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Shayari नामी क़वाली और गजल के उस्ताद, शायरी, नए और पुराने (हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और फारसी)

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार
में।।
 
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कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार
में।।

Na nind naina na ang chaina,
Na aap aaven na bhejen patiyan,
Bahaq-e-roz-e-visaal-e-dilbar,
Ke daad mara gharib Khusro.
Na nind naina na ang chaina,
Na aap aaven na bhejen patiyan,
Bahaq-e-roz-e-visaal-e-dilbar,
Ke daad mara gharib Khusro.
Sapet man ke varaye rakhun,
Jo jaye pauN piya ke khatiyan.
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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117,487
354
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है

मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है

अजब ए'तिबार ओ बे-ए'तिबारी के दरमियान है ज़िंदगी
मैं क़रीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है

मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है

वही मुंसिफ़ों की रिवायतें वही फ़ैसलों की इबारतें
मिरा जुर्म तो कोई और था प मिरी सज़ा कोई और है

कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है

जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
तो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है


________सलीम कौसर
 
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