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मुखिया के खेतों में सूरज और उसकी मां को काम शुरू करना था गेहूं की कटाई करनी थी पर दोनों इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि खेतों की जिम्मेदारी लेना बड़ा मुश्किल काम है लेकिन यह जिम्मेदारी उन दोनों को लेना ही था क्योंकि जब से सूरज के पिताजी घर छोड़कर बाहर रंगरेलियां बना रहे हैं तब से घर में थोड़ी बहुत पैसों की किल्लत होने लगी थी वैसे तो खाने की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उनका खुद का भी खेत था और गाय भैंस बकरियां भी थी जिसे अनाज और दूध पानी मिल ही जाता था लेकिन फिर भी योग्य समय पर रानी का विवाह करना था इस बात की चिंता सूरज की मां को अच्छी तरह से था और इसीलिए सूरज की मां खेतों में काम करने के लिए तैयार हो गई थी,,,,,, सूरज के पिताजी जब तक यह जिम्मेदारी अपने सर पर लिए हुए थे तब तक सूरज की मां को खेतों में बिल्कुल भी काम नहीं करना पड़ता था अपने खेतों में भले कम कर ले लेकिन दूसरे के खेतों में वह बिल्कुल भी काम नहीं की थी लेकिन वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं और इंसान को ऐसा होना भी चाहिए जैसे हालात हो उसके मुताबिक चलना चाहिए आज सूरज के घर आर्थिक तंगी थी जिसके चलते उन दोनों को काम करना ही था,,,,।
सुनैना घर का काम जल्दी से निपटा कर खाना बना रही थी क्योंकि जल्दी से खाना बनाकर वह खेतों पर निकल जाना चाहती थी काम करने के लिए और जल्दी घर वापस आ जाना चाहती थी,,,, रानी रात की दमदार चुदाई के बाद एकदम मस्त हो चुकी थी एक ही रात में उसकी जवानी पूरी तरह से खेल चुकी थी और वह घर के आंगन में झाड़ू लगा रहे थे उसके मन में रात वाली बात घूम रही थी रात को जो कुछ भी उसके साथ हुआ था वह बेहद उन्मादक था,,, रानी को अभी भी अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में हल्का-हल्का मीठा मीठा दर्द महसूस हो रहा था,,, क्योंकि यह उसके जीवन की पहली चुदाई थी और चुदाई करने वाला उसका बड़ा भाई था,,,,,, झाड़ू लगाते लगाते वह उसी स्थान पर पहुंच गई जहां पर बर्तन मजा जाता था,,, उस जगह पर पहुंचते ही रानी के चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान करने लगी क्योंकि यह वही जगह थी जहां पर वह बिना कपड़े पहने एकदम नंगी होकर केवल अपने बदन पर एक पतली सी चादर डालकर पेशाब करने के लिए आए थे और यहां पर पेशाब करने के लिए उसे खुद उसके भाई नहीं मजबूर किया था वरना तो वह घर के बाहर जाना चाहती थी,,,,।
रात की घटना के बारे में सोचकर उसके चेहरे पर शर्म की लकीरें साफ झलकने लगी थी पल भर में यह उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह अपने भाई के सामने बैठकर पेशाब की थी वह अपने मन में यही सोच रही थी कि कुछ दिनों में कितना कुछ बदल गया था जहां वह अपने भाई के सामने कपड़े तक नहीं बदलती थी वही उसके सामने सारे कपड़े उतार कर उससे चुदाई का आनंद लूट रही थी उसके सामने पेशाब कर रही थी यह सब इस समय रानी को बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन उसके बदन में उत्तेजना की झनझनाहट भी हो रही थी,,,, पल भर में ही रानी की सांस गहरी चलने लगी थी वह उसे जगह पर खड़ी होकर रात की घटना के बारे में सोचते हुए अपने बारे में भी सोच रही थी कि वह अपने भाई के सामने इतनी बेशर्म कैसे बन गई,,,।। लेकिन इस बात को भी वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसका इस तरह से बेशर्म बन जाने के पीछे उसके भाई का ही हाथ है,,,, वरना वह अपने भाई के सामने इस तरह की हरकत करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी,,,,। रात के हर एक घटना उसकी आंखों के सामने किसी हकीकत नाटक की तरह घूम रहा था उसे सब कुछ अच्छी तरह से याद था,,,, और यह जगह तो उसे और भी अच्छी तरह से याद हो चुकी थी ऐसा लग रहा था कि इस कोने से उसका नाता जुड़ चुका था।
कभी सपने में नहीं सोची थी कि वह अपने भाई के साथ शारीरिक संबंध बनाएगी उसके साथ चुदवाने का मजा लुटेगी,,, उसे अच्छी तरह से याद था कि वह अपनी चादर को थोड़ा सा ऊपर उठकर बैठ गई थी ताकि चादर गंदी ना हो जाए लेकिन उसके इसी हरकत की वजह से उसकी नंगी गांड उसके भाई के सामने उजागर हो गई थी और इसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि कुछ देर पहले वह उसके पूरे बदन से मजा लूट चुका था,,, और थोड़ी ही देर में फिर से वह पागल हो गया था,,,, ऐसा सोचते हुए वह आंगन के उसे कोने में खड़ी खड़ी आसमान की तरफ देखने लगी,,, और पल भर में उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी क्योंकि वह भले ही चार दिवारी के अंदर थी लेकिन घर के आंगन में वह खुले आसमान के नीचे चुदाई के अद्भुत आनंद को प्राप्त की थी,,, उसका भाई इतना निर्लज्ज और बेशर्म होगा इस बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकती थी,,, उसे संभलने का मौका भी नहीं दिया था और यह जानने के बावजूद भी उसकी मां पेशाब लगने पर कमरे के बाहर निकल सकती है वह बिना डरे उसे घोड़ी बनाकर पीछे से डाल दिया था इस बात का ख्याल आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी,,,
काफी देर से रानी को इस तरह से उसे कोने में खड़ी पाकर उसकी मां बोली,,,,।
क्या हुआ क्या सोच रही है बड़ी देर से वही खड़ी है बाकी का काम नहीं करना है क्या,,,,?
(अपनी मां की बात सुनते ही वह एकदम से चौंक गई क्योंकि वह वाकई में ख्यालों में खो चुकी थी जागते हुए भी खड़े-खड़े सपना देखने लगी थी इसलिए वह हड़बड़ाते हुए बोली,,,)
नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तुझे सोच रही हूं कि आज इतनी जल्दी खाना क्यों बना रही हो,,,!(रानी एकदम से बात को बदलते हुए बोली,,,)
अरे हां तुझे बताना तो भूल ही गई मैं और सूरज मुखिया के खेतों में काम करने के लिए जा रहे हैं और वहां से आने में देर हो जाएगी इसलिए जल्दी-जल्दी खाना बना रही हूं,,,, और हा तेरे हिस्से का खाना रख दूंगी तू खा लेना हम दोनों खेत पर ही खाना खा लेंगे,,,,(रोटी को तवे पर रखते हुए सुनैना बोली,,,,)
खेत पर काम करने जाना है,,,,,!(रानी एकदम से आश्चर्य जताते हुए बोली थी,,,, उसकी बातें सुनकर सुनैना मुस्कुराते हुए बोली,,,)
अरे हां काम करने जाना है थोड़े पैसे भी तो इकट्ठे करने होंगे आखिरकार अब तो भी शादी लायक हो गई है शादी भी तो करना है,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर रानी के चेहरे पर मुस्कान देने लगी थी और वह एकदम से शर्मा गई थी अपनी मां से तो कुछ नहीं बोली लेकिन अपने मन में सोचने लगी की शादी के पहले ही सुहागरात मना चुकी हूं,,,, चलो कोई बात नहीं माया पहले बाद में शादी अपने मन में यह सोचकर वह मुस्कुराने लगी और बिना कुछ बोले फिर से झाड़ू मारने लगी,,,,,,
थोड़ी ही देर में सुनैना खाना बना चुकी थी और थोड़ा बहुत इधर-उधर काम करके वह नहाने जा रही थी,,,, वैसे तो उसे नदी पर नहाने में अच्छा लगता था लेकिन घर पर भी एक छोटा सा गुसलखाना बनाई थी जो कि चारों तरफ मोटी मोटी लकडीयों को खड़ा करके पुरानी साड़ी लपेटकर दीवार की तरह कर देती ताकि कोई देख ना सके,,, और बीच में हैंडपंप था वैसे इसका उपयोग बहुत ही काम करते थे जब जल्दबाजी रहती थी तभी इसका उपयोग करते थी,,, वरना नदी और कुएं का ही ज्यादातर उपयोग करते थे बारिश में हैंडपंप का ज्यादा उपयोग करते थे क्योंकि बारिश के मौसम में वह नदी पर नहीं जाती थी,,,, आज खेत पर काम करने जाने की जल्दबाजी थी इसलिए वह हैंडपंप पर ही नहाने वाली थी,,,,,,, इसलिए वह जल्दी से गुसलखाने में पहुंच गई और अपने हाथों से हेड पंप चलाकर बाल्टी को पानी से भरने लगी,,,, वह अपने मन में यही सोच रही थी कि आज उसे अपने बेटे के साथ खेत में काम करने जाना है इस तरह से खेतों में काम करके वह कुछ पैसे जुटा सकती है। यही सब सोते हुए वह अपने बदन पर से अपनी साड़ी को धीरे-धीरे से खोलने लगी और देखते-देखते वह अपनी साड़ी को उतार कर इस घुसल खाने में रख दी,,,, अब वह केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थी,,, नदी पर तो उसे सारे कपड़े उतार कर लेंगे नहाने का शौक था और ईसी शौक के चलते वह अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगे वह जानते थे कि गुशल खाने के तरफ कोई नहीं आएगा,,,।
सुनैना निश्चिंत थी,,,, इसलिए वह एक-एक करके अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और ब्लाउज को भी अपने हाथों से उतार कर,,, वहीं पास में रहती उसकी चूचीया एकदम से नंगी हो गई,,,, वह अपनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों की तरह देखकर मुस्कुराने लगी और धीरे से दोनों को अपनी हथेलीयो में पकड़ कर मानो उसे पुचकार रही हो,,, और फिर अपने पेटिकोट की डोरी खोलने लगी,,, उसकी यही आदत थी क्योंकि बिना सारे कपड़े उतार कर नहाने में ही उसे मजा आता था,,, और जब तक पूरे कपड़े उतार कर नहीं नहाए तब तक उसे लगता ही नहीं था कि वह नहाई है,,, अपनी पेटिकोट की डोरी खोलने के बाद वह धीरे से अपनी पेटीकोट को भी अपनी कमर पर से ढीली करके उसे अपने हाथों का सहारा देकर उसे एकदम से नीचे छोड़ दी और उसकी पेटिकोट उसके कदमों में जा गिरी अगले ही परिवार गुसलखाने के अंदर पूरी तरह से नंगी थी,,,, क्योंकि वह निश्चित थई की इस तरफ कोई नहीं आएगा,,, और नहाना शुरू कर दी,,,,।
इसी बीच सूरज इधर-उधर से घूमता हुआ आया वह भी अपनी मां से यह बताने आया था कि खेत पर जाने का समय हो रहा है जल्दी से खाना खाकर और थोड़ा खाना लेकर खेत पर चले लेकिन जब वह घर पर गया तो घर के अंदर उसकी मां नहीं थी और रानी भी घर पर मौजूद नहीं थी क्योंकि वह नित्य क्रम से निपटने के लिए मैदान गई हुई थी,,, इधर-उधर ढूंढने के बाद जब घर पर उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो वह रसोई घर में देखा था भोजन तैयार था और वह समझ गया कि उसकी मां को याद है कि खेत में जाना है लेकिन उसे बड़े जोरों की प्यास लगी हुई थी और घर पर पानी नहीं था इसलिए वह खुद ही पानी पीने के लिए हेड पंप की तरफ चल दिया,,, क्योंकि वह जानता था कि इस तरह की स्थिति में उसे हेडपंप पर ही पानी मिल सकता है वरना कुएं पर ज्यादा तो कुएं में से पानी निकालना पड़ता,,, और समय हो जाता इसलिए समय के अभाव को देखकर वह हेडपंप की तरफ चल दिया था उसे नहीं मालूम था कि हेडपंप पर उसकी मां नहा रही है और वह भी बिना कपड़ों की,,,।
कगुशल खाने में सुनैना निश्चिंत होकर नहा रही थी वह पूरी तरह से निर्वस्त्र थी और अपने बदन पर ठंडा पानी डाल रही थी,,,,, सुबह का समय होने के बावजूद भी गर्मी का एहसास हो रहा था और इस गर्मी के एहसास में हेड पंप से निकला ठंडा पानी उसके बदन को राहत प्रदान कर रहा था,,,, वह बच्चे को रोकर नहा रही थी उसकी क्या मालूम था कि उसका बेटा पानी पीने के लिए उसी की तरफ आ रहा है,,,, और वह कोई गीत भी खुशी के मारे गुनगुना रही थी,,, कुछ देर तक वह बैठ कर नहा रही थी,,,, लेकिन वह नहा चुकी थी बस खड़े होकर एक दो लोटा अपने ऊपर डालना था और वह खड़ी हो गई थी,,,, सुनैना खड़ी होने के बावजूद भी गुसलखाने के लंबे लकड़ी से बंधी हुई साड़ी के बाहर नजर नहीं आ रही थी,,, क्योंकि सुनैना,,, चाहे जैसे भी हो काम चलाउ गुसलखाने का निर्माण इस तरह से की थी कि अंदर कोई नहा रहा भी हो तो बाहर आते-जाते किसी को पता ना चले,,, इसीलिए तो सुनैना पूरी तरह से निश्चित,,, वह नहा चुकी थी बस कपड़े पहनने की दे रही थी,,,,।
इस बात से अनजान सूरज की उसकी मां गुसलखाने में नहा रही है वह जल्दबाजी में इस तरफ अपने कदम बढ़ाए चला जा रहा था और उसकी मां अपने हाथ से ही अपने बदन पर से पानी को साफ कर रही थी कि तभी अचानक सूरज एकदम से ठीक उसकी आंखों के सामने आ गया उसे नहीं मालूम था कि कुशल खाने में उसकी मां नहा रही है और वह भी बिना कपड़ों के वह फसल खाने में जैसे ही नजर घुमाया तो सामने का नजारा देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उसे साफ तौर पर दिखाई दे रहा था कि उसकी मां गुसलखाने में बिना कपड़ों के नहा रही थी एकदम नंगी होकर यह नजारा सूरज के लिए मदहोश कर देने वाला था,,,, उत्तेजित कर देने वाला था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कुछ देर तक तो उसे समझ में नहीं आया कि उसे करना क्या है वह देख क्या रहा है लेकिन जैसे ही उसे यह एहसास हुआ कि उसकी आंखों के सामने उसकी मां नंगी होकर ना आ रही है वह पूरी तरह से मंत्र मुग्ध हो गया था,,, अपनी मां की नशीली जवानी में पूरी तरह से खो चुका था।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि वह अपनी मां को पहली बार निर्वस्त्र अवस्था में देख रहा है वह अपनी मां को निर्वस्त्र अवस्था में कई मौका पर देख चुका था नदी पर नहाते हुए कमरे में अकेलापन पाकर अपने हाथों से अपनी जवानी की प्यास बुझाते हुए,,, और खुद अपने पिताजी को अपनी मां की चुदाई करते हुए देखा था लेकिन हर बार की तरह इस बार भी नंगी होने के बावजूद भी उसकी मां अद्भुत एहसास कर रही ऐसा लग रहा था कि जैसे कहना चाह रहा सूरज पहली बार देख रहा हो,,,। और सुबह-सुबह इस तरह का नजारा देखकर उसके दिन की शुरुआत हुई थी इसलिए वह अंदर ही अंदर उत्तेजित और प्रसन्न हुआ जा रहा था,,,, इस समय जिस तरह की हालत सूरज की थी उसी तरह की हालत उसकी मां की भी हो चुकी थी,,,,। यूं एकाएक सूरज को अपनी आंखों के सामने देखकर वह भी हक्की-बक्की रह गई थी,,,, वह भी कुछ समझ नहीं पाई थी और कुछ क्षण तक अपने बेटे की तरफ ही देख रही थी,,, क्योंकि इस तरह के हालात में पूरी तरह से दिमाग काम करना बंद कर देता है दिमाग को कुछ समझ में ही नहीं आता कि उसकी आंखों के सामने क्या हो रहा है और जब तक कुछ समझ में आता है तब तक देर हो चुकी होती है।
और यही सुनैना के साथ भी हुआ अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को देखकर वह एकदम से घबरा गई थी उसे को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें पहले तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने खड़ा है और वह जिस तरह के हालात में खड़ी थी उसे और भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें वह पूरी तरह से हैरान थी इस बीच वह हैरानी में अपनी खूबसूरत अंगों को ढंकने का या छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की थी,,, जिस तरह से सूरज फटी आंखों से उसकी तरफ देख रहा था उसी तरह सुनैना भी हैरानी से अपने बेटे की तरफ देख रही थी,,, और जब से इस बात का एहसास हुआ कि वह किस अवस्था में है तो वह तुरंत अपने एक हाथ से अपनी दोनों चूचियों को और दूसरे हाथ से अपनी बुर को छुपाने की कोशिश करने लगी,,,, और हड़बड़ाहट में दोनों अंगों को छुपाने के चक्कर में वह एकदम से अपने बेटे की तरह पीठ करके घूम गई और अनजाने में पीठ के साथ-साथ उसकी गांड भी सूरज की आंखों के सामने उजागर हो गई वह हड़बड़ाहट भरे स्वर में बोल रही थी,,,।
तू यहां क्या कर रहा है,,,?
मैं तो पानी पीने आया हूं,,,,(अपनी मां की मदमस्त कर देने वाली गोल-गोल गांड की तरफ देखते हुए हो बोला,,,, अपने बेश कीमती खजानो को छुपाने के चक्कर में वह अपनी खूबसूरत हवेली दांव पर लगा चुकी थी,,, हवेली की हालत को देखकर ही सूरज अंदाजा लगा लिया था की हवेली की महारानी कितनी खूबसूरत है,,,, सूरज तो अपनी मां की मदद कर देने वाली गांड को देखे जा रहा था अपनी मां की गांड को वह बिना कपड़ों के कई बार देख चुका था लेकिन हर बार ऐसा ही लगता था कि मानो जैसे वह पहली बार देख रहा हो,,,, सूरज की बात सुनकर सुनैना बोली,,,)
घर में पानी नहीं था जो यहां आ गया,,,,।
घर में नहीं मिला तभी तो यहां आ गया हूं मुखिया के खेतों पर जो जाना है देर हो रही थी,,,, लेकिन तुम तो नदी पर नहाती थी यहां कैसे नहाने लगी,,,,(सूरज थोड़ी हिम्मत दिखा कर अपनी मां के सामने खड़ा ही रहा और उस सवाल पूछ रहा था इस दौरान उसकी नजर अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ उसकी मदमस्त बलखाती हुई कमर के साथ-साथ उसके उभारदार नितंबो पर घूम रही थी,,,,,)
खेत पर जाना था ना इसलिए मुझे देर हो रही थी इसलिए यहां नहाने लगी,,,।
चलो कोई बात नहीं यहां नहाने लगी लेकिन बिना कपड़ों के पूरे कपड़े उतार कर नहाने की क्या जरूरत थी,,,,(सूरज हिम्मत दिखा रहा था वह अपनी मां की हालत को अच्छी तरह से समझता था वह रात को छुपकर दरवाजे की दरार में से अपनी मां के कमरे में उसकी बेबसी को अपनी आंखों से देख चुका था मर्द के बिना उसकी तड़प बढ़ती जा रही थी,,, इसलिए वह वहां से बिल्कुल भी अपने कदम को पीछे नहीं ले रहा था,,,, सूरज की बात को सुनकर सुनैना थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)
मैं कैसे भी नहाउं,,, मेरी मर्जी है,,, लेकिन तुझे यहां नहीं आना चाहिए था,,,,,(सुनैना थोड़ी घबराहट भरे स्वर में बोल रही थी,,,, क्योंकि वह अपने बेटे की हरकत को जानती थी वह जानती थी ,,, कि ऐसे हालत में उसके बेटे की भावनाएं कितनी बेकाबू हो जाती हैं सुनैना को वह पल याद आ गया जब रात भर सूरज घर नहीं आया था और सुबह उसे देखकर वह पूरी तरह से खुश होकर उसे अपने गले से लगा ली थी अपने सीने से सटा ली थी लेकिन उसका बेटा सूरज उसके दुलार को वासना का रूप देने लगा और उसे भी अपनी बाहों में भरकर उसके नितंबों को दोनों हथेलियां में लेकर दबाने लगा था,,,, अपने बेटे की हरकत पर वह समझ सकती थी कि इस समय उसके बेटे के मन में क्या चल रहा होगा,,,।
और उसे भी जल्द ही यह एहसास हुआ कि वह अपनी गांड अपने बेटे के सामने परोस चुकी है उसकी आंखों के सामने उजागर कर चुकी है इस बात से वह और भी ज्यादा शर्मिंदगी महसूस करने लगी,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अगर अपनी गांड छुपाने के लिए वह अपने बेटे की तरफ घूम जाती है तो उसकी नंगी चूचियां और उसकी बुर जरूर दिखाई देगी,,, लेकिन वह जानती थी कि वह अपनी चूची और अपनी बुर को अपने हाथ से ढंक चुकी है लेकिन, फिर भी उसका बेटा उसके दोनों अंगों को देखने की भरपूर कोशिश करेगा इस बात का अहसास होते ही उसके बदन में भी अजीब सी हलचल होने लगी थी,,,, अपने बेटे की हरकत पर इस समय उसे गुस्सा आ रहा था वह यह सोच रही थी कि अब तक तो उसे चले जाना चाहिएथा कोई औरत को इस हालत में नहाते हुए देख लेता है तो तुरंत अपनी नजर को घुमा लेता है उसके बेटे की तरह घूरता नहीं रहता है। अपनी मां की बात सुनकर सूरज बोला,,,)
मुझे क्या मालूम था कि तुम नंगी होकर नहा रही हो वरना मैं यहां आता ही नहीं,,,,(सूरज जानबूझकर अपनी मां के सामने नंगी शब्द का प्रयोग कर रहा था और उसकी मां को हैरानी भी हो रही थी कि उसका बेटा कितना बदल गया है,,, सूरज की बात को सुनकर सुनैना बोली,,,,)
चल ठीक है बाद में पानी पी लेना अभी यहां से चला जा मुझे कपड़े पहनने हैं,,,,,,।
ठीक है लेकिन कपड़े पहनने के बाद मेरे लिए पानी लेकर आना और जल्दी से मुखिया के खेत पर चलना है देर हो रही है,,,।
मैं जानती हूं अब तू जा मैं पानी लेकरआऊंगी,,,,।
ठीक है,,,,(इतना कहकर सूरज अपनी मां की नंगी गांड पर एक नजर मार कर वहां से चलता बना इस दौरान उसके पजामे में तंबू बन चुका था,,, वह घर के आंगन में खटिया गिरा कर उस पर बैठ गया,,,, जैसे ही सुनैना को एहसास हुआ कि उसका बेटा चला गया है तो वह जल्दी से अपने सुख कपड़े अपने हाथ में ले ली उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी उसे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी क्योंकि वह अपने बेटे के सामने पूरी तरह से निर्वस्त्र अवस्था में आ चुकी थी,,,, फिर पता नहीं क्या हुआ उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई और वह मुस्कुराते हुए अपने कपड़े पहनने लगी,,,
इस दौरान सौच क्रिया से निपट कर रानी वापस आ चुकी थी और जैसे ही घर के आंगन में पहुंची तो सामने चारपाई पर अपने भाई को देखकर उसकी आंखें शर्मिंदगी से नीचे झुक गई और अपनी आंखों के सामने अपनी बहन रानी को देखकर सूरज के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह जल्दी से उठाओ और अपनी बहन की तरफ आगे बढ़ गया यह देख कर रानी का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह अपने भाई की फितरत को अच्छी तरह से समझ चुकी थी,,,, वह अपने कदम को पीछे लेना चाहती थी लेकिन सूरज फुर्ती दिखाता हुआ उसके एकदम करीब पहुंच चुका था और उसकी कमर में अपना हाथ डालकर उसे अपनी तरफ खींच लिया था और अपने पजामे में बने ताजे ताजे उभार को अपनी बहन की दोनों टांगों के बीच उसकी बुर पर रगड़ने लगा उसके ही हरकत से रानी के बदन में भी उत्तेजना की लहर दोड़ने लगी,,, अपने भाई के लंड की चुभन को अपने दोनों टांगों के बीच बुर पर महसूस करके वह शरमाते हुए बोली,,,)
क्या भाई तुम्हारा तो फिर सेखड़ा है,,,!
क्या करूं रानी तुझको देखे ही इसको ना जाने क्या हो जाता है और खड़ा हो जाता है,,,(ऐसा कहते हुए उसे कसके अपनी बाहों में जकड़ कर कुर्ती के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाने लगा,,,, रानी को अपने भाई की हरकत से मजा तो आ रहा था लेकिन वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि यह समय यह सब करने का बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि किसी भी वक्त उसकी मां आ सकती थी इसलिए वह अपने भाई को समझाते हुए बोली,,,)
छोड़ो मुझे मुझे घर का बहुत सा काम करना है और कहीं मा ने देख लिया ना तो गजब हो जाएगा,,,,।
कुछ नहीं होगा कल रात को भी तु यही कह रही थी लेकिन कुछ हुआ कुछ भी नहीं लेकिन हम दोनों के बीच बहुत कुछ हो गया,,,, मैं तो कहता हूं जल्दी से सलवार की डोरी खोलकर सलवार को नीचे कर दे,,,,(आंगन के कोने वाली जगह की तरह देखते हुए) और जल्दी से दीवार पकड़ कर घोड़ी बन जा और मजा आएगा,,,,
(सूरज किस तरह की बातें सुनकर रानी के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी अपने भाई की बातें सुनकर आंगन के कोने की तरफ देखी तो उसका चेहरा सुर्ख लाल होने लगा वह शर्म से पानी पानी होने लगी और यह शर्मा का पानी उसके गुलाबी छेद से बाहर आने लगा और वह अपने भाई से अलग होने की कोशिश करते हुए बोली,,,)
छोड़ो मुझे पागल हो गए हो क्या कहीं भी शुरू हो जाते हो मां नहाने गई है और किसी भी वक्त आ सकती है,,,
(रानी की बात सुनकर सूरज का मन हुआ कि उसे बता दे कि अभी-अभी वह अपनी मां को नंगी देखकर आ रहा है और वह गुसलखाने में नहा रही लेकिन ऐसा कहना ठीक नहीं था इसलिए वह मुस्कुराता रहा और मुस्कुराते हुए फिर से उसे अपनी बाहों में जकडते हुए बोला,,,)
कुछ नहीं होगा जल्दी से खत्म हो जाएगा जल्दी से अपनी सलवार की डोरी खोल,,,।
नहीं कुछ भी नहीं,,, अभी तो मैं बिल्कुल भी नहीं करने दूंगी,,,,(अभी दोनों के बीच इस तरह की नोक झोक चली रही थी कि तभी बाहर बाल्टी का दीवार से टकराने की आवाज हुई और दोनों एकदम से अलग हो गए सूरज जल्दी से चारपाई पर जाकर बैठ गया और रानी रसोई घर के अंदर जाकर बैठ गई और थाली में अपने लिए खाना परोसने लगी,,,, तब तक सुनैना आंगन में बाल्टी में पानी भर कर पहुंच चुकी थी,,,, कुछ देर पहले जिस तरह के हालात मां बेटे के बीच पैदा हुए थे उसे देखते हुए सुनैना की हिम्मत नहीं हो रही थी सूरज से नजर मिलाने की वह कुछ बोली नहीं बस बाल्टी को इस तरह से रख दी और अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,, सूरज की नजर अपनी मां की चिकनी कमर पर थी और वह अपनी मां की चिकनी कमर को देखकर अपने मन में सोच रहा था कि कितना मजा आएगा जब इसकी चिकनी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे से चुदाई करूंगा,,,,
कमरे का दरवाजा बंद हुआ और थोड़ी देर बाद खुला और सुनैना तैयार थी मुखिया के खेत पर चलने के लिए लेकिन अपने कमरे से बाहर निकलते हुए भी वह सूरज की तरफ देखने में शर्म महसूस कर रही थी इसलिए सूरज ही बोला,,,।
थोड़ा खाना लेकर चलना पड़ेगा क्योंकि भूख लगेगी तब खाने के लिए घर आने में दिक्कत हो जाएगी,,,।
मुझे मालूम है तभी तो रानी से खाना बांधने के लिए बोली हूं,,,।
तब तो एकदम ठीक है,,,,,।
चल अब तु पानी पी ले अगर खाना खाना हो तो खाना भी खा ले तब तक रानी खाना बांंध देती है,,,(इस बार वह बड़ी हिम्मत करके सूरज की तरफ देखी तो सूरज मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कुराहट में बहुत कुछ छुपा हुआ था उस०की मुस्कुराहट देखकर सुनैना शर्मसार होने लगी और वह फिर से अपनी नजर को नीचे झुका ली अपनी मां की बात सुनकर सूरज बोला)
कोई बात नहीं दो रोटी खा लेता हूं और तुम भी दो रोटी खा लो अच्छा रहेगा,,,।
नहीं मुझे भूख नहीं लगी है,,,।
क्या भूख नहीं है खेत में चार-पांच बार फरसा चलाओगी तो पेट में चूहे दौड़ने लगेंगे इसलिए कहता हूं खा लो,,,, रानी मां के लिए भी तो रोटी निकाल और सब्जी,,,,।
ठीक है भैया,,(इतना क्या करवा सूरज और अपनी मां के लिए भी खाना निकालने लगी और अपने मन में सोचने लगी कि अच्छा हुआ सही समय पर मान गई वरना भाई का भरोसा नहीं है वह तो किसी भी समय शुरू पड़ जाएंगे यही सब सोचते हुए वह दो हाथ में थाली लेकर एक अपने भाई को दे दी और एक अपनी मां को थमा दी,,, सुनैना भी चारपाई पर बैठकर खाना खाने लगी और अपने मन में सोचने लगेगी उसका लड़का कितना बदल गया है पूरी तरह से जवान हो चुका है,,, उसकी नजरों में प्यास नजर आती है औरत की प्यास जब घर में यह हाल है तो उसके साथ तो मुझे काम करना है वहां पर ऐसी वैसी हरकत किया तो क्या होगा यही सब सोते हुए वह खाना खत्म कर दी,,, और सूरज खुद एक लोटा पानी लेकर अपनी मां के सामने खड़ा हो गया और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए उसे लौटा थमाने लगा,,, खाना खाने के बाद सुनैना को भी प्यास लगी थी इसलिए वह अपने बेटे के हाथ से लौटा ले ली और पानी पीने लगी लेकिन इस बीच वह अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,,,,।
रानी खाना बंद कर सूरज को दे दी थी दोनों खेत पर जाने के लिए तैयार हो चुके थे और सुनैना रानी को हिदायत देते हुए घर से बाहर खेतों की तरफ जल्दी लेकिन खेत पर जाने से पहले सूरज जानता था कि उसे मुखिया से एक बार मिलना होगा काम के बारे में सही जानकारी लेनी होगी इसलिए वह अपनी मां को लेकर मुखिया के घर की तरफ चल दिया।।
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