Update- 12
काफी देर बीना की बूर चोदने के बाद शेरु अपनी बेटी की बूर में थरथरा के झड़ने लगा, बीना का भी कुछ ऐसा ही हाल था, बाप बेटी का मिलन हो चुका था।
ये देखकर रजनी बेहाल सी हो गयी, नीलम के मुंह से aaaahhhhh निकल गया ये देखकर और वो बोली- hhhaaaiiii अब फंस जाएंगे ये दोनों एक दूसरे में, अटक जाएगा शेरु का बीना की बूर में, कितना मजा आ रहा होगा दोनों को uuuuffffff.
इतने में दूर से गांव की कोई औरत उस तरफ आती दिखाई दी तो नीलम ये बोलकर की काकी मैं चलती हूँ, आज तो मजा ही आ गया इनको देखकर, अब तो ये ऐसे ही कुछ देर अटके रहेंगे, कोई हमे देखेगा इनको देखते हुए तो क्या सोचेगा, मैं चलती हूँ
रजनी की सांसे धौकनी की तरफ ऊपर नीचे हो रही थी, वो उसे देखकर हंस पड़ी, इतने में नीलम उठी और अपने घर की तरफ भाग गई।
रजनी का भी अब काम में कहां मन लगता उसकी तो हालत खराब हो चली थी, वो बार बार कभी काम करने लगती तो कभी बीना की बूर में अटके हुए शेरु के लंड को देखती और सिरह जाती। फिर वो एकदम से उठी और बोली- काकी अब रहने दो चलो मुझसे नही होगा अब काम, बाद में कर लेंगे, फिर वो भी घर के पीछे वाली कोठरी में जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ खुलता था उसको खोलकर कोठरी में चली गयी और वहां पड़ी खाट पर औंधे मुंह पसर गयी, वो जैसे हांफ रही थी, सांसे काफी तेज चल रही थी उसकी, बार बार वो अंगडाई लेती आंखें बंद करती तो कभी शेरु और बीना की चुदाई उसके सामने आ जाती तो कभी उसके बाबू का गठीला मर्दाना जिस्म, अनायास ही उसके मुंह से निकल गया- aaaaahhhhhhh बाबू, पास होकर भी क्यों हो तुम मुझसे इतना दूर। ऐसे ही वो बुदबुदाते जा रही थी
तभी काकी घर में आती है तो देखती है कि रजनी कोठरी में खाट पे लेटी है।
रजनी उन्हें देखती है तो उठकर बैठ जाती है, काकी उसके पास बदल में खाट पे बैठ जाती है और उसको अपने सीने से लगते हुए बोलती है- मैं जानती हूं बिटिया तेरी हालत, आखिर मैं भी एक स्त्री हूँ, मैं भी इस अवस्था से गुजरी हूँ।
रजनी बेधड़क काकी के गले लग जाती है और बोलती है- काकी हम स्त्रियों को आखिर इतना तड़पना क्यों पड़ता है, हमारा क्या कसूर है, हम स्वच्छन्द क्यों नही, क्यों नही हम अपने मन की कर सकते? क्यों हम इतना मान मर्यादा में बंधे हैं?
रजनी ने एक ही साथ कई सवाल दाग दिए
काकी- मैं तेरी तड़प समझ सकती हूं बिटिया।
स्त्री के हिस्से में अक्सर आता ही यही है, पुरुष स्वच्छन्द हो सकता है पर स्त्री इतनी जल्दी नही हो पाती खासकर हमारे गांव और कुल में, यहां कोई गलत नही कर सकता, करना तो दूर कोई सोच भी नही सकता, खासकर पुरुष वर्ग, स्त्रियां तो बहक सकती हैं पर जहां तक मैं जानती हूं हमारे कुल के पुरुष तो जैसे ये सब जानते ही नही है, हमारे गांव और कुल में तो ऐसा है कि अगर किसी की स्त्री या मर्द मर जाये या उसको उसका हक न दे तो वो पूरी जिंदगी तड़प तड़प के बिता देगा या बिता देगी पर कोई ऐसा काम नही करेंगे जिससे हमारे गांव की सदियों से चली आ रही मान मर्यादा भंग हो, हमारे पूर्वजों के द्वारा संजोई गयी इज्जत, कमाया गया नाम (कि इस कुल में, इस गांव में कभी किसी भी तरह का कुछ गलत नही हो सकता) कोई मिट्टी में नही मिलाएगा, यही चीज़ हमे दुनियां से अलग करती है
इसलिये ही हम जैसे लोग जो विधवा है, या जिनके पति नही है, या ऐसे पुरुष जिनकी पत्नी नही हैं उनकी जिंदगी एक तरह से नरक के समान ही हो जाती है, किसी से कुछ कह नही सकते, बस तड़पते रहो।
काकी कहे जा रही थी और रजनी उनकी गोदी में लिपटे सुने जा रही थी।
रजनी- लेकिन काकी ये कहाँ तक सही है, क्या ये तर्क संगत है?
काकी कुछ देर चुप रहती है और रजनी आशाभरी नज़रों से उनकी आंखों में देखती है।
काकी- नही! बिल्कुल नही मेरी बेटी। ये गलत है, पर हम स्त्रियाँ कर भी क्या सकती हैं
रजनी- क्या हमारे कुल के पुरुष, हमारे गांव के मर्द इतने मर्यादित है, मेरे बाबू भी ( रजनी ने फुसफुसके कहा)
काकी- मैं पक्के तौर पर नही कह सकती बेटी, ये तो खुद औरत को मर्द का मन टटोल कर देखना पड़ता है कि उसके मन में क्या है?
रजनी- अच्छा काकी क्या सच में आप वो करती अपने बाबू के साथ (रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा)
काकी- क्या? (जानबूझकर बनते हुए)
रजनी- वही जो अपने बाहर कहा था
काकी उसकी आँखों में देखती हुए- क्या कहा था मैंने?
रजनी काकी का हाँथ हल्का सा दबाते हुए भारी आवाज में फुसफुसाते हुए बोली- यही की आप अपने बाबू को अपनी बूर का मजा उनको देती अगर वो मेरे बाबू जैसे होते।
काकी- hhhhaaaaiiiiii, हां क्यों नही, क्यों नही देती भला, आखिर ये उनका हक होता न, आखिर उन्होंने मुझे पाल पोष के बड़ा किया, मेरा इतना ख्याल रखा, और अगर मुझे ये पता लगता कि वो मुझसे वो वाला प्यार करते है जो एक औरत और मर्द करते है, या मुझे ये पता लगता कि वो मुझे दूसरी नज़र से देखते है तो मैं भला क्यूं पीछे रहती। भले ही वो मेरे पिता थे पर थे तो वो भी एक मर्द ही न। (काकी की भी आवाज भर्रा जाती है)
रजनी फिर से गरम होते हुए- पर काकी आपको ये कैसे पता लगता, आप ये अंतर कैसे कर पाती की वो आपको बेटी की नज़र से नही देख रहे बल्कि वासना की नजर से देख रहे हैं
काकी- ये तो बिटिया रानी औरत को खुद ही पता लगाना होता है कि उसके घर के मर्द उसे किस नज़र से देखते हैं। उनकी हरकतों से।
रजनी काफी देर सोचती है फिर
रजनी- तो काकी सच में आपने अपने बाबू को मजा दिया था।
काकी- नही री पगली, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, मेरे बाबू मुझे ज्यादा मानते नही थे, बचपन में ही उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और मैं यहां ससुराल चली आयी, उसके कुछ ही सालों बाद तेरे काका चल बसे और मैं विरह में कई वर्षों तक तड़पती रही, अब तो जैसे आदत पड़ गयी है, तेरे जैसी मेरी किस्मत कहाँ मेरी की मेरे ससुराल वाले बोलते की बेटी तू उम्र भर अपने पिता के पास रह सकती है।
रजनी को मन ही मन इस बात पे नाज़ हुआ।
काकी- तू मुझे गलत तो नही समझ रही न बेटी।
रजनी- ये क्या बोल रही हो काकी, आप तो मेरी माँ जैसी हो, और आज तो मैं और भी खुश हूं कि एक दोस्त की तरह आपने अपने मन की बात अपनी इस बिटिया को बताई, कोई बात नही छुपाई, मुझे तो आज आप पर नाज़ हो गया जो मुझे आप जैसी माँ मिली, जो मेरा दर्द समझ सकती है।
रजनी और काकी एक दूसरे को गले से लगा लेती हैं
काकी- ओह्ह! मेरी बेटी, बेटी मैं कोई ज्ञानी या सिद्ध प्राप्त स्त्री तो नही की भविष्य देख सकूँ पर इतना तो मेरा मन कहता है कि जो पीड़ा मैन झेली है वो तू नही झेलेगी, तेरे हिस्से में सुख है, समय अब बदलेगा, जरूर बदलेगा।
ऐसे कहते हुए वो रजनी के माथे को चूम लेती है और बोलती है कि तू जाके नहा ले गर्मी बहुत है थोड़ी राहत मिल जाएगी, शाम हो गयी है तेरे बाबू भी आते होंगे
रजनी- हाँ काकी
और रजनी नहाने चली जाती है, काकी कुछ देर बैठ के सोचती रहती है फिर अचानक ही गुड़िया उठ जाती है तो काकी उसको लेके बाग में घूमने चली जाती है रजनी के ये बोलकर की वो नहाने के बाद गुड़िया को दूध पिला देगी।
रजनी को नहाते नहाते काकी की बात याद आती है की औरत को खुद ही अपने घर के मर्द का मन टटोलना पड़ता है कि वो उसको किस नज़र से देखता है, और इस वक्त घर में एक ही मर्द था वो थे उसके पिता, यह बात सोचकर वो रोमांचित हो जाती है, और सोचती है कि वो अब ऐसा ही करेगी। वो उस दिन कुएं पर हुई बात सोचती है कि कैसे उस दिन बाबू ने मुझे बाहों में भरकर मेरी पीठ को सहला दिया था और मेरी सिसकी निकल गयी थी। हो न हो उसके मन में कुछ तो है।
ऐसा सोचते हुए वो जल्दी जल्दी नहा कर एक गुलाबी रंग की मैक्सी डाल लेती है। आज गर्मी बहुत थी और अभी खाना भी बनाना था, फिर वो गुड़िया को दूध पिलाती है और खाना बनाने के लिए चली जाती है।
आज काफी देर हो गयी पर उदयराज अभी तक आया नही था, अंधेरा हो गया था, रजनी खाना बनाते हुए बार बार बीच में उठकर बाहर आती और जब देखती की उसके बाबू अभी तक नही आये तो उदास होकर फिर जाके खाना बनाने लगती।
काकी इस वक्त गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हुई थी कि तभी उदयराज हल और बैल लेके आ जाता है, बैल बंधता है और पसीने ले लथपथ सीधा घर में रजनी, ओ रजनी बोलता हुआ जाता है।
रजनी उदयराज को देखके चहक उठती है वो उस वक्त आटा गूंथ रही होती है अपने बाबू के मजबूत और गठीले बदन पर जब उसकी नजर जाती है तो वो रोमांचित हो जाती है और उदयराज के जिस्म की पसीने की मर्दानी गंध उसको बहुत मनमोहक लगती है, वो उदयराज से बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलती है कि- क्या बाबू, कब से मैं राह देख रही हूं आज इतनी देर।
उदयराज अपनी बेटी को आज मैक्सी में देखकर बहुत खुश होता है और बोलता है- बेटी, मैं तो वक्त से ही घर आने के लिए निकला था कि रास्ते में कुछ लोग मिल गए तो उन्ही से बात करने लगा।
रजनी- अच्छा! लगता है आपको अपनी बेटी की याद नही आती (रजनी ने जानबूझकर ऐसे बोला)
उदयराज- याद नही आती तो भला घर क्यों आता मेरी बिटिया रानी। बस इतना है कि थोड़ी देर हो गयी, और अब मेरी बेटी अगर इस बात से मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।
रजनी - आपकी बेटी आपसे नाराज़ नही हो सकती ये बात उसने आपसे पहले भी कही है न बाबू
रजनी आटा गूथ रही थी और उसका मादक बदन हिल रहा था, उदयराज सामने खड़ा खड़ा एक टक उसे ही देख रहा था, रजनी कभी शर्मा जाती, कभी मुस्कुरा देती, कभी खुद सर उठा के अपने बाबू की आंखों में देखने लगती।
फिर रजनी एकाएक बोली- ऐसे क्या देख रहे हो मेरे बाबू जी, अभी सुबह ही तो देखके गए थे, क्या मैं माँ जैसी दिख रही हूं क्या? और मुस्कुराके हंस दी।
उदयराज- अपनी बेटी को देख रहा हूँ, जो कि अपनी माँ से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है, और इस वक्त मुझे लगता है कि मुझसे नाराज है।
रजनी फिर हंसते हुए - अरे बाबू मैं आपसे गुस्सा नही हूँ मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।
उदयराज- काकी कहाँ है?
रजनी- वो गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हैं।
उदयराज- कितनी देर हो गयी?
रजनी- अभी अभी तो गयी हैं
अब उदयराज ने बड़ी ही चालाकी से ये बात घुमा के बोली- तो अगर एक बेटी अपने पिता से नाराज़ नही होती, और घर में उन दोनों के सिवा कोई न हो, तो भला वो अपने पिता से इतना दूर होती।
रजनी ने जब ये सुना और इस बात का अर्थ समझा की उसके बाबू क्या चाहते हैं तो उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ गए और वो मुस्कुराते और शर्माते हुए आटा गूँथना छोड़कर भागकर उदयराज के गले लग जाती है, उदयराज उसे और वो उदयराज को कस के बाहों में भर लेते हैं। एक बार फिर रजनी का गुदाज बदन उदयराज की गिरफ्त में था, इस बार वो रजनी की पीठ फिर सहला देता है और रजनी की aaahhhh निकल जाती है,
रजनी अपना हाँथ उदयराज की पीठ पर नही रख पाती क्योंकि उसके हाँथ में आटा लगा होता है, परंतु उदयराज उसे कस के अपने से इतना सटा लेता है कि उसका एक एक अंग उदयराज के अंग से भिच जाता है।
रजनी उदयराज की आंखों में मुस्कुराके देखने लगती है, और अपने पिता की मंशा पढ़ने लगती है, उदयराज भी रजनी की आंखों में देखने लगता है।
रजनी खिलखिलाकर हंसते हुए- अब आपको पता चला कि मैं आपसे नाराज़ नही हूँ।
उदयराज- हाँ, तुम मुझसे नाराज़ होगी न तो मैं तो जी ही नही पाऊंगा अब।
रजनी- अपनी बेटी से इतना प्यार करने लगे हो।
उदयराज- बहुत
रजनी- पहले तो ऐसा कभी नही किया
उदयराज- क्या नही किया।
रजनी- (लजाते हुए), यही की जब कोई न हो तब बेटी को बाहों में लेना।
उदयराज- मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत, की क्या करूँ, उसकी खूबसूरती को बाहों में भरकर मेरी थकान मिट जाती है।
रजनी खिलखिलाकर हंस दी- अच्छा आपकी थकान बस इतने से ही मिट गई।
उदयराज- हाँ सच।
रजनी- तो मुझे रोज अकेले में बाहों में ले लिया करो, जब जी करे, और कहके हंसने लगी
उदयराज उसके लाली लगे हुए होंठो को देखने लगा, की तभी काकी की आहट सुनाई दी, रजनी ने जल्दी से उदयराज के कानों में फुसफुसाते हुए कहा- काकी आ रही है, अब बस करो, मेरे बाबू
उदयराज- मन नही भरा मेरा।
रजनी- थकान नही मिटी, अभी तक (हंसते हुए)
उदयराज- नही, बिल्कुल नही
रजनी ने आज पहली बार शर्माते हुए एक बात उदयराज के कान में बोली- आज जल्दी सो मत जाना रात को आऊंगी आपके पास, फिर थकान मिटा लेना।
उदयराज- जिसकी बेटी इतनी सुंदर हो उसको नींद कहाँ आने वाली।
रजनी- धत्त, बाबू.....गंदे...
और शर्माते हुए रसोई में भाग जाती है, इतने में काकी आ जाती है और उदयराज बाल्टी उठा के नहाने चला जाता है