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Adultery पापी परिवार की बेटी बहन और बहू बेशर्म रंडियां

Hkgg

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कहानी राजपुर के एक मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |

पिता : उमर 65 साल , परिवार के मुखिया.अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है 15 साल पहले ही पत्नी की accident की वजह से मौत हो गई थी इसलिए हर वक्त ये किसी ना किसी को चोदने की प्लानिंग करते रहते हैं। wild sex के शौकीन हैं।

राकेश - उमर 35 साल, धरमवीर का शादीशुदा बेटा ,एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.

बहु : गुंज़न ; उमर 31 साल 1 साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.ये फुल कपड़े पहनना पसंद करती है ज्यादातर साड़ी या सूट सलवार ही पहनती है । जब तक रात को इनकी ताबड़तोड़ चुदाई ना हो जाए इन्हे नींद नहीं आती ।इस कहानी की मुख्य पात्र भी है


बेटी/बहन : शालू सिंह ; . उमर 31 साल भाभी की जितनी । इनकी अभी शादी नहीं हुई है गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड

बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र 18 12 वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना.

सुबह के 8 बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए गुंज़न की आँखों पर पड़ती है. गुंज़न टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए गुंज़न की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.

9 बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है.
गुंज़न तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद शालु के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे शालु एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से शालु की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. गुंज़न शालु की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". गुंज़न उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.

गुंज़न : ओ महारानी ... 9 बज गए है. (शालु की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है?


शालु : (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस 5 मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!

गुंज़न : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ 5 मिनट. अगर 5 मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नही आई तो बाबुजी को भेजती हु

शालु : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का 5 मिनट में उठ जाउंगी.

(फिर शालु तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और
गुंज़न कमरे से बाहर चली जाती है)

छत पर

धर्मवीर अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. गुंज़न चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे गुंज़न ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना गुंज़न के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था.

गुंज़न कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.

गुंज़न : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय

जैसे ही गुनज़ चाय पास के टेबल पर रखने के लिए झुकी धर्मवीर का दिमाग सामने का नजारा देखकर भनभना गया ।
गुंज़न नीचे जैसे ही झुकी उसकी कुर्ती उसके विशाल भारी चूतड़ों को छुपाने में नाकामयाब होने लगी । उसके तबले जैसे दोनों चूतड़ चौड़े हो गए झुकने की वजह से । जैसा कि सलवार पहले ही जैसे तैसे फसाकर पहनी थी झुकने की वजह से वो दोनो चूतड़ों को संभाल नहीं पाई और बीच में से चरररर की आवाज करती हुई फट गई । पैंटी पहनी नहीं थी जिस वजह से फटी हुई सलवार में से घने और काले बाल बाहर की तरफ दिखने लगे ।

जैसे ही गुंज़न ने ये महसूस किया गुंज़न के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई । गुंज़न बिजली की फुर्ती से खड़ी हुई और अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु.बोलकर धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". गुंज़न के दिल में ये ख्याल आता है.उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है.

जैसे ही गुंज़न गई धरमवीर को झटका सा लगा जैसे किसी सपने से जागे हों । धरमवीर सिह ने आज पहली बार अपनी बहन की जवानी की तरफ ध्यान दिया था ।
धरमवीर सोचने लगा कि गुंज़न कितनी गदराई हुई है। उसके चौड़े चौड़े चूतड़ जैसे निमंत्रण दे रहे हों की आओ और हमारी चौड़ाई की वजह बनो ।

गुंज़न की जांघो के देखकर लगता है कि मेरा पूरा मुंह उन जांघों में छुप जाएगा । अचानक धरमवीर का हाथ लेटे लेटे अपने हल्लबी लंड पर चला गया जो अपनी औकात में खड़ा हो गया था। धर्मवीर के लंड का साइज़ 12 इंच था पूरा और मोटाई 4 इंच । धर्मवीर सोचने लगा कि मेरा लन्ड सिर्फ गुंज़न जैसी कोई प्यासी रांड ही झेल सकती है ।
और दोस्तो ये सच भी था कि धर्मवीर का लन्ड ही ऐसा था जो गुंज़न के फैले हुए चूतड़ों को पार करके उसकी गांड पर फतह पा सकता था।

अचानक धर्मवीर के मुंह से निकला - मेरी रांड बहु तुझे अगर शर्मीली से चुदक्क़ड रण्डी ना बना दिया , अगर मैंने तेरे चूतड़ों को फैलाकर उसमे मुंह ना फसाया , अगर तेरे काले घने बालों से ढके भोसड़े पर अपने लन्ड का परचम ना लहराया तो मै भी धरमवीर नहीं ।

वहां छत पर गुनज़ अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ
शालु चाय का कप ले कर अपने भाई सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.

शालु : सोनू ! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?

सोनू : (आँखे खोल के एक बार शालु को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) अभी सोने दीजिये ना...

शालु : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से..और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर

शालु टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी दीदी के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके दीदी की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है. सोनू शालु की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. शालु की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही
शालु की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. शालु जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.

शालु : नहीं सुनेगा तू सोनू?

सोोोनू : अच्छा दीदी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.

शालु : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..

वहां छत पर गुंज़न धर्मवीर की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "90इंच ... ना ना ...10 से 11 इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी धर्मवीर ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है.
धर्मवीर की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. गुंज़न ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए गुंज़न ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. गुंज़न ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के गुंज़न मुस्कुरा देती है फिर वो धर्मवीर के लंगोट को देखते हुए 2 उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर गुनज़ अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. गुंज़न धर्मवीर के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. गुंज़न ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे धर्मवीर के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो धर्मवीर के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक गुंज़न की बूर में घुस जाये.

धर्मवीर के १०-१५ दंड पलते ही गुंज़न की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". गुंज़न अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में गुंज़न होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही धर्मवीर को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. गुंज़न झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.
 

malikarman

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कहानी राजपुर के एक मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |

पिता : उमर 65 साल , परिवार के मुखिया.अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है 15 साल पहले ही पत्नी की accident की वजह से मौत हो गई थी इसलिए हर वक्त ये किसी ना किसी को चोदने की प्लानिंग करते रहते हैं। wild sex के शौकीन हैं।

राकेश - उमर 35 साल, धरमवीर का शादीशुदा बेटा ,एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.

बहु : गुंज़न ; उमर 31 साल 1 साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.ये फुल कपड़े पहनना पसंद करती है ज्यादातर साड़ी या सूट सलवार ही पहनती है । जब तक रात को इनकी ताबड़तोड़ चुदाई ना हो जाए इन्हे नींद नहीं आती ।इस कहानी की मुख्य पात्र भी है


बेटी/बहन : शालू सिंह ; . उमर 31 साल भाभी की जितनी । इनकी अभी शादी नहीं हुई है गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड

बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र 18 12 वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना.

सुबह के 8 बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए गुंज़न की आँखों पर पड़ती है. गुंज़न टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए गुंज़न की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.

9 बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है.
गुंज़न तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद शालु के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे शालु एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से शालु की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. गुंज़न शालु की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". गुंज़न उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.

गुंज़न : ओ महारानी ... 9 बज गए है. (शालु की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है?


शालु : (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस 5 मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!

गुंज़न : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ 5 मिनट. अगर 5 मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नही आई तो बाबुजी को भेजती हु

शालु : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का 5 मिनट में उठ जाउंगी.

(फिर शालु तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और
गुंज़न कमरे से बाहर चली जाती है)

छत पर

धर्मवीर अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. गुंज़न चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे गुंज़न ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना गुंज़न के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था.

गुंज़न कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.

गुंज़न : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय

जैसे ही गुनज़ चाय पास के टेबल पर रखने के लिए झुकी धर्मवीर का दिमाग सामने का नजारा देखकर भनभना गया ।
गुंज़न नीचे जैसे ही झुकी उसकी कुर्ती उसके विशाल भारी चूतड़ों को छुपाने में नाकामयाब होने लगी । उसके तबले जैसे दोनों चूतड़ चौड़े हो गए झुकने की वजह से । जैसा कि सलवार पहले ही जैसे तैसे फसाकर पहनी थी झुकने की वजह से वो दोनो चूतड़ों को संभाल नहीं पाई और बीच में से चरररर की आवाज करती हुई फट गई । पैंटी पहनी नहीं थी जिस वजह से फटी हुई सलवार में से घने और काले बाल बाहर की तरफ दिखने लगे ।

जैसे ही गुंज़न ने ये महसूस किया गुंज़न के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई । गुंज़न बिजली की फुर्ती से खड़ी हुई और अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु.बोलकर धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". गुंज़न के दिल में ये ख्याल आता है.उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है.

जैसे ही गुंज़न गई धरमवीर को झटका सा लगा जैसे किसी सपने से जागे हों । धरमवीर सिह ने आज पहली बार अपनी बहन की जवानी की तरफ ध्यान दिया था ।
धरमवीर सोचने लगा कि गुंज़न कितनी गदराई हुई है। उसके चौड़े चौड़े चूतड़ जैसे निमंत्रण दे रहे हों की आओ और हमारी चौड़ाई की वजह बनो ।

गुंज़न की जांघो के देखकर लगता है कि मेरा पूरा मुंह उन जांघों में छुप जाएगा । अचानक धरमवीर का हाथ लेटे लेटे अपने हल्लबी लंड पर चला गया जो अपनी औकात में खड़ा हो गया था। धर्मवीर के लंड का साइज़ 12 इंच था पूरा और मोटाई 4 इंच । धर्मवीर सोचने लगा कि मेरा लन्ड सिर्फ गुंज़न जैसी कोई प्यासी रांड ही झेल सकती है ।
और दोस्तो ये सच भी था कि धर्मवीर का लन्ड ही ऐसा था जो गुंज़न के फैले हुए चूतड़ों को पार करके उसकी गांड पर फतह पा सकता था।

अचानक धर्मवीर के मुंह से निकला - मेरी रांड बहु तुझे अगर शर्मीली से चुदक्क़ड रण्डी ना बना दिया , अगर मैंने तेरे चूतड़ों को फैलाकर उसमे मुंह ना फसाया , अगर तेरे काले घने बालों से ढके भोसड़े पर अपने लन्ड का परचम ना लहराया तो मै भी धरमवीर नहीं ।

वहां छत पर गुनज़ अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ
शालु चाय का कप ले कर अपने भाई सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.

शालु : सोनू ! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?

सोनू : (आँखे खोल के एक बार शालु को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) अभी सोने दीजिये ना...

शालु : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से..और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर

शालु टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी दीदी के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके दीदी की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है. सोनू शालु की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. शालु की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही
शालु की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. शालु जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.

शालु : नहीं सुनेगा तू सोनू?

सोोोनू : अच्छा दीदी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.

शालु : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..

वहां छत पर गुंज़न धर्मवीर की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "90इंच ... ना ना ...10 से 11 इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी धर्मवीर ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है.
धर्मवीर की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. गुंज़न ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए गुंज़न ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. गुंज़न ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के गुंज़न मुस्कुरा देती है फिर वो धर्मवीर के लंगोट को देखते हुए 2 उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर गुनज़ अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. गुंज़न धर्मवीर के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. गुंज़न ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे धर्मवीर के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो धर्मवीर के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक गुंज़न की बूर में घुस जाये.

धर्मवीर के १०-१५ दंड पलते ही गुंज़न की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". गुंज़न अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में गुंज़न होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही धर्मवीर को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. गुंज़न झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.
Lovely story...par kuchh naam galat ho raha hai Rakesh ki jagah raunak likh diya aapne aur pics bhi add kijiye
 
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उधर सोनू अंगडाई लेता हुआ अपने कमरे से जैसे ही बाहर निकला उसकी नज़र अपनी दीदी शालु पर पड़ी. शालु गले में तोवेल लिए हुए बाथरूम की तरफ जा रही थी. शालु ने टाइट पजामा पहना हुआ था जो पीछे से उसकी चौड़ी चूतडों पर अच्छी तरह से कसा हुआ था. शालू की बलखाती हुई चाल से उसके चुतड किसी घड़ी के पेंडुलम की तरह दायें -बाएँ हो रहे थे. सोनू ने अपनी गन्दी नज़र फिर से एक बार दीदी के चूतड़ों पे गड़ा दी और एक हाथ चड्डी में दाल के अपने लंड को मसलने लगा. तभी शालु के हाथ से उसकी ब्रा छुट के निचे गिर गई और वो उसे उठाने के लिए झुकी. शालु के झुकते ही उसकी चौड़ी चुतड पजामे में उभर के दिखने लगी. ये नज़ारा सोनू के लंड की नसों में खून भरने के लये काफी था. अपनी बहन की उभरी हुई चुतड देख उसके लंड ने विराट रूप ले लिया और एक एक नस उभर के दिखने लगी. सोनू ने बिना वक़्त गवाएँ दोनों हाथो को आगे कर के इस अंदाज़ में रखा जैसे शालु दीदी की कमर पकड़ रखी हो. फिर अपनी कमर को पीछे ले जा कर जोर से झटका दे कर ऐसे आगे लाया मानो पायल के चूतड़ों के बीच के छोटे से छेद में अपना विशाल लंड एक ही बार में पूरा ठूँस दिया हो. फिर वैसे ही अपनी कमर को आगे किये सोनू १-२ कदम आगे की ओर गया जैसे वो शालु की गांड के छेद में अपना लंड जड़ तक घुसा देना चाहता हो. तब तक शालु अपनी ब्रा उठा चुकी थी और बाथरूम में घुसने लगी. सोनू झट से अपने कमरे में घुस गया.

कमरे का दरवाज़ा बंद कर सोनू ने बिस्तर पर छलांग लगा दी और तकिये के निचे से एक कहानी की किताब निकाल के पन्ने पलटने लगा. एक पन्ने पर आते हे उसकी नज़रे टिक गई. एक हाथ किताब को संभाले हुए था और दूसरा हाथ चड्डी उतारने लगा था. चड्डी घुटनों से उतरते ही सोनू के हाथ ने लंड को अपनी हिरासत में ले लिया और लंड को अपने अंजाम तक पहुँचाने में लग गया. उसकी आँखे उस पन्ने में लिखे हर शब्द को ध्यान से पढ़ रही थी और हाथ लंड पे तेज़ रफ़्तार में चल रहा था. कुछ ही पलो में सोनू की कमर अपने आप ही बिस्तर से ऊपर उठने लगी और उसके शरीर ने किसी कमान (bow) का रूप ले लिया. सोनू का शरीर ऐसी अवस्था में था की अगर उसकी कमर बिस्तर से उठने के पहले किसी लड़की को उसके लंड पे बिठा दिया जाता तो सोनू का लंड ना केवल उस लड़की की बूर में जड़ तक घुस जाता बल्कि वो लड़की भी २ फीट हवा में उठ जाती. सोनू तेज़ी से अपना हाथ लंड पे चलाये जा रहा था. अचानक उसका बदन अकड़ने लगा और उसके मुहँ से कुछ शब्द फूट पड़े, "आह..!! शालु दीदी...!!". उसके लंड से सफ़ेद गाढ़े पानी के फ़ौवारे छुटने लगे. हर एक फ़ौवारे पर सोनू की कमर झटके खाती और उसके मुहँ से "आह.. दीदी" निकल जाता. ७-८ फ़ौवारे और हर फ़ौवारे पर
शालु का नाम लेने के बाद सोनू बिस्तर पर जंग में हारे हुए सिपाही की तरह निढ़ाल हो कर लेट गया. उसकी आँखे कब लग गई पता ही नहीं चला.

इस घटना से पहले एक और घटना हो चुकी थी जिसका अंदाज़ा सोनू को नहीं था. जब सोनू शालु की चुतड को देख के वो सारी हरकतें कर रहा था तब गुंज़न सीढीयों के पास खड़ी हो के वो सब देख रही थी..

गुंज़न वहां से सीधा अपने कमरे में आती है. बिस्तर पर लेटते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. "तो मेरा नन्हा देवर अपनी ही दीदी के पीछे लगा हुआ हैं. "दीदी तेरा देवर दीवाना तो सुना था पर यहाँ तो देवर अपनी ही दीदी का दीवाना है". गुंज़न के चहरे पर फिर से मुस्कान आ जाती है. " वो जरुर शालु की चुतड देख रहा होगा, और क्यूँ ना देखे. शालु की चुतड है ही ऐसी की किसी का भी लंड खड़ा कर दे. भाई-बहन का मिलन तो अब करवाना ही पड़ेगा. शालु और सोनू को बिस्तर पर एक साथ नंगा सोचते ही बदन में आग लग गई. सच में देखूंगी तो ना जाने क्या होगा ?". गुंज़न शालु और सोनू के बारें में सोचते हुए मुस्कुराये जा रही थी. उसका दिमाग वो सारे उपाए खोजने में लग गया जिस से सोनू और शालु के भाई बहन वाले पवित्र रिश्ते को लंड और बूर के गंदे रिश्ते में बदल दिया जाए.

नाश्ते की मेज़ पर सोनू और शालु आमने सामने बैठे हैं. सोनू अपने स्कूल ड्रेस में है और शालु ने एक नीले रंग की टॉप और लम्बी स्कर्ट, जो उसके घुटनों से थोड़ी निचे तक है, पहन रखी हैं. शालु नाश्ता करने में व्यस्थ है. लेकिन सोनू की नज़र रोज की तरह अपनी दीदी पे गड़ी हुई है. नाश्ता करते हुए सोनू बार बार कनखियों से शालु की टॉप में उठी हुई गोल गोल चूचियां देख रहा है. शालु नाश्ता करते हुए अपने फ़ोन में देख रही है और वो कभी अपनी लटो को ऊँगली से कान के पीछे कर रही है तो कभी बालों को झटक के कंधो के पीछे. उसकी हर अदा पे सोनू कभी मुहँ के अन्दर ही अपनी जीभ दाँतों से दबा देता है तो कभी अपनी जांघो को आपस में चिपका के लंड को दबा देता है. शालु मुहँ बंद करके खाना चबा रही है और उसके गुलाबी रसीले ओंठ सोनू का बुरा हाल कर रहे हैं. पायल के रसीले ओंठ देख कर सोनू मेज़ के निचे अपनी कमर उठा के २-३ झटके भी दे चूका था.

सोई में खड़ी गुंज़न दोनों को गौर से देख रही थी, ख़ास कर सोनू को. सोनू की हर हरकत का वो पूरा मज़ा ले रही थी. कुछ देर बाद गुंज़न रसोई से आवाज़ लगाती है.

गुंज़न : और कुछ लोगे तुम दोनों ?

शालु : भाभी मेरे लिए आधा पराठा ला दीजिये प्लीज..!

गुंज़न : अभी लायी.. ( ये लीजिये पायल जी, आपका आधा पराठा...

शालु : थैंक्यू भाभी.. यू आर दी बेस्ट...

गुंज़न : सोनू.. तू क्या लेगा ? (ये कहते हुए अपना एक हाथ शालु के कंधे पर रख देती है)

सोनू : (नज़रे शालु की टॉप में उभरी हुई चुचियों पर है. गुनज़न की आवाज़ सुन के वो हडबडा जाता है) अ..अ... कुछ नहीं भाभी... और कुछ नहीं... मेरा हो गया बस...

गुंज़न : गुंज़न सोनू को देखते हुए मुस्कुरा देती है और शालु के पीछे खड़ी हो के दोनों हाथों को उसके कन्धों पे रख देती है) अभी तो शरुवात हुई है देवरजी .... ऐसे ही छोटे मोटे खाने से पेट भर जायेगा तो जब असल में खाने का वक़्त आएगा तो क्या करोगे ?

सोनू : नहीं भाभी... सच में पेट भर गया मेरा. और नहीं खा पाउँगा...

गुंज़न : (अपनी आँखे गोल घुमाके ऊपर देखती है और लम्बी सांस छोड़ती है. "चूतिया है साला.... जहाँ दिमाग लगाना है वहां नहीं लगाएगा", गुंज़न मन में सोचती है. फिर वो शालु की नीली टॉप को देखते हुए कहती है) अरे वाह ...!! ये टॉप तो तुझ पे जच रही है. कब ली ?

शालु : २ दिन पहले ही ली है भाभी. सॉरी मैं आपको दिखाना भूल गई...

गुंज़न : कोई बात नहीं . जरा देखू तो कैसी टॉप है तेरी. वाह...!! ये तो बहुत अच्छी है पायल. और ये क्या लिखा है तेरी टॉप पे ?... (टॉप पर गुदी हुई प्रिंटिंग देखने के बहाने गुंज़न टॉप को धीरे से निचे की ओर खींचती है जिस से शालु की बड़ी बड़ी चुचियों पर पहले से ही कसी हुई टॉप और भी ज्यादा कस जाती है. शालु की बड़ी बड़ी चुचियों के अनारदाने टॉप के ऊपर उभर के दिखने लगते है)..."घर की लाड़ली"... एक दम सही लिखा है तेरी टॉप पर शालु. मेरी प्यारी ननद घर की लाड़ली ही तो है....

शालु : (प्यार से ) थैंक्यू भाभी...!!

सामने बैठे सोनू को ना भाभी की बात सुनाई दे रही थी और ना ही शालु की. उसकी आँखे तो शालु की टॉप में उभरे उन दो अनारदानों पर टिकी हुई थी. उसकी आँखे बड़ी हो गई थी और मुहँ खुला का खुला. हाथ में पराठे का वो टुकड़ा उसके मुहँ में जाते जाते रुक गया था. गुंज़न तिरछी नज़रों से सोनू को देख रही थी. तभी गुंज़न गंदे दिमाग में एक ख़याल आया.

गुंज़न : फिटिंग तो अच्छी है शालु और टॉप के गले का शेप भी अच्छा है. बस इस टॉप को ना तू थोड़ा सा आगे कर के पहना कर. पीछे खींच कर पहनेगी तो उतनी फिट नहीं आएगी. रुक मैं ठीक कर देती हूँ (गुंज़न टॉप को पीछे से थोड़ा ऊपर की और खींचती है और फिर आगे से थोडा निचे. टॉप का गला पहले से ही हल्का सा गहरा था जो अब टॉप के निचे होने से और गहरा हो गया था. अब शालु की बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगी थी) हाँ... परफेक्ट ..!! अब एक दम सही है ...

शालु : भाभी मानना पड़ेगा. आपकी ड्रेसिंग सेंस सच में बहुत अच्छी है.

गुंज़न : जानती हूँ रानी ... तेरे भैयाँ क्या ऐसे ही मेरे दीवाने है ? (गुंज़न चुपके से सोनू को देखती है तो उसकी नज़रे शालु की टॉप के गहरे गले से दिख रही चुचियों के बीच की गली पर टिकी है. गुंज़न झट से शालु के पीछे जाती है और उसके कन्धों से थोड़ा निचे, बाँहों की ओर, दोनों तरफ हाथ रख देती है. इस बार गुनज़ अपने हाथों को हल्का सा घुमाव देते हुए आगे की ओर दबाती है जिस से टॉप का गला आगे से ढीला हो कर और भी ज्यादा गहरा हो जाता है साथ ही साथ दबाव से की शालु बड़ी बड़ी चूचियां आपस में चिपक जाती है. अब शालु की टॉप के गहरे गले से चुचियों की हलकी सी गोलाई और बीच में एक लम्बी सी गली साफ़ साफ़ दिखाई पड़ने लगती है. गुंज़न अब सोनू से कहती है) क्यों देवर जी ? जरा देख कर बताइए... कैसी लग रही है मेरी प्यारी ननद रानी ?

सोनू अपनी नज़र पहले शालु के चेहरे पर डालता है.
शालु फ़ोन में कुछ देख रही है. फिर उसकी नज़र भाभी पर पड़ती है. भाभी के चेहरे पे कुटिल मुस्कान है. भाभी सोनू को देखते हुए एक बार अपनी आँखे छोटी करती है और हल्का सा आगे झुक के सोनू की आँखों में देखती है. गुंज़न के दोनों हाथ एक बार फिर घुमाव के साथ शालु की बाहों को दबातें है और उसकी नज़रे जो सोनू की आँखों में देख रही थी वो अब शालु की टॉप के गहरे गले की और इशारा कर रही है. भाभी की इस हरकत से सोनू डर जाता है. लेकिन था तो वो अव्वल दर्जे का कमीना. उसका कमीनापन उसके डर पे भारी पड़ता है और नज़रे धीरे धीरे शालु की टॉप से दिख रही चुचियों की गहराई पर पड़ती है. वो नज़ारा देख के सोनू की जीभ अपने आप की ओठों पर घूम जाती है. बहन की चुचियों के बीच की उस गहराई को सोनू पहली बार इतने करीब से देख रहा था. पैंट में उसका लंड अंगड़ाईयाँ लेने लगा था.


गुंज़न गए देवरजी? बताया नहीं, कैसी लग रही है मेरी प्यारी ननद?

सोनू : (झेंपते हुए) वो..वो.. अच्छी लग रही है भाभी....

गुंज़न : और ये गहराई कैसी लगी?

सोनू : (भाभी का सवाल सुन के उसके होश उड़ जाते है) क...को.. कौनसी गहराई भाभी...??

गुंज़न : अरे बाबा... इस नीले टॉप के रंग के गहराई की बात कर रही हूँ. बहुत गहरा है ना ? (गुंज़न सोनू को दख के झट से आँख मार देती है)

सोनू : (सोनू समझ जाता है की भाभी क्या पूछ रही है. भाभी के आँख मारने से सोनू का डर थोडा कम हो गया है) हाँ भाभी.... बहुत गहरा है.

तभी शालु अपनी प्लेट ले कर खड़ी होती है और रसोई की और चल देती है. शालु के जाते हे गुंज़न धीमी आवाज़ में सोनू से बात करने लगती है.

गुंज़न : तो सोनू जी... बोलिए, मज़ा आया ?

सोनू : किस बात में भाभी ?

गुंज़न : देख सोनू... ज्यादा बन मत. सुबह से देख रही हूँ तुझे. शालु की चुचियों को ऐसे घुर रहा है जैसे अभी उसकी टॉप फाड़ के दोनों चूचियां दबोच लेगा.

सोनू : ये आप क्या बोल रहे हो भाभी ? वो मेरी दीदी है. मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता.

गुंज़न : अच्छा ? सोच भी नहीं सकता ? तो सुबह जो शालु की चुतड को देख के अपनी कमर को झटके दे रहा था वो क्या था ? अपनी दीदी के लिए प्यार ?

गुंज़न की ये बात सुन के सोनू के होश उड़ जाते हैं. उसका बदन सफ़ेद पड़ जाता है जैसे काटो तो खून नहीं. लड़खड़ाती आवाज़ में सोनू उर्मिला से कहता है.

सोनू : भा..भा.. भाभी प्लीज.... मुझे माफ़ कर दीजिये. अब मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा... आप पापा से कुछ मत कहियेगा प्लीज भाभी....

सोनू की हालत देख के गुंज़न को हंसी आ जाती है.

गुंज़न : (हँसते हुए) तू एकदम पागल है सोनू. अगर मुझे पापा जी को बताना होता तो मैं सुबह हे बता देती. और मैं क्या तुझे शालु का वो नज़ारा देखने में हेल्प करती ?

सोनू : तो क्या भाभी आप मुझसे गुस्सा नहीं है?

गुंज़न : (सोनू के बालों में हाथ फेरते हुए) नहीं रे पागल.. मैं बिलकुल भी गुस्सा नहीं हूँ. सच कहूँ तो मुझे अच्छा लगा की तू शालु के साथ ये सब कर रहा है.

गुंज़न की बात सुन के सोनू का सर घूम जाता है. वो समझ नहीं पा रहा था की भाभी को अच्छा क्यूँ लग रहा है.

सोनू : लेकिन भाभी... आपको ये सब अच्छा क्यूँ लग रहा है ?

गुंज़न : वो इसलिए मेरे छोटे देवरजी क्यूंकि तू ये सब कर के एक तरह से शालु की मदद कर रहा है. एक सच्चे भाई होने का फ़र्ज़ निभा रहा है.

सोनू : मैं कुछ समझा नहीं भाभी.

गुंज़न : अभी तेरे स्कूल का समय हो रहा है. तू स्कूल जा. शाम को जब घर आएगा तो मैं तुझे सब समझा दूंगी. हाँ एक और बात. तू शालु या किसी और से इस बारें में बात मत करना. ये भाभी और देवर के बीच की बात हैं

भाभी का इशारा सोनू समझ जाता है. वो भाभी को अपने उस दोस्त की तरह देखता है जिस से वो अपने दिल की हर एक बात बता सके. चाहे वो बात शालु दीदी की हे क्यूँ ना हो.

सोनू : (मुस्कुरा के खुश होते हुए) थैंक्यू भाभी... आप बहुत अच्छी हो. मैं शाम को आऊंगा तो हम ढेर सारी बातें करेंगे.

गुंज़न : हाँ बाबा... करेंगे . लेकिन तू प्रॉमिस कर की तू मुझसे कुछ नहीं छुपायेगा, कुछ भी नहीं...

सोनू : हाँ भाभी ... प्रॉमिस... गॉड प्रॉमिस...

तभी शालु वहां आ जाती है.

शालु : और कितना पकाएगा सोनू भाभी को ? (फिर भाभी की ओर देख कर) भाभी आप भी इस गधे की बातों में आ जाती है. पता नहीं क्या क्या बकवास कर के सबको पकाता रहता है. गधा है ये गधा...

गुंज़न : अरे नहीं पायल ऐसा मत बोल मेरे देवर को. हाँ पर तेरी एक बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ. (गुंज़न सोनू को देखते हुए आँखों से उसकी पैंट की तरफ इशारा करते हुए कहती है) गधा तो ये है. और जब तू सामने आती है तो ये और भी बड़ा वाला गधा बन जाता है (ये कहते हुए सोनू को देख के आँख मार देती है. भाभी की बात पर कमीने सोनू को भी शर्म आ जाती है )

शालु : हाँ भाभी सही कहा आपने. और आप मिस्टर गधे .... चल नहीं तो स्कूल में लेट हो जाओगे..

तभी वाह धर्मवीर आ जाता है

धर्मवीर - शालु बेटा कहां के लिए ready हो रही है आज ।

शालु- जी पापाजी वो आज मुझे एक इंटरव्यू के लिए जाना है

सोनू सर झुका के बस्ता टाँगे शालु के पीछे पीछे चल देता है. जाते हुए वो एक बार मुड़ के भाभी को देखता है. गुंज़न के चेहरे पर अब भी वही मुस्कान है. वो सोनू को देख कर नजरो से शालु की हिलती हुई चुतड को देखने कहती है.

धरमवीर भी शालु को जाते देखकर अपनी पलक झपकना भूल गया क्युकी चलते हुए शालु के चूतड़ों का ऊपर नीचे होना धर्मवीर के दिल पर असर कर गया ।

धरमवीर सोचने लगा कि मै कितना गिरा हुआ इंसान हूं आजकल सबको देखकर मै गंदा सोचने लगा हूं ऐसा सोचते ही धरमवीर के अंदर का शैतान बोला उनकी गदराई हुई गान्ड और उभरी हुई छातियां इस बात का सबूत है कि उन्हें कोई कसकर चोदने वाला चाहिए जो उन्हें दौड़ा दौड़ा कर चोदे । अब शालु की ही गान्ड देखले अभी तो तेरी बेटी की शादी भी नहीं हुई है और इसका बदन ऐसा हो रहा है जैसे अगर जमकर चोद दी जाए तो एक साथ दो बच्चे पैदा कर देगी । धर्मवीर सोचने लगा इसमें गलती शालु की भी नहीं है क्युकी उसकी उमर भी 31 साल हो गई है और शादी हुई नहीं है अभी तो उसकी जवानी भी लौड़े खाने लायक है आखिर उसको भी होती है जरूरत महसूस ।
इतना सोचते सोचते धर्मवीर कपड़े पहन चुका था और घर से निकाल गया

शाम के ५ बज रहे है. गुंज़न रसोई में चाय बना रही है. तभी उसे गेट खुलने की आवाज़ आती है. २ मिनट के बाद सोनू घर में दाखिल होता है. अपना बस्ता सोफे पर फेक के वो सीधा रसोई में घुसता है.

सोनू : भाभी...मैं स्कूल से आ गया.


गुंज़न समझ जाती है की सोनू स्कूल से आने के बाद उसके साथ बैठ के बातें करने वाला था. लेकिन वो सोनू को थोड़ा परेशान करने के लिए कहती है.

गुंज़न : तो इसमें नया क्या है सोनू? वो तो तू रोज ही आता है (गुंज़न सोनू की तरफ बिना देखे अपना काम करते हुए कहती है)

सोनू : ह..हाँ भाभी रोज तो आता हूँ ... लेकिन वो... वो आज सुबह हमारी बात हुई थी ना? वो..वो आप बोल रही थीं की तू जब स्कूल से आएगा तो हम बातें करेंगे?

गुंज़न : (सर ऊपर उठा के याद करने का नाटक करती है) मैंने कहा था? मुझे तो याद नहीं?

गुंज़न की बात सुन के सोनू मायूस हो जाता है.


गुंज़न : ओ मेरे प्यारे देवरजी...!! सब याद है मुझे.... अब जल्दी से हाथ मुहँ धो के खाना खा लो. १० मिनट में मैं छत पर कपड़े डालने जा रही हूँ. जल्दी से आ जाना. शालु का पिछवाड़ा देखने में वक़्त गवां दिया तो फिर मुझसे बात नहीं कर पाओगे....

सोनू : (ख़ुशी से भाभी को देख के कहता है) थैंक्यू भाभी. मैं १० मिनट में पक्का छत पे आ जाऊंगा (और भाग के कमरे से निकल जाता है)

गुंज़न सोनू का उतावलापन देखती है. "शालु के पीछे बावला हो गया है. उसे देख के हमेशा इसका लंड खड़ा ही रहता है. लगता है जल्द ही कुछ कर के शालु को इसके खड़े लंड पे बिठाना ही पड़ेगा". और गुंज़न बिस्तर ठीक करने लगती है.

घड़ी में ५:२५ का समय हो रहा है. गुंज़न कपड़ो से भरी बाल्टी ले कर छत पे आती है और एक एक कपड़े निकाल के बारी बारी से रस्सी पर फैलाने लगती है. २ मिनट के बाद सोनू भी छत पर आता है. गुंज़न उसे देख लेती है.

गुंज़न : आ गया मेरा लाड़ला देवर...

सोनू : हाँ भाभी.. जैसे ही मैंने आपको ऊपर जाते देखा, फटाफट खाना खत्म किया और दौड़ता हुआ आपके पीछे ऊपर आ गया.

सोनू वैसे तो था बड़ा कमीना लेकिन उसने कभी भी घर वालो के सामने ये बात जाहिर नहीं होने दी थी. पहली बार वो किसी परिवार के सदस्य के सामने इस तरह से बातें कर रहा था. ..

सोनू : ...मेरी प्यारी भाभी ....प्लीज...प्लीज...मेरे लिए
शालु दीदी को मना दो ना...मैं आपका गुलाम बन जाऊंगा भाभी... आप जो बोलोगे वो मैं करूँगा...बस दीदी से मेरी सेटिंग करा दीजिये प्लीज भाभी....!!

सोनू का ये रूप देख के गुंज़न को मजा भी आता है और आशचर्य भी होता है, "कोई अपनी सगी बहन के लिए इतना पागल भी हो सकता है?", वो मन में सोचती है. फिर हँसते हुए कहती है.

गुंज़न : अरे अरे अरे...!! ये क्या सोनू ? मैं क्या कोई साहूकार हूँ? तुमने कोई क़र्ज़ लिया है मुझसे जो इस तरह से गिदगिड़ा रहा है ? (फिर प्यार से उसके बालों में हाथ फेरते हुए) पागल...तू मेरा प्यारा छोटा देवर है. तेरी ख्वाइश का ख़याल मैं नहीं रखूंगी तो और कौन रखेगा?

सोनू : (भाभी की बात सुन के सोनू का दिल जोर से धड़कने लगता है और चेहरे पे बड़ी से मुस्कान छा जाती है) सच भाभी..?? आप मेरे लिए शालु दीदी को सेट कर दोगी ना?

गुंज़न : कर तो मैं दूँ सोनू , लेकिन एक दिक्कत है...

सोनू : दिक्कत ? कैसी दिक्कत भाभी ?

गुंज़न : देख सोनू... तू जैसे मेरा देवर है, शालु भी मेरी ननद है. दोनों से मैं एक जैसा प्यार करती हूँ. मैं सिर्फ इस बात के भरोसे तेरी और शालु की सेटिंग नहीं करा सकती की वो तझे अच्छी लगती है. तुम दोनों सगे भाई बहन हो, कोई स्कूल या कॉलेज के बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड नहीं. भाई बहन के ऐसे गंदे रिश्ते में सिर्फ प्यार से काम नहीं चलता. प्यार के साथ कुछ और चीज़े भी होना जरुरी है.

सोनू : भाभी ... मैं दीदी से सिर्फ प्यार ही नहीं करता. दीदी के लिए मैं पागल भी हूँ, हद से ज्यादा पागल भाभी. दीवाना हूँ मैं दीदी का (सोनू अपनी बातों से गुंज़न को यकीन दिलाने की कोशिश करता है)

गुंज़न : तेरा प्यार और दीवानापन तो मैं देख चुकी हूँ सोनू, और इस पर मुझे कोई शक नहीं है. टेंशन तो मुझे तेरे पागलपन की है. प्यार और दीवानगी में तू शालु के साथ चुदाई तो कर लेगा लेकिन बिना पागलपन के ये भाई बहन का रिश्ता अधुरा है. जब तक भाई और बहन के बीच पागलपन और हवास ना हो, उनके मिलन का कोई मतलब नहीं है.

गुंज़न इस खेल की पुरानी खिलाड़ी थीं. उसने अपनी बातों के जाल में अच्छे अच्छों को फसाया था तो ये 18 साल का सोनू किस खेत की मुली था.गुंज़न की बातें सुन के सोनू और भी ज्यादा उत्तेजित हो जाता है क्यूंकि वो जानता है की शालु के लिए उसके दिल में प्यार से कहीं ज्यादा हवस और पागलपन है. वो जानता है की भाभी जो ढूंड रही है वो सोनू के अन्दर
शालु के लिए कूट कूट के भरी है - हवस और पागलपन. लेकिन सोनू ये नहीं जानता था की गुंज़न का खेल क्या था.
गुंज़न ने बड़ी चालाकी से सोनू को अपनी उस हवस और पागलपन को उसके सामने ज़ाहिर करने पर मजबूर कर दिया था जिसकी झलक वो आज सुबह सीढ़ियों के पास खड़ी हो कर देख चुकी थीं.

सोनू : (अब और भी ज्यादा उत्तेजित हो चूका था) भाभी मेरा यकीन मानिये. दीदी के लिए मेरे अन्दर हवस और पागलपन के अलावा कुछ नहीं है. दीदी को देखता हूँ तो हवस से मेरा लंड खड़ा हो जाता है. जी करता है की दीदी को वहीँ ज़मीन पर पटक के अपना पूरा लंड उनकी चुत में ठूँस दूँ.

गुंज़न : अच्छा ? ऐसे ही अपना लंड शालु की चुत में ठूँस देगा? शालु ने टॉप और पजामा पहना हो तो?

सोनू : (शालु को याद करके उसकी आँखे हवस से लाल हो गई है. वो बेशर्मी से गुंज़न के सामने ही पैंट के ऊपर से अपना लंड दबाते हुए कहता है) तो मैं दीदी की टॉप फाड़ दूंगा भाभी. उसका पजामा खींच के उतार दूंगा और फिर अपना मोटा लंड दीदी की बूर में पूरा ठूँस दूंगा.

गुंज़न : हु...पूरा ठूँस दूंगा..!! तेरा है ही कितना बड़ा जो
शालु की बूर में ठूँस देगा. शालु जैसी जवान और गदरायी लड़कियों की बूर मोटे तगड़े लंड के लिए होती है, तेरे जैसे छोटे बच्चों के भींडी जैसी नुन्नी के लिए नहीं.

गुंज़न की इस बात ने सीधा सोनू के अपने लंड के बड़े होने के अहंकार पर वार किया था. इस से भी ज्यादा सोनू को इस बात से ठेस पहुंची थी की भाभी उसके लंड को शालु की बूर के काबिल नहीं समझ रही थी.

सोनू : मेरी नुन्नी नहीं, मोटा लंड है भाभी. और इतना मोटा और लम्बा है की दीदी की बूर में डालूं तो बच्चेदानी तक पहुँच जाए.

सोनू ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए अपनी शॉर्ट्स को एक झटके से निचे कर दिया. उसका 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा लंड किसी स्प्रिंग की भाँती उच्चल के गुंज़न को सलामी देना लगा. लंड के उच्चलने से उसके चिपचिपे पानी की कुछ बूंद
गुंज़न के चेहरे और ब्लाउज पर उड़ जाती है.


सोनू : देखा भाभी...!! अब बोलिए, क्या ये नुन्नी है ?
शालु इसे अराम से ले लेगी या मुझे दबा के ठूंसना होगा ?

सोनू के विकराल लंड को गुंज़न आँखे फाड़ फाड़ के देख रही थी. वैसे राकेश का लंड भी कुछ कम नहीं था लेकिन सोनू के पूरे लंड पर फूल कर उभरी हुई नसें उसके लंड को बेहद मजा देना वाला बना रही थीं. सोनू का लंड देख के कुछ पल के लिए गुंज़न की बोलती बंद हो गई. फिर उसने छत के चारों तरफ अपनी नज़रे दौड़ाई और देखा की कोई पड़ोसी तो आसपास नहीं है.

गुंज़न : सचमुच सोनू... तेरा तो पूरा का पूरा मरदाना लंड है. इसे जब तू शालु की कसी हुई बूर में डालेगा तो वो कसमसा जाएगी.

फिर गुंज़नदौड़ कर छत के दरवाज़े के पास जाती है और एक नज़र सीढ़ियों पर डाल कर दरवाज़े की कुण्डी बाहर से लगा देती है. वो सोनू के पास आती है और उसका हाथ पकड़ के छत के कोने में रखी पानी की टंकी के पीछे ले जाती है.
 

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पानी की टंकी छत के एक कोने में स्थीत है. टंकी के पीछे एक त्रिकोण आकार का छत का खाली हिस्सा है जिसके दोनों तरफ छत की ऊँची दीवार और तीसरी तरफ पानी की टंकी है. गुंज़न सोनू का हाथ पकड़ के वहां ले आती है और निचे बैठ जाती है. सोनू का हाथ पकडे हुए गुंज़न कहती है

गुंज़न : आ सोनू. मेरे सामने बैठ.

सोनू गुंज़न के सामने बैठ जाता है. उसका मोटा लंड अब भी शॉर्ट्स के बाहर ही है.

गुंज़न सोनू के सामने पहले तो पेशाब करने वाली पोजीशन में बैठती है और अपनी साड़ी निचे से उठा के कमर तक चढ़ा लेती है. फिर वो ज़मीन पर बैठ जाती है और पीछे हो कर अपना सर दोनों तरफ की दीवारों के बीच टिका देती है. गुंज़न
धीरे धीरे अपने पैरों खोलती है और उसकी चुत सोनू के सामने खुल के आ जाती है. गुंज़न की चुत के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल है. बूर के ओंठ आपस में चिपके हुए है जिनके बीच से चिपचिपा पानी रिस रहा है.
गुंज़न प्यार से सोनू की तरफ देखती है और कहती है.
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गुंज़न : अपनी भाभी का खज़ाना कैसा लगा देवर जी ?

सोनू भले ही कितना भी बड़ा कमीना हो लेकिन उसने कभी भी गुंज़न को उस नज़र से नहीं देखा था. जब गुंज़न
शादी कर के नयी नयी इस घर में आई थी तब से उसने सोनू को बहुत प्यार दिया था. पापा की मार से बचाने से ले कर दोस्तों के साथ फिल्म देखने के पैसो तक भाभी ने हमेशा से ही उसका साथ दिया था. वो भाभी को कभी इस हाल में भी देखेगा उसने कभी नहीं सोचा था. सोनू एक बार गुंज़न
भाभी की बूर पर नज़र डालता है और फिर पीछे हट जाता है.

सोनू : नहीं भाभी. ये मुझसे नहीं होगा. आप मुझे बहुत प्यारी है. देखिये ना ...(अपने छोटे होते हुए लंड की तरफ इशारा करते हुए)... अब तो इसने भी मना कर दिया है.
गुंज़न सोनू की तरफ बड़े ही आश्चर्यता से देखती है. उसे यकीन ही नहीं होता है की जो लड़का अपनी बहन के पीछे लंड खड़ा किये घूमता है वो अपनी भाभी की खुली बूर से दूर भाग रहा है. तभी गुंज़न के विचार में आये उस 'बहन' शब्द ने सारा मामला सुलझा दिया.गुंज़न ने अँधेरे में एक तीर चला दिया.

गुंज़न : (अपने हाथ की दो उँगलियों से बूर के ओठों को थोड़ा खोलते हुए) देख सोनू... ध्यान से देख. ये बूर तेरी भाभी की थोड़ी ना है. ये तो तेरी शालु दीदी की बूर है.
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गुंज़न की बात सुन के सोनू गौर से उसकी बूर को देखने लगता है. उसकी नज़रे गुंज़न बूर की फांक में धँस जाती है. सोनू को अपनी बूर को इस तरह से घूरता देख गुंज़न का हौसला बढ़ जाता है.


गुंज़न : (अपनी कमर को थोड़ा उठा के अपनी बूर को सोनू के और करीब ले जाती है) अपनी शालु दीदी की बूर को देख सोनू. कैसे तुझे बुला रही है. तुझे याद करके देख कैसे पानी छोड़ रही है. (फिर गुंज़न झट से अपने हाथ पीछे पीठ पर ले जा कर ब्राका हुक को खोल देती है. फिर वो ब्लाउज के आगे के हुक्स फटाफट खोल के ब्रा उतर देती है. दोनों हाथों से ब्लाउज को आगे से जैसे ही खोलती है, उसकी 36 डी की बड़ी बड़ी चूचियां उच्चल के बाहर आ जाती है. अपनी एक चूची को पंजे से दबोच के दबाते हुए गुंज़न कहती है) ए सोनू...!! देख तेरी शालु दीदी अपनी खुली बूर और नंगी चुचियों के साथ तुझे बुला रही है. आ... अपनी शालु दीदी की प्यास बुझा दे मेरे रजा भैया
भाभी के मुहँ से 'भैया' शब्द सुनते ही सोनू के सामने पायल की तस्वीर आ जाती है. वो भाभी को देखता है तो उसे
शालु दीदी नज़र आने लगती है. सोनू का छोटा होता लंड एक झटके के साथ फिर से खड़ा हो जाता है. सोनू के मुहँ और लंड दोनों से लार टपकने लगती है. वो भाभी पर छलांग लगा देता है.



सोनू : (गुंज़न पर चढ़ के उसकी बड़ी बड़ी चुचियों को पागलों की तरह चूमने लगता है. कभी चुचियों के ऊपर, कभी निचे, कभी दायें तो कभी बाएं. कभी वो दोनों निप्पलों को बारी बारी जोर जोर से चूसता है तो कभी दाँतों से काट लेता है. वो बार बार शालु का ही नाम ले रहा है) आह...!! मेरी शालु
दीदी, मेरी प्यारी दीदी, कितना तड़पाती हो अपने छोटे भाई को....आह ssssss .... दीदी....!!

सोनू की इस हरकत से गुंज़न पागल सी हो जाती है. २२ दिनों के बाद आज किसी मर्द ने उसे इस तरह से छेड़ा था. वो शालु का नाम ले कर सोनू को और जोश दिलाती है.

गुंज़न : सोनू तेरे सामने तेरी दीदी नंगी है. उसके नंगे बदन से खेल सोनू. तेरा जो दिल करे तू आज वो कर ले अपनी दीदी के साथ.

सोनू पुरे जोश में गुंज़न के बदन को चूमने और चाटने लगता है. चुचियों को जी भर के चूसने के बाद वो गुंज़न पेट को चूमने लगता है. उसकी गहरी नाभि में जीभ घुसा के अच्छे से चूमता और चाटता है. फिर सोनू की नज़र गुंज़न की फूली हुई बूर पर आ के ठहर जाती है. वो कुछ क्षण वैसे हे बूर को प्यासी नज़रों से देखता है फिर अपना सर गुंज़न की दोनों खुली जांघो के बीच धंसा देता है.

सोनू : उफ्फ्फ्फ़...... दीदी...!! (सोनू की जीभ मुहँ से औकात से भी ज्यादा बाहर निकल के सीधा गुंज़न की बूर की फांको के बीच घुस जाती है. बूर के अन्दर जीभ घुसा के सोनू उसे गोल गोल घुमाने लगता है)
5654875 गुंज़न ने कॉलेज में खूब मजे किये थे लेकिन ऐसा मज़ा आज उसे पहली बार मिल रहा था. इस नए मज़े का पहला स्वाद चखते हे गुंज़न के होश उड़ जाते है. उसकी आँखे बंद हो जाती है और हाथ अपने आप सोनू का सर पकड़ के जांघो के बीच और ज्यादा धंसा देते है

गुंज़न : आह....!!!!!! सोनू ssssss...!!! आज शालु दीदी की बूर चूस चूस के लाल कर देगा क्या?

सोनू : हाँ दीदी... आज मुझे इसका जी भर के रस पी लेने दो...

करीब 5 मिनट तक सोनू से बूर चुसवाने के बाद गुंज़न अपनी आँखे खोलती है. वो देखती है की उसकी बूर चूसते हुए सोनू अपने मोटे लंड पर हाथ चला रहा है. गुंज़न समझ जाती है की अभी इसे रोका नहीं गया तो वो अपना पानी गिरा देगा और उसकी बूर प्यासी ही रह जाएगी.

गुंज़न : सोनू...!! ओ मेरे प्यारे भैया...!! अपनी दीदी की बूर में अपना मोटा लंड नहीं ठूँसोगे? (गुंज़न अपनी कमर उठा के सोनू की आँखों के सामने बूर दिखाते हुए कहती है

गुंज़न की बूर में सोनू को शालु की बूर नज़र आ रही है. वो अपना मोटा लंड खड़ा किये फिर एक बार गुंज़न पर छलांग लगा देता है. सोनू का लंड एक बार बूर की दीवार से टकराता है और चिकनाई से फिसलता हुआ सीधा बूर के अन्दर धंस जाता है. धक्का इतनी जोर का था की गुंज़न की चुतड ज़मीन पर 'धम्म' की आवाज़ के साथ गिर जाती है और सोनू का लंड उसकी बूर में जड़ तक घुस जाता है. गुंज़न तो मानो जन्नत की सैर करने लगती है. सोनू की कमर को अपनी दोनों टांगो से जकड़ के और बाहों को उसके गले में डाले सोनू को चूमने लगती है.
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गुंज़न : मेरा सबसे प्यारा भैया...!! अपनी पायल दीदी का दुलारा...!! अपनी कमर को दीदी की जांघो के बीच उठा उठा के पटक सोनू...!!

सोनू : (पूरे जोश में अपनी कमर को उठा उठा के गुंज़न की जांघो के बीच पटके जा रहा है. टंकी के पीछे का वो छोटा सा त्रिकोनी हिस्सा 'ठप्प' 'ठप्प' की तेज़ आवाज़ से गूंजने लगता है) मज़ा आ रहा है दीदी? अपने छोटे भाई का मोटा लंड बूर में ले कर मज़ा आ रहा है?

गुंज़न : हाँ सोनू...!! बहुत मज़ा आ रहा है. और जोर से चोद अपनी बहन को.

सोनू पागलों की तरह गुंज़न क शालु समझ के चोदे जा रहा था. और आखिरकार वो पल आया जब सोनू का पूरा बदन अकड़ने लगा. उसके कमर की रफ़्तार तेज़ हो गई. चेहरे के भाव को गुंज़न ने पढ़ लिया था. गुंज़न के पैरों ने सोनू की कमर पे अपना शिकंजा और कस दिया, बाहों ने उसकी पीठ को सीने पर दबा लिया.

सोनू 'ओह दीदी', 'ओह शालु दीदी' करने लगा और उसकी कमर गुंज़न की जांघो के बीच पूरी तरह से धंस के झटके खाने लगी. उसका लंड गुंज़न की बूर की गहराई में वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ने लगा. गुंज़न ने भी अपनी बूर के ओठों को लंड पर कस के वीर्य की एक एक बूँद अपनी बूर में झडवा ली. अपने लंड को पूरी तरह से गुंज़न की बूर में खाली करने के बाद सोनू गुंज़न के ऊपर ही लेट गया. कुछ देर तक दोनों एक दुसरे को बाहों में लिए वैसे ही ज़मीन पर पड़े रहे.

सोनू ने अपनी आँखे खोली तो भाभी का मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके सामने था. वो अपनी आँखों में शर्म लिए गुंज़न के शरीर से उठता है. उठते ही उसका लंड गुंज़न की बूर से फिसलता हुआ 'फ़क्क' की आवाज़ के साथ निकल जाता है.
गुंज़न की बूर से सफ़ेद गाढ़े पानी की धार बहती हुई उसकी चूतड़ों की दरार में घुसने लगती है. सोनू के लंड पर से भाभी और उसके वीर्य का मिश्रण बहता हुआ लार की तरह टपक रहा है. सोनू भाभी को देखता है.

सोनू : भाभी ... आपको बुरा तो नहीं लगा ना?
गुंज़न : (हस्ते हुए) मुझे बुरा क्यूँ लगेगा? चुदाई तो शालु की हुई है ना? अच्छा अब अपने कपड़े ठीक कर और सबसे नज़रे बचा के निचे चले जा. कोई मेरे बारें में पूछे तो बोल देना की भाभी कपड़े सुखाने डाल के अभी आ रही है.

दोनों एक दुसरे को देख के हँस देते है. सोनू अपने कपडे ठीक कर के यहाँ वहां देखता हुआ निकल जाता है. गुंज़न वहीं बैठे हुए अपनी साड़ी ठीक करती है. वो सोनू को जाता हुआ देखती है और मुस्कुरा देती है . "गजब का बेहनचोद पैदा किया है मम्मी जी ने. लड़के अपनी भाभियों की बूर के लिए लार टपकाते उनके पीछे घूमते रहते है और एक ये बेहनचोद है जो भाभी की बूर को भी तब ही चोदता है जब वो उसे बहन की बूर कहती है". हँसते हुए खड़ी होती है और वहां से निकल कर खाली बाल्टी ले कर सीढ़ियों से निचे उतरने लगती है.
 
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Mass

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Hot update bhai.. waiting for next equally hot update..thx.
 
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Curiousbull

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कहानी राजपुर के एक मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |

पिता : उमर 65 साल , परिवार के मुखिया.अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है 15 साल पहले ही पत्नी की accident की वजह से मौत हो गई थी इसलिए हर वक्त ये किसी ना किसी को चोदने की प्लानिंग करते रहते हैं। wild sex के शौकीन हैं।

राकेश - उमर 35 साल, धरमवीर का शादीशुदा बेटा ,एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.

बहु : गुंज़न ; उमर 31 साल 1 साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.ये फुल कपड़े पहनना पसंद करती है ज्यादातर साड़ी या सूट सलवार ही पहनती है । जब तक रात को इनकी ताबड़तोड़ चुदाई ना हो जाए इन्हे नींद नहीं आती ।इस कहानी की मुख्य पात्र भी है


बेटी/बहन : शालू सिंह ; . उमर 31 साल भाभी की जितनी । इनकी अभी शादी नहीं हुई है गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड

बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र 18 12 वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना.

सुबह के 8 बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए गुंज़न की आँखों पर पड़ती है. गुंज़न टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए गुंज़न की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.

9 बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है.
गुंज़न तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद शालु के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे शालु एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से शालु की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. गुंज़न शालु की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". गुंज़न उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.

गुंज़न : ओ महारानी ... 9 बज गए है. (शालु की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है?


शालु : (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस 5 मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!

गुंज़न : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ 5 मिनट. अगर 5 मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नही आई तो बाबुजी को भेजती हु

शालु : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का 5 मिनट में उठ जाउंगी.

(फिर शालु तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और
गुंज़न कमरे से बाहर चली जाती है)

छत पर

धर्मवीर अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. गुंज़न चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे गुंज़न ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना गुंज़न के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था.

गुंज़न कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.

गुंज़न : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय

जैसे ही गुनज़ चाय पास के टेबल पर रखने के लिए झुकी धर्मवीर का दिमाग सामने का नजारा देखकर भनभना गया ।
गुंज़न नीचे जैसे ही झुकी उसकी कुर्ती उसके विशाल भारी चूतड़ों को छुपाने में नाकामयाब होने लगी । उसके तबले जैसे दोनों चूतड़ चौड़े हो गए झुकने की वजह से । जैसा कि सलवार पहले ही जैसे तैसे फसाकर पहनी थी झुकने की वजह से वो दोनो चूतड़ों को संभाल नहीं पाई और बीच में से चरररर की आवाज करती हुई फट गई । पैंटी पहनी नहीं थी जिस वजह से फटी हुई सलवार में से घने और काले बाल बाहर की तरफ दिखने लगे ।

जैसे ही गुंज़न ने ये महसूस किया गुंज़न के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई । गुंज़न बिजली की फुर्ती से खड़ी हुई और अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु.बोलकर धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". गुंज़न के दिल में ये ख्याल आता है.उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है.

जैसे ही गुंज़न गई धरमवीर को झटका सा लगा जैसे किसी सपने से जागे हों । धरमवीर सिह ने आज पहली बार अपनी बहन की जवानी की तरफ ध्यान दिया था ।
धरमवीर सोचने लगा कि गुंज़न कितनी गदराई हुई है। उसके चौड़े चौड़े चूतड़ जैसे निमंत्रण दे रहे हों की आओ और हमारी चौड़ाई की वजह बनो ।

गुंज़न की जांघो के देखकर लगता है कि मेरा पूरा मुंह उन जांघों में छुप जाएगा । अचानक धरमवीर का हाथ लेटे लेटे अपने हल्लबी लंड पर चला गया जो अपनी औकात में खड़ा हो गया था। धर्मवीर के लंड का साइज़ 12 इंच था पूरा और मोटाई 4 इंच । धर्मवीर सोचने लगा कि मेरा लन्ड सिर्फ गुंज़न जैसी कोई प्यासी रांड ही झेल सकती है ।
और दोस्तो ये सच भी था कि धर्मवीर का लन्ड ही ऐसा था जो गुंज़न के फैले हुए चूतड़ों को पार करके उसकी गांड पर फतह पा सकता था।

अचानक धर्मवीर के मुंह से निकला - मेरी रांड बहु तुझे अगर शर्मीली से चुदक्क़ड रण्डी ना बना दिया , अगर मैंने तेरे चूतड़ों को फैलाकर उसमे मुंह ना फसाया , अगर तेरे काले घने बालों से ढके भोसड़े पर अपने लन्ड का परचम ना लहराया तो मै भी धरमवीर नहीं ।

वहां छत पर गुनज़ अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ
शालु चाय का कप ले कर अपने भाई सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.

शालु : सोनू ! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?

सोनू : (आँखे खोल के एक बार शालु को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) अभी सोने दीजिये ना...

शालु : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से..और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर

शालु टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी दीदी के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके दीदी की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है. सोनू शालु की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. शालु की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही
शालु की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. शालु जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.

शालु : नहीं सुनेगा तू सोनू?

सोोोनू : अच्छा दीदी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.

शालु : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..

वहां छत पर गुंज़न धर्मवीर की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "90इंच ... ना ना ...10 से 11 इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी धर्मवीर ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है.
धर्मवीर की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. गुंज़न ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए गुंज़न ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. गुंज़न ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के गुंज़न मुस्कुरा देती है फिर वो धर्मवीर के लंगोट को देखते हुए 2 उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर गुनज़ अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. गुंज़न धर्मवीर के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. गुंज़न ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे धर्मवीर के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो धर्मवीर के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक गुंज़न की बूर में घुस जाये.

धर्मवीर के १०-१५ दंड पलते ही गुंज़न की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". गुंज़न अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में गुंज़न होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही धर्मवीर को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. गुंज़न झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.
Bhai raunak hai ya Rakesh clear kare
 
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