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Incest धोबी घाट पर माँ और मैं

Kunal vadhiya

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Part 4

माँ ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले लिया और कहा- इसका मतलब तू मुझे नंगी नहीं देख सकता, है ना?

मेरे मुंह से निकल गया- हाय माँ, छोड़ो ना!
मैं हकलाते हुए बोला- नहीं माँ, ऐसा नहीं है।
‘तो फिर क्या है? तू अपनी माँ को नंगी देख लेगा क्या?’
‘हाय, मैं क्या कर सकता था? वो तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया, तब मुझे नंगा दिख गया। नहीं तो मैं कैसे देख पाता?’

‘वो तो मैं समझ गई, पर उस वक्त तुझे देख कर मुझे ऐसा लगा, जैसे कि तू मुझे घूर रहा है… इसलिये पूछा।’
‘हाय माँ, ऐसा नहीं है। मैंने तुम्हें बताया ना, तुम्हें बस ऐसा लगा होगा।’
‘इसका मतलब तुझे अच्छा नहीं लगा था ना?’
‘हाय माँ, छोड़ो…’ मैं हाथ छुड़ाते हुए अपने चेहरे को छुपाते हुए बोला।

माँ ने मेरा हाथ नहीं छोड़ा और बोली- सच सच बोल, शरमाता क्यों है?
मेरे मुंह से निकल गया- हाँ, अच्छा लगा था।
इस पर माँ ने मेरे हाथ को पकड़ के सीधे अपनी छाती पर रख दिया और बोली- फिर से देखेगा माँ को नंगी? बोल देखेगा?’

मेरे मुख से आवाज नहीं निकल पा रही थी, मैं बड़ी मुश्किल से अपने हाथों को उसकी नुलीली, गुदाज छातियों पर स्थिर रख पा रहा था। ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता, मेरे मुख से एक कराहने की सी आवाज निकली।
माँ ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर फिर से मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और बोली- क्या हुआ? बोल ना, शरमाता क्यों है? जो बोलना है बोल।
मैं कुछ नहीं बोला।

थोड़ी देर तक उसकी चूचियों पर ब्लाउज़ के ऊपर से ही हल्का-सा हाथ फेरा।, फिर मैंने हाथ खींच लिया।
माँ कुछ नहीं बोली, गौर से मुझे देखती रही, फिर पता नहीं क्या सोच कर वो बोली- ठीक है, मैं सोती हूँ यहीं पर… बड़ी अच्छी हवा चल
रही है, तू कपड़ों को देखते रहेना, जो सूख जायें, उन्हें उठा लेना। ठीक है?
और फिर मुंह घुमा कर एक तरफ सो गई।
मैं भी चुपचाप वहीं आँखें खोले लेटा रहा।

माँ की चूचियाँ धीरे-धीरे ऊपर-नीचे हो रही थी। उसने अपना एक हाथ मोड़ कर अपनी आँखों पर रखा हुआ था और दूसरा हाथ अपनी बगल में रख कर सो रही थी। मैं चुपचाप उसे सोता हुआ देखता रहा।
थोड़ी देर में उसकी उठती गिरती चूचियों का जादू मेरे ऊपर चल गया और मेरा लण्ड खड़ा होने लगा, मेरा दिल कर रह था कि काश मैं फिर से उन चूचियों को एक बार छू लूँ।
मैंने अपने आप को गालियाँ भी निकाली- क्या उल्लू का पठ्ठा हूँ मैं भी, जो चीज आराम से छूने को मिल रही थी, तो उसे छूने की बजाये मैंने हाथ हटा लिया।

पर अब क्या हो सकता था, मैं चुपचाप वैसे ही बैठा रहा, कुछ सोच भी नहीं पा रहा था।
फिर मैंने सोचा कि जब उस वक्त माँ ने खुद मेरा हाथ अपनी चूचियों पर रख दिया था तो फिर अगर मैं खुद अपने मन से रखूँ तो शायद डांटेगी नहीं, और फिर अगर डांटेगी तो बोल दूँगा कि तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस वक्त पकड़ कर रखा था, तो अब मैंने अपने आप से रख दिया, सोचा, शायद तुम बुरा नहीं मानोगी।

यही सब सोच कर मैंने अपने हाथों को धीरे से उसकी चूचियों पर ले जा कर रख दिया और हल्के हल्के से सहलाने लगा। मुझे गजब का मजा आ रहा था। मैंने हल्के से उसकी साड़ी को पूरी तरह से उसके ब्लाउज़ पर से हटा दिया और फिर उसकी चूचियों को दबाया।
ओ…ओह… इतना गजब का मजा आया कि बता नहीं सकता… एकदम गुदाज और सख्त चूचियाँ थी माँ की इस उमर में भी।

मेरा तो लण्ड खड़ा हो गया, और मैं अपने एक हाथ को चूचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लण्ड को मसलने लगा।
जैसे-जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी, वैसे-वैसे मेरे हाथ दोनों जगहों पर तेजी के साथ चल रहे थे। मुझे लगता है कि मैंने माँ की चूचियों को कुछ ज्यादा ही जोर से दबा दिया था, शायद इसलिये माँ की आँख खुल गई, वो एकदम से हड़बड़ाते उठ गई, अपने आंचल को संभालते हुए अपनी चूचियों को ढक लिया और फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली- हाय, क्या कर रहा था तू? हाय,मेरी तो आँख लग गई थी

मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लण्ड पर था और मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था।
माँ ने मुझे गौर से एक पल के लिये देखा और सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोली- हाय, देखो तो सही !! क्या सही काम कर रहा था ये लड़का। मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था।

फिर माँ उठ कर सीधी खड़ी हो गई और बोली- अभी आती हूँ।
कह कर मुस्कुराते हुए झाड़ियों की तरफ बढ़ गई। झाड़ियों के पीछे से आकर फिर अपने चूतड़ों को जमीन पर सटाये हुए ही थोड़ा आगे सरकते हुए मेरे पास आई।
उसके सरक कर आगे आने से उसकी साड़ी थोड़ी-सी ऊपर हो गई, और उसका आंचल उसकी गोद में गिर गया पर उसको इसकी फिकर नहीं थी। वो अब एकदम से मेरे नजदीक आ गई थी और उसकी गरम सांसें मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी।

वो एक पल के लिये ऐसे ही मुझे देखती रही, फिर मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे ऊपर उठाते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- क्यों रे बदमाश, क्या कर रहा था? बोल ना, क्या बदमाशी कर रहा था अपनी माँ के साथ?
फिर मेरे फूले-फूले गाल पकड़ कर हल्के-से मसल दिये।

मेरे मुख से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी।
फिर उसने हल्के-से अपना एक हाथ मेरी जांघों पर रखा और सहलाते हुए बोली- हाय, कैसे खड़ा कर रखा है, मुए ने?
फिर सीधा पजामे के ऊपर से मेरे खड़े लण्ड (जो माँ के जगने से थोड़ा ढीला हो गया था, पर अब उसके हाथों का स्पर्श पाकर फिर से खड़ा होने लगा था।) पर उसने अपना हाथ रख दिया- उई माँ, कैसे खड़ा कर रखा है? क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या? हाय बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था? तू तो अब लगता है, जवान हो गया है। तभी मैं कहूँ कि जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा,
यह लड़का मुझे घूर घूर कर क्यों देख रहा था? हाय, इस लड़के की तो अपनी माँ के ऊपर ही बुरी नजर है।

‘हाय माँ, गलती हो गई, माफ कर दो।’

कहानी जारी रहेगी।....
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Thanks
Aakash...?
 
Last edited by a moderator:

Kunal vadhiya

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Part 5..

मेरे मुख से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी।
फिर उसने हल्के-से अपना एक हाथ मेरी जांघों पर रखा और सहलाते हुए बोली- हाय, कैसे खड़ा कर रखा है, मुए ने?

फिर सीधा पजामे के ऊपर से मेरे खड़े लण्ड (जो माँ के जगने से थोड़ा ढीला हो गया था, पर अब उसके हाथों का स्पर्श पाकर फिर से खड़ा होने लगा था।) पर उसने अपना हाथ रख दिया- उई माँ, कैसे खड़ा कर रखा है? क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या? हाय बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था? तू तो अब लगता है, जवान हो गया है। तभी मैं कहूँ कि जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा,
यह लड़का मुझे घूर घूर कर क्यों देख रहा था? हाय, इस लड़के की तो अपनी माँ के ऊपर ही बुरी नजर है।

‘हाय माँ, गलती हो गई, माफ कर दो।’
‘ओहो… अब बोल रहा है गलती हो गई, पर अगर मैं नहीं जगती तो तू तो अपना पानी निकाल के ही मानता ना ! मेरी छातियों को दबा दबा के !! उमम्म बोल, निकालता या नहीं, पानी?’
‘हाय माँ, गलती हो गई।’
‘वाह रे तेरी गलती, कमाल की गलती है। किसी का मसल दो, दबा दो, फिर बोलो की गलती हो गई। अपना मजा कर लो, दूसरे चाहे कैसे भी रहे।’

कह कर माँ ने मेरे लंड को कस के दबाया, उसके कोमल हाथों का स्पर्श पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था और गरम भी काफी हो गया था- हाय माँ छोड़ो, क्या कर रही हो?
माँ उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली- क्यों प्यारे, तूने मेरा दबाया तब, तो मैंने नहीं बोला कि छोड़ो। अब क्यों बोल रहा है तू?
मैंने कहा- ‘हाय, माँ तू दबायेगी तो सच में मेरा पानी निकल जायेगा। हाय, छोड़ो ना माँ।’

‘क्यों, पानी निकालने के लिये ही तो तू दबा रहा था ना मेरी छातियाँ? मैं अपने हाथ से निकाल देती हूँ, तेरे गन्ने से तेरा रस, चल जरा अपना गन्ना तो दिखा।’
‘हाय माँ, छोड़ो, मुझे शरम आती है।’
‘अच्छा, अब तो बड़ी शरम आ रही है, और हर रोज जो लुन्गी और पजामा हटा हटा कर जब सफाई करता है तब? तब क्या मुझे
दिखाई नहीं देता क्या? अभी बड़ी एक्टिंग कर रहा है।’

‘हाय, नहीं माँ, तब की बात तो और है, फिर मुझे थोड़े ही पता होता था कि तुम देख रही हो।’
ओह, ओह, मेरे भोले राजा, बड़ा भोला बन रहा है, चल दिखा ना, देखूँ कितना बड़ा और मोटा है तेरा गन्ना?
मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था, मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे और लग रहा था जैसे मेरा पानी अब निकला कि तब निकला।

इस बीच माँ ने मेरे पजामे का नाड़ा खोल दिया और अंदर हाथ डाल कर मेरे लंड को सीधा पकड़ लिया।
मेरा लंड जो केवल उसके छूने के कारण से फुफकारने लगा था, अब उसके पकड़ने पर अपनी पूरी औकात पर आ गया और किसी मोटे लोहे की छड़ की तरह एकदम तन कर ऊपर की तरफ मुंह उठाये खड़ा था।

माँ मेरे लंड को अपने हाथों में पकड़ने की पूरी कोशिश कर रही थी पर मेरे लंड की मोटाई के कारण से वो उसे अपन मुठ्ठी में अच्छी तरह से कैद नहीं कर पा रही थी।
उसने मेरे पजामे को वहीं खुले में पेड़ के नीचे मेरे लंड पर से हटा दिया।

‘हाय माँ, छोड़ो, कोई देख लेगा, ऐसे कपड़े मत हटाओ।’
मगर माँ शायद पूरे जोश में आ चुकी थी- चल, कोई नहीं देखता। फिर सामने बैठी हूँ, किसी को नजर भी नहीं आयेगा। देखूँ तो सही
मेरे बेटे का गन्ना आखिर है कितना बड़ा?

और मेरा लंड देखते ही आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया, एकदम से चौंकती हुई बोली- हाय दैय्या!! यह क्या?? इतना मोटा और इतना लम्बा ! ये कैसे हो गया रे, तेरे बाप का तो बित्ते भर का भी नहीं है, और यहाँ तू बेलन के जैसा ले के घूम रहा है?

‘ओह माँ, मेरी इसमें क्या गलती है। ये तो शुरु में पहले छोटा-सा था, पर अब अचानक इतना बड़ा हो गया है तो मैं क्या करुँ?’
‘गलती तो तेरी ही है जो तूने इतना बड़ा जुगाड़ होते हुए भी अभी तक मुझे पता नहीं चलने दिया। वैसे जब मैंने देखा था नहाते वक्त, तब तो इतना बड़ा नहीं दिख रहा था रे?’
‘हाय माँ, वो… वो…’ मैं हकलाते हुए बोला- वो इसलिये क्योंकि उस समय यह उतना खड़ा नहीं रहा होगा। अभी यह पूरा खड़ा हो गया है।’
‘ओह ओह, तो अभी क्यों खड़ा कर लिया इतना बड़ा? कैसे खड़ा हो गया अभी तेरा?’

अब मैं क्या बोलता कि कैसे खड़ा हो गया, यह तो बोल नहीं सकता था कि माँ तेरे कारण खड़ा हो गया है मेरा, मैंने सकपकाते हुए
कहा- अरे, वो ऐसे ही खड़ा हो गया है। तुम छोड़ो, अभी ठीक हो जायेगा।
‘ऐसे कैसे खड़ा हो जाता है तेरा?’ माँ ने पूछा और मेरी आँखों में देख कर अपने रसीले होठों का एक कोना दबा के मुस्काने लगी।
‘अरे, तुमने पकड़ रखा है ना, इसलिये खड़ा हो गया है मेरा! क्या करुँ मैं? हाय छोड़ दो ना!’

मैं किसी भी तरह से माँ का हाथ अपने लंड पर से हटा देना चाहता था। मुझे ऐसा लग रहा था कि माँ के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर
कहीं मेरा पानी निकल ना जाये।
फिर माँ ने केवल पकड़ा तो हुआ नहीं था, वो धीरे धीरे मेरे लंड को सहला भी और बार-बार अपने अंगूठे से मेरे चिकने सुपाड़े को छू भी
रही थी।
‘अच्छा, अब सारा दोष मेरा हो गया? और खुद जो इतनी देर से मेरी छातियाँ पकड़ कर मसल रहा था और दबा रहा था, उसका कुछ नहीं?’
‘चल मान लिया गलती हो गई, पर सजा तो इसकी तुझे देनी पड़ेगी, मेरा तूने मसला है, मैं भी तेरा मसल देती हूँ।’
कह कर माँ अपने हाथों को थोड़ा तेज चलाने लगी और मेरे लंड का मुठ मारते हुए मेरे लंड की मुंडी को अंगूठे से थोड़ी तेजी के साथ
घिसने लगी।

मेरी हालत एकदम खराब हो रही थी, गुदगुदाहट और सनसनी के मारे मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल पा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरा पानी अब निकला कि तब निकला।
पर माँ को मैं रोक भी नहीं पा रहा था, मैंने सिसयाते हुए कहा- ओह माँ, हाय निकल जायेगा, मेरा निकल जायेगा।
इस पर माँ और जोर से हाथ चलाते हुए अपनी नजर ऊपर करके मेरी तरफ देखते हुए बोली- क्या निकल जायेगा?

‘ओह ओह, छोड़ो ना, तुम जानती हो, क्या निकल जायेगा! क्यों परेशान कर रही हो?’
‘मैं कहाँ परेशान कर रही हूँ? तू खुद परेशान हो रहा है।’
‘क्यों, मैं क्यों भला खुद को परेशान करूँगा? तुम तो खुद ही जबरदस्ती पता नहीं क्यों मेरा मसले जा रही हो?’
‘अच्छा, जरा ये तो बता, शुरुआत किसने की थी मसलने की?’
कह कर माँ मुस्कुराने लगी।

मुझे तो जैसे सांप सूंघ गया था, मैं भला क्या जवाब देता, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, क्या ना करूँ? ऊपर से मजा इतना आ रहा था कि जान निकली जा रही थी।
तभी माँ ने अचानक मेरा लंड छोड़ दिया और बोली- अभी आती हूँ।
और एक कातिल मुस्कुराहट छोड़ते हुए उठ कर खड़ी हो गई और झाड़ियों की तरफ चल दी।
मैं उसको झाड़ियों की ओर जाते हुए देखता हुआ वहीं पेड़ के नीचे बैठा रहा।

जहाँ हम बैठे हुए थे, झाड़ियाँ वहाँ से बस दस कदम की दूरी पर थी। दो-तीन कदम चलने के बाद माँ पीछे की ओर मुड़ी और बोली- बड़ी जोर से पेशाब आ रही थी, तुझे आ रही हो तो तू भी चल, तेरा औजार भी थोड़ा ढीला हो जायेगा, ऐसे बेशरमों की तरह से खड़ा किये हुए है।
और फिर अपने निचले होंठ को हल्के से काटते हुए आगे चल दी।

मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैं कुछ देर तक वैसे ही बैठा रहा। इस बीच माँ झाड़ियों के पीछे जा चुकी
थी।
झाड़ियों की इस तरफ से जो भी झलक मुझे मिल रही थी, वो देख कर मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि माँ अब बैठ चुकी है और शायद पेशाब भी कर रही है।

मैंने फिर थोड़ी हिम्मत दिखाई और उठ कर झाड़ियों की तरफ चल दिया। झाड़ियों के पास पहुंच कर नजारा कुछ साफ दिखने लगा था। माँ आराम से अपनी साड़ी उठा कर बैठी हुई थी और मूत रही थी।
उसके इस अंदाज से बैठने के कारण पीछे से उसकी गोरी गोरी जाँघें तो साफ दिख ही रही थी, साथ साथ उसके मक्खन जैसे चूतड़ों का निचला भाग भी लगभग साफ-साफ दिखाई दे रहा था।

यह देख कर तो मेरा लंड और भी बुरी तरह से अकड़ने लगा था। हालांकि उसकी जाँघों और चूतड़ों की झलक देखने का यह पहला मौका नहीं था, पर आज, और दिनों से कुछ ज्यादा ही उत्तेजना हो रही थी।
उसके पेशाब करने की आवाज तो आग में घी का काम कर रही थी। शर्र… शुर्र… सर्र… करते हुए किसी औरत के मूतने की आवाज में पता नहीं क्या आकर्षण होता है, किशोर उमर के सारे लड़कों को अपनी ओर खींच लेती है।
मेरा तो बुरा हाल हो गया था, मैं भी उस तरफ़ चला गया।

तभी मैंने देखा कि माँ उठ कर खड़ी हो गई। जब वो पलटी तो मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली- अरे, तू भी चला आया?
मैंने तो तुझे पहले ही कहा था कि तू भी हल्का हो ले।’
फिर आराम से अपने हाथों को साड़ी के ऊपर बुर प रख कर इस तरह से दबाते हुए खुजाने लगी जैसे बुर पर लगी पेशाब को पौंछ रही हो और मुस्कुराते हुए चल दी जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं।

मैं एक पल को तो हैरान परेशान सा वहीं पर खड़ा रहा।
फिर मैं भी झाड़ियों के पीछे चला गया और पेशाब करने लगा।
बड़ी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नहीं निकला, फिर जब लंड कुछ ढीला पड़ा तब जा के पेशाब निकलना शुरु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस पेड़ के नीचे चल पड़ा।

पेड़ के पास पहुंच कर मैंने देखा माँ बैठी हुई थी, मेरे पास आने पर बोली- आ बैठ, हल्का हो आया?
कह कर मुस्कुराने लगी। मैं भी हल्के हल्के मुस्कुराते कुछ शरमाते हुए बोला- हाँ, हल्का हो आया।
और बैठ गया।
 

Kunal vadhiya

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Part 6...

मैं भी झाड़ियों के पीछे चला गया और पेशाब करने लगा।
बड़ी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नहीं निकला, फिर जब लंड कुछ ढीला पड़ा तब जा के पेशाब निकलना शुरु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस पेड़ के नीचे चल पड़ा।

पेड़ के पास पहुंच कर मैंने देखा माँ बैठी हुई थी, मेरे पास आने पर बोली- आ बैठ, हल्का हो आया?
कह कर मुस्कुराने लगी। मैं भी हल्के हल्के मुस्कुराते कुछ शरमाते हुए बोला- हाँ, हल्का हो आया।
और बैठ गया।
मेरे बैठने पर माँ ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर मेरा सिर उठा दिया और सीधा मेरी आँखों में झांकते हुए बोली- क्यों रे, उस समय जब मैं छू
रही थी, तब तो बड़ा भोला बन रहा था। और जब मैं पेशाब करने गई थी, तो वहाँ पीछे खड़ा हो के क्या कर रहा था शैतान ?!!

मैंने अपनी ठुड्डी पर से माँ का हाथ हटाते हुए फिर अपने सिर को नीचे झुका लिया और हकलाते हुए बोला- ओह माँ, तुम भी ना !
‘मैंने क्या किया?’ माँ ने हल्की सी चपत मेरे गाल पर लगाई और पूछा।
‘माँ, तुमने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो आ जाओ।’
इस पर माँ ने मेरे गालों को हल्के से खींचते हुए कहा- अच्छा बेटा, मैंने हल्का होने के लिये कहा था, पर तू तो वहाँ हल्का होने की जगह भारी हो रहा था। मुझे पेशाब करते हुए घूर-घूर कर देखने के लिये तो मैंने नहीं कहा था तुझे, फिर तू क्यों घूर घूर कर मजे लूट रहा था?
‘हाय, मैं कहाँ मजा लूट रहा था, कैसी बातें कर रही हो माँ?’
‘ओह हो… शैतान अब तो बड़ा भोला बन रहा है।’ कह कर हल्के से मेरी जांघों को दबा दिया।
‘हाय, क्या कर रही हो?’
पर उसने छोड़ा नहीं और मेरी आँखों में झांकते हुए फिर धीरे से अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसाते हुए पूछा- फिर से दबाऊँ?

मेरी तो हालत उसके हाथ के छूने भर से फिर से खराब होने लगी। मेरी समझ में एकदम नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। कुछ जवाब देते हुए भी नहीं बन रहा था कि क्या जवाब दूँ।
तभी वो हल्का सा आगे की ओर सरकी और झुकी, आगे झुकते ही उसका आंचल उसके ब्लाउज़ पर से सरक गया पर उसने कोई प्रयास
नहीं किया उसको ठीक करने का।

अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी। मेरी आंखों के सामने उसकी नारीयल के जैसी सख्त चूचियाँ जिनको सपने में देख कर मैंने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था, और जिनको दूर से देख कर ही तड़पता रहता था, नुमाया थी।
भले ही चूचियाँ अभी भी ब्लाउत में ही कैद थी, परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके ऊपर से ही लगाया जा सकता था। ब्लाउज़ के ऊपरी भाग से उसकी चूचियों के बीच की खाई का ऊपरी गोरा गोरा हिस्सा नजर आ रहा था।

हालांकि, चूचियों को बहुत बड़ा तो नहीं कहा जा सकता पर उतनी बड़ी तो थी ही, जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन की हो सकती हैं। मेरा मतलब है कि इतनी बड़ी जितनी कि आपके हाथों में ना आये, पर इतनी बड़ी भी नहीं की आपको दो-दो हाथों से पकड़नी पड़े, और फिर भी आपके हाथों में ना आये।
माँ की चूचियाँ एकदम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी और सामने की ओर निकली हुई थी। मेरी आँखें तो हटाये नहीं हट रही
थी।

तभी माँ ने अपने हाथों को मेरे लंड पर थोड़ा जोर से दबाते हुए पूछा- बोल ना, और दबाऊँ क्या?
‘हाय माँ, छोड़ो ना…’
उसने जोर से मेरे लंड को मुठ्ठी में भर लिया।
‘हाय माँ, छोड़ो… बहुत गुदगुदी होती है।’
‘तो होने दे ना, तू बस बोल दबाऊँ या नहीं?’
‘हाय दबाओ माँ, मसलो।’
‘अब आया ना, रास्ते पर!’

‘हाय माँ, तुम्हारे हाथों में तो जादू है।’
‘जादू हाथों में है या !! या फिर इसमें है?’ माँ अपने ब्लाउज़ की तरफ इशारा कर के पूछा।
‘हाय माँ, तुम तो बस!!’
‘शरमाता क्यों है? बोल ना क्या अच्छा लग रहा है?’
‘हाय मम्मी, मैं क्या बोलूँ?’
‘क्यों क्या अच्छा लग रहा है? अरे, अब बोल भी दे, शरमाता क्यों है?’
‘हाय मम्मी दोनों अच्छे लग रहे हैं।’
‘क्या, ये दोनों?’ अपने ब्लाउज़ की तरफ इशारा कर के पूछा।
‘हां, और तुम्हारा दबाना भी।’
‘तो फिर शरमा क्यों रहा था, बोलने में? ऐसे तो हर रोज घूर-घूर कर मेरे अनारों को देखता रहता है।’

फिर माँ ने बड़े आराम से मेरे पूरे लंड को मुठ्ठी के अंदर कैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलाना शुरु कर दिया।
‘तू तो पूरा जवान हो गया है रे!’
‘हाय माँ!’
‘हाय हाय, क्या कर रहा है? पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू तो, अब तो बरदाश्त भी नहीं होता होगा, कैसे करता है?’
‘हाय माँ, मजे की तो बस पूछो मत, बहुत मजा आ रहा है।’ मैं बोला।

इस पर माँ ने अपना हाथ और तेजी से चलाना शुरु कर दिया और बोली- साले, हरामी कहीं के !!! मैं जब नहाती हूँ, तब घूर घूर के मुझे देखता रहता है। मैं जब सो रही थी तो मेरे चूचे दबा रहा था और अभी मजे से मुठ मरवा रहा है। कमीने, तेरे को शरम नहीं आती?

मेरा तो होश ही उड़ गया, माँ यह क्या बोल रही थी।
पर मैंने देखा कि उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाये जा रहा था। तभी माँ, मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर हंसने लगी और हंसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड़ लगा दिया।

मैंने कभी भी इससे पहले माँ को ना तो ऐसे बोलते सुना था, ना ही इस तरह से बर्ताव करते हुए देखा था इसलिये मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था।
पर उसके हंसते हुए थप्पड़ लगाने पर तो मुझे और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि आखिर यह चाहती क्या है और मैं बोला- माफ कर दो माँ, अगर कोई गलती हो गई हो तो?
इस पर माँ ने मेरे गालों को हल्के सहलाते हुए कहा- गलती तो तू कर बैठा है बेटे, अब केवल गलती की सजा मिलेगी तुझे।’
मैंने कहा- क्या गलती हो गई मेरे से माँ?
‘सबसे बड़ी गलती तो यह है कि तू सिर्फ़ घूर घूर के देखता है बस, करता धरता तो कुछ है नहीं। घूर घूर के कितने दिन देखता रहेगा?’
‘क्या करुँ माँ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।’
‘साले, बेवकूफ की औलाद, अरे करने के लिये इतना कुछ है, और तुझे समझ में ही नहीं आ रहा है।’
‘क्या माँ, बताओ ना ?’
‘देख, अभी जैसे कि तेरा मन कर रहा है की, तू मेरे अनारो से खेले, उन्हे दबाये, मगर तू वो काम ना करके केवल मुझे घूरे जा रहा
है। बोल तेरा मन कर रहा है या नहीं बोलना?’
‘हाय माँ, मन तो मेरा बहुत कर रहा है।’
‘तो फिर दबा ना… मैं जैसे तेरे औजार से खेल रही हूँ, वैसे ही तू मेरे सामान से खेल दबा… बेटा दबा…’

यह कहानी काल्पनिक है मित्रो, और भी आगे खूब मजेदार कहानिया लिखूँगा। आप अपना सुझाव जरूर दें, मुझे मेल जरूर करें!..
 

Siraj Patel

The name is enough
Staff member
Sr. Moderator
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114,422
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Hello Everyone :hello:

We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..


Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.


Regards : XForum Staff.
 

Mickay-M

Active Member
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138
Part 6...

मैं भी झाड़ियों के पीछे चला गया और पेशाब करने लगा।
बड़ी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नहीं निकला, फिर जब लंड कुछ ढीला पड़ा तब जा के पेशाब निकलना शुरु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस पेड़ के नीचे चल पड़ा।

पेड़ के पास पहुंच कर मैंने देखा माँ बैठी हुई थी, मेरे पास आने पर बोली- आ बैठ, हल्का हो आया?
कह कर मुस्कुराने लगी। मैं भी हल्के हल्के मुस्कुराते कुछ शरमाते हुए बोला- हाँ, हल्का हो आया।
और बैठ गया।
मेरे बैठने पर माँ ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर मेरा सिर उठा दिया और सीधा मेरी आँखों में झांकते हुए बोली- क्यों रे, उस समय जब मैं छू
रही थी, तब तो बड़ा भोला बन रहा था। और जब मैं पेशाब करने गई थी, तो वहाँ पीछे खड़ा हो के क्या कर रहा था शैतान ?!!

मैंने अपनी ठुड्डी पर से माँ का हाथ हटाते हुए फिर अपने सिर को नीचे झुका लिया और हकलाते हुए बोला- ओह माँ, तुम भी ना !
‘मैंने क्या किया?’ माँ ने हल्की सी चपत मेरे गाल पर लगाई और पूछा।
‘माँ, तुमने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो आ जाओ।’
इस पर माँ ने मेरे गालों को हल्के से खींचते हुए कहा- अच्छा बेटा, मैंने हल्का होने के लिये कहा था, पर तू तो वहाँ हल्का होने की जगह भारी हो रहा था। मुझे पेशाब करते हुए घूर-घूर कर देखने के लिये तो मैंने नहीं कहा था तुझे, फिर तू क्यों घूर घूर कर मजे लूट रहा था?
‘हाय, मैं कहाँ मजा लूट रहा था, कैसी बातें कर रही हो माँ?’
‘ओह हो… शैतान अब तो बड़ा भोला बन रहा है।’ कह कर हल्के से मेरी जांघों को दबा दिया।
‘हाय, क्या कर रही हो?’
पर उसने छोड़ा नहीं और मेरी आँखों में झांकते हुए फिर धीरे से अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसाते हुए पूछा- फिर से दबाऊँ?

मेरी तो हालत उसके हाथ के छूने भर से फिर से खराब होने लगी। मेरी समझ में एकदम नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। कुछ जवाब देते हुए भी नहीं बन रहा था कि क्या जवाब दूँ।
तभी वो हल्का सा आगे की ओर सरकी और झुकी, आगे झुकते ही उसका आंचल उसके ब्लाउज़ पर से सरक गया पर उसने कोई प्रयास
नहीं किया उसको ठीक करने का।

अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी। मेरी आंखों के सामने उसकी नारीयल के जैसी सख्त चूचियाँ जिनको सपने में देख कर मैंने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था, और जिनको दूर से देख कर ही तड़पता रहता था, नुमाया थी।
भले ही चूचियाँ अभी भी ब्लाउत में ही कैद थी, परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके ऊपर से ही लगाया जा सकता था। ब्लाउज़ के ऊपरी भाग से उसकी चूचियों के बीच की खाई का ऊपरी गोरा गोरा हिस्सा नजर आ रहा था।

हालांकि, चूचियों को बहुत बड़ा तो नहीं कहा जा सकता पर उतनी बड़ी तो थी ही, जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन की हो सकती हैं। मेरा मतलब है कि इतनी बड़ी जितनी कि आपके हाथों में ना आये, पर इतनी बड़ी भी नहीं की आपको दो-दो हाथों से पकड़नी पड़े, और फिर भी आपके हाथों में ना आये।
माँ की चूचियाँ एकदम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी और सामने की ओर निकली हुई थी। मेरी आँखें तो हटाये नहीं हट रही
थी।

तभी माँ ने अपने हाथों को मेरे लंड पर थोड़ा जोर से दबाते हुए पूछा- बोल ना, और दबाऊँ क्या?
‘हाय माँ, छोड़ो ना…’
उसने जोर से मेरे लंड को मुठ्ठी में भर लिया।
‘हाय माँ, छोड़ो… बहुत गुदगुदी होती है।’
‘तो होने दे ना, तू बस बोल दबाऊँ या नहीं?’
‘हाय दबाओ माँ, मसलो।’
‘अब आया ना, रास्ते पर!’

‘हाय माँ, तुम्हारे हाथों में तो जादू है।’
‘जादू हाथों में है या !! या फिर इसमें है?’ माँ अपने ब्लाउज़ की तरफ इशारा कर के पूछा।
‘हाय माँ, तुम तो बस!!’
‘शरमाता क्यों है? बोल ना क्या अच्छा लग रहा है?’
‘हाय मम्मी, मैं क्या बोलूँ?’
‘क्यों क्या अच्छा लग रहा है? अरे, अब बोल भी दे, शरमाता क्यों है?’
‘हाय मम्मी दोनों अच्छे लग रहे हैं।’
‘क्या, ये दोनों?’ अपने ब्लाउज़ की तरफ इशारा कर के पूछा।
‘हां, और तुम्हारा दबाना भी।’
‘तो फिर शरमा क्यों रहा था, बोलने में? ऐसे तो हर रोज घूर-घूर कर मेरे अनारों को देखता रहता है।’

फिर माँ ने बड़े आराम से मेरे पूरे लंड को मुठ्ठी के अंदर कैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलाना शुरु कर दिया।
‘तू तो पूरा जवान हो गया है रे!’
‘हाय माँ!’
‘हाय हाय, क्या कर रहा है? पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू तो, अब तो बरदाश्त भी नहीं होता होगा, कैसे करता है?’
‘हाय माँ, मजे की तो बस पूछो मत, बहुत मजा आ रहा है।’ मैं बोला।

इस पर माँ ने अपना हाथ और तेजी से चलाना शुरु कर दिया और बोली- साले, हरामी कहीं के !!! मैं जब नहाती हूँ, तब घूर घूर के मुझे देखता रहता है। मैं जब सो रही थी तो मेरे चूचे दबा रहा था और अभी मजे से मुठ मरवा रहा है। कमीने, तेरे को शरम नहीं आती?

मेरा तो होश ही उड़ गया, माँ यह क्या बोल रही थी।
पर मैंने देखा कि उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाये जा रहा था। तभी माँ, मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर हंसने लगी और हंसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड़ लगा दिया।

मैंने कभी भी इससे पहले माँ को ना तो ऐसे बोलते सुना था, ना ही इस तरह से बर्ताव करते हुए देखा था इसलिये मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था।
पर उसके हंसते हुए थप्पड़ लगाने पर तो मुझे और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि आखिर यह चाहती क्या है और मैं बोला- माफ कर दो माँ, अगर कोई गलती हो गई हो तो?
इस पर माँ ने मेरे गालों को हल्के सहलाते हुए कहा- गलती तो तू कर बैठा है बेटे, अब केवल गलती की सजा मिलेगी तुझे।’
मैंने कहा- क्या गलती हो गई मेरे से माँ?
‘सबसे बड़ी गलती तो यह है कि तू सिर्फ़ घूर घूर के देखता है बस, करता धरता तो कुछ है नहीं। घूर घूर के कितने दिन देखता रहेगा?’
‘क्या करुँ माँ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।’
‘साले, बेवकूफ की औलाद, अरे करने के लिये इतना कुछ है, और तुझे समझ में ही नहीं आ रहा है।’
‘क्या माँ, बताओ ना ?’
‘देख, अभी जैसे कि तेरा मन कर रहा है की, तू मेरे अनारो से खेले, उन्हे दबाये, मगर तू वो काम ना करके केवल मुझे घूरे जा रहा
है। बोल तेरा मन कर रहा है या नहीं बोलना?’
‘हाय माँ, मन तो मेरा बहुत कर रहा है।’
‘तो फिर दबा ना… मैं जैसे तेरे औजार से खेल रही हूँ, वैसे ही तू मेरे सामान से खेल दबा… बेटा दबा…’

यह कहानी काल्पनिक है मित्रो, और भी आगे खूब मजेदार कहानिया लिखूँगा। आप अपना सुझाव जरूर दें, मुझे मेल जरूर करें!..

please continue
 
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