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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Various Eye

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अगले दिन रोज की तरह जब रजनी सुबह 4 बजे सोकर उठी तो उसने देखा कि कमर के नीचे के जिस्म चादर के अंदर पूर्ण नग्न था रात में जो उसके पिता ने साड़ी और साया उसके बदन पर रख दिया था वो करवट बदलते हुए इधर उधर गिर गया था, यह देखकर वो अपने आप में ही शर्मा गयी और बगल में पड़ी पैंटी को उठाकर पहले लेटे लेटे ही पैरों में डालकर जाँघों तक चढ़ाया फिर उठ बैठी और पैंटी पहन ली, खड़ी होकर फिर उसने साड़ी और साया भी पहन लिया, चटाई पर ढेर सारी गुलाब की पंखुड़ियां फैली हुई थी जो रात में हुए बाप बेटी के अत्यंत कामुक पापलीला को बयाँ कर रहे थे, रजनी ने उन्हें हाथ में उठाकर बड़े ही मादक ढंग से सूंघा और मुस्कुरा पड़ी।

आज पांचवा दिन था एकाएक रजनी की नज़र बगल में पड़े कागज पर पड़ी, उसने दिया जलाया और कागज खोला, उसमे लिखा था-

"ऐसी वो तो तुम्हारी माँ की भी नही थी मेरी रानी बेटी, मुझे ऐसी ही वो चाहिये थी, धन्य हो गया मैं तुझे पाकर, अब बर्दाश्त नही हो रहा मेरी बिटिया, आज पांचवी रात होगी और हाय मुझे आज अपनी बेटी के नीचे के होंठ खाने को मिलेंगे"

रजनी मन ही मन पढ़कर मुस्कुरा उठी और सोचने लगी बाबू बर्दाश्त तो अब मुझसे भी कहाँ हो रहा है

उसने फिर एक कागज लिया उसमे मुस्कुराते हुए कुछ लिखा और कल की तरह काकी के हाँथ से उदयराज के तकिए के नीचे रखवा दिया, काकी ने आज वो कागज लेते हुए रजनी को मुस्कुराते हुए देखा तो रजनी शर्मा गयी, काकी को ये तो शक था कि कर्म में कुछ तो रसीला लिखा हुआ है, जो ये बाप बेटी कर रहे हैं, पर एक बड़ी बुजुर्ग होने के नाते उसने बस अभी रजनी और उदयराज के कर्म को सुरक्षा देना ही उचित समझा, वो जानती थी कि एक न एक दिन रजनी उसे ये भेद बताएगी।

उदयराज रोज की तरह उठा और अत्यंत खुशी से बिस्तर समेटने लगा तो कल की तरह आज भी उसे तकिए के नीचे कागज मिला, उसने वो कागज आज भी धोती में ये सोचते हुए खोंस लिया को खेत में अकेले में पढ़ेगा एकांत में।

रोज की तरह फटाफट तो फावड़ा लेकर खेत में पहुँच गया, आज बैल का कोई काम नही था तो वो बस गुड़ाई के लिए फावड़ा लेकर खेत चला गया, बड़ी बेसब्री से उसने वो कागज खोला-

मेरे प्यारे बाबू, अम्मा की कैसी थी कैसी नही ये तो मुझे नही पता, पर मैं अम्मा की जगह नही लेना चाहती, मैं आपकी बिटिया हूँ और बेटी रहकर ही आपका वो प्यार पाना चाहती हूं, मैं हमेशा आपको केवल पिता के रूप में ही सोचकर अत्यंत उत्तेजित हुई हूँ, और आप मेरे बाबू है ही, मुझे आपसे बाबू वाला यौनसुख चाहिए तभी तो ये महापाप फलित होगा न बाबू, और हमारे कुल की रक्षा हो पाएगी, हमे पाप करना है बाबू पाप, और मेरे शुग्गु मुग्गु बाबू उसको बूर बोलते है बूर, अभी कल भी बताया फिर भूल गए उसका नाम। आपकी बेटी की बूर है वो जो आज रात आपको खाने को मिलेगी, मैं बेसब्री से इंतज़ार करूँगी अपने बाबू का। आपकी तरह मैं भी पगला गयी हूँ।

उदयराज ने खुश होते हुए वो कागज मोड़कर रख लिया और खड़े होते हुए लंड को संभाला, दिन भर खेतों में काम करके शाम को घर आया और रोज की तरह सबकुछ वैसे ही बीता और देखते देखते रात हो गयी, सब सो चुके थे आखिर वो पल आ ही गया, उदयराज चुपचाप धीरे धीरे घर में पहुँचा, कोठरी के सामने आके खड़ा हुआ, रजनी को आहट लगते ही वो कसमसाई, आज अपनी बेटी उसे और भी गदराई लग रही थी, बगल में आज भी एक और दिया रखा हुआ था, आज उदयराज बहुत बेसब्र था, रोज की तरह आज भी रजनी ने कोठरी को सुहागरात की तरह सजाया हुआ था, गुलाब के फूलों से सुसज्जित कोठरी अलग ही शोभा बढ़ा रही थी और उफ्फ ये गुलाब और कपूर की महक, दिल खुश कर दे रही थी।

उदयराज बेसब्रों की तरह रजनी की कमर के पास दायीं ओर बैठ गया, कोठरी में बाहर जल रहे दिए कि हल्की रोशनी आ रही थी।

उदयराज ने सबसे पहले पैरों की तरफ से चादर को हटाकर कमर तक कर दिया, आज भी रजनी ने दूसरी लाल साड़ी ही पहनी थी, चादर कमर से ऊपर तक हटते ही नाभि और आस पास का हिस्सा दिखने लगा, नाभि खुलते ही किसी भूखे की तरह उदयराज उस पर टूट पड़ा, एकाएक उसने कई चुम्बन ताबड़तोड़ नाभि पर अंकित कर दिए, रजनी चिहुकते हुए हंस पड़ी अपने बाबू की बेसब्री देखकर, और फिर सिसकने भी लगी, कुछ देर नाभि को चूमने के बाद उसने अपनी जीभ नाभि में घुसेड़ दी, रजनी का पूरा शरीर हिल गया, नाभि का रसपान करने के बाद उदयराज ने आज अपनी बेटी की साड़ी को पैरों की तरफ से ऊपर उठाकर उसे नग्न करके उसका यौवन चखने की सोची, उसने अपनी बेटी के पैरों को बहुत प्यार से निहारा और उन्हें ही देखकर इतना मदहोश हो गया की झुककर अपनी बेटी के पैरों की उंगलियों, अंगूठे और एड़ी को चूमने और चाटने लगा, रजनी एक बार फिर अपने बाबू की इस तड़प पर खिलखिलाकर सिसकते हुए हंस दी और अपने पैर की उंगलियों को आपस में वासना से बेकाबू होकर रगड़ने लगी।

फिर जैसे ही उदयराज ने पैर के पास साड़ी को उठाने के लिए पकड़ा, रजनी ने अपने दाहिने पैर के पंजे को "ना" में हिलाते हुए इशारा किया। (जैसे हम सर हिलाकर ना करते हैं)

उदयराज अपनी बेटी की इच्छा को समझ गया की वो चाहती थी कि साड़ी को ऊपर की तरफ से खोलकर कल की तरह खींचकर पूरा निकाल दें ताकि पैर से लेकर नाभि तक का पूरा हिस्सा बिल्कुल नग्न हो जाये और पूरे पैर अच्छे से फैलाये जा सकें, उदयराज अपनी बेटी की इस कामुक इच्छा को भांपते ही बड़े प्यार और दुलार से उसके दाहिने पैर जो की "ना" का इशारा करते हुए हिल रहे थे, ताबड़तोड़ चूमने लगा, रजनी फिर हंस पड़ी अपने बाबू के इस प्यार और दुलार पर।

आख़िरकर उदयराज ने साड़ी को ऊपर से खोलने के लिए हाथ बढ़ाया और साड़ी के अंदर हाथ डालकर नाड़े को खींचकर खोल दिया फिर रजनी के दोनों पैरों के बीच आकर साड़ी को साये समेत कमर से पकड़कर नीचे खींच दिया, आज रजनी ने पैंटी नही पहनी थी। रजनी ने अपने भारी गुदाज नितम्ब उठाकर साड़ी को निकल जाने में अपने बाबू की भरपूर मदद की।

बाहर जलते दिये कि हल्की रोशनी में एक बेटी की मदमस्त फाँकों वाली कसी कसी कमसिन, वासना में फूली हुई, हल्का हल्का काम रस छोड़ती हुई बूर उसके पिता की नज़रों के सामने उजागर हो गयी। उदयराज आंखें फाड़े कुछ देर अपनी सगी बेटी की बूर निहारता रहा, उसकी बनावट और आकार, उसकी आभा देखकर वासना से भर गया, कैसी फूली हुई बूर थी, मोटी मोटी दोनों मांसल जांघों के बीच वो अंग्रेजी के वी "\!/" जैसा आकार लिए करीब पांच पांच इंच लंबे दोनों फांक आपस में सटे हुए थे, मानो बूर के अंदर रखे असीम सुख के खजाने की रक्षा कर रहे हों। हल्के काले काले बालों से बूर हल्की छिपी हुई सी लगती थी।

उदयराज ने अपनी सगी बेटी की बूर को अभी कल ही देखा था आज दूसरा दिन था फिर भी उसे ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार देख रहा हो।

आज अपनी बेटी के पैंटी न पहनने पर उदयराज उसकी मंशा जान गया और बेताब होते हुए उसने एक ही झटके में साड़ी और साये हो खींचकर पैर से निकाल कर बाहर कर दिया।

और फिर बिना समय गवाये वासना से वशीभूत शेर की तरह दहाड़ता हुआ अपनी सगी बेटी की बूर पर टूट पड़ा, उसने अपने होंठों से अपनी सगी बेटी की बूर पर एक बहुत जोरदार और कामुक चुम्बन जड़ दिया, खुद आज उसके मुँह से बड़ी ही मादक आवाज में aaaaahhhhhhhhhh bbbbbbeeetttttiiii निकला।

अपने बाबू का अचानक अपने बूर पर जोरदार चुम्बन पा के रजनी का बदन सर से लेकर पाँव तक सरसराहट में हिल गया, अंग अंग थरथरा उठा, बड़ी ही तेज और मादक आवाज में उसने भी aaaaaaaaaahhhhhhhhhh.....bbbbbbbbbaaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuu

बोलते हुए अपने पैरों को हवा में जितना हो सके फैलाते हुए अपनी कसी कसी मांसल जाँघों को खुलकर अपने बाबू के लिए खोल दिया, जिससे उनकी बूर उभरकर उदयराज के मुंह के सामने आ गयी और दोनों फांकें खुलकर फैल गयी, हल्के दीये कि रोशनी में उदयराज अपनी सगी बेटी की फैली हुई बूर को देखकर और भी पागल हो गया और उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली, फिर जीभ को बूर के नीचे अंतिम छोर पे गांड की छेद के पास लगाया और सर्रर्रर्रर्रर से पूरी बूर को चाटता हुआ नीचे से एकदम ऊपर तक आया, अपने बाबू के ऐसा करने से रजनी बौखला गयी और मदहोशी में अपनी आंखें बंद करके अपने होंठों को दांतों से काटते हुए बड़ी जोर से सिसकी और uuuuuuiiiiiiiiiiiiii mmmmmaaaaaaaaaaaaaa बोलते हुए
पूरे बदन को धनुष की तरह ऊपर को मोड़ती चली गयी, उसकी विशाल चूचियाँ तनकर ऊपर को उठ चुकी थी और निप्पल तो इतने सख्त हो गए थे कि वो खुद ही उन्हें हल्का हल्का मसल रही थी।

बूर की पेशाब और काम रस की गंध से उदयराज पागल हो चुका था, उसने इसी तरह कई बार पूरी पूरी बूर को नीचे से लेकर ऊपर की तरफ विपरीत दिशा में लप्प लप्प करके चाटा, जब उदयराज बूर के ऊपरी हिस्से पर पहुचता तो बूर के ऊपर बालों में अपनी जीभ फिराता और फिर जीभ को फैलाके गांड की छेद के पास रखता और फिर सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर से लपलपाते हुए पुरी बूर पर जीभ फिराते हुए ऊपर की ओर आता और कभी तो वो ऊपर आकर बूर के ऊपर घने बालों पर जीभ फिराता कभी जहां से दरार शुरू होती है वहां पर जीभ को नुकीली बना कर दरार में डुबोता और भगनासे को जी भरकर छेड़ता, फिर भगनासे के किनारे किनारे जीभ को गोल गोल घूमता।

रजनी की पूरी बूर उदयराज के थूक से गीली हो चुकी थी, उसकी बूर से निकलता काम रस उदयराज बराबर अपनी जीभ से चाट ले रहा था, पूरी कोठरी में हल्की हल्की चप्प चप्प की आवाज के साथ दोनों बाप बेटी की सिसकियां गूंजने लगी।

उदयराज ने फिर एक बार अपनी जीभ को नीचे गांड के छेद के पास लगाया और इस बार उसने जीभ को नुकीला बनाते हुए जीभ को अपनी बेटी की बूर की दरार में नीचे की तरफ डुबोया और दरार में ही डुबोये डुबोये नुकीली जीभ को नीचे से खींचते हुए ऊपर तक लाया, पहले तो एक बार जीभ रजनी की बूर के संकरी छेद में घुसने को हुई पर फिर फिसलकर ऊपर चल पड़ी और भगनासे से जा टकराई, फिर उदयराज ने वहां ठहरकर भगनासे को लप्प लप्प करके कई बार चाटा।

रजनी के बदन की एक एक नस आनंद की तरंगों से गनगना उठी, बड़ी ही तेज तेज उसके मुँह से अब सिसकियां निकल रही थी मानो अब लाज, संकोच और डर (की कोई सुन लेगा) जैसे हवा हो चुका था, अपने पैरों को मोड़कर उसने अपने बाबू की पीठ पर रख लिया था, गनगना कर कभी वो अपने बाबू को पैरों से जकड़ लेती कभी ढीला छोड़ देती। बेतहासा कभी अपना सर दाएं बाएं पटकने लगती, कभी अपने हांथों से चूचीयों को कस कस के मीजती, चादर उसका उनके चेहरे से हट चुका था पर वो नीचे की तरफ नही देख रही थी, उसकी आंखें अत्यंत नशे में बंद थी, कभी थोड़ी खुलती भी तो वो हल्का सा कोठरी की छत को देखती।

उनकी सांसे बहुत तेज ऊपर नीचे हो रही थी, लगातार उसके बाबू उसकी बूर को एक अभ्यस्त खिलाड़ी की भांति चाटे जा रहे थे, जीवन में पहली बार ढंग से किसी मर्द की जीभ उसकी बूर पर लगी थी और वो भी खुद उसके सगे पिता की, आज पहली बार वो अपने बाबू से अपनी बूर चटवा रही थी, इतना परम सुख उसे कभी नही मिला। उदयराज की मर्दाना जीभ की छुअन से रजनी नशे में कहीं खो गयी थी।

नियति भी इन बाप बेटी के धैर्य को देखकर चकित थी, दोनों ने ही अपने कामोन्माद को किस तरह काबू किया हुआ था, कोई और होता तो अब तक सब भूल कर संभोग कर चुका होता, क्योंकि सगे बाप बेटी के रिश्ते में छुप छुप के हुए इस व्यभिचार में ख़ुद को इतना संभाले रहना सबके बस की बात नही।

पूरी कोठरी में बूर चाटने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ गूंज रही थी। एकएक उदयराज को कुछ कमी महसूस हुई वो और ज्यादा गहराई से अपनी सगी बेटी की बूर को खाना चाहता था, उसने रजनी के बूर से मुँह हटाया तो उसके होंठों और रजनी की बूर की फाँकों के बीच लिसलिसे कामरस और थूक के मिश्रण से दो तीन तार बन गए, उदयराज ने बड़ी मादकता से उसे चाट लिया और उठने लगा।

रजनी ने झट से चादर चहरे पर डाल लिया और असमंजस में सोचने लगी कि क्या बाबू आज इतनी जल्दी चले जायेंगे? नही नही, इतनी जल्दी नही जाना चाहिए बाबू को, मुझे अभी और चुम्बन चाहिए अपनी बूर पर, वो थोड़ा दुखी हो गयी, उदयराज झट से कोठरी से बाहर गया, रजनी ने उदासी से ये सोचकर अपने पैर नीचे कर लिए की आज बस इतना ही, वो ऐसे ही चटाई पर जांघ फैलाये पैर नीचे किये लेटी रही, लेकिन उसका दिल कह रहा था कि उसके बाबू गए नही हैं, जरूर कोई बात है, क्योंकि जाते तो वो अपनी बेटी की बूर को ढककर जाते, सम्मान दे के जाते, आखिर वो इंतज़ार करने लगी उनके आने का। उसने अपनी बूर को स्वयं ढका भी नही वैसे ही बूर खोले लेटी रही।

उदयराज कोठरी से निकलकर अपना दहाड़ता हुआ खड़ा लंड लेकर बरामदे में अंधेरे में तकिया ढूंढने लगा पर उसे वहाँ तकिया मिला नही।

फिर उसे अपने बिस्तर का ध्यान आया कि उसके बिस्तर पर तकिया रखा हुआ है, वो अपना तना हुआ लंड लेकर धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर गया, बाहर गुप्प अंधेरा था, दरवाजे की हल्की सी खुलने की आहट से रजनी एक बार फिर पूरी तरह उदास हो गयी उसे लगा कि बाबू तो सच मे चले गए, पर फिर भी उसका मन नही माना और वो इंतज़ार करती रही, उसे विश्वास था कि उसके बाबू ऐसे नही जा सकते।

उदयराज धीरे से अपने बिस्तर से बेहद मुलायम तकिया उठा लाया और घर का दरवाजा खोल अंदर आ गया, रजनी दुबारा दरवाजे के खुलने की आहट से प्रफुल्लित हो उठी और चादर को अच्छे से ओढ़ लिया।

उदयराज ने रजनी के पैर को उठाया तो रजनी ने स्वयं ही पैर हवा में उठा कर जाँघों को पूरा फैलाकर अपनी प्यारी फूली हुई बूर एक बार फिर अपने बाबू के सामने खोलकर परोस दी।

उदयराज ने जब रजनी की गांड के नीचे हाथ लगा के उसे गांड को ऊपर उठाने का इशारा किया तो रजनी ने एकदम से अपनी गांड को ऊपर उठा लिया, उदयराज ने जब गांड के नीचे तकिया लगाया तब रजनी को समझ आया कि उसके बाबू तकिया लेने गए थे ताकि बूर और खिलकर ऊपर को उठ सके, वो मंद मंद मुस्कुरा उठी।

अब वो गांड के नीचे तकिया लगाए अपने दोनों पैर हवा में विपरीत दिशा में फैलाये, अपनी जाँघों को अच्छे से खोले और बूर को एकदम से ऊपर उठाकर अपने बाबू के सामने मदरजात नंगी पड़ी थी, तकिया लगने से उसकी कमर का हिस्सा ऊपर उठ गया था और अब नीचे से उसकी गांड का काफी हिस्सा भी दिख रहा था।

उदयराज ने बगल में पड़े दिए को भी जला दिया

अब तो रजनी ने शर्म की वजह से अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया क्योंकि उसकी बूर अब पूरा उभरकर उसके बाबू के सामने आ गयी थी और अब कोठरी में रोशनी भी ज्यादा हो गयी थी।

दिये कि तेज रोशनी में जब उदयराज ने अपनी बेटी की मोटी मोटी गोरी शख्त फैली हुई जाँघे, पैर, कमर और नाभि तथा नाभि के आस पास का हिस्सा, जाँघों के नीचे तकिए पर भारी भारी उन्नत मांसल नितम्ब का कुछ निचला हिस्सा, और काम रस तथा थूक से सनी, फूली हुई काले काले हल्के बालों वाली गोरी गोरी बूर जिसकी फांकें फैलने की वजह से हल्की खुली हुई थी और भगनासा खिलकर बाहर निकला हुआ था, देखा तो उदयराज दुबारा पागल होने लगा।

उसने दहाड़ते हुए अपनी दो उंगलियों से अपनी बेटी की बूर की फांकों को अच्छे से चीरा, एक तो जांघे फैलने से बूर पहले ही खुली हुई थी ऊपर से उदयराज ने उंगलियों से फांकों को और चीर दिया जिससे बूर का लाल लाल संकरी छेद और भगनासा दीये की रोशनी में चमक उठा, उदयराज लपकते हुए बूर पर बेकाबू होकर टूट पड़ा और जीभ से बूर के लाल लाल कमसिन कसे हुए छोटे से छेद को बेताहाशा चाटने लगा।

रजनी का बदन अचानक ही बहुत तेजी से थरथराया और रजनी ने aaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhh, uuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiimmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa कहते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज को सिसकते हुए दबाया।

उदयराज लप्प लप्प जीभ से अपनी बेटी की बूर के छेद को चाटे जा रहा था, रजनी फिर से तड़प तड़प कर अपना सर दाएं बाएं पटकती, पूरा बदन ऐंठती, गनगना जाती, अपनी मुठ्ठियों को कस कस के भीचती, तो कभी अपने स्तन भींच लेती, अपने पैरों को उसने फिर से अपने बाबू की पीठ पर लपेट दिया और जब जब उसका बदन थरथराता वो अपने पैरों से अपने बाबू को जकड़ लेती।

उदयराज ने थोड़ी देर अपनी बेटी की बूर के छेद को चाटा फिर अपनी जीभ को नुकीला किया और बूर के नरम नरम छोटे से लाल लाल छेद के मुहाने पर गोल गोल घुमाने लगा, रजनी अब जोर जोर से काफी तेज तेज छटपटाने और सिसकने लगी, उसे क्या पता था कि उसके बाबू बूर के इतने प्यासे हैं, वो बूर के इतने अच्छे खिलाड़ी हैं, वो बूर चाटने में इतने माहिर है, ऐसा सुख तो उसके पति ने कभी सपने में भी नही दिया, उसे पता लग चुका था कि उसके बाबू अपनी सगी बेटी की बूर के कितने भूखे हैं। कोठरी में काफी तेज तेज सिसकारी गूंजने लगी।

उदयराज ने एक बार फिर से पूरी बूर को नीचे से ऊपर की ओर अपनी जीभ से लपलपा के चाटा, उदयराज का अब इरादा था अपनी जीभ अपनी बेटी के बूर की छेद में डालने का पर इतने भर से ही रजनी अब काफी त्राहि त्राहि करने लगी, उसके मुँह से अब थोड़ी ज्यादा जोर से hhhhhhhhhaaaiiiiiiiiiiiii. bbbbbaaabbbbuuuuu.........uuuuuuuufffffff. bbbbbbaaaaaabbbbbbuuuuuuu, mmmmaaaaarrrrrrr jjjjaaauuungggiii bbaaaabbuuu सिसकते हुए निकलने लगा।

उदयराज को अपनी प्यारी बेटी पर तरस आया, वो सोचने लगा की अगर वो और ज्यादा करता है तो ये उसके साथ अन्याय होगा क्योंकि वो क्या पता बर्दाश्त न कर पाए और कर्म का नियम तोड़ बैठे।

उसकी प्यारी बेटी जब उसे प्यार से अपना यौवन चखा रही है तो उसे उसकी तड़प का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इस वक्त वो उसकी प्यारी सी कमसिन सी दहकती बूर में अपना 9 इंच का फ़ौलादी लंड घुसाके उसे चोद तो सकता नही, और न ही इस वक्त रजनी योनि चुम्बन से झड़ना चाहती है, (वो जानता था कि उसकी सगी बेटी भी कई वर्षों से लंड की प्यासी है और वो झडेगी तो सिर्फ अपने बाबू के लंबे और मोटे लंड की रगड़ से)
तो हद से ज्यादा तड़पाकर उसकी दिमाग की नसों पर ज्यादा जोर डालना अच्छी बात नही।

ये सोचते हुए उसने अपनी बेटी की बूर से धीरे से अपना मुँह हटाया, पर फिर एकदम से सटा कर कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा, काम रस रजनी की बूर से रिसता रहा और उदयराज उसे धीरे धीरे चाटता रहा, रजनी की उखड़ती सांसे धीरे धीरे थोड़ी कम हुई, एक अंतिम चुम्बन लेते हुए उदयराज उठ बैठा, रजनी ने अपने पैर चटाई पर अपने बाबू के अगल बगल रख दिये, उदयराज ने रजनी की साड़ी और साया उठाया और अपनी बेटी की बूर को सम्मान पूर्वक ढक दिया, रजनी समझ गयी कि अब उसके बाबू जा रहे हैं, अपने बाबू द्वारा दिये जाने वाले सम्मान से वो गदगद हो गयी, उसकी बूर से अभी भी रस बह रहा था, बदन अभी भी हल्का हल्का कामवेग से थरथरा जा रहा था।

उदयराज ने बगल में रखा दिया बुझा दिया और रजनी की गांड के नीचे से तकिया निकाला और आज कागज पर बिना कुछ लिखे उसको वहीं छोड़कर तकिए पर लगे काम रस को सूंघता हुआ कोठरी से बाहर निकल गया।

Nice update and awesome writing skills
 

Various Eye

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207
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Update- 36

उदयराज तकिए को नाक से लगाये सूंघता हुआ घर से बाहर निकला और धीरे से जाकर कुएं के पास अपनी खाट पर औंधे मुंह लेट गया काफी देर तक वो अपनी बेटी की बूर का काम रस लगा तकिया सूंघता रहा, जब जब आंख बंद करता ऐसा लगता रजनी की बूर ठीक उसके मुंह के सामने है उन नरम नरम लज़्ज़त भारी फांकों की छुअन, हल्के हल्के बूर के बाल और लिसलिसे काम रस की महक उसके मन मस्तिष्क पर चढ़ गई थी, काफी देर तक तो वो पागलों की तरह तकिए को ही दुलारता रहा फिर उससे रहा नही गया और वह खाट पर पेट के बल लेट गया, उसने लेटे लेटे रात के अंधेरे में अपना फौलाद हो चुका 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड धोती में से निकालकर, बेटी की बूर का काम रस लगा तकिया ठीक लंड के नीचे रखा और काफी देर तक हौले हौले धक्का मारते मारते ये सोचते हुए की उसका फ़ौलादी लंड अपनी बेटी की मक्ख़न जैसी बूर में डूबा हुआ है सो गया।

इधर रजनी भी बदहवास सी अपनी उखड़ती सांसों को संभालती लेटी रही, काफी देर तक उसकी बूर हल्का हल्का संकुचित होती रही और हल्का कामरस रिस रिसकर उसकी जाँघों में गिरता रहा, उसे ऐसा लग रहा था कि उसके बाबू की मर्दाना जीभ अब भी उसकी बूर को नीचे से ऊपर लपलपा के चाट रही है, किस तरह उसके बाबू उसकी बूर चाट रहे थे, haaaaiiiiiii अब तो अपनी बेटी की बूर का एक एक कोना उन्होंने अच्छे से देख लिया, छू लिया और चूम लिया है, फिर सिसकते हुए, मंद मंद मुस्कुराते हुए वो भी धीरे धीरे सो गई।

सुबह करीब 4:30 तक रजनी एक मादक अंगडाई लेकर उठी तो देखा कि कमर से नीचे से तो वो निवस्त्र है केवल चादर ही उसके तन पर पड़ा था, रोज की तरह उसने जल्दी से अपनी साड़ी बांधी और रात की बात याद आते ही बूर में उसके फिर से हलचल सी होने लगी, अपने को बड़ी मुश्किल से संभालते हुए उसकी नज़र कागज कलम पर पड़ी।

उसने देखा कि कल रात बाबू ने उसके लिए कुछ लिखकर छोड़ा नही, और आज 6ठे दिन का ध्यान आते ही रजनी का मन अंगडाई लेकर झूम उठा, क्योंकि आज होना था उल्टा, इस ख्याल से ही रजनी का बदन सुबह सुबह भोर में ही गनगना गया, आज उसे वो देखने, छूने, सहलाने और चूमने को मिलेगा जिसकी कल्पना मात्र से ही वो सिरह जाती थी, सोचते ही शर्म के मारे उसका चेहरा लाल हो गया, आखिर एक बेटी अपने ही सगे पिता के उस अंग को कैसे खोलेगी, कैसे देखेगी, कैसे छुएगी और फिर कैसे चूमे......। कितनी शर्म आएगी, आखिर वो उसी से पैदा हुई है, देखने में कैसा होगा वो, न जाने कितना लंबा और मोटा होगा वो।

ये सोचते ही बदन उसका पुनः गनगना गया, निप्पल सख्त होने लगे, अभी तक जो हुआ उसे ही बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था और आज जो होगा......uuuuufffff, कहीं वो अपना नियंत्रण न खो बैठे, पर अभी पूरा दिन बाकी था।

रजनी ने कुछ सोचकर कागज कलम उठाया और शर्माते हुए कुछ लिखने लगी, तब तक 5 बज चुके थे उसने चुपके से बाहर जा के वो कागज काकी को दिया, काकी उसको देखकर मुस्कुराने लगी तो वो भी शर्मा गयी और आज के कर्म के बारे में समझाते हुए बोली- काकी आज रात मैं बाहर सोऊंगी और बाबू अंदर। काकी मंद मंद मुस्कुराती रही फिर रजनी का हाथ अपने हाथों में लेकर बोली- मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ है, महात्मा द्वारा बताया गया कर्म पूर्ण रूप से फलित हो, मुझे ये तो नही पता कि कर्म में क्या लिखा था पर जो भी हो उसमे तू मेरी तरफ से निश्चिन्त रहना मेरी बच्ची, हर वक्त मैं तुम दोनों के साथ हूँ, रजनी गदगद होकर काकी से लिपट गई, काकी कुछ देर रजनी के सर को सहलाती रही फिर बाहर आ गयी।

बाहर हल्का अंधेरा था, अपनी बेटी को लेकर राजनी घर में आ गयी, उसके बाबू जहां लेटे थे उस तरफ उसने देखा भी नही।

काकी जब वो कागज उदयराज के पास खाट पे रखने आयी तो देखा उदयराज पेट के बल सो रहा था और तकिया उदयराज के सर के पास न होकर जांघ के नीचे दबा हुआ है, काकी ने सोचा पहले तो कभी उदयराज को ऐसे सोते हुए देखा नही, कुछ तो हलचल है इन बाप बेटी की जिंदगी में पर जो भी होगा अच्छा ही होगा, ये सोचकर उसने वो कागज वहीं सिरहाने की तरफ बिस्तर के नीचे डाल दिया और दबे पांव आ गयी।

उदयराज कुछ देर बाद जब अंगडाई लेता हुआ उठा तो उसने देखा कि धोती उसकी अस्त व्यस्त है और तकिया जाँघों के पास है फिर रात का ध्यान आते ही हल्की सी वासना की खुमारी उसके बदन में दौड़ गयी और आज तो छठा दिन था, काफी देर खाट पे ही बैठे बैठे वो मुस्कुराते हुए सोचता रहा कि उसका किसी और चीज़ में मन नही लग रहा, अब हर वक्त अपनी सगी बेटी रजनी का ही ख्याल रहता है मन मस्तिष्क में, सोकर उठते ही और फिर रात को जब तक सो न जाओ हर वक्त उसका मुस्कुराना, हंसना, उसके होंठ, होठों की लाली, उसका गदराया यौवन, उसकी मांसल जाँघे, उसके उन्नत स्तन और हाय उसकी मक्ख़न जैसी कमसिन बूर। मेरी जिंदगी को उसने रंगों से भर दिया है, कितना मजा है अपनी ही सगी बेटी के साथ छुप छुप कर उसका साथ पाते हुए, उसकी मर्जी से किये गए इस पाप के आनद में। मुस्कुराते हुए वो आज की आने वाली रात को याद करते हुए उठा और अपनी धोती पहले सही की फिर बिस्तर समेटने लगा जैसे ही उसने बिस्तर उठाया उसके नीचे कागज पड़ा था, कागज उठा के उसने धोती में खोंस लिया और काकी की तरफ देखा, काकी उस वक्त बैलों और गायों को चारा डाल रही थी, बिस्तर समेटकर वो नित्यकर्म से फारिग हुआ, तब तक 7 बज चुके थे।

उदयराज ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और बैल व हल लेकर खेतों की तरफ निकल गया आज उसे कुल वृक्ष के पास वाले खेत की जुताई करनी थी वह खेत कुल वृक्ष से करीब 100 मीटर की दूरी पे था, खेत में पहुचते ही उसने हल को बैलों के बीच सेट किया और उनको वहीं छोड़कर खेत की मेड़ पर बैठ गया, धोती में खोसा हुआ कागज जल्दी से निकाला उसमे लिखा था-

"मेरी प्रिय बाबू, मेरे शुग्गु मुग्गु, मेरे राजा, आज मैं बाहर सोऊंगी और आप अंदर, मैं रात का खाना बनाकर और जब सब लोग खा लेंगे तो कुछ देर के लिए दालान की तरफ टहलने चली जाउंगी और आप फिर घर में चले जाना और मेरा इंतज़ार करना। बस आज की रात और सब्र करना है हमे।"

उदयराज के मन में मानो हज़ारों शहनाइयाँ एक साथ बजने लगी, खुशी खुशी वो उठा और खेत जोतने लगा, फिर शाम को घर वापिस लौटा रास्ते में जब वो नीलम के घर के पास से गुजर रहा था तो उसने नीलम को उसके घर के आगे कच्ची सड़क के पास लगे धतूरे के पौधों से उसकी पत्तियां तोड़ते देखा।

उदयराज- अरे नीलम बिटिया क्या हुआ?, धतूरे के पत्ते का क्या काम आ गया, सब ठीक तो है।

नीलम- बड़े बाबू नमस्ते (नीलम ने पलटकर उदयराज को देखा तो नमस्ते किया)

उदयराज- नमस्ते मेरी बिटिया, क्या हुआ?

नीलम- अरे बाबू, मेरी ही गलती की वजह से मेरे बाबू को हाथ में थोड़ा गुम चोट लग गयी है। वो तो नीचे खाट थी नही तो काफी चोट लग सकती थी।

उदयराज- कैसे?

नीलम- अरे वो द्वार पर जो जामुन का पेड़ है न उसमे बहुत मीठे मीठे जामुन लगे हैं, उसदिन अपने भी तो देखा था।

उदयराज- हाँ हाँ, फिर

नीलम- आज सुबह मेरा मन था जामुन खाने का तो मैंने बाबू को सुबह बोला, नही तो वह फिर कहीं चले जाते काम से, पहले तो बाबू ने बोला कि ठीक है मैं तोड़ देता हूँ पर फिर मैं ही जिद करके पेड़ पर चढ़ गई और बाबू नीचे खाट डालकर उसके पास खड़े थे मैं जामुन तोड़ तोड़ के नीचे खाट पे फेंक रही थी कि अचानक मेरा पैर फिसला और मैं सीधा बाबू के ऊपर गिरी, वो तो खाट थी तो हम दोनों ही खाट पर गिर पड़े नही तो काफी चोट लग जाती, और तो और डाल भी टूट गयी पर गनीमत थी कि डाल हमारे ऊपर नही गिरी आधी टूटकर लटक गई, तो अम्मा ने बोला कि जा हल्दी और फिटकरी गरम करके धतूरे का पत्ता ऊपर से लगा के हाथ में बांध दे, दो तीन बार दिन में बदल बदल के बांध सही हो जाएगा, तो दिन में सुबह एक बार बांधी थी और फिर अभी बांधने जा रही हूं।

उदयराज- लो इतना कुछ हो गया और हमे पता भी नही, चल जरा देखूं कैसा है बिरजू।

फिर उदयराज नीलम के साथ उसके घर गया बिरजू को देखने, तो उसको शाम तक काफी आराम था, सीधे वाले हाँथ में पूरे हाँथ में सूजन थी, पर अब थोड़ा कम हो गयी थी, फिर उदयराज कुछ देर वहां रुका और हाल चाल पूछकर घर आ गया।

(नीलम और बिरजू की ये कहानी और विस्तार से अगले कुछ आने वाले updates में दूंगा, अभी चलते हैं आगे की ओर)

उदयराज बिरजू को देखने चला गया था इस वजह से घर शाम 7 बजे तक पहुचा तो काकी को बताने लगा।

काकी भी चकित रह गयी और बोली- इतना बड़ा हादसा होते होते बच गया और हमे कुछ पता भी नही चला, इस जामुन के चक्कर में किसी दिन अपना और दुसरों का भी हाथ पैर तुड़वा बैठेगी ये लड़की, बताओ शादीशुदा जवान लड़की का भारी भरकम शरीर इतने ऊपर से गिरेगा तो चोट तो लगेगी न, वो तो गनीमत है कि खाट थी, जामुन की डाल वैसे ही नाजुक होती है, चढ़ना ही नही चाहिए था, खैर काल जाउंगी दिन में रजनी को लिवा के देखने।

उदयराज- हां जरूर चली जाना। वैसे अब काफी आराम है।

काकी- चल अब तू नहा ले थोड़ी गर्मी भी है आज, रजनी खाना बना रही है, बैलों को मैं चारा डाल देती हूं।

उदयराज नहाने चला गया फिर आ के काकी के ही पास आकर खाट पर लेट गया, दालान के पास लालटेन हल्की रोशनी फैला रहा था, आज अमावस्या से एक दिन पहले की रात थी।

सब कुछ प्लान के मुताबिक ही हुआ, पहले तो काकी ने उदयराज को बाहर खाना ला के दिया उसने खाना खाया, फिर काकी और रजनी ने घर में खाना खाया, खाना पीना होने के बाद काकी के इशारे से कहने पर उदयराज कुएं की तरफ चला गया और रजनी घर से बाहर आकर दालान की तरफ चली गयी, फिर उदयराज घर में चला गया और रजनी काकी के पास आकर बाहर खाट पर लेट गयी।

रजनी आज पूरे 5 दिन बाद बाहर लेट रही थी, ठंडी ठंडी हवा उसके गदराए बदन से टकराकर अंदर तक झुरझुरी पैदा कर रही थी, बेटी उसकी सो चुकी थी, पर उसकी आँखों में नींद का नामो निशान नही था। काकी ने उसको नीलम और बिरजू की बात बताई तो वो भी चकित रह गयी और उसने भी काकी के साथ कल दिन में उसके घर चलने को कहा। रजनी ने काकी के पास अपनी बेटी को पहले ही उठाकर लिटा दिया और काकी ने उसके ऊपर अपना आँचल डाल दिया, धीरे धीरे 11 बज गए, जैसे जैसे वक्त नजदीक आता जा रहा था रजनी की सांसें बढ़ती जा रही थी साथ ही साथ उसे अपनी बूर में चीटियाँ सी रेंगती महसूस हो रही थी, मदहोश होकर वो कभी पेट के बल तो कभी पीठ के बल खाट पर लेटती रही, धीरे धीरे काकी बात करते करते नींद के आगोश में चली गईं।

वक्त आ गया था अब घर में अपने बाबू के पास जाने का, रजनी खाट से उठी और दालान के पास जाके जल रहे लालटेन को बुझा दिया और आके एक बार काकी और अपनी बेटी को देखा फिर बेचैनी से घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी, दरवाजे पर हल्का सा हाथ रखते ही वो हल्का सा आवाज करते हुवे खुल गया, उदयरक चटाई पर लेटा था अपनी बेटी के घर में दाखिल होने की आवाज सुनकर उसने चादर ओढ़ लिया, कोठरी रोज की तरह सजाई हुई थी
पर आज गुलाब और सफेद चमेली के फूलों से सजी कोठरी अलग ही मदहोशी का माहौल बना रही थी और ऊपर से उदयराज ने आके जब कपूर जलाया था तो कोठरी अत्यंत महक उठी थी।

रजनी बरामदे से गुप्प अंधेरे में होती हुई आंगन तक धीरे धीरे चलते हुए अपनी पायल खनकाते हुए पहुँची, कोठरी के आगे रखा दिया हल्की रोशनी चारों तरफ फैला रहा था, पायल की छन्न छन्न करती हुई रजनी कोठरी के दरवाजे तक पहुँची तो अंदर देखा कि उसके बाबू चादर ताने चटाई पर लेटे हुए हैं। बगल में रोज की तरह एक दिया और रखा है।

रजनी की सांसें थोड़ी तेज हो चली थी, उदयराज ने जब देखा कि उसकी बेटी उसके पास आ चुकी है तो उसने अपना ध्यान जान बूझ कर थोड़ा इधर उधर लगाया ताकि उसका लन्ड पहले ही हाहाकार न करने लगे, पर होनी को कौन टाल सकता है लाख कोशिश के बाद भी उसके लन्ड में थोड़ी हलचल तो होने ही लगी थी।

रजनी धीरे से आके अपने बाबू के बगल में दायीं ओर कमर के पास बैठ गयी, अभी केवल बाहर का दिया जल रहा था तो कोठरी में रोशनी काफी हल्की थी।

थोड़ी देर तक वो अपने बाबू के बलिष्ट शरीर को चादर के ऊपर से निहारती रही फिर एकाएक उसने अपना हाथ उठा कर अपने बाबू की जांघ पर रखना चाहा पर झट से पीछे हटा लिया और बाबू के मुंह की तरफ देखने लगी, उदयराज ने चादर पूरा सर से पांव तक तान के ओढ़ रखा था और अंदर धोती में उसका बलशाली लन्ड हिचकोले ले रहा था।

रजनी ने इस बार अपना हाँथ चादर के अंदर डाला और सीधे पैर के ऊपर घुटनों से नीचे जहां पर धोती खत्म हो रही थी वहां रखा।

अपनी सगी बेटी का हाथ और उसकी नरम नरम उंगलियां अपने सीधे पैर पर पड़ते ही उदयराज का लन्ड लाख रोकने के बाद भी फ़नफना ही गया, बेटी की छुअन से उदयराज का रोवाँ रोवाँ खड़ा हो गया।

लंड इतना शख्त हो गया कि चादर तना हुआ होने के बाद भी उसके ऊपर से दिखने लगा, रजनी की जब नजर उसपर पड़ी तो वो तो शर्म से लाल हो गयी।

अभी तक इतना कुछ हो चुका था फिर भी कभी रजनी ने चुपके से भी अपने बाबू के लंड की तरफ नही देखा था, एक आदर्श और शालीन नारी का परिचय अभी तक रजनी सभ्यता से देती चली आयी थी, बाप बेटी में भले ही रिश्ते की मर्यादा की लाज रखते हुए धीरे धीरे ही सब आगे बढ़ रहा था पर रजनी ने कभी उस लाज को तोड़कर एकदम से अपने कदम आगे नही बढ़ाये थे, चाहे इसे एक बेटी का अपने पिता के प्रति लज़्ज़ा कहो या आदर्श जो भी था पर था तो जरूर।

पर आज पहली बार अपने बाबू का लंड चादर के ऊपर से ही देखकर, ये देखकर की लन्ड इतना बड़ा है कि चादर तना हुआ होने के बाद भी लंड ने चादर को और ऊपर तंबू की तरह तान दिया है, वासना से भर गई, उसने धीरे धीरे अपना हाथ ऊपर को सरकाया उदयराज के पैर के बाल उसके हाथ में लगने से उसकी बूर झनझना गयी।

उदयराज आंखें बंद किये अपनी बेटी के ऊपर को सरकते नरम नरम हाथ को महसूस कर उत्तेजित होता जा रहा था।

रजनी के एकाएक अपना हाथ धोती में डाल दिया और ऊपर को सरकाते हुए जाँघों तक ले आयी, रजनी की हालत बुरी हो चली थी उसे बहुत शर्म आ रही थी पर मन भी आगे बढ़ने के लिए बहुत बेचैन था।

फिर रजनी ने अपना हाथ जाँघों पर रखा और वहां अपना हाथ फेरने लगी, जाँघों के जोड़ से लेकर घुटने तक वह अपना हाथ धीरे धीरे फेरने लगी, अपने सगी बेटी का मुलायम नरम हाथ अपनी जाँघों पर रेंगते हुए महसूस कर उदयराज का लंड और भी टनटना गया। धोती बंधी हुई होने की वजह से रजनी को अपना हाथ जाँघों तक पहुचाने में थोड़ी सी दिक्कत हो रही थी, कोठरी में तेज सांसे और हल्की हल्की हांथों की चूड़ियों की खनखनाहट गूंज रही थी।

रजनी ने जाँघों को सहलाते हुए अपनी उंगलियां अपने बाबू के मोटे मोठे बालों से भरे अंडकोषों पर रख दी, तो पहले तो वो खुद ही चिहुँक सी गयी, इतने बड़े आंड भी हो सकते हैं उसने सोचा नही था और उनपर वो काले काले बाल, उनकी छुवन, दो माध्यम आकार के अमरूद जैसे बड़े बड़े आंड को अपने हाथ में लेते ही रजनी शर्म और अति उत्तेजना से पानी पानी होती चली गयी, उदयराज के मुँह से भी काफी तेज aaaaaaahhhhhhhhhhh की आवाज निकल गयी जिसने रजनी के रोये रोये को खड़ा कर दिया।

उसका बदन गनगना गया, कैसे वो आज अपने सगे पिता के आंड को छू रही थी, अपने आप में ही वो वासना से रोमांचित हो उठी।

फिर एकाएक वो अपनी सांसे थामे कर्म के नियम का पालन करते हुए अपने हाथ से दोनों आंड को हौले हौले सहलाने लगी, उदयराज ने अपनी दोनों जाँघे खोल दी और अपनी ही सगी बेटी के हाथ को अपने आंड पर पाकर उसका लंड तेजी से स्पंदन करने लगा। (स्पंदन एक छोटा छोटा झटका होता है)

रजनी अपने बाबू के दूसरी जांघ पर भी हाथ फेरने और सहलाने लगी, अब उसकी लज़्ज़ा धीरे धीरे थोड़ी कम हुई और उत्तेजना और वासना उसपर हावी होती गयी। कभी वो आंड को सहलाती तो कभी दोनों जांघ को, पर लंड को उनसे अभी भी नही छुआ था परंतु हाथ इधर उधर करते हुए हाथ की कलाई और चूड़ियों से मोटा शख्त लन्ड टकरा ही जा रहा था। चूड़ियों की खनखनाहट बराबर कोठरी में गूंज रही थी।

अचानक रजनी ने अपना हाथ लंड की जड़ पर रखकर उसको मुठ्ठी में भर ही लिया, घने बालों से भरा हुआ था उसके बाबू का फ़ौलादी लंड। रजनी की जोरदार सिसकी निकल गयी, oooooooohhhhhhh bbbbbbaaabbbuuu बोलते हुए उसकी सांसे उखड़ने लगी।

अपनी ही सगी बेटी द्वारा लंड को मुठ्ठी में पकड़ते ही उदयराज कराह उठा और उसके लंड ने तो मानों जोरदार अंगडाई लेते हुए बगावत कर दी हो, रजनी की बूर अब रिसने लगी, सांसे धौकनी की तरह चलने लगी, रजनी ने कुछ पल लंड को मुठ्ठी में पकड़े रहा फिर एकाएक अपनी उंगलियां अपने बाबू के लंड के ऊपर घने बालों में चलाने लगी,उसको सहलाने लगी (जैसे उसकी नाक की लौंग उसमे गिरखर खो गयी हो और वो उसको ढूंढ रही हो), फिर एकाएक दुबारा से उसने मोटे लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपना हाथ ऊपर तक लाके लंड की पूरी लंबाई और चौड़ाई का जायजा सा लिया, अपने ही सगे बाबू के लगभग 9 इंच लंबे और 4 इंच मोटे लंड, जिसपर चारों ओर कईं नसें उभरी हुई थी, को अपने हांथों में लेकर रजनी बदहवास हो गयी, बूर में उसकी अनगिनत चीटियाँ रेंगने लगी, एक पल को उसे वो लंड उसकी बूर की अनंत गहराई में उतरता हुआ महसूस हुआ तो वो थरथरा गयी, और झट से हाथ बाहर खींच लिया, थूक का एक बड़ा घूंट उसके गले से उतर गया, आंखें बंद कर कुछ पल अपनी सांसों को समेटती रही, अपनी जाँघों को उसने एक दो बार भींचकर अपनी बूर को दबाया।

फिर रजनी ने अपने बाबू के तने हुए चादर को पैर की तरफ से हटाया और कमर तक पलट दिया, धोती में तंबू बना हुआ था, उसे देखकर वह वासना में मुस्कुरा उठी वो, फिर उसने अपने नरम हांथों से अपने बाबू की धोती के छोर को जो कमर के पीछे घुमाकर धोती में ही खोसी हुई थी, कमर के नीचे हाथ डालकर खींचकर खोला उदयराज के कमर उठा कर उसकी मदद की, रजनी ने उखड़ती सांसों के साथ धोती की छोर पकड़कर लपेटी हुई धोती को खोलकर ढीला किया और फिर कमर से पकड़कर नीचे सरकाने लगी। रजनी अब बगल से उठकर उदयराज की दोनों टांगों के बीच आ गयी।

धोती ढीली होने के बाद बड़े आराम से नीचे सरकने लगी, अपने कोमल हांथों से अपने बाबू की कमर के पास दोनों ओर धोती पकड़कर रजनी ने धोती को नीचे जाँघों तक सरका दिया, उदयराज का लंबा मोटा शख्त लंड एक बार को धोती में खड़ा होने की वजह से फंसा फिर तुरंत उछलकर सामने आ गया।

दिये कि हल्की रोशनी में अपने सगे पिता का काले काले बालों वाला हल्का काला सा लगभग 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड, जिसपर कईं नसें अति उत्तेजना की वजह से उभर आई थी, देखकर रजनी की सांसें हलक में अटक गई, लंड इतना भी बड़ा और मोटा हो सकता है उसने सोचा नही था, उसने तो आजतक बस अपने पति का करीब 6 इंच लंबा लंड ही देखा था वो भी बहुत कम, उसके सगे पिता इतने बड़े लंड के मालिक हैं ये देखकर वो वासना से सराबोर होकर गनगना उठी, रोम रोम उसका संभोग के लिए तड़प उठा, बूर से उसकी काम रस की धारा बह निकली।

उदयराज वासना में आंखें बंद किये लेटा रहा, काफी देर तक रजनी अपने बाबू का विशाल लंड उस पर उगे बाल, नीचे दो बड़े बड़े आंड और जाँघे निहारती रही, किस तरह लंड रह रह कर फुदक रहा था, छोटे छोटे झटके ले रहा था मानो वो अपनी ही सगी बेटी की बूर मांग रहा हो, कितना लंबा था उसके बाबू का लंड और उसकी मोटाई तो देखो, अम्मा कैसे झेलती होंगी बाबू को और मैं कैसे.....और ऊपर का मुँह तो देखो लंड का कितना बड़ा और गोल सा है, बूर की गहराई में जाकर जब ये ठोकर मरेगा तो कितना मजा आएगा, पर इतना मोटा मेरी बूर में जायेगा कैसे? पर जैसे भी जाएगा मेरी आत्मा तृप्त कर देगा और ये सोचते हुए रजनी की आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे।

लंड को देखकर रजनी की लज़्ज़ा काफी हद तक कम हुई और वासना उसकी आँखों में नजर आने लगी, उसके धोती को खींचकर पूरा पैर से बाहर निकाल दिया, उदयराज अब कमर से नीचे मदरजात नंगा हो गया।

रजनी ने बगल में रखा दिया जैसे ही जलाया, उसकी रोशनी में अपने बाबू का चमकता लंड देखकर और मचल उठी, हल्का काला, लंबा और मोटा लंड लोहे की रॉड की तरह सीधा खड़ा था, टांगें उदयराज ने दूर दूर फैला ली थी।

रजनी ने अपने बालों में लगी क्लिप को खोलकर अपने बालों को बंधन से आजाद कर लिया और आंख बंद कर सर को दाएं बाएं हिलाकर अपने दोनों हांथों से बालों की लटों को खोलते हुए बालों को हवा में लहराया, हाथ ऊपर करने से रजनी के ब्लॉउज में कसी कसी भारी चूचीयाँ उभरकर ऊपर को उठ गई।
फिर एक मादक मुस्कान बिखेरते हुए आंखें फाड़े अपने सगे बाबू के खड़े लन्ड को किसी जन्मों जन्मों से प्यासी नारी की भांति घूरने लगी, अपने मुलायम हांथों से उसने लंड को पकड़ लिया और हौले हौले पूरे लंड पर सिसकते हुए हल्के हाँथ फेरने और सहलाने लगी, उदयराज की अब मस्ती में आहें निकलने लगी वो aaaahhhhhhhhhhh mmmmeeerrriiii bbbbbeeettttiiii, aaaaaahhhhhhh mmmmmeeerrrriiiiiI rrraaaannniiiii bbbbbiiiitttttiiiyyyyyyaaaaaa, aaaiiiiisseeeee hhhhhiiiiiiiii, aaaaaaahhhhhhhhh

रजनी अपने बाबू की आहें और सिसकारी सुनकर और उत्तेजित होती चली गयी और खुद भी सिसकते और आहें भरती जा रही थी, कभी वो दोनों आंड सहलाती, कभी दोनों जाँघों पर हाथ फेरती, कभी पेट को सहला देती फिर अपने नरम नरम हाथों से लंड को पकड़कर पुरा नीचे से ऊपर तक सहलाती। रजनी लंड को सहला तो रही थी पर उसने लंड की चमड़ी को पीछे नही होने दिया था, वो इतने हल्के हांथों से सहला रही थी कि लंड के सुपाडे को उसने अभी तक खुलने नही दिया था, पर अपने बाबू का मोटा सुपाड़ा देखकर वो मदहोश हो गयी थी, हल्के हांथों की रगड़ से लंड की चमड़ी बिल्कुल हल्का सा नीचे हो गयी थी और थोड़ा सा लंड का सुपाड़ा दिख रहा था, लंड के मूत्र का छेद देखकर रजनी की बूर की गहराई में कई तार बज उठे।

पूरी कोठरी में उसके बाबू के लंड से आती मूत्र की हल्की गंध फैल गयी जो कि रजनी की चुदास को बढ़ा रही थी।

तभी रजनी से रहा नही गया और उसने अपनी नाक अपने बाबू के लंड के सुपाडे पर लगाई और उसे सूंघने लगी, अपने बाबू के विशाल लंड की पेशाब और काम रस की तेज गंध उसे अपने रोम रोम में समाती हुई महसूस हुई, अपनी बेटी की सांसों की गर्मी अपने लंड के सुपाड़े पर महसूस कर उदयराज हिल गया, वासना में वो जल रहा था।

रजनी काफी देर सुपाड़े को सूंघती रही फिर पूरे लंड और दोनों आंड को सूँघा और घने घने बालों में भी अपनी नाक फिराई। अपनी सगी बेटी की गर्म उत्तेजित साँसों को अपने लंड, आंड और बालों पर महसूस कर उदयराज पगला गया।

फिर एकाएक रजनी ने वो किया जो उदयराज ने सोचा भी नही था, रजनी ने अपने दोनों हाथ अपने बाबू की कमर के अगल बगल रखे और लंड पर झुक गयी, बाल उसके खुले थे तो उसके बाबू का कमर वाला हिस्सा ज्यादातर रजनी के बालों से ढक गया। उसकी दोनों जाँघों पर रजनी के घने बाल थे झुकने की वजह से रजनी की चूचीयाँ ब्लॉउज से मानो कूदकर बाहर ही आ जाने को हो रही थीं।

रजनी अपने बाबू के विशाल खड़े लंड के ऊपर एक वासनात्मक मुस्कान लेकर झुकी और अपने होंठों को गोल बनाया मानो वह शीटी बजा रही हो, फिर अपने बाबू के सुपाडे पर, जो ऊपर से बिल्कुल थोड़ा सा खुला था बस खाली मूत्र छेद दिख रहा था और उस पर भी काम रस लगा हुआ था, अपने होंठ रखे और धीरे धीरे अपना मुँह खोलती और साथ ही साथ सुपाडे कि चमड़ी को नीचे सरकाती चली गयी, बरसों से सुपाडे की चमड़ी जो खुली नही थी चिरचिराकर खुलती और नीचे सरकती चली गयी, रजनी ने अपना पूरा मुँह गोल गोल फाड़े अपने बाबू का सुपाड़ा अपने मुँह में भर लिया।

उदयराज aaaaaaaahhhhhhhhhhhhh, hhhhhhhhhaaaaaaiiiiiiiiiii,,,bbbbbbbeeeetttttttiiiiii करके सीत्कार उठा उसकी
तो सांसे ही थम सी गयी और आंखें अत्यंत नशे में बंद हो गयी, उसकी बेटी इतनी माहिर निकलेगी उसने सोचा नही था, ऐसा मजा उसे आजतक आया ही नही, हालांकि उसकी पत्नी भी लंड कभी कभी थोड़ा चूस लेती थी पर ये अदा, ufffffff उदयराज तो अपनी बेटी का कायल ही हो गया। रजनी ने तीन चार बार ऐसा ही किया और हर बार उदयराज का पूरा बदन हिल जा रहा था, पूरी कोठरी में आह और सिकारियाँ गूंज रही थी।

अपने बाबू का पूरा लंड तो रजनी अपने मुँह में अभी नही ले सकी पर फिर भी बहुत ही कामुक अदा से और सिसकते हुए वो मोठे फूले हुए सुपाड़े को जी भरके चाटने लगी और आधे से ज्यादा लंड अपने मुँह में धीरे धीरे भरकर चूसने लगी।

उदयराज हाय हाय करने लगा, रजनी का झटके से पूरा लंड मुँह में भरना फिर अपने होंठों को सुपाडे तक ले जाना, फिर सुपाडे को मुँह में लेकर लोलोपोप की तरह चूसना उदयराज को सातवें आसमान में ले गया, उदयराज ने जैसा सोचा था, उससे कहीं ज्यादा मजा आया था उसको, रजनी ने जैसे ही सुपाडे को मुँह में भरकर पूरे सुपाड़े पर गोल गोल जीभ घुमाई उदयराज को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे ऊपर आसमान में ले जाकर छोड़ दिया हो और वो बड़ी तेजी से धरती की तरफ गिर रहा हो।
रजनी ने फिर अपनी जीभ गोल नुकीली बनाई और अपने बाबू के लंड के छेद पर जहां से बार बार चाट लेने के बाद भी काम रस की बूंदें निकलकर बाहर आ जा रही थी, फिराने लगी और हल्का हल्का अपनी जीभ लंड के मूत्र छेद में घुसेड़ने सी लगी, जीभ की नोक से वो काम रस की बूंदों को चाट ले रही थी और ऐसा करते हुए खुद भी hhhhhhhhhhhaaaaaaaiiiiiiiiiiiiii,,,,,,,,,bbbbaaaabbbbuuuuuuuu,,,,ooooooohhhhhhhhh...... bbbbbbbbaaaaabbbbbuuuuu धीरे धीरे कहते हुए सिसके जा रही थी।

दोनों सगे बाप बेटी महापाप के असीम आनंद में डूबे हुए थे।

रजनी ने फिर कई बार अपने बाबू के सुपाड़े की चमड़ी को पहले अपने हांथों से ऊपर चढ़ा कर सुपाड़े को ढका और फिर अपने होंठो को गोल गोल बना कर सुपाड़े पर रखकर अपने लाली लगे रसीले होंठों से खींचकर पूरा नीचे तक बड़े ही मादक ढंग से सिसकते हुए खींचा।

हर बार उदयराज की जोरदार आँहें निकल गयी। उदयराज का पूरा लंड, आंड, जाँघे और चटाई भी रजनी के कामुक थूक से सन गए थे, दिए कि तेज रोशनी में थूक से सना काला मोटा लंड मानो अंगडाई लेकर और भी चमक उठा। उदयराज का लंड अपनी सगी बेटी की करीब 10 मिनट की चुसाई से इतना शख्त हो गया था की मानो अभी उसकी नसें फट जाएंगी, मानो गरज गरज कर वो बूर मांग रहा हो, वो भी अपनी सगी बेटी की बूर।

रजनी भी मदहोशी में बदहवास हो गयी थी, हाय हाय करे वो भी लंड चूमे और चूसे जा रही थी पर काफी देर दोनों हांथों के बल झुके झुके उनके हांथों में भी दर्द होने लगा था। फिर एकाएक उसने मुँह से अपने बाबू का लंड निकाला और लंड के मुँह से निकलते ही "पक्क़" की आवाज पूरी कोठरी में गूंज गयी, उदयराज के मुँह से जोर की सिसकी निकल गयी।

रजनी उठ बैठी, आंखें उसकी मादकता और वासना से बंद थी, थूक में सना दहाड़ता हुआ लंड दीये की रोशनी में हल्के झटके खाते हुए हिल रहा था, रजनी ने अपने बाबू के विशाल लंड और लटकते आंड को वासना भरी और ललचाई नज़रों से देखते हुए अपने बाल समेटे और क्लिप लगाकर बांध दिए।

समय भी हो चुका था, कर्म के नियम का पालन भी करना था, उसका मन बिल्कुल भी नही था जाने का, बूर ने तो उसकी लंड देखकर बगावत कर दी थी, बिल्कुल जिद पर अड़ गयी थी बच्चों की तरह कि बस लंड चाहिए तो चाहिए, बहुत हो गया, वो उसे लाख समझाती रही कि मेरी प्यारी सी बच्ची मान जा, बस एक रात और एक दिन की बात है, पर वो नही मानी, बहुत दिन से वो मान रही थी रजनी की बात पर आज मानने को तैयार नही थी, थोड़ा तो उसे चाहिए था, जरूर चाहिए था, जैसे कोई रेगिस्तान का प्यासा बस दो बूंद पानी की मांगता है बस वैसे ही रजनी की बूर अब लंड मांग रही थी।

फिर रजनी को एक बात सूझी की नियम के अनुसार नीचे का हिस्सा तो अब छू सकते हैं, समझ आते ही राजनी के मुख पर एक मादक मुस्कान फैल गयी। उसने बड़ी अदा से अपनी बूर को एक हल्का सा चांटा लगाया।

कुछ देर सोचने के बाद रजनी से झट से बगल में जलता हुआ दिया बुझा दिया और कोठरी में अंधेरा हो गया, उदयराज ने सोचा कि उसकी बेटी अब जाएगी, उसका भी मन थोड़ा उदास हो गया पर तभी चूड़ियों की खनखनाहट हुई।

रजनी ने अपने बाबू के ऊपर झुककर अपना बायां हाथ उनके कमर के बगल में थोड़ी दूर पर रखा और कमर तक आधा अपने बाबू के ऊपर झुक गयी, उदयराज असमंजस में सोचता रहा को मेरी बिटिया क्या कर रही है? रजनी ने कमर से ऊपर का शरीर का भार अपने दाएं हाथ पर टेक लिया और बाएं हाथ से अपनी साड़ी ऊपर करने लगी, अपनी साड़ी को उसने कमर तक खींचकर ऊपर चढ़ाया, आज उसने काले रंग की पैंटी पहनी थी, साड़ी कमर तक उठने से भारी भारी गुदाज नितम्ब बाहर जलते दिए की रोशनी में उजागर हो गए, काली रंग की पैंटी में गोर गोर कसे हुए मांसल नितम्ब किसी को भी उन्हें हथेली में भरकर मसलने के लिए उकसा देते।

फिर रजनी ने बैलेंस संभालते हुए जल्दी से अपने दाएं हाथ से अपनी पैंटी को भी सरका के जाँघों तक कर दिया, उसकी भारी भरकम गुदाज गोरी गांड उछलकर बाहर आ गई, उदयराज चादर के अंदर बहुत असमंजस में था कि उसकी बेटी क्या कर रही है? पर उसे थोड़ा तो अंदाजा हो गया कि रजनी उसके ऊपर झुकी हुई है।

पैंटी खुलने से राजनी की तड़पती बूर से गरम गरम काम रस की कई बूँदें उदयराज की जाँघों पर जब गिरी तब उदयराज को आभास हुआ कि उसकी बेटी ने अपनी बूर खोली है, इसका अहसास होते ही उदयराज का लंड और हाहाकार मचाने लगा। तभी राजनी ने वो किया जिसके बारे में उदयराज ने उस वक्त सोचा भी नही था।

राजनी ने धीरे से दाएं हाथ से अपने बाबू के फ़ौलादी लंड के सुपाड़े को उसकी चमड़ी नीचे करके खोला और खड़े लंड को नीचे की तरफ टेढ़ा करके तेजी से aaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhh......bbbbbbbbaaaaaaaabbbbbuuuuuu की मादक आवाज निकालते और सिसकते हुए
अपनी प्यारी सी मक्ख़न जैसी काम रस से सनी हुई बूर की फांकों के बीच लगा दिया, बूर की फांकों को वो चीर नही पाई क्योंकि उसने दूसरे हाथ से बैलेंस बनाया हुआ था।

जैसे ही उदयराज के लंड का सुपाड़ा रस टपकाता हुआ अपनी सगी बेटी की बूर की मक्ख़न जैसी फूली हुई भीगी भीगी फाँकों से टकराया, उदयराज, अत्यंत नरम नरम और गरम गरम फांकों की कोमलता के अहसास से झनझना गया, उसके मुँह से aaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhh,,,........mmmmmmeeeeeeerrrrrrriiiiiiiiii.....bbbbbbbbeeeeettttttiiiiiiiiiiii........tttttteeeerrrrrriiiiiiii.....bbbbbooooooooooorrrrrrrrrrr
सिसकते हुए बहुत तेज़ी से निकला।

उदयराज ने अपना हाथ राजनी की भारी गांड पर रखकर उसको मसलना और नीचे को दबाना चाहा पर मुठ्ठी भींचकर त्राहि त्राहि कर उठा, क्या करता नियम से जो बंधा था।

रजनी की आंखें असीम आनंद में बंद हो चुकी थी, आज जीवन में पहली बार उसके सगे पिता का मोटा लंड अपनी सगी शादीशुदा बेटी की धधकती बूर से छू चुका था।

अपने बाबू के लंड को उसने अभी भी अपने हाथ से पकड़ रखा था, उदयराज के लंड का सुपाड़ा काफी मोटा था राजनी की प्यारी सी कमसिन सी बूर वासना में फूलकर काफी रस छोड़ रही थी, राजनी ने लंड को हाथ से पकड़े पकड़े अपनी बूर की फांकों में आगे पीछे दाएं बाएं घुमा घुमा कर रगड़ा और खुद ही हाय हाय करने लगी और फिर एकाएक उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड को छोड़कर अपने बाबू ले कमर के बगल में रख लिया और पूरा बैलेंस बनाते हुए अपनी गांड को हल्का सा नीचे की ओर दबाया, लंड फांकों में और धंस गया, राजनी ने अपनी गांड को कस कस के आगे पीछे दाएं बाएं कई बार हिलाया।

लंड का सुपाड़ा बूर की फांकों के बीच खिलकर बाहर आ चुके भग्नासे से जब अच्छे से रगड़ खाने लगा तब राजनी ने जोर से सिसकते हुए और oooooooooohhhhhhhhhh bbbbbbbbbbaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuuuu की तेज मादक आवाज निकलते हुए
अपनी गांड को उछाल उछाल कर अपनी बूर के भग्नासे को अच्छे से पांच सात बार अपने बाबू के सुपाड़े और पूरे लंड पर रगड़ा और कराहते हुए उठ बैठी, लंड पक्क़ की आवाज के साथ उछलकर फिर टनटना कर खड़ा हो गया और झटके खाने लगा।

उदयराज मदहोश हो चुका था, oooohhhhhh...bbbbbeeeettttiiiiii, hhhhaaayyy mmmmeerrriiii rrraaaaannnniii धीरे धीरे उसके मुँह से निकल रहा था।

राजनी ने फट से धोती उठायी और लंड पर रखने से पहले लंड के सुपाडे को जिस पर अब उसकी बूर का रस भी लगा हुआ था मुँह में एक बार फिर भर कर जोर से चूस लिया, फिर दोनों आंड को मुँह में भरकर चूसा और फिर धोती से अपने बाबू के लंड को ढककर अपनी पैंटी पहनी और साड़ी नीचे कर बेमन से कोठरी से निकल गयी।

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Update- 37

रजनी बदहवास सी कोठरी से निकलकर अपनी पायल से छम्म छम्म की आवाज करती हुई बरामदे को अंधेरे में पार कर घर के दरवाजे तक आयी और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर आ गयी, दरवाजे को धीरे से सटाया, संभोग की तीव्र इच्छा से बदन में उठ रही गर्मी से निकलते पसीने पर जब बाहर की ठंडी ठंडी पुरवैया हवा रात के गुप्प अंधेरे में पड़ी, तो बदन में एक ठंडी लहर दौड़ गयी, बदहवास सी वो आके अपनी खाट पे पेट के बल तकिए में मुँह गड़ाए हांफती हुई लेट गयी, पेट के बल लेटी अपनी तेज तेज चलती साँसों को वो काफी देर तक संभालती रही।

अपने बाबू के लंड का वो आगे का मोटा सा खुला और फूला हुआ चिकना चिकना सुपाड़ा मानो अब भी उसकी बूर की नरम नरम फांकों के बीच रगड़ रहा हो, संभोग की तीव्र इच्छा की उठती तरंगों से बेबस होकर वो बार बार अपनी जाँघों को भींचकर अपनी बूर को दबा दे रही थी, पर बूर भला अब मानने को कहां तैयार थी एक बार दहाड़ते लंड को छू जो लिया था उसने, पेट के बल लेटे लेटे ही रजनी ने अपना सीधा हाँथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी दहकती बूर पर रखा और उसको अपनी हथेली में भरकर मानो समझाती मनाती रही।

पेट के बल लेटने से गहरे गोल गले के ब्लॉउज में से उसकी पीठ का काफी हिस्सा खुला हुआ था जिसपर पुरवईया की ठंडी ठंडी हवा लग रही थी मानो हवा भी दौड़ती हुई आकर उसकी मादक पीठ और जिस्म को बार बार चूम रही हो। तेज हवा बहने से ऊपर नीम के पेड़ की डालियां हिल रही थी, उसकी हल्की नरम नरम पत्तियां हवा से हिलकर आपस में टकराकर सर्रर्रर सार्रर्रर की आवाज पैदा कर रही थी और कभी कभी पकी हुई नीम की छोटी छोटी कुछ निम्बोली टूटकर रजनी की नंगी खुली हुई पीठ पर गिरती तो राजनी का कामाग्नि में जलता बदन और दहक उठता।

कुछ देर पेट के बल लेटने के बाद वो पलटकर पीठ के बल लेट गयी और जैसे ही उसने अपना चेहरा ऊपर किया नीम की एक छोटी पकी हुई निम्बोली उसके रसीले नशीले निचले होंठ पर आकर गिरी और वो मंद मंद मुस्कुरा दी, मानो ऐसा लगा कि कमाग्नि में सुलगते हुए उसके बदन से निकलने वाली मादक महक हवा के साथ बहकर धीरे धीरे प्रकृति के कण कण में घुल गयी हो और प्रकृति भी मदहोश होकर उसके अंग अंग को किसी न किसी बहाने से चूम रही हो।

तभी न जाने कैसे उसकी बेटी उठ गई, काकी उसे थपथपाने लगी परंतु रजनी ने उसे उठाकर गोदी में ले लिया, काकी फिर आस्वस्त होकर सो गई, रजनी अपनी बेटी को दूध पिलाते हुए खाट पे लेट गयी और अपना आँचल बेटी के सर पर डाल दिया, फिर धीरे धीरे वो भी नींद की आगोश में जाती गयी।

उधर कोठरी में अपनी बेटी के जाने के बाद उदयराज काफी देर तक यूँ ही अपने खड़े दहकते, झटके मारते हुए लंड पर धोती रखे लेटा रहा, सांसें उसकी भी तेज चलते हुए धीरे धीरे काबू में आ रही थीं। वो मन में अपनी बेटी के बारे में सोचने लगा कि रजनी ने आज अपने आप जो किया वो कितना उत्तेजित कर देने वाला है, इसका मतलब वो बहुत तड़प रही है।

उदयराज ने मन में एक कसम ली-

"कसम है मुझे मर्दानगी की कि अपनी बेटी को मैंने परम चरमसुख नही दिया तो मेरा नाम भी उदयराज नही।"

इतना सोचते हुए वो सोने की कोशिश करने लगा एकाएक उसे लगा कि उसके लंड का सुपाड़ा उसकी बेटी की मखमली बूर की फाँकों में टच हो रहा है एकदम से उसकी आंखें खुल गयी और उसने अपने हाथ से लंड को मसल दिया और फिर सोने की कोशिश ये सोचकर करने लगा कि कल अमावस्या की रात है, नियम कानून अब खत्म हो जाएंगे, कल मेरी बेटी दिन में अपने दिल का हाल और आगे क्या होगा इस सब को एक कागज पर लिखकर घर में कहीं छुपकर रखेगी मुझे वो ढूंढकर पढ़ना है और फिर उसी अनुसार काम करना है, देखता हूँ मेरी बेटी क्या चाहती है?

तभी उसके मन के कोने से एक आवाज आती है कि उदयराज पहले तू वो कागज तो ढूंढ के दिखाना, न जाने कहाँ छुपकर रखेगी रजनी, कल तो सारा घर छान मारना पड़ेगा मुझे और फिर वो मुस्कुराते हुए सोने की फिर कोशिश करने लगा फिर धीरे धीरे उसको नींद आ ही गयी।

सुबह रजनी की नींद सबसे पहले खुली, वो मादक सी अंगडाई लेती हुई उठी और उठते ही सबसे पहले अपने बाबू का चेहरा उसकी आँखों में घूम गया और फिर कल रात क्या क्या हुआ ये सोचते ही पूरे बदन में ख़ुशी की तरंगें बहने लगी, और आज...आज थी अमावस्या की रात वाला 7वां दिन। मंद मंद मुस्कुराते हुए रजनी खाट से उठकर खड़ी हुई और सीधे घर में गयी, बरामदे में रखे कागज कलम को उठाया और चुपचाप कुछ देर तक कुछ लिखती रही फिर उस कागज को गोल गोल किया और दरवाजे की कुंडी में अंदर से फंसा कर बाहर निकल गयी।

जब बाहर आई तो काकी उठ चुकी थी, रजनी की बेटी अभी सो ही रही थी। रजनी ने काकी को बोला कि जब बाबू घर से बाहर आएं तो वो उसे इशारा करके बता देंगी।

उदयराज सोकर उठा और जल्दी जल्दी अपनी धोती बांधी हल्का हल्का उजाला होना शुरू हो गया था, उदयराज ने कोठरी से बाहर आकर बरामदे की तरफ कदम बढ़ाया, अभी बरामदे में अंधेरा था, जैसे ही उसने दरवाजे की कुंडी में हाथ लगाया, रजनी का लिखा हुआ कागज उसके हाथ में आ गया, वो समझ गया कि रजनी ने ही यहां ये लगाया होगा, उसने वो कागज धोती में खोसा और दरवाजा खोलकर पहले एक बनावटी खांसी खाँसा, ताकि अगर र
रजनी कहीं बाहर सामने हो तो समझ जाएं और हुआ भी ऐसे ही, रजनी अपने बाबू की आवाज सुनते ही दालान के बगल में अमरूद के पेड़ के नीचे चली गयी और उदयराज सामने कुएं पर चला गया, कुएं से पानी निकाला और मुँह धोने लगा।

रजनी फट से आई और घर में चली गयी। काकी बड़ा सा झाड़ू लेकर द्वार बहारने लगी, क्योंकि रात में काफी हवा चलने से द्वार पर नीम की काफी पत्तियां और पकी हुई निम्बोली फैली हुई थी, द्वार बहार कर काकी ने जानवरों को चार डालना शुरू कर दिया।

रजनी घर के अंदर नाश्ता तैयार करने लगी।

उदयराज ने मुँह धोकर नीम की दातुन तोड़ी और दातून करके मुँह धोकर तरोताजा हो गया। फिर उसने एकाएक धोती में खोसा हुआ कागज निकाला और कुएं पर बैठकर सड़क की ओर मुँह करके पढ़ने लगा-

"मेरे बाबू मेरे शुग्गु मुग्गु, मेरे राजा, कल मैं बहुत बेसब्र हो गयी थी और मुझसे रहा नही गया, मुझे यह लिखते हुए बहुत शर्म भी आ रही है, आज 7वां दिन है और अमावस्या की रात है, सुर्यास्त के बाद हमारे सारे बंधन खत्म हो जाएंगे, मैं दिन में अपने मन की बात और आगे का कर्म जो मेरी मर्जी पर निहित है कागज पर लिखकर घर में कहीं छुपा कर काकी के साथ नीलम के घर चली जाउंगी, मैं नियम के अनुसार आपको जरा भी अंदाजा नही दे सकती कि मैं वो कहाँ छुपाउंगी, आपको ही वो अपनी मेहनत और बुद्धि से उसे ढूंढना है, मेरे बाबू ये क्रिया एक तरीके से हमारे आने वाले सुखमय जीवन की चाबी है अगर आप इसे सूर्यास्त से पहले पहले ढूंढ लेते हो तभी ये ताला खुलेगा।


एक पल को मैं डर भी रही हूं कि कहीं आपको मेरा छुपाया हुआ कागज नही मिला तो......मैं जीवन भर आपका प्यार पाने के लिए तड़पना नही चाहती, एक बेटी अपने पिता के प्यार के लिए तरसना नही चाहती, यह एक कठिन परीक्षा है आपकी और मेरी भी, इसमें असफल मत होना मेरे बाबू, नही तो आपकी बेटी आपके लिए तरस कर रह जायेगी और आप भी उसके लिए तड़पकर रह जाओगे, ये नियति ने कैसा खेल खेला है सबकुछ देकर भी बीच में एक ऐसी गहरी खाई रखी है जिसको कैसे भी करके पार करना ही है। मैंने पहले इसके विषय में ज्यादा गौर नही किया था पर अब समझ आ रहा है कि ये कितनी कठिन स्थिति और कितना कठिन मोड़ है, सबकुछ इसी मोड़ पर निर्भर है, मान लो वो कागज आपको सूर्यास्त से पहले नही मिल पाया तो सारी मेहनत, सारी उम्मीद, सारी खुशी यहीं पर रुक जाएगी, नियम के अनुसार हम आगे ही नही बढ़ पाएंगे। कैसे अपने कुल के लोगों की जान बचाएंगे और कैसे सबका भविष्य सुरक्षित करेंगे।

महात्मा जी ने भी कैसा रहस्मयी कर्म बताया है?

नीलम के घर मैं दोपहर 12:30 तक जाउंगी और सूर्यास्त से पहले 6:30 तक आ जाउंगी और आकर मैं सीधे घर में उस जगह जाउंगी जहां मैंने कागज छुपाया होगा और जब मुझे वो कागज वहां नही मिलेगा तो मैं समझ जाउंगी की आप और मैं जीत चुके हैं आगे बढ़ने के लिए।


मेरे बाबू मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपनी बेटी को जीतकर पा लेंगे, आपकी बेटी सिर्फ आपकी है, सिर्फ आपकी।

उदयराज ने वो कागज मुस्कुराते हुए दुबारा अपनी धोती में खोंस लिया। उदयराज ने मन में सोचा- मेरी बेटी तू उस कागज को जहन्नुम में भी छुपा देगी तो भी मैं ढूंढ निकालूंगा, मेरी तो तू है ही, तुझे मुझसे अब कोई दूर नही कर सकता, तेरे यौवन के महासागर में तो मुझे गोता हर हाल में लगाना है, हर हाल में।

पर वो मन में सोचने लगा कि कैसी विडंबना है अपने ही हाथ से उसे वो काम करना पड़ रहा है जिससे वो डर भी रही है, पर तू डर मत मेरी बेटी, डर मत। घर में ही तो छुपायेगी, पूरा घर छान मारूंगा।

उदयराज कुएं से उतरकर द्वार पर आके सामने खाट पर बैठ गया, काकी ने उसको नाश्ता ला के दिया उसने नाश्ता किया और आज ये सोचकर बैल लेके खेतों में चला गया कि दोपहर 12 बजे तक आ जायेगा।

खेत में जाते वक्त वो बिरजू से एक बार मिलकर गया।

रजनी ने घर का सारा काम किया और शेरु और बीना को भी उसने खाना दिया, तभी उसने ध्यान से देखा तो पाया कि बीना गर्भवती है और वो किससे गर्भवती हुई थी ये सोचकर तो उसकी बूर में फिर से चीटियाँ सी रेंगने लगी उसने जोर से काकी को आवाज लगाई- काकी ओ काकी, इधर तो आओ।

काकी- हाँ राजनी बेटी क्या हुआ?

रजनी- देखो जरा बीना गर्भवती है न?

काकी- हाँ है तो। आखिर हो ही गयी गर्भवती और हो भी क्यों न प्यार जो मिला है इतना उसको अपने बाबू का (काकी ने चुटकी लेते हुए कहा)

रजनी और काकी ने एक दूसरे को मुस्कुरा के देखा और रजनी शर्मा गयी।

रजनी ने मन में सोचा आखिर शेरु ने अपनी सगी बेटी बीना को चोद चोद के गर्भवती कर ही दिया और वो इस बात से सिरह गयी कि कैसे एक सगे बाप ने अपनी ही सगी बेटी को चोद चोद के गर्भवती किया।

शेरु और बीना ने खाना खाया फिर इधर उधर चले गये।

तब तक दिन के 11:30 हो चुके थे रजनी ने अब बरामदे में रखे कागज कलम को उठाया और एक बार को आंखें बंद की फिर मुस्कुराते हुए आंखें खोली और थोड़ा सा कागज का टुकड़ा फाड़ा फिर उसमें कुछ लिखा और उसको घर में ही कहीं अपने दिल पर पत्थर रखकर (बहुत भारी मन से) छिपा दिया।

12 बजे तक उदयराज आया, रजनी रसोई में थी, काकी ने उदयराज को खाना परोसा और फिर उदयराज ने मुस्कुराते हुए खाना खाया फिर बाहर चला गया, रजनी और काकी ने भी खाना खाया।

कुछ देर बाद काकी ने बाहर आकर उदयराज को बोला कि अब वो और रजनी नीलम के घर जा रहे हैं और फिर 12:30 तक दोपहर में काकी और रजनी उदयराज की नज़र बचा के नीलम के घर चले गए।
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रजनी के जाने के तुरंत बाद ही उदयराज लग गया छुपाया हुआ कागज खोजने में, बरामदा, उत्तर का कमरा, दक्षिण का कमरा, पश्चिम का कमरा, उन सब कमरों की छत पर बने तहखाने, सारी अलमारियां, रसोई, यहां तक कि गुसलखाना, सारी किताबें, ढूंढते ढूंढते उसे 4 घंटे हो गए थे, माथे पर अब उसके हल्की शिकन आने लगी, फिर वह कोठरी में गया और वहां सब छान मारा पर कहीं कुछ नही मिला, उदयराज थोड़ी देर आंगन में बैठ गया, घर की ज्यादातर चीज़ें अस्त व्यस्त हो गयी थी, घर के सारे बक्से, सन्दूकें, जिस कमरे में भूसा और अनाज रखा रहता था वो भी छान मारा, पर कागज नही मिला, फिर भी उदयराज निराश नही हुआ वह आंगन में रसोई के दरवाजे पर बैठ गया।


अब उदयराज के पूर्वज द्वारा लगाए गए सदियों पहले मंत्र ने अपनी विपरीत शक्ति दिखानी चालू कर दी, उसे अपनी काट बर्दाश्त नही हो रही थी, वो मंत्र अपना जोर लगाने लगा ताकि ये कर्म सफल न हो, पर उसके ऊपर अब जो मंत्र महात्मा द्वारा लगाया गया था वो उसे टस से मस नही होने दे रहा था और उसे समाप्त करने में लगा हुआ था, जैसे जैसे उदयराज और रजनी अपना कर्म करते जा रहे थे महात्मा के मंत्र को असीम बल मिलता जा रहा था और वो उस पूर्वज द्वारा लगाए गए मन्त्र को काटता जा रहा था, पर अभी उसे पूर्ण शक्ति नही मिली थी क्योंकि वो पूरी तरह पाप पर निर्भर था जैसे ही पाप होगा वैसे ही महात्मा जी का मंत्र उस पूर्वज के मंत्र को काट कर नष्ट कर देगा।


क्योंकि अभी चौथी कील नही गड़ी थी और वो आज रात ही गढ़नी थी, चौथी कील कुल वृक्ष की जड़ में गाड़नी थी क्योंकि उस पूर्वज ने एक मंत्र वहां लगाया था और दूसरा गांव के सरहद पर, गांव के सरहद पर और घर के दरवाजे पर तो कील गड़ चुकी थी पर कुल वृक्ष पर कील न गड़ने की वजह से अभी शिकंजा पूरा लगा नही था और इसी एक रास्ते के सहारे उस पूर्वज के मंत्र ने अपने एक छोटे से भाग को चूहे का भेष देकर गुसलखाने की नाली जो घर के बाहर कुल वृक्ष की दिशा की ओर निकलती थी के रास्ते घर में दाखिल करा दिया।


जहां पर वो कागज रखा था वो उसे कुतरने जाने लगा पर तभी जंगल में खड़े पीले पेड़ के रूप में शैतान ने अपनी शैतानी आंखें खोली, तेज हवाएं चलने लगी, वो इस कर्म में महात्मा के मंत्र का साथ देने के लिए प्रतिबद्ध था क्योंकि इसके लिए उसने स्तनपान कराती किसी मनुष्य योनि की स्त्री का दूध मांगा था जो उसे बखूबी अर्पित किया गया था, शैतान, दानव, देवता, यक्ष, प्रेत, जिन्न आदि लोग अपने वचन के बहुत पक्के होते है ये दिए हुए अपने वचन से कभी पीछे नही हटते। शैतान ने तुरंत एक काले नाग का भेष लिया और फटाक से चुपचाप चूहे के पीछे पीछे गुसलखाने की नाली से घर में दाखिल हो गया, चूहा आगे आगे शैतान चुपचाप पीछे पीछे।


उदयराज आंगन में ये सोचने की लिए बैठा था कि अब ढूंढने के लिए क्या बचा है, उसकी पीठ कोठरी के दरवाजे की तरफ थी, चूहा कोठरी के दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था, जैसे ही चूहे ने पलट कर पीछे देखा अपने पीछे काले नाग को देखकर डर के मारे पीला पड़ गया, उसकी घिग्गी बंध गयी, शैतान सांप का भेष लिए बड़ी ही डरावनी शक्ल बना कर चूहे को घूरे जा रहा था मानो जैसे कह रहा हो "साले मेरे होते हुए आखिर तेरी हिम्मत कैसे हुई घर में घुसने की, तुझे डर नही है मेरा, मैंने पहले भी तुझे औकात में रहने की चेतावनी दी थी।"


एकाएक नाग ने चूहे को झपटकर मुँह में भर लिया और चूहा छटपटाते हुए चूं चूं करने लगा पर काला नाग पलटकर चलता बना कि तभी चूहे की आवाज सुनकर उदयराज ने पलटकर पीछे देखा तो उसकी नजर काले नाग पर पड़ी, ये देखते ही वो चौंक कर खड़ा हो गया कि घर के अंदर नाग कहाँ से आ गया, आज तक तो कभी ऐसा हुआ नही, पहले तो बिना सोचे समझे उसने उसे मारने के लिए लाठी उठायी पर फिर अचानक रुक गया, ये सोचने लगा कि उसके मुँह में चूहा था, जरूर कोई तो बात है, उसने अपने हाथ नीचे कर लिए और हाथ जोड़कर माफी मांगी, तब तक काला नाग जहां से आया था वहीं से चुपचाप धीरे धीरे बाहर निकल कर चूहे को निगलते हुए गायब हो गया।


उदयराज कोठरी के दरवाजे के पास ही लाठी लिए खड़ा था कि तभी उसकी नजर कोठरी के दरवाजे पर उल्टा करके रखे मिट्टी के दीये पर गयी, उसके दिमाग में बत्ती जली और उसने झुककर वो दिया उठाया तो उसमें एक कागज मोड़कर बैठाया हुआ था, उसको देखते ही उदयराज के मन में हजारों घंटियां एक साथ बजने लगी, और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी, वह खुशी से झूम उठा, उसने एक बार पीछे पलट कर काले नाग को देखा जहां से वो आया था उसने मन ही मन उसको धन्यवाद किया और उस कागज को उस दिये में से निकाल लिया और उस दिये को वैसे ही वहीं पर रख दिया।


उधर रजनी का भी मन लग नही रहा था उसे बस यही फिक्र हो रही थी कि पता नही बाबू को वो कागज मिला कि नही?


उदयराज ने वो कागज खोला उसमे लिखा था-


---बूर बहुत प्यासी है---


---कुल वृक्ष के नीचे पाप का पहला भोग---


---2 महीने तक हर अमावस्या---


उदयराज कागज में लिखी बात को पढ़कर समझते ही खुशी से झूम उठा उसने वो कागज चार पांच बार चूम लिया और फिर उसने वो कागज धोती में गांठ बांध लिया।


उदयराज ने अस्तव्यस्त हुए घर को बचे 2 घंटे के अंदर व्यवस्थित कर दिया और जब रजनी के आने का वक्त हुआ तो कुएं के पास जाकर कुएँ की दीवार (कुएं के ऊपर जो चार पिलर होते हैं) कि ओट में सड़क की तरफ मुँह करके बैठ गया।


रजनी जैसे जैसे वक्त नजदीक आता गया काफी बेचैन हो गयी थी जब वक्त हुआ तो वो नीलम के घर से चल दी काकी ने बोला कि तू चल मैं थोड़ी देर में गुड़िया को लेके आऊंगी, ये अभी यहीं सो रही है तो सोने दे मैं ले आऊंगी, रजनी भारी मन से घर की तरफ चल दी, रास्ते में सोचे जा रही थी कि न जाने बाबू कहाँ होंगे घर में या बाहर, ठीक 6:30 हो रहे हैं 10-15 मिनट बाद सुर्यास्त हो जाएगा उससे पहले कहीं में उनके सामने न पड़ जाऊं, जैसे ही रजनी दालान के बगल से चलती हुई अपने द्वार पर आयी एक बार उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, फिर आगे बढ़कर घर के दरवाजे तक गयी तो देखा कि दरवाजा सटाया हुआ था और उसकी कुंडी में एक कागज गोल गोल घुमा के फसाया हुआ था रजनी ने वो कागज खोला तो उसमें लिखा था कि बेटी मैं कुएं पर बैठा हूँ तुम घर में चली जाना, रजनी उसको पढ़कर मुस्कुरा उठी और झट से घर में जाकर कोठरी के दरवाजे पर गयी तो देखा कि दीया वैसे ही रखा हुआ था जैसा वो छोड़कर गयी थी उसने झट से दीया उठाया और पलटकर देखा तो उसमें वो कागज नही था, ये देखते ही मारे खुशी से उसका बुरा हाल हो चुका था, चेहरा शर्म से बिल्कुल लाल हो गया, दिन भर की बेचैनी से जो मन भारी हो चुका था वो बिल्कुल शांत और खुश हो चुका था, रजनी मारे खुशी के झूम उठी, ओह्ह बाबू आपने आखिर मुझे जीत ही लिया, मेरे बाबू, ये बोलते हुए उसका मन मयूर खुशी से फूला नही समा रहा था।


अभी सुर्यास्त होने में पांच सात मिनिट बाकी थे, रजनी और उदयराज ने बड़ी ही बेचैनी से वो पल काटे और जैसे ही सुर्यास्त हुआ रजनी भागकर घर के दरवाजे तक आयी और वहीं खड़ी होकर एकदम चहकते हुए उसने जोर से आवाज लगाई- बाबू! ओ बाबू


सुर्यास्त तो हो चुका था परंतु अभी अंधेरा नही हुआ था


उदयराज ने एकदम पलट के पीछे देखा तो अपनी प्यारी बिटिया को उतनी दूर से देखकर ही खुशी के मारे उछल पड़ा मानो 6 दिन नही 6 युग बीत गए हों रजनी को देखे।


रजनी इतना बोलकर मुस्कुराती हुई घर में भाग गई, उसने आज वही लाल रंग की साड़ी और ब्लॉउज पहना हुआ था।


उदयराज कुएं से भागता हुआ घर में आया उसे अहसास हो गया कि काकी अभी नही आई हैं उसने दरवाजा अंदर से सटा दिया और देखा तो बरामदे में रजनी नही थी फिर आंगन में देखा वहां भी नही थी, फिर रसोई में देखा वहां भी नही मिली फिर एकदम से कोठरी की तरफ बढ़ा और कोठरी के दरवाजे पर आकर रुक गया, रजनी दरवाजे की तरफ पीठ किये अपना मुँह अपने हांथों में छिपाए कोठरी के बीचों बीच खड़ी थी उसकी सांसे शर्म और लज़्ज़ा से ये सोचकर, की बीती 6 रातों में मैंने बाबू को और बाबू ने मुझे कैसे कैसे प्यार किया, तेज तेज चल रही थी।


अपनी बेटी के गदराए बदन के पिछले हिस्से, ब्लॉउज में उसकी पीठ का खुला हिस्सा और मादक उभरे हुए भारी भारी नितम्ब को देखकर उदयराज अधीर हो गया।


उदयराज धीरे से कोठरी के अंदर आया और रजनी के सामने खड़ा हो गया, रजनी उसके माथे तक आती थी, उदयराज ने थोड़ा सा नीचे झुककर अपने दोनों हांथों से रजनी के दोनों हांथों को चेहरे से हटाया तो रजनी ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसके प्यासे होंठ हल्का सा हिल गए, रजनी की तेज चलती साँसे उदयराज के चेहरे से टकराई, उदयराज ने अपने सीधे हाथ से रजनी की ठोढ़ी पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर किया और धीरे से बोला न जाने कितने युगों के बाद मुझे अपना चांद देखने को मिला है, राजनी ने धीरे से अपनी आंखें खोलकर अपने बाबू को देखा और सिसियाकर ooooooooohhhhhhhhhh.....bbbaaaaaabbbbbuuuuuuu
बोलते हुए उदयराज से कस के लिपट गयी, उदयराज ने भी अपनी बेटी को कस के अपनी बाहों में भर लिया, दोनों बाप बेटी अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, रजनी ने उदयराज के कानों में धीरे से बोला-आखिर आपने मुझे और मैंने आपको पा ही लिया न बाबू।
उदयराज रजनी के गदराई गुदाज बदन को बेताहाशा सहलाते हुए- हाँ मेरी बेटी, अब तेरे बिना रह पाना नामुमकिन है।


उदयराज ने एकदम से रजनी की गुदाज गांड को कस कस के भीचते हुए अपने से और सटा लिया, रजनी चिहुकते हुए जोर से सिसक उठी।


रजनी भी बेताहाशा अपने बाबू के बदन से लिपटी उनकी पीठ, कमर, गर्दन, और बालों को सहलाये जा रही थी, तभी बाप बेटी एक दूसरे के आंखों में वासनामय होते हुए बड़े प्यार से देखने लगे तो उदयराज बोला- काकी नही आई है न अभी?


रजनी ने बडे मादक अंदाज में कहा-ऊँ..ऊँ..ऊँहुंक, वो थोड़ी देर में आएंगी।


उदयराज ने एक बार फिर रजनी की ठोढ़ी को हल्का सा ऊपर उठाया तो राजनी ने आंखें बंद कर ली उदयराज अपनी बेटी के प्यासे होंठों को देखने लगा उनके चेहरों के बीच करीब पांच इंच की दूरी होगी, उदयराज ने अपनी बेटी के पूरे चेहरे को गौर से बड़े ध्यान से देखा, उसका माथा, आंखें, दोनों गाल, नाक और नाक की लौंग को तो उसने थोड़ा झुककर चूम ही लिया, राजनी मस्त हो गयी, फिर उदयराज ने लिपिस्टिक लगे नरम नरम हल्के थरथराते हुए होंठों को बड़े गौर से देखा रजनी ने आंखें बंद ही कर रखी थी, कितनी सुंदर और कितनी गोरी थी रजनी, उदयराज जैसे उसे पहली बार देख रहा हो, फिर उदयराज बोला- बेटी


राजनी- हूँ


उदयराज- उस कागज में तुमने क्या क्या लिखा है?


अब रजनी शर्मा गयी और जैसे ही अपने बाबू के सीने में शर्माकर मुँह छुपाने को हुई उदयराज ने दुबारा से उसकी ठोढ़ी को पकड़कर उसका चेहरा हल्का ऊपर को उठा लिया, रजनी ने शर्म से फिर आंखें मूंद ली और उसके होंठ थरथरा उठे।


उदयराज ने फिर खुद ही प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- पहला भोग मेरी बेटी को कुल वृक्ष के नीचे चाहिए?


रजनी ने इस बार शर्माकर हाँ में सर हिलाते हुए उदयराज के चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा ही लिया।


उदयराज ने एकदम से उसका चेहरा उठाया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, राजनी सिरह गयी उदयराज अपनी बेटी के रसीले और नशीले होंठों को चूमने और चूसने लगा और साथ ही साथ उसके भारी नितंबों को अपनी दोनों हथेली में लेकर मसलने लगा, रजनी ने भी अपने नितम्ब उठा कर अपने बाबू को परोस दिए उसको भी बहुत आनंद आने लगा, तभी उदयराज ने रजनी के होंठों को चूसते हुए अपनी जीभ मुँह में डालने की कोशिश की तो रजनी तड़पकर बोली- फिर आप बहकते चले जाओगे बाबू और मैं भी, इस वक्त ये सही समय नही काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू।


उदयराज- बस थोड़ा सा मुझे तेरी जीभ छूनी है थोड़ी देर मेरी जान, मेरी बेटी।


राजनी ने फिर बड़े प्यार से अपनी जीभ बाहर निकाल ली और उदयराज ने उसकी जीभ को मुँह में भरकर किसी icecream की तरह खूब चूसा, रजनी तो मदहोश ही हो गयी, अजीब सी वासनात्मक गुदगुदी उसके बदन को गनगना गयी। एकाएक उदयराज रजनी से बोला- कल रात को क्या हो गया था कोठरी से जाते जाते?


रजनी ये सुनते ही फिर से सुर्ख लाल हो गयी और शर्माकर उदयराज से लिपट गयी वो समझ गयी कि उनके बाबू बूर पर लंड रगड़ने वाली बात कह रहे हैं।


इतने में उदयराज ने फिर रजनी के कान में उसके नितम्ब को भीचते हुए कहा - एक बार फिर वैसे ही छुवा दो अपनी उससे। बहुत तरस रहा है ये।


ये कहते हुए उदयराज ने अपने लोहे के समान खड़े लंड को अपनी बेटी की दहकती हुई बूर पर साड़ी के ऊपर से ही दबा दिया। अपने बाबू का शख्त लंड के धक्के का अहसास अपनी बूर पर होते ही रजनी उछल सी गयी और शर्माते हुए बोली- कहीं काकी न आ जाएं


मन तो रजनी का भी कर रहा था


उदयराज बोला- जल्दी से कर दो, अभी काकी नही आई हैं।


रजनी ने कोठरी में नज़र दौड़ाईं वहां कोने में एक सरसों की खली की 50 किलो की बोरी रखी थी, रजनी ने अपने बाबू के कान में धीरे से कहा- बोरी के पास चलो बाबू।


उदयराज और रजनी जैसे ही कोठरी के कोने में बोरी के पास आये उदयराज ने दुबारा से अपनी बेटी को बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए अपना दायां पैर उठाकर बोरी पर रख लिया, कोठरी में अब थोड़ा अंधेरा हो चुका था क्योंकि ये सब करते करते लगभग 10 मिनट हो चुके थे, उदयराज रजनी को ताबड़तोड़ चूमे जा रहा था, रजनी मादक सिसकारियां लिए जा रही थी, एकाएक रजनी ने अपनी साड़ी दोनों हाँथ से जाँघों तक उठायी फिर दूसरे हाथ से अपने बाबू का दहकता 9 इंच लम्बा लंड वासना में कंपते हुए धोती के नीचे से बाहर निकाला, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों को अपने होंठों में भर लिया, राजनी ने एक बार धीरे से aaaaaaaahhhhhhh bbbbbaaaabbbbbbuuuu करते हुए अपने बाबू का पूरा दहकता लंड अपने हाथों में लेकर बड़ी मादकता से सहलाया, उदयराज के मुँह से कराह निकल गयी, रजनी एक हाथ से लंड को सहलाती रही और दूसरे हाथ से उसने साड़ी को जाँघों के जोड़ तक बटोर लिया, एक पैर उठाकर बोरी पर रखने की वजह से साड़ी ऊपर होकर रुक गयी और उसकी दायीं मांसल गोरी गोरी जांघ नग्न हो गयी, रजनी ने फिर हाथ नीचे ले जाकर अपनी काली रंग की पैंटी को थोड़ा साइड कर बूर को खोला, एक पैर ऊपर होने की वजह से तड़पती बूर की नरम नरम महकती फाँकें थोड़ी खुल गयी थी, रजनी ने पैंटी को अच्छे से साइड कर अपनी दो उंगलियों से बूर की प्यारी प्यारी फाँकों को थोड़ा और चीर दिया फिर दूसरे हाँथ से लंड को सहलाते हुए उसकी आगे की चमड़ी को पीछे खींचकर अपने बाबू के लंड को अपनी बूर की दहकती फाँकों के बीच जैसे ही लगाया उदयराज ने जोर से सिसकते हुए लंड को चार पांच बार धक्का देकर अपनी बेटी की नरम नरम दहकती बूर की फांकों के बीच रगड़ दिया, रजनी की भी जोर से aaaaaaahhhhhhh निकल गयी और वो थरथरा कर सब छोड़कर अपने बाबू से लिपट गयी और आंखें बंद कर अपने बाबू को कस कस के चूमने लगी, उदयराज भी अपनी बेटी की साड़ी को पीछे से अच्छी तरह उठाकर उसके मोटे मोटे नितंबों को सहलाते, भींचते और आगे की ओर धक्का देते हुए अपने लंड को बूर की फांकों में हाय हाय करता हुए रगड़ता हुआ रहा, लंड बूर की छेद पर और भग्नासे पर जब ठोकर मारता तो मारे सरसराहट के रजनी के पैर कांप जाते और गनगना कर वो अपने बाबू के ऊपर झुककर झूल सी जाती।

अपने बाबू के मोटे लंड का सुपाड़ा रजनी को अपनी बूर की फाँकों के बीच ऊपर ऊपर गच्च गच्च ठोकर मारता हुआ जन्नत का सुख दे रहा था और वो खुद अब अपनी गांड को आगे की तरफ हल्का हल्का उछाल रही थी, काम रस से बाप बेटी के लंड और बूर सराबोर हो जाने की वजह से और धीरे धीरे गच्च गच्च धक्का मारने की वजह से कोठरी में बूर और लंड के मिलन की चप्प चप्प आवाज हल्की हल्की गूंजने लगी थी कि एकाएक रजनी को लगा कि बहुत ज्यादा हो जाएगा और काकी कभी भी आ सकती है तो उसने उदयराज के कान में धीरे से कहा कि बाबू अब बस, काकी आती होंगी।

उदयराज ने तरसते हुए रजनी को छोड़ा और अपना मूसल जैसा लंड धोती के अंदर किया, रजनी ने बोरी से पैर हटा कर नीचे किया और साड़ी तथा पैंटी को ठीक किया, पैंटी उसकी काम रस से सराबोर हो चुकी थी।

रजनी कोठरी से निकलकर जाने लगी तो उदयराज ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया रजनी झटके से उदयराज की बाहों में आ गयी, उदयराज ने अपना होंठ रजनी के होंठ पर रखकर एक जोरदार चुम्बन जड़ दिया और बोला एक बार मुझे मेरी जन्नत को दिखा तो दो, मन नही मान रहा।

रजनी- बाबू, काफी देर हो जाएगी, काकी कभी भी आ सकती है मेरे बाबू, अभी खाना भी बनाना है, अब जो भी देखना है वहीं चलकर अच्छे से देखना और खाना।

उदयराज- ठीक है मेरी बेटी, जल्दी जल्दी खाना बना ले, काकी को अपने हिसाब से बता देना ताकि वो गुड़िया को रात में संभाल लें।

राजनी- हाँ मेरे बाबू, मैं उन्हें अपने हिसाब से अच्छे से समझा दूंगी आप चिंता न करो।

तब उदयराज घर से बाहर आ गया और रजनी खाना बनाने की तैयारी करने लगी। बाहर आके देखा तो काकी आ चुकी थी। उदयराज ने बैलों को चारा डाला और नहा कर फ्रेश हो गया और अपनी नातिन को लेकर बाग में घुमाने लगा।

काकी रसोई में गयी और रजनी की मदद करने लगी, रजनी ने खाना बनाते बनाते काकी को बता दिया कि काकी मुझे और बाबू को कुल वृक्ष की जड़ में रात को 12 बजे कील गाड़ने जाना पड़ेगा तो तुम गुड़िया को संभाल लेना वैसे वो रोयेगी नही, दिन में ज्यादा सोई नही है तो सो जाएगी रात में।

काकी ने कहा- हाँ मेरी बेटी जरूर, कर्म और उपाय तो पूरा करना ही है, तुम दोनों निश्चिन्त होकर जाओ। फटाफट खाना बनाया गया और सबने आज एक साथ खाना खाया। 10:30 बज चुके थे उदयराज और काकी खाना खा के बाहर आ गए और रजनी बर्तन धोने लगी, उदयराज काकी के ही बगल में द्वार पर खाट पे लेट गया, काकी भी लेट गयी और बच्ची को सुलाने लगी। राजनी ने एक बांस की बनी छोटी सी डलिया ली और उसमे सरसों के तेल की शीशी, एक मचिस और मिट्टी का दिया और बाती रख ली, उदयराज ने एक बड़ा अंगौछा लिया और अंतिम कील रख ली, कुल वृक्ष करीब 3 किलोमीटर घर से दूर दक्षिण की दिशा में था।

रजनी और उदयराज घर से लगभग रात को 11 बजे निकले, काकी बच्ची को लेकर सो चुकी थी, अंधेरी रात थी, लगभग गांव के सभी लोग नींद की आगोश में जा चुके थे। कुल वृक्ष तक जाने के दो रास्ते थे एक तो पश्चिम की तरफ से गांव के अंदर से होकर जाता था और दूसरा रास्ता बाग की तरफ से खेतों से होकर जाता था, बाग की तरफ वाला रास्ता थोड़ा लम्बा था पर था सुनसान और आज अमावस्या की काली रात को तो वो और भी सुनसान सा हो गया था, राजनी और उदयराज ने बाग वाले रास्ते से ही जाने का निश्चय किया और घर से निकल गए। उदयराज ने हाथ में एक लाठी ले रखी थी और उसके कंधे पर एक बड़ा अंगौछा था, राजनी लाल रंग की साड़ी पहने हाँथ में डलिया लिए हुए थी जिसमे एक सरसों के तेल की शीशी, दीया और माचिस रखा हुआ था। बाग तक तो रजनी आगे आगे और उसके पीछे पीछे उदयराज लाठी लिए चलता रहा।
Nice update and awesome writing skills
 
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