अगली सुबह शालु अंगडाई लेते हुए आँखे खोलती है. और
शाल ने जाकर गुंज़न से कहा भाभी जी उठिए ऐसा कहकर शालु ने गुंज़न का कम्बल खींचकर बैड से अलग कर दिया , जैसे ही कम्बल खींचा शालु के आंखे फटी की फटी रह गई उसके मुंह से बस इतना ही निकाल पाया - भ_भाभी ये क्या है ?गुंज़न बैड पर बिल्कुल नंगी पड़ी हुई थी उसका पिछ्वाड़ा गद्दों में धंसा हुआ था।गुंज़न के बदन और चूत बिल्कुल छत की तरफ मुंह खोले पड़ी थी ।
ये देखकर शालु ने मुंह फेर लिया और गुंज़न भी शर्मिंदगी महसूस करते हुए खड़ी होकर बॉडी पर तौलिया लपेट लिया ।
गुंज़न : (मुड़ के देखती है तो सामने शालु टॉप और पजामा पहने खड़ी है) अरे शालु ? आज सूरज किस दिशा से निकला है? तू आज इतनी सुबह कैसे उठ गई ?
नन्द जी आप चलिए मै आती हूं गुंज़न अपनी नाइटी उठा के बाथरूम में चली जाती है.
इतना सुनकर शालु सीधा अपने पापा के कमरे में entry कर चुकी थी शालु और वो दोबारा किसी का कम्बल खींचने की गलती नहीं करना चाहती थी । इसलिए उसने धर्मवीर के माथे पर हाथ फेरा और बोली - - पापाजी पापाजी उठिये सुबह हो गई है ।
इतना सुनकर धर्मवीर जी अंगड़ाई लेते हुए उठे ।
धर्मवीर मन ही मन में - आजकल दिन और रात दोनों की शुरआत बड़े ग़ज़ब तरीके से हो रही है , दोनों समय ये गदराई रंडियां ऐसे सामने आती है जैसे कह रही हो कि हमें सिर्फ लौड़े चाहिए ।
उधर गुंज़न रसोई में आकर गैस पर चाय चढ़ी देती है. तभी उसे शालु की आवाज़ आती है.
शालु : लाईये भाभी... मैं बर्तन धो दूँ..
गुंज़न : अरे मैं धो लुंगी. तू एक काम कर. वाशिंग मशीन में कुछ कपड़े है. तू उन्हें छत पर ले जार कर डाल दे.
शालु : ओके भाभी... एज़ यू विश...
शालु वाशिंग मशीन से कपड़ों को निकाल के एक बाल्टी में डाल देती है और सीढ़ियों की और बढ़ने लगती है. पिछसेमि्म््म््म्म््म््म््््म््म्म्
ेमि्म््म््म्म््म््म््््म््
गुंज़न उसे आवाज़ देती है.
गुंज़न : और हाँ ... शालु कपड़ों को पहले एक बार अच्छे से निचोड़ लेना....
शालु : हाँ भाभी... (और वो छत पर चली जाती है)
शालु के जाते ही धर्मवीर रसोई में आता है.
धर्मवीर : क्या कर रही हो बह
गुंज़न : (बाबूजी को देख कर) अरे बाबूजी आप? (वो आगे बढ़ कर पैर पढ़ने के लिए झुकती है. धर्मवीर एक नज़र
गुंज़न की नाईटी के ढील गले से दिख रही उसकी चुचियों के बीच की गली पर मार लेता है. गुंज़न पैर पढ़ के खड़ी हो जाती है) कुछ नहीं बाबूजी.
धर्मवीर ..! शालु है कहाँ? दिखाई नहीं दे रहीं?
गुंज़न : वो छत पर गई है बाबूजी कपड़े डालने. थोड़ी देर में आ जाएगी.
धर्मवीर : (कुछ पल की ख़ामोशी के बाद) मैं सोच रहा हूँ बहु की कसरत कर ही लूँ. एक दिन ना करूँ तो कल दिक्कत हो जाएगी. तुम एक काम करो. मेरी चाय छत पर ही ला दो. (नज़रे उठा के गैस पर चढ़े बर्तन को देखते हुए) चाय बन गई या अभी वक़्त है?
गुंज़न : थोडा वक़्त लगेगा बाबूजी. आप जाइये, मैं आपकी चाय ले कर आ जाउंगी.
धर्मवीर : हाँ...! तब तक मैं भी छत पर जा कर अपनी तैयारी कर लेता हूँ.
धर्मवीर के जाते ही गुंज़न पीछे घुमती है तो चाय उबल के गिरने को है. वो दौड़ कर गैस बंद करती है. "अभी गिर जाती. लगता है गैस ज्यादा ही खोल दिया था मैंने". फिर गुंज़न
चाय को कप में डालती है और सीढ़ियों पर चलते हुए छत पर जाने लगती है. चढ़ते हुए गुंज़न को छत के दरवाज़े के पास बाबूजी दिखाई पड़ते हैं. उनका चेहरा छत की तरफ है. वो सोचने लगती है की बाबूजी यहाँ क्या कर रहे हैं? वो दबे पाँव सीढ़ियों से थोडा और ऊपर जाती है. आगे का नज़ारा देख के उसके पैरो तले ज़मीन खिसक जाती है. छत पर शालु झुक के किसी कपड़े को दोनों हाथों से पकड़ के निचोड़ रही है. बिना ब्रा की टॉप और ढीला गला होने की वजह से उसकी बड़ी बड़ी चुचियों की गोलाइयों के बीच गहरी घाटी साफ़ दिखाई दे रही है. सामने दरवाज़े के अन्दर की दीवार के पीछे खड़े हो कर बाबूजी शालु की चुचियों के बीच की गहराई में अपनी नज़रे गड़ाये हुए है. उनका एक हाथ धोती के अन्दर है और धोती के आगे का हिस्सा जोर जोर से ऊपर निचे हो रहा है. कुछ पल तो गुंज़न उस नज़ारे को आँखे फाड़ फाड़ के देखती है. फिर उससे होश आता है. "हे भगवान ...!! बाबूजी जी भी ? इस लड़की की जवानी ने तो घर में आग लगा रखी है. सोनू क्या कम था जो अब बाबूजी भी अपना लंड खड़ा किये इसके पीछे लग गए हैं", गुंज़न मन में सोचती है. तभी शालु शर्ट की कॉलर को दोनों हाथो से पकड़ के आपस में रगड़ने लगती है. जोर से रगड़ने से उसके कंधे हिलने लगते है और दोनों चूचियां भी टॉप के ऊपर से हिलने लगती है. ढीले गले से चुचियों की गोलाइयाँ बीच बीच में आपस में टकरा भी रही है. ये देख के बाबूजी का हाथ धोती के अन्दर और तेज़ी से हिलने लगता है. अचानक बाबूजी धोती के अन्दर तेज़ी से हाथ चलाते हुए अपनी कमर आगे की और उठाके दीवार के पीछे आ जाते है. दुसरे हाथ से धोती को आगे से हटाते ही बाबूजी का पहला हाथ लंड पकडे बाहर आता है. गुंज़न धर्मवीर का लंड देख के घबरा जाती है. लगभग ११ इंच लम्बा और ३ इंच मोटा. नसें फुल के उभरी हुई. धर्मवीर झुक के एक नज़र शालु की हिलती हुई चुचियों पर डालते है, उनका हाथ और तेज़ी से चलने लगता है और लंड झटके खाता हुआ गाढ़ा सफ़ेद पानी उगलने लगता है. धर्मवीर पीछे झुक के शालु को देखते हुए अपने लंड की चमड़ी जब जब पीछे करते है, उनका लंड झटका खा कर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेंक देता है. ऐसे हे
धर्मवीर ८-१० बार लंड से पानी गिराते है और फिर लंड को धोती में छुपा लेते है. गुंज़न भी दबे पाँव सीढ़ियों से निचे आ जाती है. कुछ देर रुक कर वो सांस लेती है और फिर अपने पैरो को पटकते हुए सीढ़ियों से ऊपर जाने लगती है.
ऊपर धर्मवीर अपनी धोती ठीक कर रहे हैं. जैसे ही उन्हें क़दमों की आहट सुनाई देती है वो सतर्क हो जाते है.
गुंज़न : बाबूजी आप यहाँ? अब तक कसरत की तैयारी नहीं की आपने?
धर्मवीर : बस बस बहु..अभी करने ही वाला था. मैंने सोचा की शालु कपड़े डाल रही है. उसका हो जाए फिर मैं अराम से अपनी तैयारी कर लूँगा.
गुंज़न : ओह अच्छा...!! ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय...
सामने शालु छत के दरवाज़े पर धर्मवीर और गुंज़न को देख लेती है.
धर्मवीर : ऐसे ही रोज जल्दी उठा करो शालु . सेहत के लिए अच्छा होता है. और भाभी का काम में हाथ भी बटा दिया करना.
शालु : हाँ पापा जी. अब तो मैं रोज ऐसे हे जल्दी उठ जाया करुँगी और घर का काम कर लिया करुँगी भाभी के साथ.
शालु की बात सुन के गुंज़न मन में सोचती है. "हाँ...ताकि रोज सुबह बाबूजी तेरी चुचियों को हिलते हुए देखें और अपने लंड का पानी निकालें"
शालु : भाभी... आप चल रहे हो निचे?
गुंज़न : हाँ रुक मैं भी चलती हूँ. अच्छा बाबूजी हम चलते है. आप कसरत करिए और हम दोनों घर का काम.
रमेश : (हँसते हुए) ठीक है बहु.
गुंज़न और शालु बातें करते हुए सीढ़ियों से निचे उतरने लगते है. ऊपर से धर्मवीर बारी बारी दोनों की मटकती हुई चूतड़ों को देखते है फिर कसरत करने छत पर चले जाते हैं.
दोपहर के 1 बज रहे है. घर के सभी लोग खाना खा कर अपने अपने कमरों में अराम कर रहे है. गुंज़न बिस्तर पर लेटी हुई है. उसके दिमाग में सुबह की घटना बार बार घूम रही थी. "बाबूजी तो सोनू से भी दो कदम आगे निकले. सोनू का लंड भी
शालु को देख के खड़ा होता है, लेकिन कम से कम वो ऐसे उसे घूरते हुए तो लंड का पानी तो नहीं निकालता. अपने कमरे में जाता है, दरवाज़ा बंद करता है और फिर अपना काम करता है. बाबूजी तो सरेआम वहीँ खड़े हो के
शालु को घूरते हुए लंड हिला रहे थे. बेशरम है बाबूजी. सोनू के भी बाप". अपनी इस बात पर
गुंज़न को हंसी आ जाती है. "सच ही तो है. बाबूजी सोनू के बाप ही तो है. दो क्या, वो तो ४ कदम आगे रह सकते है. और ये शालु भी बड़ी किस्मत वाली है. घर के दोनों लंड उसकी बूर के लिए उतावले हो रहे है. उसकी गदराई जवानी देख कर किसी दिन बाप बेटे पगला गए तो दोनों एक साथ अपना लंड
शालु की बूर में ठूँस देंगे. फिर उच्चलती रहेगी दोनों बाप बेटे के बीच, कभी हाय पापा तो कभी हाय भैया चिल्लाते हुए". ऐसे ही गंदे ख्यालों के मन में आते ही उर्मिला के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है. कुछ देर बिस्तर पर पड़े रहने के बाद
गुंज़न कड़ी होती है और शालु के रूम की तरफ चल देती है.
वहां अपने रूम में शालु बिस्तर पर लेटी हुई है. कान के अन्दर हेडफोन्स घुसाए वो गाने सुन रही है.
गुंज़न : .. अरी ओ शालु रानी..!! सो रही है क्या? (शालु का कोई जवाब ना पा कर गुंज़न उसके पास जाती है और उसके कंधे हो हिलाते हुए कहती है) शालु...!!!
शालु : (हडबडा के आँखे खोलते हुए) अरे भाभी आप? सॉरी... मैं हेडफोन्स लगा के थी तो मुझे पता ही नहीं चला.
गुंज़न : (बिस्तर पर शालु के पास बैठते हुए) कोई बात नहीं. ननद भाभी के बीच नो सॉरी नो थैंक्यू. वैसे नन्द रानी जी कैसा रहा आज का दिन ।ये बोलते हुए गुंज़न थोड़ा शरमा गई क्युकी शालु ने उसे आज नंगी जो देख लिया था ।
शााालु भी मजाकिया लहजे में बोली - हां सुबह सुबह आज कामदेवी के दर्शन हो गए थे भाभी तो दिन अच्छा गया ।
ये सुनकर गुंज़न बुरी तरह शर्मा गई वो समझ गई थी कि शालिुुु किस कामदेवी की बात कर रही है ।
गुंज़न - अब नन्द रानी खुद आकर कम्बल खींचेगी और देखेंगी तो इसमें मै क्या करती ।
शालु - चलो माफ करो भाभी दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी और मै कौन सा कोई आदमी हूं एक लड़की हूं आपकी नन्द हूं देख लिया तो क्या हो गया । और वैसे आप ऐसी हालत में क्यों सोती हो कपड़े पहनकर सो जाया करो ।
गुंज़न- अच्छा । hehehe अब तुम बताओगी मुझे की मै कैसे साउं । ये कहकर उपासना हंस पड़ी हाँ एकदम सही कहा... वैसे शालु, तू इतनी सुन्दर है, दूध जैसी गोरी. तेरी फिगर भी एकदम बॉलीवुड की हीरोइन की तरह है.गाँव में तो बहुत से लड़के तेरे पीछे होंगे ना?
भाभी के इस सवाल पर शालु थोडा शर्मा जाती है.
शालु : (थोडा शर्माते हुए) हाँ..!! पीछे तो पड़ते है...लेकिन भाभी मैं किसी को भी भाव नहीं देती... ...
गुंज़न : अरे मैं ये सब एक सहेली के नाते पूछ रहीं हूँ. ऐसा नहीं है की मैं ये सब घरवालों को बता दूंगी. और एक राज़ की बात बताऊँ? मैं जब कॉलेज में थी तो मैंने एक साथ ३ लड़कों को फंसा रखा था...
गुंज़न की बात सुन के शालु फ़ोन लॉक कर के बिस्तर पर उठ के बैठ जाती है और बड़ी बड़ी आँखों से भाभी को देखते हुए कहती हैं.
शालु : क्या बोल रहे हो आप भाभी? एक साथ ३ लड़के?
गुंज़न : हाँ और क्या? कोई मेरा फ़ोन रिचार्ज करा देता था, कोई मुझे शौपिंग करा देता था तो कोई रोज मुझे कॉलेज से लेने और छोड़ने आता था.
शालु : (हँसते हुए) भाभी आप भी ना...!! सच में..!! ये सोच के ही मेरा दिल घबरा रहा है.
गुंज़न : क्यूँ ? वो लड़के मुझे गर्लफ्रेंड बना के अपने दोस्तों के सामने इतरा सकते है तो उसका थोडा भुगतान तो करना ही पड़ेगा ना?
शालु : लेकिन भाभी .... फिर तो वो लड़के भी आपके साथ 'वो' सब करते होंगे ना....
गुंज़न : वो सब? जरा खुल के बोलो शालु रानी. ये भाषा मेरी समझ में नहीं आती.
शालु : (मुस्कुराते हुए ) आई मीन भाभी...किस्सिंग, यहाँ वहां हाथ लगाना.....
गुंज़न : हाँss..!! थोडा बहुत तो करने देती थी. लेकिन इस से कभी कुछ ज्यादा नहीं.
गुंज़न(मुस्कुराते हुए) हम्म...! मतलब आपने अपने आप को भैया के लिए बचा के रखा था, हैं ना?
शालु : मैंने ऐसा तो नहीं कहा ....
भाभी का जवाब सुन के शालु के चेहरे का रंग उड़ जाता है.
शालु : मतलब भाभी आपने.... शादी से पहले ही वो सब.....
गुंज़न : शादी से पहले? पगली उस वक़्त तो मैं स्कूल में थीं, १२ वीं कक्षा में.
शालु : (बड़ी बड़ी आँखे कर के) बापरे भाभी..!! स्कूल में ही? वो क्या आपकी क्लास में था?
गुंज़न : अब वो कौन था ये मत पूछ. तू यकीन नहीं करेगी.
शालु : (हाथो से भाभी की जांघो को झिंझोड़ते हुए) भाभी प्लीज... बताइए ना...कौन था वो...प्लीज भाभी....
गुंज़न : रहने दे शालु. मेरी सारी बातें जान लेगी और जब तेरी बारी आएगी तो मुझे कुछ नहीं बताएगी तू.
शालु : सच भाभी...मैं भी आपसे कुछ नहीं छूपाउंगी....गॉड प्रॉमिस...
गुंज़न : वादा करती है? मुझसे सब शेयर करेगी? कभी कुछ नहीं छुपाएगी?
शालु : हाँ भाभी ... आई प्रॉमिस...
गुंज़न : (दोनों पैरों को उठा के बिस्तर पर रख लेती है और एक गहरी सांस लेकर) वो मेरे सगे चाचा का लड़का था, मेरा चचेरा भाई...
गुंज़न की बात सुन के शालु की आँखे बड़ी बड़ी हो जाती है, मुहँ खुल जाता है और उसका हाथ अपने आप ही मुहँ पर आ जाता है.
शालु : माई गॉड भाभी....आपने अपने भाई के साथ ही......
गुंज़न : तो इसमें क्या है ? देख ... जब लड़की की जवानी में आग लगती है ना, तो उसे सिर्फ लंड दिखाई देता है. अब वो लंड किसका है इस बात से उसे कोई फरक नहीं पड़ता. उस लंड से बूर की प्यास बुझनी चाहिए बस.
शालु : बात तो आपकी ठीक है भाभी. लेकिन.....(शालु कुछ सोच में पड़ जाती है)
गुंज़न : लेकिन? बोल ना? क्या पूछना चाह रही थी तू?
शालु : मैं ये बोल रही थी की आपकी बात से मैं सहमत हूँ की जब लड़की को कुछ कुछ होता है...
गुंज़न : ये क्या शाहरुख़ खान और काजोल की फिल्म चल रही है? मैडम .... फिल्म में जो 'कुछ कुछ होता है' वो दिल में होता है, यहाँ जो 'कुछ कुछ होता है' वो बूर में होता है. और मैंने तुझसे कहा ना की मेरी समझ में ये भाषा नहीं आती. खुल के बोल....
पायल : भाभी...आप भी ना..!! अच्छा भाभी आई एम सॉरी ... अब मैं उसी भाषा का इस्तेमाल करुँगी जो आपको समझ आती है, अब ठीक है?
गुंज़न : ये हुई ना बात...!! अब बोल, क्या पूछ रही थी तू ?
शालु : भाभी मैं बोल रही थी की आपकी बात से मैं कुछ हद तक सहमत हूँ की जब किसी लड़की को कु...मेरा मतलब है की उसकी बूर में आग लगती है तो उसे सिर्फ लंड ही दीखता है. लेकिन भाभी इसका ये मतलब तो नहीं की वो किसी का भी लंड ले ले... चचेरा भाई भी तो आखिर भाई ही होता है ना?
गुंज़न : पगली तू चचेरे भाई की बात कर रही है ? यहाँ को लड़कियां अपने सगे भाई का लंड भी ले लेती है....
गुंज़न की बात सुन के शालु की आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुल जाता है.
शालु : छीssss भाभी...!!! कुछ भी बोल रही हैं आप.
गुंज़न : अरे सच बोल रही हूँ. भाई तो छोड़, लडकियाँ तो अपने बाप का लंड भी ले लेती है....
ये सुन के शालु फिर से हाथों से अपने कान बंद कर लेती है और आँखे भी.
शालु : छीssssss भाभी...आप कितनी गन्दी हो...
गुंज़न : वाह री मेरी ननद रानी..!! बाहर कोई लड़की अपने बाप भाई से चुदवाये और गन्दी बनू मैं?
शालु : भाभी मेरे कहने का मतलब है की कहीं भी ऐसा कुछ नहीं होता. ये सब आप मुझे परेशान करने के लिए बोल रहीं है...हैं ना?
गुंज़न : हाँ हाँ ... तू मेरी सबसे बड़ी दुश्मन जो है. मैं तुझे वही बता रही हूँ जो सच में घरों में होता है. तुझे परेशान कर के मुझे क्या मिलेगा पर नन्द रानी मै ये सोच रही हूं तुम्हारी जवानी कैसे इतनी भर रही है । मुझे तो कुछ दाल में काला लग रहा है । हमे भी बता दो कौन है वो जिसके नसीब में तुम जैसी घोड़ी है ।
घोड़ी शब्द सुनकर शालु शर्म से लाल हो गई । और मुस्कुरा पड़ी ।
गुंज़न - देखा उसके नाम से तो मुस्कुरा दी मेरी नन्द रानी अब बता भी दो ।
शालु ने सोचा कि भाभी ही तो है मेरी और हम as a friend भी व्यवहार कर सकते है ।
शालु - भाभी एक शर्त पर ।
गुंज़न - अच्छा ये जानने के लिए अबमुझे तुम्हारी शर्त भी माननी पड़ेगी । चलो बोलो क्या शर्त है तुम भी क्या याद करोगी की है एक मेरी भाभी ।
शालु - शर्त ये है कि ये बाते हमारे बीच ही रहनी चाहिए ।
गुंज़न - ये लो कर लो बात । नहीं मैं तो कल पर्चे छपवाऊंगी की मेरी ननद ने ये बताया है मुझे ।
ये सुनकर दोनों हंस पड़ी ।
शालु - ओके बता देती हूं । सुनो । हमारी गली मे जिस की दुकान् है वो
गुंज़न - ओ तेरी की । मतलब दुकान्के्थ साथ तुम्हे भी संभालता है ।
शालु - hmm दो साल से हम एक दूसरे को जानते है ।
गुंज़न - तब तो मुझे लगता है वो अपना पूरा ध्यान तुम्हे संभालने में ही लगाता होगा ।
शालु - ऐसा क्यों लगा भाभी आपको ।
गुंज़न - तुम्हारी जवानी को देखकर ही लगता है कि कोई बड़ी मेहनत कर रहा है ।
शालु शर्मा गई और बोली बस पूछ लिया ना अब आपने जो पूछना था ।
गुंज़न - हां मेरी नंद रानी लेकिन बस एक बात और बताओ ।
शालु - वो भी पूछिए । हंसते हुए बोली
गुंज़न - मिले भी हो क्या कभी दोनों ।
शालु - मिले भी हैं मतलब मिलते तो रोज हैं । कभी कभी जिस दिन मै कंपनी नहीं जाती उस दिन नहीं मिल पाते ।
गुंज़न - अरे मेरी नन्द रानी मेरे पूछने का ये मतलब नहीं था ।
शालु - तो सीधा घुमा फिराकर क्यों पूछ रही है सीधा पूछिए ना कि चुदी भी हो या नहीं ।
(शालु भी अब खुलकर बात करना चाहती थी क्युकी वो खेली खाई लौंडिया थी)
गुंज़न को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसकी नन्द इतनी खुल जाएगी । लेकिन वो भी पागल नहीं थी अब समझ गई थी कि उसकी नन्द खुलकर बात करना चाहती है ।
गुंज़न- ओयहोए नंद रानी तो अपनी औकात में आगई । चलो अब बता तो की उसने तुम्हे कितनी बार चोदा है ।
शालु - चोदा कितनी बार है ये तो मुझे भी नहीं पता लेकिन हां महीने में एक दो दिन
गुंज़न - ओहो मतलब हमारी नन्द रानी की चुदाई खुद टिकाकर की है तभी तो मै सोचूं की ये रण्डी की जांघे इतनी चौड़ी कैसे हो गई ।
शालु को ये सुनकर गुस्सा नहीं आया बल्कि उसे गर्व महसूस हुआ और साथ ही साथ शर्मा भी गई ।
शालु - हां भाभी चुदी तो मै जी भरके हूं क्या करू आपकी इस रण्डी की चूत को जब तक कोई चाटकर उसका स्वागत अपने लौड़े से ना करे तब तक मज़ा ही नहीं आता । अच्छा भाभी चुदाई तो आपकी भी दाम लगाकर करते होंगे भईया ,
गुंज़न ऐसी बातों से गरम हो गई थी ।
शालु - अच्छा भाभी भईया तो आपके होंठो को भी खूब चूसते होंगे ।
गुंज़न - हां चूसते नहीं चबाते है होंठो को तो वो और वो मुझे लिटा देते है फिर अपना लौड़े से मेरे बंद होंठो को सहलाते है
शालु - फिर तो मेरी चुदक्कड़ गुंज़न कुतिया के मुंह में भी लौड़ा हलक तक पेलते होंगे ।
दोनों नन्द भाभी में बात हो ही रही थी कि अचानक मेन गेट की डोरबेल बज गई ।
दोनों उठकर एकसाथ बाहर आयी ।