बात की। तुम्हे में अपना मानती हूं। एक बार मुझसे कह देते में सब कुछ तुम पर लूटा देती। तुमने सोच भी कैसे लिया कि में तुमसे रिश्ता तोड़ दूंगी। मेवा अगर यही तुम सोच रहे हो तो मैं जा रही हूं।" इतना कहकर अनामिका जाने लगी।

मेवा ने तुरंत अनामिका का हाथ पकड़ा और अपनी और खींचा। उसके नाजुक होठ को चूमने लगा। अनामिका जैसे शांत होने लगी। मेवा ने अनामिका का हाथ पकड़ा और बगल एक बड़े से कोठरी में ले गया। वहां एक बिस्तर पे अनामिका के नंगे बदन को लिटाया।

"अनामिका मैं तुमसे जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं।"

अनामिका कुछ न बोली बस शर्म से भरी आंखों से मेवा को मुस्कुराते हुए देखी।

मेवा आगे बढ़ा और अनामिका के पैर को चूमने लगा।

"इसी को पाने का सपना देख रहा था। उम्म्म इसे जी भरके प्यार करूंगा।"

"मेवा तुम हो तो बदमाश। मेरे बदन से खेलने में तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।"

"लेकिन आज एक प्रेमी बन चुका हूं तुम्हारा सच कहा न ?"

"प्रेमी ? वो तो तब पता चलेगा जब मेरा मेवा मेरे बदन को तहस नहस करेगा।"

अपने काले शरीर को अनामिका के दूध सा बदन के ऊपर टिका दिया। दोनो हाथो से अनामिका के स्तन को दबा रहा था। जुबान बाहर निकलकर अनामिका के चेहरे को चाटने लगा फिर गला और दोनो स्तन को बारी बारी से चूम रहा था। अनामिका के बदन में बिजली दौड़ने लगी। वो मदहोशी सा महसूस करने लागी। मेवा अनामिका के योनि का सेवन करने लगा। योनि पर मेवा की जुबान पड़ते ही अनामिका छटपटाने लगी और सिसकारी भरने लगी।

"मेवा कितना तड़पाओगे मुझे। अब जल्दी से मेरी जवानी को अपने शरीर के साथ निचोड़ दो।"

मेवा अपने बड़े लिंग को अनामिका के योनि में डालते हुए कहा "अब अनामिका तुम मेरी हो। अब से जब मेरा जी चाहेगा तब तुम्हे अपने पास बुलाऊंगा और संभोग करूंगा। तुम जानती नही कितना बेताबी है इस जिस्म में। हर रोज तुम्हारे जिस्म से प्यार की प्यास बुझाऊं यही मेरा काम है।"

मेवा लगातार धक्का देता रहा और आखिर में अनामिका के ऊपर झड़ गया। दोनो थके हुए सो गए। शाम की अंधकार में आखिर दोनो की नींद खुली। अनामिका मेवा की आंखों में देख बोली "बना दिया न इस भोली भाली जवान औरत को अपने प्यार का गुलाम।"

"अब इसी जवान औरत का रस चखूंगा।"

"हां लेकिनन चले वरना बाबा यहां आ जायेंगे।"

दोनो अपने कपड़े पहन आगे बढ़े। रात के अंधेरे में अनामिका रसोई घर गई और सबके लिए खाना बनाया। सभी ने खाना खाया। मणि अनामिका को लेकर कमरे में गया और फिर दोनो ने काफी वक्त तो संभोग किया। रात के २ बजे अनामिका बाहर निकली कमरे से तो सामने बाबा को पाया।

"बाबा इतनी रात आप यहां ? आपको नींद नही आ रही ?"

"नही अनामिका वो बस काल कोठरी गया था हल्दी से मिलने।"

"क्या मेरे पीछे जन्म वाला आदमी ?"

"हां इसी के बारे में बात करनी थी।"

"बताइए ना बाबा क्या कहना चाहते है आप ?"

"वक्त आ गया है अनामिका कि तुम उसकी दिव्या बनो। अब उसकी सेवा करने का वक्त आ गया।"

"कब से सेवा करनी है ?"

"कुछ ही दिनों में। लेकिन इसके लिए तुम्हे मेरे साथ कुछ दिनों के लिए हनुमंत गांव में चलना होगा जहां हल्दी और दिव्या के जिंदगी की शुरुआत हुई। तुम्हे दिव्या के बारे में जानना होगा। अब जल्दी से समान बांधो और मेरे साथ चलो। हम अब एक हफ्ते के लिए वहां रहेंगे।"

"मेवा और मणि का क्या ?"

"उनकी चिंता न करो। वो सब इस बारे में जानते है।"

"तो फिर चलिए मैं आई।"

फिर रात के अंधेरे में अनामिका और बाबा चल दिए एक सुनसान और अनजान रास्ते में। वहां एक घोड़ा गाड़ी दिखा जिसे चला रहा था ९० साल का बुड्ढा। वो बुड्ढा असल में दिव्या का नौकर था जिसे दिव्या रमा काका कहकर बुलाती थी। रमा काका अनामिका को देखता रह गया। अनामिका की खूबसूरती में जैसे एक वक्त के लिए खो गया।

"इनसे मिलो अनामिका ये है रमा। दिव्या के हवेली के नौकर और उसी हवेली का खयाल रखते है। अब इन्ही के साथ हम दोनो चलेंगे।"

अनामिका ने अपने नरम हाथ रमा काका के हाथो में दिया। उसी के सहारे टांगे पे चढ़ी। फिर बाबा अनामिका और रमा तीनो टांगे में बैठ अंधेरे में गायब हो गए।

सुबह ७ बजे करीब ६० किलोमीटर का रास्ता तय करके तीनों एक खंडर सी हवेली में घुसे। उस हवेली में कोई रौनक न था। जैसे भूतो का बसेरा हो। धूल मिट्टी और कंकड़ से भरा था। करीब २० कमरे है इस हवेली में। लेकिन रमा ने सालो से इस संभाला। रमा काका लगातार अनामिका की खूबसूरती को देख रहा था। वैसे आपको बता दूं कि पिछले जन्म की कहानी अभी पूरी तरह से नहीं बताई गई।


दरअसल दिव्या का शारीरिक संबंध सिर्फ हल्दी नही बल्कि उसे बुड्ढे भाई रमा काका के साथ भी था। रमा काका हल्दी का भाई था। वो भी हल्दी दिव्या के साथ भागना चाहता था लेकिन हल्दी ने उसे मना किया। वो रमा को हवेली में रहने को कहा ताकि सुरेश पर नजर रख सके। बदले में रमा बीच बीच में दोनो से मिलता। एक दिन रमा ने दिव्या से अपनी दिल की बात बताई। वो दिव्या को पसंद करता था। दिव्या को हमेशा से उसने सहारा दिया। इसी का मान रखकर दिव्या ने रमा काका से रिश्ता बना लिया। हल्दी ने भी अपनी रजामंदी दी। रमा काका से दिव्या को एक बच्चा भी हुआ।

इतने सालो बाद अनामिका को देख रमा काका अपनी नजर को रोक न पाया। रमा के आंखों में जैसे अनामिका बस गई। बाबा सब जानते थे और रमा का साथ देने के लिए हवेली से बाहर एक झोपड़ी में रहने का फैसला किया। पूरे हवेली में अनामिका और रमा एक दूसरे के साथ रहे इसीलिए ये सब किया।

अनामिका को रमा काका ले गए दिव्या के कमरे जिसे बहुत अच्छे से साफ किया गया। था। अनामिका के लिए सारे अच्छी साड़ी को व्यवस्था को रमा ने। अनामिका ने थोड़ी देर आराम किया और नहा धोकर दिव्या के कपड़े को पहना। लाल sleveless ब्लाउस और सफेद रंग की साड़ी में वो नीचे के कमरे पहुंची जहां रमा काका था।

"काका मैं पूछ रही थी को रसोईघर कहां है ?"

अनामिका को दिव्या के साड़ी में देख रमा चौक गया। स्वर्ग से आई हुई सुंदरी लग रही थी। वो बस टुकुर टुकुर देखता रहा। फिर अनामिका ने चुटकी बजाते हुए फिर से पूछा "रसोईघर कहां है ? आप सुन तो रहे है न ?"

अपने सपने भरी दुनिया से बाहर आ गया रमा और हड़बड़ाते हुए कहा "यहां से बाए तरफ।"

अनामिका चली गई। रमा पीछे पीछे चलते हुए पूछा "वहां किस लिए जा रही है आप ?"

"सोने ले लिए जा रही हूं। क्या आप भी ना। कैसा सवाल पूछ रहे है। खाना बनाने जा रही हूं।"

"गलत कर रही है आप।" रमा ने कहा।

"मतलब ?"

"आप यहां दिव्या को जानने आई है ताकि आप दिव्या बनके मेरे भाई का इलाज करो। दिव्या यहां कभी काम नहीं करती थी।"

अनामिका रमा की बात सुनकर चौकी और पूछी "क्या कहां आपने ? मेरा भाई ? मतलब हल्दी आपका भाई है ?"

"हां हल्दी मेरा बड़ा भाई है।"

"तो और क्या बता सकते है आप"

"सब कुछ बताऊंगा। अगले सात दिन में सब कुछ बताऊंगा। आप अब आराम करिए।"

"ठीक है काका।" अनामिका बोली।

"काका नही रमा सिर्फ रमा कहकर बुलाओ।"

"ठीक है रमा।" अनामिका मुस्कुराते हुए बोली।

अनामिका थोड़ी देर के लिए बाबा की झोपड़ी में गई। बाबा उस वक्त ध्यान मुद्रा में थे। अनामिका के आते ही उनकी आंखे खुल गई। अनामिका ने पैर छुआ।

"खूब आगे बढ़ो। अनामिका आओ बैठो।"

अनामिका सामने पड़ी चार पाई पे बैठी।

बाबा पूछे "तो बताओ अनामिका कैसा लगा ये खंडर हवेली ?"

"हवेली तो ठीक लेकिन दिव्या के कमरे को खूब अच्छे से सजाया हुआ है। लेकिन बाबा एक सवाल पूछना है आपसे।"

"पूछो ।"

"पता नही बाबा रमा मुझे क्यों इतना घूरता है। मुझसे ऐसे बात करते है जैसे दिव्या के साथ उनका घनिष्ट सम्बन्ध था।"

बाबा ने अनामिका को झोपड़ी का दरवाजा बंद करने को कहा। अनामिका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और बाबा के बगल बैठी।

बाबा हल्के से मुस्कुराते हुए बोले "सब समझ में आ जायेगा। तुम बस वक्त का इंतजार करो।"

"बाबा नजाने क्यों इस हवेली में मुझे शांति महसूस हो रही है जैसे किल्ले में होती थी। आपको यहां कैसा लग रहा है ?"

"जहां तुम खुश वहां मैं।"

अनामिका हल्के से मुस्कुराते हुए बोली "आपका जवाब बहुत उलझा उल्जा सा रहता है।"

बाबा अनामिका का हाथ थामते हुए बोले "शायद तुम न मानो लेकिन मेरा और तुम्हारा रिश्ता बहुत गहरा है। तुम्हारी फिक्र हमेशा रहती है मुझे।"

अनामिका बाबा का हाथ थामते हुए बोली "बाबा आप है तो मैं हूं। मुझे आपके खुशी और शांति के सिवा कुछ नहीं चाहिए।"

बाबा अनामिका को बाहों में भरते हुए बोले "यही बात तो मुझे तुम्हारी अच्छी लगती है। तुम जिसे अपना मान लो उसकी हो जाती हो।"

अनामिका बोली "लेकिन बाबा दुनिया में जहां आप वहां मैं। मैं सबको आपके लिए छोड़ सकती हूं। मेवा मणि या कोई भी।"

बाबा अनामिका के चेहरे को सीने से लगाते हुए बोले "नही अनामिका मैं मणि, मेवा, हल्दी तुम्हे कहीं नहीं छोड़कर जाएंगे। अब हमारे साथ ही तुम्हे जिंदगी गुजारनी है।"

अनामिका हल्की सी मुस्कान लिए बोली "आज जैसे शांति और सुख की अलग सी ताजगी महसूस हो रही है। आपके लिपटकर ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूं।"

बाबा हल्के से अनामिका के के गाल को चूमते हुए बोले "में तो स्वर्ग में ही हूं।"

अनामिका ने अपने साड़ी के पल्लू को उतार और खटिया पर ले गई। बाबा को बुलाते हुए कहा "कुछ देर मुझे आपके पास रहना है।"

"अनामिका मुझे संभोग नही करना तुम्हारे साथ। ये वक्त नहीं है।"

अनामिका उठकर बैठ गई और पूछी "तो कब आएगा वो वक्त।"

"ये कहना मुश्किल है। लेकिन तुम्हे प्यार की कमी नही होगी आगे जाके। अनामिका शायद वक्त बहुत लग जाए।"

"मुझे इंतजार रहेगा।"
Story me Anamika baki ke budhe logo ko bhi stanpan karati hai..

Ye dikhana agale part me 👆👆

Next part please
 
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