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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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रजनी के जाने के तुरंत बाद ही उदयराज लग गया छुपाया हुआ कागज खोजने में, बरामदा, उत्तर का कमरा, दक्षिण का कमरा, पश्चिम का कमरा, उन सब कमरों की छत पर बने तहखाने, सारी अलमारियां, रसोई, यहां तक कि गुसलखाना, सारी किताबें, ढूंढते ढूंढते उसे 4 घंटे हो गए थे, माथे पर अब उसके हल्की शिकन आने लगी, फिर वह कोठरी में गया और वहां सब छान मारा पर कहीं कुछ नही मिला, उदयराज थोड़ी देर आंगन में बैठ गया, घर की ज्यादातर चीज़ें अस्त व्यस्त हो गयी थी, घर के सारे बक्से, सन्दूकें, जिस कमरे में भूसा और अनाज रखा रहता था वो भी छान मारा, पर कागज नही मिला, फिर भी उदयराज निराश नही हुआ वह आंगन में रसोई के दरवाजे पर बैठ गया।


अब उदयराज के पूर्वज द्वारा लगाए गए सदियों पहले मंत्र ने अपनी विपरीत शक्ति दिखानी चालू कर दी, उसे अपनी काट बर्दाश्त नही हो रही थी, वो मंत्र अपना जोर लगाने लगा ताकि ये कर्म सफल न हो, पर उसके ऊपर अब जो मंत्र महात्मा द्वारा लगाया गया था वो उसे टस से मस नही होने दे रहा था और उसे समाप्त करने में लगा हुआ था, जैसे जैसे उदयराज और रजनी अपना कर्म करते जा रहे थे महात्मा के मंत्र को असीम बल मिलता जा रहा था और वो उस पूर्वज द्वारा लगाए गए मन्त्र को काटता जा रहा था, पर अभी उसे पूर्ण शक्ति नही मिली थी क्योंकि वो पूरी तरह पाप पर निर्भर था जैसे ही पाप होगा वैसे ही महात्मा जी का मंत्र उस पूर्वज के मंत्र को काट कर नष्ट कर देगा।


क्योंकि अभी चौथी कील नही गड़ी थी और वो आज रात ही गढ़नी थी, चौथी कील कुल वृक्ष की जड़ में गाड़नी थी क्योंकि उस पूर्वज ने एक मंत्र वहां लगाया था और दूसरा गांव के सरहद पर, गांव के सरहद पर और घर के दरवाजे पर तो कील गड़ चुकी थी पर कुल वृक्ष पर कील न गड़ने की वजह से अभी शिकंजा पूरा लगा नही था और इसी एक रास्ते के सहारे उस पूर्वज के मंत्र ने अपने एक छोटे से भाग को चूहे का भेष देकर गुसलखाने की नाली जो घर के बाहर कुल वृक्ष की दिशा की ओर निकलती थी के रास्ते घर में दाखिल करा दिया।


जहां पर वो कागज रखा था वो उसे कुतरने जाने लगा पर तभी जंगल में खड़े पीले पेड़ के रूप में शैतान ने अपनी शैतानी आंखें खोली, तेज हवाएं चलने लगी, वो इस कर्म में महात्मा के मंत्र का साथ देने के लिए प्रतिबद्ध था क्योंकि इसके लिए उसने स्तनपान कराती किसी मनुष्य योनि की स्त्री का दूध मांगा था जो उसे बखूबी अर्पित किया गया था, शैतान, दानव, देवता, यक्ष, प्रेत, जिन्न आदि लोग अपने वचन के बहुत पक्के होते है ये दिए हुए अपने वचन से कभी पीछे नही हटते। शैतान ने तुरंत एक काले नाग का भेष लिया और फटाक से चुपचाप चूहे के पीछे पीछे गुसलखाने की नाली से घर में दाखिल हो गया, चूहा आगे आगे शैतान चुपचाप पीछे पीछे।


उदयराज आंगन में ये सोचने की लिए बैठा था कि अब ढूंढने के लिए क्या बचा है, उसकी पीठ कोठरी के दरवाजे की तरफ थी, चूहा कोठरी के दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था, जैसे ही चूहे ने पलट कर पीछे देखा अपने पीछे काले नाग को देखकर डर के मारे पीला पड़ गया, उसकी घिग्गी बंध गयी, शैतान सांप का भेष लिए बड़ी ही डरावनी शक्ल बना कर चूहे को घूरे जा रहा था मानो जैसे कह रहा हो "साले मेरे होते हुए आखिर तेरी हिम्मत कैसे हुई घर में घुसने की, तुझे डर नही है मेरा, मैंने पहले भी तुझे औकात में रहने की चेतावनी दी थी।"


एकाएक नाग ने चूहे को झपटकर मुँह में भर लिया और चूहा छटपटाते हुए चूं चूं करने लगा पर काला नाग पलटकर चलता बना कि तभी चूहे की आवाज सुनकर उदयराज ने पलटकर पीछे देखा तो उसकी नजर काले नाग पर पड़ी, ये देखते ही वो चौंक कर खड़ा हो गया कि घर के अंदर नाग कहाँ से आ गया, आज तक तो कभी ऐसा हुआ नही, पहले तो बिना सोचे समझे उसने उसे मारने के लिए लाठी उठायी पर फिर अचानक रुक गया, ये सोचने लगा कि उसके मुँह में चूहा था, जरूर कोई तो बात है, उसने अपने हाथ नीचे कर लिए और हाथ जोड़कर माफी मांगी, तब तक काला नाग जहां से आया था वहीं से चुपचाप धीरे धीरे बाहर निकल कर चूहे को निगलते हुए गायब हो गया।


उदयराज कोठरी के दरवाजे के पास ही लाठी लिए खड़ा था कि तभी उसकी नजर कोठरी के दरवाजे पर उल्टा करके रखे मिट्टी के दीये पर गयी, उसके दिमाग में बत्ती जली और उसने झुककर वो दिया उठाया तो उसमें एक कागज मोड़कर बैठाया हुआ था, उसको देखते ही उदयराज के मन में हजारों घंटियां एक साथ बजने लगी, और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी, वह खुशी से झूम उठा, उसने एक बार पीछे पलट कर काले नाग को देखा जहां से वो आया था उसने मन ही मन उसको धन्यवाद किया और उस कागज को उस दिये में से निकाल लिया और उस दिये को वैसे ही वहीं पर रख दिया।


उधर रजनी का भी मन लग नही रहा था उसे बस यही फिक्र हो रही थी कि पता नही बाबू को वो कागज मिला कि नही?


उदयराज ने वो कागज खोला उसमे लिखा था-


---बूर बहुत प्यासी है---


---कुल वृक्ष के नीचे पाप का पहला भोग---


---2 महीने तक हर अमावस्या---


उदयराज कागज में लिखी बात को पढ़कर समझते ही खुशी से झूम उठा उसने वो कागज चार पांच बार चूम लिया और फिर उसने वो कागज धोती में गांठ बांध लिया।


उदयराज ने अस्तव्यस्त हुए घर को बचे 2 घंटे के अंदर व्यवस्थित कर दिया और जब रजनी के आने का वक्त हुआ तो कुएं के पास जाकर कुएँ की दीवार (कुएं के ऊपर जो चार पिलर होते हैं) कि ओट में सड़क की तरफ मुँह करके बैठ गया।


रजनी जैसे जैसे वक्त नजदीक आता गया काफी बेचैन हो गयी थी जब वक्त हुआ तो वो नीलम के घर से चल दी काकी ने बोला कि तू चल मैं थोड़ी देर में गुड़िया को लेके आऊंगी, ये अभी यहीं सो रही है तो सोने दे मैं ले आऊंगी, रजनी भारी मन से घर की तरफ चल दी, रास्ते में सोचे जा रही थी कि न जाने बाबू कहाँ होंगे घर में या बाहर, ठीक 6:30 हो रहे हैं 10-15 मिनट बाद सुर्यास्त हो जाएगा उससे पहले कहीं में उनके सामने न पड़ जाऊं, जैसे ही रजनी दालान के बगल से चलती हुई अपने द्वार पर आयी एक बार उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, फिर आगे बढ़कर घर के दरवाजे तक गयी तो देखा कि दरवाजा सटाया हुआ था और उसकी कुंडी में एक कागज गोल गोल घुमा के फसाया हुआ था रजनी ने वो कागज खोला तो उसमें लिखा था कि बेटी मैं कुएं पर बैठा हूँ तुम घर में चली जाना, रजनी उसको पढ़कर मुस्कुरा उठी और झट से घर में जाकर कोठरी के दरवाजे पर गयी तो देखा कि दीया वैसे ही रखा हुआ था जैसा वो छोड़कर गयी थी उसने झट से दीया उठाया और पलटकर देखा तो उसमें वो कागज नही था, ये देखते ही मारे खुशी से उसका बुरा हाल हो चुका था, चेहरा शर्म से बिल्कुल लाल हो गया, दिन भर की बेचैनी से जो मन भारी हो चुका था वो बिल्कुल शांत और खुश हो चुका था, रजनी मारे खुशी के झूम उठी, ओह्ह बाबू आपने आखिर मुझे जीत ही लिया, मेरे बाबू, ये बोलते हुए उसका मन मयूर खुशी से फूला नही समा रहा था।


अभी सुर्यास्त होने में पांच सात मिनिट बाकी थे, रजनी और उदयराज ने बड़ी ही बेचैनी से वो पल काटे और जैसे ही सुर्यास्त हुआ रजनी भागकर घर के दरवाजे तक आयी और वहीं खड़ी होकर एकदम चहकते हुए उसने जोर से आवाज लगाई- बाबू! ओ बाबू


सुर्यास्त तो हो चुका था परंतु अभी अंधेरा नही हुआ था


उदयराज ने एकदम पलट के पीछे देखा तो अपनी प्यारी बिटिया को उतनी दूर से देखकर ही खुशी के मारे उछल पड़ा मानो 6 दिन नही 6 युग बीत गए हों रजनी को देखे।


रजनी इतना बोलकर मुस्कुराती हुई घर में भाग गई, उसने आज वही लाल रंग की साड़ी और ब्लॉउज पहना हुआ था।


उदयराज कुएं से भागता हुआ घर में आया उसे अहसास हो गया कि काकी अभी नही आई हैं उसने दरवाजा अंदर से सटा दिया और देखा तो बरामदे में रजनी नही थी फिर आंगन में देखा वहां भी नही थी, फिर रसोई में देखा वहां भी नही मिली फिर एकदम से कोठरी की तरफ बढ़ा और कोठरी के दरवाजे पर आकर रुक गया, रजनी दरवाजे की तरफ पीठ किये अपना मुँह अपने हांथों में छिपाए कोठरी के बीचों बीच खड़ी थी उसकी सांसे शर्म और लज़्ज़ा से ये सोचकर, की बीती 6 रातों में मैंने बाबू को और बाबू ने मुझे कैसे कैसे प्यार किया, तेज तेज चल रही थी।


अपनी बेटी के गदराए बदन के पिछले हिस्से, ब्लॉउज में उसकी पीठ का खुला हिस्सा और मादक उभरे हुए भारी भारी नितम्ब को देखकर उदयराज अधीर हो गया।


उदयराज धीरे से कोठरी के अंदर आया और रजनी के सामने खड़ा हो गया, रजनी उसके माथे तक आती थी, उदयराज ने थोड़ा सा नीचे झुककर अपने दोनों हांथों से रजनी के दोनों हांथों को चेहरे से हटाया तो रजनी ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसके प्यासे होंठ हल्का सा हिल गए, रजनी की तेज चलती साँसे उदयराज के चेहरे से टकराई, उदयराज ने अपने सीधे हाथ से रजनी की ठोढ़ी पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर किया और धीरे से बोला न जाने कितने युगों के बाद मुझे अपना चांद देखने को मिला है, राजनी ने धीरे से अपनी आंखें खोलकर अपने बाबू को देखा और सिसियाकर ooooooooohhhhhhhhhh.....bbbaaaaaabbbbbuuuuuuu
बोलते हुए उदयराज से कस के लिपट गयी, उदयराज ने भी अपनी बेटी को कस के अपनी बाहों में भर लिया, दोनों बाप बेटी अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, रजनी ने उदयराज के कानों में धीरे से बोला-आखिर आपने मुझे और मैंने आपको पा ही लिया न बाबू।
उदयराज रजनी के गदराई गुदाज बदन को बेताहाशा सहलाते हुए- हाँ मेरी बेटी, अब तेरे बिना रह पाना नामुमकिन है।


उदयराज ने एकदम से रजनी की गुदाज गांड को कस कस के भीचते हुए अपने से और सटा लिया, रजनी चिहुकते हुए जोर से सिसक उठी।


रजनी भी बेताहाशा अपने बाबू के बदन से लिपटी उनकी पीठ, कमर, गर्दन, और बालों को सहलाये जा रही थी, तभी बाप बेटी एक दूसरे के आंखों में वासनामय होते हुए बड़े प्यार से देखने लगे तो उदयराज बोला- काकी नही आई है न अभी?


रजनी ने बडे मादक अंदाज में कहा-ऊँ..ऊँ..ऊँहुंक, वो थोड़ी देर में आएंगी।


उदयराज ने एक बार फिर रजनी की ठोढ़ी को हल्का सा ऊपर उठाया तो राजनी ने आंखें बंद कर ली उदयराज अपनी बेटी के प्यासे होंठों को देखने लगा उनके चेहरों के बीच करीब पांच इंच की दूरी होगी, उदयराज ने अपनी बेटी के पूरे चेहरे को गौर से बड़े ध्यान से देखा, उसका माथा, आंखें, दोनों गाल, नाक और नाक की लौंग को तो उसने थोड़ा झुककर चूम ही लिया, राजनी मस्त हो गयी, फिर उदयराज ने लिपिस्टिक लगे नरम नरम हल्के थरथराते हुए होंठों को बड़े गौर से देखा रजनी ने आंखें बंद ही कर रखी थी, कितनी सुंदर और कितनी गोरी थी रजनी, उदयराज जैसे उसे पहली बार देख रहा हो, फिर उदयराज बोला- बेटी


राजनी- हूँ


उदयराज- उस कागज में तुमने क्या क्या लिखा है?


अब रजनी शर्मा गयी और जैसे ही अपने बाबू के सीने में शर्माकर मुँह छुपाने को हुई उदयराज ने दुबारा से उसकी ठोढ़ी को पकड़कर उसका चेहरा हल्का ऊपर को उठा लिया, रजनी ने शर्म से फिर आंखें मूंद ली और उसके होंठ थरथरा उठे।


उदयराज ने फिर खुद ही प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- पहला भोग मेरी बेटी को कुल वृक्ष के नीचे चाहिए?


रजनी ने इस बार शर्माकर हाँ में सर हिलाते हुए उदयराज के चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा ही लिया।


उदयराज ने एकदम से उसका चेहरा उठाया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, राजनी सिरह गयी उदयराज अपनी बेटी के रसीले और नशीले होंठों को चूमने और चूसने लगा और साथ ही साथ उसके भारी नितंबों को अपनी दोनों हथेली में लेकर मसलने लगा, रजनी ने भी अपने नितम्ब उठा कर अपने बाबू को परोस दिए उसको भी बहुत आनंद आने लगा, तभी उदयराज ने रजनी के होंठों को चूसते हुए अपनी जीभ मुँह में डालने की कोशिश की तो रजनी तड़पकर बोली- फिर आप बहकते चले जाओगे बाबू और मैं भी, इस वक्त ये सही समय नही काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू।


उदयराज- बस थोड़ा सा मुझे तेरी जीभ छूनी है थोड़ी देर मेरी जान, मेरी बेटी।


राजनी ने फिर बड़े प्यार से अपनी जीभ बाहर निकाल ली और उदयराज ने उसकी जीभ को मुँह में भरकर किसी icecream की तरह खूब चूसा, रजनी तो मदहोश ही हो गयी, अजीब सी वासनात्मक गुदगुदी उसके बदन को गनगना गयी। एकाएक उदयराज रजनी से बोला- कल रात को क्या हो गया था कोठरी से जाते जाते?


रजनी ये सुनते ही फिर से सुर्ख लाल हो गयी और शर्माकर उदयराज से लिपट गयी वो समझ गयी कि उनके बाबू बूर पर लंड रगड़ने वाली बात कह रहे हैं।


इतने में उदयराज ने फिर रजनी के कान में उसके नितम्ब को भीचते हुए कहा - एक बार फिर वैसे ही छुवा दो अपनी उससे। बहुत तरस रहा है ये।


ये कहते हुए उदयराज ने अपने लोहे के समान खड़े लंड को अपनी बेटी की दहकती हुई बूर पर साड़ी के ऊपर से ही दबा दिया। अपने बाबू का शख्त लंड के धक्के का अहसास अपनी बूर पर होते ही रजनी उछल सी गयी और शर्माते हुए बोली- कहीं काकी न आ जाएं


मन तो रजनी का भी कर रहा था


उदयराज बोला- जल्दी से कर दो, अभी काकी नही आई हैं।


रजनी ने कोठरी में नज़र दौड़ाईं वहां कोने में एक सरसों की खली की 50 किलो की बोरी रखी थी, रजनी ने अपने बाबू के कान में धीरे से कहा- बोरी के पास चलो बाबू।


उदयराज और रजनी जैसे ही कोठरी के कोने में बोरी के पास आये उदयराज ने दुबारा से अपनी बेटी को बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए अपना दायां पैर उठाकर बोरी पर रख लिया, कोठरी में अब थोड़ा अंधेरा हो चुका था क्योंकि ये सब करते करते लगभग 10 मिनट हो चुके थे, उदयराज रजनी को ताबड़तोड़ चूमे जा रहा था, रजनी मादक सिसकारियां लिए जा रही थी, एकाएक रजनी ने अपनी साड़ी दोनों हाँथ से जाँघों तक उठायी फिर दूसरे हाथ से अपने बाबू का दहकता 9 इंच लम्बा लंड वासना में कंपते हुए धोती के नीचे से बाहर निकाला, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों को अपने होंठों में भर लिया, राजनी ने एक बार धीरे से aaaaaaaahhhhhhh bbbbbaaaabbbbbbuuuu करते हुए अपने बाबू का पूरा दहकता लंड अपने हाथों में लेकर बड़ी मादकता से सहलाया, उदयराज के मुँह से कराह निकल गयी, रजनी एक हाथ से लंड को सहलाती रही और दूसरे हाथ से उसने साड़ी को जाँघों के जोड़ तक बटोर लिया, एक पैर उठाकर बोरी पर रखने की वजह से साड़ी ऊपर होकर रुक गयी और उसकी दायीं मांसल गोरी गोरी जांघ नग्न हो गयी, रजनी ने फिर हाथ नीचे ले जाकर अपनी काली रंग की पैंटी को थोड़ा साइड कर बूर को खोला, एक पैर ऊपर होने की वजह से तड़पती बूर की नरम नरम महकती फाँकें थोड़ी खुल गयी थी, रजनी ने पैंटी को अच्छे से साइड कर अपनी दो उंगलियों से बूर की प्यारी प्यारी फाँकों को थोड़ा और चीर दिया फिर दूसरे हाँथ से लंड को सहलाते हुए उसकी आगे की चमड़ी को पीछे खींचकर अपने बाबू के लंड को अपनी बूर की दहकती फाँकों के बीच जैसे ही लगाया उदयराज ने जोर से सिसकते हुए लंड को चार पांच बार धक्का देकर अपनी बेटी की नरम नरम दहकती बूर की फांकों के बीच रगड़ दिया, रजनी की भी जोर से aaaaaaahhhhhhh निकल गयी और वो थरथरा कर सब छोड़कर अपने बाबू से लिपट गयी और आंखें बंद कर अपने बाबू को कस कस के चूमने लगी, उदयराज भी अपनी बेटी की साड़ी को पीछे से अच्छी तरह उठाकर उसके मोटे मोटे नितंबों को सहलाते, भींचते और आगे की ओर धक्का देते हुए अपने लंड को बूर की फांकों में हाय हाय करता हुए रगड़ता हुआ रहा, लंड बूर की छेद पर और भग्नासे पर जब ठोकर मारता तो मारे सरसराहट के रजनी के पैर कांप जाते और गनगना कर वो अपने बाबू के ऊपर झुककर झूल सी जाती।

अपने बाबू के मोटे लंड का सुपाड़ा रजनी को अपनी बूर की फाँकों के बीच ऊपर ऊपर गच्च गच्च ठोकर मारता हुआ जन्नत का सुख दे रहा था और वो खुद अब अपनी गांड को आगे की तरफ हल्का हल्का उछाल रही थी, काम रस से बाप बेटी के लंड और बूर सराबोर हो जाने की वजह से और धीरे धीरे गच्च गच्च धक्का मारने की वजह से कोठरी में बूर और लंड के मिलन की चप्प चप्प आवाज हल्की हल्की गूंजने लगी थी कि एकाएक रजनी को लगा कि बहुत ज्यादा हो जाएगा और काकी कभी भी आ सकती है तो उसने उदयराज के कान में धीरे से कहा कि बाबू अब बस, काकी आती होंगी।

उदयराज ने तरसते हुए रजनी को छोड़ा और अपना मूसल जैसा लंड धोती के अंदर किया, रजनी ने बोरी से पैर हटा कर नीचे किया और साड़ी तथा पैंटी को ठीक किया, पैंटी उसकी काम रस से सराबोर हो चुकी थी।

रजनी कोठरी से निकलकर जाने लगी तो उदयराज ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया रजनी झटके से उदयराज की बाहों में आ गयी, उदयराज ने अपना होंठ रजनी के होंठ पर रखकर एक जोरदार चुम्बन जड़ दिया और बोला एक बार मुझे मेरी जन्नत को दिखा तो दो, मन नही मान रहा।

रजनी- बाबू, काफी देर हो जाएगी, काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू, अभी खाना भी बनाना है, अब जो भी देखना है वहीं चलकर अच्छे से देखना और खाना।

उदयराज- ठीक है मेरी बेटी, जल्दी जल्दी खाना बना ले, काकी को अपने हिसाब से बता देना ताकि वो गुड़िया को रात में संभाल लें।

राजनी- हाँ मेरे बाबू, मैं उन्हें अपने हिसाब से अच्छे से समझा दूंगी आप चिंता न करो।

तब उदयराज घर से बाहर आ गया और रजनी खाना बनाने की तैयारी करने लगी। बाहर आके देखा तो काकी आ चुकी थी। उदयराज ने बैलों को चारा डाला और नहा कर फ्रेश हो गया और अपनी नातिन को लेकर बाग में घुमाने लगा।

काकी रसोई में गयी और रजनी की मदद करने लगी, रजनी ने खाना बनाते बनाते काकी को बता दिया कि काकी मुझे और बाबू को कुल वृक्ष की जड़ में रात को 12 बजे कील गाड़ने जाना पड़ेगा तो तुम गुड़िया को संभाल लेना वैसे वो रोयेगी नही, दिन में ज्यादा सोई नही है तो सो जाएगी रात में।

काकी ने कहा- हाँ मेरी बेटी जरूर, कर्म और उपाय तो पूरा करना ही है, तुम दोनों निश्चिन्त होकर जाओ। फटाफट खाना बनाया गया और सबने आज एक साथ खाना खाया। 10:30 बज चुके थे उदयराज और काकी खाना खा के बाहर आ गए और रजनी बर्तन धोने लगी, उदयराज काकी के ही बगल में द्वार पर खाट पे लेट गया, काकी भी लेट गयी और बच्ची को सुलाने लगी। राजनी ने एक बांस की बनी छोटी सी डलिया ली और उसमे सरसों के तेल की शीशी, एक मचिस और मिट्टी का दिया और बाती रख ली, उदयराज ने एक बड़ा अंगौछा लिया और अंतिम कील रख ली, कुल वृक्ष करीब 3 किलोमीटर घर से दूर दक्षिण की दिशा में था।

रजनी और उदयराज घर से लगभग रात को 11 बजे निकले, काकी बच्ची को लेकर सो चुकी थी, अंधेरी रात थी, लगभग गांव के सभी लोग नींद की आगोश में जा चुके थे। कुल वृक्ष तक जाने के दो रास्ते थे एक तो पश्चिम की तरफ से गांव के अंदर से होकर जाता था और दूसरा रास्ता बाग की तरफ से खेतों से होकर जाता था, बाग की तरफ वाला रास्ता थोड़ा लम्बा था पर था सुनसान और आज अमावस्या की काली रात को तो वो और भी सुनसान सा हो गया था, राजनी और उदयराज ने बाग वाले रास्ते से ही जाने का निश्चय किया और घर से निकल गए। उदयराज ने हाथ में एक लाठी ले रखी थी और उसके कंधे पर एक बड़ा अंगौछा था, राजनी लाल रंग की साड़ी पहने हाँथ में डलिया लिए हुए थी जिसमे एक सरसों के तेल की शीशी, दीया और माचिस रखा हुआ था। बाग तक तो रजनी आगे आगे और उसके पीछे पीछे उदयराज लाठी लिए चलता रहा।
Kyaa baat hai
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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Update- 38


रजनी के जाने के तुरंत बाद ही उदयराज लग गया छुपाया हुआ कागज खोजने में, बरामदा, उत्तर का कमरा, दक्षिण का कमरा, पश्चिम का कमरा, उन सब कमरों की छत पर बने तहखाने, सारी अलमारियां, रसोई, यहां तक कि गुसलखाना, सारी किताबें, ढूंढते ढूंढते उसे 4 घंटे हो गए थे, माथे पर अब उसके हल्की शिकन आने लगी, फिर वह कोठरी में गया और वहां सब छान मारा पर कहीं कुछ नही मिला, उदयराज थोड़ी देर आंगन में बैठ गया, घर की ज्यादातर चीज़ें अस्त व्यस्त हो गयी थी, घर के सारे बक्से, सन्दूकें, जिस कमरे में भूसा और अनाज रखा रहता था वो भी छान मारा, पर कागज नही मिला, फिर भी उदयराज निराश नही हुआ वह आंगन में रसोई के दरवाजे पर बैठ गया।


अब उदयराज के पूर्वज द्वारा लगाए गए सदियों पहले मंत्र ने अपनी विपरीत शक्ति दिखानी चालू कर दी, उसे अपनी काट बर्दाश्त नही हो रही थी, वो मंत्र अपना जोर लगाने लगा ताकि ये कर्म सफल न हो, पर उसके ऊपर अब जो मंत्र महात्मा द्वारा लगाया गया था वो उसे टस से मस नही होने दे रहा था और उसे समाप्त करने में लगा हुआ था, जैसे जैसे उदयराज और रजनी अपना कर्म करते जा रहे थे महात्मा के मंत्र को असीम बल मिलता जा रहा था और वो उस पूर्वज द्वारा लगाए गए मन्त्र को काटता जा रहा था, पर अभी उसे पूर्ण शक्ति नही मिली थी क्योंकि वो पूरी तरह पाप पर निर्भर था जैसे ही पाप होगा वैसे ही महात्मा जी का मंत्र उस पूर्वज के मंत्र को काट कर नष्ट कर देगा।


क्योंकि अभी चौथी कील नही गड़ी थी और वो आज रात ही गढ़नी थी, चौथी कील कुल वृक्ष की जड़ में गाड़नी थी क्योंकि उस पूर्वज ने एक मंत्र वहां लगाया था और दूसरा गांव के सरहद पर, गांव के सरहद पर और घर के दरवाजे पर तो कील गड़ चुकी थी पर कुल वृक्ष पर कील न गड़ने की वजह से अभी शिकंजा पूरा लगा नही था और इसी एक रास्ते के सहारे उस पूर्वज के मंत्र ने अपने एक छोटे से भाग को चूहे का भेष देकर गुसलखाने की नाली जो घर के बाहर कुल वृक्ष की दिशा की ओर निकलती थी के रास्ते घर में दाखिल करा दिया।


जहां पर वो कागज रखा था वो उसे कुतरने जाने लगा पर तभी जंगल में खड़े पीले पेड़ के रूप में शैतान ने अपनी शैतानी आंखें खोली, तेज हवाएं चलने लगी, वो इस कर्म में महात्मा के मंत्र का साथ देने के लिए प्रतिबद्ध था क्योंकि इसके लिए उसने स्तनपान कराती किसी मनुष्य योनि की स्त्री का दूध मांगा था जो उसे बखूबी अर्पित किया गया था, शैतान, दानव, देवता, यक्ष, प्रेत, जिन्न आदि लोग अपने वचन के बहुत पक्के होते है ये दिए हुए अपने वचन से कभी पीछे नही हटते। शैतान ने तुरंत एक काले नाग का भेष लिया और फटाक से चुपचाप चूहे के पीछे पीछे गुसलखाने की नाली से घर में दाखिल हो गया, चूहा आगे आगे शैतान चुपचाप पीछे पीछे।


उदयराज आंगन में ये सोचने की लिए बैठा था कि अब ढूंढने के लिए क्या बचा है, उसकी पीठ कोठरी के दरवाजे की तरफ थी, चूहा कोठरी के दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था, जैसे ही चूहे ने पलट कर पीछे देखा अपने पीछे काले नाग को देखकर डर के मारे पीला पड़ गया, उसकी घिग्गी बंध गयी, शैतान सांप का भेष लिए बड़ी ही डरावनी शक्ल बना कर चूहे को घूरे जा रहा था मानो जैसे कह रहा हो "साले मेरे होते हुए आखिर तेरी हिम्मत कैसे हुई घर में घुसने की, तुझे डर नही है मेरा, मैंने पहले भी तुझे औकात में रहने की चेतावनी दी थी।"


एकाएक नाग ने चूहे को झपटकर मुँह में भर लिया और चूहा छटपटाते हुए चूं चूं करने लगा पर काला नाग पलटकर चलता बना कि तभी चूहे की आवाज सुनकर उदयराज ने पलटकर पीछे देखा तो उसकी नजर काले नाग पर पड़ी, ये देखते ही वो चौंक कर खड़ा हो गया कि घर के अंदर नाग कहाँ से आ गया, आज तक तो कभी ऐसा हुआ नही, पहले तो बिना सोचे समझे उसने उसे मारने के लिए लाठी उठायी पर फिर अचानक रुक गया, ये सोचने लगा कि उसके मुँह में चूहा था, जरूर कोई तो बात है, उसने अपने हाथ नीचे कर लिए और हाथ जोड़कर माफी मांगी, तब तक काला नाग जहां से आया था वहीं से चुपचाप धीरे धीरे बाहर निकल कर चूहे को निगलते हुए गायब हो गया।


उदयराज कोठरी के दरवाजे के पास ही लाठी लिए खड़ा था कि तभी उसकी नजर कोठरी के दरवाजे पर उल्टा करके रखे मिट्टी के दीये पर गयी, उसके दिमाग में बत्ती जली और उसने झुककर वो दिया उठाया तो उसमें एक कागज मोड़कर बैठाया हुआ था, उसको देखते ही उदयराज के मन में हजारों घंटियां एक साथ बजने लगी, और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी, वह खुशी से झूम उठा, उसने एक बार पीछे पलट कर काले नाग को देखा जहां से वो आया था उसने मन ही मन उसको धन्यवाद किया और उस कागज को उस दिये में से निकाल लिया और उस दिये को वैसे ही वहीं पर रख दिया।


उधर रजनी का भी मन लग नही रहा था उसे बस यही फिक्र हो रही थी कि पता नही बाबू को वो कागज मिला कि नही?


उदयराज ने वो कागज खोला उसमे लिखा था-


---बूर बहुत प्यासी है---


---कुल वृक्ष के नीचे पाप का पहला भोग---


---2 महीने तक हर अमावस्या---


उदयराज कागज में लिखी बात को पढ़कर समझते ही खुशी से झूम उठा उसने वो कागज चार पांच बार चूम लिया और फिर उसने वो कागज धोती में गांठ बांध लिया।


उदयराज ने अस्तव्यस्त हुए घर को बचे 2 घंटे के अंदर व्यवस्थित कर दिया और जब रजनी के आने का वक्त हुआ तो कुएं के पास जाकर कुएँ की दीवार (कुएं के ऊपर जो चार पिलर होते हैं) कि ओट में सड़क की तरफ मुँह करके बैठ गया।


रजनी जैसे जैसे वक्त नजदीक आता गया काफी बेचैन हो गयी थी जब वक्त हुआ तो वो नीलम के घर से चल दी काकी ने बोला कि तू चल मैं थोड़ी देर में गुड़िया को लेके आऊंगी, ये अभी यहीं सो रही है तो सोने दे मैं ले आऊंगी, रजनी भारी मन से घर की तरफ चल दी, रास्ते में सोचे जा रही थी कि न जाने बाबू कहाँ होंगे घर में या बाहर, ठीक 6:30 हो रहे हैं 10-15 मिनट बाद सुर्यास्त हो जाएगा उससे पहले कहीं में उनके सामने न पड़ जाऊं, जैसे ही रजनी दालान के बगल से चलती हुई अपने द्वार पर आयी एक बार उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, फिर आगे बढ़कर घर के दरवाजे तक गयी तो देखा कि दरवाजा सटाया हुआ था और उसकी कुंडी में एक कागज गोल गोल घुमा के फसाया हुआ था रजनी ने वो कागज खोला तो उसमें लिखा था कि बेटी मैं कुएं पर बैठा हूँ तुम घर में चली जाना, रजनी उसको पढ़कर मुस्कुरा उठी और झट से घर में जाकर कोठरी के दरवाजे पर गयी तो देखा कि दीया वैसे ही रखा हुआ था जैसा वो छोड़कर गयी थी उसने झट से दीया उठाया और पलटकर देखा तो उसमें वो कागज नही था, ये देखते ही मारे खुशी से उसका बुरा हाल हो चुका था, चेहरा शर्म से बिल्कुल लाल हो गया, दिन भर की बेचैनी से जो मन भारी हो चुका था वो बिल्कुल शांत और खुश हो चुका था, रजनी मारे खुशी के झूम उठी, ओह्ह बाबू आपने आखिर मुझे जीत ही लिया, मेरे बाबू, ये बोलते हुए उसका मन मयूर खुशी से फूला नही समा रहा था।


अभी सुर्यास्त होने में पांच सात मिनिट बाकी थे, रजनी और उदयराज ने बड़ी ही बेचैनी से वो पल काटे और जैसे ही सुर्यास्त हुआ रजनी भागकर घर के दरवाजे तक आयी और वहीं खड़ी होकर एकदम चहकते हुए उसने जोर से आवाज लगाई- बाबू! ओ बाबू


सुर्यास्त तो हो चुका था परंतु अभी अंधेरा नही हुआ था


उदयराज ने एकदम पलट के पीछे देखा तो अपनी प्यारी बिटिया को उतनी दूर से देखकर ही खुशी के मारे उछल पड़ा मानो 6 दिन नही 6 युग बीत गए हों रजनी को देखे।


रजनी इतना बोलकर मुस्कुराती हुई घर में भाग गई, उसने आज वही लाल रंग की साड़ी और ब्लॉउज पहना हुआ था।


उदयराज कुएं से भागता हुआ घर में आया उसे अहसास हो गया कि काकी अभी नही आई हैं उसने दरवाजा अंदर से सटा दिया और देखा तो बरामदे में रजनी नही थी फिर आंगन में देखा वहां भी नही थी, फिर रसोई में देखा वहां भी नही मिली फिर एकदम से कोठरी की तरफ बढ़ा और कोठरी के दरवाजे पर आकर रुक गया, रजनी दरवाजे की तरफ पीठ किये अपना मुँह अपने हांथों में छिपाए कोठरी के बीचों बीच खड़ी थी उसकी सांसे शर्म और लज़्ज़ा से ये सोचकर, की बीती 6 रातों में मैंने बाबू को और बाबू ने मुझे कैसे कैसे प्यार किया, तेज तेज चल रही थी।


अपनी बेटी के गदराए बदन के पिछले हिस्से, ब्लॉउज में उसकी पीठ का खुला हिस्सा और मादक उभरे हुए भारी भारी नितम्ब को देखकर उदयराज अधीर हो गया।


उदयराज धीरे से कोठरी के अंदर आया और रजनी के सामने खड़ा हो गया, रजनी उसके माथे तक आती थी, उदयराज ने थोड़ा सा नीचे झुककर अपने दोनों हांथों से रजनी के दोनों हांथों को चेहरे से हटाया तो रजनी ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसके प्यासे होंठ हल्का सा हिल गए, रजनी की तेज चलती साँसे उदयराज के चेहरे से टकराई, उदयराज ने अपने सीधे हाथ से रजनी की ठोढ़ी पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर किया और धीरे से बोला न जाने कितने युगों के बाद मुझे अपना चांद देखने को मिला है, राजनी ने धीरे से अपनी आंखें खोलकर अपने बाबू को देखा और सिसियाकर ooooooooohhhhhhhhhh.....bbbaaaaaabbbbbuuuuuuu
बोलते हुए उदयराज से कस के लिपट गयी, उदयराज ने भी अपनी बेटी को कस के अपनी बाहों में भर लिया, दोनों बाप बेटी अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, रजनी ने उदयराज के कानों में धीरे से बोला-आखिर आपने मुझे और मैंने आपको पा ही लिया न बाबू।
उदयराज रजनी के गदराई गुदाज बदन को बेताहाशा सहलाते हुए- हाँ मेरी बेटी, अब तेरे बिना रह पाना नामुमकिन है।


उदयराज ने एकदम से रजनी की गुदाज गांड को कस कस के भीचते हुए अपने से और सटा लिया, रजनी चिहुकते हुए जोर से सिसक उठी।


रजनी भी बेताहाशा अपने बाबू के बदन से लिपटी उनकी पीठ, कमर, गर्दन, और बालों को सहलाये जा रही थी, तभी बाप बेटी एक दूसरे के आंखों में वासनामय होते हुए बड़े प्यार से देखने लगे तो उदयराज बोला- काकी नही आई है न अभी?


रजनी ने बडे मादक अंदाज में कहा-ऊँ..ऊँ..ऊँहुंक, वो थोड़ी देर में आएंगी।


उदयराज ने एक बार फिर रजनी की ठोढ़ी को हल्का सा ऊपर उठाया तो राजनी ने आंखें बंद कर ली उदयराज अपनी बेटी के प्यासे होंठों को देखने लगा उनके चेहरों के बीच करीब पांच इंच की दूरी होगी, उदयराज ने अपनी बेटी के पूरे चेहरे को गौर से बड़े ध्यान से देखा, उसका माथा, आंखें, दोनों गाल, नाक और नाक की लौंग को तो उसने थोड़ा झुककर चूम ही लिया, राजनी मस्त हो गयी, फिर उदयराज ने लिपिस्टिक लगे नरम नरम हल्के थरथराते हुए होंठों को बड़े गौर से देखा रजनी ने आंखें बंद ही कर रखी थी, कितनी सुंदर और कितनी गोरी थी रजनी, उदयराज जैसे उसे पहली बार देख रहा हो, फिर उदयराज बोला- बेटी


राजनी- हूँ


उदयराज- उस कागज में तुमने क्या क्या लिखा है?


अब रजनी शर्मा गयी और जैसे ही अपने बाबू के सीने में शर्माकर मुँह छुपाने को हुई उदयराज ने दुबारा से उसकी ठोढ़ी को पकड़कर उसका चेहरा हल्का ऊपर को उठा लिया, रजनी ने शर्म से फिर आंखें मूंद ली और उसके होंठ थरथरा उठे।


उदयराज ने फिर खुद ही प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- पहला भोग मेरी बेटी को कुल वृक्ष के नीचे चाहिए?


रजनी ने इस बार शर्माकर हाँ में सर हिलाते हुए उदयराज के चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा ही लिया।


उदयराज ने एकदम से उसका चेहरा उठाया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, राजनी सिरह गयी उदयराज अपनी बेटी के रसीले और नशीले होंठों को चूमने और चूसने लगा और साथ ही साथ उसके भारी नितंबों को अपनी दोनों हथेली में लेकर मसलने लगा, रजनी ने भी अपने नितम्ब उठा कर अपने बाबू को परोस दिए उसको भी बहुत आनंद आने लगा, तभी उदयराज ने रजनी के होंठों को चूसते हुए अपनी जीभ मुँह में डालने की कोशिश की तो रजनी तड़पकर बोली- फिर आप बहकते चले जाओगे बाबू और मैं भी, इस वक्त ये सही समय नही काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू।


उदयराज- बस थोड़ा सा मुझे तेरी जीभ छूनी है थोड़ी देर मेरी जान, मेरी बेटी।


राजनी ने फिर बड़े प्यार से अपनी जीभ बाहर निकाल ली और उदयराज ने उसकी जीभ को मुँह में भरकर किसी icecream की तरह खूब चूसा, रजनी तो मदहोश ही हो गयी, अजीब सी वासनात्मक गुदगुदी उसके बदन को गनगना गयी। एकाएक उदयराज रजनी से बोला- कल रात को क्या हो गया था कोठरी से जाते जाते?


रजनी ये सुनते ही फिर से सुर्ख लाल हो गयी और शर्माकर उदयराज से लिपट गयी वो समझ गयी कि उनके बाबू बूर पर लंड रगड़ने वाली बात कह रहे हैं।


इतने में उदयराज ने फिर रजनी के कान में उसके नितम्ब को भीचते हुए कहा - एक बार फिर वैसे ही छुवा दो अपनी उससे। बहुत तरस रहा है ये।


ये कहते हुए उदयराज ने अपने लोहे के समान खड़े लंड को अपनी बेटी की दहकती हुई बूर पर साड़ी के ऊपर से ही दबा दिया। अपने बाबू का शख्त लंड के धक्के का अहसास अपनी बूर पर होते ही रजनी उछल सी गयी और शर्माते हुए बोली- कहीं काकी न आ जाएं


मन तो रजनी का भी कर रहा था


उदयराज बोला- जल्दी से कर दो, अभी काकी नही आई हैं।


रजनी ने कोठरी में नज़र दौड़ाईं वहां कोने में एक सरसों की खली की 50 किलो की बोरी रखी थी, रजनी ने अपने बाबू के कान में धीरे से कहा- बोरी के पास चलो बाबू।


उदयराज और रजनी जैसे ही कोठरी के कोने में बोरी के पास आये उदयराज ने दुबारा से अपनी बेटी को बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए अपना दायां पैर उठाकर बोरी पर रख लिया, कोठरी में अब थोड़ा अंधेरा हो चुका था क्योंकि ये सब करते करते लगभग 10 मिनट हो चुके थे, उदयराज रजनी को ताबड़तोड़ चूमे जा रहा था, रजनी मादक सिसकारियां लिए जा रही थी, एकाएक रजनी ने अपनी साड़ी दोनों हाँथ से जाँघों तक उठायी फिर दूसरे हाथ से अपने बाबू का दहकता 9 इंच लम्बा लंड वासना में कंपते हुए धोती के नीचे से बाहर निकाला, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों को अपने होंठों में भर लिया, राजनी ने एक बार धीरे से aaaaaaaahhhhhhh bbbbbaaaabbbbbbuuuu करते हुए अपने बाबू का पूरा दहकता लंड अपने हाथों में लेकर बड़ी मादकता से सहलाया, उदयराज के मुँह से कराह निकल गयी, रजनी एक हाथ से लंड को सहलाती रही और दूसरे हाथ से उसने साड़ी को जाँघों के जोड़ तक बटोर लिया, एक पैर उठाकर बोरी पर रखने की वजह से साड़ी ऊपर होकर रुक गयी और उसकी दायीं मांसल गोरी गोरी जांघ नग्न हो गयी, रजनी ने फिर हाथ नीचे ले जाकर अपनी काली रंग की पैंटी को थोड़ा साइड कर बूर को खोला, एक पैर ऊपर होने की वजह से तड़पती बूर की नरम नरम महकती फाँकें थोड़ी खुल गयी थी, रजनी ने पैंटी को अच्छे से साइड कर अपनी दो उंगलियों से बूर की प्यारी प्यारी फाँकों को थोड़ा और चीर दिया फिर दूसरे हाँथ से लंड को सहलाते हुए उसकी आगे की चमड़ी को पीछे खींचकर अपने बाबू के लंड को अपनी बूर की दहकती फाँकों के बीच जैसे ही लगाया उदयराज ने जोर से सिसकते हुए लंड को चार पांच बार धक्का देकर अपनी बेटी की नरम नरम दहकती बूर की फांकों के बीच रगड़ दिया, रजनी की भी जोर से aaaaaaahhhhhhh निकल गयी और वो थरथरा कर सब छोड़कर अपने बाबू से लिपट गयी और आंखें बंद कर अपने बाबू को कस कस के चूमने लगी, उदयराज भी अपनी बेटी की साड़ी को पीछे से अच्छी तरह उठाकर उसके मोटे मोटे नितंबों को सहलाते, भींचते और आगे की ओर धक्का देते हुए अपने लंड को बूर की फांकों में हाय हाय करता हुए रगड़ता हुआ रहा, लंड बूर की छेद पर और भग्नासे पर जब ठोकर मारता तो मारे सरसराहट के रजनी के पैर कांप जाते और गनगना कर वो अपने बाबू के ऊपर झुककर झूल सी जाती।

अपने बाबू के मोटे लंड का सुपाड़ा रजनी को अपनी बूर की फाँकों के बीच ऊपर ऊपर गच्च गच्च ठोकर मारता हुआ जन्नत का सुख दे रहा था और वो खुद अब अपनी गांड को आगे की तरफ हल्का हल्का उछाल रही थी, काम रस से बाप बेटी के लंड और बूर सराबोर हो जाने की वजह से और धीरे धीरे गच्च गच्च धक्का मारने की वजह से कोठरी में बूर और लंड के मिलन की चप्प चप्प आवाज हल्की हल्की गूंजने लगी थी कि एकाएक रजनी को लगा कि बहुत ज्यादा हो जाएगा और काकी कभी भी आ सकती है तो उसने उदयराज के कान में धीरे से कहा कि बाबू अब बस, काकी आती होंगी।

उदयराज ने तरसते हुए रजनी को छोड़ा और अपना मूसल जैसा लंड धोती के अंदर किया, रजनी ने बोरी से पैर हटा कर नीचे किया और साड़ी तथा पैंटी को ठीक किया, पैंटी उसकी काम रस से सराबोर हो चुकी थी।

रजनी कोठरी से निकलकर जाने लगी तो उदयराज ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया रजनी झटके से उदयराज की बाहों में आ गयी, उदयराज ने अपना होंठ रजनी के होंठ पर रखकर एक जोरदार चुम्बन जड़ दिया और बोला एक बार मुझे मेरी जन्नत को दिखा तो दो, मन नही मान रहा।

रजनी- बाबू, काफी देर हो जाएगी, काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू, अभी खाना भी बनाना है, अब जो भी देखना है वहीं चलकर अच्छे से देखना और खाना।

उदयराज- ठीक है मेरी बेटी, जल्दी जल्दी खाना बना ले, काकी को अपने हिसाब से बता देना ताकि वो गुड़िया को रात में संभाल लें।

राजनी- हाँ मेरे बाबू, मैं उन्हें अपने हिसाब से अच्छे से समझा दूंगी आप चिंता न करो।

तब उदयराज घर से बाहर आ गया और रजनी खाना बनाने की तैयारी करने लगी। बाहर आके देखा तो काकी आ चुकी थी। उदयराज ने बैलों को चारा डाला और नहा कर फ्रेश हो गया और अपनी नातिन को लेकर बाग में घुमाने लगा।

काकी रसोई में गयी और रजनी की मदद करने लगी, रजनी ने खाना बनाते बनाते काकी को बता दिया कि काकी मुझे और बाबू को कुल वृक्ष की जड़ में रात को 12 बजे कील गाड़ने जाना पड़ेगा तो तुम गुड़िया को संभाल लेना वैसे वो रोयेगी नही, दिन में ज्यादा सोई नही है तो सो जाएगी रात में।

काकी ने कहा- हाँ मेरी बेटी जरूर, कर्म और उपाय तो पूरा करना ही है, तुम दोनों निश्चिन्त होकर जाओ। फटाफट खाना बनाया गया और सबने आज एक साथ खाना खाया। 10:30 बज चुके थे उदयराज और काकी खाना खा के बाहर आ गए और रजनी बर्तन धोने लगी, उदयराज काकी के ही बगल में द्वार पर खाट पे लेट गया, काकी भी लेट गयी और बच्ची को सुलाने लगी। राजनी ने एक बांस की बनी छोटी सी डलिया ली और उसमे सरसों के तेल की शीशी, एक मचिस और मिट्टी का दिया और बाती रख ली, उदयराज ने एक बड़ा अंगौछा लिया और अंतिम कील रख ली, कुल वृक्ष करीब 3 किलोमीटर घर से दूर दक्षिण की दिशा में था।

रजनी और उदयराज घर से लगभग रात को 11 बजे निकले, काकी बच्ची को लेकर सो चुकी थी, अंधेरी रात थी, लगभग गांव के सभी लोग नींद की आगोश में जा चुके थे। कुल वृक्ष तक जाने के दो रास्ते थे एक तो पश्चिम की तरफ से गांव के अंदर से होकर जाता था और दूसरा रास्ता बाग की तरफ से खेतों से होकर जाता था, बाग की तरफ वाला रास्ता थोड़ा लम्बा था पर था सुनसान और आज अमावस्या की काली रात को तो वो और भी सुनसान सा हो गया था, राजनी और उदयराज ने बाग वाले रास्ते से ही जाने का निश्चय किया और घर से निकल गए। उदयराज ने हाथ में एक लाठी ले रखी थी और उसके कंधे पर एक बड़ा अंगौछा था, राजनी लाल रंग की साड़ी पहने हाँथ में डलिया लिए हुए थी जिसमे एक सरसों के तेल की शीशी, दीया और माचिस रखा हुआ था। बाग तक तो रजनी आगे आगे और उसके पीछे पीछे उदयराज लाठी लिए चलता रहा।
:superb: :good: amazing update hai bhai
 
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Update- 12

काफी देर बीना की बूर चोदने के बाद शेरु अपनी बेटी की बूर में थरथरा के झड़ने लगा, बीना का भी कुछ ऐसा ही हाल था, बाप बेटी का मिलन हो चुका था।

ये देखकर रजनी बेहाल सी हो गयी, नीलम के मुंह से aaaahhhhh निकल गया ये देखकर और वो बोली- hhhaaaiiii अब फंस जाएंगे ये दोनों एक दूसरे में, अटक जाएगा शेरु का बीना की बूर में, कितना मजा आ रहा होगा दोनों को uuuuffffff.

इतने में दूर से गांव की कोई औरत उस तरफ आती दिखाई दी तो नीलम ये बोलकर की काकी मैं चलती हूँ, आज तो मजा ही आ गया इनको देखकर, अब तो ये ऐसे ही कुछ देर अटके रहेंगे, कोई हमे देखेगा इनको देखते हुए तो क्या सोचेगा, मैं चलती हूँ

रजनी की सांसे धौकनी की तरफ ऊपर नीचे हो रही थी, वो उसे देखकर हंस पड़ी, इतने में नीलम उठी और अपने घर की तरफ भाग गई।

रजनी का भी अब काम में कहां मन लगता उसकी तो हालत खराब हो चली थी, वो बार बार कभी काम करने लगती तो कभी बीना की बूर में अटके हुए शेरु के लंड को देखती और सिरह जाती। फिर वो एकदम से उठी और बोली- काकी अब रहने दो चलो मुझसे नही होगा अब काम, बाद में कर लेंगे, फिर वो भी घर के पीछे वाली कोठरी में जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ खुलता था उसको खोलकर कोठरी में चली गयी और वहां पड़ी खाट पर औंधे मुंह पसर गयी, वो जैसे हांफ रही थी, सांसे काफी तेज चल रही थी उसकी, बार बार वो अंगडाई लेती आंखें बंद करती तो कभी शेरु और बीना की चुदाई उसके सामने आ जाती तो कभी उसके बाबू का गठीला मर्दाना जिस्म, अनायास ही उसके मुंह से निकल गया- aaaaahhhhhhh बाबू, पास होकर भी क्यों हो तुम मुझसे इतना दूर। ऐसे ही वो बुदबुदाते जा रही थी

तभी काकी घर में आती है तो देखती है कि रजनी कोठरी में खाट पे लेटी है।

रजनी उन्हें देखती है तो उठकर बैठ जाती है, काकी उसके पास बदल में खाट पे बैठ जाती है और उसको अपने सीने से लगते हुए बोलती है- मैं जानती हूं बिटिया तेरी हालत, आखिर मैं भी एक स्त्री हूँ, मैं भी इस अवस्था से गुजरी हूँ।

रजनी बेधड़क काकी के गले लग जाती है और बोलती है- काकी हम स्त्रियों को आखिर इतना तड़पना क्यों पड़ता है, हमारा क्या कसूर है, हम स्वच्छन्द क्यों नही, क्यों नही हम अपने मन की कर सकते? क्यों हम इतना मान मर्यादा में बंधे हैं?

रजनी ने एक ही साथ कई सवाल दाग दिए

काकी- मैं तेरी तड़प समझ सकती हूं बिटिया।
स्त्री के हिस्से में अक्सर आता ही यही है, पुरुष स्वच्छन्द हो सकता है पर स्त्री इतनी जल्दी नही हो पाती खासकर हमारे गांव और कुल में, यहां कोई गलत नही कर सकता, करना तो दूर कोई सोच भी नही सकता, खासकर पुरुष वर्ग, स्त्रियां तो बहक सकती हैं पर जहां तक मैं जानती हूं हमारे कुल के पुरुष तो जैसे ये सब जानते ही नही है, हमारे गांव और कुल में तो ऐसा है कि अगर किसी की स्त्री या मर्द मर जाये या उसको उसका हक न दे तो वो पूरी जिंदगी तड़प तड़प के बिता देगा या बिता देगी पर कोई ऐसा काम नही करेंगे जिससे हमारे गांव की सदियों से चली आ रही मान मर्यादा भंग हो, हमारे पूर्वजों के द्वारा संजोई गयी इज्जत, कमाया गया नाम (कि इस कुल में, इस गांव में कभी किसी भी तरह का कुछ गलत नही हो सकता) कोई मिट्टी में नही मिलाएगा, यही चीज़ हमे दुनियां से अलग करती है
इसलिये ही हम जैसे लोग जो विधवा है, या जिनके पति नही है, या ऐसे पुरुष जिनकी पत्नी नही हैं उनकी जिंदगी एक तरह से नरक के समान ही हो जाती है, किसी से कुछ कह नही सकते, बस तड़पते रहो।

काकी कहे जा रही थी और रजनी उनकी गोदी में लिपटे सुने जा रही थी।

रजनी- लेकिन काकी ये कहाँ तक सही है, क्या ये तर्क संगत है?

काकी कुछ देर चुप रहती है और रजनी आशाभरी नज़रों से उनकी आंखों में देखती है।

काकी- नही! बिल्कुल नही मेरी बेटी। ये गलत है, पर हम स्त्रियाँ कर भी क्या सकती हैं

रजनी- क्या हमारे कुल के पुरुष, हमारे गांव के मर्द इतने मर्यादित है, मेरे बाबू भी ( रजनी ने फुसफुसके कहा)

काकी- मैं पक्के तौर पर नही कह सकती बेटी, ये तो खुद औरत को मर्द का मन टटोल कर देखना पड़ता है कि उसके मन में क्या है?

रजनी- अच्छा काकी क्या सच में आप वो करती अपने बाबू के साथ (रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा)

काकी- क्या? (जानबूझकर बनते हुए)

रजनी- वही जो अपने बाहर कहा था

काकी उसकी आँखों में देखती हुए- क्या कहा था मैंने?

रजनी काकी का हाँथ हल्का सा दबाते हुए भारी आवाज में फुसफुसाते हुए बोली- यही की आप अपने बाबू को अपनी बूर का मजा उनको देती अगर वो मेरे बाबू जैसे होते।

काकी- hhhhaaaaiiiiii, हां क्यों नही, क्यों नही देती भला, आखिर ये उनका हक होता न, आखिर उन्होंने मुझे पाल पोष के बड़ा किया, मेरा इतना ख्याल रखा, और अगर मुझे ये पता लगता कि वो मुझसे वो वाला प्यार करते है जो एक औरत और मर्द करते है, या मुझे ये पता लगता कि वो मुझे दूसरी नज़र से देखते है तो मैं भला क्यूं पीछे रहती। भले ही वो मेरे पिता थे पर थे तो वो भी एक मर्द ही न। (काकी की भी आवाज भर्रा जाती है)

रजनी फिर से गरम होते हुए- पर काकी आपको ये कैसे पता लगता, आप ये अंतर कैसे कर पाती की वो आपको बेटी की नज़र से नही देख रहे बल्कि वासना की नजर से देख रहे हैं

काकी- ये तो बिटिया रानी औरत को खुद ही पता लगाना होता है कि उसके घर के मर्द उसे किस नज़र से देखते हैं। उनकी हरकतों से।

रजनी काफी देर सोचती है फिर

रजनी- तो काकी सच में आपने अपने बाबू को मजा दिया था।

काकी- नही री पगली, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, मेरे बाबू मुझे ज्यादा मानते नही थे, बचपन में ही उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और मैं यहां ससुराल चली आयी, उसके कुछ ही सालों बाद तेरे काका चल बसे और मैं विरह में कई वर्षों तक तड़पती रही, अब तो जैसे आदत पड़ गयी है, तेरे जैसी मेरी किस्मत कहाँ मेरी की मेरे ससुराल वाले बोलते की बेटी तू उम्र भर अपने पिता के पास रह सकती है।

रजनी को मन ही मन इस बात पे नाज़ हुआ।

काकी- तू मुझे गलत तो नही समझ रही न बेटी।

रजनी- ये क्या बोल रही हो काकी, आप तो मेरी माँ जैसी हो, और आज तो मैं और भी खुश हूं कि एक दोस्त की तरह आपने अपने मन की बात अपनी इस बिटिया को बताई, कोई बात नही छुपाई, मुझे तो आज आप पर नाज़ हो गया जो मुझे आप जैसी माँ मिली, जो मेरा दर्द समझ सकती है।

रजनी और काकी एक दूसरे को गले से लगा लेती हैं

काकी- ओह्ह! मेरी बेटी, बेटी मैं कोई ज्ञानी या सिद्ध प्राप्त स्त्री तो नही की भविष्य देख सकूँ पर इतना तो मेरा मन कहता है कि जो पीड़ा मैन झेली है वो तू नही झेलेगी, तेरे हिस्से में सुख है, समय अब बदलेगा, जरूर बदलेगा।

ऐसे कहते हुए वो रजनी के माथे को चूम लेती है और बोलती है कि तू जाके नहा ले गर्मी बहुत है थोड़ी राहत मिल जाएगी, शाम हो गयी है तेरे बाबू भी आते होंगे

रजनी- हाँ काकी


और रजनी नहाने चली जाती है, काकी कुछ देर बैठ के सोचती रहती है फिर अचानक ही गुड़िया उठ जाती है तो काकी उसको लेके बाग में घूमने चली जाती है रजनी के ये बोलकर की वो नहाने के बाद गुड़िया को दूध पिला देगी।

रजनी को नहाते नहाते काकी की बात याद आती है की औरत को खुद ही अपने घर के मर्द का मन टटोलना पड़ता है कि वो उसको किस नज़र से देखता है, और इस वक्त घर में एक ही मर्द था वो थे उसके पिता, यह बात सोचकर वो रोमांचित हो जाती है, और सोचती है कि वो अब ऐसा ही करेगी। वो उस दिन कुएं पर हुई बात सोचती है कि कैसे उस दिन बाबू ने मुझे बाहों में भरकर मेरी पीठ को सहला दिया था और मेरी सिसकी निकल गयी थी। हो न हो उसके मन में कुछ तो है।

ऐसा सोचते हुए वो जल्दी जल्दी नहा कर एक गुलाबी रंग की मैक्सी डाल लेती है। आज गर्मी बहुत थी और अभी खाना भी बनाना था, फिर वो गुड़िया को दूध पिलाती है और खाना बनाने के लिए चली जाती है।

आज काफी देर हो गयी पर उदयराज अभी तक आया नही था, अंधेरा हो गया था, रजनी खाना बनाते हुए बार बार बीच में उठकर बाहर आती और जब देखती की उसके बाबू अभी तक नही आये तो उदास होकर फिर जाके खाना बनाने लगती।

काकी इस वक्त गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हुई थी कि तभी उदयराज हल और बैल लेके आ जाता है, बैल बंधता है और पसीने ले लथपथ सीधा घर में रजनी, ओ रजनी बोलता हुआ जाता है।

रजनी उदयराज को देखके चहक उठती है वो उस वक्त आटा गूंथ रही होती है अपने बाबू के मजबूत और गठीले बदन पर जब उसकी नजर जाती है तो वो रोमांचित हो जाती है और उदयराज के जिस्म की पसीने की मर्दानी गंध उसको बहुत मनमोहक लगती है, वो उदयराज से बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलती है कि- क्या बाबू, कब से मैं राह देख रही हूं आज इतनी देर।

उदयराज अपनी बेटी को आज मैक्सी में देखकर बहुत खुश होता है और बोलता है- बेटी, मैं तो वक्त से ही घर आने के लिए निकला था कि रास्ते में कुछ लोग मिल गए तो उन्ही से बात करने लगा।

रजनी- अच्छा! लगता है आपको अपनी बेटी की याद नही आती (रजनी ने जानबूझकर ऐसे बोला)

उदयराज- याद नही आती तो भला घर क्यों आता मेरी बिटिया रानी। बस इतना है कि थोड़ी देर हो गयी, और अब मेरी बेटी अगर इस बात से मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।

रजनी - आपकी बेटी आपसे नाराज़ नही हो सकती ये बात उसने आपसे पहले भी कही है न बाबू

रजनी आटा गूथ रही थी और उसका मादक बदन हिल रहा था, उदयराज सामने खड़ा खड़ा एक टक उसे ही देख रहा था, रजनी कभी शर्मा जाती, कभी मुस्कुरा देती, कभी खुद सर उठा के अपने बाबू की आंखों में देखने लगती।

फिर रजनी एकाएक बोली- ऐसे क्या देख रहे हो मेरे बाबू जी, अभी सुबह ही तो देखके गए थे, क्या मैं माँ जैसी दिख रही हूं क्या? और मुस्कुराके हंस दी।

उदयराज- अपनी बेटी को देख रहा हूँ, जो कि अपनी माँ से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है, और इस वक्त मुझे लगता है कि मुझसे नाराज है।

रजनी फिर हंसते हुए - अरे बाबू मैं आपसे गुस्सा नही हूँ मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।

उदयराज- काकी कहाँ है?

रजनी- वो गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हैं।

उदयराज- कितनी देर हो गयी?

रजनी- अभी अभी तो गयी हैं

अब उदयराज ने बड़ी ही चालाकी से ये बात घुमा के बोली- तो अगर एक बेटी अपने पिता से नाराज़ नही होती, और घर में उन दोनों के सिवा कोई न हो, तो भला वो अपने पिता से इतना दूर होती।

रजनी ने जब ये सुना और इस बात का अर्थ समझा की उसके बाबू क्या चाहते हैं तो उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ गए और वो मुस्कुराते और शर्माते हुए आटा गूँथना छोड़कर भागकर उदयराज के गले लग जाती है, उदयराज उसे और वो उदयराज को कस के बाहों में भर लेते हैं। एक बार फिर रजनी का गुदाज बदन उदयराज की गिरफ्त में था, इस बार वो रजनी की पीठ फिर सहला देता है और रजनी की aaahhhh निकल जाती है,
रजनी अपना हाँथ उदयराज की पीठ पर नही रख पाती क्योंकि उसके हाँथ में आटा लगा होता है, परंतु उदयराज उसे कस के अपने से इतना सटा लेता है कि उसका एक एक अंग उदयराज के अंग से भिच जाता है।
रजनी उदयराज की आंखों में मुस्कुराके देखने लगती है, और अपने पिता की मंशा पढ़ने लगती है, उदयराज भी रजनी की आंखों में देखने लगता है।

रजनी खिलखिलाकर हंसते हुए- अब आपको पता चला कि मैं आपसे नाराज़ नही हूँ।

उदयराज- हाँ, तुम मुझसे नाराज़ होगी न तो मैं तो जी ही नही पाऊंगा अब।

रजनी- अपनी बेटी से इतना प्यार करने लगे हो।

उदयराज- बहुत

रजनी- पहले तो ऐसा कभी नही किया

उदयराज- क्या नही किया।

रजनी- (लजाते हुए), यही की जब कोई न हो तब बेटी को बाहों में लेना।

उदयराज- मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत, की क्या करूँ, उसकी खूबसूरती को बाहों में भरकर मेरी थकान मिट जाती है।

रजनी खिलखिलाकर हंस दी- अच्छा आपकी थकान बस इतने से ही मिट गई।

उदयराज- हाँ सच।

रजनी- तो मुझे रोज अकेले में बाहों में ले लिया करो, जब जी करे, और कहके हंसने लगी

उदयराज उसके लाली लगे हुए होंठो को देखने लगा, की तभी काकी की आहट सुनाई दी, रजनी ने जल्दी से उदयराज के कानों में फुसफुसाते हुए कहा- काकी आ रही है, अब बस करो, मेरे बाबू

उदयराज- मन नही भरा मेरा।

रजनी- थकान नही मिटी, अभी तक (हंसते हुए)

उदयराज- नही, बिल्कुल नही

रजनी ने आज पहली बार शर्माते हुए एक बात उदयराज के कान में बोली- आज जल्दी सो मत जाना रात को आऊंगी आपके पास, फिर थकान मिटा लेना।

उदयराज- जिसकी बेटी इतनी सुंदर हो उसको नींद कहाँ आने वाली।

रजनी- धत्त, बाबू.....गंदे...

और शर्माते हुए रसोई में भाग जाती है, इतने में काकी आ जाती है और उदयराज बाल्टी उठा के नहाने चला जाता है

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बाप बेटी की मोहब्बत शुरू हो गई। सच में बहुत उम्दा लिख रहे हैं।
 

Himalaya rahel

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