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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Incestlala

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Update-11

एक दो दिन ऐसे ही बीत गए

एक दिन रजनी कुएं के पास फूल तोड़ रही थी तो सामने से जाती हुई नीलम जो उसकी बचपन की सहेली थी उसने आश्चर्य से देखा तो बोली- अरे रजनी तू कब आयी?

रजनी- अरे नीलम तू कैसी है? मुझे तो आये कुछ दिन हो गए।

नीलम- बड़ा गदरा गयी है तू, जीजा जी खूब मेहनत कर रहे हैं क्या?

नीलम बहुत मजाकिया किस्म की थी, बेबाक कुछ भी बोल देती थी।

रजनी- उनके बस का है जो करेंगे? मुझसे मतलब होता तो लापता ही क्यों होते?

नीलम- क्या... लापता?

रजनी- हाँ, कुछ पता नही कहाँ गए, एक साल होने को आया, मुझे तो रहना भी नही अब उनके साथ, है न मेरे बाबू अब यहीं रहूंगी हमेशा।

नीलम- अब यहीं रहेगी, मायके में, हाँ ठीक है और क्या, जब उन्हें तेरी कोई कद्र नही तो तू क्यों फिक्र करेगी, तू भी अपनी मनपसंद जिंदगी जी, एक बात बोलूं।

रजनी- हाँ बोल

नीलम- जितना प्यार तुझे तेरे बाबू करते हैं, दुनिया में कोई नही करेगा। वही तेरा ख्याल रखेंगे, वही फिक्र करेंगे और कोई नही।

रजनी- (मन में गदगद होते हुए) मैं भी उनकी सदा सेवा करूँगी, हमेशा उनके पास ही रहूंगी।


इस तरह रजनी और नीलम कुछ देर बात करती रहीं फिर नीलम चली गयी।

रजनी घर में आई तो काकी से बोली- काकी वो जो घर के पीछे बरगद का पेड़ है न वहां क्यारी में सब्जियां लगाई हुई हैं।

काकी- हाँ लगाई तो हैं फिर

रजनी- उसकी निराई गुड़ाई करनी है तो मैं जाती हूँ कर दूंगी।

काकी- रुक मैं भी चलती हूँ, गुड़िया तो सो गई है, मैं भी चलती हूँ।

रजनी - ठीक है चलो।


दोनों घर के पीछे क्यारी में आ जाती है बरगद के पेड़ के नीचे, वहां काफी घनी छाया होती है।

रजनी और काकी दोनों को अभी काम शुरू किये कुछ ही देर हुआ था कि इतने में बीना वहां आ जाती है। कुछ ही देर में शेरु भी पीछे पीछे आ जाता है।

आज तो बहुत ही गर्मी पड़ रही है न काकी, लेकिन यहां बरगद के नीचे काफी राहत है- रजनी ने बोला

शेरु और बीना भी गर्मी से हांफ रहे थे बीना ने पैर से जमीन में थोड़ा गढ्ढा किया, और फिर उसमें बैठ गयी, जमीन में काफी नमी थी तो उसे ठंडक महसूस हो रही थी वहां।

शेरु बीना के आस पास घूम रहा था, बीना आज कुछ ज्यादा ही कूं कूं कर रही थी।

काकी बोली- रजनी देख ये दोनों भी यही आ गए, आज इनका मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है, आज मुझे लग रहा है कि शेरु बीना की बूर सूंघेगा। मौसम आज गरम है लगता है कि बीना को गर्मी बर्दाश्त नही हो रही।

रजनी ने एकदम से काकी की तरफ देखा, उसने नही सोचा था को काकी बूर शब्द बोलेंगी, वो शर्मा गयी और मुस्कुरा दी।

तभी शेरु ने वो किया जिसका काकी को अनुमान था, शेरु पहले तो थोड़ी देर इधर उधर घूमता रहा फिर एकदम से बीना की बूर को सूंघने लगा, बीना खड़ी हो गयी, ताकि शेरु को आराम से अपनी बूर सुंघा सके।

रजनी को अपनी आंखों के सामने ये दृश्य देखकर विश्वास नही हुआ।

रजनी- काकी ये तो सच में अपनी ही बेटी की बूर सूंघ रहा है बेशर्म।

काकी- देख ले अब खुद ही, मैं न कहती थी।


इतने में ही शेरु जीभ निकाल के बीना की बूर को अब चाटने लगा, बीना की बूर से हल्का हल्का पेशाब निकल जाता, और वो थरथरा जाती, पर शेरु को पूरा सहयोग कर रही थी

रजनी को काटो तो खून नही, वो इस बात से चकित थी कि बीना पूरा सहयोग कर रही थी, उसे भी मजा आ रहा था। एक बाप अपनी बेटी की बूर कैसे चाट सकता है, पर अब ये उसके सामने हो रहा था तो उसे विश्वास करना ही था।

रजनी गरम होने लगती है, काकी का भी कुछ ऐसा ही हाल था पर ज्यादा नही।

इतने में नीलम वहां आ जाती है, नीलम का खेत रजनी के घर के पीछे ही था, वो खेत में कुछ घास लेने आयी थी, रजनी और काकी को देखती है तो उनके पास आ जाती है अभी तक नीलम की नजर शेरु पर नही पड़ी थी पर जैसे ही नज़र पड़ती है-

नीलम- हाय दैया! रजनी ये तेरा शेरु तो अपनी बेटी की ही बूर चाट रहा है, उफ्फ्फ!

रजनी की सांसे तो पहले ही तेज़ हो चुकी थी अब नीलम भी एक टक लगा के देखने लगी।

काकी क्यारी में गुड़ाई करती और कनखियों से देख लेती पर रजनी और नीलम एक टक लगा के देख रहे थे।

शेरु बीना के चारो तरफ घूमने लगा, बार बार घमता फिर पीछे आ के बूर को सूंघता फिर चाटने लगता, जैसे ही शेरु बीना की बूर को जीभ लगता रजनी को ऐसा लगता कि जैसे शेरु की जीभ उसकी खुद की बूर पर लग रही हो और वो बैठे बैठे ही अपनी जांघों से अपनी बूर को हल्का सा दबा लेती, और iiisssssshhhhhhh की आवाज उसके मुंह से निकल जाती, नीलम का भी यही हाल हो चला था, वो भी अब वहीं बैठ गयी।

आज विक्रमपुर में ये अनर्थ और महापाप हो रहा था भले ही जानवर के रूप में ही क्यों न हो।

काकी, रजनी और नीलम अब तीनो ये नज़ारा देखने लगी, काकी का तो कम, पर रजनी और नीलम का अब हाल बुरा होने वाला था, क्योंकि उन्होंने कभी कुत्ता कुतिया की चुदाई नही देखी थी

बीना चुपचाप खड़ी थी और शेरु चपड़ चपड़ उसकी बूर चाटे जा रहा था, बीना अब बिल्कुल गरम हो चुकी थी, बूर चाटते चाटते एकदम से ही शेरु का बड़ा सा लंड बाहर आ गया

रजनी की तो अब हालत खराब हो गयी अपने ही शेरु का लाल लाल लंड देखके,

रजनी (फुसफुसाते हुए)- काकी देखो तो इसका कैसा है, कितना लाल और बडा सा है, और हाय! अपनी ही सगी बेटी की बूर चाटने में इसको कितना मजा आ रहा है।

रजनी भी अब बेशर्मी से "बूर" शब्द बोल गयी।

काकी- अपनी बेटी का ख्याल रखता है तो उसकी ये इक्छा भी तो वही पूरी करेगा न, मुझे तो लग रहा है कि अब पक्का चोदेगा बीना को।


नीलम- हे भगवान कितना मजा आ रहा होगा इन दोनों को, रजनी तेरा कुत्ता तो बहुत भाग्यशाली है रे घर में ही मिल गयी इसको तो बूर वो भी अपनी ही बेटी की।


रजनी का शर्म और मजे से बुरा हाल था।

तभी शेरु का पूरा लंड बाहर आ गया, वो करीब 6 इंच तक लंबा और 2 इंच मोटा होगा, रजनी उसे उखड़ी उखड़ी सी देखती रही, उसकी खुद की दबी हुई चुदास को उसके खुद के ही कुत्ते की कामलीला ने जगा दिया था।

तभी शेरु एकदम से उछला और बिना के ऊपर चढ़ गया और अपना लंड बीना की फूली हुई बूर के मुहाने पर लगाने लगा पर असफल हो गया और नीचे खड़ा हो गया, फिर उसने दुबारा सुंघा, चाटा और फिर चढ़ गया, चढ़ते ही वो जोश के मारे तेज तेज धक्के मारने लगा, उसका लंड बार बार कभी बीना की बूर की दायीं फांक पर टकराता कभी बाई फांक पर टकराता, कभी कभी बीना भी थोड़ा हिल जाती, पर तभी एकदम से निशाना सही बैठा और शेरु का लंड बीना की बूर में जड़ तक समा गया।

रजनी और नीलम के मुंह से aaaaahhhhhhhh! uuuuuuuuuiiiiiiiiiimmmaaaaaaaaaannn निकल गया, जैसे शेरु का लंड उनकी ही बूर में घुस गया हो।

काकी- आखिर बीना ने अपने बाप को दे ही दिया इनाम, मैंने शेरु को, जबसे बीना की माँ मरी है आजतक किसी दूसरी कुतिया को चोदते नही देखा, और आज देखो अपनी ही बेटी को कैसे घच्छ घच्छ चोद रहा है। आखिर बेटी की बूर का मजा ही कुछ और है।

नीलम - hhhaaaaiiiiiiii काकी क्या क्या बोले जा रही हो, आपको कैसे पता कि बाप को बेटी की बूर चोदने में ज्यादा मजा आता है, आपने चुदवा रखा है क्या अपने बाबू से (नीलम से तपाक से मजे लेते हुए कहा, और रजनी खिलखिला के हंस पड़ी)

काकी- अरी कहाँ रे नीलम, मेरे बाबू अगर मेरा इतना ख्याल रखते होते न जितना तुम लोगों के और खासकर रजनी के बाबू रखते है तो मैं तो सच कह रही हूं उनको घर की चार दिवारी के भीतर छुप छुप के बूर का ऐसा मजा देती की उनका जीवन धन्य हो जाता। पर हाय री किस्मत। खैर अब तो वो हैं ही नही इस दुनियां में।


रजनी और नीलम ये सुनकर दंग रह जाती है, की काकी ने कैसे बड़े ही बेशर्म तरीके से अपने मन में छुपी हुई बात इतने बेबाक तरीके से कह दी।

रजनी को आज काकी के कामुक स्वभाव का आभास हुआ था, काकी की ऐसी बातें सुनकर उसके अंदर की चुदास पूरी तरह खुल गयी, अभी तक वो गंदी बात करने से या अपने अंदर की छुपी हुई कामाग्नि को जाहिर करने से झिझकती थी काकी के सामने, क्योंकि वो उसकी माँ समान थी, उसने उसे बचपन से पाला पोशा था, और रजनी सभ्य भी थी, पर आज खुद जब काकी ऐसी गंदी बात खुलकर उसके ही सामने बोल गयी, तो उसे ऐसा लगा कि उसे एक साथी मिल गया हो, जिससे वो खुलकर गंदी बात कर सकती है, उसने मन में सोचा कि वो काकी से बाद में घर में जाकर इस विषय पर बात करेगी।

नीलम सलवार के ऊपर से ही अपनी बूर को हल्का हल्का सहला रही थी।

रजनी उसे देखकर हंस पड़ी और बोली-, तेरे से बर्दाश्त नही हो रहा तो तू भी चुदवा ले मेरे शेरु से।

नीलम- hhhhhaaaaiiiii चुदवा लेती यार, पर उसे तो अपनी बेटी ही चोदनी है। बेटी चोदने का मजा अलग ही होगा न। और बीना को देखो कैसे मजे से अपने ही बाप के मोटे से लंड से चुद रही है, कैसे गचा-गच लन्ड बूर में जा रहा है, आखिर बाप से चुदने का मजा अलग ही होगा न।

रजनी को नीलम की ये बात अंदर तक झकझोर देती है कि- "बाप से चुदने का मजा ही अलग होगा न" तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता है।

रजनी कामुक अंदाज में- तो तू अपने बाबू जी को लाइन मार न क्या पता बात बन जाये (रजनी ने चुटकी लेते हुए कहा)

नीलम- dhatt पगली, बेशर्म, मैं तो ऐसे ही कह रही थी (हालांकि नीलम के बदन में ये सोचकर झुरझुरी सी दौड़ गयी)


शेरु ताबड़तोड़ बीना की बूर में धक्के लगाए जा रहा था, बीना की बूर अब पूरी खुल चुकी थी वो शांत खड़ी थी और अपने ही बाप को अपनी कमसिन बूर चखाने में भरपूर सहयोग कर रही थी
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Incestlala

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Update- 12

काफी देर बीना की बूर चोदने के बाद शेरु अपनी बेटी की बूर में थरथरा के झड़ने लगा, बीना का भी कुछ ऐसा ही हाल था, बाप बेटी का मिलन हो चुका था।

ये देखकर रजनी बेहाल सी हो गयी, नीलम के मुंह से aaaahhhhh निकल गया ये देखकर और वो बोली- hhhaaaiiii अब फंस जाएंगे ये दोनों एक दूसरे में, अटक जाएगा शेरु का बीना की बूर में, कितना मजा आ रहा होगा दोनों को uuuuffffff.

इतने में दूर से गांव की कोई औरत उस तरफ आती दिखाई दी तो नीलम ये बोलकर की काकी मैं चलती हूँ, आज तो मजा ही आ गया इनको देखकर, अब तो ये ऐसे ही कुछ देर अटके रहेंगे, कोई हमे देखेगा इनको देखते हुए तो क्या सोचेगा, मैं चलती हूँ

रजनी की सांसे धौकनी की तरफ ऊपर नीचे हो रही थी, वो उसे देखकर हंस पड़ी, इतने में नीलम उठी और अपने घर की तरफ भाग गई।

रजनी का भी अब काम में कहां मन लगता उसकी तो हालत खराब हो चली थी, वो बार बार कभी काम करने लगती तो कभी बीना की बूर में अटके हुए शेरु के लंड को देखती और सिरह जाती। फिर वो एकदम से उठी और बोली- काकी अब रहने दो चलो मुझसे नही होगा अब काम, बाद में कर लेंगे, फिर वो भी घर के पीछे वाली कोठरी में जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ खुलता था उसको खोलकर कोठरी में चली गयी और वहां पड़ी खाट पर औंधे मुंह पसर गयी, वो जैसे हांफ रही थी, सांसे काफी तेज चल रही थी उसकी, बार बार वो अंगडाई लेती आंखें बंद करती तो कभी शेरु और बीना की चुदाई उसके सामने आ जाती तो कभी उसके बाबू का गठीला मर्दाना जिस्म, अनायास ही उसके मुंह से निकल गया- aaaaahhhhhhh बाबू, पास होकर भी क्यों हो तुम मुझसे इतना दूर। ऐसे ही वो बुदबुदाते जा रही थी

तभी काकी घर में आती है तो देखती है कि रजनी कोठरी में खाट पे लेटी है।

रजनी उन्हें देखती है तो उठकर बैठ जाती है, काकी उसके पास बदल में खाट पे बैठ जाती है और उसको अपने सीने से लगते हुए बोलती है- मैं जानती हूं बिटिया तेरी हालत, आखिर मैं भी एक स्त्री हूँ, मैं भी इस अवस्था से गुजरी हूँ।

रजनी बेधड़क काकी के गले लग जाती है और बोलती है- काकी हम स्त्रियों को आखिर इतना तड़पना क्यों पड़ता है, हमारा क्या कसूर है, हम स्वच्छन्द क्यों नही, क्यों नही हम अपने मन की कर सकते? क्यों हम इतना मान मर्यादा में बंधे हैं?

रजनी ने एक ही साथ कई सवाल दाग दिए

काकी- मैं तेरी तड़प समझ सकती हूं बिटिया।
स्त्री के हिस्से में अक्सर आता ही यही है, पुरुष स्वच्छन्द हो सकता है पर स्त्री इतनी जल्दी नही हो पाती खासकर हमारे गांव और कुल में, यहां कोई गलत नही कर सकता, करना तो दूर कोई सोच भी नही सकता, खासकर पुरुष वर्ग, स्त्रियां तो बहक सकती हैं पर जहां तक मैं जानती हूं हमारे कुल के पुरुष तो जैसे ये सब जानते ही नही है, हमारे गांव और कुल में तो ऐसा है कि अगर किसी की स्त्री या मर्द मर जाये या उसको उसका हक न दे तो वो पूरी जिंदगी तड़प तड़प के बिता देगा या बिता देगी पर कोई ऐसा काम नही करेंगे जिससे हमारे गांव की सदियों से चली आ रही मान मर्यादा भंग हो, हमारे पूर्वजों के द्वारा संजोई गयी इज्जत, कमाया गया नाम (कि इस कुल में, इस गांव में कभी किसी भी तरह का कुछ गलत नही हो सकता) कोई मिट्टी में नही मिलाएगा, यही चीज़ हमे दुनियां से अलग करती है
इसलिये ही हम जैसे लोग जो विधवा है, या जिनके पति नही है, या ऐसे पुरुष जिनकी पत्नी नही हैं उनकी जिंदगी एक तरह से नरक के समान ही हो जाती है, किसी से कुछ कह नही सकते, बस तड़पते रहो।

काकी कहे जा रही थी और रजनी उनकी गोदी में लिपटे सुने जा रही थी।

रजनी- लेकिन काकी ये कहाँ तक सही है, क्या ये तर्क संगत है?

काकी कुछ देर चुप रहती है और रजनी आशाभरी नज़रों से उनकी आंखों में देखती है।

काकी- नही! बिल्कुल नही मेरी बेटी। ये गलत है, पर हम स्त्रियाँ कर भी क्या सकती हैं

रजनी- क्या हमारे कुल के पुरुष, हमारे गांव के मर्द इतने मर्यादित है, मेरे बाबू भी ( रजनी ने फुसफुसके कहा)

काकी- मैं पक्के तौर पर नही कह सकती बेटी, ये तो खुद औरत को मर्द का मन टटोल कर देखना पड़ता है कि उसके मन में क्या है?

रजनी- अच्छा काकी क्या सच में आप वो करती अपने बाबू के साथ (रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा)

काकी- क्या? (जानबूझकर बनते हुए)

रजनी- वही जो अपने बाहर कहा था

काकी उसकी आँखों में देखती हुए- क्या कहा था मैंने?

रजनी काकी का हाँथ हल्का सा दबाते हुए भारी आवाज में फुसफुसाते हुए बोली- यही की आप अपने बाबू को अपनी बूर का मजा उनको देती अगर वो मेरे बाबू जैसे होते।

काकी- hhhhaaaaiiiiii, हां क्यों नही, क्यों नही देती भला, आखिर ये उनका हक होता न, आखिर उन्होंने मुझे पाल पोष के बड़ा किया, मेरा इतना ख्याल रखा, और अगर मुझे ये पता लगता कि वो मुझसे वो वाला प्यार करते है जो एक औरत और मर्द करते है, या मुझे ये पता लगता कि वो मुझे दूसरी नज़र से देखते है तो मैं भला क्यूं पीछे रहती। भले ही वो मेरे पिता थे पर थे तो वो भी एक मर्द ही न। (काकी की भी आवाज भर्रा जाती है)

रजनी फिर से गरम होते हुए- पर काकी आपको ये कैसे पता लगता, आप ये अंतर कैसे कर पाती की वो आपको बेटी की नज़र से नही देख रहे बल्कि वासना की नजर से देख रहे हैं

काकी- ये तो बिटिया रानी औरत को खुद ही पता लगाना होता है कि उसके घर के मर्द उसे किस नज़र से देखते हैं। उनकी हरकतों से।

रजनी काफी देर सोचती है फिर

रजनी- तो काकी सच में आपने अपने बाबू को मजा दिया था।

काकी- नही री पगली, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, मेरे बाबू मुझे ज्यादा मानते नही थे, बचपन में ही उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और मैं यहां ससुराल चली आयी, उसके कुछ ही सालों बाद तेरे काका चल बसे और मैं विरह में कई वर्षों तक तड़पती रही, अब तो जैसे आदत पड़ गयी है, तेरे जैसी मेरी किस्मत कहाँ मेरी की मेरे ससुराल वाले बोलते की बेटी तू उम्र भर अपने पिता के पास रह सकती है।

रजनी को मन ही मन इस बात पे नाज़ हुआ।

काकी- तू मुझे गलत तो नही समझ रही न बेटी।

रजनी- ये क्या बोल रही हो काकी, आप तो मेरी माँ जैसी हो, और आज तो मैं और भी खुश हूं कि एक दोस्त की तरह आपने अपने मन की बात अपनी इस बिटिया को बताई, कोई बात नही छुपाई, मुझे तो आज आप पर नाज़ हो गया जो मुझे आप जैसी माँ मिली, जो मेरा दर्द समझ सकती है।

रजनी और काकी एक दूसरे को गले से लगा लेती हैं

काकी- ओह्ह! मेरी बेटी, बेटी मैं कोई ज्ञानी या सिद्ध प्राप्त स्त्री तो नही की भविष्य देख सकूँ पर इतना तो मेरा मन कहता है कि जो पीड़ा मैन झेली है वो तू नही झेलेगी, तेरे हिस्से में सुख है, समय अब बदलेगा, जरूर बदलेगा।

ऐसे कहते हुए वो रजनी के माथे को चूम लेती है और बोलती है कि तू जाके नहा ले गर्मी बहुत है थोड़ी राहत मिल जाएगी, शाम हो गयी है तेरे बाबू भी आते होंगे

रजनी- हाँ काकी


और रजनी नहाने चली जाती है, काकी कुछ देर बैठ के सोचती रहती है फिर अचानक ही गुड़िया उठ जाती है तो काकी उसको लेके बाग में घूमने चली जाती है रजनी के ये बोलकर की वो नहाने के बाद गुड़िया को दूध पिला देगी।

रजनी को नहाते नहाते काकी की बात याद आती है की औरत को खुद ही अपने घर के मर्द का मन टटोलना पड़ता है कि वो उसको किस नज़र से देखता है, और इस वक्त घर में एक ही मर्द था वो थे उसके पिता, यह बात सोचकर वो रोमांचित हो जाती है, और सोचती है कि वो अब ऐसा ही करेगी। वो उस दिन कुएं पर हुई बात सोचती है कि कैसे उस दिन बाबू ने मुझे बाहों में भरकर मेरी पीठ को सहला दिया था और मेरी सिसकी निकल गयी थी। हो न हो उसके मन में कुछ तो है।

ऐसा सोचते हुए वो जल्दी जल्दी नहा कर एक गुलाबी रंग की मैक्सी डाल लेती है। आज गर्मी बहुत थी और अभी खाना भी बनाना था, फिर वो गुड़िया को दूध पिलाती है और खाना बनाने के लिए चली जाती है।

आज काफी देर हो गयी पर उदयराज अभी तक आया नही था, अंधेरा हो गया था, रजनी खाना बनाते हुए बार बार बीच में उठकर बाहर आती और जब देखती की उसके बाबू अभी तक नही आये तो उदास होकर फिर जाके खाना बनाने लगती।

काकी इस वक्त गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हुई थी कि तभी उदयराज हल और बैल लेके आ जाता है, बैल बंधता है और पसीने ले लथपथ सीधा घर में रजनी, ओ रजनी बोलता हुआ जाता है।

रजनी उदयराज को देखके चहक उठती है वो उस वक्त आटा गूंथ रही होती है अपने बाबू के मजबूत और गठीले बदन पर जब उसकी नजर जाती है तो वो रोमांचित हो जाती है और उदयराज के जिस्म की पसीने की मर्दानी गंध उसको बहुत मनमोहक लगती है, वो उदयराज से बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलती है कि- क्या बाबू, कब से मैं राह देख रही हूं आज इतनी देर।

उदयराज अपनी बेटी को आज मैक्सी में देखकर बहुत खुश होता है और बोलता है- बेटी, मैं तो वक्त से ही घर आने के लिए निकला था कि रास्ते में कुछ लोग मिल गए तो उन्ही से बात करने लगा।

रजनी- अच्छा! लगता है आपको अपनी बेटी की याद नही आती (रजनी ने जानबूझकर ऐसे बोला)

उदयराज- याद नही आती तो भला घर क्यों आता मेरी बिटिया रानी। बस इतना है कि थोड़ी देर हो गयी, और अब मेरी बेटी अगर इस बात से मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।

रजनी - आपकी बेटी आपसे नाराज़ नही हो सकती ये बात उसने आपसे पहले भी कही है न बाबू

रजनी आटा गूथ रही थी और उसका मादक बदन हिल रहा था, उदयराज सामने खड़ा खड़ा एक टक उसे ही देख रहा था, रजनी कभी शर्मा जाती, कभी मुस्कुरा देती, कभी खुद सर उठा के अपने बाबू की आंखों में देखने लगती।

फिर रजनी एकाएक बोली- ऐसे क्या देख रहे हो मेरे बाबू जी, अभी सुबह ही तो देखके गए थे, क्या मैं माँ जैसी दिख रही हूं क्या? और मुस्कुराके हंस दी।

उदयराज- अपनी बेटी को देख रहा हूँ, जो कि अपनी माँ से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है, और इस वक्त मुझे लगता है कि मुझसे नाराज है।

रजनी फिर हंसते हुए - अरे बाबू मैं आपसे गुस्सा नही हूँ मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।

उदयराज- काकी कहाँ है?

रजनी- वो गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हैं।

उदयराज- कितनी देर हो गयी?

रजनी- अभी अभी तो गयी हैं

अब उदयराज ने बड़ी ही चालाकी से ये बात घुमा के बोली- तो अगर एक बेटी अपने पिता से नाराज़ नही होती, और घर में उन दोनों के सिवा कोई न हो, तो भला वो अपने पिता से इतना दूर होती।

रजनी ने जब ये सुना और इस बात का अर्थ समझा की उसके बाबू क्या चाहते हैं तो उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ गए और वो मुस्कुराते और शर्माते हुए आटा गूँथना छोड़कर भागकर उदयराज के गले लग जाती है, उदयराज उसे और वो उदयराज को कस के बाहों में भर लेते हैं। एक बार फिर रजनी का गुदाज बदन उदयराज की गिरफ्त में था, इस बार वो रजनी की पीठ फिर सहला देता है और रजनी की aaahhhh निकल जाती है,
रजनी अपना हाँथ उदयराज की पीठ पर नही रख पाती क्योंकि उसके हाँथ में आटा लगा होता है, परंतु उदयराज उसे कस के अपने से इतना सटा लेता है कि उसका एक एक अंग उदयराज के अंग से भिच जाता है।
रजनी उदयराज की आंखों में मुस्कुराके देखने लगती है, और अपने पिता की मंशा पढ़ने लगती है, उदयराज भी रजनी की आंखों में देखने लगता है।

रजनी खिलखिलाकर हंसते हुए- अब आपको पता चला कि मैं आपसे नाराज़ नही हूँ।

उदयराज- हाँ, तुम मुझसे नाराज़ होगी न तो मैं तो जी ही नही पाऊंगा अब।

रजनी- अपनी बेटी से इतना प्यार करने लगे हो।

उदयराज- बहुत

रजनी- पहले तो ऐसा कभी नही किया

उदयराज- क्या नही किया।

रजनी- (लजाते हुए), यही की जब कोई न हो तब बेटी को बाहों में लेना।

उदयराज- मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत, की क्या करूँ, उसकी खूबसूरती को बाहों में भरकर मेरी थकान मिट जाती है।

रजनी खिलखिलाकर हंस दी- अच्छा आपकी थकान बस इतने से ही मिट गई।

उदयराज- हाँ सच।

रजनी- तो मुझे रोज अकेले में बाहों में ले लिया करो, जब जी करे, और कहके हंसने लगी

उदयराज उसके लाली लगे हुए होंठो को देखने लगा, की तभी काकी की आहट सुनाई दी, रजनी ने जल्दी से उदयराज के कानों में फुसफुसाते हुए कहा- काकी आ रही है, अब बस करो, मेरे बाबू

उदयराज- मन नही भरा मेरा।

रजनी- थकान नही मिटी, अभी तक (हंसते हुए)

उदयराज- नही, बिल्कुल नही

रजनी ने आज पहली बार शर्माते हुए एक बात उदयराज के कान में बोली- आज जल्दी सो मत जाना रात को आऊंगी आपके पास, फिर थकान मिटा लेना।

उदयराज- जिसकी बेटी इतनी सुंदर हो उसको नींद कहाँ आने वाली।

रजनी- धत्त, बाबू.....गंदे...

और शर्माते हुए रसोई में भाग जाती है, इतने में काकी आ जाती है और उदयराज बाल्टी उठा के नहाने चला जाता है
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Incestlala

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Update- 15

बैठक समाप्त हुई, सब लोग अपने अपने घर आ गए, उदयराज और काकी भी घर आ गए, लगभग शाम हो गयी थी। रजनी अपने बाबू और काकी को देखके खुश हो गयी और पीने के लिए पानी लायी, उदयराज भी रजनी को देखकर एक पल के लिए सब भूल गया, वो उसे कुछ देर के लिए देखता रहा, रजनी अपने बाबू की आंखों में बेसब्री और इंतज़ार देखकर थोड़ा मुस्कुरा दी और इशारे से थोड़ा सब्र और धीरज रखने को बोली फिर उदयराज हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुआ और द्वार पर खाट पे बैठ गया।

रजनी- बाबू लो, पानी पियों, बताओ क्या हुआ बैठक में कोई हल निकला?

उदयराज और काकी ने पानी पीते हुए रजनी को सब बताया।

रजनी- अपने अकेले वहां जाने का निर्णय ले लिया और गांव वालों ने आपको आसानी से अकेले जाने के लिए सहमति जता दी।

उदयराज- अरे नही बेटी, ऐसा नही है, बिरजू तो सबसे पहले बोला कि मैं जाऊंगा, मैंने ही उसे मना किया फिर वहां बैठे हर लोग साथ जाने के लिए तैयार थे परंतु वहां बहुत सारे लोग जा नही सकते, इसलिए मुखिया होने के नाते मैं ही वहां जाऊंगा।

रजनी- अपने मना किया और गांव वाले आसानी से मान गए, कोई भी ऐसा नही निकला जो जिद पकड़ के बैठ जाता कि कुछ भी हो हम अपने मुखिया को अकेले नही जाने देंगे, माना कि आप मुखिया हो और ये आपका फ़र्ज़ है पर गांव वालों का भी तो फ़र्ज़ है कि वो अपने मुखिया को अकेले न छोड़ें। आखिर आप जा तो वहां हमारे कुल, हमारे गांव की समस्या के लिए ही रहे हो न बाबू।

उदयराज- नही बेटी गांव वालों पे संदेह न कर मेरी बिटिया, एक भी इंसान वहां मेरे साथ जाने के लिए पीछे नही हटा, मैंने ही रोका उन्हें।

रजनी- पर आपने ये कैसे सोच लिया कि आपकी अपनी ये बेटी आपको अकेला जाने देगी, मैं आपको वहां अकेला हरगिज नही जाने दूंगी, आपके सिवा कौन है मेरा, न जाने कैसा रास्ता होगा, कितना वक्त लगेगा, कभी उस तरफ कोई गया नही, कितना दुर्गम रास्ता होगा, न जाने वो लोग कैसे होंगे, जब आप खुद बता रहे हो कि वो महात्मा आदिवासियों के बीच रहता है तो ऐसे आदिवासियों के बीच मैं आपको हरगिज़ अकेले नही जाने दूंगी, न जाने रास्ते में कहां कहां रुकना पड़े, कब तक आप अकेले बैलगाड़ी चलाओगे, कहाँ ठहरोगे, क्या खाओगे, क्या पियोगे, किसी भी कीमत पर मैं आपको अकेला नही छोड़ सकती, इतना कहते हुए रजनी रुआँसी हो गयी।

उदयराज ने उठकर रजनी को काकी के ही सामने बाहों में भर लिया- ओह्ह मेरी बेटी, मैं अब क्या बोलूं, लेकिन एक छोटी बच्ची को लेके तेरा मेरे साथ जाना क्या ठीक होगा?

रजनी- कुछ भी हो, मैं उसे भी ले चलूंगी, पर मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी।

काकी को भी रजनी की बात ठीक लगी, उदयराज का एक ऐसी जगह अकेले जाना ठीक नही था, और उदयराज ने ये फैसला किया था कि ये काम केवल मुखिया के हांथों ही होगा तो कम से कम मुखिया के घर वाले तो जा ही सकते है उसके साथ, किसी भी इंसान का बिल्कुल अकेले जाना ठीक नही, बात यह नही थी कि उन आदिवासियों से कोई डर था क्योंकि वो तो एक महात्मा के रक्षक थे वो भला किसी को नुकसान क्यों पहुचायेंगे बल्कि बात ये थी कि रास्ता लंबा है, अकेले बैलगाड़ी चलाते चलाते वो थक जाएगा तो एक प्यारी सी गोद चाहिए जिसपर सर रखके वो आराम कर ले, भूख लगेगी तो कोई प्यारे प्यारे हांथों से खाना खिला दे, धूप में चलते चलते थक जाए तो अपनी जुल्फों तले छाया दे दे, और ये सब काम कोई पुरुष नही बल्कि स्त्री ही कर सकती थी और रजनी से अच्छा तो कोई कर ही नही सकता था।

उदयराज भी रजनी का साथ छोड़ना नही चाहता था, वो चाहता था कि वो जहां भी रहे उसकी बेटी उसके साथ हो।

काकी- तो मैं यहां अकेले क्या करूँगी, मेरा भी तो फ़र्ज़ है कि मैं अपनी बेटी को अकेले न छोडूं, आखिर उसके साथ छोटी सी बच्ची है मैं रहूंगी तो उसको संभाले रहूँगी, कोई दिक्कत नही होगी, आखिर मुझे भी मेरा फ़र्ज़ पूरा करने दो, मुझे भी साथ ले चलो।

उदयराज- परंतु काकी, यहां घर का और जानवरों के ख्याल रखने के लिए कोई तो चाहिए।

काकी- उसके लिए मैं बिरजू और उसकी बेटी नीलम को बोल देती हूं, जानवरों का ध्यान रख लेंगे वो।

उदयराज - ठीक है फिर, मैं खुद बिरजू को बोल देता हूँ, पर एक बात मेरे मन में है कि मुझे अपने मित्र, रजनी के ससुर बलराज को भी ये घटना और हमारा ये निर्णय लेना सूचित करना चाहिए, आखिर वो मेरे मित्र हैं, उन्हें कुछ पता नही है अभी तक, बाद में पता चलेगा कि हमने इतना बड़ा निर्णय लिया है तो शायद उन्हें बुरा लगेगा, आखिर उन्होंने रजनी को मेरी सेवा के लिए उम्र भर यहां छोड़ दिया, उनका कितना बड़ा त्याग है, मुझे उन्हें बताना चाहिए।

रजनी- हां बाबू जरूर, ससुर जी को बता दीजिए, ये आपने सही कहा।

उदयराज ने तुरंत एक संदेशवाहक को भेज के बलराज को अपने घर आने के लिए आग्रह किया, बलराज ने संदेश वापिस भिजवाया की वो एक घंटे में उनके घर आ रहा है। इधर काकी बिरजू के घर जाके उसको और उसकी बेटी नीलम को जानवरों की देखभाल की जिम्मेदारी दे आयी, बिरजू तो काकी को देखके हाथ जोड़के खड़ा हो गया और बोला- काकी ये क्या बोल रही हो, आपको तो बोलने की भी जरूरत नही, आखिर उदय भैया हम सब लोगों के लिए ये कर रहे है, क्या हमारा इतना भी फ़र्ज़ नही, आप बेफिक्र रहिए।

नीलम को मन ही मन रजनी के इस निर्णय पर की वो अपने बाबू के साथ जरूर जाएगी, नाज़ होता है, वो सोचती है कि रजनी कितनी भाग्यशाली है जो हर वक्त अपने बाबू के साथ रहती है जैसे उनकी ही जीवनसंगिनी हो, ये सोचते हुए वो भी अपने बाबू बिरजू की तरफ देखने लगती है, और मुस्कुरा देती है। एक तो उस दिन शेरु और बीना की चुदाई देख जो खुमारी और नशा चढ़ा था वो उतरा नही था, ऊपर से रजनी का अपने बाबू के प्रति प्रेम नीलम पर भी असर कर रहा था वो भी अपने बाबू को न जाने क्यों बार बार देखती रहती थी छुप छुप कर। चुदाई की लालसा मन में बैठ गयी थी, उसका अब मायके में मन नही लग रहा था क्योंकि ससुराल में होती तो पति से चुदती पर यहां कौन उसे कस कस के चोदेगा? बूर ने उसकी बगावत कर रखी थी, बस वो उसे समझाए ही जा रही थी और अब उसका मन बदल रहा था, उसे अपने बाबू पर प्यार आ रहा था धीरे धीरे। रिझाना तो वो चाहती थी अपने बाबू को पर डरती बहुत थी, क्योंकि अभी ये सब एकतरफा ही था, बिरजू को इसकी आहट भी नही थी।

थोड़ी देर में उदयराज के घर से सामने कुएं के पास सड़क पर एक तांगा आके रुका, बलराज उसमे से उतरा, उदयराज ने देखते ही आगे बढ़के अपने समधी का स्वागत किया, रजनी घर में चली गयी जल्दी से और एक लाल रंग की साड़ी पहन कर घूंघट डाल कर दोनों के लिए पानी लेकर आई और अपने ससुर के पैर छुए,

बलराज- जुग जुग जियो बहू।

रजनी- पिताजी आप कैसे हैं।

बलराज- मैं ठीक हूँ बहू, तुम कैसी हो।

रजनी- मैं भी ठीक हूँ और आपकी पोती भी ठीक है, रजनी अपनी बेटी को ला के ससुर की गोद में दे देती है और वो उसे खिलाने लगता है। फिर रजनी को दे देता है। रजनी अंदर चली जाती है।

उदयराज और बलराज बातें करने लगते है उदयराज बलराज को सारी बातें बताता है, बलराज उसके निर्णय से बहुत खुश होता है कि आखिर वो उदयराज जैसे इंसान का मित्र और समधी है जिसे अपने गांव और कुल की जीवन रक्षा की इतनी चिंता है और उसे अपनी बहू पर भी नाज़ हुआ।

बलराज- तो कब निकलोगे वहां के लिए।

उदयराज- सोच रहा हूँ कल सुबह जल्दी ही निकल जाऊं।

बलराज- मैं भी चलना चाहता हूं तुम्हारे साथ मित्र।

उदयराज- नही मित्र, अभी तो मुझे ही जाने दो, आगे फिर कभी जरूरत पड़ी या दुबारा जाना हुआ तो बताऊंगा, वैसे भी वहां ज्यादा लोगों का जाना ठीक नही।

बलराज- ठीक है मित्र, जैसा तुम्हे ठीक लगे। तो फिर मुझे आज्ञा दो जाने की।

उदयराज- अरे! ऐसे कैसे, आज रात रुको कल सुबह जाना, कितने दिनों बाद तो आना हुआ है, ऐसे तुरंत नही जाने दे सकता मैं तुम्हे। रुको अभी सुबह चले जाना। लेटो आराम करो।

बलराज जाने की कोशिश करता है पर उदयराज उसे आज रात रुकने के लिए बोल देता है।

बलराज- ठीक है मित्र, फिर बिस्तर पर लेटकर दोनों बातें करने लगते है।

अंधेरा हो चुका था रजनी खाना बनाने लगती है, खाना बनने के बाद सबने खाना खाया फिर सब सो जाते हैं, सुबह उदयराज रजनी और काकी जल्दी उठकर सारी व्यवस्था करते है जाने की, रजनी नाश्ता तैयार करती है, काकी रास्ते के लिए कुछ राशन पानी रखने लगती है और उदयराज बैलगाड़ी तैयार करने लगता है, सारी व्यवस्था होने के बाद गांव वालों को सूचित किया जाता है कि वो अब निकल रहे हैं, नाश्ता करके बलराज भी अब घर जाने के लिए तैयार हो जाता है फिर गांव वाले इकठ्ठे हो जाते है सबलोग मिलकर उदयराज, रजनी और काकी को विदा करते है, बलराज भी अपने घर चला जाता है, उदयराज बैलगाड़ी चला रहा होता है और रजनी और काकी पीछे बैठे होते है, बैलगाड़ी के ऊपर छत भी होती है जिससे धूप न लगे, अभी तो खौर सूर्य भी नही निकला था जब वो लोग निकले।

सब गांव वाले चले जाते है परंतु नीलम और बिरजू वहीं खड़े जब तक बैलगाड़ी ओझल नही हो जाती देखते रहते हैं

नीलम- बाबू, रजनी कितनी खुशनसीब है न।

बिरजू- क्यों बिटिया, क्या हुआ?

नीलम- देखो न हर वक्त अपने बाबू का ख्याल रखती है।

बिरजू- हां ये तो है, पर खुशनसीब तो मेरी बिटिया भी है, क्या वो अपने बाबू का ख्याल नही रखती, बिल्कुल रखती है।

नीलम खुशी से झूम उठती है, और अपने बाबू के साथ घर की तरफ चलने लगती है।
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नीलम और बिरजू अपने घर आ जाते हैं, उस वक्त सूर्य भी नही निकला था बिरजू एक बार फिर अपने बिस्तर पे लेट जाता है और उसकी आंख लग जाती है, नीलम घर में जाके कुछ काम करने लगती है और सोचती है कि आज उसको गेहूं धोना है, मां ने बोला था कल ही गेहूं धो देना घर में आटा खत्म हो गया है, गेहूं धो कर छत पे फैला देना धूप में सूखने के लिए।

उसकी माँ थोड़ी बूढ़ी हो गयी थी वो घर का ज्यादा काम नही कर पाती थी, सब जानते थे कि नीलम की माँ की उम्र उसके बाप बिरजू से ज्यादा थी, उनके बाप दादाओ ने उस वक्त आपसी प्यार और जानपहचान होने की वजह से उम्र का अंतर होने पर भी शादी कर दी थी, इसलिए बिरजू अभी काफी जवान हष्टपुष्ट था पर नीलम की माँ ढल गयी थी।

सर्य निकल गया, बिरजू उठा और फ्रेश होकर नीलम से बोला- नीलम बेटी, मैं जरा घास लेने जा रहा हूँ, आज थोड़ी ज्यादा घास लानी होगी, उदय भैया की भैसों के लिए भी लाना होगा, बैल तो वो ले गए हैं, यहां पे जो गाय और भैंस हैं उनके लिए चारा ले कर आता हूँ।

नीलम- हां बाबू ठीक है, पर एक काम करो न, अपने घर के पीछे जो बजरी बोई है न उसमे काफी घास हो गयी है, उसी खेत में से काट लो, दूर न जाओ बाबू, बहुत घास है उसमें।

बिरजू- ठीक है बेटी, जाता हूँ वहीं और घर के पीछे की तरफ खेत में चला जाता है।

नीलम के घर के बिल्कुल पीछे बांस (bambooo) लगाया हुआ था और उसके पीछे खेत था, बांस इतने बड़े और लंबे लंबे थे कि पूरे छत को cross करके ऊपर तक फैले हुए थे।

नीलम ने भी घर में आके गेहूं धोना स्टार्ट कर दिया, धो धो कर बाल्टी में रखकर ऊपर छत पर फैलाने के लिए ले जाने लगी, छत पे पहुंच कर उसने छत पे ही खाट बिछाई और उसपे चादर डाल दिया फिर गेहूं उस खाट पे पलट कर हाँथ से फैलने लगी कि तभी उसको अपने बाबू बिरजू नीचे थोड़ी दूर खेत में घास काटते दिखाई दिए, सूर्य की रोशनी उनपर पड़ रही थी, सांवला बदन चमक रहा था, नीलम गेहूं फैलाना रोक कर बांस की ओट से कुछ देर देखती रही, ऐसा लग रहा था कि वो अपने बाबू की दीवानी हो रही है, प्यार हो रहा है उसे अपने बाबू से ही,
घास काटते हुए बिरजू को जरा भी ये अहसास नही था कि उसी की जवान शादीशुदा बेटी उसे निहार रही है, उस पर आसक्त हो रही है, दिल दे बैठी है वो उसे, कुछ चाहती है वो उससे, किस्मत खुलने वाली है उसकी। बड़े ही लालसा भारी और उम्मीद भारी नजरों से नीलम छुप छुप कर अपने बाबू को ताड़ रही थी, कभी शर्मा कर गेहूं फैलाने लगती कभी रुक कर फिर देखने लगती।

मन में सोच रही थी कि काश उसके बाबू उसकी मंशा जान लेते, कितना मजा आया होगा बीना को उस वक्त जब वो अपने पिता से चुदवा रही थी, क्यों है इतना नशा इस रिश्ते में? और छुप छुप के घर में ही हो तो कितना मजा आ जाये, पर न जाने मेरे बाबू कब ध्यान देंगे की उनकी बेटी अब उनसे क्या चाहती है, मुझे तो अपने ही बाबू से प्यार होता जा रहा है, क्या सोचेगी दुनिया अगर किसी को पता चल गया तो, खैर सोचे जो सोचे मुझे किसी की परवाह नही, भाड़ में जाये मान मर्यादा, बस मेरे बाबू मेरे हो जाएं, ससुराल भी न जाऊं मैं तो फिर, बहाने कर कर के यहीं रहूँगी।
कितना मन कर रहा है मेरा मिलन करने का, कैसे मैं रिझाऊं बाबू को, कैसे बताऊं उन्हें, किससे अपनी मन की व्यथा कहूँ, रजनी भी नही है जाने कब आएगी, लेकिन मैं रजनी से कहूंगी जरूर की वो कोई रास्ता या तरीका बताये, मैं जानती हूं वो इसे गलत नही कहेगी, वो मेरी बचपन की सहेली है, मेरी मन की व्यथा को समझेगी, क्योंकि उस दिन वो भी बीना और शेरु की चुदाई मजे से देख रही थी। अगर वो बाप बेटी के इस मिलन को गलत मानती तो उस दिन बीना और शेरु को चुदाई शुरू करने से पहले ही पत्थर मारकर भगा देती, या खुद उठकर भाग जाती, पर वो देखती रही, इसका मतलब वो इसे गलत नही मानती, हाय! रजनी जल्दी आ जा मेरी सहेली, अब तुझसे कुछ बात करना है मुझे। (मन में ही ये सब सोचे जा रही थी और कभी कभी मुस्कुरा उठती)

न जाने ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे बाबू मेरे मन में उस रूप में बसते जा रहे है, पहले मैं उनको बस पिता की नजर से ही देखती थी पर अब मैं उनमे एक मर्दाना पुरुष ढूंढ रही हूं, ये सब उस दिन बीना और शेरु की चुदाई देखकर ही हुआ है, उन दोनों ने मेरा नजरिया बदल दिया है। काश मेरे बाबू मेरी प्यास बुझा देते। काश! कितना मजा आ जाता, हाय!... काश!

यही सब सोचते हुए वो गेहूं फैलाये जा रही थी, फिर वो नीचे गयी और गेहूं की दूसरी बाल्टी ले आयी, उसने दूसरी खाट डाली और उस पर एक और चादर डाला और गेहूं की बाल्टी खाट पे अभी पलटी ही थी कि उसने अपने बाबू की तरफ देखा।

बिरजू घास काटना छोड़ कर बांस की तरफ आ रहा था, नीलम को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बाबू बांस की तरफ क्या करने आ रहे हैं वो थोड़ा साइड में छिप सी गयी, बांस की ओट थी जिससे बिरजू उसे नही देख सकता था, वहां से बिरजू नीलम को साफ दिखाई दे रहा था, पर बिरजू को नीलम नही दिख सकती थी क्योंकि वो ऊपर छत पर बांस की ओट में थी।

एकाएक बिरजू ने दोनों साइड नजर घुमाई और पीछे देखा की कहीं कोई देख तो नही रहा, पर उसकी नज़र ऊपर नही गयी, फिर एकदम से बैठकर अपनी धोती साइड कर, मोटा, काला और लंबा लंड जो सुस्त अवस्था में भी लगभग 7 इंच लंबा था, बाहर निकाल लिया, नीलम अवाक सी रह गयी अपने ही बाबू का काला विशाल लंड देखकर, नीलम की तो सांसे ही हलक में अटक सी गयी, शर्म से वो लाल हो गयी, हाय दैय्या! बोलकर उसने एक बार इधर उधर देखा कि कहीं कोई मुझे ये देखते हुए न देख ले, फिर उसने छत पे बनी सीढ़ियों की तरफ देखा कि कहीं कोई ऊपर तो नही आ रहा, फिर पीछे होकर बांस की ओट से अपने बाबू का मदहोश कर देने वाला लंड देखने लगी।

बिरजू ने लंड की आगे की चमड़ी को आधा पीछे किया जिससे लंड का आधा सुपाड़ा बाहर दिखने लगा जो कि किसी मध्यम आकार की गुलाबी गेंद जितना बड़ा था।

नीलम मंत्रमुग्ध और बदहवास सी हो गयी, उसकी सांसे उखड़ चुकी थी, वो एक टक बिरजू के लंड को निहार रही थी।

तभी बिरजू ने पेशाब की धार छोड़ दी, और लंड की आगे की चमड़ी को मूतते हुए पूरा पीछे खींच दिया, पूरा का पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया, इतना मोटा और बड़ा सुपाड़ा देख नीलम पागल सी हो गयी। धूप में चमकते काले मोटे लंड का हल्का गुलाबी सुपाड़ा गज़ब ही ढा रहा था, छत पर से कुछ दूरी होने पर भी नीलम लंड के आगे का छेद साफ देख पा रही थी और उसमें से निकलती पेशाब की धार ने उसे मदहोश कर दिया, कुछ ही पल में वो पसीने पसीने हो गयी।

बिरजू की इस तरह लंड की चमड़ी पीछे खींचकर पेशाब करने की आदत थी, पर उसकी इस आदत ने आज नीलम को मदहोश कर दिया था। एक तो वो वैसे ही चुदासी थी ऊपर से नियति ने उसे वही लंड दिखा भी दिया जिसके बारे में वो मन में अक्सर सोचती थी कि कैसा होगा, आज नियति ने साक्षात् दिखा ही दिया था कि जैसे कह रही हो ले देख ले अपने बाबू का लंड, यही तुझे अब चोदेगा, यही प्यास बुझायेगा, यही तेरी गहराई में उतरेगा।
पर कब? इसने तो अब प्यास और बढ़ा दी थी, बूर पनिया गयी नीलम की, किसी भी तरह से उसके पति का लन्ड उसके बाबू के लन्ड के आगे टिक नही सकता था।

अपने बाबू का लंड देखकर ही नीलम मचल उठी, मानो वह उसे अपनी बूर की गहराइयों में अंदर तक घुसता हुआ महसूस कर रही हो और शर्म से एक पल के लिए वहीं बैठ गयी, थोड़ी सांसे थमी तो उठी तब तक बिरजू मूत चुका था उसने अपने लंड को हल्का सा दो चार बार हिलाया ताकि पेशाब की बची बूंदें गिर जाएं और मदहोश कर देने वाले लंड को धोती के अंदर कैद कर वापिस घास काटने चला गया।

उसे जरा भी आभास नही हुआ कि उसकी सगी बेटी ने उसका लंड देख लिया है।

नीलम कुछ देर वहीं फिर से बैठ गयी, अपनी सांसों को काबू करती रही, बार बार बाबू का लन्ड नज़रों में आ जाता, कि वो कैसा था कितना बड़ा और मोटा था और उसका खुला हुआ आगे का हिस्सा hhhhhaaaaaiiiiiii.

सोचने लगी कि अब कुछ भी हो वो अपने बाबू को पा के रहेगी, वो ये जानती ही थी कि उसकी माँ अब बूढ़ी हो चली हैं तो बाबू तो प्यासे ही होंगे, और वो तो लंड देखके ही समझ गयी थी कि प्यासा तो है उनका लंड। पानी छोड़ छोड़ के उसकी पूरी पैंटी गीली हो गयी थी पर करे क्या? कैसे भी करके अपने मन को धीरज दिया, समझाया, फिर सोचने लगी आखिर हम बेटियां अपने बाबू को सुख क्यों नही दे सकती, बचपन से लेकर जवानी तक वो पुरुष, पिता के रूप में उसे पलता है, पोषता है, उसकी हर तरह से रक्षा करता है, और जब कभी वो पुरुष यौनसुख के लिए तरसने लगे तो क्या बेटी का फर्ज नही की वो अपनी अनमोल चीज़ (बूर) अपने उस पुरुष को परोस दे जिसने हमेशा उसकी रक्षा की हो, क्या उस चीज़ पर उसका कोई हक नही? क्यों करे वो लोक लाज की फिक्र, आखिर वो उन्ही के अंग से बनी है और वही अंग अगर उसमें मिल गया तो क्या गलत हो जाएगा और अगर हो भी जाएगा तो होता रहे।

यही सब सोच ही रही थी कि उसकी माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी जो उसे बुला रही थी, उसने बाल्टी उठायी और सीधा नीचे भाग गई।
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सुलोचना- पुत्र जिस तरह तुम्हारा हरा भरा गांव विक्रमपुर है ठीक वैसे ही हमारा गांव था, हमारा भी एक घर था, हंसी खुशी जिंदगी बीत रही थी पर मेरे पति को साधना, मंत्र जागृत करना, झाड़ फूक में माहिर बनना, इन सबमें बहुत रुचि थी, और इसी की खोज में वो हमेशा लगे रहते थे, घर गृहस्थी चलाने पर, धन अर्जित करने पर उनका कोई ध्यान नही था, एक बार बड़ा तांत्रिक बनने के चक्कर में अज्ञानी, पाखंडी, झूठे गुरुओं के चक्कर में आकर वो घर छोड़ कर चले गए, और गलत साधना कर बैठे बुरी आत्माएं उनपर हावी हो गयी और वो पागल हो गए, जंगल में भटकते भटकते उनकी मौत हो गयी।

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती थी इसलिए मैंने ये प्रण किया कि मैं उनके अधूरे सपने को पूरा करूँगी और स्वयं घर छोड़कर अपनी बेटी पूर्वा को लेकर एक सच्चे, दिव्य पुरुष की तलाश में निकल पड़ी, जो मुझे सही साधना की विधि बताकर उसमे सफल बनायें।

उदयराज- तो आपके पति का सपना क्या था?

सुलोचना- मेरे पति का सपना था कि वो एक सही सच्चे तांत्रिक बनकर जन मानस की सेवा करें।

उदयराज- ये तो बहुत नेक और अच्छा विचार था उनका।

सुलोचना- हाँ, पर शुरू में उन्होंने कभी किसी से इसका जिक्र नही किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि लोग उनपर हसेंगे, लोग ताने देंगे अगर वो सफल नही हुए तो, इसलिए उन्होंने सोचा था कि जब सफल हो जाऊंगा तब ही सबको बताऊंगा और गुपचुप तरीके से करने के लिए घर छोड़ दिया था पर गलत लोगों के हांथों में पड़कर वो गलत दिशा में चले गए और आज इस दुनिया में नही हैं।

उदयराज- तो आपको वो सच्चा सही गुरु कौन मिला जिसने आपको सही दिशा देकर आपके प्रण को सफल बनाया।

सुलोचना- वही, जिसके पास तुम जाना चाहते हो।

उदयराज- क्या?

सुलोचना- हां, तुमने सही सुना, तुम सही जगह जा रहे हो, तुम्हारी समस्या जो भी हो उसका समाधान वही कर सकते हैं, तुम्हारे मन में अगर अब भी कोई दुविधा है तो मैं कहती हूँ उसे निकाल दो। क्योंकि मैं भी उनकी शिष्य हूँ।

उदयराज आश्चर्य से देखता रह जाता है।

उदयराज- जब आप उनकी शिष्या है और आपको सिद्धि भी प्राप्त है तो मेरी समस्या तो आप भी हल कर सकती हैं

सुलोचना- नही पुत्र, मैंने केवल एक साधना की है, उनके पास सैकड़ों शक्तियां हैं, वो दिव्य हैं, वो गुरु है, मैं इतनी शक्तिशाली नही, मैं तो बस छोटी मोटी तांत्रिक ही हूँ।

उदयराज- लेकिन अभी तक तो आपने मेरी समस्या सुनी भी नही, न ही मैंने आपको बताई, तो आप ये कैसे कह सकती हैं की आप इसका हल नही बता सकती।

सुलोचला- मैं तुम्हे देखकर अपने मंत्रों की शक्ति से ये तो जान सकती हूं कि तुम्हारी समस्या कठिन है या सरल पर मैं उसका हल नही बता सकती, और तुम्हारी समस्या बहुत जटिल है (थोड़ा रुककर) और अगर सरल भी होती तो भी मैं उसका हल नही बताती।

उदयराज चकित होकर- भला क्यों?

सुलोचला- क्योंकि यह नियति तय करती है कि किस चीज़ का समाधान कहाँ होना है, किस्से होना है, कब होना है, इंसान के हाथ में कुछ भी नही।

उदयराज के मन में कई सवाल उठ रहे थे

उदयराज- तो जब आप यहां नई नई आयी तो आपके पास तो कोई ताबीज़ नही होगी फिर आप उन तक कैसे पहुँची।

सुलोचला- उस वक्त वो सिंघारो जंगल में इतनी अंदर तक नही बसे थे, वो यहीं रहते थे।

हालांकि उदयराज के मन में काफी सवाल थे पर इस वक्त अब और सवाल करना उसने उचित नही समझा। उसने सोचा कि वो बाद में पूछेगा।

सुलोचना ने उदयराज को आराम करने को बोलकर जंगल में कुछ विशेष जड़ी बूटियां लेने पूर्वा को ये बोलकर चली गयी कि जल्दी खाना बना ले।

अंदर रजनी और पूर्वा मिलजुलकर खाना बनाने लगी वो अब तक एक पक्की सहेली बन चुकी थी।

काकी गुड़िया को लेकर बाहर आ गयी और उदयराज से बातें करने लगी।

खाना बनने के बाद सबने खाना खाया, सुलोचना ने केवल शहद का सेवन किया और फिर कुटिया में हवन करने बैठ गयी।

कुटिया के बाहर दायीं तरह एक छोटी छप्पर की कुटिया और थी जिसमे सब लेटे थे।

सबसे कोने में उदयराज लेटा था, उससे पहले रजनी, उससे पहले काकी और सबसे बाहर की तरफ पूर्वा की लेटी थी।

उन चारों में केवल काकी ही ऐसी थी जो बिस्तर पे पड़ते ही सो गई, बाकी न तो पूर्वा सोई थी, न ही रजनी और न उदय।

पूर्वा इसलिए जग रही थी क्योंकि सुलोचना को बीच में किसी भी चीज़ की जरूरत पड़ सकती थी।

अचानक उदयराज को अपने सीधे पैर के तलवों पर रजनी के अंगूठे का स्पर्श महसूस हुआ, जो उदयराज के तलवों पर अंगूठे को धीरे धीरे बड़े ही हौले हौले रगड़ रही थी।

उदयराज अपनी बेटी के इस आमंत्रण और तरीके पर कायल हो गया उसने रजनी की तरफ मुह घुमाया तो वो उसी की तरफ करवट करके लेटी थी।

बाहर जलती हुई मशाल की अंदर आती हुई हल्की हल्की रोशनी में दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए, फिर काफी देर तक एक दूसरे की आंखों में देखते रहे।

रजनी अपने अंगूठे से अपने बाबू के पैर के तलवों में गुदगुदी सी करती रही फिर उसने एक बार पीछे पलट के देखा और चुपके से हल्का सा उदयराज के और नज़दीक आ गयी।

उसके पीछे उसकी बेटी सो रही थी फिर उसके बाद काकी और फिर पूर्वा लेटी थी।

रजनी और उदयराज कुछ बोल नही रहे थे क्योंकि वो जानते थे कि पूर्वा जग रही है हालांकि उसकी पीठ उन लोगों की तरफ थी इस बात का उन्हें सुकून था।

अपनी सगी बेटी की तरफ से आमंत्रण पाकर उदयराज फूला नही समाया, और अब वह अपने पैर का अंगूठा रजनी के तलवों पे रगड़ने लगा, कभी रजनी उसे छेड़ती तो कभी वो रजनी को।

एकाएक उदयराज ने अपने पैर के अंगूठे को रजनी के पैर पर धीरे धीरे थोड़ा ऊपर करना चालू किया, रजनी को जैसे जैसे उसके बाबू का अंगूठा ऊपर आता महसूस हुआ उसने अपनी सलवार को पकड़कर ऊपर सरकाया ताकि उसके बाबू उसकी नग्नता को महसूस कर सकें पर सलवार एक लिमिट तक ऊपर आ सकती थी अब उसकी मोहरी टाइट हो गयी पैर में, तो रजनी ने हल्का सा जीभ निकालकर ठेंगा दिखाते हुए उदयराज को चिढ़ाया।

उदयराज मुस्कुरा दिया और फिर उसने बायां हाँथ रजनी के घुटनो पर रखा और धीरे धीरे सहलाता हुआ ऊपर की तरफ बढ़ने लगा, रजनी सिरह उठी, रजनी और उदय एक दूसरे की तरफ मुँह करके लेटे थे। रजनी ज्यादा सिसक नही सकती थी, ज्यादा क्या इस वक्त तो वो बिल्कुल आवाज नही कर रही थी।

उदयराज अपना हाथ जांघों तक लाया फिर कमर पे लाया और जब कमर से ऊपर बढ़ने लगा तो रजनी ने उसका हाथ पकड़कर चुपचाप सूट के अंदर डाल कर चुचियों को कपड़े के अंदर से छूने का इशारा किया न कि बाहर से।

अपनी बेटी की इस पहल और बेसब्री पर उदयराज झूम उठा।

उदयराज ने अपना हाथ चूचीयों की तरफ बढ़ाया, लेटने से पहले रजनी चुपके से ब्रा निकाल चुकी थी, जैसे ही उदयराज की उंगलियां अपनी सगी बेटी की मदमस्त मोटी सॉफ्ट सपंज जैसी चुचियों से टकराई वो दूसरी दुनिया में खो सा गया, निवस्त्र चुचियों को छुए उसे बरसों बीत गए थे, इतनी मस्त चूचीयाँ तो उसकी पत्नी की भी नही थी जितनी बेटी की थी
इस बात ने उसे रोमांचित कर दिया कि आज उसकी सगी बेटी ब्रा खोलकर उससे अपनी नग्न चूची दबवाना चाहती है।

अपने हथेली में एक चूची को पूरा भरकर उसकी नग्नता को उदयराज ने अच्छे से महसूस किया फिर हल्के हल्के दबाने लगा, रजनी के सॉफ्ट निप्पल कड़क होकर खड़े हो गए, दूध की हल्की हल्की बुँदे उदयराज की हथेली को गीला करने लगी, उदयराज अपनी तर्जनी उंगली निप्पल के किनारे किनारे गोल गोल घूमने लगा जिससे रजनी की हल्की सी सिसकी निकल ही गयी उसने तुरंत पलट के पीछे देखा पर सब ठीक था, इतने में उदयराज ने दो उंगलियों से निप्पल को पकड़कर हल्का हल्का दबा दिया, वह चाहता तो मसलना था पर वह ये भी जनता था कि रजनी के मुह से आवाज निकल सकती है जो कि अभी ठीक नही।

हल्का हल्का निप्पल को दबाने से उसमे से थोड़ा और दूध निकलने लगा तो उदयराज ने अपनी उंगलियों में लगा के उसे चाट लिया, ये देखकर रजनी अपनी बाबू की आंखों में देखने लगी, फिर धीरे से फुसफुसाके पूछा- बाबू भूख लगी है?

उदयराज धीरे से- बहुत, बरसों से।

रजनी (नशीली आंखों से देखते हुए) - अभी तो खाना खाया था न

उदयराज- मुझे इसकी भूख है।

रजनी- किसकी बाबू

उदयराज- दूध पीने की

रजनी- किसका दूध पियोगे बाबू

उदयराज- अपनी बेटी का

रजनी- oooohhhhh मेरे बाबू, सिर्फ पियोगे?

उदयराज- पहले देखूंगा, फिर पियूँगा..... दिखाओगी?

रजनी- क्या?

उदयराज- यही

रजनी- यही क्या बाबू?

उदयराज रजनी की आंखों में देखते हुए- "चूची, तुम्हारी चूची देखने का दिल कर रहा है" (उदयराज की आवाज ये बोलते हुए वासना में भारी सी हो गयी)

रजनी- uuuuuuffffffff, किसकी चूची बाबू।

उदयराज- अपनी सुंदर सलोनी बिटिया की।

रजनी- dhaaatttt गन्दू गंदे बाबू। कोई अपनी सगी बेटी की चूची देखता है।

उदयराज- कोई देखे न देखे मैं तो देखूंगा। किसी की बेटी इतना प्यार करने वाली भी तो नही है न।

रजनी- सच

उदयराज- हां, क्या मुझे दिखाओगी नही?

रजनी मुस्कुराकर अपने बाबू की आंखों में वासनामय होकर देखने लगी फिर पलटकर उसने एक बार पीछे देखा तो पूर्वा अपनी जगह पर नही थी शायद वो उठकर अपनी माँ की मदद के लिए गयी थी और उन्हें पता नही चला, रजनी को मौका मिल गया।

रजनी ने तुरंत अपना सूट ऊपर कर दाहिनी चूची को बाहर निकाल दिया, मोटी सी चूची सपंज की तरह उछलकर बाहर आ गयी, अपनी ही सगी बेटी की इतनी मदमस्त उन्नत तनी हुई सख्त चूची उदयराज की आंखों के सामने नग्न हो गयी थी, हल्की रोशनी में वो गोरी गोरी चूची की पूर्ण आभा तो नही देख सकता था पर जितना भी दिख रहा था उतने ने ही उदयराज के लंड को लोहा बना दिया।

इतनी मोटी चूची देख वो कुछ पल देखता ही रहा, उसकी खुद की बेटी ही कितनी मदमस्त यौवन की मलिका है, रजनी कभी अपने बाबू के चेहरे को देखती कभी मुस्कुरा देती और कभी पलटकर पीछे देखती की कहीं पूर्वा न आ जाये।

उदयराज ने वासना में थोड़ी कंपन करती हथेली को चूची पर दुबारा रखा और दबा दिया
रजनी सिसक उठी।

उदयराज अब पागलों की तरह चूची दबाने लगा तो रजनी सिसकते हुए बोली- बाबू अभी पी लो इसको जल्दी से, ज्यादा वक्त नही है, आ जायेगी वो।

उदयराज ने फट से मोठे तने हुए गुलाबी निप्पल जिसमे से दूध रिस रहा था मुह में भर लिया।

रजनी की तो नशे में आंखें ही बंद हो गयी, अपने बाबू के होंठ अपने निप्पल पर महसूस करके रजनी के मुह से aaahhh निकल गयी, पर उसने जल्दी से अपने को संभाला, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसके बाबू उसकी चूची पी रहे हैं, उदयराज बच्चे की तरह चूची भर भर के दूध पीने लगा, दूध की धार उसके बरसों से प्यासे गले को तर करती हुई पेट में जाने लगी। दूध के स्वाद में अलग ही लज़्ज़त और महक थी, जो उदय को दीवाना बना गयी।

अपनी सी सगी बेटी का दूध पीके वो जन्नत में था, लंड इतना सख्त हो गया था कि धोती फाड़ के अभी बाहर आ जायेगा। पर अभी उसने नीचे का हिस्सा दूर ही रखा था, शायद उसका अभी सही समय नही था या यूं समझ लीजिए लाज की एक डोर अभी भी जुड़ी हुई थी।

रजनी आंखें बंद किये बेसुध सी हो गयी थी, अपने बाबू को इस तरह अपनी चूची पीते हुए देख वो वासना से पगला सी गयी थी, उसकी चूची जितना हो सके उसके बाबू भर भर के पी रहे थे, इतना मजा उसे कभी अपने जीवन में नही आया, जितना आज उसे अपने बाबू के साथ आ रहा था, वासना और कामोन्माद में वो फिर अपने पैर अपने बाबू के पैरों से रगड़ने लगी और उससे रहा नही गया, खुद ही कस के अपने बाबू के बदन से लिपट गयी, उदयराज का सर किसी बच्चे की तरह रजनी की चुचियों के बीच था जिसमे से एक खुली थी एक सूट के अंदर थी।

उदयराज ने हथेली में चूची को भरा हुआ था और पिये जा रहा था उसका एक हाथ दूसरी चूची पर गया मानो वो कह रहा हो इसको भी खोलो।

रजनी ने बड़ी मुश्किल से पीछे मुड़कर देखा तो उसको पूर्वा के आने की आहट हुई, वो बोली- बाबू अब बस करो, बर्दाश्त नही होता, बाद में पी लेना, वो आ रही है।

उदयराज ने चूची पीना छोड़ अपनी बेटी की आंखों में देखा फिर एक बार चूची को देखा और फिर सूट को खुद ही नीचे सरका दिया इतने में पुर्वा आ गयी। दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे एक दूसरे की आंखों में देखते हुए मुस्कुरा दिए, रजनी ने पीछे मुड़कर देखा और फिर धीरे से सीधी होकर लेट गयी, साँसे उसकी अभी तक तेज चल रही थी, उदयराज थोड़ा पीछे होकर लेट गया।
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