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ये कहानी है चंदा की....चंदा जैसा नाम वैसी ही लड़की एकदम चांद सी खूबसूरत गोरी चिट्टी और पतली छरहरे बदन वाली एक लड़की....बेगूसराय के एक गांव में अपने बूढ़े पिता के साथ रहती है....
चंदा का बाप ठेला चलाता है गांव में ही कमाई का और कोई जरिया था नही इसलिए उसका परिवार संपन्नता से कोसो दूर था.....
चंदा की मां नहीं थी एक जानलेवा बीमारी से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद इस दुनिया को अलविदा बोल गई थी पर जितने दिन वो रही एक तरफ चंदा का बाप अपनी सारी कमाई उसमे झोंकता गया और दूसरी तरफ उसने चंदा को सर्वगुण सम्पन्न बना दिया था ताकि उसके ना रहने पर उसकी लाडली की जब कही शादी हो तो उसे ये न सुनने को मिले की मां ने कुछ सिखाया ही नही......
अपनी उमर से पहले ही चंदा परिपक्व बन गई थी....उसके उमर की लड़किया जब गली में कितकित खेला करती थी तब वो अपने घर में खाना पका रही होती थी.....
बचपन से वो इतने दुख तकलीफ देखते आई थी की आम लड़कियों की तरह वो खुद को कभी देख ही नहीं पाई हर वक्त हर कदम पे हालातो से समझौता करना उसकी आदत में शुमार था यही कारण था की वो एकदम शांत स्वभाव की लड़की थी....पर रूप....इस चीज से उसे भगवान ने वंचित नही रखा था....गरीबी में रहने के बावजूद उसका चेहरा ऐसे खिला हुआ रहता था जैसे कोयले में हीरा.....एकदम दिव्या भारती की तरह दिखती थी वो....
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चंदा के गांव के कई लोग दूसरे बड़े शहरों में कमाने जाते थे और इसी तरह चंदा के बाप ने उसके भाई गोपी को थोड़ा पढ़ाने लिखाने के बाद कमाने के लिए सूरत भेज दिया और गोपी ने भी वहा जाने के बाद जितना कमाया उसका एक हिस्सा अपने पास रख कर बाकी सारा घर भेजा करता था ताकि उसकी मां का इलाज हो सके.....
बाप की कमाई तो पहले ही उसकी मां के इलाज में जाता था पर अब अब गोपी की कमाई का भी एक बड़ा हिस्सा उसके जाने लगा....
कई बार उसने अपने बाप को बोला की यहां का घर बेच कर सूरत आ जाए यहां मां का इलाज भी हो सकेगा और आपको भी अच्छा काम मिल सकेगा पर उसका बाप नही माना......
और जब चंदा की मां नही रही तो गोपी ने एक बार फिर अपने बाप को साथ चलने को बोला की वो और चंदा उसके साथ वही चल कर रहे अब यहां कुछ नही बचा है पर अब तक चंदा के बाप को शराब ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था और इसी कारण उसका बाप उसके साथ नही गया....
जब तक शरीर में ताकत रहती वो अपना ठेला खींचता और शाम होते होते अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा शराब में घोल कर पी जाता...
पर एक बात थी बूढ़ा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था उसके लिए कुछ न कुछ खाने को जरूर ले जाता था रात को और कुछ पैसे भी देता था उसको जिससे चंदा घर की जरूरतों के साथ साथ अपनी भी छोटी छोटी जरुरते पूरी कर लेती थी.....और चंदा भी जानती थी की मां और गोपी के बाद उसके बाबा का कोई नही है....
इसलिए वो भी अपने बाबा की सेवा एक अच्छी बेटी की तरह करती थी...वो उसकी शराब तो नही छुड़वा सकती थी पर अपनी सेवा से हर सुबह उसकी बूढ़ी टांगो में इतनी ताकत जरूर भर देती थी की वो पूरे दिन कमा सके....
इधर गोपी ने कुछ दिन तक अपने बाप को समझाने का पूरा प्रयत्न किया पर कोई असर नहीं हुआ थक हार कर उसने चंदा को अपने साथ ले जाना चाहा तो चंदा बोली की वो अपने बाबा को छोड़ कर नही जायेगी....जब तक बाबा है तब तक वो उनके साथ ही रहेगी....
तो गोपी ने कहा कि सूरत में वो जहां काम करता है वही एक लड़की से वो शादी करने वाला है....इसलिए अब वो यहां नही आएगा और तू भी कब तक बिनब्याही बैठी रहेगी वहां मेरे साथ रहेगी तो कोई अच्छा सा लड़का देख के तेरा बियाह कर दूंगा....
तो चंदा का बाप अपने बेटे गोपी से ही लड़ बैठा की जब उसने अपनी जिंदगी के सारे फैसले खुद कर लिए है तो चंदा की फिकर करने की उसे कोई जरूरत नहीं है अभी उसका बाप जिंदा है....
उस दिन जो गोपी गया उसके बाद उसने इन दोनो से सदा के लिए मुंह फेर लिया.....जाने से पहले चंदा नेे गोपी को बहुत समझाने की कोशिश की पर अब गोपी का भी सब्र जवाब दे गया था इसलिए वो सारी बातो को अनसुना करते हुए सूरत वापिस लौट गया....
गोपी के सूरत जाने के बाद चांद के बाप ने चंदा को बोला की तू फिकर मत कर तुझे तेरे घर विदा करने के बाद ही मरूंगा....
चंदा बोलती मरे तेरे दुश्मन बाबा मां के बाद तुमने और भईया ने ही तो मुझे इतना बड़ा किया है तो फिर अब भईया के बाद मैं ही तो आपको आपके बुढ़ापे में संभालूंगी ना....
चंदा के बाप ने भी उसके सर पे हाथ फेर कर कहा जीती रह हमार बेटी भोला बाबा तोहर जोड़ी जरूर लगहिए.....
कुछ दिन तक चंदा के बाप ने उसकी शादी के लिए काफी प्रयास कीये पर कही दहेज तो कही कुछ लफड़ा लगा कर उसकी शादी तय नहीं हुई.....
दिन बदले महीनो में और महीने बदले साल में....समय अपनी रफ्तार से चलता गया और गोपी को गए चार साल हो गए और चंदा के बाप को उसके लिए रिश्ता ढूंढते हुए भी.....
चंदा अपने जीवन के अब उनतीसवे साल में प्रवेश कर चुकी थी अपने उम्र की वही एक लड़की थी पूरे कस्बे मे जो अभी तक बिनब्याही थी.....उसकी सारी सहेलियां का बियाह कब का हो गया था और कइयो के तो तीन तीन बच्चे थे....पढ़ाई लिखाई तो उतनी आती थी जितने में वो अपना नाम लिख लेती थी और थोड़ा बहुत पढ़ लेती थी....
पर मन तो सबके पास होता है ना....अपनी चंदा के पास भी था जिसमे चुलबुलापन, अल्लहड़पन से ले कर सजने संवरने लाली लिपिस्टिक लगाने और अपने सपनो के राजकुमार के साथ जीवन जीने के रंगीन सपने समेटे हजारों ख्वाब रख रखी थी....पर उसके इस व्यवहार से शायद ही कोई परिचित था क्युकी जिस माहोल में वो रहते आई थी उसने उसको एक तरह से निर्मोही बना दिया था.....
पास हो तो भी ठीक ना हो तो भी ठीक.....पर इस दिल को कैसे संभाले वो तो नही मानता था ना वो तो बस भावनाओं में बह जाता था......
पहले मां दूर हुई फिर भाई और हर बार वो इसे अपने भोले बाबा की मर्जी मान कर सहती आई......
पर जो भी उससे दूर होता तो चंदा हर बार खून के आँसू रोती पर अपना दुख वो किस्से कहती कोई हमदर्द हो तब तो.....
पर उसे यकीन था की एक दिन भोले बाबा सब कुछ ठीक करेंगे....
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आज शाम से ही बारिश हो रही थी और चंदा पूरे समय अपने एक मंजिला घर में पानी चुने से रोकने के लिए कभी इधर पन्नी लगाती तो कभी उधर झाड़ू से पानी बाहर करती....बांस की सीढ़ी से छत पर भी जा कर कई मर्तबा झाड़ू से जम रहे पानी को बाहर गली में गिरा चुकी थी पर उसे मालूम था की जब तक बारिश बंद नही होती ये पानी लागतार ऐसे ही परेशान करेगा....
बारिश का मौसम हो और बिजली रानी ना भागे ऐसा हो सकता है भला....
शाम तो यूंही बीत गया और अब रात होने को आई बाबा के आने में भी ज्यादा समय नहीं रह गया था इसलिए उसने टपकते पानी की चिंता छोड़ कर अपने और बाबा के लिए खाना बनाया सत्तू भरे परांठे और आग पे सिझे हुए टमाटर की चटनी....
बारिश का मौसम में उसके बाबा को ये बहुत पसंद था और उम्र के इस पड़ाव पे वो जितना हो सके अपने बाबा को खुशी देना चाहती थी....
खाना बनाते बनाते बारिश अब थम चुकी थी पर बिजली रानी अभी भी गायब थी मोमबत्ती की रोशनी में उसने सब काम निपटाया और जब देखा की अब कोई काम नही बचा है तो मोमबत्ती बुझा कर वो अपनी बगल की सहेली सोनी के यहां चली गई थी वहा उसकी मां थी जिसको वो चाची कह कर बुलाती थी और चाची भी चंदा को अपनी बेटी की तरह ही मानती थी....
बारिश थमने के बाद ठंडी हवा चल रही थी और सोनी के घर की छत पे बैठी वो चाची के साथ बाते कर रही थी की तभी चंदा को अपने बाबा की आवाज आई
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चंदा अरे चंदा केन्ने है बेटा.....
चंदा - आई बाबा...
चंदा सोनी के छत से दौड़ते हुए नीचे आई और अपने घर के द्वार पे खड़े बाबा से बोली आज बहुत देर कर देला बाबा कहां रह गेला हल एक तो लाइन शामे से कटल है...अकेले मन ना लगत रहे त सोनिया के घरे चल गेले रही....
बाबा ( नशे में ) - अरे बेटा आज गाड़ी ले के बहूते दूर गए थे त लौटे में टाइम लग गइल....
लाओ खाना का बनईले है बड़ी भूख लगल है...
चंदा - अरे पहले मुंह हाथ तो धोवा ओकरा बाद ना खईबा की अईसही.....
अभी चंदा ये बोल कर मोमबत्ती जला ही रही थी की उसका बाप लड़खड़ा कर गिर पड़ा और चंदा तुरंत उनको सहारा दे कर उठाती है और बोलती है.....के बार बोल्लुआ है एतना मत पियल करा बाकी तू अपन आदत से मजबूर ह देखीया एक दिन तू हमरा टुअर कर के छोड़बा पहिले माई गयीली ओकरा बाद भईयो मुंह फेर लेलस अब तुहू अपन आदत के चलते हमरा अकेले छोड़ देबा...
चंदा का गला भर गया ये बोलते हुए....
उसका बाप वही जमीन पे बैठा और बोला ना रे बेटा तू भी कौची बोले लगे है तुरंत में अरे पिछुल के गिर गेलू ना अंधारा ना हलऊ रे पगली...आऊ हम बिना तोहर जोड़ा लगईले ना मरबू बेटा....
तभी बिजली आ गई और घर में जल रहे तीनो बल्ब जल उठे और पंखा भी चलने लगा....
तो चंदा के बाबा बोले देख सच बोल्लु हम आऊ लाइन आ गेलऊ...चल बेटा अब तू खाना निकाल हम आबा हु तुरंत मुंह हाथ धो के....
चंदा बोली हम तोरे संघे रहबुआ जिंदगी भर हमरा ला बाबा केकरो ना भेजलन ह ई धरती पर...
ऊ बोल्लन ह की हमरा अपन बाबू के सेवा करे ला बाकी बात बाद में देखल जाई....
उधर चंदा का बाप उसकी इन बचकानी बातो को सुन कर हस्ते हुए अपना मुंह हाथ धोया और सोचा की सब तो भोले बाबा ही करे वाला आगे भी ऊ कुछ जरूर सोचले होथन हमरी चंदा ला.....
पर असलियत तो ये थी की गोपी के पैसे न भेजने से घर के हलाता दिन पर दिन बद से बदतर हो चले थे और चंदा का बाप अपनी इस गिरी हुई हालत में कब तक खींच पाएगा ये न उसको पता था नाही चंदा को....
चंदा का बाप ठेला चलाता है गांव में ही कमाई का और कोई जरिया था नही इसलिए उसका परिवार संपन्नता से कोसो दूर था.....
चंदा की मां नहीं थी एक जानलेवा बीमारी से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद इस दुनिया को अलविदा बोल गई थी पर जितने दिन वो रही एक तरफ चंदा का बाप अपनी सारी कमाई उसमे झोंकता गया और दूसरी तरफ उसने चंदा को सर्वगुण सम्पन्न बना दिया था ताकि उसके ना रहने पर उसकी लाडली की जब कही शादी हो तो उसे ये न सुनने को मिले की मां ने कुछ सिखाया ही नही......
अपनी उमर से पहले ही चंदा परिपक्व बन गई थी....उसके उमर की लड़किया जब गली में कितकित खेला करती थी तब वो अपने घर में खाना पका रही होती थी.....
बचपन से वो इतने दुख तकलीफ देखते आई थी की आम लड़कियों की तरह वो खुद को कभी देख ही नहीं पाई हर वक्त हर कदम पे हालातो से समझौता करना उसकी आदत में शुमार था यही कारण था की वो एकदम शांत स्वभाव की लड़की थी....पर रूप....इस चीज से उसे भगवान ने वंचित नही रखा था....गरीबी में रहने के बावजूद उसका चेहरा ऐसे खिला हुआ रहता था जैसे कोयले में हीरा.....एकदम दिव्या भारती की तरह दिखती थी वो....
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चंदा के गांव के कई लोग दूसरे बड़े शहरों में कमाने जाते थे और इसी तरह चंदा के बाप ने उसके भाई गोपी को थोड़ा पढ़ाने लिखाने के बाद कमाने के लिए सूरत भेज दिया और गोपी ने भी वहा जाने के बाद जितना कमाया उसका एक हिस्सा अपने पास रख कर बाकी सारा घर भेजा करता था ताकि उसकी मां का इलाज हो सके.....
बाप की कमाई तो पहले ही उसकी मां के इलाज में जाता था पर अब अब गोपी की कमाई का भी एक बड़ा हिस्सा उसके जाने लगा....
कई बार उसने अपने बाप को बोला की यहां का घर बेच कर सूरत आ जाए यहां मां का इलाज भी हो सकेगा और आपको भी अच्छा काम मिल सकेगा पर उसका बाप नही माना......
और जब चंदा की मां नही रही तो गोपी ने एक बार फिर अपने बाप को साथ चलने को बोला की वो और चंदा उसके साथ वही चल कर रहे अब यहां कुछ नही बचा है पर अब तक चंदा के बाप को शराब ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था और इसी कारण उसका बाप उसके साथ नही गया....
जब तक शरीर में ताकत रहती वो अपना ठेला खींचता और शाम होते होते अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा शराब में घोल कर पी जाता...
पर एक बात थी बूढ़ा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था उसके लिए कुछ न कुछ खाने को जरूर ले जाता था रात को और कुछ पैसे भी देता था उसको जिससे चंदा घर की जरूरतों के साथ साथ अपनी भी छोटी छोटी जरुरते पूरी कर लेती थी.....और चंदा भी जानती थी की मां और गोपी के बाद उसके बाबा का कोई नही है....
इसलिए वो भी अपने बाबा की सेवा एक अच्छी बेटी की तरह करती थी...वो उसकी शराब तो नही छुड़वा सकती थी पर अपनी सेवा से हर सुबह उसकी बूढ़ी टांगो में इतनी ताकत जरूर भर देती थी की वो पूरे दिन कमा सके....
इधर गोपी ने कुछ दिन तक अपने बाप को समझाने का पूरा प्रयत्न किया पर कोई असर नहीं हुआ थक हार कर उसने चंदा को अपने साथ ले जाना चाहा तो चंदा बोली की वो अपने बाबा को छोड़ कर नही जायेगी....जब तक बाबा है तब तक वो उनके साथ ही रहेगी....
तो गोपी ने कहा कि सूरत में वो जहां काम करता है वही एक लड़की से वो शादी करने वाला है....इसलिए अब वो यहां नही आएगा और तू भी कब तक बिनब्याही बैठी रहेगी वहां मेरे साथ रहेगी तो कोई अच्छा सा लड़का देख के तेरा बियाह कर दूंगा....
तो चंदा का बाप अपने बेटे गोपी से ही लड़ बैठा की जब उसने अपनी जिंदगी के सारे फैसले खुद कर लिए है तो चंदा की फिकर करने की उसे कोई जरूरत नहीं है अभी उसका बाप जिंदा है....
उस दिन जो गोपी गया उसके बाद उसने इन दोनो से सदा के लिए मुंह फेर लिया.....जाने से पहले चंदा नेे गोपी को बहुत समझाने की कोशिश की पर अब गोपी का भी सब्र जवाब दे गया था इसलिए वो सारी बातो को अनसुना करते हुए सूरत वापिस लौट गया....
गोपी के सूरत जाने के बाद चांद के बाप ने चंदा को बोला की तू फिकर मत कर तुझे तेरे घर विदा करने के बाद ही मरूंगा....
चंदा बोलती मरे तेरे दुश्मन बाबा मां के बाद तुमने और भईया ने ही तो मुझे इतना बड़ा किया है तो फिर अब भईया के बाद मैं ही तो आपको आपके बुढ़ापे में संभालूंगी ना....
चंदा के बाप ने भी उसके सर पे हाथ फेर कर कहा जीती रह हमार बेटी भोला बाबा तोहर जोड़ी जरूर लगहिए.....
कुछ दिन तक चंदा के बाप ने उसकी शादी के लिए काफी प्रयास कीये पर कही दहेज तो कही कुछ लफड़ा लगा कर उसकी शादी तय नहीं हुई.....
दिन बदले महीनो में और महीने बदले साल में....समय अपनी रफ्तार से चलता गया और गोपी को गए चार साल हो गए और चंदा के बाप को उसके लिए रिश्ता ढूंढते हुए भी.....
चंदा अपने जीवन के अब उनतीसवे साल में प्रवेश कर चुकी थी अपने उम्र की वही एक लड़की थी पूरे कस्बे मे जो अभी तक बिनब्याही थी.....उसकी सारी सहेलियां का बियाह कब का हो गया था और कइयो के तो तीन तीन बच्चे थे....पढ़ाई लिखाई तो उतनी आती थी जितने में वो अपना नाम लिख लेती थी और थोड़ा बहुत पढ़ लेती थी....
पर मन तो सबके पास होता है ना....अपनी चंदा के पास भी था जिसमे चुलबुलापन, अल्लहड़पन से ले कर सजने संवरने लाली लिपिस्टिक लगाने और अपने सपनो के राजकुमार के साथ जीवन जीने के रंगीन सपने समेटे हजारों ख्वाब रख रखी थी....पर उसके इस व्यवहार से शायद ही कोई परिचित था क्युकी जिस माहोल में वो रहते आई थी उसने उसको एक तरह से निर्मोही बना दिया था.....
पास हो तो भी ठीक ना हो तो भी ठीक.....पर इस दिल को कैसे संभाले वो तो नही मानता था ना वो तो बस भावनाओं में बह जाता था......
पहले मां दूर हुई फिर भाई और हर बार वो इसे अपने भोले बाबा की मर्जी मान कर सहती आई......
पर जो भी उससे दूर होता तो चंदा हर बार खून के आँसू रोती पर अपना दुख वो किस्से कहती कोई हमदर्द हो तब तो.....
पर उसे यकीन था की एक दिन भोले बाबा सब कुछ ठीक करेंगे....
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आज शाम से ही बारिश हो रही थी और चंदा पूरे समय अपने एक मंजिला घर में पानी चुने से रोकने के लिए कभी इधर पन्नी लगाती तो कभी उधर झाड़ू से पानी बाहर करती....बांस की सीढ़ी से छत पर भी जा कर कई मर्तबा झाड़ू से जम रहे पानी को बाहर गली में गिरा चुकी थी पर उसे मालूम था की जब तक बारिश बंद नही होती ये पानी लागतार ऐसे ही परेशान करेगा....
बारिश का मौसम हो और बिजली रानी ना भागे ऐसा हो सकता है भला....
शाम तो यूंही बीत गया और अब रात होने को आई बाबा के आने में भी ज्यादा समय नहीं रह गया था इसलिए उसने टपकते पानी की चिंता छोड़ कर अपने और बाबा के लिए खाना बनाया सत्तू भरे परांठे और आग पे सिझे हुए टमाटर की चटनी....
बारिश का मौसम में उसके बाबा को ये बहुत पसंद था और उम्र के इस पड़ाव पे वो जितना हो सके अपने बाबा को खुशी देना चाहती थी....
खाना बनाते बनाते बारिश अब थम चुकी थी पर बिजली रानी अभी भी गायब थी मोमबत्ती की रोशनी में उसने सब काम निपटाया और जब देखा की अब कोई काम नही बचा है तो मोमबत्ती बुझा कर वो अपनी बगल की सहेली सोनी के यहां चली गई थी वहा उसकी मां थी जिसको वो चाची कह कर बुलाती थी और चाची भी चंदा को अपनी बेटी की तरह ही मानती थी....
बारिश थमने के बाद ठंडी हवा चल रही थी और सोनी के घर की छत पे बैठी वो चाची के साथ बाते कर रही थी की तभी चंदा को अपने बाबा की आवाज आई
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चंदा अरे चंदा केन्ने है बेटा.....
चंदा - आई बाबा...
चंदा सोनी के छत से दौड़ते हुए नीचे आई और अपने घर के द्वार पे खड़े बाबा से बोली आज बहुत देर कर देला बाबा कहां रह गेला हल एक तो लाइन शामे से कटल है...अकेले मन ना लगत रहे त सोनिया के घरे चल गेले रही....
बाबा ( नशे में ) - अरे बेटा आज गाड़ी ले के बहूते दूर गए थे त लौटे में टाइम लग गइल....
लाओ खाना का बनईले है बड़ी भूख लगल है...
चंदा - अरे पहले मुंह हाथ तो धोवा ओकरा बाद ना खईबा की अईसही.....
अभी चंदा ये बोल कर मोमबत्ती जला ही रही थी की उसका बाप लड़खड़ा कर गिर पड़ा और चंदा तुरंत उनको सहारा दे कर उठाती है और बोलती है.....के बार बोल्लुआ है एतना मत पियल करा बाकी तू अपन आदत से मजबूर ह देखीया एक दिन तू हमरा टुअर कर के छोड़बा पहिले माई गयीली ओकरा बाद भईयो मुंह फेर लेलस अब तुहू अपन आदत के चलते हमरा अकेले छोड़ देबा...
चंदा का गला भर गया ये बोलते हुए....
उसका बाप वही जमीन पे बैठा और बोला ना रे बेटा तू भी कौची बोले लगे है तुरंत में अरे पिछुल के गिर गेलू ना अंधारा ना हलऊ रे पगली...आऊ हम बिना तोहर जोड़ा लगईले ना मरबू बेटा....
तभी बिजली आ गई और घर में जल रहे तीनो बल्ब जल उठे और पंखा भी चलने लगा....
तो चंदा के बाबा बोले देख सच बोल्लु हम आऊ लाइन आ गेलऊ...चल बेटा अब तू खाना निकाल हम आबा हु तुरंत मुंह हाथ धो के....
चंदा बोली हम तोरे संघे रहबुआ जिंदगी भर हमरा ला बाबा केकरो ना भेजलन ह ई धरती पर...
ऊ बोल्लन ह की हमरा अपन बाबू के सेवा करे ला बाकी बात बाद में देखल जाई....
उधर चंदा का बाप उसकी इन बचकानी बातो को सुन कर हस्ते हुए अपना मुंह हाथ धोया और सोचा की सब तो भोले बाबा ही करे वाला आगे भी ऊ कुछ जरूर सोचले होथन हमरी चंदा ला.....
पर असलियत तो ये थी की गोपी के पैसे न भेजने से घर के हलाता दिन पर दिन बद से बदतर हो चले थे और चंदा का बाप अपनी इस गिरी हुई हालत में कब तक खींच पाएगा ये न उसको पता था नाही चंदा को....