अध्याय-१,( भाग- २)
उसका पुरा दहिना पंजा उसकी चुत से उमड़े कामरस से भीगा हुआ था और जो उसके हाथ के साड़ी से बाहर आने के उपरान्त निशिन्त ही उसके समीप बठैे अभिमन्यु को नजर आ जाता।
वैशाली- “चलो यह जासूसी वाली बात तुमने खुद ही मान ली, तो मैने तुम्हें माफ किया। मगर तुम मुझ पर, अपनी माँ पर ऐसा दोष कैसे लगा सकते हो की मैंने तुम्हें, अपने सगे बेटे को रिझाने के खुद ही अपने कपड़े उतार फेंके?” अभिमन्युके चेहरे की हवाइयां उड़ी देखकर वैशाली ने अपना अगला कथन और उसमें शामिल प्रश्न बहुत ही शांत स्वर में पूरा करती है।
अभिमन्यु भी उन्हीं अनगिनत जवान होते मर्दो में शामिल था जिनसे विपरीत लिंग का आकर्षण जरा सा भी नहीं झेला जाता, जिनके मन-मस्तिष्क में जनाना अंगों के सिवाय कुछ अन्य घूम ता ही नहीं है।
एक पढ़ी-लिखी समझ दार औरत होने के नाते वैशाली अपने बेटे के इस लाइलाज मंशा को बहुत पहले ही समझ चुकी थी। उस माँ की चौकस और परिपक्व आँखे को अभिमन्यु की बेचैनी की मुख्य वजह दर्जनों बार सबुत सहित देखने को मिली थी।
न्यूड मगैजीन्स, इंटरनेट पोर्न, रोलप्ले, सेक्स चैट यहां तक की कई बार उसने अपने बेटे की मौजुदगी में परदे के पीछे, बंद दरवाजे की नईचली झरी और की-होल आदि से महसुस किया था और वह
भी तब, जब वह मट्ुठ मारने या नहाने-धोने जैसे एकांत कायों में व्यस्त रहा करती थी।
वैशाली- “और सेक्स की जिन गंदी -गंदी कहानियों को पढ़कर कुछ देर पहले तुम अपनी माँ को अपने बेहतरीन सामाजिक ज्ञान का एक बढीया सा उदाहरण दे रहे थे, तो बेटा जी। वह पति, उसकी बीवी और उस तीसरे शख्स को तुम्हे उन्हीं कहानियों में जाकर दोबारा खोजना चाहिए। क्योंकी इस घर की कहानी तम्ुहारे ज्ञान के मुताबिक कभी नहीं होगी…” ।
जब अभिमन्यु उस शर्मसार हालत में पंहुच गया जिस हाल से कुछ वक्त पीछे उसकी माँ जूझ रही थी। तब वैशाली अपने बाएं पैर के अँगूठे से उसकी कमर को गुदगुदाते हुए बोली- “एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी, हम्म…”
अभिमन्य-ु “तो तुम्हें मेरे बारे में पुरी जानकारी है। सारी मम्मी। पर मैंने सोचा था की लाइफ में पहली बार मौका लगा है तो क्यों ना मैंभी तमु से माफी मगंवा लू…” ं अभिमन्यु गुदगुदी के अहसास से बिस्तर पर लोट लगाते हुए बोला।
वैशाली- “कैसी माफी और किस बात की माफी?” बिस्तर पर लोट लगाते अभिमन्युके चूतड़ के नीचे वैशाली की काली कच्छी दबी हुई थी और जिस पर नजर पड़ते ही यौवन से भरपूर उस अत्यतं कामुक माँ की रुकी हुईं उत्तेजना में एकाएक पनु ः उबाल आ गया।
एक ऐसा अमयाादित क्षण्ड सभ्य और संस्कारी वैशाली बिना कच्छी के अपने जवान बेटे के समक्ष विचरण कर रही है।
अभिमन्य-ु “तुमहारी दोस्त मिसेज़ मेहता की झठी शिकायत को शायद तमु भूल गई मोम, जिसकी वजह से तमुने बेवजह मेरी पाकेटमनी बन्द कर दी और घर से बाहर जाना बन्द किया सो अगर…” अभिमन्यु ने उसे बीस दिनों पहले बीती घटना को याद दिलाते हुए कहा।
वैशाली- “झूठी वह नहीं, तुम हो। वह तो शुक्र करो की तुम्हारी गंदी करतुतो को तुम्ुहारे पापा तक नहीं पहुची, वर्ना हमेशा के लिए तुम्ुहें घर से बाहर निकाल देते…” बोलते हुए वैशाली की नजर अब भी बेटे के चूतड़ के नीचे दबी अपनी कच्छी पर थी।
फिर कहा- “तमु ऐसी गलत हरकत कैसे कर सकते हो अभीमन्यु? ु हम बहुत पुराने दोस्त
हैं, तुम्हारी माँ समान है वह…” उसने अपने पिछले कथन में जोड़ा और इस पुराने घटनाक्रम में पहली बार बेटे की मौजुदगी में ही उसके दाएं हाथ की तीनों निर्जीव उंगलियां उसकी नंगी चुत के भीतर एकदम से सजीव हो गईं।
अभिमन्य-ु “मैंने नहीं चुराई उनकी पैंटी, मैं पहले भी कई बार सफाई दे चुका हूँ…” अभिमन्यु की तेज और उत्साहित मर्दाना आँखे तरुंत ताड़ जाती हैं की साड़ी के भीतर घुसी उसकी माँ की दाहिने हाथ में अचानक से हलचल होनी शुरू हो गई है, जिसके परिणाम स्वरूप वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपनी माँ के अधनंगे बाएं पैर को उठाकर सीधे उसे अपनी गोद के बीचोबीच रख लेता है।
वैशाली- “बिल्कुल ठीक कहा तमु ने। उसी सफाई के कारण ही तुम्हारी मेहरा आंटी की पैंटी आज मुझे तुम्हारे स्टडी टेबल की दराज में मिल गई…”
वैशाली के कथन को सनु कर अभीमन्यु के पशीने के छु ट गए। अपने जिस तने हुए लण्ड की कठोरता की स्पर्श को वह अपनी माँ के बाएं तलवे से करवाने का इच्छुक था, उसकी कठोरता शीघ्रता से घटने लगती है।
वैशाली- “चलो इस गलती के भी मैंने तुम्हें माफ किया पर क्या तमु मुझे यह समझाओगे कि तम्ुहें अपनी उम्र की लड़कियों में दिलचस्पी क्यों नहीं है?” वैशाली ने पुछा और अपना बायां हाथ वह पनु ः अपने दाएं मम्मे पर रख लेती है।
शिकार और दाना। यह दोनों शब्दो में भले ही एक-दूसरे से कितने भी अलग क्यों ना हों, मगर फिर भी इन्हें समानरथक शब्दो में गिना जाता है। ठीक उसी तरह यदि
अभीमन्यु के मन-मस्तिष्क को भेदना था तो उसके लिए वैशाली को सीधे उसकी जवान के फितरत पर वार करना था और जो वह हौले-हौले करने भी लगी थी।
अभिमन्य-ु “हर किसी की अपनी अलग फैंन्टेसी होती है। मुझे अपनी उम्र की लडकिया पसंद नही, यह तुम्हे किसने कहा? मुझे लडकिया पसंद हैं,मगर भाभी टाइप और खासकर चाची (मम्मी) टाइप में मेरी दिलचस्पी थोड़ी ज्यादा है। आप जानती हो मम्मी ‘एम॰आई॰एल॰एफ॰’ टाइप्स?”
अभिमन्युके चेहरे पर पसरा भय पल भर में हवा हो गया, जब उसकी मा ने उसकी इस गंदी हरकत के लिए भी उसे फौरन माफ कर दिया और तभी वह अपनी कल्पना, अपनी निजी फै न्टेसी को वैशाली के साथ साझा करने से पीछे नहीं हट पाता।
वैशाली- “आई वडु लाइक टू फक…” वैशाली तुरुंत बेशमी से बोली। मगर अंदर ही अंदर उसे कीतनी अधिक शर्म का अनभु व हो रहा था यह उसकी कामकु अवस्था, या वह स्वयं ही जान सकती थी।
अभिमन्य-ु “सही कहा मम्मी। कभी-कभी तमु पर मुझे बहुत ज्यादा प्यार आ जाता है। तमु जानती हो, मेरे किसी दोस्त की मोम इतनी समझदार नहीं और हमारे जैसा कूल रिलेशनशिप भी किसी और का नहीं हो सकता…”
अपनी माँ के मुँह से ‘फक’ शब्द का उच्चारण सुन कर अभिमन्यु के सम्पुर्ण शरीर में सुरसुरु छूटने लगी थीं।
वाकई अभिमन्यु की माँ उसके सभी दोस्तों की माओ से बेस्ट थी और इस बात से हमेंशा ही उसे खुद पर फख्र होता आया था।
वैशाली- “सो, तुम्हारी फैन्टसी में तुम्हारी अपनी माँ का क्या रोल है?” वैशाली अपनी साड़ी के पल्लू को अपने बलाउज के ऊपर से हटाते हुए पुछती ह। उसके दाएं हाथ का अगुठा उसकी चुत के फुले हए भंगुर को छूने लगा था-
“क्या तुम मेरे साथ, अपनी सगी मा के साथ सेक्स करना चाहते हो? क्योंकि मुझे पता है, मिसेज मेहरा की पैंटी तुमनें किस कारण से चुराई थी? मैं भी तो उसी की तरह ही एक ‘एम॰आई॰एल॰एफ॰’ हूँ। अगर तुमहें ऐसा लगता हो तो? वर्ना मैं कितनी बुढ़ी हो चुकी हुँ मुझे पता हैं…”
अभिमन्यु के साथ ही साथ वैशाली भी अपने तात्कालिक कथन पर चौंक उठी थी। वह हैरत से अपनी साड़ी के भीतर छुपी अपनी दाहिनी हाथ की हलचल को घुरती हैं, जो की सचमुच साड़ी के ऊपर से उसके द्वारा अपनी चुत सहलाने का स्पष्ट दृश्य दर्शा रहा था।
उस कुठित माँ की उत्तेजना उस वक्त एकदम से शीष पर पहुच जाती है जब अपनी बेशर्मी को त्यागकर वह अपने बाए हाथ के अंगूठे और प्रथम उगली के बीच खुल्लम-खुल्ला ब्लाउज के अंदर कैद अपने दाहिने निप्पल को बलपूरके जकड़ लेती हैं, और अपने बहुत ऐठ चुके निप्पल को तेजी से मसलने लगती है।
अपनी माँ के कथन और उसमें शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु गहरी सोच में पड जाता है। कैसे उसकी मयाादित माँ उसकी आँखों के समक्ष ही अपने नंगे बदन से खेल रही थी? वह चाहकर भी वैशाली की अश्लील हरकत पर से अपनी अचरज भरी नजरें हटा नहीं पाता। सच कितना कड़वा होता है? वह स्वयं भी तो अपनी उत्तेजना के हाथों हमेशा हारता आया था।
फिर उसकी माँ कौन सी दुसरे किसी ग्रह की प्राणी थी? मनष्यु चाहै कितनी तरक्की कर ले, लाख रोगों के इलाज ढुढे जा चुके है, पर कामरोग का इलाज कोई कर सका है भला? वह पुनः वैशाली के अधनंगे पैर को बिस्तर से उठाकर अपनी गोंद के बीचोबीच रख लेता है, ताकि अपनी माँ के नंगे तलबे से अपनी पैंट के भीतर फंफनाते अपने बहुत तन हुए लण्ड का स्पश करवा सके।
उसके ऐसा करते ही जहा उसका लण्ड क्षिमात्र म ही ठुमकी पर ठुमकी लगने लगता है वहीं वैशाली फौरन अपनी आँखे बन्द कर लेती है। अपने बेटे की इन्हीं बेशमी और ओछी हरकतों से आज वैशाली को सरेआम लजज्जित होना पढ रहा था। वह अभिमन्यु से उम्रदराज थी, परिपक्व थी, रिश्ते में उसकी सगी मा थी, और यह अच्छे से जानती थी की अपनी जिस निर्मल, निष्कलंक छवि का वह प्रत्यक्ष हनन कर रही है, उसे कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
अपनी कामोत्तजना को ढाल बनाकर वह अपन इकलौत पुत्र का अन्तरमन को खंगालने की प्रयासरत थी, यह विध्वश्क सत्य जानने की इच्छुक की उसकी जन्मिात्री उसकी अपनी माँ के प्रति उसके विचार कितने निष्छल, निष्कपट और निस्वाथा हैं? अपनी आँखो मूंद कर उसने अपने मुट्ठ मारने की धीमी गति को एकाएक तीव्रता प्रदान कर दी।
ताकि अभिमन्यु की रही-सही झिझक का भी पूर्ण रूप से अंत हो जाए, बस उसके द्वारा पुछे गए प्रश्न का जवाब भर उसे मिल जाए। फिर वह निर्णय ले सके।