Update- 83
नरेन्द्र अपनी बेटी कंचन की दोनों फूलकर तनी हुई चूचीयों को पिये जा रहा था, नीचे बूर में लंड जड़ तक समाया हुआ था, कंचन पर तो सनसनाहट की अब दोहरी मार हो रही थी, एक तो उसकी कमसिन सी गोरी बूर में उसके बाबू का काला लौड़ा जड़ तक घुसा हुआ उसे जन्नत का अहसाह करा रहा था ऊपर से उसके बाबू का लगातार उसकी छलकती चूचीयों को सहला सहला कर पीना उसे बेसुध कर रहा था, इतनी उत्तेजना उसे जीवन में कभी नही हुई थी, अत्यधिक उत्तेजना में वो कभी तेज तो कभी धीमे धीमे सिसकती कराहती जा रही थी।
बड़े प्यार से बीच बीच में सर नीचे कर कभी अपने सगे बाबू को अपनी चूचीयाँ किसी बच्चे की तरह पीते देख कर उनके सर को चूम लेती और कभी खुद ही अपनी मोटी चूची को पकड़ के गुलाबी कड़क निप्पल को बड़ी मादकता से उनके मुँह में भरती तो नरेन्द्र और उत्तेजित होकर चूचीयों पर और टूट पड़ता, "हाय.....बाबू.......ऊई अम्मा.....ईईईईईईईईईशशशशश.......कैसे पी रहे हैं आप मेरी चूची..........आआआआआ आहहहहहहह.........मेरे बच्चे.......मेरे बाबू
मेरे बच्चे बोलने पर नरेन्द्र ने सर उठा के नीलम को देखा तो वो मुस्कुराते हुए बहुत ही प्यार से उन्हें देख रही थी, नरेन्द्र को कंचन के बच्चा बोलने पर उन्हें इतना प्यार आया कि उन्होंने थोड़ा ऊपर उठकर उसके मुस्कुराते होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया और बोला- हाँ मैं अपनी बेटी का बच्चा हूँ।
कंचन ने वासना में फिर बोला- मेरा बच्चा......और पियो न बाबू मेरी चूची..... मेरा बच्चा बनकर
कंचन के मुंह से "चूची" सुनकर नरेन्द्र को अदभुत उत्तेजना होने लगी, वो समझ गया कि उत्तेजना अब कंचन के सर चढ़कर बोल रही है, उसकी आँखों में देखने लगा तो कंचन भी अपने बाबू को देखकर मुस्कुराने लगी, नरेन्द्र बोला- क्या पियूँ अपनी बिटिया की.....उसका बच्चा बनकर
कंचन ने उनकी आंखों में देखते हुए बोला- "चूची"
और इस बार वो शरमा कर अपने बाबू के सीने से लग गयी, मोटी मोटी तनी हुई चूचीयाँ एक बार फिर नरेन्द्र के बालों से भरे सीने से किसी सपंज की तरफ दब गई। नरेन्द्र ने कंचन के चेहरे को ऊपर किया तो उसकी आंखें बंद थी, बेटी के होंठों पर नरेन्द्र ने अपने होंठ रख दिये और बड़ी तन्मयता से कुछ देर चूसा, कंचन उनके सर को सहलाते हुए पूरा साथ देने लगी। कुछ देर होंठ चूसने के बाद वो गालों पर चुम्बन करता हुआ नीचे झुका और एक बार फिर मोटी मोटी तनी हुई चूचीयों को मुंह मे भर लिया तो कंचन सिसक उठी, नरेन्द्र फिर लगा अपनी बेटी की चूचीयों को मसल मसल कर पीने तो कंचन उत्तेजना में फिर कराह उठी, कुछ ही देर में कंचन की दोनों चूचीयाँ अत्यधिक उत्तेजना में तनकर और कस कस के मीजे जाने की वजह से लाल हो गयी, उसे अब इतना मजा आ रहा था कि उससे रहा नही जा रहा था, वो छटपटाने लगी, नीचे से हल्का हल्का जब खुद ही उसकी चौड़ी गाँड़ तीन चार बार ऊपर को उछली तो नरेन्द्र ने कंचन की आंखों में देखा और कंचन शरमाकर अपने बाबू से लिपट गयी, उसे विश्वास ही नही हुआ कि अचानक उसने कैसे बेशर्मी से खुद ही अपनी गाँड़ नीचे से उछालकर अपने बाबू को अब बूर चोदने का इशारा कर डाला, और एक बार और हल्का सा शर्माते हुए दुबारा अपनी गाँड़ नीचे से उठाकर अपने बाबू के कान में "बाबू अब चोदिये न" बोलते हुए उनसे फिर लिपट गयी, नरेन्द्र ने उसके चेहरे को सामने किया तो उसकी आँखें शर्म से बंद थी, होंठ थरथरा रहे थे, चहरे पर वासना की भरपूर खुमारी थी, उन्होंने कंचन के होंठों को कस के एक बार चूमा और होठ को बिना उठाए गाल पर से सरकाते हुए बाएं कान के पास ले जाकर बोला- क्या चोदू?
कंचन और शरमा गयी, नरेन्द्र ने उसके गाल को चूम लिया और बोला- बोल न
कंचन ने बोला- गंदे हो आप
नरेन्द्र - गंदेपन का अपना अलग ही मजा है.....बोलकर देख
कंचन शर्माते हुए बोली- "बूर" "बूर चोदिये न".......... आह बाबू
कंचन को बोलकर बहुत सिरहन हुई।
नरेन्द्र- किसकी बूर?.......किसकी बूर चोदू?
कंचन सिरहते हुए- "अपनी बिटिया की........अपनी बिटिया की बूर चोदिये"
कंचन के ये कहते ही नरेन्द्र उससे बुरी तरह लिपट गया और कंचन ने अपने बाबू को कराहते हुए अपने आगोश में भरकर नीचे से फिर एक दो बार अपनी गाँड़ को हिलाया, नरेन्द्र ने कंचन के कान में फिर बोला - बूर
कंचन फिर सिरह उठी, बदन उसका गनगना गया, उसके बाबू ने फिर उसके कान में धीरे से बोला- बूबूबूबूबूरररररर
कंचन फिर गनगना गयी और "अह.... बाबू" कहकर मचल उठी।
एक बार फिर नरेन्द्र ने कंचन के कान में दुबारा बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर.................बुरिया"
कंचन फिर एक बार सनसना गयी और इस बार अनजाने में उसके मुंह से भी धीरे से निकला- "लंड............पेल्हर"
और कहते हुए वो अपने बाबू को उनकी पीठ पर चिकोटी काटते हुए उन्हें चूमने लगी।
(पेल्हर अक्सर गांव में बोले जाने वाला शब्द है, जिसका अर्थ होता है बूर को पेलने वाला दमदार लंड)
नरेंद को इतना जोश चढ़ा की उन्होंने कस के अपने लन्ड को अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया, कंचन चिहुँक कर हल्का सा कराह उठी।
नरेन्द्र ने फिर बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर...........माखन जैसी तोर बुरिया"
इस बार कंचन ने गनगनाते हुए तुरंत उनके कान में बोला- "लंड.............लोढ़ा जइसन हमरे बाबू क पेल्हर"
(लोढ़ा- सिलबट्टा, जिससे सिल पर मसाला पीसा जाता है)
कंचन को अपने सगे बाबू के मुंह से और नरेन्द्र को अपनी सगी बेटी के मुंह से ये शब्द सुनकर बहुत उत्तेजना हो रही थी, और एक अलग ही प्रकार के रोमांच और वासना से बदन सनसना जा रहा था। दोनों इसी तरह थोड़ी देर तक कामुक उत्तेजक बोल बोल कर गनगनाते रहे फिर नरेन्द्र ने अपना समूचा लंड कंचन की बूर से बाहर निकाला और एक ही झटके में दुबारा जड़ तक पेल दिया, कंचन मारे जोश के थरथरा गयी, नरेन्द्र ने शुरू में आठ दस बार ऐसे ही किया और हर बार दोनों के मुंह से तेज सिसकी और कराह निकल जाती। अब तक नरेन्द्र के मोटे लंड ने अच्छे से बेटी की बूर में जगह बना ली थी बूर काफी देर से पहले ही रिस रही थी इसलिए कंचन को भी कम दर्द हो रहा था, ज्यादा से ज्यादा मीठे मीठे दर्द के अहसास से वो मस्ती में कराह जा रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसकी बूर की बरसों की खुजली मिट रही है, अपने ही सगे बाबू का लंड कैसे उसकी बूर की खुजली को मिटा रहा था और कितना अच्छा लग रहा था कि वो इसकी बयां नही कर सकती थी, कैसे उसके बाबू के लंड का मोटा चिकना सुपाड़ा उसकी बूर की प्यासी दीवारों से रगड़ता हुआ बच्चेदानी पर ठोकर मारता और फिर वापस जाता, वो आंखे बंद कर कराहते हुए जन्नत में थी।
अपनी सगी बेटी की मखमली बूर की लज़्ज़त पाकर नरेन्द्र पर भी अब वहशीपन छा रहा था, एक लेवल के बाद बूर को तेज तेज चोदने की इच्छा होने ही लगती है फिर चाहे बूर कितनी ही नाजुक क्यों न हो, और बूर भी एक लेवल के बाद यही चाहती है कि उसको बक्शा न जाय।
नरेन्द्र से रहा नही गया तो उसने झट से अपनी बिटिया की चौड़ी गाँड़ को अपने हांथों से उठाया और गचा गच बेरहमी से बूर को चोदने लगा, कंचन बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी, कभी वो जोर जोर से सिसकते हुए अपने पैर अपने बाबू के कमर से कस देती, कभी पैर हवा में उठाकर फैला लेती तो कभी कराहते हुए दोनों पैर फैलाकर खटोले के पाटों पर रख लेती, तेज तेज धक्कों के साथ लंड कभी बूर में बिल्कुल सीधा गप्प से जाता और बच्चेदानी से टकराता तो उसके मुंह से "आह बाबू" की तेज सिसकी निकल जाती और कभी सरसरा कर थोड़ा टेढ़ा होकर दीवारों से रगड़ता हुआ जाता तो वो तेजी से कराह कर मस्ती में "ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई अम्मा" कहते हुए थोड़ा उछल सी जाती। अपने बाबू का उसकी कमसिन बूर को इस तरह कुचल कुचल कर चोदना उसे अपने बाबू का और दीवाना बना रहा था।
नरेन्द्र काफी तेज तेज धक्के अपनी बेटी की बूर में मार रहा था, कंचन इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि वो भी नीचे से तेज तेज कूल्हे उछालकर अब अपने बाबू का साथ दे रही थी मानो अपनी निगोड़ी बूर जिसने उसे इतने दिन तड़प तड़प के परेशान किया हो उसको पिटवाने में अपने बाबू का साथ दे रही हो "कि हाँ बाबू इसको और चोदो ये मुझे बहुत तड़पाती है, अब छोड़ना मत इसको" अब लाज और शर्म छूमंतर हो चुकी थी दोनों एक दूसरे को इस कदर तेज तेज चोद रहे थे कि पूरा खटोला चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करते हुए हिलने लगा, तेज तेज चुदायी की सिसकियां झोपड़ी में गूंजने लगी।
तभी अचानक तेज धक्कों से खटोले के सिरहाने का बायां पाया टूट गया, खटोला पुराना था, उसका पाया टूटा तो खटोला बायीं तरफ से चराचर कर जमीन को छू गया, दोनों का वजन और तेज धक्कों की मार बूर तो झेल रही थी पर खटोला नही झेल पाया, एक साइड से नीचे पूरा झुकने की वजह से तकिया सरककर नीचे रखी टॉर्च से जा टकराया और टॉर्च गोल गोल घूमती हुई लुढ़ककर कुएं में जा गिरी, पर उसका जलना बंद नही हुआ, कुएं में नीचे मिट्टी थोड़ी गीली गीली थी और इत्तेफ़ाक़ देखो टॉर्च गिरी तो उसका पीछे का हिस्सा सीधे जमीन में धंस गया और मुँह ऊपर को था, टॉर्च से रोशनी अब कुएं के अंदर से सीधी झोपड़ी के छप्पर पर टकरा रही थी और झोपड़ी में रोशनी और हल्की हो गयी।
पर फर्क किसे पड़ने वाला था, दोनों बाप बेटी तो एक दूसरे में समाय बस एक दूसरे को भोगे जा रहे थे, जैसे ही खटोला टूटा एक पल के लिए नरेन्द्र रुका पर कंचन से नीचे से गाँड़ उचका के चोदते रहने का इशारा किया और इस रोमांच से नरेन्द्र और कस कस के धक्के अपनी बिटिया की बूर में मारने लगा, खटोला टूटने से कंचन का बदन कुछ टेढ़ा जरूर हो चुका था उसका सर नीचे और कमर से नीचे का हिस्सा ऊपर हो चुका था, नरेन्द्र उसपर चढ़ा ही हुआ था, अब बदन की पोजीशन इस तरह होने से नरेन्द्र का लंड कंचन की बूर में और गहराई में उतरने लगा, जिसने कंचन को दूसरी ही दुनियां में पंहुचा दिया, कुछ ही और तेज धक्कों के बाद दोनों का बदन तेजी से सनसना कर अकड़ने लगा और दोनों मदहोश होकर सीत्कारते हुए एक साथ झड़ने लगे, कंचन कस के अपने बाबू से लिपट गयी, "ओओओओओ ओहहहहहह.......मेरे बाबू.......मैं गयी.........आआआआआहहहहह दैय्या.......बस बाबू.....बस.......बस मेरे बाबू........आपका पेल्हर......कितना मजा देता है.......आआआआआहहहहह....मेरी बूर
कंचन ऐसे ही कराहते हुए काफी देर तक झड़ती रही।
नरेन्द्र ने तो आतिउत्तेजना में अपना समूचा लंड मानो अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया था,
"आआआआआहहहहह.......मेरी बेटी......कितनी सुखद है तेरी बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूररररररररररररर.........तेरी बुरिया........ये सुख सबको कहाँ मिलता है.........हाय मेरी बिटिया कहते हुए नरेन्द्र अपनी बेटी से कस के लिपटता चला गया।
कंचन झड़ते हुए परम चर्मोत्कर्ष की अनुभूति से सराबोर हो गयी। इतने प्यार और दुलार से अपने बाबू को चूमने लगी जैसे कोई मां अपने बेटे के विजयी होने पर उसे गले लगा कर प्यार करती है, दोनों काफी देर तक हाँफते हुए टूटे खटोले पर लेटे रहे।