Kumarsushil
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प्रभा मैडमकहानी: परी और पत्थर
अध्याय 1: असामान्य पत्थर की प्राप्ति
तो अपने पिछले अध्याय 00 में पढ़ा इस कहानी के मुख्य पत्रों के बारे में तो अब आगे
मदन के स्कूल में हर साल की तरह इस बार भी छात्रों एक ट्रिप (यात्रा) पर ले जाने का आयोजन किया गया था। यह यात्रा एक ऐतिहासिक स्थल की थी, जो अपने प्राचीन मंदिरों और खंडहरों के लिए प्रसिद्ध था। मदन को हमेशा से ऐसी जगहों में दिलचस्पी रही थी। उसकी जिज्ञासा इन पुरानी जगहों की कहानियों और रहस्यों को लेकर बढ़ती ही जा रही थी। इस बार वह अपने दोस्तों के साथ इस यात्रा के लिए बहुत उत्साहित था। साथ में उसका परम मित्र रवि भी था।
बस में बैठकर सभी बच्चे हंसी-मजाक कर रहे थे। रास्ते भर मदन भी अपने दोस्तों के साथ बातों में मशगूल था, लेकिन उसकी नजरें खिड़की के बाहर दूर-दूर तक फैले पहाड़ों और जंगलों की तरफ भी जा रही थीं। लगभग दो घंटे की यात्रा के बाद, वे लोग उस ऐतिहासिक स्थल पर पहुंचे।
"यहां तो बहुत पुराना मंदिर है," मदन ने अपने दोस्त रवि से कहा, "देखना, हमें यहां कोई खजाना जरूर मिलेगा।"
रवि हंसते हुए बोला, "खजाना तो जरूर मिलेगा, लेकिन यहां किसी को पेलने में बड़ा मजा आयेगा देख कैसे कैसे जगह है!"
रवि की बात सुनकर "बहनचोद तू कभी नहीं सुधरेगा, साला हर जगह पेलने पेलवाने की बात करते तुझे शर्म नही आती।"
मदन की बात सुनकर "हा बेटा ज्ञान पेल मन भर लेकिन मैं जनता हु तू हिलाता तो होगा नही और तेरे पड़ोस वाली भाभी भी तुझे मन भर लाइन देती है"
"तो तेरी क्यों जल रही है, अब चुप होजा देख रण्डी मैडम इधर ही आ रही है" मदन ने कहा (इस अध्यापक का कोई ज्यादा काम नही है)
"अबे तूने इस कालिए का नामकरण भी कर दिया, बड़ा अच्छा नाम रखा है रण्डी मैडम" रवि कहता है और दोनों जोर से हंस पड़े। वे अपने शिक्षकों के साथ उस प्राचीन स्थल को देखने के लिए निकल पड़े। वहाँ कुछ पुरानी मूर्तियाँ और खंडहरों के टुकड़े बिखरे पड़े थे। यह जगह रहस्यमय लग रही थी। मदन की नज़रें कुछ अलग खोज रही थीं, जैसे उसे कुछ विशेष महसूस हो रहा हो।
जब बाकी बच्चे और शिक्षक मंदिर की संरचनाओं की तरफ ध्यान दे रहे थे, मदन का मन वहाँ से कुछ दूरी पर पड़े पुराने पत्थरों की तरफ खींचा चला गया। उसके पैर अनायास ही उस दिशा में बढ़ते चले गए। वह एक पुराने, टूटे हुए मंदिर के खंडहर के पास पहुंचा, जहाँ कुछ पत्थर बेतरतीब ढंग से बिखरे हुए थे।
"अबे उधर कहा पत्थर के पीछे हिलाने तो नही जा रहा" मदन को पथरों के पास जाते देख रवि धीरे से कहता है।
"अबे हर समय ऐसी बाते अच्छी नहीं लगती है और यहां हम घूमने और देखने ही तो आए है तो देखने ही जा रहा हु" मदन कहता है और आगे बढ़ जाता है।
"तू देख मैं तो चला अपनी जान के पास देख कैसे इशारे से मुझे बुला रही है अपने पास" रवि कहता है और मदन देखकर हसता है "साला किसी दिन तेरी मां चोद देगी वो, हमारी प्रिंसिपल है वह" यह कहते हुए मदन उन पथरों के पास पहुंच जाता है।
वहीं, एक पत्थर उसकी नज़रों में आकर ठहर गया। यह पत्थर बाकी पत्थरों से अलग था। यह एक छोटा, गोल पत्थर था जो हल्की चमक दे रहा था, मानो उसके भीतर कोई रोशनी दबी हुई हो। मदन ने धीरे से उस पत्थर को उठाया और गौर से देखने लगा। पत्थर का आकार साधारण था, लेकिन उसकी चमक कुछ असाधारण थी। उसके स्पर्श से ऐसा लग रहा था जैसे इसमें कोई अजीब सी गर्माहट थी, जबकि वह पत्थर ठंडा होना चाहिए था।
"ये कैसा पत्थर है.... कही हीरा तो नही.... अरे नही अगर यह हीरा होता तो अब तक इसे यहां कोई छोड़ता थोड़ी ना, लेकिन यह है क्या" मदन उस पत्थर को देखकर कहता है फिर वह इस पत्थर को दूसरे पत्थर पर पटकता है तो देखता है की दूसरा पत्थर क्षण भर में ही धूल हो गया।
"ओह तेरी बहन की, इसे बड़े पत्थर पर मरता हु" यह कहते हुए मदन बड़े पत्थर पर उस पत्थर को मरता है और जैसे ही उस बड़े पत्थर पर वह पत्थर गिरता है वह बड़ा पत्थर भी धूल हो जाता है फिर मदन इस चमकीले पत्थर को उठा लेता है। और अपने आप से ही कहता है
मदन ने अपने आप से कहा, "यह कोई साधारण पत्थर नहीं हो सकता।"
तभी रवि पीछे से आकर बोला, "अरे, मदन! क्या कर रहा है यहाँ? चल, मास्टरजी बुला रहे हैं।"
मदन ने उस पत्थर को जल्दी से अपने बैग में डाल लिया और बोला, "आ रहा हूँ, बस कुछ देख रहा था।"
रवि ने उसकी तरफ देखा और फिर कहा, "क्या देख रहा था? चलो जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी।"
"इतनी जल्दी यहां से जाने का प्रोग्राम बन गया अब कहा ले जा रहे है" मदन दौड़ते हुए रवि के पास आता है और पूछता है
"पास में कोई झरना है वही जा रहे है सब और वहां से घर" रवि ने जवाब दिया।
"तो और बता तेरी जान किसलिए इशारा कर रही थी" मदन ने कहा और हसने लगा
"हस ले बेटा देखना एक दिन उसे पेलूंगा जरूर माधर चोद जब भी उसकी पिछवाड़े को देखता हु मेरा खड़ा हो जाता है और बिना हिलाए शांत ही नही होता" रवि ने कहा और अपना लंड मसल दिया।
"देखता हु की तेरा नसीब में प्रिंसिपल मैडम लिखी है की नही" मदन कहता है
"लिखी है से क्या मतलब है तेरा वह मेरी ही है बे" रवि कहता है
"हा हा समझ गया चल अब चुप होजा हम बस के नजदीक आ गए है।
दोनो बस में बैठ जाते है और रवि एक खाली सीट देख कर जल्दी से बैठ जाता है और मदन को देखकर हसने लगता है क्योंकि अब कोई सीट खाली दिख नही रही थी तभी प्रिंसिपल मैडम ने अपने सीट के पास वाले सीट पर मदन को बैठने को कहा क्योंकि वह खाली थी प्रिंसिपल मैडम के गुस्से के कारण सब डरते थे इसीलिए वहा कोई डर से बैठा नही था मदन भी अपने मैडम के गुस्से को जनता था इसीलिए चुपचाप जाकर वह वहा बैठ गया।
बस अपने गंतव्य स्थान के लिए चल दी लेकिन झरना पास में तो नही था अब मदन को इतना तो पता चल गया क्योंकि बस लगातार दो घंटे से चले जा रही थी और अब घड़ी में शाम के 08:00 बज रहा था।
तभी ड्राइवर ने बस रोका।
"क्या हुआ बस क्यों रोक दी" प्रिंसिपल मैडम ने एक टीचर से पूछा
"मैडम अपने बोला था की किसी ढाबे पर बस रोकने को" टीचर ने जवाब दिया
"क्या ढाबा आ गया" प्रिंसिपल मैडम ने पूछा
"जी मैडम" टीचर ने जवाब दिया
"ठीक है तो सारे बच्चों सारे बच्चों से कहे की यदि वह फ्रेश होना चाहे तो हो जाए लेकिन बिना कोई काम के बाहर न निकले आप सबके लिए ढाबे से खाना पैक करवाकर बच्चो को बांटिए ये सभी अपने अपने सीट पर ही खा लेंगे और हा यदि बच्चे फ्रेश होने जाए तो ग्रुप में जाए विशेषकर बचिया और लड़कियों पर महिला टीचर ध्यान रखेंगी और बच्चो पर पुरुष सबके पास केवल आधे घंटे का समय है" प्रिंसिपल मैडम ने कहा और एक बार फिर वह अपने फरमान को सुनाई जिसे सबको मानना ही है वैसे ये नियम ठीक भी थे पर बस में सारे बच्चों को वहां ये किसी को समझ नही आया था लेकिन प्रिंसिपल मैडम ने बाहर ध्यान दिया था क्योंकि वह खिड़की की तरफ जो थी बाहर पूरा सन्नाटा था कही भी कोई घर दिखाई नहीं दे रहा था केवल रोड साइड पेड़ो के आलावा।
सभी बच्चे जिसको भी फ्रेश होना था वह होकर आ गए और टीचर भी खाना लेकर आ गए उनके साथ ढाबे का एक सहकर्मी भी था जो खाने के बैग को पकड़े हुए था सभी में खाना वितरण के बाद ढाबे का सहकर्मी चला गया और सभी ने खाना खाया फिर बस चल पड़ी।
"तुम्हारा नाम मदन है" प्रिंसिपल मैडम ने पूछा
अब मदन की फट गई क्योंकि प्रिंसिपल मैडम से तो स्कूल का प्रबंधक डरता था वह तो एक छात्र था।
"डरो नही मैं कुछ नही तुमसे कहने वाली" प्रिंसिपल मैडम ने कहा और प्यार से मदन के बालो में उंगली करके उसे बिगाड़ दिया और मुस्कुराई जिसे देखकर मदन भी मुस्कुराने लगा।
"अच्छे बच्चे, चलो अब बताओ कि क्या तुम्हारा ही नाम मदन है" मैडम ने पूछा
"जी, मेरा ही नाम मदन है और मैं कक्षा 11 का छात्र हु" मदन ने जवाब दिया
"पता है पूरे स्कूल में तुम्हारी चर्चा होती है तुम्हे पता है मैं तुम्हारे पिता को भी जानती हु, वह मेरे ही साथ पढ़े थे बचपन से मेरे टीचर बनने तक" मैडम ने कहा और यह बात सुनकर अब मदन चौका
"क्या आप मेरे पापा के साथ पढ़ी है लेकिन पापा के मुख से तो आपका नाम तक नहीं सुना है मैने" मदन ने हैरानी से पूछा
मदन की बात सुनकर मैडम मुस्कुराई और अपनी नजर पूरे बस में दौड़ाई तो देखा सभी बच्चे झपकी ले रहे थे कुछ खड़े होकर अपनी कमर सीधा कर रहे थे लेकिन जब उनका ध्यान इस बात पर गया की मैडम उन्हें ही देख रही है तो फटाक से वह अपनी अपनी सीट पर बैठ गए।
"सुनो" टीचर 01 को प्रिंसिपल मैडम आवाज देती है
(यह बता दू की स्कूल के टीचर्स या बच्चो को इस कहानी में कोई स्थान नहीं है इसीलिए इनका परिचय नही दिया जा रहा है हा प्रिंसिपल मैडम का थोड़ा बहुत स्थान है लेकिन बस इस ट्रिप तक ही है उसके बाद कहानी में जहा इनकी जरूरत होगी वहा होंगी)
"जी मैडम" टीचर 01 प्रिंसिपल मैडम की आवाज सुनकर गोली की स्पीड से अपने सीट से खड़ा हो जाता है।
"बस को स्लीपर बस में चेंज करवा दो" प्रिंसिपल मैडम ने कहा (क्योंकि यह बस स्लीपर और जनरल दोनो था अगर इस बस को स्लीपर ने बदलना चाहे तो वह भी हो जाएगा और जनरल ने बदलना चाहे तो वह भी हो जाएगा पता नही ऐसी बस होती है की नही मुझे नही पता बस मैंने इस कहानी के लिए ऐसा बस बनवाया है )
"जी मैडम" टीचर 01 ने कहा और सारे बच्चों को उनके सीट से खड़ा करके बीच में कर दिया फिर बस स्लीपर में चेंज हो गई लेकिन मदन वाली सीट नही हुई।
"मदन नींद तो नही आ रही" मैडम ने पूछा
"जी नहीं मैडम मैं 11 12 बजे ही सोता हु" मदन ने जवाब दिया अब सारे बच्चे अपना अपना स्थान पकड़ लिए और साथ में सारे टीचर्स भी। बस में शांति छा गई।
"आप मेरे पिता को कैसे जानती है" मदन से अब रहा नही गया। प्रिंसिपल मैडम मैडम मदन के इस इस तरह जानने की उत्सुकता के देखकर मुस्कुराई।
"मैं तुम्हारे पिता के चाचा की लड़की हु" मैडम ने कहा और इस बार मदन को बहुत ज्यादा हैरानी हुई वह मुंह खोले एकटक मैडम को देखे ही जा रहा था फिर अपने आपको शांत करते हुए कहता है।
"लेकिन पापा ने बताया है की उनका कोई नही है अब इस दुनिया में" मदन ने कहा जिसे सुनकर प्रिंसिपल मैडम ने कहा
"वह इसीलिए की तुम्हारी मां और तुम्हारे पिता ने भागकर शादी किए थे और तुम्हारे पिता के घरवालों ने तुम्हारे पिता के इस तरह भागने से सारे रिश्ते नाते खत्म कर दिए यह तक की तुम्हारे पिता को मारा हुआ घोषित करके उनका तेरहवीं भी कर दिए और जब तुम्हारे पिता को यह बात पता चली तो उन्होंने भी गुस्से में आकर सभी परिवार वालो का तेरहवीं कर दिए है"
"क्या लेकिन पापा को घरसे भागने की क्या जरूरत पड़ी अब भी मुझे याद है जो मुझे मां बताती थी की दादाजी पापा को बहुत मानते थे फिर ये सब कैसे हुआ" मदन ने कहा।
"क्योंकि तुम्हारी मां एक अनाथ थी और तो और तुम्हारे पिता ने तुम्हारी मां को शादी से पहले ही गर्भवती कर दिए थे लेकिन जब तुम्हारे पिता ने सविता (मदन की मां) से शादी वाली बात अपने घरवालों से की तो सभी भड़क गए चाचा (मदन के दादाजी) तो यह तक कह गए की सविता के पेट में पलने वाला बच्चा धर्मेंद्र भाई का हो ही नही सकता क्योंकि चाचा का तुम्हारे पिता यानी धर्मेंद्र भाई पर पूरा भरोसा था और उन्हें लगता था की सविता की इज्जत बचाने के लिए धर्मेंद्र भाई सविता से शादी करना चाहते है" मैडम ने कहा और वह चुप हो गई और खिड़की से बाहर को देखने लगी जैसे वह उसी समय में पहुंच गई हो जब मदन के पिता अपने परिवार से बगावत कर रहे थे।
लेकिन एक बात पर किसी का ध्यान नहीं गया की मदन का बैग जो ऊपर समान रखने वाले पर रखा गया था वह तेजी से चमक रहा है और पूरे बस में एक धुआं भरा हुआ है बस के सारे बच्चों की सुला दिया था लेकिन मदन को वह धुआं नही दिखाई दे रहा था अब प्रिंसिपल मैडम को दिखाई दे रहा था की नही ये तो मुझे भी नही पता।
"फिर आगे क्या हुआ" कुछ देर बाद मैडम को न बोलते देख मदन पूछता है जिससे मैडम अपने यादों से बाहर आ जाती है और कहती है।
"आगे वही हुआ जो मैने पहले ही बताया था की धर्मेंद्र भाई ने घर छोड़ दिया बस इतनी ही कहानी है।" मैडम ने कहा और चुप होकर मदन को ही देखने लगी लेकिन अब मदन अपनी सोचो में को गया था वह सोच रहा था। "ये बात तो कभी पापा या मां ने हमसे कही ही नही और गांव वाले भी यही कहते है की मेरे दादा जी मेरे जन्म के समय तक थे यहां तक की दीदी भी कहती है की दादा दादी हमारे साथ ही थे और एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई फिर ये कहानी कहा से आ गया क्या जो हमारे साथ थे वह मेरे मां के परिवार वाले थे या मैडम जो कह रही है वह एक झूठी कहानी है। अब मदन के दिमाग ने एक जंग छेड़ दिया था उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था और ऊपर से उसके बाद के रखे पत्थर का धुआं अब मदन के दिमाग में समा रहा था जिससे मदन के सिर में हलका हलका दर्द उठ रहा था लेकिन मदन को इस दर्द में कारण का पता नही था दर्द के साथ ही उसे अब नींद भी आने लगा था। जिसे प्रिंसिपल मैडम ने भाप लिया था उसके बाद मदन के भी सीट स्लीपर में चेंज हो गया जब वह सोने के लिए ऊपर चढ़ा तो देखा मैडम और उसके बीच एक प्लाई की दीवाल है।
"चलो ये अच्छा है" यह कहकर मदन अपने बैग के सीट के सिरहाने ले जाता है लेकिन फिर साइड में रख देता है क्योंकि वह सिर रखने के लिए तकिया था।
जब मदन से गया तभी उसके बागवमे रखे पत्थर से एक प्रकाश निकलकर मदन के आंखों में जाकर समा गया इसी तरह पत्थर से रह रह कर प्रकाश निकाल रहा था और मदन के शरीर के किसी न किसी अंग में जाकर समा जा रहा था।
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"मदन मदन अरे कितना सोता है बेटा उठ देख सूरज सिर पर आ गया और तू अभी भी सो ही रहा है आज स्कूल नही जाना है क्या तुझे जल्दी उठ और नाश्ता करले नही तो फिर आज फिर तुझे क्लास के बाहर कर देंगी तेरी प्रभा मैडम" एक महिला की आवाज जो मदन को उठा रही थी ..................
तो आज के इस अध्याय 01 में बस इतना ही मिलते है अब अगले अध्याय में तब तक के लिए आप अपना ध्यान रखे और इस अध्याय के लिए अपना बहुमूल्य प्रतिक्रिया देना ना भूले की यह अध्याय आपको कैसा लगा.........
धन्यवाद