"रजनी", "ओ रजनी बिटिया" जरा एक लोटा पानी ला, जोर की प्यास लगी है", - गांव का मुखिया उदयराज अपने सिर से गेहूं का बोझ जमीन पर गिराकर, अंगौछे से अपना पसीना पोछते हुए अपनी बिटिया को आवाज लगते हुए बोला।
रजनी- "लायी बाबू"
(Hello दोस्तों मैं हूँ S_Kumar, यह मेरी पहली कहानी है, आप लोगों की तरह कहानियों का शौकीन मैं भी हूँ, काफी दिनों से कहानियां पढ़ता चला आ रहा हूँ। आज सोचा क्यों न मैं भी एक कहानी लिखूं।
मैं कोई professional writer नही हूँ और न ही मैंने कभी कोई कहानी लिखी है, तो अगर कोई गलती हो तो माफ कीजियेगा और अगर अच्छी लगे या न भी लगे तो भी comment कीजियेगा।
यह कहानी हिंदी font में होगी जिसकी एक छोटी सी झलक आप लोग शुरू में ही देख चुके हैं, और हां यह कहानी पारिवारिक संबंधों पर आधारित है तो जिसको भी ऐसी कहानियां नही पसंद वो कृपया न पढ़ें। यह कहानी सामाजिक नियमों के खिलाफ है, पारिवारिक रिश्तों पर आधारित है, यह पुर्ण रूप से काल्पनिक है वास्तविकता से इसका कहीं कोई संबंध नही, अगर कहीं कोई संबंध पाया गया तो वह बस एक संयोग ही होगा। इस कहानी में बताए गए कोई भी तंत्र मंत्र या टोना टोटका या कोई विधि बस एक कल्पना हैं वास्तविकता से इसका कोई संबंध नही।
इस कहानी का update मैं 2 या 3 दिन के अंतराल पे दूंगा अगर कोई जरूरी काम या किसी और चीज़ में busy न हुआ तो, और अगर हुआ तो ये अंतराल और भी बढ़ सकता है और इसके लिए भी मुझे माफ़ कीजियेगा।)
तो चलिए फिर कहानी को आगे बढाते हैं---
Update-1
बात बहुत पहले की है उत्तर प्रदेश में कहीं दूर-दराज एक बहुत ही पिछड़ा हुआ गांव था-विक्रमपुर। बहुत ही पिछड़ा हुआ इशलिये क्योंकि यह एक बहुत बड़ी नदी के दूसरी तरफ था। शहर से इसका कोई खास लेना देना नही था। कुल मिलाकर 100-200 घर होंगे वो भी काफी दूर-दूर थे।
नदी के किनारे होने की वजह से गांव बहुत ही हरा भरा था। यह गांव बहुत बड़े जंगल से चारों तरफ से घिरा हुआ था। यह गांव कई दशकों पहले और भी बड़ा हुआ करता था, आज जो इस गांव में सिर्फ 100-200 घर है वहीं एक वक्त इस गांव में 1000-1500 घर हुआ करते थे, जो कि आज के वक्त में सिमटकर केवल 100-200 घर ही रह गए थे।
लेकिन ऐसा क्यों? आखिर क्या ऐसा हो रहा था
इस गांव में जो परिवार के परिवार धीरे धीरे खत्म हो रहे थे। बहुत तेजी से नही बल्कि बहुत धीरे धीरे, एक बार को अचानक से देखने में नही लगेगा परंतु जब कोई गांव का बाहरी इंसान गौर से इस गांव की दशकों पुरानी हिस्ट्री से दूसरी जगहों की तुलना करता तो वो भी सोच में पड़ जाता कि आखिर ऐसा क्यों?
माना कि मौत हर जगह होती है, जो इस दुनियां में आया है उसे जाना ही है, लेकिन हर जगह एक balance maintain है। लोग मर रहे हैं तो बच्चे पैदा भी हो रहे हैं। एक पीढ़ी गुजर रही है तो नई पीढ़ी आ भी रही है।
परंतु इस गांव में मृत्यु दर बहुत ज्यादा थी और जन्म दर नाम मात्र।
देखने में लोग बिकुल स्वस्थ रहते, न जाने कब कैसे धीरे धीरे बीमार पड़ते और चले जाते, इस गांव के लोग जब बाहरी दुनिया में इलाज कराने जाते तो report में कहीं कुछ नही आता। वैसे तो जल्दी इलाज़ के लिए जाते नही थे क्योंकि इस गांव के लोग थे- रूढ़िवादी, अन्धविश्वासी और वो झाड़ फूंक, में ज्यादा विश्वास रखते थे।
इस गांव के लोगों ने जानबूझ के भी अपने आप को दीन दुनियां से अलग कर रखा था। इसका पहला कारण तो ये ही था कि यह गांव चारों तरफ जंगल से घिरा हुआ था, नदी के दूसरी छोर पर था और.....और... इस गांव के लोगों को सबसे ज्यादा नफरत थी- गलत चीजों से, जैसे- गलत काम करना, झूठ बोलना, किसी का दिल दुखाना, बेईमानी करना, कोई भी गलत काम, गलत सोच, गलत विचार, भावना किसी के मन में नही थी, जैसे कोई जानता ही नही था इन सब चीजों को। यही main वजह थी जो इस गांव के लोग बाहरी दुनिया से ज्यादा मेल जोल नही रखना चाहते थे क्योंकि उस गांव के अलावा हर जगह गलत चीज़ें थी, गलत काम था, गलत सोच थी, गलत भावना थी। यूँ समझ लीजिये हर जगह कलयुग था और इस गांव में सतयुग था।
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि ऐसा गांव में क्या था कि परिवार के परिवार धीरे धीरे खत्म हो रहे थे, न कोई महामारी, न कोई रोग, न कोई आक्रमण, न कोई दंगा फसाद, फिर ऐसा क्या था? ऐसा नही है कि गांव के लोग इससे अनजान थे वो जानते थे कि कुछ तो इस गांव में गड़बड़ है, परंतु उनके पास इसका कोई इलाज नही था, उनके पास कोई रास्ता नही था इससे बाहर निकलने का, इसलिये गांव के लोगों के मन में कहीं न कहीं किसी कोने में एक उदासी सी रहती थी।
परंतु ऐसा क्या था, जिसकी वजह से ऐसा हो रहा था, वो आपको आगे इस कहानी में पता चलेगा---
Update-2
दोस्तों यह कहानी दो मुख्य किरदार के इर्द गिर्द ही रहेगी, कहानी में कुछ और किरदार भी आएंगे आगे चलकर, कहानी का हीरो गांव का मुखिया ही है।
कहानी के मुख्य पात्र-
उदयराज- उदयराज विक्रमपुर गांव का मुखिया है, उसकी उम्र 44 वर्ष है, वह बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान है। 20 वर्ष की उम्र में ही उसकी शादी विमला से हो गयी थी, जो अब इस दुनियां में नही है।
विमला से उसके 2 बच्चे हुए, 1 लड़का और 1 लड़की, जब वह 22 वर्ष का था तब लड़का पैदा हुआ जिसका नाम अमन रखा गया था, जो अभी 7 वर्ष पहले इस दुनिया से चला गया उसी रहस्यमयी वजह से जो गांव में थी। उदयराज जब 23 वर्ष का था तब विमला को 1 बेटी पैदा हुई जिसका नाम रजनी रखा गया। रजनी अमन से एक वर्ष छोटी थी।
इस वक्त वो अपनी बेटी के साथ ही रहता है करीब कुछ सालों से।
उदयराज गांव का मुखिया तो था ही साथ ही साथ वह एक तजुर्बेदार किसान भी था, खेतों में खुद ही सारा काम संभालने की वजह से उसका शरीर काफी बलिष्ट था, कद काठी ऊंची थी, रंग थोड़ा सांवला था, धूप में अक्सर कड़ी मेहनत करने की वजह से भी हो गया था।
उदयराज को खेती करना बहुत पसंद था, खेतों में वो अकेला ही लगा रहता था, लोग कहते भी थे कि उदयराज कुछ आदमी वगैरह रख लिया करो काम में मदद हो जाया करेगी तो वो कहता कि इतना तो मैं अकेले ही कर लूंगा, जब मुझे लगेगा कि काम बस के बाहर है तो रख लूंगा।
खेतीबाड़ी में ज्यादा वक्त देने से वो मुखिया का काम कम ही संभाल पाता था, परंतु उसका स्वभाव अत्यंत सरल और अच्छा होने की वजह से खुद गांव वालों ने उससे कहा रखा था कि "मुखिया तो हमारे तुम ही होगे उदयराज, भले ही तुम मुखिया का सारा काम अपने परम मित्र बिरजू से कराओ, पर मुखिया तो तुम ही हो"
उदयराज भी गांववालों से इतना सम्मान मिलने पर उनका दिल नही दुखाना चाहता था इसलिये वह गांव का मुखिया बना हुआ था पर ज्यादातर काम उसका मित्र बिरजू ही देखता था।
रजनी- रजनी की उम्र 21 वर्ष थी, उसका विवाह हो चुका था उसकी एक छोटी बेटी भी थी (ये बहुत भाग्य की बात थी क्योंकि गांव में बच्चे बहुत मुश्किल से हो रहे थे)।
रजनी अपनी माँ की तरह काफी गोरी थी। बला की खूबसूरत, कद काठी में सुडौल थी, भरा पूरा यौवन था उसका, बड़े बड़े स्तन, चौड़े और भारी नितम्ब, वो एक अत्यंत मादक जिस्म की मालकिन थी, उसकी चाल तो अलग ही कहर ढाती थी। पर उस गांव में कोई भी मर्द या लड़का कभी भी किसी परायी लड़की या स्त्री को बुरी नज़र से नही देखता था और न ही कभी कोई ऐसा विचार अपने मन में लाता था, जैसे ये सब गलत विचार उन्हें पता ही नही था। इतने शरीफ थे इस गांव के लोग।
जो स्त्री विधवा होती थी या अपने पति से किसी भी वजह से दूर रहती थी और जो पुरुष विदुर होते थे जिनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी होती थी वो कामाग्नि में जल जल कर जीवन बिता देते थे पर कभी परायी स्त्री या पुरुष को कभी गंदी या गलत निगाह से नही देखते थे।
रजनी का पति थोड़ा सनकी था और शारीरिक रूप से रजनी से कमजोर था, उसे स्त्री में कोई खास रुचि नही रहती थी, न ही उसे सेक्स पसंद था, उसके अंदर बहुत बचपना था, शादी के इतने साल बाद तक भी कभी ऐसा नही हुआ कि उसने रजनी को सेक्स में चरमसुख दिया हो, यौनसुख के लिए रजनी हमेशा ही प्यासी रहती थी, पर क्या करे स्त्री थी कुछ कह भी नही सकती थी लोक लाज की वजह से। इस वजह से उसका पति उसकी नज़रों में उतरता चला गया, पर ऐसा नही था कि वो अपने पति की इज़्ज़त नही करती थी बस ये था कि वो ये उम्मीद छोड़ चुकी थी की उसका पति कभी बिस्तर पे उससे रगड़ रगड़ के संभोग करेगा, जिससे वो सन्तुष्ट हो सकेगी। क्योंकि वह अब यह जान चुकी थी कि उसके पति में इतनी ताकत ही नही थी कि वो उस जैसी सुडौल और भरे जिस्म वाली औरत की प्यास बुझा सके।
उसकी यौवन की रसीली गहराइयों के आखिरी छोर तक उसका पति न तो अभी तक पहुच पाया था और न ही कभी पहुंच पायेगा ये वो जानती थी, उसकी पूरी गहराई को नापने के लिए एक बलिष्ट मर्द की जरूरत थी, और वो कभी भी किसी भी कीमत पर पराये मर्द के बारे में सोच भी नही सकती थी, या यूं मान लो उसे पता ही नही था कि व्यभिचार भी कोई चीज़ होती है। इसलिए वो अब इसको अपना भाग्य मानकर कामाग्नि में जल रही थी।
पर रजनी थी बहुत हंसमुख और चंचल स्वभाव की। एक बेटी हो जाने के बाद भी उसका बचपना नही गया था।
(रजनी के पति और उसके ससुराल के बारे मे और अन्य पात्र के बारे में विस्तार से अगले अपडेट में)