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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Sandy66

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Update- 40

दोनों बाप बेटी कुछ देर तक अपनी उखड़ती सांसों को काबू करते हुए, एक दूसरे के तन को एक बार अच्छे से भोगकर उससे प्राप्त हुई असीम सुख की गहराई में एक दूसरे को बाहों में भरे आंखें बंद किये लेटे रहे, दोनों ही पूर्ण नग्न कुल वृक्ष के चबूतरे पर पड़े हुए थे।

रात के करीब 1:30 हो चुके थे, चारो तरफ गुप्प अंधेरा था, रात में कई तरह के कीड़ों की बोलने की आवाज अब आ रही थी क्योंकि अभी चुदाई की सिसकियां बंद थी, थोड़ी दूर नदी में बह रहे पानी की कलकल आवाज सुनाई दे रही थी।

उदयराज का लंड रजनी की बूर में बूर रस और वीर्य से सना अब भी घुसा हुआ था, उदयराज ने आंखें खोली और अंधेरे में अपनी रजनी बेटी के कान में फुसफुसाके बोला- मजा आया मेरी जान, मेरी बेटी।

अपने बाबू के मुँह से अपने लिए जान शब्द सुनकर रजनी हल्के से सिसकी और धीरे से कान में बोली- बहुत मेरी जान, मेरे बाबू।

उदयराज भी अपनी बेटी के मुँह से जान शब्द सुनकर गुदगुदा सा गया और उसका बूर के अंदर पड़ा थोड़ा सुस्त लंड फिर फूलने लगा।

रजनी को अपने बाबू का फूलता और बड़ा होता लंड अपनी बूर में अच्छे से महसूस हो रहा था।

उदयराज ने रजनी के कान में कहा- मेरी बेटी, मेरी जान, तेरी बूर बहुत मखमली है, ऐसा लग रहा है कि मेरा लन्ड गरम मक्ख़न के डिब्बे में डूबा हुआ है।

रजनी सिसकते हुए- हाय बाबू, ये मेरी मक्ख़न जैसी बूर अब सिर्फ आपकी है, जितना जी भरके खाना है खाइए और आपका लंड, इससे तो मैं तृप्त हो गयी, कितना मोटा और लम्बा है ये।

ऐसा कहते हुए रजनी ने अपनी गांड हल्का सा उछाल के लंड को बूर के अंदर और भर लिया, लंड अब धीरे धीरे फूलता ही जा रहा था, और बूर में फूलता और बड़ा होता लंड रजनी को फिर रोमांचित कर वासना को जगा रहा था।

उदयराज ने धीरे से लंड से बूर में एक गच्चा मारते हुए कान में फिर बोला- मेरी बेटी की बूर की प्यास बुझी?

रजनी शर्मा गई पर चुप रही

उदयराज ने फिर मादक अंदाज में एक और हल्का गच्चा मारते हुए पूछा।

रजनी बहुत धीरे से कामुक आवाज में- नही....... नही मेरे बाबू। इतनी जल्दी कैसे बुझेगी?

ये सुनते ही उदयराज वासना से भर गया और बोला- और चाहिए?

रजनी- हूँ

उदयराज- क्या और चाहिए?

रजनी अपने बाबू के कान में- आपका लंड, मेरे बाबू का लंड।

उदयराज ने जैसे ही एक दो धक्के हल्के हल्के लगाये रजनी ने बड़े प्यार से उनकी कमर पर हाथ रखकर रोका और बोली- बाबू...अब यहाँ नही।

उदयराज- यहां नही तो फिर कहाँ मेरी रानी बेटी।

रजनी- अपने खेत में खुले आसमान के नीचे।

उदयराज ने ये सुनते ही रजनी के गालों और होंठों पर कई चुम्बन लिए और बोला- अपने खेत की मिट्टी में लेटकर असली कील थोकूँ।

रजनी सिसकते हुए- हां बाबू, अपनी बेटी को वही ले चलकर प्यार करो।

ये सारी बातें बाप बेटी अंधेरे में ही कर रहे थे, उदयराज फिर मुस्कुराते हुए अपनी बेटी के ऊपर से उठा, फूली हुई महकती चिकनाहट से भरी बूर में लंड एक बार फिर से जड़ तक समा चुका था, उदयराज ने लंड को बूर से बाहर खींचा लंड पक्क़ की आवाज करते हुए बूर से बाहर आ गया पर जोश में झटके मारे जा रहा था, जैसे ही लन्ड कसी हुई बूर से बाहर निकला, रजनी की आआआआआहहहहहह की हल्की सी आवाज निकल गयी।

उदयराज चबूतरे से नीचे उतरा, उसका सुपाड़ा खुला लंड इधर उधर हिल रहा था, लंड अपना विकराल रूप धारण कर चुका था, जैसे ही उदयराज ने अपने खेत की मिट्टी में खुले आसमान के नीचे अपनी सगी बेटी की चुदाई के बारे में सोचा उसका लंड फ़नफना गया, रजनी भी उठ बैठी, उसकी बूर भी अब दुबारा रिसने लगी, उसकी भारी चूचीयों में दुबारा मस्ती भरने लगी, उदयराज ने अपनी बेटी को अपनी बाहों में उठाया तो रजनी ने अपने बाबू के कान में धीरे से कहा- बाबू रुको! दिया और तेल भी ले लूं।

और रजनी ने दिया, तेल और माचिस डलिये में रखा और हांथों में ले लिया, उदयराज ने अपना अंगौछा कंधे पर रखा, कपड़े उन्होंने वहीं चबूतरे पर बिल्कुल कोने में समेटकर छोड़ दिये, कुल वृक्ष बहुत घना था, रजनी की साड़ी, साया, ब्रा और ब्लॉउज तथा उदयराज का कुर्ता और धोती वहीं रखी थी।

उदयराज ने अपनी बेटी को बाहों में भरकर उठा लिया, रजनी के मादक गदराए बदन को उदयराज बाहों में उठाये अंधेरे में ही चल दिया अपने खेत की तरह जो कि कुल वृक्ष से करीब 100 मीटर दूर था, उदयराज के खेत के चारो तरफ दूसरे के खेत थे, खेत के तीन तरफ दूसरे खेतों में ,बाजरा और मक्के की फसल लगाई गई थी जो कि बड़ी होकर काफी ऊपर तक हो गयी थी, नदी वाले हिस्से की तरफ खुला था, उदयराज का खेत खाली था अभी कुछ दिन पहले ही उसने उसे जोतकर छोड़ दिया था, जोतने से मिट्टी काफी नरम हो गयी थी।

रजनी को बाहों में उठाये मस्ती में उसके गालों और होंठों को चूमता हुआ वो अपने खेत की तरफ चल दिया, उदयराज के प्रगाढ चुम्बन से रजनी बार बार सिरह जा रही थी और मादक सिसकियां ले रही थी, दोनों पूर्ण नग्न थे, उदयराज के चलने की वजह से उसका खुला तना हुआ लंड इधर उधर हिल रहा था और रजनी की चूचीयाँ भी वासना में सख्त होकर तन गयी थी और इधर उधर हिलकर उदयराज को अत्यधिक उत्तेजित कर रही थी, चलते चलते उदयराज ने अपनी बेटी की एक चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा, एक पल के लिए वो रास्ते में खड़े होकर अपनी बेटी को बाहों में उठाये उसकी चूची पीने लगा।

रजनी सिसकते हुए थोड़ा हंस पड़ी और बोली- बाबू अंधेरे में गिर जाओगे, थोड़ा सब्र करो मेरे बाबू आआआआआहहहह.....जी...भरकर पी लेना खेत में पहुँचकर।

और ऐसा कहते हुए उसने खुद भी अपना एक हाँथ नीचे ले जाकर अपने बाबू का खडा 9 इंच फ़ौलादी लंड पकड़ लिया और थोड़ी देर सहलाया, लंड फुंकारने लगा।

उदयराज फिर चलने लगा और कुछ ही देर में अपने खेत में पहुँच गया, जुते हुए खेत की हल्की नमी वाली भुरभुरी ठंडी मिट्ठी में जब उदयराज ने रजनी को बाहों में लिए हुए अपने नंगे पांव रखे तो बड़ी ठंडक महसूस हुई, क्योंकि रात के वक्त मिट्टी ठंडी हो गयी थी, उदयराज खेत के बिल्कुल बीचों बीच आ गया, रजनी को चूमते हुए उसने उतारा, रजनी ने डलिया खेत में रख दिया, उतरते ही एक अंगडाई ली और हाँथ पीछे करके अपने बालों को हल्का सा समेटा। अंधेरे में भी वह अपने बाबू के नग्न शरीर और हल्के दिख रहे खड़े लंड को देखकर मचल उठी, रजनी ने एक नजर ऊपर आसमान में डाली तो देखा तारे टिमटिमा रहे थे मानो सब तारे आज इकट्ठा हुए हों बाप बेटी की रसभरी चुदाई देखने के लिए और बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो शुरू होने का, रजनी उन्हें देखकर मुस्कुरा पड़ी।

उदयराज ने अपना अंगौछा खेत के बीचों बीच उभरी हुई मिट्टी को पैरों से थोड़ा समतल करके उसपर बिछाया, खेत में चारो तरफ सन्नाटा था, बगल के खेतों में खड़ी फसल लहलहा रही थी, तीन तरफ से खेत फसलों से ढका था।

उदयराज अंगौछा बिछाकर बगल में खड़ी अपनी बेटी की तरफ पलटा और दोनों ने एक दूसरे को सिसकते हुए अंधेरे में बाहों में भर लिया, उदयराज का लंड रजनी की महकती बूर और जाँघों के आस पास टकराने लगा जिसको महसूस कर राजनी की सांसे तेज होने लगी।

दोनों एक दूसरे को बाहों में भरकर झूम उठे, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों पर सिसकते हुए होंठ रख दिये रजनी की आंखें नशे में बंद होने लगी, उदयराज के हाँथ रजनी के पूरे गुदाज बदन पर रेंग रहे थे, होंठों को चूसते हुए वो हांथों से बालों को सहलाता हुआ हाँथ नीचे ले जाने लगा, पीठ को सहलाया फिर कमर पर हाँथ डाला तो रजनी सिसक पड़ी, काफी देर कमर को सहलाने के बाद रजनी के निचले होंठों को चूसते हुए उसकी गुदाज मोटी मोटी
जाँघों को आगे और पीछे पीछे की तरफ से सहलाता रहा, कितनी चिकनी जाँघे थी उसकी बेटी की, जाँघों को आगे की तरफ से सहलाते समय वह अपना हाँथ अपनी बेटी की फूली हुई बूर पर ले गया फिर बूर को हथेली में भरकर दबा दिया, रजनी उउउउउउउउउउईईईईईईई.......मां कहकर मचल उठी।

उदयराज ने बूर की दरार में अपनी बीच की उंगली डालकर कुछ देर ऊपर नीचे रगड़ा, रजनी हाय हाय करने लगी।

रजनी की बूर काफी रिस रही थी, रजनी की बूर का चिकना लिसलिसा काम रस उदयराज की उंगली में लग गया तो उसने उंगली को मुँह में भरकर चटकारे ले लेकर चाट लिया।

रजनी सिसकती रही अपने बाबू के हाथों को अपने बदन पर महसूस करके, फिर उदयराज गुदाज मोटी मोटी गांड को हथेली में भरकर कस कस के मीजने लगा, अपनी बेटी की चौड़ी मस्त गुदाज गांड के दोनों उभार को उदयराज अपने सख्त हांथों में भर भरकर दबाने और सहलाने लगा, सहलाते सहलाते वो बीच बीच में गांड की फांकों को अलग करके दरार में पूरा हाँथ फेरने लगता और गांड के छेद को उंगली से सहलाता तो रजनी मादकता से सिसकते हुए चिहुँक उठती और अपने नाखून कस के अपने बाबू की पीठ में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह.......बाबू कहते हुए गड़ा देती।

उदयराज ने रजनी के मुँह में अपनी जीभ डाल के घुमाने लगा और अपने हांथों से उसकी गांड के छेद को सहलाते हुए अपनी उंगलियां थोड़ा आगे धधकती बूर पर ले गया, बूर पर हाँथ पड़ते ही रजनी ने जोर से कराहते हुए अपनी गांड को उचका के टांगों को और चौड़ा कर लिया ताकि उसके बाबू उसकी प्यासी बूर को पीछे से अच्छे से छू और सहला पाएं, उदयराज रजनी के मुँह में अपनी जीभ डालकर उसकी जीभ से खेलते हुए पीछे से हाँथ लेजाकर उसकी बूर की फाँकों को सहलाने लगा, अत्यंत नशे में रजनी की आंखें बंद हो गई, निप्पल उसके शख्त होकर उदयराज के सीने में चुभने लगे। धीरे धीरे सिसकारियां गूंजने लगी, काफी देर उदयराज ऐसे ही रजनी की बूर को छेड़ता रहा, बूर अब पूरी पनिया गयी। इधर आगे की तरफ से उदयराज का खड़ा लंड बूर की दरार में रगड़ खा रहा था, कभी बूर की फांकों से टकराता, कभी भग्नासे से टकराता कभी दोनों जाँघों पर छू जाता, अपने बाबू के दहकते लंड को महसूस कर रजनी की वासना का पारा आसमान छूने लगा वो हाय हाय करके अपने बाबू से बार बार जोर जोर से लिपटने लगी उन्हें सहलाने लगी, खड़े खड़े वासना से तरबतर होकर उसके पैर काँपने लगे तो उसने बड़े प्यार से अपने बाबू के कान में कहा- बाबू, सुनो, सुनो न

उदयराज- हाँ मेरी बिटिया।

रजनी ने बड़ी ही वासना भरे अंदाज में धीरे से कहा- लेटकर अपनी सगी बेटी की बूर का मजा लो न, बाबू।

ये सुनकर उदयराज कराह उठा और उसने रजनी को उठाकर अंगौछे पर चित लिटा दिया
अंगौछा ज्यादा चौड़ा नही था रजनी का पूरा पूरा बदन उसपर आने के बाद दोनों तरफ से दो दो बित्ता बाहर निकला हुआ था बस, और नीचे अंगौछा रजनी के घुटनो तक ही था, पैर उसके खेत की मिट्टी में थे। रजनी ने उठकर जल्दी से दिया जला दिया और उसपर डलिया उल्टा करके थोड़ा ओट कर दिया ताकि दीया हवा से बुझे नही, अब दिए कि बहुत हल्की रोशनी से काफी कुछ दिखने लगा, उदयराज और रजनी की आंखे मिली तो वो मुस्कुरा उठे और उनके होंठ आपस में मिल गए, काफी देर एक दूसरे को चूमने के बाद रजनी ने झट से तड़पते हुए अपने दोनों पैर को अच्छे से चौड़ा कर जाँघों को खोलते हुए अपने दोनों हांथों से अपनी बूर की फाँकों को चीरा और अपने बूर के मखमली रिसते छेद को अपने बाबू के सामने कराहते हुए परोस दिया।

अपनी बेटी के इस अंदाज से उदयराज बावला हो गया और दीये की हल्की रोशनी में एक बार फिर अपनी सगी बेटी का नंगा जिस्म, उसकी खुली फैली हुई नंगी मोटी मोटी गोरी जाँघे, पैर, नाभि, कमर और ऊपर को तनी हुई दोनों मोटी मोटी चूचीयाँ, उसपर वो सख्त खड़े दोनों निप्पल और खुली चीरी हुई महकती रिसती बूर और बूर का वो महकता लाल लाल छेद देखकर उदयराज मदहोश हो गया और अपनी बेटी की बूर पर टूट पड़ा। मखमली महकती रिसती बूर पर अपने बाबू का मुँह लगते ही रजनी बहुत जोर से सिसकी ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू......हाहाहाहाहाहायययय.........मेरी बूर........चाटो इसको अपनी जीभ से.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह................खा जाओ अपनी बेटी की बूर को आज बाबू...........मेरे राजा.............मेरे सैयां............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...

अपनी बेटी की इस कदर कामुक सिसकियां सुनकर उदयराज भूखे भेड़िये की तरह उसकी बूर अपनी जीभ से लपा लप्प चाटने लगा, रजनी जोर जोर से कराहते हुए हवा में अपने पैर फैलाये अपने हाथों से अपनी बाबू का सर अपनी बूर पर रह रहकर दबा रही थी। दीये की लौ ओट में टिमटिमा कर जल रही थी फिर धीरे धीरे पूरे वातावरण में रजनी की जोर जोर सिसकारियां गूंजने लगी।

रजनी- अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...दैय्या................ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू......हाहाहाहाहाहायययय.........चाटो ऐसे ही बाबू............बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा.........कब से प्यासी हूँ मैं..............अपनी बेटी की प्यास बुझाओ मेरे बाबू...................चूसो मेरी बूर............फैला फैला के चूसो.....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह........जीभ डालके चोदो न बाबू...........थोड़ी देर जीभ बूर में डाल के जीभ से अपनी बेटी को चोद दो न मेरे राजा........ अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

उदयराज ने ये सुनते ही अपनी जीभ को गोल नुकीला किया और अपनी बेटी के मक्ख़न जैसे नरम बूर के छेद में डालने लगा, नुकीली जीभ बूर के छेद पर छूते ही रजनी गनगना गई और जैसे ही उदयराज ने जीभ को बूर में डालकर थोड़ा थोड़ा चोदना शुरू किया रजनी अपनी चूतड़ उछाल उछाल के हाय हाय करती हुई जीभ से चुदने लगी, उदयराज रजनी की बूर को जीभ से दनादन चोदे जा रहा था, बूर से लिसलिसा रस लगतार बह रहा था जो कि उदयराज के मुँह में भी चला जा रहा था, उदयराज जीभ से बूर को चोदता तो कभी कभी नुकीली बनाई हुई जीभ को बूर की दरार में सरसरा के रगड़ता, कभी भग्नासे को होंठों से पकड़कर रगड़ते हुए चूस लेता, रजनी तो जैसे फिर से जन्नत में पहुंच गई थी, अपने बाबू की मर्दाना थोड़ी सख्त जीभ के लगातार घर्षण से रजनी की बूर का कोना कोना चुदाई के आग में धधकने लगा।

उदयराज से भी अब रहा नही जा रहा था उसने झट बूर को चाटना छोड़ अपनी बेटी के पैरों को घुटनों से मोड़कर ऊपर छाती तक किया जिससे रजनी की गांड ऊपर को उठ गई और मदहोश कर देने वाली हल्के बालों से भरी गोरी गोरी मक्ख़न जैसी बूर उभरकर ऊपर को आ गयी, रजनी ने अपने दोनों हांथों की उंगलियों से अपनी फूली हुई बूर की फांकों को अच्छे से फाड़कर अपनी बूर अपने बाबू को सिसकारी लेते हुए परोसी।

उदयराज ने कराहते हुए अपने मूसल जैसे लंड को अपने सीधे हाथ में लिया और उसकी चमड़ी पीछे कर मोटे फूले हुए सुपाड़े को खोला फिर फैली हुई अपनी बेटी की बूर की दरार में पांच छः बार थपथपाया, रजनी सीत्कार उठी, फिर उदयराज ने अपने लंड को रजनी की बूर पर काफ़ी देर इधर उधर, ऊपर नीचे, दाएं बाएं रगड़ा, रजनी की बूर अब बिल्कुल पनिया चुकी थी, रजनी से रहा नही गया तो उसने उदयराज से भारी आवाज में कहा- बाबू डालो न अपना लंड मेरी बुर में।

उदयराज ने ये सुनते ही बिना देर किए तड़पते हुए अपना दैत्याकार 9 इंच लंबा लंड अपनी बेटी की बूर को सीध में ला के एक ही बार में जड़ तक बूर की गहराई के आखिरी छोर तक उतार दिया।

रजनी की बड़ी ही तेज से एक दर्दनाक सिसकी निकल गयी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...............अम्माअअअआआआ
उसका बदन दर्द से तड़पकर ऐंठ गया, सांसे उसकी कुछ पल के लिए मानो रुक सी गयी, कराहते हुए आंखें बंद हो गयी, बदन ऐंठकर ऊपर को उठ गया, हांथों से उसने अपने बाबू के कंधों को थाम लिया, पैरों को जल्दी से मोड़कर अपने बाबू की कमर में बांध लिया, इतना मोटा लम्बा लन्ड एक बार फिर उसकी दहकती बूर में बहुत अंदर तक समा चुका था, पर इस बार हो रहे दर्द में कुछ हद तक मीठापन था रजनी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...........बाबू.............ओओओओओओहहहह हहहहहह...... बाबू करते हुए सिसके जा रही थी। उदयराज ने झुककर उसको चूमा और उसकी तनी हुई चूचीयों को मसल मसल के दबाने लगा, मुँह में भरके पीने लगा, रजनी जोर जोर से कराहती रही सिसकती रही, इस बार उसे पहले की भांति भयंकर दर्द नही हुआ बल्कि दर्द के साथ साथ लज़्ज़त का भी अहसास हुआ था, उदयराज बूर में अपना पूरा लंड ठूसे अपनी बेटी के ऊपर लेटे लेटे उसे चूमे और सहलाये जा रहा था
तभी उसने रजनी से कराहते हुए पूछा- बेटी

रजनी वासना में सिसकते हुए- हाँ बाबू

उदयराज- मज़ा आया

रजनी- हाय बाबू, बहुत....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.....

रजनी की बात सुनकर उदयराज ने तड़पते हुए अपना पूरा समूचा लंड बूर से खींचकर बाहर निकाल लिया और रजनी को एक बार फिर position बनाने के लिए कहा।

रजनी अपने बाबू का इशारा समझ गयी उसने अपनी जाँघों को अच्छे से फैलाकर अपनी प्यासी बूर को अपने हांथों से फैलाकर बूर को आगे परोस दिया, उदयराज ने अपने लंड का सुपाड़ा अपनी बेटी की बूर पर रखा और हल्का सा झुककर दहाड़ते हुए एक करारा झटका मारा, लंड एक बार फिर सरसराता हुआ बूर की गहराई में समूचा समा गया, रजनी को एक बार फिर तेज से अत्यंत मीठा मीठा दर्द हुआ और वो तड़पते हुए अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.......मेरे राजा बोलते हुए मचल उठी। उदयराज ने इसी तरह पांच छः बार अपना समूचा लंड निकाल के पोजीशन ली और रजनी ने अपनी बूर फैलाकर अपने बाबू को परोसी और हर बार उदयराज ने गच्च से बड़ी बेरहमी से पूरा पूरा लंड अपनी बेटी की बूर में उतारा, रजनी हर बार मीठे दर्द से तड़प कर कराह जाती, उसको ये मीठा दर्द बहुत भा रहा था, आखिर पांच छः बार ऐसे ही करने के बाद उदयराज ने अपने बेटी के भारी चूतड़ों को अपने हांथों में थामकर, थोड़ा ऊपर को उठाकर पूरा लंड पेल पेल के गचा गच्च अपनी बेटी की बूर चोदना शुरू कर दिया, रजनी भी मस्ती में अपनी गांड उछाल उछाल कर अपनी बूर में अपने बाबू के मोटे कड़क दहकते लंड की रगड़ का मजा कराहते हुए लेने लगी, हर तेज धक्के के साथ तड़प तड़प कर रजनी अपने बाबू ले लिपटकर उन्हें कस कस के सहलाने लगी, उनकी पीठ, कमर, गांड, सर तथा कंधों पर हाँथ फेरने लगी, उदयराज गचा गच्च अपनी बेटी की बूर में तड़प तड़प के धक्के लगाए जा रहा था, इस बार उसने जरा भी रहम रजनी पर नही दिखाया और किसी भूखे भेड़िया की तरह अपनी बेटी की बूर में लगातार लंबे लंबे धक्के मारकर बूर चोद रहा था।

रजनी को भी अब रहम की जरूरत नही थी उसको भी ये वहसीपन बहुत अच्छा लग रहा था, उदयराज तेज तेज बूर में धक्के लगाता, तो कभी रुककर गांड को गोल गोल घुमाकर लंड को बूर के अंदर बूर के चप्पे चप्पे से रगड़ता जिससे राजनी हाय हाय करती हुई गनगना जाती और खुद भी अपनी गांड उठा उठा के नचा नचा के अपने बाबू का लंड अपनी बूर में अच्छे से खाती।

उदयराज ने एकाएक रुककर अपनी रजनी से सिसकते हुए कान में कहा- बेटी

रजनी- हाँ मेरे सैयां, मेरे बलमा।

उदयराज- अपने बाबू से चुदवाने में कैसा लग रहा है?

रजनी ये सुनकर शर्मा गयी और उसकी बूर हल्का सा संकुचित हुई, रजनी कुछ देर चुप रही फिर धीरे से सिसकते हुए बोली- बहुत अच्छा मेरे बाबू, बहुत मजा आ रहा है, ऐसा मजा मुझे जिंदगी में कभी नही आया....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.........ऊऊऊईईईईईईई......माँ

उदयराज अपनी बेटी के मुँह से ये सुनकर झूम उठा और बहुत तेज तेज धक्के बूर में मारने लगा अचानक तेज हवा चलने लगी और डलिया पलटकर गिर गयी और हवा से दिया बुझ गया फिर एक बार गुप्प अंधेरा हो गया।

अंधेरा होते ही दोनों बाप बेटी तेजी से सिसकते हुए आपस में एक दूसरे से और लिपट गए और उदयराज ने ताबड़तोड़ धक्के मारने शुरू कर दिए, रजनी तेज तेज सिसियाने लगी, कराहने लगी, मचलने लगी गांड उछाल उछाल के धक्कों का साथ देती हुई खुद भी अपनी बूर लंड पर पटकने लगी, लंड बूर के रस से इतना सन गया था कि सटा सट्ट बूर में अंदर बाहर हो रहा था, बूर का भगनासा फूलकर बार बार लंड से रगड़ खा रहा था और जब जब ऐसा होता रजनी सिसकते हुए गनगना जाती, रजनी कभी अत्यंत गनगना कर अपने होंठों को दांतों से काटती कभी तड़प कर अपना सर दाएं बाएं हिलाती और कभी मस्ती में मचलते हुए अपने पूरे बदन को ऊपर को ऐंठ कर धनुष की तरह मोड़ लेती, उदयराज ताबड़तोड़ धक्के मारते हुए उसे चूमे जा रहा था।

तभी आसमान में हल्के हल्के बादलों की गर्जना हुई और कुछ ही देर में हल्की हल्की बूँदें पड़ने लगी, अभी तक तो तारे टिमटिमा रहे थे पर अचानक ही बादल छा गए थे, रजनी और उदयराज घनघोर चुदाई के आंनद में इतने खोए हुए थे कि ऊपर आसमान और आस पास के वातावरण का उन्हें होश ही नही था, जब बादल गरजे तो रजनी का ध्यान आसमान पर गया तारे गायब हो चुके थे ऊपर काला काला घनघोर अंधेरा छाया हुआ था, रजनी ये देखकर वासना में और मुस्कुरा उठी, उदयराज घचा घच्च अपनी बेटी को चोदे जा रहा था, तभी एकएक हल्की हल्की दो चार बूंदे गिरनी शुरू हुई, तेज हवाएं चल रही थी, उदयराज की पीठ और उछलती गांड पर और रजनी के चेहरे पर हल्की बारिश की दो चार बूंदे गिरने लगी मानो आज प्रकति उनका जल अभिषेक करने आ गयी हो, रजनी की खुशी और वासना का कोई ठिकाना नही रहा, उसने कराहते हुए वासना से वसीभूत होकर अपनी आंखें बंद कर अपनी गांड को और तेज तेज उछालते हुए अपने बाबू के धक्कों से ताल से ताल मिलाकर चुदवाने लगी। बारिश की बूंदें अभी बिल्कुल हल्की हल्की पड़ रही थी, एकाएक रजनी को अपने सम्पूर्ण बदन में झुरझुरी महसूस हुई और वो गनगना कर चीखते हुए अपने बाबू से लिपटकर झड़ने लगी, उदयराज ताबड़तोड़ धक्के मारता रहा, रजनी थरथराते हुए झड़ने लगी

अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.........मेरे सैयां........मेरे बाबू.....मैं गयी मेरे राजा.............हाय मेरी बूर...........कैसे झड़ रही है बाबू आपका लंड पाकर...................अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह..........................कितना मजा आ रहा है.........................कितना आनंद है इस चुदाई मे........................... ओओओओओहहहहहह............अम्मा............ हाय.................अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह......................और चोदो बाबू. ............ अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह................ऐसे ही चोदते रहो मुझे............अपनी बेटी को................अपनी सगी बेटी को........... ...........ओओओओओओहहहह हहहहह............और गच्च गच्च पेलो मेरी बूर................उई माँ...............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

रजनी का बदन ढीला पड़ गया बूर से उसकी रस की धारा बह निकली, उसकी बूर झटके खाते हुए संकुचित होकर काम रस की धार बहाने लगी, रजनी आंखें बंद कर असीम आनंद की अनुभूति करते हुए मानो हवा में उड़ने लगी, अपने ही खेत वह मदरजात नंगी लेटी अपने सगे बाबू की कमरतोड़ चुदाई से आनंदित होकर खुले आसमान के नीचे हल्की हल्की बारिश की बूंदों के साथ थरथरा कर झड़ रही थी आज की रात इससे सुखद और क्या हो सकता था रात के करीब 2:20 हो चुके थे।

उदयराज भी काफी देर से ताबड़तोड़ धक्के अपनी बेटी की बूर में लगाये जा रहा था, खेत में चुदाई की फच्च फच्च आवाज काफी तेज़ी से गूंज रही थी, रजनी के झड़ने से बूर उसकी बहुत फिसलन भरी हो गयी थी और उदयराज का लंड बेटी की बूर का रस पी पी के और भी हाहाकारी हो चुका था, बूर में अब वो गपा गप अंदर बाहर हो रहा था, उदयराज के दोनों आंड धक्कों के साथ सटा सट्ट रजनी की गांड पर उछल उछल कर लग रहे थे जो रजनी को और आनंदित कर रहे थे।

एकाएक उदयराज भी तेज धक्के लगाते हुए बड़ी तेजी से कराहते हुए अपनी बेटी की बूर में झड़ने लगा,

ओओओओओओओहहहहहहह...........मेरी प्यारी बेटी...............मैं भी झड़ रहा हूँ............हाय तेरी मखमली बूर.........मेरी रानी...............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह..............कितनी नरम है ये.............हाय.........ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़.........अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह............कितनी गहरी है तेरी बूर.................ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़..........मेरी बेटी.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह............सगी बेटी को चोदने में कितना मजा है.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

उदयराज हाँफते हुए झड़े जा रहा था
अपने बाबू के लंड से निकली तेज गरम वीर्य की गाढ़ी धार अपनी बूर की गहराई में बच्चेदानी पर गिरते ही रजनी गनगना कर सिरहते हुए अपने बाबू से कसकर लिपट गयी, बारिश अब और तेज हो चुकी थी, उदयराज की पीठ बारिश की लगातार तेज बूँदें पड़ने से काफी भीग गयी थी, रजनी लगातार अपने बाबू को जोर जोर से सिसकते और कराहते हुए सहलाये दुलारे जा रही थी, उदयराज गरजते हुए झटके मार मार के अपनी बेटी की मस्त मखमली बूर में झड़ रहा था, उसका लंड रजनी की बूर में जड़ तक समाया हुआ बड़ी तेज तेज झटके ले लेकर झड़ रहा था।

रजनी ने बड़े प्यार और दुलार के साथ सिसकते हुए अपना हाँथ थोड़ा आगे बढ़ा कर अपने बाबू के गांड पर ले गयी और गांड को बूर पर हल्का हल्का दबाने लगी फिर हाँथ को थोड़ा और नीचे ले जाकर अपने बाबू के दोनों आंड को बड़े प्यार से सहलाने लगी साथ ही साथ वो बड़े प्यार से अपने बाबू को उनके गाल पर सिसकते हुए चूमने लगी।

बारिश तेज होने लगी, तेज तेज बारिश की मोटी मोटी बूँदें अब दोनों के पूर्ण नंगे बदन को भिगोने लगी, बारिश की तेज मोटी मोटी बूँदें उदयराज की पीठ, गांड, सर, पैर और रजनी के चेहरे पर पड़ने लगी, रजनी अब मस्ती में खिलखिलाकर हसने लगी, बारिश की तेज ठंडी बूंदें उसके माथे, आंख, नाक, गाल, होंठों पर जब पड़ती तो रजनी मस्ती में मचल उठती, बारिश तेज तेज होने लगी थी और उम्मीद थी कि और भी तेज होगी पर फिर भी उदयराज और रजनी उसी तरह चुदाई के सुख से मिले असीम आनंद में डूबे, बारिश की ठंडी ठंडी बूदों से भीगते हुए एक दूसरे से अमरबेल की तरह लिपटे, सिसकते हुए लेटे रहे।
Bahut badhiya... please continue
 
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Update- 12

काफी देर बीना की बूर चोदने के बाद शेरु अपनी बेटी की बूर में थरथरा के झड़ने लगा, बीना का भी कुछ ऐसा ही हाल था, बाप बेटी का मिलन हो चुका था।

ये देखकर रजनी बेहाल सी हो गयी, नीलम के मुंह से aaaahhhhh निकल गया ये देखकर और वो बोली- hhhaaaiiii अब फंस जाएंगे ये दोनों एक दूसरे में, अटक जाएगा शेरु का बीना की बूर में, कितना मजा आ रहा होगा दोनों को uuuuffffff.

इतने में दूर से गांव की कोई औरत उस तरफ आती दिखाई दी तो नीलम ये बोलकर की काकी मैं चलती हूँ, आज तो मजा ही आ गया इनको देखकर, अब तो ये ऐसे ही कुछ देर अटके रहेंगे, कोई हमे देखेगा इनको देखते हुए तो क्या सोचेगा, मैं चलती हूँ

रजनी की सांसे धौकनी की तरफ ऊपर नीचे हो रही थी, वो उसे देखकर हंस पड़ी, इतने में नीलम उठी और अपने घर की तरफ भाग गई।

रजनी का भी अब काम में कहां मन लगता उसकी तो हालत खराब हो चली थी, वो बार बार कभी काम करने लगती तो कभी बीना की बूर में अटके हुए शेरु के लंड को देखती और सिरह जाती। फिर वो एकदम से उठी और बोली- काकी अब रहने दो चलो मुझसे नही होगा अब काम, बाद में कर लेंगे, फिर वो भी घर के पीछे वाली कोठरी में जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ खुलता था उसको खोलकर कोठरी में चली गयी और वहां पड़ी खाट पर औंधे मुंह पसर गयी, वो जैसे हांफ रही थी, सांसे काफी तेज चल रही थी उसकी, बार बार वो अंगडाई लेती आंखें बंद करती तो कभी शेरु और बीना की चुदाई उसके सामने आ जाती तो कभी उसके बाबू का गठीला मर्दाना जिस्म, अनायास ही उसके मुंह से निकल गया- aaaaahhhhhhh बाबू, पास होकर भी क्यों हो तुम मुझसे इतना दूर। ऐसे ही वो बुदबुदाते जा रही थी

तभी काकी घर में आती है तो देखती है कि रजनी कोठरी में खाट पे लेटी है।

रजनी उन्हें देखती है तो उठकर बैठ जाती है, काकी उसके पास बदल में खाट पे बैठ जाती है और उसको अपने सीने से लगते हुए बोलती है- मैं जानती हूं बिटिया तेरी हालत, आखिर मैं भी एक स्त्री हूँ, मैं भी इस अवस्था से गुजरी हूँ।

रजनी बेधड़क काकी के गले लग जाती है और बोलती है- काकी हम स्त्रियों को आखिर इतना तड़पना क्यों पड़ता है, हमारा क्या कसूर है, हम स्वच्छन्द क्यों नही, क्यों नही हम अपने मन की कर सकते? क्यों हम इतना मान मर्यादा में बंधे हैं?

रजनी ने एक ही साथ कई सवाल दाग दिए

काकी- मैं तेरी तड़प समझ सकती हूं बिटिया।
स्त्री के हिस्से में अक्सर आता ही यही है, पुरुष स्वच्छन्द हो सकता है पर स्त्री इतनी जल्दी नही हो पाती खासकर हमारे गांव और कुल में, यहां कोई गलत नही कर सकता, करना तो दूर कोई सोच भी नही सकता, खासकर पुरुष वर्ग, स्त्रियां तो बहक सकती हैं पर जहां तक मैं जानती हूं हमारे कुल के पुरुष तो जैसे ये सब जानते ही नही है, हमारे गांव और कुल में तो ऐसा है कि अगर किसी की स्त्री या मर्द मर जाये या उसको उसका हक न दे तो वो पूरी जिंदगी तड़प तड़प के बिता देगा या बिता देगी पर कोई ऐसा काम नही करेंगे जिससे हमारे गांव की सदियों से चली आ रही मान मर्यादा भंग हो, हमारे पूर्वजों के द्वारा संजोई गयी इज्जत, कमाया गया नाम (कि इस कुल में, इस गांव में कभी किसी भी तरह का कुछ गलत नही हो सकता) कोई मिट्टी में नही मिलाएगा, यही चीज़ हमे दुनियां से अलग करती है
इसलिये ही हम जैसे लोग जो विधवा है, या जिनके पति नही है, या ऐसे पुरुष जिनकी पत्नी नही हैं उनकी जिंदगी एक तरह से नरक के समान ही हो जाती है, किसी से कुछ कह नही सकते, बस तड़पते रहो।

काकी कहे जा रही थी और रजनी उनकी गोदी में लिपटे सुने जा रही थी।

रजनी- लेकिन काकी ये कहाँ तक सही है, क्या ये तर्क संगत है?

काकी कुछ देर चुप रहती है और रजनी आशाभरी नज़रों से उनकी आंखों में देखती है।

काकी- नही! बिल्कुल नही मेरी बेटी। ये गलत है, पर हम स्त्रियाँ कर भी क्या सकती हैं

रजनी- क्या हमारे कुल के पुरुष, हमारे गांव के मर्द इतने मर्यादित है, मेरे बाबू भी ( रजनी ने फुसफुसके कहा)

काकी- मैं पक्के तौर पर नही कह सकती बेटी, ये तो खुद औरत को मर्द का मन टटोल कर देखना पड़ता है कि उसके मन में क्या है?

रजनी- अच्छा काकी क्या सच में आप वो करती अपने बाबू के साथ (रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा)

काकी- क्या? (जानबूझकर बनते हुए)

रजनी- वही जो अपने बाहर कहा था

काकी उसकी आँखों में देखती हुए- क्या कहा था मैंने?

रजनी काकी का हाँथ हल्का सा दबाते हुए भारी आवाज में फुसफुसाते हुए बोली- यही की आप अपने बाबू को अपनी बूर का मजा उनको देती अगर वो मेरे बाबू जैसे होते।

काकी- hhhhaaaaiiiiii, हां क्यों नही, क्यों नही देती भला, आखिर ये उनका हक होता न, आखिर उन्होंने मुझे पाल पोष के बड़ा किया, मेरा इतना ख्याल रखा, और अगर मुझे ये पता लगता कि वो मुझसे वो वाला प्यार करते है जो एक औरत और मर्द करते है, या मुझे ये पता लगता कि वो मुझे दूसरी नज़र से देखते है तो मैं भला क्यूं पीछे रहती। भले ही वो मेरे पिता थे पर थे तो वो भी एक मर्द ही न। (काकी की भी आवाज भर्रा जाती है)

रजनी फिर से गरम होते हुए- पर काकी आपको ये कैसे पता लगता, आप ये अंतर कैसे कर पाती की वो आपको बेटी की नज़र से नही देख रहे बल्कि वासना की नजर से देख रहे हैं

काकी- ये तो बिटिया रानी औरत को खुद ही पता लगाना होता है कि उसके घर के मर्द उसे किस नज़र से देखते हैं। उनकी हरकतों से।

रजनी काफी देर सोचती है फिर

रजनी- तो काकी सच में आपने अपने बाबू को मजा दिया था।

काकी- नही री पगली, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, मेरे बाबू मुझे ज्यादा मानते नही थे, बचपन में ही उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और मैं यहां ससुराल चली आयी, उसके कुछ ही सालों बाद तेरे काका चल बसे और मैं विरह में कई वर्षों तक तड़पती रही, अब तो जैसे आदत पड़ गयी है, तेरे जैसी मेरी किस्मत कहाँ मेरी की मेरे ससुराल वाले बोलते की बेटी तू उम्र भर अपने पिता के पास रह सकती है।

रजनी को मन ही मन इस बात पे नाज़ हुआ।

काकी- तू मुझे गलत तो नही समझ रही न बेटी।

रजनी- ये क्या बोल रही हो काकी, आप तो मेरी माँ जैसी हो, और आज तो मैं और भी खुश हूं कि एक दोस्त की तरह आपने अपने मन की बात अपनी इस बिटिया को बताई, कोई बात नही छुपाई, मुझे तो आज आप पर नाज़ हो गया जो मुझे आप जैसी माँ मिली, जो मेरा दर्द समझ सकती है।

रजनी और काकी एक दूसरे को गले से लगा लेती हैं

काकी- ओह्ह! मेरी बेटी, बेटी मैं कोई ज्ञानी या सिद्ध प्राप्त स्त्री तो नही की भविष्य देख सकूँ पर इतना तो मेरा मन कहता है कि जो पीड़ा मैन झेली है वो तू नही झेलेगी, तेरे हिस्से में सुख है, समय अब बदलेगा, जरूर बदलेगा।

ऐसे कहते हुए वो रजनी के माथे को चूम लेती है और बोलती है कि तू जाके नहा ले गर्मी बहुत है थोड़ी राहत मिल जाएगी, शाम हो गयी है तेरे बाबू भी आते होंगे

रजनी- हाँ काकी


और रजनी नहाने चली जाती है, काकी कुछ देर बैठ के सोचती रहती है फिर अचानक ही गुड़िया उठ जाती है तो काकी उसको लेके बाग में घूमने चली जाती है रजनी के ये बोलकर की वो नहाने के बाद गुड़िया को दूध पिला देगी।

रजनी को नहाते नहाते काकी की बात याद आती है की औरत को खुद ही अपने घर के मर्द का मन टटोलना पड़ता है कि वो उसको किस नज़र से देखता है, और इस वक्त घर में एक ही मर्द था वो थे उसके पिता, यह बात सोचकर वो रोमांचित हो जाती है, और सोचती है कि वो अब ऐसा ही करेगी। वो उस दिन कुएं पर हुई बात सोचती है कि कैसे उस दिन बाबू ने मुझे बाहों में भरकर मेरी पीठ को सहला दिया था और मेरी सिसकी निकल गयी थी। हो न हो उसके मन में कुछ तो है।

ऐसा सोचते हुए वो जल्दी जल्दी नहा कर एक गुलाबी रंग की मैक्सी डाल लेती है। आज गर्मी बहुत थी और अभी खाना भी बनाना था, फिर वो गुड़िया को दूध पिलाती है और खाना बनाने के लिए चली जाती है।

आज काफी देर हो गयी पर उदयराज अभी तक आया नही था, अंधेरा हो गया था, रजनी खाना बनाते हुए बार बार बीच में उठकर बाहर आती और जब देखती की उसके बाबू अभी तक नही आये तो उदास होकर फिर जाके खाना बनाने लगती।

काकी इस वक्त गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हुई थी कि तभी उदयराज हल और बैल लेके आ जाता है, बैल बंधता है और पसीने ले लथपथ सीधा घर में रजनी, ओ रजनी बोलता हुआ जाता है।

रजनी उदयराज को देखके चहक उठती है वो उस वक्त आटा गूंथ रही होती है अपने बाबू के मजबूत और गठीले बदन पर जब उसकी नजर जाती है तो वो रोमांचित हो जाती है और उदयराज के जिस्म की पसीने की मर्दानी गंध उसको बहुत मनमोहक लगती है, वो उदयराज से बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलती है कि- क्या बाबू, कब से मैं राह देख रही हूं आज इतनी देर।

उदयराज अपनी बेटी को आज मैक्सी में देखकर बहुत खुश होता है और बोलता है- बेटी, मैं तो वक्त से ही घर आने के लिए निकला था कि रास्ते में कुछ लोग मिल गए तो उन्ही से बात करने लगा।

रजनी- अच्छा! लगता है आपको अपनी बेटी की याद नही आती (रजनी ने जानबूझकर ऐसे बोला)

उदयराज- याद नही आती तो भला घर क्यों आता मेरी बिटिया रानी। बस इतना है कि थोड़ी देर हो गयी, और अब मेरी बेटी अगर इस बात से मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।

रजनी - आपकी बेटी आपसे नाराज़ नही हो सकती ये बात उसने आपसे पहले भी कही है न बाबू

रजनी आटा गूथ रही थी और उसका मादक बदन हिल रहा था, उदयराज सामने खड़ा खड़ा एक टक उसे ही देख रहा था, रजनी कभी शर्मा जाती, कभी मुस्कुरा देती, कभी खुद सर उठा के अपने बाबू की आंखों में देखने लगती।

फिर रजनी एकाएक बोली- ऐसे क्या देख रहे हो मेरे बाबू जी, अभी सुबह ही तो देखके गए थे, क्या मैं माँ जैसी दिख रही हूं क्या? और मुस्कुराके हंस दी।

उदयराज- अपनी बेटी को देख रहा हूँ, जो कि अपनी माँ से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है, और इस वक्त मुझे लगता है कि मुझसे नाराज है।

रजनी फिर हंसते हुए - अरे बाबू मैं आपसे गुस्सा नही हूँ मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।

उदयराज- काकी कहाँ है?

रजनी- वो गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हैं।

उदयराज- कितनी देर हो गयी?

रजनी- अभी अभी तो गयी हैं

अब उदयराज ने बड़ी ही चालाकी से ये बात घुमा के बोली- तो अगर एक बेटी अपने पिता से नाराज़ नही होती, और घर में उन दोनों के सिवा कोई न हो, तो भला वो अपने पिता से इतना दूर होती।

रजनी ने जब ये सुना और इस बात का अर्थ समझा की उसके बाबू क्या चाहते हैं तो उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ गए और वो मुस्कुराते और शर्माते हुए आटा गूँथना छोड़कर भागकर उदयराज के गले लग जाती है, उदयराज उसे और वो उदयराज को कस के बाहों में भर लेते हैं। एक बार फिर रजनी का गुदाज बदन उदयराज की गिरफ्त में था, इस बार वो रजनी की पीठ फिर सहला देता है और रजनी की aaahhhh निकल जाती है,
रजनी अपना हाँथ उदयराज की पीठ पर नही रख पाती क्योंकि उसके हाँथ में आटा लगा होता है, परंतु उदयराज उसे कस के अपने से इतना सटा लेता है कि उसका एक एक अंग उदयराज के अंग से भिच जाता है।
रजनी उदयराज की आंखों में मुस्कुराके देखने लगती है, और अपने पिता की मंशा पढ़ने लगती है, उदयराज भी रजनी की आंखों में देखने लगता है।

रजनी खिलखिलाकर हंसते हुए- अब आपको पता चला कि मैं आपसे नाराज़ नही हूँ।

उदयराज- हाँ, तुम मुझसे नाराज़ होगी न तो मैं तो जी ही नही पाऊंगा अब।

रजनी- अपनी बेटी से इतना प्यार करने लगे हो।

उदयराज- बहुत

रजनी- पहले तो ऐसा कभी नही किया

उदयराज- क्या नही किया।

रजनी- (लजाते हुए), यही की जब कोई न हो तब बेटी को बाहों में लेना।

उदयराज- मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत, की क्या करूँ, उसकी खूबसूरती को बाहों में भरकर मेरी थकान मिट जाती है।

रजनी खिलखिलाकर हंस दी- अच्छा आपकी थकान बस इतने से ही मिट गई।

उदयराज- हाँ सच।

रजनी- तो मुझे रोज अकेले में बाहों में ले लिया करो, जब जी करे, और कहके हंसने लगी

उदयराज उसके लाली लगे हुए होंठो को देखने लगा, की तभी काकी की आहट सुनाई दी, रजनी ने जल्दी से उदयराज के कानों में फुसफुसाते हुए कहा- काकी आ रही है, अब बस करो, मेरे बाबू

उदयराज- मन नही भरा मेरा।

रजनी- थकान नही मिटी, अभी तक (हंसते हुए)

उदयराज- नही, बिल्कुल नही

रजनी ने आज पहली बार शर्माते हुए एक बात उदयराज के कान में बोली- आज जल्दी सो मत जाना रात को आऊंगी आपके पास, फिर थकान मिटा लेना।

उदयराज- जिसकी बेटी इतनी सुंदर हो उसको नींद कहाँ आने वाली।

रजनी- धत्त, बाबू.....गंदे...

और शर्माते हुए रसोई में भाग जाती है, इतने में काकी आ जाती है और उदयराज बाल्टी उठा के नहाने चला जाता है


आखिरकार रजनी और उसके बापू की मोहब्बत की कहानी शुरू हो ही गई। आप के हाथो में कमाल है, जादू सा कर कर रहा हैं आपका हर एक अपडेट।
 

Bhencho

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Update-22

बैलगाड़ी घने जंगल में दनदनाती हुई आगे बढ़ती जा रही थी, सुबह की शीतल ठंडी हवा चेहरे पर लगकर ताजगी का अहसास करा रही थी, उदयराज बैलों को हाँके जा रहा था, रजनी, काकी और सुलोचला पीछे बैठी हुई थी, काकी और रजनी बार बार सर घुमा घुमा कर जंगल में विचित्र लंबे लंबे पेड़ों को देख रही थी, कुछ पेड़ ऐसे थे जिनकी प्रजाति अभी तक उन्होंने कहीं देखी नही थी।

तभी सुलोचना उठकर उदयराज के बिल्कुल पीछे बैठ गयी ताकि वो उसको आगे का short रास्ता बता सके।

कभी अचानक तेज हवा चलने लगती तो कभी वातावरण बिल्कुल शांत हो जाता, कभी किसी पेड़ की डालियां एकदम हिलने लगती जैसे उन्हें कोई झकझोर रहा हो, कभी जानवरों की आवाज़ें आने लगती कभी सब शांत हो जाता।
रजनी और काकी यही सब देखकर चकित थी पर डर उन्हें लेश मात्र भी नही छू पाया था, अभी सुबह का ही वक्त था, उदयराज भी ये सब देखता हुआ बैलगाड़ी चलता जा रहा था, तभी रजनी को एकाएक एक बहुत बड़ा बरगद के जैसा बिल्कुल पीला वृक्ष दिखाई दिया।

रजनी- काकी वो पेड़ देखो बरगद जैसा एकदम पीला है और कितना बड़ा है।

काकी- हां बेटी ये तो बिल्कुल पीला है।

सुलोचना- उस पेड़ की तरफ ज्यादा मत देखो, ऐसे ही कई मायावी पेड़ हैं इस जंगल में जो बार बार रंग बदलकर आकर्षित और सम्मोहित करते हैं।

काकी- हां बहन ठीक है, तम ठीक कह रही हो हमे अपने रास्ते और मंजिल पर सीधा ध्यान रखना चाहिए न कि इधर उधर।

रजनी- हां बिल्कुल। हमे तो बैलों पर और बैलगाड़ी चलाने वाले पर ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वही तो हमे मंजिल तक ले जाएंगे। क्यों बाबू? (रजनी हंसते हुए उदयराज को छेड़ते हुए बोली)

उदयराज ने पलट कर रजनी को देखा तो रजनी मुस्कुरा दी, उदयराज बोला- हां क्यों नही, घर भी तो जल्दी पहुचना है अब। उदयराज ने ये बोलते हुए एक बार फिर रजनी को देखा।

रजनी को बात का मतलब समझ आते ही शर्म आ गयी और उसने काकी और सुलोचना की नजरें बचा कर थोड़ा सा जीभ निकाल कर उदयराज को फिर चिढ़ाया, मानो कह रही हो कि तब तक तो बस सब्र करो।

उदयराज ने भी मौका देखके इशारा किया मानो कह रहा हो कि बस मौका मिलने दे बताता हूँ फिर।

रजनी हंस दी, उदयराज भी मुस्कुरा दिया।

सुलोचना उदयराज के पीछे बैठे बैठे रात के लिए मशाल बनाने लगी और बोली- एक बार अपने अपने ताबीज़ को ठीक से जांच लो और अच्छे से बांध लेना, यह मायावी जंगल इसी के सहारे पार किया जा सकता है।

उदयराज अब तेजी से बैलों को हांकने लगा उसे बस अब एक ही धुन सवार थी कि कैसे भी जल्दी काम खत्म करके बस घर पहुचना है।

जैसे जैसे सुलोचला रास्ता बताये जा रही थी वो बैलगाडी उसी रास्ते पर दौड़ाता जा रहा था।

ऐसे ही रास्ता कटता जा रहा था दोपहर हो गयी तभी रजनी ने काकी के कान में कहा- काकी मुझे पेशाब करना है, तेज से लगी है, कब से रोककर बैठी हूँ।

काकी- अरे पगली ये भी कोई रोकने की चीज़ है, बोल देती न। उदय ओ उदय जरा बैलगाडी कहीं रोकेगा की बस ऐसे ही दौड़ाता जाएगा। रुक जरा


उदयराज- क्यों क्या हुआ काकी? उदयराज ने बैलगाडी रोक दी।

सुलोचना- क्या हुआ बहन?

काकी- अरे वो रजनी को जोर से पेशाब लगी है, कब से दबाए बैठी है।

उदयराज ने रजनी की तरफ देखा तो रजनी ने आंखों के इशारों से मिन्नत सी की, कि जरा रोको बाबू।

उदयराज ने बैलगाडी रोक दी

सुलोचला- लेकिन पुत्री रुको

रजनी- क्या हुआ अम्मा।

सुलोचला- ऐसे मायावी जंगल में यूं ही पेशाब करना खतरनाक हो जाएगा, क्योंकि प्रेत, मानव स्त्री के मूत्र की गंध से और प्रेतनी मानव पुरुष के मूत्र की गंध से तुरंत आकर्षित हो जाते है और वो फिर उसका पीछा करने लगते है अभी तो तुमने ताबीज़ पहना हुआ है तो कोई परेशानी नही है पर वो तुम्हारे मूत्र की गंध को अपने अंदर समाहित करके हमेशा तुम्हारे पीछे लगे रहेंगे जैसे ही ये ताबीज़ हटी फिर वो तुम पर हावी हो जाएंगे। तो उन्हें मूत्र को सूंघने से ही रोकना पड़ेगा।

रजनी को जोर पेशाब लगी थी वो तो कसमसा रही थी

काकी- तो फिर कैसे होगा, अब पेशाब तो किसी को भी लग सकती है, हमने तो इसके बारे में चलने से पहले सोचा ही नही था, कितना खतरनाक है ये जंगल, तो कैसे होगा बहन, अब रजनी को तो लगी है न जोर से।

सुलोचला- हल है न, मैं किसलिए हूँ तुम्हारे साथ, देखो मानव मूत्र पर प्रेत या प्रेतनी की छाया पड़ने से पहले अगर मनुष्य योनि के विपरीत लिंग का मूत्र उसपर पड़ जाए तो उस मूत्र पर उसके बाद उसपर पड़ने वाले मूत्र का अधिकार हो जाता है मतलब वह अकेला नही रहता और फिर ऐसी बाधा नही आ पाती।

काकी- मैं समझी नही

रजनी और उदयराज भी असमंजस की स्थिति में सुलोचना को देखने लगे। रजनी तो बार बार अपनी जांघों को भीच ले रही थी, काफी देर से उसने पेशाब दबा रखा था।

सुलोचला- अरे, बहन जैसे कि रजनी के पेशाब करने के बाद अगर कोई पुरुष उसपर पेशाब कर दे तो रजनी सुरक्षित हो जाएगी, उसपर उस पुरुष का अधिकार स्थापित हो गया।

काकी- तो पुरुष तो हमारे साथ केवल इस वक्त उसके बाबू ही हैं।

सुलोचला- हाँ तो क्या हुआ, वो ही करेंगे इसमें क्या हर्ज है अपनी बेटी की रक्षा के लिए करना पड़ेगा।

रजनी के पेशाब करने के बाद उसके बाबू उसपर पेशाब करके उसमें अपना पेशाब मिला देंगे तो रजनी खाली नही रहेगी इसपर उदयराज का अधिकार साबित हो जाएगा और इसके अलावा मैं पानी में मंत्र मारकर और एक फूल दे देती हूँ रजनी और उदयराज थोड़ा दूर जाकर एक साथ खड़े हो जाये फिर रजनी हाथ में पानी लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक गोला बना लेगी और लोटा उदयराज को देखकर दक्षिण दिशा में विपरीत मुँह करके पेशाब कर लेगी और फिर उसके बाबू भी दक्षिण दिशा में रजनी के पेशाब में अपना पेशाब मिला देंगे फिर दोनों गोले से बाहर आकर जहां पर गोला बंद किया था वहां फूल रख देंगे मैं मंत्र से उसको बंद कर दूंगी। फिर कोई दिक्कत नही है।

उदयराज- लेकिन मुझे तो पेशाब आ ही नही रही अम्मा (उदयराज ने ये कहते हुए रजनी की तरफ देखा तो रजनी कसमसाते हुए झेप गयी)

सुलोचना- अरे बेटा नही आ रहा तो पानी पी ले एक लोटा, लेकिन तू दो बूंद भी अपना पेशाब उसके पेशाब में मिला देगा तो वो सुरक्षित हो जाएगी।

उदयराज- माता मैं तो मज़ाक कर रहा था मैं अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।

सुलोचना- जानती हूं बेटा, जो इंसान पूरे गांव की सुरक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को लेके जिसमे एक छोटी सी बच्ची भी है इतने जोखिम भरे रास्ते पर निकल सकता है उसके लिए तो ये कुछ भी नही, पुत्र तुझे इसका फल अवश्य मिलेगा।

और फिर सुलोचना ने एक लोटे में जल लेकर उनमे मंत्र फूंका और रजनी को दे दिया रजनी उसे लेकर बैलगाडी से उतरी उसके पीछे उदयराज भी चलने लगा, कुछ दूर जाकर रजनी ने पलटकर देखा और बोली यहीं ठीक है बाबू थोड़ा ओट भी है।

रजनी ने बताये अनुसार हाथ में जल लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक घेरा बना दिया फिर लोटा उदयराज को देकर बोली- अब तुम उधर मुह करो पीछे मत देखना बाबू, ठीक है।

उदयराज- किधर?

रजनी- उधर

उदयराज- अरे उधर किधर?

रजनी- दक्षिण दिशा की तरफ, नही उत्तर दिशा की तरफ।

उदयराज- हे भगवान इतना तेज पेशाब लगा है कि कुछ समझ नही आ रहा मेरी बेटी को।

रजनी- हाँ लगी है न बाबू, अब उधर मुँह करो, काकी और अम्मा दोनों इधर ही देख रही है।

उदयराज- देखने दो मैं क्या डरता हूँ उनसे (उदयराज ने मस्ती करते हुए कहा)

रजनी- बाबू करने दो न, अब, मान भी जाओ मेरे बाबू

उदयराज- इससे भी सुरक्षित तरीका सुझा है मुझे।

रजनी- क्या?

उदयराज- इससे अच्छा तो तुम मेरे मुँह में ही पेशाब कर देती, न जमीन पर गिरता न ऐसी ऐसी आफत आती, मेरे मुँह में वो सुरक्षित रहता।

रजनी (जोर से हंसते हुए) - हे भगवान! बदमाश! गंदे!, बहुत बदमाश होते जा रहे हो बाबू तुम, मेरे पेशाब मुँह में लिए फिरोगे, बोलोगे कैसे? तुम न दीवाने होते जा रहे हो बस, अब बाबू धुमो न उधर मुझे करने दो न।


उदयराज- तुम हो ही इतनी हसीन, क्या करूँ।

रजनी- बदमाश!

उदयराज- अच्छा ठीक है पहले बोलो मुझे पिलाओगी न।

रजनी- क्या? दुद्धू, वो तो तुम्हारा ही है मेरे बाबू, क्यों नही पिलाऊंगी (बहुत प्यार से बोला रजनी ने)

उदयराज- वो नही, वो तो मैं पियूँगा ही, मुझे तो ये भी पीना है।

रजनी- क्या?

उदयराज (धीरे से)- अपनी शादीशुदा बेटी का पेशाब

रजनी का मुँह खुला का खुला रह गया-hhaaaiii dddaaaiiiyaa, dhhaaattt, गंदे! हे भगवान बाबू, ये गंदा होता है न

उदयराज- कुछ भी हो मुझे तो पीना है थोड़ा सा ही सही

रजनी शर्म से लाल हो गयी

उदयराज- बोलो न, तभी उस तरफ घूमूंगा!

रजनी- बहुत बदमाश हो तुम बाबू, अच्छा ठीक है पर घर पे और बस थोड़ा सा और पीना नही है बस मुँह में लेकर फिर थूक देना, ठीक

उदयराज- ठीक


रजनी- चलो अब उधर देखो मुझे बहुत जोर से लगी है बर्दाश्त नही होता अब।


और उदयराज उत्तर दिशा की ओर मुह करके खड़ा हो गया, रजनी का किया हुआ वादा सोचके उसका लन्ड फ़नफना उठा पर जल्द ही उसने adjust कर लिया क्योंकि काकी और सुलोचना ज्यादातर इस तरफ ही देख रही थी

रजनी दक्षिण की तरफ घूमी और जल्दी से अपनी साड़ी को थोड़ा सा उठा के उसके अंदर हाथ डाल के पेंटी को घुटनों तक साड़ी के ही अंदर नीचे सरकाया फिर नीचे बैठ गयी और पेशाब की धार छोड़ दी, पेशाब की धार की शीटी सी आवाज उदयराज के कानों तक पड़ी तो उसका मन मचल उठा, रजनी इतना तो समझ गयी कि बाबू पेशाब की धार की आवाज तो सुन ही रहे हैं, रजनी की मखमली बूर की फांकों के बीच से एक मोटी पेशाब की धार जमीन में इतनी तेज लग रही थी की वहां हल्का सा गढ्ढा हो गया, आखिर उसे पेशाब लगा ही इतना तेज था, काफी देर से दबाए हुए थी, पेशाब की धार छोडते ही उसने राहत की सांस ली।

अभी पेशाब करते हुए उसे कुछ सेकंड ही हुए होंगे कि पास के पेड़ की डाल काफी जोर से हिली जैसे किसी ने झकझोर दिया हो

काकी- ये क्या हुआ बहन।

सुलोचला- आ गए हरामजादे, स्त्री का पेशाब सूंघने, अगर अभी ये गोला न बनाया होता तो टूट पड़ते पेशाब पर, और अगर ताबीज़ न बंधी होती तो हावी वो जाते, उदयराज और रजनी ने भी हिलती हुए डाली को देखा पर डरे नही।

काकी- कितना खतरनाक है ये जंगल वाकई में।

रजनी करीब 30 सेकंड तक मूतती रही फिर उठ गई उसकी मखमली मुलायम बूर से निकला हुआ काफी सारा पेशाब जमीन पर था उसने शर्माते हुए उदयराज को देखा और लोटा ले लिया, उदयराज की नज़र जब रजनी के मूत पर पड़ी तो वो उसे मदहोशी से देखने लगा।

रजनी उत्तर की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी फिर उदयराज रजनी के पेशाब के पास बैठ गया और अपना पहले से ही सख्त हो चुके करीब 9 इंच लंबा 3 इंच मोटा काला लंड निकालकर मूतने लगा, उदयराज के लंड से भी पेशाब को धार सुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर की आवाज के साथ निकलने लगी और रजनी के पेशाब में जा मिली, जैसे ही रजनी ने अपने बाबू के पेशाब की धार की आवाज सुनी और ये सोचा कि मेरे बाबू का पेशाब मेरे पेशाब से मिल गया, उसके तन बदन में मीठी तरंगे दौड़ गयी, आज ये पहली बार हुआ था , बदन गनगना गया उसका। मन ही मन वो सोचने लगी कि बाबू का लंड कैसा होगा? ये सोचते ही शर्म की लालिमा उसके चेहरे पर दौड़ गयी।

उदयराज मूत चुका था वो अब उठ गया, लंड उसने धोती के अंदर करके कुछ इस तरह एडजस्ट किया कि रजनी को भी इसका अहसास न हो कि वो खड़ा है, वो सारे पत्ते एक ही बार में खोलना नही चाहता था।

फिर रजनी और उदयराज उस गोले के बाहर आ गए और रजनी गोले के मुह पर जब फूल रखने लगी तो सुलोचना ने मंत्र पढ़कर उसको बांध दिया

रजनी ने एक नज़र पेशाब पर डाली, अपने पेशाब में अपने बाबू का मिला हुआ पेशाब देखकर उसकी बूर थोड़ी गीली सी हो गयी और अजीब सी गुदगुदी का अहसाह हुआ, फिर उसकी नज़र अपने बाबू पर गयी जो उसे ये देखते हुए देख रहे थे तो वो शर्मा गयी।

उदयराज बोला- लो अब तुम हो गयी मेरी, तुम पर हो गया मेरा अधिकार।

रजनी- वो तो मैं आपकी बचपन से हूँ, मेरे ऊपर आप ही का हक़ है बाबू। अब चलो

उदयराज और रजनी बैलगाडी तक आ गए।

काकी- अब मिली शांति

रजनी- हां काकी, देखो न कितना सुकून है मेरे चेहरे पर।

सब हंस पड़े

काकी- अब जब यहां रुके ही हैं तो खाना पीना खा के थोड़ा आराम करके फिर चलते हैं।

सुलोचना- ठीक है

फिर सबने कुछ दूर एक घने पेड़ के नीचे खाना खाया और कुछ देर आराम करने लगे

कुछ देर आराम करने के बाद उदयराज फिर बैलगाडी सुलोचना के बताए अनुसार चलाने लगा और शाम हो गयी।

सुलोचला - यहां से लगभग तीन किलोमीटर का रास्ता और है फिर पहुंच जाएंगे, यहां पर अब भूत प्रेतों का खतरा नही है क्योंकि अब हम महात्मा पुरुष के स्थान की परिधि में प्रवेश कर गए हैं

उदयराज, काकी और रजनी ने देखा कि वहां से बड़े बड़े पहाड़ शुरू हो गए थे, सुलोचना ने बनाये हुए मशाल जलाकर बैलगाडी के side में लगी मशालदानी में लगा दिए, जंगल में कुछ दूर तक रोशनी फैल गयी।
Bhai peshaab karne ka rasm kitni sunder lik diye ho. Apko pranam. Hamara hamesha apse umeed aasha aur ijjat bade rahega.
 
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