Update- 75
रजनी अपने बाबू के पास आकर बोली- मेरे शुग्गू बाबू दूर दूर तक कोई नही है सुनसान है सब जगह खेतों की ओर, पर फिर भी जोखिम लेना ठीक नही और काकी का भी कोई भरोसा नही क्या पता बीच में कुछ लेने ही आ जाएं, इसलिए मैं जल्दी से घर में से एक चादर लाकर अमरूद के पेड़ की लटकती डाली से बांधकर लटका देती हूं इस तरफ से थोड़ा ओट हो जाएगा और वैसे ही काकी को भी एक नज़र देख आऊंगी.........जाऊं मैं?
(रजनी ने बड़ी मासूमियत से अपने बाबू की तरफ देखकर पूछा)
उदयराज ने झट से रजनी की बांह पकड़ के अपनी तरफ खींचा और रजनी लड़खड़ाती हुई अपने बाबू की गोद में जा बैठी, उसका छलकता गदराया यौवन उदयराज की बाहों में आ गया, उदयराज का खड़ा लंड सीधा रजनी की रसगुल्ले जैसी गाँड़ में धस गया जिससे रजनी मुस्कुराती हुई "ऊई अम्मा, कितना खड़ा है ये बदमाश" बोलकर थोड़ा उछल सी गयी।
उदयराज- जल्दी दोगी नही तो ऐसे ही इंतजार करता रहेगा और ऐसे ही सारा वक्त निकल जायेगा बिटिया रानी।
रजनी- अरे मेरे शुग्गू मुग्गु बाबू.....मेरा तो सबकुछ आपका है......मैं तो खुद तड़प रही हूं आपको देने के लिए, पर जरा सावधानी से न, कोई देख लेगा तो ये पाप करते हुए, फिर मजा किरकिरा हो जाएगा......मैं बस जल्दी से आती हूँ थोड़ा सा और बर्दाश्त कर लो।
(ऐसा कहकर रजनी ने उठते हुए अपने बाबू का खड़ा हो चुका मोटा लंड हल्का सा मसल दिया जिससे वो धोती में और उछलने लगा।)
उदयराज- सुनो
(उदयराज ने रजनी को खींचकर फिर से गोद में बैठा लिया, रजनी फिर "हाय दैय्या" बोलती हुई थोड़ा हंसकर गोद में बैठ गयी)
रजनी- ह्म्म्म.....जाने दो न बाबू।
उदयराज- तेल लेती आना जरूर....तेल लगा के करेंगे।
रजनी- धत्त......
उदयराज- हाय मेरी बेटी तेरी अदा....…ले आओगी न तेल....सरसों के तेल से बहुत चिकना चिकना हो जाएगा सब।
रजनी- नही......बिल्कुल नही
उदयराज- क्यों.....ले आना न....नही तो तुम्हें दर्द होगा जब डालूंगा अंदर।
रजनी- तेल नही
उदयराज- फिर
रजनी ने धीरे से अपने बाबू के गाल चूमकर कहा- थूक......थूक लगा के डालना अंदर।
उदयराज- हाय.....थूक......
रजनी- हम्म.......थूक
उदयराज- थूक से ज्यादा मजा आता है?
रजनी ने मुस्कुराते हुए अपने बाबू के गाल पर चिकोटी काट ली फिर झट से अपने मुंह से हल्का सा थूक अपनी उंगलियों में लिया और अपने बाबू के होंठों पर लगाते हुए "हाँ" कहकर शर्माकर भाग गई, उदयराज उसे पीछे से भागता हुआ देखकर अपना खड़ा लंड मसलने लगा।
रजनी पहले गयी काकी के घर की तरफ दूर से उसने काकी को देखा, शहद वाला आ चुका था पेड़ पर अभी चढ़ने ही जा रहा था, काकी थोड़ी दूर जमीन पर मचिया लेकर बैठी थी।
रजनी ने जानबूझकर काकी को दूर से बुलाया- काकी
काकी ने पलट के देखा और बोली- अरे तू यहां क्यों चली आयी पगली, देख वो शहद निकालने वाला धुआं ले कर पेड़ पर चढ़ रहा है, मधुमक्खियां कैसे भनभनाने लगी है, मैं भी देख कितना दूर बैठी हूँ, काट लेगी बिटिया मधुमक्खी...... जा यहां से
(काकी रजनी को देखकर दूर से ही चिल्लाई)
रजनी- अरे काकी मैं तो पूछने आयी थी कि किसी चीज़ की जरूरत तो नही...जरूरत हो तो मैं ले आऊं।
काकी- नही नही......कुछ जरूरत नही..... बस इतना ही समान चाहिए.....बाकी सब उसके पास है....अब तू जा यहां से और एक दो घंटे इस तरफ मत आना......उदय को भी बोल देना इधर न आये...मैं आऊंगी दो घंटे बाद.....तू जा घर पर।
रजनी- काकी आपको नही काटेगी मधुमक्खी?
काकी- अरे इन शहद निकालने वालों के पास एक किस्म का न जाने कौन सा तेल होता है वही उसने मुझे भी दिया लगाने को वहीं हाँथ पैर और मुंह में लगा के बैठी हूँ, इससे नही लगती मधुमक्खी.......कितना बदबूदार है तेल.....अभी शाम को नहाना पड़ेगा.....खैर.... जा तू अब यहां खड़ी क्यों है.....मैं आऊंगी दो घंटे बाद।
रजनी- ठीक है काकी.....ढेर सारा शहद लाना
काकी- हां ठीक है
इतना कहकर रजनी मंद मंद मुस्कुराते हुए उल्टे पैर जल्दी से वहां से आ गयी, अब वो आस्वस्त हो गयी थी कि काकी दो घण्टे से पहले तो आएंगी नही, वो झट से घर आई, घर में गयी और एक बड़ा सा चादर लिया बाहर निकलकर अपनी सोती हुई बेटी को हल्का सा कुछ देर थपथपाया और फिर अपने बाबू के पास चल दी।
उदयराज बेसब्री से रजनी का इंतज़ार कर रहा था, रजनी की छन छन पायल की आती आवाज सुनकर मन में लड्डू फूटने लगे उसके।
रजनी आयी और उसने झट से चादर अमरूद की डालियों में इस तरह बांधा की खेतों की तरफ से ओट हो गया, उदयराज ने उठकर चादर डालियों में बंधवाने में मदद की, अब लगभग चारों तरफ से ओट हो चुका था, ऊपर से धूप पत्तियों से छनकर खाट पर पड़ रही थी।
उदयराज ने झट से खड़े खड़े ही रजनी को गोद में उठाया और उसे अपनी गोद में लिए लिए "ओ मेरी जान....मेरी बेटी" बोलता हुआ खाट पर बैठ गया।
रजनी जोर से मस्ती में हंस दी। उदयराज रजनी को लेकर फिर खाट पर लेट गया, धीरे से रजनी को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गया, रजनी ने सिसकते हुए अपने बाबू को बाहों में भर लिया और दोनों कुछ देर एक दूसरे की आंखों में मुस्कुराते हुए देखते रहे, उदयराज धीरे धीरे मस्ती में रजनी के दोनों गालों को चूमने लगा और रजनी भी गाल घुमा घुमा के मुस्कुराती हुई अपने बाबू को चुम्मियां देने लगी। उदयराज का विशाल 9 इंच का लंड खड़ा होकर साड़ी के ऊपर से ही रजनी की बूर के ऊपर चुभने लगा, रजनी को अपने बाबू के मोटे लंड का दबाव अपनी बूर पर साफ महसूस होने लगा और उसकी बूर भी लंड की छुवन पाकर गीली होने लगी।
उदयराज ने रजनी को चूमते हुए पूछा- दिन में अपनी बेटी को प्यार करने के लिए रास्ता साफ है।
रजनी भी सिसकते हुए- हाँ बाबू बिल्कुल साफ है रास्ता.....काकी दो घंटे से पहले नही आएंगी....बस यही है कि गुड़िया न उठ जाय।
उदयराज- नही उठेगी...वो बहुत समझदार है तुम्हारी तरह।
रजनी मुस्कुरा पड़ी और अपने बाबू को चूमने लगी, उदयराज अब रजनी के ऊपर अच्छे से चढ़ते हुए उसके दोनों पैरों के बीच आ गया, रजनी ने भी अपने बाबू को अपने आगोश में लेते हुए अपने दोनों पैर हल्का फैलाकर अपने बाबू के नितंब पर रख लिए, खाट हल्का सा चरमराई, रजनी की साड़ी घुटनो से ऊपर हो चुकी थी ,दूध जैसे उसके गोरे गोर पैर धूप और पत्तियों की मिली जुली छाया में चमकने लगे। दोनों की साँसे तेज होने लगी।
उदयराज अब रजनी के गालों, गर्दन और कान के पास चूमने लगा, रजनी मचलने लगी, कुछ देर चूमने के बाद उदयराज ने अपनी जीभ निकाली और रजनी के दाहिने कान की झुमकी के नीचे जोर जोर चूमने और चाटने लगा, रजनी के बदन में एकदम तेज सनसनाहट हुई और उसने अपने बाबू को कस के दबोच लिया, उदयराज अब बार बार दोनों कान के नीचे ऐसा करने लगा, कभी गर्दन पर तेज तेज चूमता तो कभी कान के नीचे जीभ से चाटता फिर कभी पूरे कान पर चूमता, कान के पिछ्ले हिस्से को जीभ से चाटता ऐसा वो दोनों कान के साथ बदल बदल कर करने लगा, रजनी को बहुत अच्छा लग रहा था, उसका बदन बार बार मारे सनसनाहट के गुदगुदा जा रहा था, वो खुद भी बार बार अपना चेहरा इधर उधर पलट कर अपने कान और गर्दन अपने बाबू को चूमने चाटने के लिए परोस रही थी, बिरजू ने कुछ ही पलों में रजनी के दोनों तरफ के कान के आस पास के एरिये को चूम चूम के रजनी को बेताहाशा गरम कर दिया, रजनी की दोनों विशाल चूचीयाँ फूलकर सख्त हो गयी और निप्पल कड़क होकर उदयराज के सीने में गड़ने लगे। अपने बाबू की इस जादुई हरकत से रजनी के बदन में तेज सनसनाहट होने लगी, उसे अजीब सी वासनामय गुदगुदी पूरे बदन में महसूस होने लगी, वो थोड़ा तेज तेज सिसियाने लगी, अपने बाबू के प्यार करने के इस तरीके से वो इतना खुश हुई कि उसने अपने बाबू के चेहरे को हथेली में थाम लिया और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिये। दोनों की आंखे मस्ती में बंद हो गयी, कुछ देर तक दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने लगे। कुछ देर अपनी शादीशुदा बेटी के होंठ चूसने के बाद उदयराज का ध्यान चूचीयों पर गया तो उसने झट से दोनों 34 साइज की फूली हुई गुब्बारे जैसी चूचीयों को ब्लॉउज के ऊपर से हाथों में भर लिया।
रजनी फिर मचल उठी, उदयराज दोनों चूचीयाँ ब्लॉउज के ऊपर से ही मसल मसल के दबाने लगा, निप्पलों को उंगलियों से मसलने लगा, रजनी फिर सिसकने लगी, अपनी चूचीयों को उठा उठा के अपने बाबू से दबवाने लगी।
तभी रजनी से रहा नही गया तो वो बोली- बाबू रुकिए जरा
उदयराज रुककर रजनी के ऊपर से दोनों हाँथ अगल बगल टिकाकर थोड़ा ऊपर उठ गया, रजनी ने झट से एक बार अपना सर इधर उधर घुमा के देखा फिर अपने ब्लॉउज का बटन खोलने लगी, कुछ ही पलों में जल्दी से सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल गिरा दिया और अपनी ब्रा को ऊपर खींचते हुए अपनी दोनों बड़ी बड़ी गोल गुब्बारे की तरह फूली हुई चूचीयों को एक ही झटके में अपने बाबू के सामने परोस दिया, दोनों चूचीयाँ किसी सपंज की तरह उछलकर सामने आ गयी, दिन में अपनी सगी शादीशुदा बेटी की मदमस्त दूध जैसी गोरी गोरी चूचीयाँ और उसपर काले काले तने हुए निप्पल देखकर तो मानो उदयराज का सारा खून उसके लंड में आकर फट जाने को हो गया। दोनों दूध जैसी गोरी गोरी चूचीयों पर तने हुए निप्पल के किनारे किनारे वो काला काला घेरा दिन की रोशनी में कयामत ढा रहा था। दोनों तनी हुई चूचीयों की ऐसी सुंदरता और मादकता आज दिन में पहली बार उजाले में देखकर उदयराज बेसुध हो गया।
रजनी के दोनों गोरे गोरे दुग्धकलश दिन में देखकर उदयराज मानो पागल ही हो गया, और ऊपर से रजनी के दिखाने की अदा आग में और घी डालने का काम कर रही थी।
उदयराज टूट पड़ा अपनी सगी बेटी की चूचीयों पर और ऐसे पीने लगा मानो बरसों रेगिस्तान में प्यासा भटक के आया हो, दरअसल दिन में रजनी की मदमस्त गोरी गोरी चूचीयाँ अलग ही चमक रही थी और उसपर काले काले निप्पल अलग ही कहर ढा रहे थे।
उदयराज जोर जोर से दोनों चूचीयों को कस कस के दबाते हुए मुँह में भर भर के पीने लगा, रजनी का दूध निकलने लगा जिसे उदयराज बच्चे की तरह पी रहा था, रजनी प्यार से कराहते हुए अपने बाबू का सर सहलाने लगी, रजनी थोड़ी देर बाद हल्का सा दायीं तरफ करवट लेने लगी तो उदयराज समझ गया और रजनी के ऊपर से उतरकर धीरे से दायीं तरफ लेट गया, चूची पीते हुए अपने बाबू को रजनी ने अपने पल्लू से ढक लिया मानो जैसे किसी छोटे बच्चे को दूध पिला रही हो, साड़ी के अंदर उदयराज भी अपनी सगी बेटी की चूची भर भरकर पीने लगा, रजनी प्यार से उसका सर साड़ी के ऊपर से हल्का हल्का सिसकते हुए सहलाती रही।
काफी देर तक उदयराज रजनी की दोनों चूचीयों को दबाता और पीता रहा, दोनों ज्यादा कुछ बोल नही रहे थे दिन का मामला था इसलिए चुपचाप ही प्यार किये जा रहे थे, पर फिर भी लाख कोशिशों के बाद भी रजनी की मादक सिसकारियां निकल ही जा रही थी।
कुछ देर बाद उदयराज बोला- बेटी
रजनी मदहोशी में- हाँ बाबू
उदयराज- बूर गीली हो गयी मेरी बोटिया की।
रजनी- हाय...धत्त....पगलू.....इतनी देर से अपनी बेटी को प्यार कर रहे हो तो गीली नही होगी.....वो तो कब का गीली हो चुकी है।
उदयराज- तो दिखा न दिन की रोशनी में आज उसका गीलापन।
रजनी ये सुनकर शर्मा गयी फिर बोली- तो फिर उठिए और मेरे पैरों के बीच बैठिए।
उदयराज ने वैसा ही किया, रजनी ने जैसे ही अपनी साड़ी को पकड़कर अपने पैर फैलाते हुए साड़ी को ऊपर घुटनों तक खींचा ऊपर अमरूद के पेड़ पर बैठे चार तोते जो कि पके पके अमरूद खा रहे थे, चहकने लगे, रजनी और उदयराज का ध्यान ऊपर गया तो रजनी खिलखिलाकर हंस दी और शर्मा गयी, उदयराज बोला- देखो ये तोते भी तुम्हारी अतुल्य सुंदर बूर को देखने के लिए लालायित है, देखो कैसे चहकने लगे, खोलो खोलो अब देर मत करो।
रजनी- न....मुझे अब शर्म आ रही है.....अपने बाबू के अलावा और मैं किसी को नही दिखा सकती।
उदयराज- दिखा दो न....देखो बिचारे कितना विनती कर रहे हैं।
तभी एक तोता उड़कर दुसरी डाल पर बैठ गया जो कि बिल्कुल रजनी के बूर के ऊपर सीध में थी, वह उस डाल पर बैठ कर चहकते हुए एक पका अमरूद अपनी लाल चोंच से फोड़कर काटने लगा कि तभी उस अमरूद का कुछ हिस्सा सीधे रजनी की बूर पर साड़ी के ऊपर आकर गिरा, उदयराज और रजनी दोनों ये देख रहे थे। रजनी ने वो मीठा सा अमरूद का टुकड़ा उठा कर अपने बाबू को खिलाया और खुद भी खाने लगी, अमरूद का टुकड़ा बहुत मीठा था।
उदयराज - देखो बिचारा कैसे तुम्हे मीठे मीठे अमरूद देकर विनती कर रहा है कि हे सुंदरी दिखा दो न मुझे भी अपनी बूर।
रजनी ये सुनकर जोर से हंस पड़ी और बोली- इसका भी मन है देखने का....हे भगवान....ये छोटा सा तोता उसको देखने के लिए मचल रहा है, सब तुम्हारे मित्र हैं मुझे पता है बाबू।
उदयराज- खाली ये तोता नही, सारे के सारे देखना चाह रहे हैं वो मादक हसीन सी चीज, देखो कैसे चहक रहे हैं, कभी इस डाल पर कूदकर बैठ रहे हैं तो कभी उस डाल पर.....अब दिखाओ जल्दी।
रजनी ने एक मादक मुस्कान के साथ अपने बाबू को देखा फिर ऊपर उन चहकते तोतों को देखकर बोली- अच्छा बाबा लो देखो जी भरके सारे के सारे बदमाश अपनी मनपसनद चीज़ को।
ऐसा कहते हुए रजनी ने धीरे से अपनी साड़ी को साये सहित ऊपर खींचकर कमर तक कर दिया और अपनी लाल रंग की कच्छी को हल्का सा साइड करके अपनी रसीली बूर की प्यारी सी झलक खोलकर दिखाते हुए बोली- लो बदमाशों देखो जी भरके।
ऐसा कहते हुए रजनी ने एक बार बड़े प्यार से अपने बाबू को देखा फिर एक कातिल नज़र ऊपर चहकते हुए तोतों पर डाली तो वाकई में वो तोते मारे खुशी के जोर जोर से चहकने लगे, उनमे से एक तोता जिसने अमरूद तोड़कर गिराया था वो सच में एक टक लगाकर रजनी की बूर को निहारे जा रहा था और उदयराज का तो बुरा हाल था, दिन की रोशनी में अपनी सगी बेटी की प्यारी सी बूर देखकर वो कहीं खो सा गया।
रजनी कुछ देर अपने एक हाँथ से अपनी कच्छी को साइड किये रही और नशीली निगाहों से अपने बाबू और ऊपर उन तोतों को मुस्कुरा कर देखती रही।
रजनी ने फिर बड़ी अदा से तोतों से बोला- अच्छा अब देख लिया न....जाओ अब उड़ जाओ.....बाद में आना फिर। रजनी ने ऐसा कहते हुए अपना एक हाँथ ऊपर को उठाया तो तीन तोते तो उड़ गए परंतू वो वाला तोता डाल पर बैठा रहा जिसने अमरूद गिराया था।
उदयराज उसे देखकर बोला- लगता है ये अच्छे से तुम्हारी पूरी बूर देखकर जाएगा।
रजनी- ये भगवान.....ये कितना बदमाश है.....गंदे.....इतना छोटा सा है और बूर देखेगा.....दिखाया न एक बार जा अब.....पर कितना प्यारा है बाबू ये....इसको देखकर मुझे प्यार आ रहा है इसपर।
उदयराज- तो दिखा दो न बेचारे को अच्छे से खोलकर, मुझे लग रहा हूं तुम्हारा छोटा दीवाना है ये, लट्टू हो गया है तुमपर, अभी उसकी हरसत पूरी हुई नही है, पूरा करके ही जायेगा, बस अब दो दीवाने बैठे हैं देखने के लिए अच्छे से...
रजनी- दो दीवाने नही दो बदमाश.....एक मेरे बाबू और एक ये छुटंकी सा...... बताओ ये भी बूर देखेगा..... तू क्या करेगा देखके बूर छुटंकी बदमाश.....ह्म्म्म....एक बार दिखा दिया पर फिर भी देखो कैसे टुकुर टुकुर मेरी बूर को देख रहा है.....गन्दू तोता।
ऐसा कहकर रजनी हंसने लगी, की तभी उस तोते ने एक बार फिर अमरूद का टुकड़ा तोड़कर रजनी की बूर पर गिराया, इस बार अमरूद का टुकड़ा सीधे रजनी के तने हुए भग्नासे से जा लगा तो रजनी जोर से सिसक पड़ी, उदयराज बोला- ओहहो! वो तुम्हारे बूर के दाने हो चूमना चाहता है। देखो कैसे दुबारा विनती कर रहा है।
रजनी ने एक मुक्का अपने बाबू की जांघ पर मारा और बोली- क्या बाबू आप भी न....धत्त...वो एक छोटा सा तोता है... आप भी न कुछ भी बना के बोले जा रहे हो।
उदयराज- बना के नही बोल रहा सच, देख लो आखिर वो बूर की तरफ देख रहा है न।
रजनी- हां देख तो रहा है.....देखो न कैसे टुकुर टुकुर देख रहा है बेशर्म....छुटंकी
उदयराज- तुम्हे उसे दिखाना अच्छा लग रहा है।
रजनी शर्मा गयी फिर बोली- हाँ... न जाने क्यों....जबकि जानती हूं कि वो बस एक तोता है....शर्म भी आ रही है।
उदयराज- दिखाओ न अच्छे से खोलकर, देखो वो भी कबसे इंतजार कर रहा है।
रजनी- तुम दोनों बहुत बदमाश हो...लो अच्छा देखो जी भरके।
ऐसा कहते हुए रजनी ने अपने दोनों पैरों को उठाकर कच्छी निकाल के बगल में रख दी और अपनी दोनों मांसल बड़ी बड़ी केले के तने के समान चिकनी जांघे खोलकर बूर को देखने के लिए परोस दिया।
ऐसा करते ही तोता एक बार फिर जोर जोर से चहकने लगा, इस बार नीलम और उदयराज औऱ भी चकित रह गए, रजनी शर्मा कर मुस्कुराते हुए कभी अपने बाबू को देखती तो कभी ऊपर उस तोते को जो नीलम की मस्त रसीली खिली खिली बूर को घूर रहा था।
रजनी- देखो बदमाश को.....कितना खुश हो गया है......बहुत बदमाश है ये तोता।
एकाएक वो तोता पेड़ से नीचे उड़कर आया और रजनी की मोटी सी गोरी जांघ पर बैठ गया, रजनी चिहुँक गयी कि तभी झट से उस तोते ने रजनी की बूर की फांकों के बीच भग्नासे पर अपनी लाल चोंच हल्के से मारी और बूर के रसीले छेद में अपनी चोंच एक बार डुबोके झट से उड़ गया।
तोते की इस हरकत से एक तरफ जहां रजनी हल्का सा चिहुँक गयी वहीं दूसरी तरह न जाने क्यों उसकी चोंच की छुवन से रजनी के बदन में गजब की सनसनाहट हुई और वो तेजी से कराह उठी, रजनी मंद मंद मुस्कुरा उठी ये सोचकर कि उसके बाबू के अलावा एक छोटा सा तोता उसकी बूर का चुम्मा लेकर उड़ गया, उसे अपने मदमस्त यौवन और रसभरी बूर पर अत्यंत नाज हुआ और दूसरे ही पल वो शर्मा गयी ये सोचकर कि एक छोटे से तोते ने उसके साथ ये किया। उसकी साँसे तेज तेज चलने लगी।
वो तोता झट से दक्षिण दिशा की ओर उड़ गया, बाकी तीन भी उस दिशा में उड़े थे पर रजनी और उदयराज ने उनपर ध्यान नही दिया था।
दरअसल वो तोता कोई और नही बस वो शैतान था जिसकी जड़ों में रजनी ने अपना दूध अर्पित किया था, वो शैतान रजनी पर मोहित हो चुका था, वो चाहता तो रजनी की बूर के दर्शन इससे पहले भी कर सकता था पर आज्ञा उसे महात्मा द्वारा अब जाके मिली थी ऐसा करने की, बिना उनकी आज्ञा के वो कुछ नही करेगा, रजनी की बूर को चूमकर वो उसमे से निकल रहा काम रस ले गया था, जो कि न तो रजनी ही जान पाई और न ही उदयराज।