Update-10
उदयराज रोज की तरह सुबह जल्दी उठा जाता है आज उसको अपना एक दूर वाला खेत जोतना था तो वो खेतों में जुताई के लिए अपने बैलों को तैयार करने लगता है।
रजनी और काकी भी जल्दी उठकर नाश्ता तैयार करती है।
इतने में उदयराज का दोस्त बिरजू उनके घर आता है, रजनी और काकी घर में होती है, उदयराज बाहर बैलों को तैयार कर रहा होता है, बिरजू को आते हुए देखता है।
बिरजू- "जय राम जी की उदय भैया" (बिरजू उदयराज का मित्र था वो उदयराज को भैया कहकर ही बोलता था, उदयराज का मुखियागीरी का ज्यादातर काम बिरजू ही देखता था)
उदयराज- "जय राम जी की बिरजू" अरे आओ बिरजू! बैठो, कहो कैसे आना हुआ इतने सवेरे सवेरे, सब ठीक तो है, 3 4 दिन से दिखे ही नही, कहाँ हो भई।
बिरजू- अरे भैया! आपको तो पता ही है गांव में कितना काम है, फुरसत ही नही मिलती। (कहते हुए खाट पे बैठ जाता है)
उदयराज- अरे तू नही होता...तो मैं तो पागल ही हो जाता, कितना काम संभालता है तू मेरा।
उदयराज काकी को जोर से आवाज लगता है- काकी, अरे बिरजू आया है, चाय-वाय बन गयी हो तो ले आओ जरा!
काकी की घर के अंदर से हल्की आवाज आती है - हाँ, ला रहे हैं, उनको बोलो की बैठें खाट पे।
बिरजू- अरे! ये तो मेरा फ़र्ज़ है भैया, आपके प्रति भी और गांव वालों के प्रति भी।, अरे आज सुबह सुबह बैलों को तैयार कर लिया, खेतो की जुताई करनी है क्या?
उदयराज- हां, वो नदी के पास वाला खेत है न, सोच रहा हूँ इस बार धान की फसल वहीं लगाऊंगा।
बिरजू- हां ठीक रहेगा, उधर नदी की वजह से पानी भी भरपूर रहेगा, जुताई तो मुझे भी अपने खेत की करनी थी, पर क्या करूँ, वक्त ही नही मिल पा रहा है।
उदयराज- अरे तो तू परेशान क्यों होता है, मैं कर दूंगा भई। बता देना जब करना हो।
बिरजू- ठीक है भैया, अच्छा देखो मैं बातों बातों में जिस काम के लिया आया था वो ही भूल गया कहना।
इतने में काकी दोनों के लिए चाय और पोहा लेके आती है और बिरजू को देखके बोलती है-अरे बिरजू कैसा है, आज इतनी सुबह सुबह?
बिरजू- नमस्ते काकी! अरे हां वो कुछ काम था उदय भैया से, तो सोचा सुबह ही मिल लूं फिर कहीं किसी काम से न निकल जाए कहीं, और आ के देख रहा हूँ तो बैल तैयार ही कर रहे थे।
काकी- अच्छा! ले चाय पी, और सब ठीक है न?
बिरजू- हाँ काकी सब ठीक है।
काकी चाय रखके अंदर घर में जाने लगती है ये बोलते हुए की तुम दोनों चाय पियो मैं जरा रजनी का हाँथ बंटा लूं काम में।
इतना सुनते ही बिरजू बोला
बिरजू- अरे रजनी बिटिया आयी हुई है क्या, कब आयी?
काकी- हाँ आयी है यही कोई 5 6 दिन हुए, अभी जरा व्यस्त है नही तो आती बाहर।
बिरजू- चलो कोई बात नही फिर कभी मिल लूंगा, ठीक तो है न वो।
काकी- हाँ ठीक है (इतना कहकर काकी घर में चली जाती है)
उदयराज और बिरजू चाय पीने लगते है और पोहा खाने लगते हैं
उदयराज- हां बोल तू क्या बोल रहा था, किस काम से आया था।
बिरजू- अरे हाँ! भैया मैं ये कहने आया था कि पश्चिम की तरफ जो नहर, नदी से निकलकर हमारे गांव की सरहद से होते हुए जा रही है, जिससे हमारे गांव के खेतों और बगल वाले गांव के खेतों की सिंचाई भी होती है उसको थोड़ा चौड़ा करने की सोच रहा था ताकि ज्यादा पानी आ सके, उसी का मुआयना करने के लिए जरा चलना पड़ेगा आपको। गांव वालों का भी यही कहना है कि एक बार मुखिया जी को दिखा कर उनकी सहमती लेनी होगी।
उदयराज- हम्म, ये तो अच्छी बात है, नहर चौडी हो जाएगी तो पानी भी ज्यादा आएगा और अतिरिक्त मिट्टी पड़ने से उसके दोनों किनारे के बांध और मजबूत हो जायेगें।
बिरजू- हां वही तो! पर एक बार आपको चलकर देखना होगा।
उदयराज- हाँ हाँ क्यों नही! अभी तो मैं खेत पर जा रहा हूँ, वहां से फुरसत होके मैं नहर के पास आ जाऊंगा दोपहर तक तुम वहीं मिलना।
बिरजू- ठीक है भैया, मैं और हरिया, परशुराम वगैरह वही मिलेंगे आपको।
उदयराज- ठीक है
उदयराज और बिरजू चाय पी चुके थे, इतना कहकर बिरजू चला गया, फिर उदयराज ने भी काकी को बुला कर सारी बात बताई और ये बोलकर की वो दोपहर को खाना खाने आएगा और फिर नहर के काम के सिलसिले में फिर जाएगा, रजनी को बोल देना की वो चिंता न करे और बैल लेके चला जाता है।
रजनी और काकी घर का सारा काम निपटा के अपना नाश्ता ले के बाहर द्वार में बैठी नीम के पेड़ के नीचे नाश्ता कर रही होती है, उस वक्त सुबह के 8 बज चुके थे सुबह के सूरज की रोशनी पेड़ों के पत्तों से छनकर हल्की हल्की आ रही थी, सुबह का बहुत ही मनमोहक वातावरण था, कि इतने में शेरु सामने कुएं की तरफ से आता हुआ दिखाई देता है।
रजनी- काकी देखो सामने! शेरु आ गया।
काकी- हां! लो आज आ ही गया, वो देख इधर ही आ रहा है। इत्तेफ़ाक़ देखो अभी कल ही इसकी चर्चा हो रही थी आज आ ही गया।
शेरु ने नजदीक आके जैसे ही रजनी को देखा तो कूं कूं कूं करके रजनी के पैर चाटने लगा, रजनी को गुदगुदी हुई तो वो हंसते हुए उसके सर को सहलाते हुए बोली- अरे मेरे शेरु! कैसा है तू? कमजोर तो हो गया है काकी पहले से।
काकी- हाँ कमजोर तो हो ही गया है, बिचारा
रजनी उसकी पीठ और सर सहलाते हुए बोली- तेरी बेटी बीना कहाँ रह गयी? हम्म
शेरु काफी कूं कूं करता हुआ रजनी के आगे पीछे गोल गोल घूमता फिर उसके पैर चाटने लगता, कभी हाँथ चाटता।
काकी- वो भी आती होगी पीछे पीछे
रजनी- अच्छा तू रुक, तू भूखा होगा न, तेरे लिए खाना लाती हूँ।
इतना कहकर रजनी घर में गयी और दूध और बिस्किट मिक्स करके ले आयी।
पर शेरु खा ही नही रहा था, बार बार खाने की तरफ ललचाई नज़रों से देखता फिर कूं कूं करके रजनी के पैरों में इधर उधर गोल गोल घूमता।
रजनी बोली- काकी देखो भूख इसको लगी है फिर भी खा नही रहा, खा न क्या हुआ?
काकी बोली- मैंने बताया नही था ये बिना अपनी बेटी के खाने को सूंघेगा तक नही।
रजनी- अरे हां काकी, सच में, देखो तो कैसे भूख से तड़प रहा है पर सूंघ तक नही रहा खाने को, अभी तक दूसरा कुत्ता होता तो साफ कर चुका होता, आखिर ये मेरा कुत्ता है, मुझे नाज़ है इसपे। कितना प्यार करता है अपनी बेटी से देखो।
और ऐसा कहते हुए बैठकर शेरु को अपनी गोद में लेकर उसकी पीठ सहलाने लगती है
काकी- अरे अभी उसको ज्यादा मत छू, न जाने कहाँ कहाँ किस किस के घर घूम फिर के आया है, किसी को भी प्यार करेगी तो ढंग से ही करने लगेगी।
रजनी- काकी कोई बात नही कितने बरसों बाद तो मिली हूँ अपने शेरु से, अभी मैं नहाने जाउंगी तो इसको भी पकड़कर नहला दूंगी, और फिर इसको कहीं जाने नही दूंगी।
काकी- हाँ अब देखना ये खुद ही कहीं जाएगा नही, तुझे देख लिया है न।
तभी रजनी को बीना का ध्यान आता है- काकी ये बीना कहाँ मर गयी, आप तो बोल रही थी कि अपने बाप के पीछे पीछे ही लगी रहती है अभी तक तो मुझे दिखी नही, कोई आशिक मिल गया क्या उसको रास्ते में जो अपने बाप को भूल गयी।
इतना कहकर रजनी जोर से हंस दी।
काकी- अरे आशिक तो उसका....खुद उसका बाप ही है, किसी और को तो वो घास भी न डाले। इसलिये ही तो उसे बड़े प्यार से सूंघने देती है
इस बात पर रजनी ने शर्माते और मुस्कुराते हुए काकी को देखा, और उसे कल रात की बात याद आ गयी।
रजनी बोली- हाँ तो क्यों न दे सूंघने आखिर उसका पिता उसका इतना ख्याल रखता है, इनाम तो देगी न उनको (रजनी ने शर्माते हुए कहा)
काकी ने तपाक से कहा- ख्याल तो उदयराज भी तेरा बहुत रखता है, हम्म्म्म
रजनी शर्म से जैसे जमीन में गड़ गयी, बोली- धत्त! काकी, बहुत बेशर्म हो तुम।
काकी (मंद मंद मुस्कुराते हुए)- आखिर इनाम तो मिलना ही चाहिए, न
रजनी तो शर्म से बिल्कुल लाल हो गयी, कुछ देर कुछ बोल न पाई।
फिर बोली- आप बहुत गंदी हो, (और मुस्कुराने लगी।)
इतने में ही बीना भी दिखाई दी आती हुई, वो भी आके काकी के आस पास घूमने लगी क्योंकि रजनी को वो पहचानती नही थी, फिर रजनी ने जब खाने की कटोरी आगे बढ़ाई तो दोनों बाप बेटी खाने लगे रजनी अंदर जा के रोटी भी ले आयी और दोनों को पेट भर खाना खिलाया।
फिर रजनी मन में ही मंद मंद मुस्कुराते हुए, काकी की बात सोचते हुए नहाने चली गयी, और शेरु और बीना को भी पकड़कर नहला दिया, दोनों साफ सुथरे हो गए।
दोपहर को उदयराज आया तो रजनी ने नहाकर आज जो पहना था उसे देखकर मन्त्रमुग्ध सा हो गया, रजनी ने नीले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लाउज पहन रखा था, उसका गोरा रंग अलग ही चमक रहा था, गोरे गोरे सुंदर चेहरे पर जो तेज था उसे देखकर ही आज उदयराज को नशा सा हो गया, बड़े बड़े उन्नत स्तन बड़ी मुश्किल से ही ब्लॉउज में समा रहे थे, अनायास ही उदयराज की नज़र बार बार अपनी ही सगी बेटी की चुचियों पर जा रही थी और वो बार बार अपने आप को गंदे ख्याल से बाहर निकलता।
उदयराज अंदर बरामदे में बैठा था काकी उस वक्त बाहर थी
रजनी पानी और गुड़ लेकर आई, तो उदयराज बोला- आज तो बहुत ही खूबसूरत लग रही है मेरी बिटिया।
रजनी मुस्कुरा दी और बोली- हाँ, आपकी बेटी हूँ न तो लगूंगी ही, पर आप मुझसे सुबह मिले नही न, चले गए ऐसे ही (रजनी ने शिकायत वाले लहजे से कहा)
उदयराज- अरे मेरी बिटिया रानी, मुझे लगा कि तुम काम में व्यस्त हो तो मैं काकी को बता कर चला गया, क्या मेरी बिटिया नाराज़ हो गयी क्या मुझसे?
रजनी- ऐसा कभी हो सकता है क्या, की मैं अपने बाबू जी से नाराज हो जाऊं, मैं चाहे कितनी भी व्यस्त रहूँ पर अपने बाबू जी के लिए हमेशा मेरे पास वक्त है।
उदयराज- इतना प्यार करती हो अपने पिता से।
रजनी- बहुत, आपके बिना मैं जी नही सकती बाबू।
उदयराज ने उठकर रजनी को बाहों में भर लिया, रजनी भी जल्दी से अपने बाबू की बाहों में समा गई।
एक बार फिर रजनी के गुदाज मदमस्त बदन ने उदयराज को मचलने पर मजबूर कर दिया, रजनी को बाहों में लेते वक्त तो उसकी मंशा भावनात्मक प्रेम की थी पर जैसे ही वो अपनी सगी बेटी के जवान, मदमस्त मांसल बदन से चिपका, वो अपने आप को संभाल न पाया और रजनी के कामुक बदन से मदहोश हो गया, एक बार फिर रजनी की उन्नत, कठोर चुचियाँ उदयराज के सीने से दब गई और मसल उठी।
कुछ देर रजनी उसको और वो रजनी को देखते रहे फिर उदयराज थोड़ा भारी आवाज से बोला- तो मैं कौन सा तेरे बिना अब रह सकता हूँ, तू तो जान है मेरी।
पर वो जल्द ही अपने आप को संभाल ले गया ये सोचकर कि कहीं रजनी कुछ और न समझ बैठे और अनर्थ हो जाये
परंतु उसे इतना तो अहसास हो रहा था कि रजनी भी उसकी बाहों में आने में जरा भी देर नही करती, वो भी कुछ अनजाना सा सुख उसकी बाहों में तलाशती है।
इतने में काकी के कदमों की आवाज सुनाई थी तो वो अलग हो गए।
रजनी ने उदयराज के लिए खाना परोसा और फिर उदयराज खाना खा के नहर के काम के सिलसिले में रजनी को बताकर चला गया ये बोलकर की वो शाम तक आएगा।
रजनी और काकी ने भी खाना खाया और रजनी ने फिर शेरु और बीना को भी खाना दिया।