Update- 85
महात्मा के दो सेवक सुलोचना को लेने के लिए आये थे सुलोचना उनके साथ महात्मा से मिलने चली गयी, गुफा में जाते ही महात्मा ने सुलोचना को अपने पास बैठाया और आशीर्वाद देते हुए दैविक पेय पीने को दिया और बोले- पुत्री मैंने तुम्हें आज यहां कुछ बताने के लिए और एक जिम्मेदारी तुम्हें सौंपने के लिए बुलाया है, तुम मेरी सबसे परम शिष्या रही हो, तुम्हारी भावना जनमानस के कल्याण के अनुरूप है, तुमने तन मन से सदैव मेरे बताए हुए आदर्श, आज्ञा का पालन किया है इसलिए मुझे तुम सबसे प्यारी हो और तुमपर भरोसा है कि यह काम सिर्फ तुम ही कर सकती हो।
सुलोचना हाँथ जोड़कर- जी महात्मन कहिए, आजतक मैंने आपकी कोई आज्ञा का उलंघन नही किया है, जैसा आपने कहा जैसा अपने सिखाया बताया मैंने वैसा ही किया है और आगे भी करूँगी, आपके बताए हुए रास्ते पर चलकर ही आज मैं यहां तक पहुंची हूँ और आज मेरी पुत्री पूर्वा भी आपके आशीर्वाद से मंत्र विद्या में कुशल होती जा रही है।
महात्मा- मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है तुम्हारी पुत्री अवश्य एक महान तांत्रिक शक्तियां प्राप्त कर तुम्हारे यश को आगे बढ़ाते हुए जनमानस की सेवा करेगी।
सुलोचना हाँथ जोड़े बैठी थी
महात्मा- पुत्री बात ऐसी है कि अभी तक जो शांति बनी हुई थी वो अब खंडित होती जा रही है हमे उसपर काम करना है।
सुलोचना- मैं समझी नही महात्मा जी
महात्मा- ये तो तुम जानती ही हो कि सिंघारो जंगल में एक शैतान जो श्रापित है वो एक पेड़ के रूप में वहां सजा काट रहा है, अभी तक वो मेरी आज्ञा का पालन करता था पर अब वो बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर अपनी सजा पूर्ण होने से पहले ही मुक्त होना चाहता है, हालांकि वो बहुत पहले से श्रापित है और वो क्यों श्रापित है ये तो मुझे भी नही पता, बस इतना ही जानता हूँ कि बहुत पहले से ही वो किसी ऋषि द्वारा श्रापित करके यहां बांध दिया गया था, जब मैं पहली बार इन पहाड़ियों पर बसने के लिए उस रास्ते से इधर की तरफ आ रहा था तो उसने मुझे रास्ता बताकर मेरी मदद की थी, यहां बसने के बाद बदले में मैंने उसे अच्छा शैतान जानकर अपने मंत्रों की शक्ति से उसपर लगे श्राप के कुछ बंधन को काट दिया ताकि वह थोड़ा इधर उधर घूम फिर सके, पर उसने वचन दिया था कि वो किसी का अहित नही करेगा।
हालांकि उसने अभी तक किसी का अहित नही किया है, परंतु बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर समय से पुर्व अपनी मुक्ति के लिए उनका साथ लेकर वो जो कर रहा है वो गलत है, मैं जानता हूँ कि वो समय से पूर्व मुक्त नही हो सकता, उस ऋषि के श्राप में बहुत शक्ति है, परंतु बहकावे में आकर वो जैसी जैसी बुरी आत्मायों को अपनी शक्तियां देकर पाप कर चुकी स्त्री की योनि रस लाने के लिए भेज रहा है वो गलत है, क्योंकि ये बुरी आत्माएं किसी की नही होती, ये दुष्ट होती है, ये किसी के शरीर में प्रवेश कर जीवन भर उसे परेशान कर सकती है, किसी को डरा सकती हैं, किसी को पागल कर सकती है, बीमार कर सकती है, इनका कोई भरोसा नही होता, ये जान लेने में भी परहेज नही करती, इन्हें इन्ही सब कामो में मजा आता है।
वो बुरी आत्माओं को अब ज्यादा से ज्यादा हर जगह भेज रहा है ताकि वो पाप कर चुकी या उसके विषय में सोच रही स्त्री की योनि का रस लाकर इकठ्ठा करें और फिर वो उस रस को यज्ञ कुंड में डालकर अपनी मुक्ति का मार्ग खोल सकें। पर जिस जिस स्त्री की योनि का रस उस यज्ञ कुंड में गया वो स्त्री इन बुरी आत्माओं की गुलाम हो जाएंगी, फिर ये आत्माएं उनपर अत्याचार करते हुए उन्हें भोगेंगी और फिर उन्हें छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। वो शैतान ये समझ नही पाया और बुरी आत्माओं के बहकावे में आ गया कि वो मुक्त हो जाएगा, वो मुक्त तो नही होगा पर लाखों मानव स्त्रियां इन बुरी आत्माओं के चंगुल में फंस जाएंगी, वो यज्ञ शैतान ही कर सकता है ये आत्मायें नही कर सकती, इसलिए इन आत्माओं ने उसको बहकाया है और वो बहक गया है, वो ये नही समझ पा रहा है कि ये बुरी आत्माएं उससे अपना काम करवा रही है न कि उसका काम कर रही है, वो अपनी शक्तियां इन आत्माओं को देकर पूरी दुनियां में भेज रहा है ताकि वो ऐसी स्त्रियां जो पाप कर रही है या कर चुकी है उन्हें खोजकर उनकी योनि का रस चुराकर ला सके।
मैं चाहूं तो शैतान को पूरी तरह बांध कर विवश कर सकता हूँ पर मैंने उसे एक जो जिम्मेदारी दी है कि उदयराज और रजनी के गांव में जब तक उनका मकसद पूरा नही हो जाता तुम उनकी रक्षा करोगे, और शैतान इसी बात का फायदा उठाकर की मैं अभी उसको पूरी तरह नही बांध सकता हूँ, अपनी मुक्ति का मार्ग खोज रहा है।
(सुलोचना आज पहली बार महात्मा के मुंह से योनि शब्द सुनकर लजा सी गयी, आज वर्षों बाद पहली बार उसे अजीब सा महसूस हुआ, उसके बदन में हल्की गुदगुदी हुई, महात्मा तो सीधे बोलने में लगे हुए थे, वो तो सुलोचना को अपनी शिष्या समझते हुए तपाक से बोले जा रहे थे पर "योनि रस" शब्द ने सुलोचना के अंदर बरसों से सो चुकी भावनाओं को जगा दिया था, शर्म उसके चेहरे पर झलक रही थी)
महात्मा- मुझे इससे परहेज नही है की वो अपनी मुक्ति का मार्ग खोजे पर इसके लिए वो जिन जिन बुरी आत्माओं को बढ़ावा दे रहा है वो जनमानस का बहुत अहित करेंगी।
सुलोचना महात्मा के मुँह से ये सब सुनकर चकित रह गयी और बोली- महात्मा जी कुछ बातें तो मैं जानती थी पर पूरी तरह नही जानती थी कि इतना बड़ा षडयंत्र चल रहा है, पर ये लोग ऐसी स्त्री को खोजते है जो पाप कर चुकी होती है मतलब कैसा पाप? मैं ठीक से समझी नही?
महात्मा- पुत्री पाप से मेरा अर्थ संभोग से है, ऐसा संभोग जो सामाजिक नियमो के अनुसार अनैतिक है, 'एक अनैतिक संभोग" जिसको समाज में गलत कहा गया है, पर क्योंकि इसमें अपूर्व सुख की अनुभूति होती है जिसको सोचने या करने से योनि से बड़ी मनमोहक गंध के साथ रस निकलता है, स्त्री संभोगरत हो या ऐसे पुरुष के साथ संभोग करने की इच्छा मन में लिए तरस रही हो जिससे उसका खून का रिश्ता हो या समाज में वो अनैतिक हो जैसे पिता, पुत्र, भाई, या कोई रिश्तेदार, तो उसकी योनि जो काम रस छोड़ते हुए रिसती है वही रस इन बुरी आत्माओं को चाहिए होता है, उसे सूंघकर इन्हें तृप्ति मिलती है।
(महात्मा के मुँह से ये सुनते ही सुलोचना का चेहरा शर्म से लाल हो गया, बड़ी मुश्किल से वो अपनी भावनाओं को छुपाकर नीचे देखने लगी)
महात्मा- इन आत्माओं को कुल 100 करोड़ योनि का रस इकट्ठा करना है और अभी तक ये केवल 31000 योनि रस इकट्ठा कर पाई हैं।
सुलोचना- ऐसा क्यों महात्मा जी, ये तो आत्माएं है बहुत तेजी से ये काम कर सकती है।
महात्मा- कर सकती है पर योनि भी तो तैयार मिलनी चाहिए न, जिस वक्त स्त्री अनैतिक संभोग को सोचते हुए उसकी अग्नि में जलेगी, या संभोग कर रही होगी, तो ही उसकी योनि से वो रस निकलेगा, इसे खोजने में वक्त लगता है, इसलिए इसमें वक्त लगेगा।
सुलोचना- तो मुझे क्या करना होगा महात्मन।
महात्मा- पुत्री तुम्हें इन आत्माओं की पहचान कर उन्हें मंत्र की शक्ति से पकड़कर एक नारियल में बांधकर जलाना होगा, पर इन आत्माओं को पहचानना बड़ा मुश्किल है, एक मंत्र को जागृत कर पहले तो एक एक को ढूंढना है फिर दूसरे मंत्र से उन्हें लालच देकर अपने पास बुलाना है, जब ये आएं तो फिर जल्दी से मंत्र से नारियल में समाहित कर इन्हें बांध कर जलाना होगा, परंतु उन्हें बुलाना कठिन है, और मैं अन्य दूसरे कार्य में व्यस्त होने की वजह से इन कार्य को वक्त नही दे पा रहा हूँ, इसलिए पुत्री तुम्हे बुलाया है ये कार्यभार तुम्हें सौपना चाहता हूं, क्योंकि मेरे बाद इस कार्य को तुम ही बखूबी कर सकती हो।
सुलोचना- आपकी आज्ञा सर आंखों पर महात्मा जी, एक पुरुष की अपेक्छा स्त्री के लिए इन बुरी आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, मुझे इनकी पहचान करने की भी जरूरत नही है, ये अपने आप आएंगी।
महात्मा चौंक से गए- कैसे पुत्री?....कैसे? बिना मंत्र के कैसे संभव है की ये आत्माएं तुम्हारे पास स्वयं आएं?
सुलोचना- है महात्मा जी....है.....देखो अभी आपने कहा कि ये आत्माएं ऐसी स्त्री को खोजती है जो पाप कर चुकी है या उसके विषय में सोचकर अति उत्तेजित होती है जिससे उसकी यो......
(योनि शब्द बोलने से पहले सुलोचना शर्म से नीचे देखने लगी, महात्मा ने उसे समझाया कि अच्छे उद्देश्य से किया गया कार्य या बातें गलत नही होती, तो पुत्री शर्माओ मत...और कहो....क्या कहना चाह रही थी)
सुलोचना- जिससे उसकी योनि से काम रस निकलता है और उसी को लेने ये आत्माएं आती है, तो स्त्री तो मैं भी हूं न, बस मुझे अनैतिक मिलन के विषय में सोचते हुए उसमे डूबना है और फिर प्राकृतिक रूप से वही प्रक्रिया होगी जो होता है, जैसे ही कोई आत्मा मुझे ढूंढते हुए मुझ तक आएगी फिर वो जिंदा बचकर जा नही पाएगी, अब क्योंकि वो मेरा रस ले ही नही जा पाएगी तो दूसरी आत्मा उसे लेने आएगी और फिर वो भी जलाकर मुक्त करा दी जाएगी, तो मेरे लिए ये काम बहुत आसान है महात्मा जी।
महात्मा ने उठकर सुलोचना के सर पर प्यार से हाँथ फेरा और उसे गले लगा लिया- तुम सच में बहुत महान स्त्री हो, मुझे गर्व है कि तुम मेरी शिष्या हो, सच में तुमने अपना जीवन जनमानस के लिए न्यौछावर कर दिया है, आज तुमने मेरी गुरुदक्षिणा दे दी पुत्री....दे दी, मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ रहेगा।
महात्मा ने सुलोचना को आशीर्वाद दिया और फिर अपनी जगह पर बैठ गए।
महात्मा- पर पुत्री आत्माएं बहुत है, तुम अकेले कितना करोगी, अगर मैं भी स्त्री होता तो हम दोनों साथ में मिलकर इन सारी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतार देते।
सुलोचना- महात्मा जी मैं अकेली कहाँ हूँ, आप ये कैसे भूल गए कि पूर्वा मेरी पुत्री भी है, वो भी मेरा साथ देगी, आखिर वो भी तो स्त्री ही है न, वो तो अकेले ही इन सबका सफाया कर देगी, आपके आशीर्वाद का असर उसपर बहुत है, वो बहुत गुस्सैल भी है महात्मा जी, पर दिल की बहुत साफ और निश्छल है।
महात्मा- मैं जानता हूँ पुत्री, ईश्वर की कृपा और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है।
महात्मा- तो पुत्री इस कार्य को जल्दी ही शुरू करो, क्योंकि मनुष्य योनि का सुख भोगने की लालसा लिए बड़ी तेजी से बुरी आत्माएं इसमें शामिल हो रही हैं।
सुलोचना- आप चिंता मत कीजिये महात्मा जी, इन आत्माओं को अच्छे से योनि का सुख भोगवा दूंगी मैं, अब आपने ये काम मुझे सौंप दिया है न अब आप निश्चिन्त रहो। पर हो सकता है अभी हमे विक्रमपुर जाना पड़ जाए, वहां पर भी एक यज्ञ कराना है, पर कोई बात नही जहां भी हम दोनों रहेंगी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतारती रहेंगी।
महात्मा- सदा सुखी रहो मेरी पुत्री, आज मैं बहुत खुश हुआ, तुमने मेरा बोझ हल्का कर दिया आज।
सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है महात्मा जी, आपका आशीर्वाद बना रहे.....अच्छा और दूसरी बात कौन सी है जो आप कहना चाहते थे।
महात्मा- वो मैं बाद में बताऊंगा पहले तुम कुछ खा पी ले और आराम कर ले।
सुलोचना- जो आज्ञा महात्मा जी
इतना कहकर महात्मा जी उठकर चले गए और सुलोचना गुफा में बने दूसरे कक्ष में आकर आराम करने लगी, दासियाँ उसके पैर दबाने लगी, उन्होंने सुलोचना को फल और दिव्य रस पीने को दिया, सुलोचना ने वो ग्रहण किया और दुबारा लेटकर आराम करने लगी।