सूरज आज बहुत खुश था क्योंकि आम के बगीचे से आम चुरा कर लाने का मजा ही कुछ और होता है और उसने तो आज पूरा बगीचा ही लूट लिया था और वह भी अपनी बहन के साथ मिलकर,,,,,, घर के बाहर खटिया गिरा कर वह बैठा हुआ था,,,, वह अपनी बहन के साथ मत कर जिस तरह आम के बगीचे से आम लुट लाया था,,, वह अपनी इस शौर्य गाथा के बारे में सोच-सोच कर मन ही मन खुश हो रहा था,,, लेकिन तभी उसे बगीचे के मालिक की गंदी-गंदी गाली याद आने लगी ,, जो कि उसे बगीचे से भाग निकलने की अफरातफरी में भी वह उस गाली को साफ़-साफ़ सुन पा रहा था,,,, तेरी मां की भोसड़ी में लंड डाल दूंगा,,,,,, वैसे तो यह गली उसके लिए नई नहीं थी गांव में अक्सर वह एक दूसरे को इस तरह की गंदी-गंदी गालियां देते सुनता आ रहा था,,,,, इसलिए वह इसका मतलब तो अच्छी तरह से जानता था कि यह गाली किस किस्म की है,,, सूरज पूरी तरह से जवान हो चुका था इसलिए जानता था कि यह गाली सीधे तौर पर उसकी मां को चोदने के लिए ही थी,,, और यह ख्याल उसके मन में आते ही उसके चेहरे पर क्रोध के भाव साफ झलकने लगे अगर कोई और समय होता तो,,, वह जरूर उसे बगीचे के मालिक का मुंह तोड़ देता लेकिन उसे समय ऐसा करना उसके लिए बिल्कुल भी उचित नहीं था क्योंकि जरुरत से ज्यादा उसने आम तोड़ लिए थे और वहां से निकल जाना ही मुनासिब था,,,,।
बगीचे के मालिक के बारे में सोचते सोचते सूरज वहीं खटिया पर लेट गया और बगीचे के मालिक के द्वारा दी गई गाली के बारे में बड़े विस्तार से सोचने लगा,,,, वह अपने मन में एक-एक शब्द को स्पष्ट कर रहा था तेरी मां की भोंसड़ी में लंड डाल दूंगा और विचार करने लगा कि लंड तो उसके पास है जिसे वह रोज ही देखता है और अपने हाथ में लेकर पकड़ता भी है,,,, और इसलिए लंड से वह पूरी तरह से मुखातिब था,,, और भोसड़ी शब्द पर वह विचार करने लगा कि औरत की दोनों टांगों के बीच ही यह अंग होता है जिसे भोसड़ी और बुर कहा जाता है,,,, सूरज अच्छी तरह से जानता था कि मर्द अपने लंड को औरत की बुर में डालता है जिसे साफ तौर पर चोदना भी कहते हैं,,, इन सब को जानने के बावजूद भी सूरज अभी तक औरत की बुर अपनी आंखों से देखा नहीं था वह अच्छी तरह से जानता था की औरतों ने लड़कियों के पास बुर होती है जिससे मर्द मजा लेते हैं लेकिन आज तक उसे अपनी आंखों से देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था इसलिए वह बुर के भूगोल से पूरी तरह से अनजान था वह नहीं जानता था कि औरत की बुर दिखती कैसी है,,,, एक सुलझा हुआ लड़का होने के बावजूद भी,,, कभी-कभी उसके मन में बुर के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ जाती थी लेकिन उसे जानने का सौभाग्य उसे प्राप्त नहीं हो पा रहा था,,, और इसमें कोई सूरज को हर्ज भी नहीं था वह बड़ी मस्ती से अपने आप में ही मगन रहता था बस कभी-कभार ही उसके मन में इस तरह की उत्सुकता बढ़ जाती थी वह अपने ख्यालों में ही खाया था कि तभी उसके कानों में आवाज आई,,,,।
अरे सूरज,,,, खाना बन गया है जरा अपने पिताजी को तो बुला कर ले आ दिन भर न जाने कहां-कहां घूमते रहते हैं घर की तो जरा भी फिक्र ही नहीं है,,,,
ठीक है मां,,,,(इतना कहने के साथ ही सूरज खटिया पर से उठकर बैठ गया और इधर-उधर देखने लगा धीरे-धीरे अंधेरा गहराने लगा था,,, वह धीरे से खटिया पर से उठा और,,, पास में पड़ा बड़ा सा डंडा अपने हाथ में ले लिया,,, वैसे अंधेरा होते ही सूरज की आदत थी कि जब कभी भी कहीं भी जाता था तो उसके हाथ में एक बड़ा सा दंडा जरूर होता था क्योंकि खेतों में सियार आर और कुत्तों का डर बना रहता था,,,, सूरज अच्छी तरह जानता था कि उसके पिताजी कहां मिलेंगे इसलिए भाई सीधा चलता हुआ गांव के नुक्कड़ पर पहुंच गया जहां समोसे और जलेबियां मिलती थी और साथ में देसी शराब भी मिलती थी और वह जानता था कि उसके पिताजी भी शराब पीते थे,,,, थोड़ी देर में टहलता हुआ सूरज नुक्कड़ पर पहुंच गया जहां पर दो-चार आदमी अभी भी बैठे हुए थे और शराब पी रहे थे और साथ में समोसे और जलेबियों का लुफ्त भी उठा रहे थे,,,, उन लोगों में बैठे हुए दो लोग सूरज के गांव के ही थे इसलिए सूरज उनके पास जाकर बोला,,,)
अरे चाचा पिताजी को देखे हो क्या,,,,?
नहीं रे आज तो,,,,,,वह दिखाई नहीं दिया वरना हम लोगों के साथ ही बैठ कर पीता,,,,,,
क्या कह रहे हो चाचा आज सुबह से पिताजी नहीं दिखाई दीए,,,,
अरे सच कह रहा हूं,,,,
पता नहीं कहां गए होंगे,,,(उसकी बात सुनकर सूरज अपने आप से ही बड़बड़ाते हुए बोला,,,, और इतना कहकर वह चलने हीं वाला था कि तभी,,, उसे पीछे से आवाज आई,,,)
अरे सूरज,,,,,(इतना सुनते ही सूरज पीछे मुड़कर देखने लगा तो पास में ही उसके गांव के ही हैंडपंप चला कर अपना हाथ-पोड हो रहे थे उसकी बात सुनकर सूरज रुक गया और वह अपना हाथ पैर धोकर गमछे से अपना मुंह पोछते हुए बोला,,,)
अरे पन्ना भैया को तुम्हें मुखिया के खेत में काम करते हुए देखा था वही होंगे,,,,
मुखिया के खेत में इस समय,,,,,(उस आदमी की बात सुनकर सूरज धीरे से बोला,,,,)
हां सूरज वही तेरे पिताजी होंगे,,,
ठीक है चाचा जाकर देख लेता हूं,,,,।
(पन्ना सूरज के पिताजी का नाम था और वह मुखिया के खेतों में काम करके पालन पोषण में मदद किया करता था,,, मुखिया से खेतों में काम करने के आवाज में कुछ पैसे और अनाज भी मिल जाया करता था जिसमें बड़े आराम से उसके परिवार का गुजारा हो रहा था,,,, सूरज जानता था कि कभी कबार उसके पिताजी देर रात तक खेतों में काम किया करते थे इसलिए उसे बिल्कुल भी अजीब नहीं लगा लेकिन जब भी देर तक काम करना होता था तो घर पर बता देते थे लेकिन फिर भी निश्चिंत होकर सूरज हाथ में बड़ा सा डंडा लिए इधर-उधर फटकारता हुआ खेतों की तरफ निकल गया,,,,,,।
मौसम बड़ा की सुहावना था ठंडी ठंडी हवा चल रही थी,,, जैसे-जैसे रात बढ रही थी वैसे-वैसे आसमान में तारों का झुरमुट एकदम साफ दिखाई देने लगा था रास्ते में चलते समय गांव की औरतें सूरज को दिखाई दे रही थी जो कि कुछ औरतें मैदान की तरफ जा रही थी और कुछ औरतें मैदान से वापस आ रही थी शाम ढलने के बाद जैसे-जैसे अंधेरा होने लगता था वैसे-वैसे गांव की औरतें सौच करने के लिए मैदान की तरफ जाया करती थी,,,, औरतों के लिए यही समय ठीक भी रहता था क्योंकि दिन में किसी के द्वारा देखे जाने का डर बना रहता था इसलिए शर्म के मारे बहुत सी औरतें दिन के उजाले में नहीं जाती थी और अगर जाना पड़ जाता था तो जंगली झाड़ियां के बीच जाकर बैठना पड़ता था और ऐसे में सांप और बिच्छू का डर भी बना रहता था और जैसे ही अंधेरा होता था वैसे ही गांव की औरतें झुंड बनाकर मैदान की तरफ निकल जाया करती थी सौच करने,,, और ऐसे में गांव की कुछ मनचले लड़के चोरी छिपे गांव की औरतों को सौच करते हुए देखकर मस्त होते थे,,,।
मैदान के बीचों बीच छोटी-मोटी झाड़ियां के पास खड़ी होकर अपनी साड़ी को धीरे-धीरे कमर तक उठाना और फिर इधर-उधर देखना और फिर धीरे से बैठ जाना यह सब देखकर गांव के लड़के पूरी तरह से पागल हो जाते थे क्योंकि जब वह अपनी साड़ी को धीरे-धीरे उठाकर कमर तक लाती थी तब उनकी गोलाकार उभरी हुई गांड लड़कों के मुंह में पानी ला देती थी,,, गांव के लड़कों के लिए यह नजारा किसी स्वर्ग के नजारे से काम नहीं था औरतों की गोल-गोल गांड देखना हर मर्द का सपना होता है इसलिए दुनिया का हर मर्द किसी न किसी तरीके से औरतों के नंगेपन को देखने की कोशिश करता ही है,,,,, जिससे उन्हें काफी उत्तेजना का एहसास भी होता है और फिर अपनी जवानी को अपने हाथों से निकाल कर संतुष्ट हो जाते थे,,,,,,।
और यही कार्य गांव के लड़के भी करते रहते थे,,, औरतों की गोल गोल बड़ी बड़ी गांड देखकर लड़कों का लंड खड़ा हो जाता था,,, कभी कभार लड़के उन औरतों के इतने करीब छुप जाते थे कि उन औरतों के पेशाब करते समय उनके बुरे से निकलने वाली सिटी की मधुर आवाज उनके कानों में पड़ जाती थी और उसे मधुर संगीत को सुनकर लड़के इतना मस्त हो जाते थे कि,,, इस समय औरतों की गांड देखते हुए अपना लंड बाहर निकाल लेते थे और हाथ से हिलाकर अपनी जवानी की गर्मी शांत कर लेते थे एक बार सूरज के दोस्त भी,,,
बहाने से उसे अपने साथ ले गए थे और उसे भी इस तरह का नजारा दिखा रहे थे लेकिन सूरज जल्द ही समझ गया था कि उसके दोस्त उसे इसलिए वह पर लेकर आए हैं इसलिए वह तुरंत वहां से चला गया,,,,।
थोड़ी देर में सूरज मुखिया के खेत पर पहुंच गया और इधर-उधर अपने पिताजी को ढूंढना शुरू कर दिया अंधेरा होने की वजह से उसे कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था,,,, लेकिन खेत के बाहर उसे एक जगह पर लोटा और पानी का बड़ा सा जग और उसके पिताजी का गमछा रखा हुआ दिखाई दिया तो वह समझ गया कि उसके पिताजी खेत में ही है,,,, वह धीरे-धीरे निश्चित होकर अपने पिताजी को आवाज़ लगाई भी नहीं खेत के अंदर प्रवेश करने लगा,,, गन्ने का खेत था इसलिए दूर-दूर तक कुछ भी देख पाना नामुमकिन सा लग रहा था,,,, जहां पर उसके पिताजी का गमछा और बर्तन रखे हुए थे उसी के सामने ही गन्ने के खेतों के बीच थोड़ी सी जगह बनी हुई थी अंदर जाने के लिए और सूरज उसी में से अंदर की तरफ जाने लगा वह पूरी तरह से निश्चित तथा अपने ही धुन में था उसे लग रहा था कि उसके पिताजी गन्ने के खेत के बीचो-बीच खेत का काम कर रहे होंगे या पानी दे रहे होंगे क्योंकि जहां से सूरज अंदर जा रहा था वहां ढेर सारा कीचड़ था वैसे तो उसे जाना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन फिर भी वहां खेतों के बीच जाने लगा था,,,
लगभग खेत के अंदर दो-तीन मीटर प्रवेश किया ही था कि उसे उसके पिताजी की आवाज सुनाई दी,,,
मालकिन अपनी साड़ी ऊपर उठाओ,,,,
(सूरज को अपने पिताजी की यह बात एकदम साफ सुनाई दी थी लेकिन अपने पिताजी के कहने के मतलब को वह समझ नहीं पाया था,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अंदर कितने लोग हैं,,,, और उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके पिताजी साड़ी उठाने के लिए क्यों कह रहे थे तभी उसके कानों में किसी स्त्री की आवाज आई,,,)
भोला में तेरे लिए मालकिन सबके सामने हूं लेकिन इस तरह अकेले में मुझे मालकिन मत कहा कर मेरा नाम लेकर बुलाया कर शोभा,,,,।
ओहहह शोभा जल्दी से अपनी साड़ी कमर तक उठा दो मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,,,,
मुझसे भी कहां रहा जा रहा है भोला,,,,, खेतों में पानी देने के बहाने तो मैं तेरे साथ आई हूं,,,,(इतना कहते हुए मुखिया की बीवी शोभा अपनी साड़ी कमर तक उठा दी और उसकी नंगी गांड बोला की आंखों के सामने एकदम से चमकने लगी हालांकि यह नजारा सूरज अपनी आंखों से देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह अभी भी तीन-चार मीटर उन लोगों से दुर ही था और गन्ने का खेत होने की वजह से उससे 1 फीट की दूरी से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वहां क्या हो रहा है,,, तभी उसके कानों में उस स्त्री की आवाज फिर से सुनाई दी,,,।)
भोला जल्दी से अपना हथियार निकाल और जल्दी-जल्दी काम पूरा कर,,,,
बस शोभा मालकिन,,,
मालकिन नहीं रे सिर्फ शोभा बोल,,,,
शोभा अभी काम पूरा कर देता हूं,,,,(इतना कहते हुए भोला अपनी धोती में से अपने खड़े लंड को बाहर निकाला,,, और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर जैसे हाथ से मुखिया की औरत की गोल-गोल गांड को थाम कर,,, अपने लंड को शोभा की बुर में डालने की कोशिश करने लगा लेकिन अंधेरा कुछ ज्यादा होने की वजह से वह नाकामयाब होते जा रहा था तो शोभा खुद अपना अपने दोनों टांगों के बीच से पीछे की तरफ लाते हुए भोला के लंड को पकड़ ली और उसके गरम सुपाडे को अपनी दहकती हुई बुर पर रख दी,,, और उसे धक्का मारने के लिए बोली मुखिया की बीवी भोला के लंड को मंजिल तक पहुंचाने का रास्ता दिखा दी थी,,, ।
ऐसा नहीं था कि भोला मुखिया की बीवी को पहली बार चोदने जा रहा था,,,, वह कई बार मुखिया की बीवी की जमकर चुदाई कर चुका था इसलिए जैसे ही मुखिया की बीवी ने उसके लंड को पकड़ कर अपनी बुर का रास्ता दिखाई भोला तुरंत उसकी कमर पकड़ कर अपने लंड को एक ही धक्के में उसके बच्चेदानी तक पहुंचा दिया और उसे चोदना शुरू कर दिया,,,, मुखिया की बीवी पूरी तरह से मत हो गई,,,, सूरज को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कुछ देर के लिए दोनों की बातचीत बंद हो चुकी थी केवल अजीब अजीब सी आवाज आ रही थी जो की मुखिया की बीवी की गरमा गरम सिसकारी की आवाज थी ,,, जो कि सूरज इस तरह की आवाज से अपरिचित था उसे नहीं मालूम था किस तरह की आवाज क्यों आती है इसीलिए वह और ज्यादा उत्सुक हो रहा था कि खेत के बीचो-बीच उसके पिताजी और वह स्त्री कर क्या रहे हैं कौन सा काम कर रहे हैं और उसे स्त्री ने कौन सा हथियार निकालने के लिए कहा था कहीं कुछ घटना तो नहीं हो गई यही सब सोचकर वह घबरा भी रहा था लेकिन वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था,,,।
भोले तेरे साथ ही मुझे बहुत मजा आता है,,,
ओहहह मालकिन सच में मुझे यकीन नहीं होता कि मेरे हाथों में इतने बड़े घर की औरत है,,,,
आहहहह आहहहहह ऊहहहहहह और जोर से मार भोला और जोर से मार,,,आहहहहह ,,,,,,
मुखिया की बीवी की बात सुनकर भोला और ज्यादा जोश में आ गया था वह अपना दोनों हाथ आगे बढ़कर उसके ब्लाउज का बटन खोलकर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को हथेली में लेकर दबाते हुए धक्के पर धक्के लगा रहा था,,,, भोला और मुखिया की बीवी खेतों में पानी देने के बहाने रात तक रुके हुए थे और दोनों अपना उल्लू सीधा कर रहे थे इन सब से बेखबर मुखिया घर पर आराम से हुक्का गुडगुडा रहा था,,,,, वह दोनों पूरी तरह से संभोग क्रिया में मस्त हो चुके थे कि तभी,,, भोले के कानों में गनने के खेत में सुरसुराहट की आवाज सुनाई दी और वह एकदम से अपने धक्कों को रोक दिया,,,, अपनी बुर में लंड का आवागमन बंद होते ही शोभा बोली,,,।
रोक क्यों दिया भोला,,, जोर-जोर से धक्के लगा जोर-जोर से मार,,,।
सससहहहहह,,,(भोला धीरे से शोभा के कान में चुप रहने का इशारा किया और बोला) लगता है कोई है,,,
(शोभा एकदम से घबरा गई उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई उसे इस अवस्था में देख ना ले वरना बदनामी हो जाएगी वह एकदम से घबरा गई थी लेकिन इस बीच चला कि दिखाते हुए उत्तेजित अवस्था में भोला अपनी कमर को आगे पीछे धीरे-धीरे हिलता हुआ मुखिया की बीवी को चोद रहा था,,,, लेकिन उसका पूरा ध्यान गन्ने के खेत में से आने वाली आवाज पर था उसे रहने की और वह मुखिया की बीवी की बुर में धक्का लगाते हुए बोला,,,)
कौन है वहां,,,?
,(अपने पिताजी की आवाज सुनते ही सूरज जल्दी से बोल उठा,,,)
मैं हूं पिताजी सूरज,,,,
(अपने बेटे की आवाज सुनते ही भोला एकदम से चौंक गया,,,, और बोला,,,)
अरे तू यहां क्या कर रहा है,,,?
(भोला एकदम से चुदाई बंद कर दिया था शोभा भी घबरा गई थी वह धीरे से भोला के कान में बोली,,,)
ये यहां क्या कर रहा है अगर देख लिया तो,,,
कुछ नहीं होगा मालकिन तुम एकदम शांत रहो,,,,
मां ने बुलाने के लिए भेजा था तो तुम्हें ढूंढता हुआ यहां आ गया,,,,
अच्छा तू जा यहां से मैं अभी थोड़ी देर में आ जाता हूं,,,
वह तो ठीक है पिताजी लेकिन किसको जोर-जोर से मार रहे हो कौन है वहां पर तुम्हारे साथ वह औरत कौन है,,,? रुको मैं भी आता हूं,,,,(इतना कहकर सूरज धीरे से अपना कदम आगे बढ़ाया और भोला और मुखिया की औरत दोनों पूरी तरह से घबरा गए दोनों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आप क्या करें दोनों का आज पकड़े जाना निश्चित था शोभा जल्दी से अपने ब्लाउज का बटन बंद कर रही थी लेकिन अभी भी उसकी बुर में भोला का लंड घुसा हुआ था,,, मुखिया की बीवी धीरे से बोली,,)
अब क्या होगा भोला ,,,,
अरे सूरज यहां बिल्कुल भी मत आना यहां पर सियार है उसे ही हम लोग मर रहे हैं,,,।
(भोला की बात सुनते ही मुखिया की बीवी की जान में भी जान आ गई और वह अभी हड़बड़ाहट भरे स्वर में बोली ,,)
हां हां बेटा इधर बिल्कुल भी मत आना बहुत बड़ा सियार है,,,, तेरे पिताजी उसे मार रहे हैं और मैं उनकी मदद कर रही हूं तू इधर मत आना यहां खतरा है और कीचड़ भी बहुत है,,,।
(उन दोनों की बात सुनकर सूरज वही रुक गया था,,,)
सूरज बेटा तू खेत के बाहर खड़े रहे अभी काम निपटा कर आता हूं और इतनी रात को बाहर मत निकाल कर यहां पर सियार कुछ ज्यादा हो गए हैं,,,।
(सूरज अपने पिताजी के खाने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था वाकई में गांव में सियार की संख्या बढ़ती जा रही थी इसीलिए तो वह लाठी लेकर चलता था ताकि कभी उसे दिखाई दे तो वह अपने आप की सुरक्षा कर सके और अपने पिताजी की बात मानते हुए वह बोला)
ठीक है पिताजी में खेत के बाहर खड़ा रहता हूं लेकिन जल्दी से सियार का काम निपटाकर बाहर आ जाओ और अपना ख्याल रखना,,,,
ठीक है बेटा तू जा जल्दी,,,,।
(और इतना सुनते ही सूरज धीरे-धीरे खेत में से बाहर आने लगा और भोला को इस बात का अहसास होते हैं क्योंकि सूरज फिर से बाहर जा रहा है तो वह फिर से मुखिया की बीवी की कमर पकड़ कर उसकी बुर में लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया क्योंकि अभी दोनों का काम खत्म नहीं हुआ था,,, और देखते ही देखते कुछ देर बाद दोनों एकदम से झड़ गए,,, भोला अपने लंड को धोती में वापस डालकर खेत से बाहर आने लगा और मुखिया की बीवी अपने कपड़ों को दुरुस्त करके वह भी पीछे-पीछे खेत से बाहर आ गई खेत से बाहर आते ही उसकी नजर सूरज पर पड़ी जो की काफी हट्टा कट्टा था,,, सूरज को देखते ही वह बोली,,,)
भोला यह तेरा बड़ा बेटा है ना,,,
की मालकिन यही तो है एक इसका नाम सूरज है,,,
बिल्कुल तेरी तरह है,,,,
सूरज यह मालकिन है नमस्कार करो,,,
नमस्ते मालकिन,,,,
खुश रहो,,,(मुखिया की बीवी सूरज के सर पर हाथ रखते हुए बोली) और इस तरह से रात को मत निकाला करो सियार का खतरा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है तुम भी पूरी तरह से जवान हो लेकिन तुम्हारे पिताजी की तरह बहादुर अभी नहीं हो तुम्हारे पिताजी शिकार करने में बहुत माहिर हैं,,,,(शोभा कौन से शिकार की बात कर रही थी इस बारे में समझ पाना सूरज के लिए बहुत मुश्किल था,,,,)
अच्छा बोला कल फिर से समय पर खेत पर चले आना अभी बहुत काम बाकी है,,,,
ठीक है मालकिन,,,(इतना कहते हुए बोला अपना गमछा जो जमीन पर रखा हुआ था उसे उठाकर कंधे पर रख लिया और लोटा और जग मालकिन को थमा दिया,,, मालकिन मुस्कुराते हुए अपने घर की तरफ चली गई और दोनों बाप बेटे अपने घर की तरफ चल दिए,,,)