Update- 74
बिरजू और नीलम कमरे में जाकर चुपचाप पलंग पर एक दूसरे को बाहों में भरकर लेट गए, महेन्द्र सोचते सोचते सो ही गया था, बिरजू और नीलम भी काफी थक गए थे तो वो भी एक दूसरे की बाहों में सो गए।
इस तरह विक्रमपुर में पाप ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे, जो काम नीलम, बिरजू और महेन्द्र कभी सपने में भी नही सोच सकते थे आज वो सब कर डाला था, नियति तो बहुत खुश थी।
रात के 3 बज चुके थे बारिश कभी तेज तो कभी धीमी धीमी हो ही रही थी।
(तो चलिए अब चलते हैं जरा हमारी नायिका रजनी के पास और देखते हैं कि वहां क्या हो रहा है, रजनी की कहानी को यहां एक दिन पीछे जाकर देखना होगा, बात यहां से शुरू होती है जब नीलम रजनी के पास चूड़ीवाली के बारे में बताने के लिए दोपहर में आ रही थी परंतु वापिस चली गयी थी)
काकी ने नीलम को ये तो बोल दिया था कि वो शाम को नीलम के घर आएंगी पर वो और रजनी जा न सकी, दिन में जब नीलम वापिस चली गयी थी उस वक्त रजनी और उदयराज सो ही रहे थे, नीलम के वापिस जाने के ठीक आधे घंटे बाद रजनी उठती है।
रजनी- काकी...ओ काकी
काकी - हां बिटिया, उठ गई
रजनी- हाँ काकी....अब जाके थकान मिटी है कुछ
काकी- जा फिर जा के अपने बाबू को भी उठा दे, खाना तैयार है तुम लोग खा लो, फिर मैं जाउंगी जरा अपने घर।
रजनी- अपने घर.....क्या हुआ
काकी- अरे वो मेरे दालान के बगल में जो कटहल का पेड़ है न उसपर एक बहुत बड़ा मधुमक्खी का छत्ता है, काफी पुराना हो गया है, तो मैंने शहद निकालने वाले को बुलाया हुआ था वो अभी आएगा थोड़ी देर में, तो उसी वजह से जाउंगी, शहद निकलवा के ले आऊंगी, तू एक बाल्टी और कुछ उपले मुझे दे देना धुआं करने के लिए, बाकी समान तो उनके पास होता ही है। घर का पुराना शहद है, काफी काम आएगा इसलिए सोचा अब छत्ता निकलवा देती हूं, काफी मधुमखियाँ लदी रहती हैं उसपर हमेशा जो कि खतरनाक है।
रजनी- ठीक है काकी...आप बड़ा बर्तन ले जाना, छत्ता बड़ा है तो काफी शहद मिल जाएगा।
काकी- हाँ देखो....कितना निकलता है.....तू उठ जा और जा के अपने बाबू को जगा दे जल्दी.......अच्छा तू रुक मैं ही जा के उदय को जगाती हूँ तू हाँथ मुँह धो ले तब तक।
रजनी- काकी आप बाबू को जगा के लाओ तब तक मैं ही खाना निकाल देती हूं।
काकी- ठीक है.....निकाल दे सबका खाना और हां नीलम आयी थी अभी कुछ देर पहले।
रजनी- नीलम आयी थी।
काकी- हाँ.... दौड़ी दौड़ी आ रही थी तेरे को बताने की चूड़ीवाली आयी है पर मैंने ही बोला कि रजनी तो अभी सो रही है रात को काफी जगने की वजह से अभी दिन में सो रही है तो फिर बोली कि चलो मैं ही उसकी चूड़ियां पसंद करके ले लूँगी सोने दो रजनी को, और ऐसा कहकर वापिस चली गयी।
रजनी- क्या काकी अपने ऐसे बोल दिया कि रात में काफी जगने की वजह से।
काकी- अरे मैंने बहाना लगा के बोला कि रात को छोटी गुड़िया परेशान कर रही थी इसलिए सो नही पाई वो और अब दिन में उसकी आंख लग गयी है।
रजनी- अच्छा....फ़िर ठीक है.....मेरी सहेली बेचारी नीलम......कितना फिक्र करती है मेरी...काकी आप मुझे उठा देती न.....वो बेचारी मुझे बुलाने आ रही थी और आपने उसे रास्ते से ही वापिस भेज दिया, मैंने ही उसको बोला था कि जब चूड़ीवाली आएगी तो मुझे भी बताना।
काकी- अरे चलो कोई बात नही, उसके घर जा के ले आना और मिल भी लेना उससे।
रजनी- चलो ठीक है.....अभी जाउंगी शाम को या कल चली जाउंगी।
काकी- ठीक है.....मैं भी चलूंगी......उसकी अम्मा भी नही है बिरजू और वो अकेले ही होंगे दोनों।
फिर काकी गयी और उदयराज को उठाया, वही शहद वाली बात काकी ने उदयराज को भी बताई, सबने मिलकर दोपहर का खाना खाया और काकी बड़ी बाल्टी और उपले लेकर चली गयी अपने घर की तरफ। उस वक्त थोड़ी धूप खिली हुई थी।
काकी के जाते ही उदयराज घर मे आया और झट से रजनी को पीछे से बाहों में ले लिया और उसकी गर्दन और गालों पर जोरदार कई चुम्बनों की बौछार कर दी, रजनी को इस बात का आभास नही था वो थोड़ा चिहुँक सी गयी, फिर चुम्बनों के असीम सुख में खो गयी।
रजनी- मौके की तलाश में थे.. मेरे बाबू....ह्म्म्म
उदयराज- जिसकी बेटी इतनी खूबसूरत हो और उसी की हो चुकी हो तो वो भला क्यों न होगा मौके की तलाश में।
रजनी- हम्म ये तो है बाबू.....जिसके बाबू इतने अच्छे हो वो भला क्यों न हो जाये अपने ही बाबू की......अच्छा बताओ नींद पूरी हुई आपकी।
उदयराज- थोड़ी थोड़ी......पर अभी ज्यादा सोना भी नही था मुझे।
रजनी- ज्यादा सोना नही था मतलब
उदयराज- मतलब सोता ही रहूंगा तो पीछे वाली रसोई का खाना कब खाऊंगा, तुमने बोला था न कि थोड़ा आराम कर लेते हैं फिर दोपहर में अमरूद के पेड़ के नीचे खुले में मुझे पीछे वाली रसोई को खोलकर उसका खाना खिलाओगी।
रजनी- धत्त......पगलू.....बदमाश कहीं के....पीछे वाली रसोईं
उदयराज- हाँ मेरी जान.....पीछे वाली रसोई
रजनी मुस्कुराते हुए अपने बाबू की तरह पलटी और कस के उनसे लिपट गयी, उदयराज ने रजनी के भारी भरकम नितंब अपनी हथेली में थाम लिए और हल्का हल्का दबाने लगा।
रजनी- अच्छा जी.......पीछे वाली रसोई के खाने के इंतज़ार में बैठे हो आप, और मान लो काकी नही गयी होती तो।
उदयराज- तो भी अपनी बेटी को प्यार करने का मौका तो ढूंढ ही लेते।
रजनी- तो चलिए फिर दालान के बगल में अमरूद के पेड़ के नीचे, एक छोटी सी खाट ले चलिए बाबू और एक तकिया भी, वहां धूप भी आ रही है अच्छी, कोई उधर आता भी नही, तीनो तरफ से ओट है उधर।
उदयराज मारे खुशी के- अब आएगा मजा।
रजनी खिलखिलाकर हंस पड़ी और अपने बाबू के गाल खींचते हुए बोली- बदमाश बाबू.....बहुत इंतज़ार है तुम्हे पीछे वाली रसोई का.....गंदे.....बहुत गन्दू हो तुम।
उदयराज ने रजनी की गाँड़ को सहलाते हुए इशारा करके बोला- क्या करूँ ये है ही इतनी कामुक की इनको देखकर रहा नही जाता।
रजनी सिसकते हुए- तो चलो चखाती हूँ अपने बाबू को ये भी.....धूप में लेट कर
उदयराज ने रजनी को चूमा फिर एक छोटी खाट और तकिया लेकर दालान के पीछे अमरूद के पेड़ के नीचे आ गया, वाकई में सुनहरी धूप खिली हुई थी, मिलने वाले मजे के बारे में सोच सोच के उदयराज का लंड धोती में टनटनाया हुआ था, बार बार वो अपने 9 इंच मोटे लंड को हाथों से धोती के अंदर सेट कर रहा था।
अमरूद का पेड़ रजनी के घर के उत्तर की तरफ बने दालान जिसमे पशु बांधे जाते थे के पच्छिम की तरफ दीवार के पास था, सामने रजनी का घर ही था, पीछे के तरफ काकी के घर की दीवार थी, और सामने पस्चिम का एरिया पूरा दूर दूर तक खुला हुआ था, खेत ही खेत थे जिसमें ज्यादातर लंबी लंबी बाजरे की, मक्के की, और अरहर की दाल की फसल लगाई हुई थी, उस तरफ से सीधी धूप दालान के दीवार पर अमरूद के पेड़ से छनकर पड़ती थी।
रजनी की बेटी अभी सो ही रही थी उसने सोते सोते ही उसे थोड़ा और दूध पिला दिया जिससे कि वो उठे न, कुछ देर और सोती रहे, बेटी को उसने बरामदे में खाट पर सुला कर थोड़ी देर थपकी दी और एक कजरौटा और चाकू उसके सर के पास रखा ताकि वो सोते सोते कोई बुरा सपना देखकर चौंके न, वो निश्चिन्त होकर गहरी नींद सो गई।
दिन में ही खुले में चुपके चुपके अपने बाबू के साथ जवानी का खेल खेलने के बारे में सोचकर ही रजनी की भी साँसे वासना में कब से फूल रही थी, जल्दी से अपनी बेटी को सुलाकर वो साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई इधर उधर एक बार नज़र दौड़ाती हुई दालान के पीछे चली गयी जहां उसके बाबू खाट पर लेटे उसका इंतजार कर रहे थे, धूप खिली हुई थी।
दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए।
रजनी ने एक बार थोड़ा आगे बढ़ कर खेतों का मुआयना करना चाहा कि कहीं कोई आस पास है तो नही, पर अक्सर उधर कोई आता नही था फिर भी रजनी गयी, रजनी जब जा रही थी तो उदयराज अपनी बेटी के थिरकते हुए मादक चौड़े नितंब देखकर मंत्रमुग्ध सा होता जा रहा था, रजनी ने कुछ दूर आगे जाकर इधर उधर अच्छे से देखा और पलट कर दूसरी तरफ से घूमकर आने लगी पर वहां रास्ते में एक थोड़ी चौड़ी नाली थी जिसमे से पानी बहकर खेतों में जा रहा था, रजनी उछलकर नाली पार करती हुई अपने बाबू के पास आ गयी, उदयराज रजनी को ही निहार रहा था, नाली पार करते वक्त उछलने से रजनी की मादक 34 साइज की दोनों भरी भरी चूचीयाँ ब्लॉउज के अंदर एक बार तेज और दो बार हल्का सा उछल गयी जिसको देखकर उदयराज मदहोश हो गया।