पेटिकोट के नीचे गिरते ही उसके साथ ही मा भी है करते हुए तेज़ी के साथ नीचे बैठ गई.
मैं आँखे फर फर के देखते हुए गंज की तरह वही पर
खरा रह गया. मा नीचे बैठ कर अपने पेटिकोट को फिर से समेत्टी
हुई बोली " ध्यान ही नही रहा मैं तुझे कुच्छ बोलना चाहती थी और
ये पेटिकोट दंटो से च्छुत गया" मैं कुच्छ नही बोला. मा फिर से
खरी हो गई और अपने ब्लाउस को पहनने लगी. फिर उसने अपने
पेटिकोट को नीचे किया और बाँध लिया. फिर सारी पहन कर वो वही
बैठ के अपने भीगे पेटिकोट को साफ कर के तरय्यर हो गई. फिर हम
दोनो खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद हम वही पेर की च्चव
में बैठ कर आराम करने लगे. जगह सुन सन थी ठंडी हवा बह
रही थी. मैं पेर के नीचे लेते हुए मा की तरफ घुमा तो वो भी
मेरी तरफ घूमी. इस वाक़ूत उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुरहत
पसरी हुई थी. मैने पुचछा "मा क्यों हास रही हो", तो वो बोली "मैं
"झूट मत बोलो तुम मुस्कुरा रही हो"
"क्या करू, अब हसने पर भी कोई रोक है क्या"
"नही मैं तो ऐसे ही पुच्छ रहा था, नही बताना है तो मत बताओ"
"अर्रे इतनी आक्ची ठंडी हवा बह रही है चेहरे पर तो मुस्कान
आएगी ही"
"हा आज गरम इस्त्री (वुमन) की सारी गर्मी जो निकाल जाएगी,"
"क्या मतलब इसरट्री (आइरन) की गर्मी कैसे निकाल जाएगी यहा पर यहा
तो कही इस्त्री नही है"
"अर्रे मा तुम भी तो इस्त्री (वुमन) हो, मेरा मतलब इस्त्री माने औरत
से था"
"चल हट बदमाश, बरा शैतान हो गया है मुझे क्या पता था की तू
इस्त्री माने औरत की बात कर रहा है"
"चलो अब पता चल गया ना"
"हा, चल गया, पर सच में यहा पेर की छाव में कितना अच्छा
लग रहा है, ठंडी ठंडी हवा चल रही है, और आज तो मैने
पूरा हवा खाया है" मा बोली
"पूरा हवा खाया है, वो कैसे"
"मैं पूरी नंगी जो हो गई थी, फिर बोली ही, तुझे मुझे ऐसे नही
देखना चाहिए था,
"क्यों नही देखना चाहिए था"
"अर्रे बेवकूफ़, इतना भी नही समझता एक मा को उसके बेटे के सामने
नंगा नही होना चाहिए था"
"कहा नंगी हुई थी तुम बस एक सेकेंड के लिए तो तुम्हारा पेटिकोट
नीचे गिर गया था" (हालाँकि वही एक सेकेंड मुझे एक घंटे के
बराबर लग रहा था).
"हा फिर भी मुझे नंगा नही होना चाहिए था, कोई जानेगा तो क्या
कहेगा की मैं अपने बेटे के सामने नंगी हो गैट ही"
"कौन जानेगा, यहा पर तो कोई था भी नही तू बेकार में क्यों
परेशन हो रही है"
"अर्रे नही फिर भी कोई जान गया तो", फिर कुच्छ सोचती हुई बोली,
अगर कोई नही जानेगा तो क्या तू मुझे नंगा देखेगा क्या", मैं और
मा दोनो एक दूसरे के आमने सामने एक सूखे चादर पर सुन-सान जगह
पर पेर के नीचे एक दूसरे की ओर मुँह कर के लेते हुए थे और मा की
सारी उसके छाति पर से ढालाक गई थी. मा के मुँह से ये बात सुन
के मैं खामोश रह गया और मेरी साँसे तेज चलने लगी. मा ने मेरी
ओर देखते हुए पुकचा "क्या हुआ, " मैने कोई जवाब नही दिया और
हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी छातियो की तरफ देखने लगा जो उसकी
तेज चलती सांसो के साथ उपर नीचे हो रहे थे. वो मेरी तरफ
देखते हुए बोली "क्या हुआ मेरी बात का जवाब दे ना, अगर कोई जानेगा
नही तो क्या तू मुझे नंगा देख लेगा" इस पर मेरे मुँह से कुच्छ नही
निकला और मैने अपना सिर नीचे कर लिया, मा ने मेरी तोड़ी पकर के
उपर उठाते हुए मेरे आँखो में झाँकते हुए पुकचा, "क्या हुआ रे,
बोल ना क्या तू मुझे नंगा देख, लेगा जैसे तूने आज देखा है,"
मैने कहा "है, मा, मैं क्या बोलू" मेरा तो गॅला सुख रहा था, मा
ने मेरे हाथ को अपने हाथो में ले लिया और कहा "इसका मतलब तू
मुझे नंगा नही देख सकता, है ना" मेरे मुँह से निकाल गया
"है मा, छ्होरो ना," मैं हकलाते हुए बोला "नही मा ऐसा नही
है"
"तो फिर क्या है, तू अपनी मा को नंगा देख लेगा क्या"
मैं क्या कर सकता था, वो तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया
तभी मुझे नंगा दिख गया नही तो मैं कैसे देख पाता,"
"वो तो मैं समझ गई, पर उस वाक़ूत तुझे देख के मुझे ऐसा लगा
जैसे की तू मुझे घूर रहा है.................इसिलिये पुचछा"
"है, मा ऐसा नही है, मैने तुम्हे बताया ना, तुम्हे बस ऐसा लगा
होगा, "
"इसका मतलब तुझे अक्चा नही लगा था ना"
"है, मा छ्होरो", मैं हाथ च्छूराते हुए अपने चेहरे को च्छूपाते
हुए बोला"
मा ने मेरा हाथ नही छ्होरा और बोली "सच सच बोल शरमाता क्यों
है"
मेरे मुँह से निकाल गया "हा अक्चा लगा था", इस पर मा ने मेरे हाथ
को पाकर के सीधे अपनी छाति पर रख दिया, और बोली "फिर से
देखेगा मा को नंगा, बोल देखेगा,"
मेरी मुँह से आवाज़ नही निकाल पा रहा था मैने बरी मुस्किल से अपने
अपने हाथो को उसके नुकीले गुदज छातियों पर स्थिर रख पा रहा
था. ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता,
मेरे मुँह से एक क्रहने की सी आवाज़ निकली. मा ने मेरी थोड़ी पकर कर
फिर से मेरे मुँह को उपर उठाया और बोली "क्या हुआ बोल ना शरमाता
क्यों है, जो बोलना है बोल" . मैं कुच्छ ना बोला थोरी देर तक उसके
च्हूचियों पर ब्लाउस के उपार से ही हल्का सा मैने हाथ फेरा. फिर
मैने हाथ खीच लिया. मा कुच्छ नही बोली गौर से मुझे देखती
रही फिर पता ना क्या सोच कर वो बोली "ठीक मैं सोती हू यही पर
बरी आक्ची हवा चल रही है, तू कपरो को देखते रहना और जो सुख
जाए उन्हे उठा लेना, ठीक है" और फिर मुँह घुमा कर एक तरफ सो
गई. मैं भी चुप चाप वही आँख खोले लेता रहा, मा की
चुचियाँ धीरे धीरे उपर नीचे हो रही थी. उसने अपना एक हाथ
मोर कर अपने आँखो पर रखा हुआ था और दूसरा हाथ अपने बगल में
रख कर सो रही थी. मैं चुप चाप उसे सोता हुआ देखता रहा, थोरी
देर में उसकी उठती गिरती चुचियों का जादू मेरे उपर चल गया और
मेरा लंड खरा होने लगा. मेरा दिल कर रहा था की काश मैं फिर
से उन चुचियों को एक बार च्छू लू. मैने अपने आप को गालिया भी
निकाली, क्या उल्लू का पता हू मैं भी जो चीज़ आराम से च्छुने को
मिल रही थी तो उसे च्छुने की बजाए मैं हाथ हटा लिया. पर अब
क्या हो सकता था. मैं चुप चाप वैसे ही बैठा रहा. कुच्छ सोच भी नही पा रहा था. फिर मैने सोचा की जब उस वाक़ूत मा ने खुद
मेरा हाथ अपनी चुचियों पर रखा दिया था तो फिर अगर मैं खुद
अपने मन से रखू तो शायद दाँटेगी नही, और फिर अगर दाँटेगी तो बोल
दूँगा तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस व्क़ुत पाकर कर रखा था, तो अब मैं
अपने आप से रख दिया. सोचा शायद तुम बुरा नही मनोगी. यही सब
सोच कर मैने अपने हाथो को धीरे से उसकी चुचियों पर ले जा के
रख दिया, और हल्के हल्के सहलाने लगा. मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ रहा
था मैने हल्के से उसकी सारी को पूरी तरह से उसके ब्लाउस पर से
हटा दिया और फिर उसकी चुचियों को दबाया. ऊवू इतना ग़ज़ब का मज़ा
आया की बता नही सकता, एकद्ूम गुदाज़ और सख़्त चुचियाँ थी मा की
इस उमर में भी मेरा तो लंड खरा हो गया, और मैने अपने एक हाथ
को चुचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लंड को मसल्ने लगा.
जैसे जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी वैसे वैसी मेरे हाथ दोनो
जगहो पर तेज़ी के साथ चल रहे थे. मुझे लगता है की मैने मा
की चुचियों को कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर से दबा दिया था, शायद इसीलिए
मा की आँख खुल गई. और वो एकदम से हर्बराते उठ गई और अपने
अचल को संभालते हुए अपनी चुचियों को ढक लिया और फिर, मेरी
तरफ देखती हुई बोली, "हाय, क्या कर रहा था तू, हाय मेरी तो आँख लग
गई थी" मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चेहरे
का रंग उर गया था. मा ने मुझे गौर से एक पल के लिए देखा और
सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुरहत
बिखेरते हुए बोली "हाय, देखो तो सही क्या सही काम कर रहा था ये
लरका, मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था".
फिर मा उठ कर सीधा खरी हो गई और बोली "अभी आती हू" कह कर
मुस्कुराते हुए झारियों की तरफ बढ़ गई. झारियों के पिच्चे जा के
फिर अपने चूटरो को ज़मीन परा सताए हुए ही थोरा आगे सरकते हुए
मेरे पास आई, उसके सरक कर आगे आने से उसके सारी थोई सी उपर हो
गई और उसका आँचल उसकी गोद में गिर गया. पर उसको इसकी फिकर नही
थी. वो अब एक दम से मेरे नज़दीक आ गई थी और उसकी गरम साँसे
मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी. वो एक पल के लिए ऐसे ही मुझे
देखती रही फिर मेरे थोड़ी पाकर कर मुझे उपर उठाते हुए हल्के से
मुस्कुराते हुए धीरे से बोली "क्यों रे बदमाश क्या कर रहा था, बोल
ना क्या बदमसी कर रहा था अपनी मा के साथ" फिर मेरे फूले फूले
गाल पाकर कर हल्के से मसल दिया. मेरे मुँह से तो आवाज़ नही निकाल
रही थी, फिर उसने हल्के से अपना एक हाथ मेरे जाँघो पर रखा और
सहलाते हुए बोली "है, कैसे खरा कर रखा है मुए ने" फिर सीधा
पाजामा के उपर से मेरे खरे लंड जो की मा के जागने से थोरा ढीला
हो गया था पर अब उसके हाथो स्पर्श पा के फिर से खरा होने लगा
था पर उसने अपने हाथ रख दिया, "उई मा, कैसे खरा कर रखा
है, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या, है, बेटा और
मेरी इसको भी मसल रहा था, तू तो अब लगता है जवान हो गया है,
तभी मैं काहु की जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा ये लरका मुझे
घूर घूर के क्यों देख रहा था, ही, इस लरके की तो अपनी मा के उपर
ही बुरी नज़र है"