• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest पहाडी मौसम

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

lovlesh2002

Member
140
287
63
वेटिंग फॉर झक्कास अपडेट, सूरज और उसकी मां के बीच क्या क्या होता है देखना है
 
  • Like
Reactions: Napster
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,832
14,815
159
मुखिया के खेतों में सूरज और उसकी मां को काम शुरू करना था गेहूं की कटाई करनी थी पर दोनों इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि खेतों की जिम्मेदारी लेना बड़ा मुश्किल काम है लेकिन यह जिम्मेदारी उन दोनों को लेना ही था क्योंकि जब से सूरज के पिताजी घर छोड़कर बाहर रंगरेलियां बना रहे हैं तब से घर में थोड़ी बहुत पैसों की किल्लत होने लगी थी वैसे तो खाने की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उनका खुद का भी खेत था और गाय भैंस बकरियां भी थी जिसे अनाज और दूध पानी मिल ही जाता था लेकिन फिर भी योग्य समय पर रानी का विवाह करना था इस बात की चिंता सूरज की मां को अच्छी तरह से था और इसीलिए सूरज की मां खेतों में काम करने के लिए तैयार हो गई थी,,,,,, सूरज के पिताजी जब तक यह जिम्मेदारी अपने सर पर लिए हुए थे तब तक सूरज की मां को खेतों में बिल्कुल भी काम नहीं करना पड़ता था अपने खेतों में भले कम कर ले लेकिन दूसरे के खेतों में वह बिल्कुल भी काम नहीं की थी लेकिन वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं और इंसान को ऐसा होना भी चाहिए जैसे हालात हो उसके मुताबिक चलना चाहिए आज सूरज के घर आर्थिक तंगी थी जिसके चलते उन दोनों को काम करना ही था,,,,।

सुनैना घर का काम जल्दी से निपटा कर खाना बना रही थी क्योंकि जल्दी से खाना बनाकर वह खेतों पर निकल जाना चाहती थी काम करने के लिए और जल्दी घर वापस आ जाना चाहती थी,,,, रानी रात की दमदार चुदाई के बाद एकदम मस्त हो चुकी थी एक ही रात में उसकी जवानी पूरी तरह से खेल चुकी थी और वह घर के आंगन में झाड़ू लगा रहे थे उसके मन में रात वाली बात घूम रही थी रात को जो कुछ भी उसके साथ हुआ था वह बेहद उन्मादक था,,, रानी को अभी भी अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में हल्का-हल्का मीठा मीठा दर्द महसूस हो रहा था,,, क्योंकि यह उसके जीवन की पहली चुदाई थी और चुदाई करने वाला उसका बड़ा भाई था,,,,,, झाड़ू लगाते लगाते वह उसी स्थान पर पहुंच गई जहां पर बर्तन मजा जाता था,,, उस जगह पर पहुंचते ही रानी के चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान करने लगी क्योंकि यह वही जगह थी जहां पर वह बिना कपड़े पहने एकदम नंगी होकर केवल अपने बदन पर एक पतली सी चादर डालकर पेशाब करने के लिए आए थे और यहां पर पेशाब करने के लिए उसे खुद उसके भाई नहीं मजबूर किया था वरना तो वह घर के बाहर जाना चाहती थी,,,,।

रात की घटना के बारे में सोचकर उसके चेहरे पर शर्म की लकीरें साफ झलकने लगी थी पल भर में यह उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह अपने भाई के सामने बैठकर पेशाब की थी वह अपने मन में यही सोच रही थी कि कुछ दिनों में कितना कुछ बदल गया था जहां वह अपने भाई के सामने कपड़े तक नहीं बदलती थी वही उसके सामने सारे कपड़े उतार कर उससे चुदाई का आनंद लूट रही थी उसके सामने पेशाब कर रही थी यह सब इस समय रानी को बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन उसके बदन में उत्तेजना की झनझनाहट भी हो रही थी,,,, पल भर में ही रानी की सांस गहरी चलने लगी थी वह उसे जगह पर खड़ी होकर रात की घटना के बारे में सोचते हुए अपने बारे में भी सोच रही थी कि वह अपने भाई के सामने इतनी बेशर्म कैसे बन गई,,,।। लेकिन इस बात को भी वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसका इस तरह से बेशर्म बन जाने के पीछे उसके भाई का ही हाथ है,,,, वरना वह अपने भाई के सामने इस तरह की हरकत करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी,,,,। रात के हर एक घटना उसकी आंखों के सामने किसी हकीकत नाटक की तरह घूम रहा था उसे सब कुछ अच्छी तरह से याद था,,,, और यह जगह तो उसे और भी अच्छी तरह से याद हो चुकी थी ऐसा लग रहा था कि इस कोने से उसका नाता जुड़ चुका था।

कभी सपने में नहीं सोची थी कि वह अपने भाई के साथ शारीरिक संबंध बनाएगी उसके साथ चुदवाने का मजा लुटेगी,,, उसे अच्छी तरह से याद था कि वह अपनी चादर को थोड़ा सा ऊपर उठकर बैठ गई थी ताकि चादर गंदी ना हो जाए लेकिन उसके इसी हरकत की वजह से उसकी नंगी गांड उसके भाई के सामने उजागर हो गई थी और इसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि कुछ देर पहले वह उसके पूरे बदन से मजा लूट चुका था,,, और थोड़ी ही देर में फिर से वह पागल हो गया था,,,, ऐसा सोचते हुए वह आंगन के उसे कोने में खड़ी खड़ी आसमान की तरफ देखने लगी,,, और पल भर में उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी क्योंकि वह भले ही चार दिवारी के अंदर थी लेकिन घर के आंगन में वह खुले आसमान के नीचे चुदाई के अद्भुत आनंद को प्राप्त की थी,,, उसका भाई इतना निर्लज्ज और बेशर्म होगा इस बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकती थी,,, उसे संभलने का मौका भी नहीं दिया था और यह जानने के बावजूद भी उसकी मां पेशाब लगने पर कमरे के बाहर निकल सकती है वह बिना डरे उसे घोड़ी बनाकर पीछे से डाल दिया था इस बात का ख्याल आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी,,,


काफी देर से रानी को इस तरह से उसे कोने में खड़ी पाकर उसकी मां बोली,,,,।

क्या हुआ क्या सोच रही है बड़ी देर से वही खड़ी है बाकी का काम नहीं करना है क्या,,,,?
(अपनी मां की बात सुनते ही वह एकदम से चौंक गई क्योंकि वह वाकई में ख्यालों में खो चुकी थी जागते हुए भी खड़े-खड़े सपना देखने लगी थी इसलिए वह हड़बड़ाते हुए बोली,,,)

नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तुझे सोच रही हूं कि आज इतनी जल्दी खाना क्यों बना रही हो,,,!(रानी एकदम से बात को बदलते हुए बोली,,,)

अरे हां तुझे बताना तो भूल ही गई मैं और सूरज मुखिया के खेतों में काम करने के लिए जा रहे हैं और वहां से आने में देर हो जाएगी इसलिए जल्दी-जल्दी खाना बना रही हूं,,,, और हा तेरे हिस्से का खाना रख दूंगी तू खा लेना हम दोनों खेत पर ही खाना खा लेंगे,,,,(रोटी को तवे पर रखते हुए सुनैना बोली,,,,)

खेत पर काम करने जाना है,,,,,!(रानी एकदम से आश्चर्य जताते हुए बोली थी,,,, उसकी बातें सुनकर सुनैना मुस्कुराते हुए बोली,,,)

अरे हां काम करने जाना है थोड़े पैसे भी तो इकट्ठे करने होंगे आखिरकार अब तो भी शादी लायक हो गई है शादी भी तो करना है,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर रानी के चेहरे पर मुस्कान देने लगी थी और वह एकदम से शर्मा गई थी अपनी मां से तो कुछ नहीं बोली लेकिन अपने मन में सोचने लगी की शादी के पहले ही सुहागरात मना चुकी हूं,,,, चलो कोई बात नहीं माया पहले बाद में शादी अपने मन में यह सोचकर वह मुस्कुराने लगी और बिना कुछ बोले फिर से झाड़ू मारने लगी,,,,,,

थोड़ी ही देर में सुनैना खाना बना चुकी थी और थोड़ा बहुत इधर-उधर काम करके वह नहाने जा रही थी,,,, वैसे तो उसे नदी पर नहाने में अच्छा लगता था लेकिन घर पर भी एक छोटा सा गुसलखाना बनाई थी जो कि चारों तरफ मोटी मोटी लकडीयों को खड़ा करके पुरानी साड़ी लपेटकर दीवार की तरह कर देती ताकि कोई देख ना सके,,, और बीच में हैंडपंप था वैसे इसका उपयोग बहुत ही काम करते थे जब जल्दबाजी रहती थी तभी इसका उपयोग करते थी,,, वरना नदी और कुएं का ही ज्यादातर उपयोग करते थे बारिश में हैंडपंप का ज्यादा उपयोग करते थे क्योंकि बारिश के मौसम में वह नदी पर नहीं जाती थी,,,, आज खेत पर काम करने जाने की जल्दबाजी थी इसलिए वह हैंडपंप पर ही नहाने वाली थी,,,,,,, इसलिए वह जल्दी से गुसलखाने में पहुंच गई और अपने हाथों से हेड पंप चलाकर बाल्टी को पानी से भरने लगी,,,, वह अपने मन में यही सोच रही थी कि आज उसे अपने बेटे के साथ खेत में काम करने जाना है इस तरह से खेतों में काम करके वह कुछ पैसे जुटा सकती है। यही सब सोते हुए वह अपने बदन पर से अपनी साड़ी को धीरे-धीरे से खोलने लगी और देखते-देखते वह अपनी साड़ी को उतार कर इस घुसल खाने में रख दी,,,, अब वह केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थी,,, नदी पर तो उसे सारे कपड़े उतार कर लेंगे नहाने का शौक था और ईसी शौक के चलते वह अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगे वह जानते थे कि गुशल खाने के तरफ कोई नहीं आएगा,,,।

सुनैना निश्चिंत थी,,,, इसलिए वह एक-एक करके अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और ब्लाउज को भी अपने हाथों से उतार कर,,, वहीं पास में रहती उसकी चूचीया एकदम से नंगी हो गई,,,, वह अपनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों की तरह देखकर मुस्कुराने लगी और धीरे से दोनों को अपनी हथेलीयो में पकड़ कर मानो उसे पुचकार रही हो,,, और फिर अपने पेटिकोट की डोरी खोलने लगी,,, उसकी यही आदत थी क्योंकि बिना सारे कपड़े उतार कर नहाने में ही उसे मजा आता था,,, और जब तक पूरे कपड़े उतार कर नहीं नहाए तब तक उसे लगता ही नहीं था कि वह नहाई है,,, अपनी पेटिकोट की डोरी खोलने के बाद वह धीरे से अपनी पेटीकोट को भी अपनी कमर पर से ढीली करके उसे अपने हाथों का सहारा देकर उसे एकदम से नीचे छोड़ दी और उसकी पेटिकोट उसके कदमों में जा गिरी अगले ही परिवार गुसलखाने के अंदर पूरी तरह से नंगी थी,,,, क्योंकि वह निश्चित थई की इस तरफ कोई नहीं आएगा,,, और नहाना शुरू कर दी,,,,।

इसी बीच सूरज इधर-उधर से घूमता हुआ आया वह भी अपनी मां से यह बताने आया था कि खेत पर जाने का समय हो रहा है जल्दी से खाना खाकर और थोड़ा खाना लेकर खेत पर चले लेकिन जब वह घर पर गया तो घर के अंदर उसकी मां नहीं थी और रानी भी घर पर मौजूद नहीं थी क्योंकि वह नित्य क्रम से निपटने के लिए मैदान गई हुई थी,,, इधर-उधर ढूंढने के बाद जब घर पर उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो वह रसोई घर में देखा था भोजन तैयार था और वह समझ गया कि उसकी मां को याद है कि खेत में जाना है लेकिन उसे बड़े जोरों की प्यास लगी हुई थी और घर पर पानी नहीं था इसलिए वह खुद ही पानी पीने के लिए हेड पंप की तरफ चल दिया,,, क्योंकि वह जानता था कि इस तरह की स्थिति में उसे हेडपंप पर ही पानी मिल सकता है वरना कुएं पर ज्यादा तो कुएं में से पानी निकालना पड़ता,,, और समय हो जाता इसलिए समय के अभाव को देखकर वह हेडपंप की तरफ चल दिया था उसे नहीं मालूम था कि हेडपंप पर उसकी मां नहा रही है और वह भी बिना कपड़ों की,,,।

कगुशल खाने में सुनैना निश्चिंत होकर नहा रही थी वह पूरी तरह से निर्वस्त्र थी और अपने बदन पर ठंडा पानी डाल रही थी,,,,, सुबह का समय होने के बावजूद भी गर्मी का एहसास हो रहा था और इस गर्मी के एहसास में हेड पंप से निकला ठंडा पानी उसके बदन को राहत प्रदान कर रहा था,,,, वह बच्चे को रोकर नहा रही थी उसकी क्या मालूम था कि उसका बेटा पानी पीने के लिए उसी की तरफ आ रहा है,,,, और वह कोई गीत भी खुशी के मारे गुनगुना रही थी,,, कुछ देर तक वह बैठ कर नहा रही थी,,,, लेकिन वह नहा चुकी थी बस खड़े होकर एक दो लोटा अपने ऊपर डालना था और वह खड़ी हो गई थी,,,, सुनैना खड़ी होने के बावजूद भी गुसलखाने के लंबे लकड़ी से बंधी हुई साड़ी के बाहर नजर नहीं आ रही थी,,, क्योंकि सुनैना,,, चाहे जैसे भी हो काम चलाउ गुसलखाने का निर्माण इस तरह से की थी कि अंदर कोई नहा रहा भी हो तो बाहर आते-जाते किसी को पता ना चले,,, इसीलिए तो सुनैना पूरी तरह से निश्चित,,, वह नहा चुकी थी बस कपड़े पहनने की दे रही थी,,,,।

इस बात से अनजान सूरज की उसकी मां गुसलखाने में नहा रही है वह जल्दबाजी में इस तरफ अपने कदम बढ़ाए चला जा रहा था और उसकी मां अपने हाथ से ही अपने बदन पर से पानी को साफ कर रही थी कि तभी अचानक सूरज एकदम से ठीक उसकी आंखों के सामने आ गया उसे नहीं मालूम था कि कुशल खाने में उसकी मां नहा रही है और वह भी बिना कपड़ों के वह फसल खाने में जैसे ही नजर घुमाया तो सामने का नजारा देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उसे साफ तौर पर दिखाई दे रहा था कि उसकी मां गुसलखाने में बिना कपड़ों के नहा रही थी एकदम नंगी होकर यह नजारा सूरज के लिए मदहोश कर देने वाला था,,,, उत्तेजित कर देने वाला था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कुछ देर तक तो उसे समझ में नहीं आया कि उसे करना क्या है वह देख क्या रहा है लेकिन जैसे ही उसे यह एहसास हुआ कि उसकी आंखों के सामने उसकी मां नंगी होकर ना आ रही है वह पूरी तरह से मंत्र मुग्ध हो गया था,,, अपनी मां की नशीली जवानी में पूरी तरह से खो चुका था।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि वह अपनी मां को पहली बार निर्वस्त्र अवस्था में देख रहा है वह अपनी मां को निर्वस्त्र अवस्था में कई मौका पर देख चुका था नदी पर नहाते हुए कमरे में अकेलापन पाकर अपने हाथों से अपनी जवानी की प्यास बुझाते हुए,,, और खुद अपने पिताजी को अपनी मां की चुदाई करते हुए देखा था लेकिन हर बार की तरह इस बार भी नंगी होने के बावजूद भी उसकी मां अद्भुत एहसास कर रही ऐसा लग रहा था कि जैसे कहना चाह रहा सूरज पहली बार देख रहा हो,,,। और सुबह-सुबह इस तरह का नजारा देखकर उसके दिन की शुरुआत हुई थी इसलिए वह अंदर ही अंदर उत्तेजित और प्रसन्न हुआ जा रहा था,,,, इस समय जिस तरह की हालत सूरज की थी उसी तरह की हालत उसकी मां की भी हो चुकी थी,,,,। यूं एकाएक सूरज को अपनी आंखों के सामने देखकर वह भी हक्की-बक्की रह गई थी,,,, वह भी कुछ समझ नहीं पाई थी और कुछ क्षण तक अपने बेटे की तरफ ही देख रही थी,,, क्योंकि इस तरह के हालात में पूरी तरह से दिमाग काम करना बंद कर देता है दिमाग को कुछ समझ में ही नहीं आता कि उसकी आंखों के सामने क्या हो रहा है और जब तक कुछ समझ में आता है तब तक देर हो चुकी होती है।

और यही सुनैना के साथ भी हुआ अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को देखकर वह एकदम से घबरा गई थी उसे को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें पहले तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने खड़ा है और वह जिस तरह के हालात में खड़ी थी उसे और भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें वह पूरी तरह से हैरान थी इस बीच वह हैरानी में अपनी खूबसूरत अंगों को ढंकने का या छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की थी,,, जिस तरह से सूरज फटी आंखों से उसकी तरफ देख रहा था उसी तरह सुनैना भी हैरानी से अपने बेटे की तरफ देख रही थी,,, और जब से इस बात का एहसास हुआ कि वह किस अवस्था में है तो वह तुरंत अपने एक हाथ से अपनी दोनों चूचियों को और दूसरे हाथ से अपनी बुर को छुपाने की कोशिश करने लगी,,,, और हड़बड़ाहट में दोनों अंगों को छुपाने के चक्कर में वह एकदम से अपने बेटे की तरह पीठ करके घूम गई और अनजाने में पीठ के साथ-साथ उसकी गांड भी सूरज की आंखों के सामने उजागर हो गई वह हड़बड़ाहट भरे स्वर में बोल रही थी,,,।

तू यहां क्या कर रहा है,,,?

मैं तो पानी पीने आया हूं,,,,(अपनी मां की मदमस्त कर देने वाली गोल-गोल गांड की तरफ देखते हुए हो बोला,,,, अपने बेश कीमती खजानो को छुपाने के चक्कर में वह अपनी खूबसूरत हवेली दांव पर लगा चुकी थी,,, हवेली की हालत को देखकर ही सूरज अंदाजा लगा लिया था की हवेली की महारानी कितनी खूबसूरत है,,,, सूरज तो अपनी मां की मदद कर देने वाली गांड को देखे जा रहा था अपनी मां की गांड को वह बिना कपड़ों के कई बार देख चुका था लेकिन हर बार ऐसा ही लगता था कि मानो जैसे वह पहली बार देख रहा हो,,,, सूरज की बात सुनकर सुनैना बोली,,,)

घर में पानी नहीं था जो यहां आ गया,,,,।

घर में नहीं मिला तभी तो यहां आ गया हूं मुखिया के खेतों पर जो जाना है देर हो रही थी,,,, लेकिन तुम तो नदी पर नहाती थी यहां कैसे नहाने लगी,,,,(सूरज थोड़ी हिम्मत दिखा कर अपनी मां के सामने खड़ा ही रहा और उस सवाल पूछ रहा था इस दौरान उसकी नजर अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ उसकी मदमस्त बलखाती हुई कमर के साथ-साथ उसके उभारदार नितंबो पर घूम रही थी,,,,,)

खेत पर जाना था ना इसलिए मुझे देर हो रही थी इसलिए यहां नहाने लगी,,,।

चलो कोई बात नहीं यहां नहाने लगी लेकिन बिना कपड़ों के पूरे कपड़े उतार कर नहाने की क्या जरूरत थी,,,,(सूरज हिम्मत दिखा रहा था वह अपनी मां की हालत को अच्छी तरह से समझता था वह रात को छुपकर दरवाजे की दरार में से अपनी मां के कमरे में उसकी बेबसी को अपनी आंखों से देख चुका था मर्द के बिना उसकी तड़प बढ़ती जा रही थी,,, इसलिए वह वहां से बिल्कुल भी अपने कदम को पीछे नहीं ले रहा था,,,, सूरज की बात को सुनकर सुनैना थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)

मैं कैसे भी नहाउं,,, मेरी मर्जी है,,, लेकिन तुझे यहां नहीं आना चाहिए था,,,,,(सुनैना थोड़ी घबराहट भरे स्वर में बोल रही थी,,,, क्योंकि वह अपने बेटे की हरकत को जानती थी वह जानती थी ,,, कि ऐसे हालत में उसके बेटे की भावनाएं कितनी बेकाबू हो जाती हैं सुनैना को वह पल याद आ गया जब रात भर सूरज घर नहीं आया था और सुबह उसे देखकर वह पूरी तरह से खुश होकर उसे अपने गले से लगा ली थी अपने सीने से सटा ली थी लेकिन उसका बेटा सूरज उसके दुलार को वासना का रूप देने लगा और उसे भी अपनी बाहों में भरकर उसके नितंबों को दोनों हथेलियां में लेकर दबाने लगा था,,,, अपने बेटे की हरकत पर वह समझ सकती थी कि इस समय उसके बेटे के मन में क्या चल रहा होगा,,,।

और उसे भी जल्द ही यह एहसास हुआ कि वह अपनी गांड अपने बेटे के सामने परोस चुकी है उसकी आंखों के सामने उजागर कर चुकी है इस बात से वह और भी ज्यादा शर्मिंदगी महसूस करने लगी,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अगर अपनी गांड छुपाने के लिए वह अपने बेटे की तरफ घूम जाती है तो उसकी नंगी चूचियां और उसकी बुर जरूर दिखाई देगी,,, लेकिन वह जानती थी कि वह अपनी चूची और अपनी बुर को अपने हाथ से ढंक चुकी है लेकिन, फिर भी उसका बेटा उसके दोनों अंगों को देखने की भरपूर कोशिश करेगा इस बात का अहसास होते ही उसके बदन में भी अजीब सी हलचल होने लगी थी,,,, अपने बेटे की हरकत पर इस समय उसे गुस्सा आ रहा था वह यह सोच रही थी कि अब तक तो उसे चले जाना चाहिएथा कोई औरत को इस हालत में नहाते हुए देख लेता है तो तुरंत अपनी नजर को घुमा लेता है उसके बेटे की तरह घूरता नहीं रहता है। अपनी मां की बात सुनकर सूरज बोला,,,)

मुझे क्या मालूम था कि तुम नंगी होकर नहा रही हो वरना मैं यहां आता ही नहीं,,,,(सूरज जानबूझकर अपनी मां के सामने नंगी शब्द का प्रयोग कर रहा था और उसकी मां को हैरानी भी हो रही थी कि उसका बेटा कितना बदल गया है,,, सूरज की बात को सुनकर सुनैना बोली,,,,)

चल ठीक है बाद में पानी पी लेना अभी यहां से चला जा मुझे कपड़े पहनने हैं,,,,,,।

ठीक है लेकिन कपड़े पहनने के बाद मेरे लिए पानी लेकर आना और जल्दी से मुखिया के खेत पर चलना है देर हो रही है,,,।

मैं जानती हूं अब तू जा मैं पानी लेकरआऊंगी,,,,।

ठीक है,,,,(इतना कहकर सूरज अपनी मां की नंगी गांड पर एक नजर मार कर वहां से चलता बना इस दौरान उसके पजामे में तंबू बन चुका था,,, वह घर के आंगन में खटिया गिरा कर उस पर बैठ गया,,,, जैसे ही सुनैना को एहसास हुआ कि उसका बेटा चला गया है तो वह जल्दी से अपने सुख कपड़े अपने हाथ में ले ली उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी उसे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी क्योंकि वह अपने बेटे के सामने पूरी तरह से निर्वस्त्र अवस्था में आ चुकी थी,,,, फिर पता नहीं क्या हुआ उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई और वह मुस्कुराते हुए अपने कपड़े पहनने लगी,,,

इस दौरान सौच क्रिया से निपट कर रानी वापस आ चुकी थी और जैसे ही घर के आंगन में पहुंची तो सामने चारपाई पर अपने भाई को देखकर उसकी आंखें शर्मिंदगी से नीचे झुक गई और अपनी आंखों के सामने अपनी बहन रानी को देखकर सूरज के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह जल्दी से उठाओ और अपनी बहन की तरफ आगे बढ़ गया यह देख कर रानी का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह अपने भाई की फितरत को अच्छी तरह से समझ चुकी थी,,,, वह अपने कदम को पीछे लेना चाहती थी लेकिन सूरज फुर्ती दिखाता हुआ उसके एकदम करीब पहुंच चुका था और उसकी कमर में अपना हाथ डालकर उसे अपनी तरफ खींच लिया था और अपने पजामे में बने ताजे ताजे उभार को अपनी बहन की दोनों टांगों के बीच उसकी बुर पर रगड़ने लगा उसके ही हरकत से रानी के बदन में भी उत्तेजना की लहर दोड़ने लगी,,, अपने भाई के लंड की चुभन को अपने दोनों टांगों के बीच बुर पर महसूस करके वह शरमाते हुए बोली,,,)

क्या भाई तुम्हारा तो फिर सेखड़ा है,,,!

क्या करूं रानी तुझको देखे ही इसको ना जाने क्या हो जाता है और खड़ा हो जाता है,,,(ऐसा कहते हुए उसे कसके अपनी बाहों में जकड़ कर कुर्ती के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाने लगा,,,, रानी को अपने भाई की हरकत से मजा तो आ रहा था लेकिन वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि यह समय यह सब करने का बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि किसी भी वक्त उसकी मां आ सकती थी इसलिए वह अपने भाई को समझाते हुए बोली,,,)

छोड़ो मुझे मुझे घर का बहुत सा काम करना है और कहीं मा ने देख लिया ना तो गजब हो जाएगा,,,,।


कुछ नहीं होगा कल रात को भी तु यही कह रही थी लेकिन कुछ हुआ कुछ भी नहीं लेकिन हम दोनों के बीच बहुत कुछ हो गया,,,, मैं तो कहता हूं जल्दी से सलवार की डोरी खोलकर सलवार को नीचे कर दे,,,,(आंगन के कोने वाली जगह की तरह देखते हुए) और जल्दी से दीवार पकड़ कर घोड़ी बन जा और मजा आएगा,,,,
(सूरज किस तरह की बातें सुनकर रानी के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी अपने भाई की बातें सुनकर आंगन के कोने की तरफ देखी तो उसका चेहरा सुर्ख लाल होने लगा वह शर्म से पानी पानी होने लगी और यह शर्मा का पानी उसके गुलाबी छेद से बाहर आने लगा और वह अपने भाई से अलग होने की कोशिश करते हुए बोली,,,)


छोड़ो मुझे पागल हो गए हो क्या कहीं भी शुरू हो जाते हो मां नहाने गई है और किसी भी वक्त आ सकती है,,,
(रानी की बात सुनकर सूरज का मन हुआ कि उसे बता दे कि अभी-अभी वह अपनी मां को नंगी देखकर आ रहा है और वह गुसलखाने में नहा रही लेकिन ऐसा कहना ठीक नहीं था इसलिए वह मुस्कुराता रहा और मुस्कुराते हुए फिर से उसे अपनी बाहों में जकडते हुए बोला,,,)

कुछ नहीं होगा जल्दी से खत्म हो जाएगा जल्दी से अपनी सलवार की डोरी खोल,,,।

नहीं कुछ भी नहीं,,, अभी तो मैं बिल्कुल भी नहीं करने दूंगी,,,,(अभी दोनों के बीच इस तरह की नोक झोक चली रही थी कि तभी बाहर बाल्टी का दीवार से टकराने की आवाज हुई और दोनों एकदम से अलग हो गए सूरज जल्दी से चारपाई पर जाकर बैठ गया और रानी रसोई घर के अंदर जाकर बैठ गई और थाली में अपने लिए खाना परोसने लगी,,,, तब तक सुनैना आंगन में बाल्टी में पानी भर कर पहुंच चुकी थी,,,, कुछ देर पहले जिस तरह के हालात मां बेटे के बीच पैदा हुए थे उसे देखते हुए सुनैना की हिम्मत नहीं हो रही थी सूरज से नजर मिलाने की वह कुछ बोली नहीं बस बाल्टी को इस तरह से रख दी और अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,, सूरज की नजर अपनी मां की चिकनी कमर पर थी और वह अपनी मां की चिकनी कमर को देखकर अपने मन में सोच रहा था कि कितना मजा आएगा जब इसकी चिकनी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे से चुदाई करूंगा,,,,

कमरे का दरवाजा बंद हुआ और थोड़ी देर बाद खुला और सुनैना तैयार थी मुखिया के खेत पर चलने के लिए लेकिन अपने कमरे से बाहर निकलते हुए भी वह सूरज की तरफ देखने में शर्म महसूस कर रही थी इसलिए सूरज ही बोला,,,।

थोड़ा खाना लेकर चलना पड़ेगा क्योंकि भूख लगेगी तब खाने के लिए घर आने में दिक्कत हो जाएगी,,,।

मुझे मालूम है तभी तो रानी से खाना बांधने के लिए बोली हूं,,,।

तब तो एकदम ठीक है,,,,,।

चल अब तु पानी पी ले अगर खाना खाना हो तो खाना भी खा ले तब तक रानी खाना बांंध देती है,,,(इस बार वह बड़ी हिम्मत करके सूरज की तरफ देखी तो सूरज मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कुराहट में बहुत कुछ छुपा हुआ था उस०की मुस्कुराहट देखकर सुनैना शर्मसार होने लगी और वह फिर से अपनी नजर को नीचे झुका ली अपनी मां की बात सुनकर सूरज बोला)

कोई बात नहीं दो रोटी खा लेता हूं और तुम भी दो रोटी खा लो अच्छा रहेगा,,,।

नहीं मुझे भूख नहीं लगी है,,,।

क्या भूख नहीं है खेत में चार-पांच बार फरसा चलाओगी तो पेट में चूहे दौड़ने लगेंगे इसलिए कहता हूं खा लो,,,, रानी मां के लिए भी तो रोटी निकाल और सब्जी,,,,।

ठीक है भैया,,(इतना क्या करवा सूरज और अपनी मां के लिए भी खाना निकालने लगी और अपने मन में सोचने लगी कि अच्छा हुआ सही समय पर मान गई वरना भाई का भरोसा नहीं है वह तो किसी भी समय शुरू पड़ जाएंगे यही सब सोचते हुए वह दो हाथ में थाली लेकर एक अपने भाई को दे दी और एक अपनी मां को थमा दी,,, सुनैना भी चारपाई पर बैठकर खाना खाने लगी और अपने मन में सोचने लगेगी उसका लड़का कितना बदल गया है पूरी तरह से जवान हो चुका है,,, उसकी नजरों में प्यास नजर आती है औरत की प्यास जब घर में यह हाल है तो उसके साथ तो मुझे काम करना है वहां पर ऐसी वैसी हरकत किया तो क्या होगा यही सब सोते हुए वह खाना खत्म कर दी,,, और सूरज खुद एक लोटा पानी लेकर अपनी मां के सामने खड़ा हो गया और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए उसे लौटा थमाने लगा,,, खाना खाने के बाद सुनैना को भी प्यास लगी थी इसलिए वह अपने बेटे के हाथ से लौटा ले ली और पानी पीने लगी लेकिन इस बीच वह अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,,,,।

रानी खाना बंद कर सूरज को दे दी थी दोनों खेत पर जाने के लिए तैयार हो चुके थे और सुनैना रानी को हिदायत देते हुए घर से बाहर खेतों की तरफ जल्दी लेकिन खेत पर जाने से पहले सूरज जानता था कि उसे मुखिया से एक बार मिलना होगा काम के बारे में सही जानकारी लेनी होगी इसलिए वह अपनी मां को लेकर मुखिया के घर की तरफ चल दिया।।

Gazab ki update he rohnny4545 Bhai,

Suraj aur uski maa beech huye is ghatna ne dono ko hi mast kar diya...........

Mukhiya ke kheto me bhi kuch na kuch jarur hona chahiye........

Keep rocking Bro
 
  • Like
Reactions: Napster
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

rohnny4545

Well-Known Member
14,081
36,568
259
सूरज अपनी मां को लेकर खेत में जाने से पहले मुखिया के घर जाकर एक बार मुलाकात कर लेना चाहता था,,, सूरज अच्छी तरह से जानता था की मुखिया तो नहीं लेकिन मुखिया की बीवी उसे जरूर कुछ पैसे और थोड़ी बहुत मदद कर देगी जिससे वह भी खुश हो जाएगा और उसकी मां भी खुश हो जाएगी,,, क्योंकि सूरज को ऐसा लगता था कि जो कुछ भी कुछ देर पहले गुसलखाने में हुआ था उससे उसकी मां उससे थोड़ा बहुत नाराज है क्योंकि सूरज अच्छी तरह से जानता था कि अगर कोई और औरत होती तो शायद उसकी ईस हरकत पर इतना असामान्य व्यवहार ना करती लेकिन कहीं ना कहीं उसकी मां को यह सब गलत लगा था और वह भी नहीं जानता था कि गुसलखाने में उसकी मां नहा रही है वह तो पानी पीने के लिए गया था,,, इसलिए किसी भी तरह से अपनी मां को खुश करना चाहता था।

रास्ते भर उसकी मां कुछ बोल नहीं रही थी एकदम खामोश थी क्योंकि उसे इस बात का रंज था कि वह अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नग्न अवस्था में नहा रही थी,,,, लेकिन इस बात को कहा बिल्कुल भी नहीं जानती थी कि उसे कई बार पूरी तरह से नग्न अवस्था में उसका बेटा देख चुका है नहाते हुए कपड़े बदलते हुए यहां तक की चुदवाते हुए भी देख चुका है,,, लेकिन यह सब सुनैना को नहीं मालूम था,,, और वह एक संस्कारी और मर्यादा में रहने वाली औरतें इसलिए अपनी आदत पर उसे गुस्सा आ रहा था वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसका बेटा पूरी तरह से जवान हो चुका है और उसके जवान होने का सबूत वह भावनाओं में बहते हुए एक बार महसूस कर चुकी थी,,, इसलिए वह अपने बेटे के सामने ऐसी कोई भी गलती नहीं करना चाहती थी जिससे उसके बेटे को आगे बढ़ने का मौका मिले या वह उसकी अनजाने में हुई हरकत को कुछ और समझ कर अपनी हरकतों को बढ़ाने लगे। सूरज में अपनी मां से किसी भी तरह की बात नहीं कर रहा था,, क्योंकि वह अपनी मां के मन की हालत को समझ रहा था, वैसे इस बात की खुशी उसे अच्छी तरह से थी कि आ जाओ अपनी मां को पूरी तरह से नंगी देख लिया था और वह भी एकदम करीब से,,,।

ऊंची नीची पगडंडियों पर चलते हुए सुनैना की भरावदार गांड ऊपर नीचे हो रही थी और किसी भी साड़ी में गांड की दोनों बड़ी-बड़ी फांकें आपस में रगड़ खा रही थी लेकिन इस अद्भुत मादकता भरे नजारे को सूरज नहीं देख पा रहा था क्योंकि वह आगे आगे चल रहा था और इस बात का मलाल उसे भी था कि उसे अपनी मां के पीछे रहना चाहिए था लेकिन उसकी मां मुखिया का घर नहीं देखी थी इसलिए उसे ही आगे आगे चलना पड़ रहा था,,,, कच्ची सड़क के किनारे खेतों में गांव के लोग काम कर रहे थे,,, सुनैना कोई इस बात की भी फिक्र थी कि आज वह समय पर खेत पर नहीं पहुंच पाई थी वरना अभी तक तो बहुत काम हो चुका होता,, क्योंकि गर्मी के महीने में खेतों में सूरज सर पर आ जाए काम नहीं हो पाता इसलिए वह जल्दी से काम खत्म करना चाहती थी लेकिन ऐसा लग रहा था कि आज का दिन बिगड़ गया था,,, वह चलते हुए सूरज को देख रही थी और ना चाहते हुए उसके मन में यही ख्याल रहता है कि वाकई में उसका बेटा पूरी तरह से जवान हो चुका है अपने बेटे के गठीले बदन और उसकी लंबी कद काठी को देखकर एक अजीब सा आकर्षण सुनैना की आंखों में दिख रहा था जिससे वह भी परेशान हुए जा रही थी,,,। रह रहकर सुनैना हल्के से अपनी साड़ी पकड़ कर उसे थोड़ा सा ऊपर उठाकर ऊंची नीची पगडंडियों से आगे बढ़ने की कोशिश करती थी जिससे उसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते थे,,, गहरी सांस लेते हुए वह एक बड़े से घने पेड़ के नीचे रुक गई और अपनी साड़ी के पल्लू से हवा देते हुए अपने बेटे को आवाज लगाते हुए बोली,,,।

रुक जा अभी कितनी दूर है मुखिया का घर मैं तो अभी से ही थक गई हूं,,,,,।
(अपनी मां की आवाज सुनकर सूरज एकदम से रुक गया और पीछे मुड़कर देखा तो उसकी मां पेड़ की छांव के नीचे खड़ी थी और अपनी ही पल्लू से हवा दे रही थी वह धीरे से कदम बढ़ाते हुए अपनी मां के करीब आया और इस हालत में उसकी नजर अपने आप ही सुनैना की मदमस्त कर देने वाली छातियों पर चली गई,,, और सूरज अपनी मां की चूचियों को घुरते हुए बोला,,,)

बस आ ही गया यह बड़े-बड़े पेड़ खत्म होने के बाद ही मुखिया का घर दिखाई देने लगेगा,,,,।

लेकिन,,,,(इतना कहते ही सुनैना का ध्यान अपने बेटे की नजर पर गई तो वह एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई और अपनी उभरी हुई छातीयो को अपने बेटे की नजर से छुपाते हुए अपनी बात को आगे बढ़ते हुए बोली,,,) मैं तो एकदम से थक गई हूं,,,.
(अपनी मां की हरकत को देखकर सूरज भी अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया था और बोला,,)

क्या मां तुम अभी से थक गई तो खेतों में काम कैसे कर पाऊंगी,,,,।

अरे मैं भी तो यही सोच रही हूं गर्मी कुछ ज्यादा ही है,,,,(पल्लू से अपनी माथे पर उपसे हुई पसीने को पोछते हुए वह बोली,,, और उसके इस हरकत पर उसकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा ऊपर उठ जाने की वजह से उसकी चूचियों की गहरी दरार एकदम से साफ नजर आने लगी जिस पर फिर से सूरज की नजर चली गई और उसके मुंह में पानी आ गया,,, सूरज को साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मां की चूचियां जवानी से भरी हुई थी और एकदम गदराई हुई थी,,, अपनी मां की चूचियों को देखकर सूरज को पूरा विश्वास था कि अगर मौका मिल जाए तो वाकई में उसकी मां की चूचियां उसे बहुत ज्यादा मजा देंगी,,, सुनैना ने इस बात पर बिल्कुल भी गौर नहीं की थी कि उसकी हरकत की वजह से उसकी चूचियों की पतली गहरी लकी एकदम साफ दिखाई दे रही है वह पेड़ की तरफ देख रही थी और सूरज अपनी मां की चूचियों की तरफ देख रहा था और उसकी चूचियों की तरफ देखते हुए बोला,,,)

चलो कोई बात नहीं जब तक मन करे तब तक काम करना बाकी मैं तो हूं सब संभाल लूंगा,,,,।
(सूरज अपनी मां को दिलासा देने वाली बात कर रहा था और उसकी मां अपने बेटे की इस बात से मन ही मन प्रसन्न हो रही थी लेकिन वह नहीं जानती थी कि उसके बेटे की नजर इस समय कहां पर है और जैसे ही वह अपनी नजरों को नीचे की तो एक बार फिर से वहां सर में से पानी पानी हो गई वह तुरंत अपने साड़ी के पल्लू से अपनी चूचियों को ढक ली,,, सुनैना को समझ में नहीं आ रहा था कि उसका बेटा उसे इस तरह से गंदी नजरों से क्यों देखता है,,, बेटे को तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं करना चाहिए तो फिर सूरज दूसरी मर्दों की तरह क्यों बर्ताव कर रहा है यह सुनैना कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन वह अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरत रही थी,,, कुछ देर छाव में खड़े रहने के बाद,,, सूरज अपनी मां से बोला,,,)

आज का दिन तो लग रहा है कि ऐसे ही चला जाएगा चलो मुखिया से मिल लेते हैं और उनके खेतों को देख लेते हैं खेत को देख लेंगे तो काम के बारे में अच्छे से समझ में आ जाएगा,,,।

तो ठीक कह रहा है आज का दिन सच में ऐसे ही चला गया हमें और जल्दी घर से निकल जाना चाहिए,,,।

तुम ठीक कह रही हो मां,,,, लेकिन अभी चलो मुखिया के घर अगर वहां मुखिया की बीवी होगी तो कुछ पैसे मिल जाएंगे और थोड़ी बहुत सब्जियां भी,,,।

तो क्या मुखिया की बीवी पैसे दे देंगी,,,!(सुनैना आश्चर्य जताते हुए बोली,,,)

तो क्या मुखिया की बीवी मुझे बहुत मानती है,,,, अब हमें चलना चाहिए,,,(इतना कहने के साथ ही सूरज फिर से आगे आगे चलने लगा उसके पीछे-पीछे सुनैना चलने लगी। सुनैना चलते चलते सूरज के बारे में सोच रही थी उसने एक बात पर बहुत ध्यान दिया था कि कुछ दिनों से सूरज की नजर पूरी तरह से बदल चुकी थी उसका देखने का नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था,,, इस समय भी वह उसकी चूचियों को ही घुर रहा था,,, इन सब बातों से जहां वह हैरान हो रही थी वही न जाने क्यों उसके बदन में अपने बेटे की गंदी नजर की वजह से अजीब सी हलचल महसूस होने लगती थी और यह हलचल उसे भी बड़ी अजीब लगती थी क्योंकि वह जानती थी कि सूरज उसका बेटा है और मां बेटे के बीच इस तरह का रिश्ता कभी संभव नहीं हो सकता उसे यह भी याद है कि एक बार वह खुद भावनाओं में बह गई थी इसीलिए अपने आप को बहुत संभाले हुए थी,,, और उसे इस बात का डर भी लगता था कि कहीं उसके पैर ना बैठ जाए कहीं वह फिर से भावनाओं में ना बह जाए,,, यही सब सोचते हुए वह सूरज के पीछे-पीछे चल रही थी,,, अपने बेटे के साथ वह पहली बार मुखिया के घर जा रही थी उसने आज तक मुखिया का घर नहीं देखी थी,,,

सूरज के कहे अनुसार वाकई में बड़े-बड़े पेड़ खत्म होते ही मुखिया का घर नजर आने लगा जो की काफी बड़ा घर था,,, सूरज अपनी मां को उंगली के इशारे से दिखाते हुए बोला,,।

वह देखो मां मुखिया जी की हवेली वैसे तो यह हवेली नहीं है लेकिन हवेली से कम भी नहीं है,,,

सच कह रहा है रे तु कितना बड़ा घर है,,,(दूर से ही देखते हुए सुनैना बोली,,,।)

थोड़ी देर में दोनों मुखिया के घर के बाहर खड़े थे,,, मुखिया घर के बाहर ही बड़े से नीम के पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठा हुआ था और दूसरे मजदूरों को कम के बारे में समझा रहा था,, सूरज और उसकी मां को देखते ही वह एकदम खुश होता हुआ बोला,,,।

आओ सूरज बेटा,,,,।

जी नमस्कार मुखिया जी,,,।

नमस्कार नमस्कार,,,, एकदम समय पर आ गए हो,,, आओ बैठो,,,,(सामने लकड़े के बने तख्ते की तरफ इशारा करते हुए मुखिया जी बोले,,, और उनका इशारा पाकर सूरज उसे पर जाकर बैठ गया लेकिन सुनैना नहीं बैठी क्योंकि वह इस तरह से किसी गैर मर्द के सामने बैठी नहीं थी इसलिए खड़ी ही रही और घूंघट से चेहरे को ढंक ली थी,,, सुनैना को कड़ी देखकर कर मुखिया जी बोले,,,)

तुम भी बैठो,,,।

नहीं मुखिया जी मैं ठीक हूं,,,।

चलो कोई बात नहीं,,,, चाय बन चुकी है,,, चाय पीकर खेतों पर जाना,,,।

जी मुखिया जी हम लोग चाय नहीं पीते,,,,(सुनैना एकदम मधुर ध्वनि बिखेरते हुए बोली,,, अपनी मां के सुर में और मिलाता हुआ सूरज भी बोला,,,)

मां सही कह रही है मुखिया जी हम लोग सुबह-सुबह गाय का ताजा दूध पीते हैं,,,।

(इसी बीच मुखिया की बीवी भी वहां पर आ पहुंची सुनैना को देखकर उसे आश्चर्य हुआ आश्चर्य इस बात के लिए हुआ कि उसने इतनी खूबसूरत औरत गांव में पहले कभी देखी नहीं थी,,,, मुखिया की बीवी कुछ बोलती है इससे पहले मुखिया सूरज की मां के बारे में बताते हुए बोले,,,)

यह भोला की बीवी है सूरज की मां,,,,।

ओहहहह,,, तो तुम सूरज की मां पहली बार मैं तुम्हें देख रही हूं,,,।

जी मैं यहां पहली बार आई हुं,,,।

सच कह रही है भोला कहीं अपने दोस्तों के साथ कमाने के लिए चला गया है अगर वह होता तो मां बेटे की जरूरत ही नहीं पड़ती वह खुद सारा काम संभाल लेता लेकिन उसकी गैर हाजिरी में सूरज और उसकी मां सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लिए हैं,,,,।
(मुखिया की बीवी मुखिया की बातों पर बिल्कुल भी गौर नहीं कर रही थी वह सुनैना को ही देखे जा रही थी वाकई में उसके बदन की बनावट उसके बदन का उठाव और कटाव बेहद आकर्षक था,,, एक औरत होने के नाते मुखिया की बीवी को अच्छी तरह से मालूम था कि सूरज की मां के बदन की बनावट और आकर्षण मर्दों की हालत खराब कर देती होगी वह एक बहाने से सूरज की मां का चक्कर लगाते हुए उसके नितंबों का उभार देख रही थी क्योंकि उसे भी अच्छी तरह से मालूम था कि मर्दों की उत्तेजना औरत के कौन से अंग को देखकर सबसे ज्यादा भड़क जाती है,,,, और जैसे ही मुखिया की बीवी सूरज की मां की गांड की तरफ देखी तो वह खुद उसके आकर्षण में डूबने लगी और वह अपने मन में ही अपने आप से बोली,,,।

वाह क्या गांड है,,, दुनिया का भला कौन सा ऐसा मर्द होगा जो ऐसी औरत को भोगना नहीं चाहेगा,,, इतनी खूबसूरत बीवी होने के बावजूद भी इसका आदमी मेरी जवानी के पीछे पागल था पागल था या देखो कुछ समझ में नहीं आ रहा है पागल ही होगा वरना ऐसी खूबसूरत औरत छोड़कर कोई दूसरी औरतों के पीछे क्यों भागेगा,,,, शायद ऐसा भी हो सकता है कि घर की मुर्गी दाल बराबर अपनी बीवी को तो वह कभी भी चोद सकता था,,, दूसरों की बीवी चोदने का मजा ही कुछ और होता है,,, और शायद इसीलिए भोला घर का खाना कम बाहर का खाना ज्यादा खाता था। कसी हुई साड़ी में बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा आकर्षक और उपसी हुई लग रही थी,,, एक नजर सूरज की मां की गांड पर डालकर वह फिर से अपनी जगह पर आ चुकी थी। वह मुखिया की बातों को बिल्कुल भी नहीं सुनी थी और ना हीं ध्यान दी थी,,, फिर भी सुनैना की तरफ देखते हुए बोली।

तुम खेतों में काम कर लोगी,,,,।(सुनैना की खूबसूरती को देखकर मुखिया की बीवी ऐसा बोल रही थी क्योंकि वह नहीं जानती थी कि उसकी खूबसूरती और बदन की कसावट खेतों में काम कर करके ही बनी थी मुखिया की बीवी की बातें सुनकर सूरज की मां बोली,,,)

बिल्कुल मालकिन हमारे लिए खेतों में काम करना कोई बड़ी बात नहीं है हम दोनों तो खेतों में ही दिन रात काम करते हैं,,,।

ओहहहह ,,, तुम्हें देखकर लगता नहीं की तुम एक जवान लड़के की मां हो,,,,,(सूरज की तरफ देखते हुए वह वाली सूरज की जवानी का मजा वह ले चुकी थी और उसे नहीं मालूम था कि सूरज की मां अभी भी जवानी से भरी हुई होगी इसलिए उसे हैरानी भी हो रही थी और न जाने क्यों उसे अंदर ही अंदर सुनैना से एक अजीब सी जलन होने लगी थी,,,, मुखिया की बीवी के इस बात का जवाब सुनैना के पास बिल्कुल भी नहीं था और उसकी बातों को सुनकर सूरज अंदर ही अंदर प्रसन्न हो रहा था क्योंकि एक तरह से मुखिया की बीवी उसकी मां की जवानी की उसके खूबसूरत बदन की प्रशंसा कर रही थी तारीफ कर रही थी। इस बीच मुखिया को जैसे कुछ याद आया हो वह एकदम से बोले,,,,)

अरे हां,,, यह दोनों तो चाय पीते नहीं है थोड़ा सा दूध हि लाकर दे दो,,,।

जी मुखिया जी मैं खाना खाकर आई हूं,,,,(सुनैना को किसी दूसरे के घर पर दूध पीना गवारा नहीं था उसे शर्म महसूस हो रही थी इसलिए वह बहाना करते हुए बोली,,, सुनैना का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी अपनी आंखों को नचाते हुए सूरज की तरफ देखते हुए बोली,,,)

तू तो पिएगा ना सूरज,,,,

जी जरूर,,,,(सूरज मुस्कुराते हुए बोला,,,, उसका जवाब सुनकर मुखिया की बीवी हल्की सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए बोली,,,)


गरम करने को रखी हूं चल वहीं पर पीले और एक दो आलू की बोरी है उसे थोड़ा उठाकर दूसरी तरफ रख दें और थोड़ी बहुत सब्जीया अपने घर के लिए ले लेना,,,,।(इतना कहकर मुखिया की बीवी अपनी गांड मटकाते हुए आगे आगे चलने लगी उसके मन में इस समय कुछ और चल रहा था,,, सुनैना घूंघट की आड़ में से मुखिया की बीवी को देख रही थी और उसे यह भी दिखाई दे रहा था कि मुखिया की उम्र अपनी बीवी को खुश करने वाली बिल्कुल भी नहीं थी मुखिया की बीवी की जवानी अभी भी बरकरार थी बदन में अभी भी अल्हड़ पन था और जिस तरह से अपनी गांड मटका कर गई थी वाकई में देखने वाले की हालत खराब हो जाए,,,, मुखिया की बीवी का इशारा पातें ही,,,, सूरज अपनी मां के कान में धीरे से बोला,,,,)

तुम्हें बैठो मां मैं अभी आता हूं और कुछ पैसे लेकर आता हूं,,,,।
(सूरज की बात मानकर वह वहीं रुक गई लेकिन मुखिया के सामने तख्ते पर नहीं बैठी,,, तब तक दूसरे मजदूर भी वहां आकर मुखिया से काम के बारे में बातें करने लग गए,,, तभी अचानक सुनैना अपना जवान बेटा और मुखिया की बीवी की मदद कर देने वाली जवानी के बारे में याद आ गया सूरज की बदलती नजरे उसका जवानी के दहलीज पर कदम रखना यह सब सुनैना को परेशान करने लगा वह अपने मन में सोचने लगी कि जब सूरज उसे खुद प्यासी नजरों से घूरता रहता है तो मुखिया की बीवी तो पराई औरत है उसे किस नजरिए से देखता होगा,,,, इस बारे में सोच कर सुनना एकदम परेशान होने लगी,,, मुखिया की उम्र और मुखिया की बीवी की भरी हुई जवान को देखकर उसे कुछ-कुछ शंका के साथ घबराहट होने लगी।

एक औरत के मन को वह अच्छी तरह से समझती थी उसे इस बात का एहसास होने लगा था की मुखिया की उम्र हो चली थी उनके शरीर में इतना दम नहीं था कि वह किसी औरत को खुश कर सके और मुखिया की बीवी अभी भी पूरी तरह से जवान थी ऐसे में मुखिया की बीवी होने से पेट की आज तो पूछी जाती है लेकिन शरीर की आग भोजन से नहीं बुझती शरीर की आग को बुझाने के लिए एक मर्द की जरूरत होती है जो औरत को अपनी बाहों में जकड़ कर उसके रस को निचोड़ दे,,, और मुखिया की बीवी को देखकर लगता नहीं है कि वह अपनी प्यास को अपनी जरूरत को दबा ले जाएगी,, इसलिए अब उसे अपने बेटे सूरज को लेकर घबराहट होने लगी थी उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं मुखिया की बीवी उसके बेटे को अपनी जवानी के जाल में तो नहीं फसा लेगी,,, वैसे भी सुनैना की यह शंका बिल्कुल जायस थी क्योंकि सूरज का खुद अपनी मां के साथ जिस तरह का व्यवहार था जिस तरह से वह प्यासी नजरों से देखा था तो घर के बाहर दूसरी औरतों के साथ मौका मिलने पर कुछ भी कर सकता था इस बात का एहसास सुनैना को अच्छी तरह से था। जब वह उसके गले लगी थी अगर सही समय पर रानी ना आ जाती तो उसे दिन उसका बेटा अपनी हरकत को न जाने कौन सी शक्ल दे देता।

सुनैना बार-बार जी और मुखिया की बीवी और सूरज गया था वही देख रही थी अगर उसका वश चलता तो वह उठकर उसी दिशा में चल देती,,,, दूसरी तरफ देखते ही देखते मुखिया की बीवी सूरज को घर के दूसरी और ले आई थी जहां पर एक बार वह सूरज से चुदाई का मजा ली थी,,,, दोनों घर के पीछे वाली जगह पर पहुंच चुके थे मुखिया की बीवी इधर-उधर नजर घूमाकर तसल्ली कर लेने के बाद,,, थोड़ा गुस्से में सूरज से बोली,,,।

क्यों रे दूध पिएगा,,, बहुत तेरा मन दूध पीने को कर रहा है,,,।

ऐसा कुछ भी नहीं है बल्कि मुखिया जी चाय पीने के लिए आग्रह कर रहे थे तो मां ने ही बोलेगी हम चाय नहीं दूध पीते हैं,,,,।

ओहहह तो यह बात है,,,,(मुखिया की बीवी अपनी नजरों को गोल-गोल नचाते हुए बोली,,,, घर के पीछे आते ही सूरज ने देखा कि एक तरफ चूल्हा जल रहा था और उसे पर बड़ा सा पतीला रखा हुआ था जिसमें दूध पक रहा था,,,, मुखिया की बीवी दूध की तरफ अच्छी और फिर सूरज की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बिना कुछ बोले तुरंत अपने ब्लाउज का बटन खोले बिना ही नीचे से अपने ब्लाउस को ऊपर की तरफ खींच दी और अपनी चूची को हाथ में लेकर बाहर निकाल दी यही वह अपनी दूसरी चूची के साथ भी की और दोनों चूचियों को हाथ में लेकर सूरज की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोली,,,।)

ले बहुत दूध पीने का मन कर रहा है ना तेरा,,,, ले बिल्कुल भी देर मत कर,,,,(मुखिया की बीवी की यह अदा देखकर सूरज पूरी तरह से मदहोश हो गया और एकदम से आगे बढ़कर एक हाथ मुखिया की बीवी की चिकनी कमर में डाला और उसे अपनी तरफ एकदम से अपने लंड से सटा लिया और अगले ही पल मुखिया की बड़ी-बड़ी चूची को अपने प्यास होठों के बीच रखकर पीना शुरू कर दिया मुखिया की बीवी एकदम से उत्तेजना से गदगद हो गई,,,, सूरज पागलों की तरह बारी-बारी से मुखिया की बीवी की दोनों चूचियों को पी रहा था,,,, मुखिया की बीवी गरमा गरम सिसकारी लेते हुए बोली,,,)

सहहहहह आहहहहहह,,, हरामजादे अब बात क्यों नहीं है रे मेरे पास तेरी याद में कितनी रात ऐसे ही गुजार दी,,,, कहीं ऐसा तो नहीं अपनी मां का दूध पीने लगा है,,, देखी,,, बहुत बड़ी-बड़ी चूची है तेरी मां की,,,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से अपनी मां का जिक्र सुनते ही उसकी उत्तेजना एकदम से बढ़ने लगी और वह अपने दोनों हाथों को उसकी बड़ी-बड़ी गांड पर रखकर जोर से दबाते उसे अपनी तरफ खींच लिया और उसकी चूची को पागलों की तरह पीना शुरू कर दिया,,,, सूरज की कामुक हरकत को देखकर ,,,उसकी उत्तेजना देखकर मुखिया की बीवी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

मुझे तो लगता था कि तेरी मन बुढी होगी लेकिन तेरी मां तो एकदम जवान है बड़ी-बड़ी गांड है बड़ी-बड़ी चूची है,, यह सब घर में ही देख कर तेरा लंड तो बार-बार खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,,(मुखिया की बीवी के मुंह से अपनी मां के लिए तरह की बातें सुनकर सूरज को गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उसकी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी मुखिया की बीवी की कही बातें आग में घी का काम कर रही थी सूरज इन सब बातों को सुनकर और भी ज्यादा उत्तेजित होता हुआ मुखिया की बीवी की जवानी से खेलने लगा था वह दोनों चूचियों को दोनों हाथ से पकड़ लिया था उसे जोर-जोर से दबा रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके हाथ में मुखिया की बीवी की चूचियां नहीं बल्कि दसहरी आम आ गया हो,,,, और यह सब मुखिया की बीवी को बहुत अच्छा लग रहा था,,,,,।

सूरज अपने मुंह में से मुखिया की बीवी की चूचियों को निकालने के लिए तैयार नहीं था दाईं चूची को बाहर निकालता तो बाईं चूची को मुंह में भर लेता,,, ऐसा करते हुए खुद भी मजा ले रहा था और मुखिया की बीवी को भी मजा दे रहा था। मुखिया की बीवी को लग रहा था कि जैसे सूरज गाय का दूध नहीं बल्कि उसके ही दूध के बारे में बोल रहा था इसलिए तो दोनों चूचियों पर टूट पड़ा था,,,,, मुखिया की बीवी अपनी बातों से उसकी उत्तेजना और जोश दोनों को बढ़ा रही थी सूरज की इस तरह की हरकत को देखकर वह बोली।

कहीं इसी तरह से अपनी मां की चूची को दबा दबा कर तो नहीं पीता है,,, और वैसे भी तेरी मां की चुची है भी एकदम खरबूजे की तरह,,, तुझको तो मजा आ जाता होगा,,,,।

(मुखिया की बीवी एक तरह से उसकी मां के बारे में इस तरह की बातें करके उसे उकसा रही थी क्योंकि जैसे-जैसे वह उसकी मां के बारे में गंदी बातें बोल रही थी वैसे-वैसे सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना उसका जोश उसके बदन पर बढ़ता जा रहा था,,,,, इस बार वह दोनों हाथों से उसकी साड़ी पड़कर एकदम कमर तक उठा दिया था और उसकी नंगी गांड पर जोर-जोर से चपत लगाता हुआ उसे मसल रहा था,,,, मुखिया की बीवी पूरी तरह से आनंद विभोर होती चली जा रही थी उसे अत्यधिक उत्तेजना और आनंद का एहसास हो रहा था वह मस्त हो रही थी। वह फिर उसकी मां के बारे में गंदी बात बोलते हुए बोली।)

मुझे तो लगता है कि तेरी मां तुझे ही चुदवाती है तभी उसकी गांड बड़ी बड़ी हो गई है क्योंकि काफी दिनों से तेरे पिताजी तो घर पर है ही नहीं और तेरी मां की जवानी पूरी भी लगा में एकदम गदराई घोड़ी की तरह है और उसकी जवानी की आग बुझाने के लिए तेरे जैसा बेलगाम घोड़ा ही चाहिए तेरी मां को तेरी मां तो मत हो जाती होगी तेरे लंड को अपनी बुर में लेकर,,,,,, जोर-जोर से उछलती होगी बोलती होगी और जोर से सूरज बेटे और जोर से तभी तो मेरे पास नहीं आता,,,, सर अपनी अपनी मां की बुर में गिरा देता है,,,,।

(मुखिया की बीवी कि इस तरह की गंदी बातें सुनकर सूरज पूरी तरह से जोश में आ गया था उसका लंड अकड़ कर लोगे का रोड बन गया था और वह जल्दी से जल्दी मुखिया की बीवी की बुर में अपना लंड डाल देना चाहता था,,, इसलिए वह, धीरे से अपने पजामे को एक हाथ से पकड़कर, उसे एकदम से खींच कर घुटनों तक कर दिया उसका लंड अपनी औकात में आकर एकदम से खड़ा हो गया था और वह जोश में भरता हुआ बोला,,,)

बताऊ किसकी बुर में पानी गिराता हुं(इतना कहने के साथ ही सूरज अपना जोश में भरा हुआ ताकत दिखाते हुए मुखिया की बीवी को एकदम से गोद में उठा लिया और उसे गोद में उठाए हुए ही ले जाकर दीवार से सटा दिया उसकी दोनों टांग उसके हाथों में फंसी हुई थी वह उसके हाथों में लहरा रही थी वह पूरी तरह से उसकी गोद में थी और फिर सूरज अपने एक हाथ से धीरे से सहारा लेकर अपने लंड को उसके गुलाबी छेद में टिका दिया और जोरदार धक्का मारा लंड पूरी तरह से ताकत दिखता हुआ मुखिया की बीवी की बुर को फैलाता हुआ एकदम जाकर उसके बच्चेदानी से टकरा गया,,,, मुखिया के बच्चे की चीख निकलते निकलते रह गई लेकिन पल भर के लिए वह दर्द से कराहने लगी,,, क्योंकि मुखिया की बीवी सूरज के ही हमले के लिए अपने आप को बिल्कुल भी तैयार नहीं की थी लेकिन थोड़ी ही देर में सूरज अपनी सूझबूझ से मुखिया की बीवी को एकदम मस्त करने लगा।

थोड़ी ही देर बाद मुखिया की बीवी के मुंह से गरमा गरम सिसकारी की आवाज फूटने लगी वह मदहोश होने लगी सूरज पागलों की तरफ उसे दीवार से सटाकर अपनी गोद में लिए हुए उसकी बुर में धक्के पर धक्के लगा रहा था,,,, हर धक्के के साथ मुखिया की बीवी का वजूद हल जा रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था और सूरज अपनी रफ्तार को बिल्कुल भी कम नहीं कर रहा था क्योंकि वह जल्दी से जल्दी अपना पानी निकाल देना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि किसी को भी शक हो कि उसके और मुखिया की बीवी के बीच में कुछ चल रहा है,,, क्योंकि यहां पर दोनों को ज्यादा समय हो गया था। सूरज की मेहनत रंग ला रही थी दोनों चरम सुख के बेहद करीब पहुंच चुके थे मुखिया की बीवी अपनी बाहों का हर सूरज के गले में डाल दी थी और पागलों की तरह उसके होठों पर होंठ रखकर चुंबन कर रही थी,,,, और फिर सूरज के जोरदार धक्कों के साथ दोनों का एक साथ पानी निकल गया,,,,।

मुखिया की बीवी बहुत खुश थी क्योंकि काफी दिनों के बाद उसे फिर से चुदाई का मजा मिला था,,,, मुखिया की बीवी खुश होकर एक ठेले में कुछ सब्जियों भर कर सूरज के हाथों में थमा दी,,, सब्जियों को लेकर सूरज मुस्कुराते हुए मुखिया की बीवी से बोला,,,,।

अगर कुछ पैसे मिल जाते तो,,,,,।

(सूरज की बात सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराने लगी और बोली)

रुक अभी आई,,,(और इतना कहकर घर के अंदर गई और थोड़ी देर में वापस आकर वह सूरज के हाथों में कुछ रुपए थमा दी जिसे देखकर सूरज खुश हो गया,,,, और जाने से पहले गर्म दूध के पतीले में हल्की सी उंगली डालकर उसकी मलाई अपनी उंगली पर लगा लिया या देखकर मुखिया की बीवी आश्चर्य जताते हुए बोली,,,,)

दूध पीकर तेरा मन भरा नहीं क्या,,,?

तुम्हारी चूची से पीने के बाद भला मन भर सकता है क्या मेरे पास समय होता तो फिर से तुम्हारी चूची को मुंह से लगा लेता,,,,(सूरज की बात सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराने लगी और सूरज भी खुश होते हुए अपनी उंगली में लगी हुई मलाई को अपने होंठ के किनारी पर लगा लिया यह देखकर मुखिया की बीवी फिर से हैरान होते हुए बोली,,,)

यह क्या कर रहा है तु,,,?

अरे मालकिन कोई देखेगा तो समझ जाएगा कि मैं दूध पीने के लिए गया था और यह गर्म दूध लगा रहेगा तो किसी को शक नहीं होगा कि मैं तुम्हारा दूध पी कर आया हूं,,,,।

ओहहहह बहुत हारामी है तू,,,, अब जा जल्दी और अपनी मां को जरूर दिखाना की कौन सा दूध पीकर आया है तेरी मां को कुछ ज्यादा ही शक होगा कि कहीं मैंने अपना दूध तो नहीं पिला दी,,,,,(मुखिया की बीवी है बात सोच समझ कर बोली थी एक औरत होने की नाते उसे इतना तो मालूम ही था कि एक जवान लड़के को लेकर एक औरत कौन-कौन सी धारणाएं अपने मन में बना लेती है और वैसे भी सूरज की मां उसके बारे में जो भी शंका करेगी वह हकीकत ही होगा बस फर्क ईतना होगा कि वह साबित नहीं कर पाएगी,,,, सूरज हाथ में थैला लिए हुए घर से बाहर निकल गया था और उसे आता हुआ देखकर उसकी मां की प्रसन्न नजर आ रही थी क्योंकि इस बीच उसके मन में बहुत सी बातें चल रही थी बहुत सारी शंकाए जन्म ले रही थी,,,, दोनों खेत की तरफ निकल गए थे हाथ में इतना बड़ा थैला देखकर उसकी मां बोली,,,)

यह थैला क्यों उठा लाया,,,!

अरे मैं इसमें ढेर सारी सब्जियां हूं मुखिया की बीवी नहीं दी है,,,।

ओहहह तब तो बहुत अच्छी बात है और पैसे,,,,

(पैसे का नाम सुनकर सूरज बीच सड़क पर ही रुक गया और अपने कुर्ते की जेब में से पैसे निकाल कर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

यह देखो उन्होंने पैसे भी दी है,,,,।

(सूरज की हथेली में पैसे देखकर सुनैना की आंखों में चमक आ गई और वह तुरंत अपना हाथ आगे बढ़कर अपने बेटे की हथेली में से पैसे ले ली तभी उसकी नजर सूरज के होठों पर गई जिस पर हल्का सा दूध लगा हुआ था,,, यह देखकर सुनैना का दिमाग बड़ी तेजी से काम करने लगा उसे इस बात का डर था की कही सूरज मुखिया की बीवी का दूध पीकर तो नहीं आ रहा है जो जल्दबाजी में उसके होंठों पर लगा रह गया हो,,,, इसलिए वह एकदम से अपना हाथ आगे बढ़कर सूरज के होठों पर लगे दुध को अपनी उंगली से करेद कर देखने लगी,,, लेकिन जल्दी ही सुनैना को एहसास हो गया कि उसके होठों पर लगा दूध पकाया हुआ था उस पर क्योंकि मलाई जमी हुई थी यह देखकर उसे राहत हुई,,,)

अरे मां दूध है,,,, मुखिया की बीवी गरमा गरम दूध पिला दी,,,,।

ओहहहह मैं तो कुछ और ही समझ रही थी,,,।

मैं कुछ समझा नहीं क्या समझ रही थी,,,।

कुछ नहीं अब जल्दी खेतों पर चल बहुत देर हो गया आज का दिन तो ऐसे ही निकल गया,,,,।

हा मां आज का दिन तो लगता है कुछ काम होने वाला नहीं है,,, लेकिन कम भले नहीं हुआ लेकिन आज का दिन काम तो बहुत आया,,,।

वह कैसे,,,?

सब्जीया भी मिल गई और पैसे भी,,,।

हां यह बात तो है,,,,(इतना कहकर दोनों खेतों की तरफ चले जा रहे थे और सूरज अपनी मां के मन में उठ रहे शंका को अच्छी तरह से समझ रहा था और उसे मुखिया की बीवी की बात याद आने लगी जो जाते समय बोली थी वह समझ गया कि इसी के लिए मुखिया की बीवी बोल रही थी कि अपनी मां को बता देना कि गाय का दूध पीकर आ रहा हूं वरना वह यही समझेगी की मुखिया की बीवी का दूध पीकर आ रहा है और अपने मन में इस तरह का ख्याल आते ही उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी,,,)
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Top