Update- 87
जब पूर्वा ने अपनी माँ सुलोचना से पूछा तो सुलोचना ने कहा- महात्मा जी के यहां जाने से पहले जो बातें तूने मुझे बताई थी, बात तो वही है, तेरा अंदेशा सही था, शैतान अपनी जल्दी मुक्ति के लिए दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर मानव स्त्री का अर्क इकट्ठा कर रहा है।
पूर्वा- अर्क शब्द तो मुझे पता है अम्मा......पर कैसा अर्क?...... क्या पसीना?
सुलोचना- नही
पूर्वा- फिर.....फिर कैसा अर्क......... क्या रक्त?
सुलोचना- अरे नही पुत्री........रक्त अर्क कैसे हो सकता है....रक्त तो रक्त है...... बताऊंगी अभी। पहले पूरी बात तो जान ले।
पूर्वा- अच्छा बोलो अम्मा।
सुलोचना- दरअसल शैतान बहकावे में आ गया है बुरी आत्माओं के, वो अर्क आत्माओं को चाहिए ताकि वह मानव स्त्री को वश में करके हमेशा हमेशा के लिए भोग सकें।
"भोग सकें" शब्द अपनी माँ के मुंह से सुनकर पूर्वा थोड़ी असहज हो गयी, कुछ अजीब सा लगा उसे।
सुलोचना- शैतान की समय पूर्व मुक्ति संभव नही, बुरी आत्मायें उसे बहकाकर उससे अपनी मंशा पूर्ण करा रही है, क्योंकि यज्ञ वही कर सकता है।
(इस तरह सुलोचना ने पूर्वा को महात्मा द्वारा सारी बात बताई, पूर्वा चुपचाप सारी बात सुनती रही, बस सुलोचना ने पाप शब्द का व्याख्यान उस तरह नही किया जैसा महात्मा ने उसे समझाया था, आखिर वो उसकी कुवांरी पुत्री थी, सुलोचना न जाने क्यों थोड़ा झिझक सी गयी, बाकी सारी बातें उसने ज्यों की त्यौं पूर्वा को बता दी, पर पूर्वा भी जिद्दी थी, बार बार बस यही पूछती की अम्मा कैसा पाप, मैं समझी नही, आखिर थक हारकर सुलोचना को पाप कर्म को पूर्वा को झिझकते हुए समझाना पड़ा, क्योंकि रात का वक्त था, अंधेरा था दोनों एक लाठी की दूरी पर अपनी अपनी खाट पर लेटी थी इसलिए एक दूसरे का चेहरा नही दिखाई दे रहा था, दरअसल पूर्वा समझ तो पहले ही गयी थी पर जानबूझ के अपनी अम्मा को छेड़ रही थी और ये बात सुलोचना समझ नही पाई, जब वो अनैतिक संभोग को समझाने लगी तो दोनों ही लजा भी गयी थी।)
पूर्वा- अम्मा आप फिक्र मत करो आपकी पुत्री कल से इस काम में आपके साथ डटी रहेगी जबतक ये पूर्ण नही हो जाता, आपने सही कहा हम स्त्री हैं और एक स्त्री के लिए इस विधि से इन आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, अभी घर मे 40- 50 नारियल रखे हैं, जितना है उतनो का नाश कल कर देंगे।
सुलोचना- हां बिल्कुल बेटी, पर बहुत संभल के, अब सो जा।
पूर्वा- ठीक है अम्मा, आप भी सो जाओ
(दोनों ने एक दूसरे को बोल तो दिया पर नींद किसे आ रही थी, चुपचाप दोनों काफी देर तक लेटी रही, न चाहते हुए भी बार बार ध्यान उस पाप और अनैतिक संभोग पर जा रहा था, आज बहुत अजीब भी लग रहा था, आज पहली बार सुलोचना ने पूर्वा से ऐसी बात की थी और पूर्वा ने भी पहली बार अपनी माँ के मुख से ऐसी बात सुनी थी)
पूर्वा अपने मन में सोचने लगी "आज अम्मा के मुख से योनि शब्द सुनकर कितना अजीब लगा, हम स्त्रियों की दोनों जाँघों के बीच कितनी सुंदर चीज़ बनाई है ईश्वर ने, क्या लिंग भी इतना ही सुंदर होता होगा? मैंने तो आजतक देखा भी नही है। कैसा होता होगा? लिंग और योनि आपस में कैसे मिलते होंगे? इनको मिलाने पर कैसा आनंद आता होगा?
इनका मिलन कैसा होता होगा? मैंने सुना है कि योनि को "बूर" भी कहते है? और लिंग को क्या क्या कहते होंगे? वो देखने में कैसा होता होगा? उसको योनि में कहां डालते होंगे? योनि तो कितनी नरम होती है, कितना दर्द होता होगा? एक संपूर्ण पुरुष का लिंग कितना लम्बा और बड़ा होता होगा? इसको योनि से कैसे मिलाते होंगे, क्या योनि के अंदर उसको डालते होंगे, इतनी छोटी सी योनि में वो कैसे अंदर जाता होगा, गहराई में जाकर वो कैसा महसूस होता होगा?
पूर्वा की योनि में हल्का सा संकुचन हुआ तो उसने अपनी दोनों जाँघों से योनि को हल्का सा भींच दिया, वो चुपचाप अपनी अम्मा की तरफ पीठ करके लेटी यही सब सोचने लगी थी, न चाहते हुए भी उसके जेहन में अब यही सब बातें आ रही थी, पर उसने जैसे तैसे अपने को संभाला।
इधर सुलोचना अपने मन में- आज पूर्वा के सामने ये सब बोलकर कैसा अजीब सा हो रहा है, उसके मन की स्थिति न जाने क्या होगी? मुझे संभोग किये हुए कितना अरसा हो गया, जब वो थे तो यौनसुख मिलता था पर इतने वर्षों में आज पहली बार अजीब सा महसूस हो रहा है, काश की वो होते, अब अगर ऐसा सोचते हुए योनि की तपिश बढ़ेगी तो मैं क्या करूँगी? सोचूंगी तो मन करेगा ही और सोचना जरूरी है वो भी अनैतिक, अनैतिक संभोग के विषय में आज महात्मा जी ने कैसे बताया कि जो खून के रिश्ते में पिता, भाई या फिर पुत्र के साथ किया गया सम्भोग हो, जो समाज के नियमों के खिलाफ हो, पर उन्होंने स्वयं अपने मुख से कहा कि इसमें परम आनंद होता है, एक पुत्री अपने ही पिता के साथ सम्भोग करेगी तो कैसा लगेगा, एक बहन अपने ही सगे भाई के साथ संभोग करेगी तो कैसा लगेगा और एक माँ...... एक माँ अपने ही सगे पुत्र के साथ .......सम्भभोभोभोभो.....गगगगगग.......आह........ कैसा लगेगा उस वक्त.......उस माँ को अपने ही पुत्र के साथ संभोग करके.....जिसे उसने जन्म दिया है उसी के साथ.........इसमें कैसा अजीब सा नशा है.......ये सब सोचने पर सच में ये सब चीज़ें तन मन पर हावी होती हैं...... . और सच में अजीब सी तपिश होती है.....कितनी अजीब सी सनसनी होती है पूरे बदन में........पर मैं ये अभी क्या क्या सोचने लगी।
ये मैं कल अच्छे से सोचूंगी......एक मां अपने ही पुत्र के साथ...........अनैतिक संभोग।
दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।