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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Update- 58

नगमा और चंद्रभान एक दूसरे की आंखों में देखने लगे तो नगमा मुस्कुरा उठी।

चंद्रभान- मजा आया

नगमा- आया तो बाबू पर अभी मन कहाँ भरा।

चंद्रभान- अच्छा, मेरी बेटी का मन नही भरा अभी।

(ऐसा कहते हुए चंद्रभान ने एक करारा धक्का नगमा की बूर में मारा)

नगमा- आआआआआहहहहह......दैय्या...... ऐसे कैसे भर जाएगा बाबू मन?

चंद्रभान- तो कैसे भरेगा मेरी बेटी?

नगमा अपने बाबू की आंखों में देखते हुए- अभी तो पूरी रात अपनी बिटिया की प्यासी बूर को अपने वीर्य से सींचिये, तब जाके इसकी प्यास बुझेगी।

चंद्रभान ने नगमा के मुँह से ये सुनकर उसके होंठों को चूम लिया- जरूर मेरी प्यारी बिटिया, जरूर।

नगमा ने चंद्रभान को अपनी बाहों में भरते हुए बोला- बाबू एक बात सुनिए।

चंद्रभान- बोल न मेरी रानी

नगमा- भौजी अपने मायके कब गयी थी आखिरी बार?

चंद्रभान- क्यों, तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

नगमा- अरे बाबू बताओ तो सही पहले।

चंद्रभान- गयी थी यही छः महीने पहले करीब, उसके मायके में उसकी चाची के यहां ग्रह प्रवेश था तब गयी थी दो तीन दिन के लिए। पर बात क्या है तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो? कोई बात है क्या?

(चंद्रभान नगमा की आंखों में सवालिया निगाहों से देखने लगा तो नगमा ने एक कातिल मुस्कान ली)

नगमा- हाँ बात है तभी तो पूछ रही हूं। बाबू आप भौजी को जल्दी जल्दी उसके मायके भेज दिया कीजिये।

चंद्रभान- पर क्यों? बता तो सही।

नगमा- है कुछ बात बाबू, मैं बता नही सकती क्योंकि मैंने भौजी को वचन दिया है इसलिए, पर मैं आपसे छुपा भी नही सकती, तो इतना समझ जाइये की तड़प रही है वो भी.....अपने....

(नगमा ये बोलते हुए थोड़ा चुप हो गयी और वासना में अपनी आंखें बंद करके अपने बाबू को अपनी बाहों में कसके उनकी पीठ सहलाने लगी)

चंद्रभान- बता न किसके लिए तड़प रही है वो, कुछ है क्या उसका किसी के साथ?

नगमा ने मदहोशी में आंखें बंद किये हुए चंद्रभान के कान में धीरे से बोला- बाबू किसी से कहना मत, वैसे मैंने भौजी को वचन दिया है पर मैं आपको बताने से खुद को रोक नही सकती, मैं आपकी हूँ और आप मेरे, हम दोनों एक ही हैं बस इसलिए ये राज मैं आपको बता रही हूं।

चंद्रभान- तू मेरी सबकुछ है मेरी जान, तुझे मुझपर विश्वास है न।

नगमा- अपने से भी ज्यादा है बाबू...अपने से भी ज्यादा, तभी तो आपसे छुपा नही सकती, पर बाबू भौजी के सामने सामान्य ही रहना उन्हें कभी ये न लगे कि आपको पता है ये बात।

चंद्रभान- तू चिंता न कर बेटी, मैं उसे इसका अहसाह नही होने दूंगा, वो मेरी बहू है, अब बता की वो किसके लिए तड़पती है।

नगमा ने चंद्रभान की आंखों में एक बार मुस्कुराते हुए देखा फिर कस के दुबारा गले से लगा लिया और कान में सिसकते हुए बोली- अपने पिता के लिए।

चंद्रभान- क्या?

नगमा- हां बाबू..... वो भी अपने सगे पिता के साथ चुदाई का मजा ले चुकी है, उनके पिता ने भी उन्हें चोदा रखा है।

(चंद्रभान ने ये सुनते ही अपनी बेटी नगमा की बूर में घुसे हुए अपने फौलादी लन्ड जो कि पूरी तरह अब खड़ा हो चुका था, बाहर निकाल कर बूर की गहराई में जड़ तक एक तेज धक्का मारा तो नगमा मस्ती में सीत्कार उठी)

चंद्रभान- कब....कैसे.....कब से चल रहा है ये, मेरे समधी भी अपनी सगी बिटिया की बूर का मजा ले रहे हैं.... ह्म्म्म

नगमा जोर से कराहते हुए- हां बाबू......इसी में तो असली मजा है। भौजी भी अपने सगे बाप से चुदाई का मजा ले चुकी है और ये सब अभी जब भौजी अपने मायके गयी थी तब ही शुरू हुआ, तब से वो तड़प रही है और मुझे उसकी तड़प देखी नही जाती, जाना चाहती है वो मायके, भेज दीजिए, यहां मैं संभाल लुंगी एक दो दिन।

चंद्रभान- ये तो तूने मुझे गज़ब का राज बता दिया, मेरी बहु अपने पिता से चुदती है.....

(चंद्रभान बहुत आश्चर्यचकित था सुनकर, नगमा मुस्कुराते हुए उनको देखे जा रही थी)

नगमा- क्या हुआ बाबू?

(नगमा ने चंद्रभान की पीठ पर हल्की सी चिकोटी काटते हुए बोला)

चंद्रभान- कुछ नही...पर बेटी वो मेरी बहू है, इस घर की लष्मी है, उसका राज ही है इस घर पर, जब उसका मन करे तब जाए, मैंने उसे कभी रोका कहाँ, वो जब जाना चाहे जाए, तुम कहो तो उसके बाबू को ही यहां बुला दूँ।

(ऐसा कहकर चंद्रभान हंसने लगा)

नगमा भी हंसते हुए- अरे नही बाबू, भौजी को ही भेज दो, फिर कभी उनको यहीं बुला लेना जब मैं अगली बार आऊंगी तब।

चंद्रभान हंसते हुए- फिर एक ही घर में वो अपनी बेटी को चोदेंगे और मैं अपनी बिटिया को।

नगमा- धत्त......उनकी मौजूदगी में ही, ये सब छुप छुप के किया जाता है चोरी चोरी बाबू.....चोरी चोरी.....तब ही तो और मजा आता है।

चंद्रभान- अरे उनकी मौजूदगी में नही.....मतलब अब वो यहां आएंगे तो अपनी बेटी को चोदने का मन तो करेगा ही उनका, तो कुछ न कुछ जुगाड़ तो बैठाएंगे ही वो और दूसरी तरफ मैं भी कहाँ तुझे छोड़ने वाला हूँ।

नगमा मुस्कुराते हुए- बदमाश......अच्छा बाबा मत छोड़ना........चोद लेना अपनी बेटी को...जहां मन करे जैसे मन करे, अब खुश।


चंद्रभान- चलो ये तो बाद कि बात है, कल तुम अपनी भौजी को बोल देना की मैंने बोला है कि वो एक दो दिन अपने मायके घूम आये, जब तक तुम यहाँ हो, पर बेटी उसको शक तो होगा न, की मैं उसको अचानक मायके क्यों भेज रहा हूँ।

नगमा- नही होगा बाबू, मैंने भौजी को बोला था कि मैं बाबू से तुम्हे मायके भेजने के लिए बोल दूंगी, लेकिन भौजी को ये थोड़ी बोला था कि उनका राज मैं आपको बताऊंगी।

चंद्रभान- पर तुमने तो बता दिया मुझे।

नगमा- हाँ तो क्या करती, मैं और आप तो एक ही है और आपसे मैं छुपा नही सकती थी, पर भौजी की शर्म को बरकरार रखना बाबू, उन्हें कभी ये जाहिर मत होने देना की आपको पता है।

चंद्रभान- भौजी की शर्म......ह्म्म्म

नगमा कातिल मुस्कान लेते हुए- हाँ.....शर्म

चंद्रभान- क्या होती है शर्म?

नगमा- शर्म......उउउउमममम......शर्म का मतलब

(नगमा थोड़ा सोचने लगी जानबूझ कर)

चंद्रभान- भौजी की शर्म का मतलब....क्या?

(नगमा कुछ देर अपने बाबू की आंखों में देखती रही कि वो क्या सुनना चाहते हैं, फिर वो उनकी मन की मंशा समझ गयी, और वासना से भरकर बोली)

नगमा- मतलब..........बूर.....बूर बाबू.....बूर......शर्म का मतलब.......बूर

(नगमा अपने बाबू की मंशा समझ कर वासना से भर गई)

चंद्रभान- किसकी बूर बेटी

(चंद्रभान नगमा के मुँह से सुनना चाहता था)

नगमा- भौजी की बूर बाबू भौजी की.......भौजी की बूर की लाज रखना बाबू......वो भी तो आपकी बेटी जैसी हैं न

(नगमा ने खुलकर बोल दिया, वो समझ चुकी थी कि उसके बाबू के मन में क्या है, उसको इस बात से न कोई तकलीफ हुई न जलन, उल्टा न जाने क्यों उसे असीम आनंद सा मिला और वो और भी ज्यादा वासना से भर गई, चंद्रभान अपनी बेटी की इस स्वीकृति से गदगद हो उठा)

चंद्रभान ने नीचे झुककर नगमा के कान में धीरे से अपना लन्ड उनकी बूर में और गहराई तक घुसाते हुए कहा- बहू.....मेरी बहू

नगमा वासना भरी निगाहों से अपने बाबू को कुछ देर देखती रही, चंद्रभान भी नगमा की आंखों में देखता रहा, फिर नगमा ने एकएक चंद्रभान को अपनी बाहों में भर लिया और उनके कान में बोली- पिता जी......भौजी यही बोलती है न आपको बाबू जी

चंद्रभान- हाँ बेटी

नगमा- तो आप मुझे भौजी समझ लीजिए बाबू.......मैं आपको भौजी बनकर पिताजी या ससुरजी बोलूंगी........आप अपनी बहू को आज चोद दीजिए, मेरी बूर को आप भौजी की बूर समझ कर बहू का सुख ले लीजिए, न जाने क्यों मुझे बहुत मजा आ रहा है ये सोचकर।

(चंद्रभान अपनी बेटी के मुंह से ये सुनते ही खुश हो गया)

नगमा फिर बोली- पिता जी

चंद्रभान- आआआहहहह......मेरी बहू

(नगमा समझ चुकी थी कि उसके बाबू क्या चाहते हैं)

नगमा- बाबू

चंद्रभान- ह्म्म्म बेटी

नगमा- आप भौजी को चोदना चाहते हैं

चंद्रभान उठकर नगमा की आंखों में देखने लगता है, नगमा मुस्कुरा रही थी

नगमा- बोलो न

चंद्रभान- हाँ

नगमा ने बहुत ही मस्ती भरे अंदाज में दुबारा बोला- पिताजी.......मेरे ससुर जी

चंद्रभान- बहू...... हाय मेरी बहू

नगमा- पिताजी.......चोदिये अपनी बहू को......बहुत प्यासी हूँ मैं.....आपके लंड के लिए.......चोद दीजिए अपनी बहू को..........हाय

चंद्रभान- पैर को उठा के मेरी कमर पर लपेट न बहू

नगमा ने वैसा ही किया और चंद्रभान धीरे धीरे धक्कों की रफ्तार बढ़ाते हुए अपनी बेटी को बहू समझ कर फिर से चोदने लगा, नगमा आंखें बंद कर फिर से सिसकते हुए अपने बाबू से बहु बनकर चुदवाने लगी। चोदते चोदते नशे में चंद्रभान ने नगमा की 36 साइज की चूची को देखा जो हर धक्के के साथ हिल रही थी, गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो चुके थे, लप्प से चंद्रभान ने चोदते हुए गुलाबी निप्पल को मुँह में भर लिया और चूची पीते हुए अपनी बहू रूपी बिटिया को जोर जोर धक्के लगा कर चोदने लगा, मदमस्त होकर नगमा भी अपने बाबू के बदन को जहां तक उसका हाँथ उनके बदन पर पहुंचता, सहलाने लगी, जैसे ही नगमा एक बार फिर से झड़ने को हुई अपने बाबू के चेहरे को थामकर उनके होंठों पर टूट पड़ी और जोर से सिसकारते हुए चंद्रभान के होंठों को अपने होंठों में भरते हुए झड़ने लगी, अपनी चौड़ी गुदाज गांड को ऊपर उठाकर अपने बाबू का मोटा लंड जितना हो सके नगमा ने अपनी बूर में लील लिया और इस तरह झड़ी मानो बरसों की प्यासी हो.....आआआआहहहहहह.......ससुर जी....मजा ही आ गया......आपसे चुदकर मैं निहाल हो गयी..........हाय......ससुर जी से चुदाई में जो शर्म के साथ साथ मजा है उसकी कोई तुलना नही पिताजी......देखो मेरी बूर कैसे झड़ रही है आपका लंड खाकर......... कितना मजा है इसमें......आआआआहहहहहह.......पिताजी

चन्द्रभान भी आज पहली बार अपनी बेटी में बहू का अहसास पाकर बहुत जल्दी दहाड़ते हुए झड़ गया, नगमा ने ये बखूबी महसूस किया, वो समझ गयी कि बाबू भौजी को सोचकर जल्दी झड़ गए, चोदना चाहते हैं वो भौजी को।

नगमा अपने बाबू के मोटे मोटे आंड को हाँथ पीछे ले जाकर सहलाने लगी, साथ ही साथ वो लंड और बूर को छूकर देखने लगी कि कैसे एक ससुर का लंड उसी की सगी बहू की बूर में घुसा हुआ है, ये मिलन कितना आनंद देने वाला है।

चंद्रभान कुछ देर रुका रहा तो नगमा ने आंखें खोलकर उनको देखा और अपने हाँथ से अपने बाबू की गांड को इशारे से दबाकर फिर बूर चोदने का इशारा किया, पर चंद्रभान के मन में अब कुछ और पाने की लालसा थी।

नगमा- पिताजी और चोदो न अपनी बहू को।

चंद्रभान नगमा को मुस्कुराते हुए देखने लगा तो नगमा भी मुस्कुरा दी और बोली- कुछ और चल रहा है क्या मन में?, कुछ और चाहिए मेरे ससुर जी को?

(नगमा लगभग समझ ही गयी थी कि उसके बाबू को क्या चाहिए पर वो उनके मुँह से सुनना चाहती थी)

चंद्रभान- हाँ..... कुछ और चाहिए

नगमा इतरा कर- क्या चाहिए बोलो.....जो चाहिए वो मिलेगा.....बोलो.....बोलो....जल्दी बोलो

चंद्रभान ने नगमा के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों से हल्का सा काटते हुए कहा- अपनी बहु की गांड........ मुझे अपनी बहू की गांड मारनी है......चौड़ी चौड़ी गुदाज गांड की छेद में अपना लंड डालना है।

(ऐसा कहते हुए चंद्रभान नगमा की 38 साइज की चौडी गांड को अपनी दोनों हथेली में थामकर कराहते हुए सहलाने लगा, नगमा ने भी अपनी गांड को हल्का सा ऊपर उठा लिया ताकि उसके बाबू के दोनों हाँथ पूरी तरह गांड के नीचे आ जाएं)

अपने बाबू द्वारा हल्का सा कान काटने और चूमने से नगमा गनगना गयी और जानबूझ कर बोली- धत्त....बदमाश.....गांड भी कोई मारने की चीज़ है....मरना है तो बहू की चूत मारिये.....चूत

चंद्रभान- तेरे मुँह से चूत शब्द सुनकर बहुत मजा आ गया.......दुबारा बोल न

नगमा शर्माते हुए- चू....... त.......बहू बेटी की चूत.......अब खुश

चंद्रभान- लेकिन हमेशा चूत ही मारूंगा तो गांड नाराज़ नही हो जाएगी.........आखिर वो भी तो कितनी सुंदर.....मनमोहक और प्यार की हकदार है.......ये तो तुम उसके ऊपर जुल्म कर रही हो..........मरवा लो न गांड अपने ससुर से।

नगमा पूरी तरह शर्मा गयी अपने बाबू का ये आग्रह सुनकर फिर बोली- अच्छा पिताजी मार लीजिए मेरी गांड.....पर धीरे धीरे मारना......दर्द होता है।

चंद्रभान- तुम हर बार ऐसे ही बोलती हो पर फिर बाद में अच्छे से मरवाती हो अपनी गांड।

नगमा- क्या करूँ पिताजी आपका लन्ड इतना मोटा है कि जब घुसने लगता है तो जैसे लगता है कि कोई मोटी कील गांड में जा रही है पर बाद में जब लंड की रगड़ मिलने लगती है तो बहुत अच्छा लगने लगता है।

चंद्रभान ने अपनी तर्जनी उंगली से नगमा की फैली हुई चौड़ी गांड के छेद को हौले हौले सहलाना शुरू कर दिया, नगमा अपने बाबू की इस हरकत से कराहते हुए शर्म से लाल हो गयी।
Nice
 

Game888

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Update- 63

महेन्द्र तेज कदमों से अपने ससुर जी के बताए रास्ते पर चलते हुए खेतों की ओर जाने लगा। बिरजू ने अपने दामाद को अपने खेत दिखाए, पास ही कुछ बागों की सैर कराई, दोनों इधर उधर की बातें करते रहे और दो तीन घंटे में घूम फिर कर घर की तरफ चल दिये। दोपहर हो चुकी थी, बादल कुछ हल्के हो गए थे, कभी कभी बादलों के बीच से तेज धूप निकलकर बारिश से हुई थोड़ी ठंड में गर्माहट पैदा कर दे रही थी। मौसम ऐसा था कि कभी छांव हो जाती तो कभी तेज धूप निकल आती, तेज धूप बदन को मानो लेस दे रही थी, दोनों ससुर दामाद घर पहुचे।

नीलम खाना तैयार करके दोपहर में रसोई के बगल वाले कमरे में पड़ी खाट पर इंतज़ार करते करते सो ही गयी थी, बेसुध होकर सोने की वजह से साड़ी उसकी अस्त व्यस्त हो गयी थी, गोरे गोरे मांसल पैर नीली साड़ी में चमक रहे थे। काले ब्लॉउज के अंदर 34 साइज की कसी कसी दोनों चूचीयाँ तनकर किसी पहाड़ की तरह खड़ी थी, पल्लू सरक कर नीचे गिर गया था, उल्टा हाँथ उसने पेट पर नाभि से थोड़ा ऊपर रखा हुआ था और सीधा हाँथ उठाकर सर के ऊपर खाट पर रखने की वजह से उसकी कांख दिख रही थी, जो कि पसीने से गीली थी, पसीने से ब्लॉउज भी कई जगह गीला हो रखा था। सांसों से उसकी चूचीयाँ हल्का हल्का ऊपर नीचे हो रही थी, और नाभि वो तो कहर ढा ही रही थी।

बिरजू को अभी अपने मित्र के यहां भी जाना था इसलिए वो अब जल्दी जल्दी घर की तरफ बढ़ रहा था।

जैसे ही बिरजु और महेंद्र घर पहुचे, महेंद्र तो बाहर ही खाट पर बैठ गया और बिरजू नीलम को आवाज लगाता हुआ घर में गया।

बिरजू- नीलम.......नीलम बेटी....आ गए हम लोग....कहाँ हो तुम.....सो गई क्या?

अब रात भर पिता से संभोग सुख पाकर थकी मांदी नीलम एक बार जब खाट पर पड़ी तो एक बार आवाज लगाने से कहाँ उठने वाली थी, बिरजू ने पहले रसोई में देखा नीलम वहां नही थी, वो समझ गया कि जरूर सो गई होगी, वो बगल वाले कमरे में गया, अपनी बेटी को अस्त व्यस्त बेसुध होकर सोते देख वासना की खुमारी उसको फिर चढ़ने लगी।

एक पल के लिए बिरजू ने पीछे पलट कर देखा कि कहीं महेन्द्र पीछे पीछे तो नही आ गया, पर महेन्द्र तो मन मानकर बाहर खाट पर लेट चुका था, बिरजू सोती हुई नीलम के ऊपर अपने दोनों हाँथ खाट के दोनों पाटी पर रखते हुए झुका और उसकी गहरी गोरी गोरी नाभी को चूम लिया, अचानक गोरे गोरे बदन पर मर्दाना चुम्बन मिलने से नीलम के बदन में गहराई तक एक कंपन का संचार हुआ और गनगना कर वो उठ गई, अपने बाबू को देख कर मुस्कुरा पड़ी, आंखें उसकी लाल थी, बिरजू को एक बार तो अच्छा नही लगा कि उसने कच्ची नींद से अपनी बेटी को जगाया पर क्या करता, मदमस्त यौवन वो भी सगी बेटी का देखकर उससे रहा नही गया।

नीलम- बाबू आ गए आप?....और ऐसे जागते हैं कोई.........सीधा नाभि पर चूमकर.......मैं तो डर ही गयी थी।

बिरजू- अकेले में तो मैं ऐसे ही जगाऊंगा अपनी बेटी को, मन तो कर रहा था कि कहीं और चूम के जगाऊँ पर वो रात के लिए छोड़ दिया, और वैसे भी उसके लिए मुँह साड़ी में डालना पड़ता।

नीलम- अच्छा जी........तो डाल लेते....बेटी की साड़ी में मुँह डालने का मजा ही कुछ और है.....है न बाबू?

बिरजू- है तो मेरी जान, पर क्या करूँ।

नीलम- पर वहां चूम लेते तब तो मैं उछल ही जाती खाट से....

बिरजू- तो लाओ अब वहीं पर चूम लेता हूँ।

नीलम- अरे नही..नही...बाबू....अभी नही....मैं तो ऐसे ही बोल रही थी, इस वक्त ठीक नही, अकेले में चूम लेना जो भी चूमना हो।

(ऐसा कहते हुए नीलम साड़ी से अपने पैरों को ढकने लगी और दोनों मुस्कुराने लगे)

बिरजू- अच्छा चल उठ खाना निकाल, असली चीज़ अब रात को ही खाऊंगा।

(नीलम ने प्यार से एक मुक्का अपने बाबू की जांघ पर मारा)

नीलम- बदमाश! असली चीज़........बहुत बदमाशी आती है आपको न, क्या है असली चीज़? जरा मैं भी तो जानू।

(नीलम कामुक बातें करते हुए आगे बढ़ी)

बिरजू ने उंगली से नीलम की बूर की तरफ इशारा करके कहा- असली चीज़ ये, ये है असली चीज़, असली भूख तो इसकी है।

नीलम ने ऊपरी शर्म दिखाते हुए "धत्त" बोलकर एक चिकोटी बिरजू के गाल पर काटी तो बिरजू ने नीलम को पकड़कर फिर से चूम लिया।

नीलम- अच्छा बाबू...आप और वो हाँथ मुँह धोकर आइए मैं खाना लगाती हूँ।

बिरजू- हाँ निकाल खाना, खाना खा के जाऊं मैं जल्दी, उस मित्र के यहां भी जाना है न, क्या पता कुछ उपाय मिल जाय।

नीलम- हाँ बाबू, जल्दी जाओ ताकि वक्त से वापिस आ जाओ।

नीलम ने सबका खाना निकाला और सबने दोपहर का खाना खाया, खाना खाने के बाद नीलम ने अपने बाबू और महेंद्र को मिठाई खाने को दी।

सबने मिठाई खाई और बिरजू तुरंत महेन्द्र को ये बोलकर की वो किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा है शाम तक आएगा अपने मित्र से मिलने चला गया।

महेन्द्र को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी हो, नीलम के साथ दिन में ही अकेले वक्त बिताने का वक्त जो मिल गया था।

पर जैसे ही बिरजू के जाने के बाद महेन्द्र घर के अंदर जाने लगा एक चूड़ी बेचने वाली बूढ़ी औरत सर पर टोकरी रखे तेज तेज आवाज लगाते हुए "चूड़ी लेलो चूड़ी.....अच्छी मजबूत चूड़ियां......लाल....नीली.....हरी....पीली रंग की चूड़ियां" द्वार पर आ गयी।

ये सुनकर नीलम घर से बाहर आई पर घर के दरवाजे पर ही महेन्द्र उसे घर के अंदर आता हुआ मिला तो नीलम उसका हाँथ पकड़कर बाहर ले जाते हुए बोली- चलो न मुझे चूड़ी दिलाओ, ये चुड़िहारिन कितने दिनों बाद आई है, आज का दिन ही कितना अच्छा है, इसके पास बहुत अच्छी अच्छी चूड़ियां रहती हैं।

महेन्द्र कहाँ घर के अंदर जाने वाला था उल्टा नीलम उसको घर के बाहर घसीट लायी। मरता क्या न करता, बात माननी ही पड़ी।

महेन्द्र- हाँ हाँ ले लो न चूड़ी, पहन लो जो तुम्हे पसंद हो।

नीलम- अरे आप पसंद करो न.....अम्मा रुको जरा, चूड़ी दिखाओ कैसी कैसी हैं आपके पास।

चूड़ीवाली रुक गयी, महेन्द्र वहीं खाट पर दुबारा बैठ गया, चूड़ीवाली ने चूड़ी से भरी टोकरी उतार कर जमीन पर रखी और बगल में बैठ गयी, तरह तरह की चूड़ियां उसने नीलम को दिखाई, चूड़ियां काफी अच्छी-अच्छी थी, नीलम को कई तरह की चूड़ियां पसंद आ रही थी, तभी उसके मन में आया कि वो अपनी सहेली रजनी को भी बुला ले ताकि वो भी अपनी मन पसंद की चूड़ियां ले ले, फिर न जाने कब ये चूड़ीवाली आये न आये।

नीलम- अम्मा चूड़ियां तो बहुत अच्छी अच्छी लायी हो आप, जरा रुको मैं अपनी सहेली को भी बुला लाती हूँ, उसको भी लेना है, वो भी पसंद कर लेगी।

चूड़ीवाली- हाँ बिटिया ले आ बुला के मैं यही बैठी हूँ, पर जल्दी आना।

नीलम भागते हुए रजनी के घर की तरफ ये बोलते हुए गयी- हाँ अम्मा मैं अभी आयी, बस थोड़ा रुको।
Nice
 

md ata

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Aur kitna wait karwaoge bhai update ke liye
Mein to soch Raha tha ki ye story jald se jald complete ho aur iska bhag 2 padh ne ko mile
 
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