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Horror पिनाक (Completed)

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दिसंबर की भयंकर सर्दियां पड़ रही थी। २० दिसंबर की सुबह वातावरण में अन्य दिनों की भांति बहुत ज्यादा सर्दी थी और कोहरा भी घना था।

रुस्तम भाई का नियम था कि वह सुबह छः बजे अपना बिस्तर छोड़ देते थे। उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी प्राय: सात बजे सोकर उठती थी।

अन्य दिनों की भांति उस दिन भी वे छ: बजे नींद से जागे।

उन्होंने धीरे से रजाई को हटाने का प्रत्यन किया ताकि उनकी पत्नी की नींद न खुल जाए तो उन्होंने रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया।

रुस्तम भाई ने थोड़ा विचलित होकर टेबल लैंप का स्विच ऑन किया और रजाई को हटाकर अपनी पत्नी की ओर देखा तो चीख मार कर बेहोश हो गए।

रुस्तम भाई के निजी सेवक भवानी ने चीख सुनकर उनके कमरे में प्रवेश किया, तो पाया कि वे बेहोशी की हालत में है और उनके पास बिस्तर में किसी सुंदर नवयुवती की लाश पड़ी हुई है।

भवानी ने सबसे पहले रुस्तम भाई के फैमिली डॉक्टर रोहित सिंगला को फोन किया फिर पुलिस स्टेशन में फोन कर घटना की जानकारी दी।

रुस्तम भाई भारत के प्रमुख दस उद्योगपतियों में एक थे, केवल ३२ साल की उम्र में उन्होंने यह गौरव हासिल कर लिया था।

इतने बड़े उद्योगपति के घर से इस तरह के समाचार मिलने पर सभी जगह हड़कंप मच गया।

रुस्तम भाई के अनुसार वह रात को १० बजे अपनी पत्नी के साथ सोए थे। जब सुबह ६ बजे वह नींद से जागे तो रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया। उन्होंने टेबल लैंप ऑन करके देखा तो उनकी पत्नी अपने स्थान पर नहीं थी वरन् उसकी जगह किसी अन्य महिला का शव पड़ा हुआ था और इसके बाद वह बेहोश हो गये।

उस महिला के शव और रुस्तम भाई की पत्नी के फोटोग्राफ्स दिल्ली स्थित क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो व पूरे भारत वर्ष की पुलिस को वितरित कर दिए गए।

शव की पहचान मधु दास नामक प्रयागराज निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता तौर पर हुई।

तीन दिन पहले वह प्रयागराज से अचानक लापता हो गई थी।

मधु दास की मृत्यु किसी तेज धार वाले औजार से उसका दिल निकाल लिए जाने के कारण हुई।

उसे मारने से पहले उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया था।

उसको रुस्तम भाई के बिस्तर में मौत के घाट नहीं उतारा गया था बल्कि किसी अन्य जगह उसका कत्ल करके लाश को वहां पहुंचा दिया गया था।

रुस्तम भाई की पत्नी कहां गायब हो गई यह नहीं पता चल सका।

अभी इस केस की जांच चल ही रही थी कि इसी प्रकार के अन्य मामले ने पूरे भारत में हंगामा कर दिया।

इस घटना के केवल तीन दिन पश्चात एक रात को प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता दिवाकर अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी के साथ अपने आवास पर सोए।

सुबह उनकी नींद खुली तो उन्हें बिस्तर में अपनी पत्नी के स्थान पर रुस्तम भाई की पत्नी का शव प्राप्त हुआ।

पुलिस ने इस घटना के जो परिणाम निकाले, वह किसी भी प्रकार से रुस्तम भाई के साथ घटित घटना से भिन्न नहीं थे।

इसके बाद तो ऐसी घटनाओं का तांता ही लग गया।

कई व्यक्तियों की पत्नियां गायब हो गई और उनकी लाश दूसरों के बिस्तर में पाई गई।

अब तो पूरे देश में कयास लगाए जाने लगे कि कौन सी महिला गायब होगी और उसका शव किसके बिस्तर में पाया जाएगा।

अब तक विभिन्न प्रदेशों में दसियों हत्याएं हो चुकी थी और मरने वाली सभी महिलाएं अत्यंत खूबसूरत और जवान थी।

केन्द्र सरकार ने मामले का संज्ञान लिया और इसे सीबीआई को सौंप दिया।

सीबीआई ने समस्त देश से १०० सर्वाधिक सुंदर युवतियों का चयन कर उनकी चौबीस घंटे निगरानी और सुरक्षा का प्रबंध किया। यहां तक कि उनके बैडरूम में भी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए।

इसके बाद जो अपहरण हुए, उनसे सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि अपहरणकर्ता सिर्फ एक ही व्यक्ति है। वह छ: फीट से ऊपर के कद का, सुंदर चेहरे वाला और मजबूत कद-काठी का इंसान है।

उसका पूरा शरीर पर एक विशेष प्रकार की आभा से चमकता है।

वह अचानक प्रगट होकर बहुत तेजी के साथ महिला को उठा लेता है और उसकी जगह किसी अन्य औरत की लाश को रख देता है।

वह उस जगह अचानक कैसे प्रगट हो जाता है, नहीं पता चला।

उसकी पहचान स्थापित नहीं हो सकी।

यह मालूम नहीं चल सका कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है या वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह कार्य करता है।

हत्याओं के इस तरीके से यह समझ में आता था कि हत्यारा किसी मानसिक विकृति का शिकार है, परन्तु वह उन महिलाओं का दिल निकाल कर क्या करता है, यह भी नहीं मालूम हुआ।

अपहरण करने के बाद अपहरणकर्ता उन युवतियों को कहां ले जाता है, नहीं पता चल सका।

हत्यारे का लक्ष्य केवल सुंदर युवतियां ही थी, चाहे वे शादीशुदा हो या कुंवारी।

सीबीआई अपहरण और हत्याओं को नहीं रोक सकी, क्योंकि अपहरणकर्ता अचानक प्रगट होकर इतनी तेजी के साथ कार्य करता था कि उसको रोका नहीं जा सका।

इसके अतरिक्त उसकी मौजूदगी में वातावरण में एक अजीब सा सम्मोहन पैदा हो जाता था, जिसकी वजह से सुरक्षाकर्मी कोई भी कार्यवाही करने में नाकाम रहेऔर वह बहुत ही आराम से युवतियों को लेकर गायब हो गया।

मिलिट्री इंटेलिजेंस ने एक व्यक्ति को जिसका हुलिया अपहरणकर्ता से मिलता था, भारत-तिब्बत सीमा के पास गायब होते देखा।

सीमा के आस-पास कई किलोमीटर के इलाके में सुई को खोजने जैसी छानबीन की गई लेकिन उसका वहां भी कोई सुराग नहीं मिला।

अब यह समझा जाने लगा कि अपहरणकर्ता कोई परालौकिक सत्ता रखता है या किसी अन्य ग्रह का वासी है।

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इस कोण को ध्यान में रखकर मामले की जांच 'ब्लैक हॉक' (Black hawk) नामक भारत सरकार की एक विशेष संस्था को सौंपी गई।

यह संस्था केवल परालौकिक मामलों की ही जांच करती थी।

इसके एजेंट भारतीय प्राचीन विद्याओं जैसे योग, तंत्र, युद्ध कला तथा आधुनिक युद्ध कलाओं में भी पारंगत होते थे।

यह एक गोपनीय संस्थान था, जिसका पता देश में चुनिंदा अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को ही था।

इसके नई दिल्ली स्थित, हेडक्वार्टर का नाम 'हॉक हाउस' था।

---

इस समय 'हॉक हाउस' में 'ब्लैक हॉक' संगठन के नम्बर वन एजेंट पिनाक, इस संस्था के प्रमुख अजय गुप्ता के सामने उनके कक्ष में बैठे हुए थे।

केस से संबंधित सभी सूचनाओं का पिनाक ने अध्ययन कर लिया था।

अजय गुप्ता ने पिनाक को संबोधित करते हुए कहा, "इतनी नवयुवतियों का अपहरण हो चुका, किंतु आज तक यह पता नहीं चल पाया कि अपहरणकर्ता कौन है?"

"अपहरण के बाद वह उनको कहां ले जाता है?"

"कौन उनका बलात्कार करने बाद उनका दिल निकाल लेता है और वह उस दिल का क्या करता है?"

"क्या अपहरणकर्ता एक मनुष्य है?"

"अगर वह मनुष्य है तो उसे क्या शक्तियां प्राप्त है जिससे वो अचानक प्रगट और गायब हो जाता है?"

"हत्यारा महिलाओं का दिल क्यों निकाल लेता है?"

"अगर वह मनुष्य नहीं है तो किस लोक का प्राणी है?"

अजय गुप्ता ने पिनाक को इस केस का कार्यभार सौंप कर कहा, "हमें इन सभी प्रश्नों के उत्तर तलाश करने है और दोषियों को गिरफ्तार या उनकी हत्या करनी है।
 

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आजकल फिल्म इंडस्ट्री में एक नवोदित अभिनेत्री मोना कि बहुत चर्चा हो रही थी।

उसकी सुंदरता और सांचे में ढले हुए जिस्म को देखकर, चलते हुए व्यक्ति भी ठिठक कर रुक जाते थे।

इन दिनों मोना एक फिल्म की आउटडोर सैट पर शूटिंग कर रही थी। एक गीत का फिल्मांकन किया जा रहा था। गीत के बोल इस प्रकार थे -

आज आने दो बलम से पूंछूगी,
के सनम रात सौतन के घर क्यों रहे।
सुलगती रातों में और बहकते लम्हों में,
चांदनी का यूं बरसना,
सेज पर अग्न का ज्वलंत होना,
दहकते यौवन पर तुषारापात होना....
आज आने दो बलम से पूंछूगी,
के सनम रात सौतन के घर क्यों रहे।
सूनी शैया पर कोमल कली,
बिना खिले ही मुरझा गई,
भंवरे भी मधुर गुंजन,
गुनगुनाकर रह गए,
वक्त भी साकित नहीं हुआ,
अरमान भी मचलकर रह गए....
आज आने दो बलम से पूंछूगी,
के सनम रात सौतन के घर क्यों रहे।
मय से भरे पैमानें छलक गए,
नैना भी वितरागी हो उठे,
चंचल चित्त में भंवर उठने लगे,
मधुरिमा पर विराम लगने लगे,
मदन के तीर और भी,
रह-रहकर बदन में धंसने लगे.....
आज आने दो बलम से पूंछूगी,
के सनम रात सौतन के घर क्यों रहे।
(राजीव गर्ग)

एक तो गीत ही ऐसा और उपर से मोना की सुंदरता, वातावरण में एक अद्भुत श्रृंगार रस को उत्पन्न कर रही थी।

मोना की निगरानी और सुरक्षा का प्रबंध उसी दिन से करना आरंभ किया गया था।

दस ब्लैक-कैट कमांडो उसकी सुरक्षा में तैनात थे।

ये सभी कमांडो दृढ़ मनोबल के स्वामी थे और अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे।

उनके बारे में कहा जाता था कि वे अर्जुन की तरह चिड़िया की आंख तक को भेदने में सक्षम है।

अगर हम अपने अतीत का मूल्यांकन करे तो पता चलेगा कि हमारे जीवन में कई घटनाएं केवल संयोगवश ही घटित हो गई।

ऐसा ही संयोग आज मोना की फ़िल्म शूटिंग के दौरान हुआ। जिस दिन से उसकी सुरक्षा शुरू की गई, उसी दिन दुर्घटना घटित हो गई।

शूटिंग में बेडरूम का दृश्य फिल्माया जा रहा था, मोना अधलेटी अवस्था में विरह के बोलों पर अभिनय कर रही थी कि अचानक अपहरणकर्ता प्रगट होकर मोना की तरफ बढ़ा।

ब्लैक कैट कमांडो भी पूरी तरह से चौकन्ने थे।

उन पर उसके सम्मोहन का प्रभाव तो पड़ा परंतु उतना नहीं जितना सैट पर मौजूद अन्य व्यक्तियों पर।

उन्होंने सतर्क होकर मोना के चारों ओर एक सुरक्षा दीवार बना ली।

लेकिन अपहरणकर्ता उनका थोड़ा सा भी प्रभाव माने बगैर आगे बढ़ा और मोना के आगे खड़े एक कमांडो को तिनके की तरह उठा कर फेंक दिया।

यह देख कर बाकि कमांडो ने उसको प्वाइंट ब्लैक शूटिंग पर धर लिया।

लेकिन अपहरणकर्ता के शरीर से टकराकर गोलियां इस तरह से छिटकने लगी जैसे उस पर गोलियों की नहीं वरन् चनों की बौछार हो रही हो।

अपहरणकर्ता ने मोना के अपरहण में बाधा बने दस कमांडो में से ६ की केवल हाथ-पैरों की सहायता से हत्या कर दी।

बचे हुए चार कमांडो भी बेहोशी के कारण मृत्यु से बच सके, और वह मोना को लेकर चंपत हो गया।

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लेकिन पिनाक भी कच्चे खिलाड़ी नहीं थे, उन्होनें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के अधिकारियों को पहले ही सतर्क रहने के निर्देश दे दिए थे।

उन निर्देशों के अनुसार सैटेलाइट के द्वारा रहस्यमयी अपहरणकर्ता के गमन का एक मैप तैयार किया गया।

अब पिनाक के सामने मोना के अपहरण के सभी फोटोग्राफ और विडियोज मौजूद थे।

उन फोटोग्राफ और विडियोज में फिल्म निर्माण के दौरान काम कर रहे कैमरों और निगरानी कर रहे सुरक्षाकर्मियों के कैमरों में मौजूद दोनों तरह की तस्वीरें थी।

इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र द्वारा अपहरणकर्ता के मोना को लेकर भागने का मैप भी था।

फिल्म निर्माण के दौरान सैट पर मौजूद तस्वीरों के विश्लेषण से कुछ ख़ास परिणाम नहीं निकले, केवल अपहरणकर्ता की सूरत और उसके लड़ने के तौर-तरीकों का ही पता चल सका।

इन फोटोग्राफ और विडियोज से यह पता चला कि वह प्राचीन युद्ध कला के अनुसार लड़ रहा था और ट्रेंड कमांडोज के साथ भी तिनकों के समान व्यवहार कर रहा था।

परन्तु भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के मैप से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई।

उस जानकारी के अनुसार अपहरणकर्ता भारत-तिब्बत सीमा पर अति दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में जाकर गायब हो गया था।

मिलिट्री इंटेलिजेंस ने भी इस मैप की पुष्टि कर दी। उन्होने भी अपहरणकर्ता को उसी क्षेत्र में गायब होते देखा था।

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महाश्मशान में स्थित दक्षिण काली के मंदिर में देवी के विग्रह के सामने एक अघोरी मंत्र जाप में तल्लीन था।

दक्षिण काली की मूर्ति भयानक दिखाई देती थी।

चार भुजाओं वाली देवी के गले में मानव खप्परों की एक माला सुशोभित थी जोकि उनके वक्ष स्थल को ढकते हुए नाभि स्थल के नीचे तक पहुंचे हुए थी।

उनके बाल खुले हुए थे, उनका एक हाथ अभय की मुद्रा को प्रदर्शित कर रहा थऔर अन्य हाथों में विभिन्न आयुध थे।

ध्यान से देखने पर उनकेभयानक स्वरूप में करुणा मिश्रित हंसी दिखाई देती थी।

अघोरी का रूप भी कम भयानक नहीं था, उसके बाल खुले हुए थे, और वह वीर भाव से भगवती की वामाचार विधि से आराधना कर रहा था।

मंत्र जाप करते हुए अघोरी बार-बार मां से वरदान की कामना कर रहा था।

"माता कितने ही वर्ष व्यतीत गए तेरी तपस्या करते हुए, परंतु तुम प्रसन्न नहीं हुई।"

बारम्बार रोते हुए भगवती के चरणों में गिरता हुआ अघोरी भवानी से उनका तेज प्रदान करने की प्रार्थना करता है।

हे माता, 'कृपा करें', 'अनुगृहित करे', 'अनुकंपित करे', 'आप्यायित करे'।

वहां स्थापित हवन कुंड में अघोरी अनेक पदार्थों की आहुतियां दे रहा था, जिनमें सुगन्धित मदिरा और किसी प्राणी का कच्चा मांस भी था।

अघोरी के निरंतर आराधना करते हुए पता नहीं कितना समय व्यतीत हो गया।

अचानक मंदिर का वातावरण दिव्य अनुभूतियों से भरने लगा।

मंदिर के बाहर की हवा तेज गति से चलने लगी, बिजलियां कड़कने लगी और मंदिर के अंदर भगवती दक्षिण काली अघोरी के सामने प्रगट हो गई।

अघोरी भगवती के चरणों में गिर पड़ा।

भगवती ने कहा, "वत्स तुम्हारी आराधना से मैं संतुष्ट हूं, तुम पर प्रसन्न हूं, बताओ तुम्हे कौन सा वर प्रदान करूं।"

हे मात:, "तुम्हारे दर्शन के बाद मुझे जन्मों-जन्मों के पुण्य फल प्राप्त हो गए।"

"माता, तुम्हारी ही भक्ति का वरदान चाहता हूं।"

"भवानी, तुम्हारे चरणों की धुली में निरंतर पड़ा रहना चाहता हूं।"

हे पुत्र, "मैं तुम्हे यह वरदान तो देती ही हूं।"

"मेरे दर्शन का यह फल तो हर प्राणी को मिलता ही है।"

"किंतु वत्स भौतिक जगत में रहने के लिए भी तुम मुझसे कुछ वरदान प्राप्त करो।"

"मैं तुम पर प्रसन्न हो कर यह कह रही हूं", भगवती ने कहा।

'हे माता', 'हे भगवती', 'हे चतुर्भुजी', 'हे संसार का पालन, पोषण और संहार करने वाली देवी'....

"यदि आप मुझ पर इतनी ही प्रसन्न है, तो कृपया करके मुझे अपना तेज प्रदान करें।"

भगवती दक्षिण काली ने पल भर विचार किया और अघोरी से कहा -

"वत्स, मेरा तेज ग्रहण करने के लिए तुम पूरी तरह से योग्य हो।"

"तुमने इन्द्रियों को जीत लिया है और लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि दोषों से पूर्णतया दूर हो।"

"तुम्हारे हृदय में केवल मेरी भक्ति ही विराजमान रहती है।"

"तुम्हारा मन निश्चल है और एक बालक की तरह पवित्र है।"

"किंतु यह वर तुम्हारी नियति में नहीं है।"

"हालांकि, मैं तुम्हारी नियति को बदल सकती हूं, लेकिन यह मेरी ही बनाई हुई व्यवस्था में हस्तक्षेप करने तुल्य होगा"।

"खैर जो होना होता है, वहीं होता है, जो होने वाला नहीं है वह नहीं होता।"

"तो हे पुत्र! तुम सावधान हो जाओ और मेरा तेज धारण करो।"

"इस तेज को धारण करने से तुम अक्षय यौवन के स्वामी होगे।"

"तुम्हारी उम्र हज़ारों वर्ष की होगी।"

"तुम्हें भोग, योग और मोक्ष तीनों पदार्थों की प्राप्ति होगी।"

यह कहकर महादेवी ने अपने तेज का प्रक्षेपण अघोरी की ओर किया।

तभी अचानक एक अन्य पुरुष वहां प्रगट हुआ और उसने अघोरी पर भयंकर पदाघात किया।

वैसे तो अघोरी एक मजबूत शरीर का स्वामी था लेकिन अचानक हुए पदाघात से दूर जा पड़ा और उस अन्य पुरुष ने भगवती के उस महातेज को ग्रहण कर लिया।

अपने वरदान को बीच में ही किसी अन्य पुरुष द्वारा चुरा लिए जाने से अघोरी ने क्रोधित होकर उस पुरुष पर हमला कर दिया।

नीच, पापी, चोर, दस्यु आदि संज्ञाओं से विभूषित कर उस पर आक्रमण करने लगा।

उस अन्य पुरुष का शरीर जहां पहले किसी रोग से पीड़ित और कमजोर दिखाई देता था, भगवती के तेज को धारण करने से एक अपूर्व तेज से चमकने लगा।

उसे अपने अंदर अभूतपूर्व यौवन और ताकत महसूस होने लगी।

उसने हंसते हुए अपने बाएं हाथ से अघोरी की गर्दन पकड़ ली और दाएं हाथ की मुष्टिका को उसके सिर पर प्रहार करने के लिए उठाया।

लेकिन तभी, भगवती का तीक्ष्ण स्वर वहां गूंजा -

"सावधान, राजकुमार - तुम मेरे भक्त पर पदाघात करके और मेरे दिए हुए वरदान को दस्यु वृत्ति द्वारा चुराकर पहले ही महान अपराध के भागी बन चुके हो।"

"अब अगर तुमने मेरे भक्त पर कोई प्रहार करके दूसरा अपराध किया तो तुम्हारा जीवन पलक झपकते ही ख़ाक में मिल जाएगा।"

अन्य पुरुष भगवती के इन वचनों को सुनकर भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़ा -

त्राहिमाम! त्राहिमाम! त्राहिमाम!

क्षमाप्रार्थी हूं माते, क्षमाप्रार्थी हूं!

हे माता, सारी सृष्टि आपकी ही उत्पन्न की हुई है!

हे भगवती, मैं तो आपका सेवक मात्र हूं!

हे दयानिधे, दया करे!

हे जगत जननी, हे भगवती - मेरे अपराधों को क्षमा करें!

इसके अलावा उसने कई तरह के विशेषणों द्वारा भगवती की आराधना की, जिससे वे संतुष्ट हो गई और कहा -राजकुमार! तुमने कार्य तो मृत्यु दण्ड का किया है।"किंतु तुम्हारा नियति चक्र तुम्हें यहां खेंच लाया है और मेरा तेज तुम्हें भाग्यवश ही प्राप्त हुआ है।"

"तुम्हें जो शक्तियां प्राप्त हुई है, अगर तुम उनका दुरुपयोग करोगे तो ये लंबे समय तक तुम्हारा साथ नहीं देगी।"

"मैं यह भी जानती हूं कि तुम मेरी चेतावनी के बाद भी इनका सदुपयोग यानी सृष्टि के कल्याण के लिए नहीं करोगे।"

"तुम्हारा यही कार्य तुम्हें मृत्यु के मार्ग पर ले जाएगा और मेरे ही एक भक्त के हाथों तुम मृत्यु को प्राप्त होगे।"

"चूंकि तुमने यह महातेज चुराया है, अतः ये तुम्हारे हित में उतना प्रभावशाली नहीं होगा, जितना मेरे भक्त अघोरी के पक्ष में होता।"

यह कहकर भगवती अन्तर्ध्यान हो गई।

अन्य पुरुष भी अघोरी को अहंकार की नजरों से देखते हुए वहां से गायब हो गया।
 

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प्राचीन भारत में किसी समय विजयगढ़ नामक एक नगर था, जिसमें परमप्रतापी राजा विक्रमदेव राज्य करते थे।

महाराज विक्रमदेव के शासन में प्रजा प्रत्येक प्रकार से प्रसन्न थी।

घर-घर में महाराज के सुशासन और न्यायप्रियता के गीत गाए जाते थे।

बहुत समय तक उनके संतान नहीं हुई तो उन्होंने भगवती दक्षिण काली की आराधना की, जिसके फलस्वरूप उनको पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई।

पुत्र की प्राप्ति पर महाराज प्रसन्न तो बहुत थे, लेकिन अक्सर भगवती के उन वचनों को याद करके चिंतित हो उठते थे, जब महादेवी ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान देते समय कहे थे, यथा -

"राजन, तुम अगर पुत्र प्राप्ति कि इच्छा नहीं करते तो तुम्हारे हित में अच्छा रहता।"

"यह पुत्र तुम्हारी कीर्ति को अपकीर्ति में बदल कर रख देगा।"

"यह जन-जन का द्रोही होगा और तुम इससे सुख प्राप्त नहीं कर सकोगे।"

"यह मेरे आशीर्वाद के फलस्वरुप जन्म लेगा, अतः समय आने पर इसको मेरी शक्तियों के अंश की प्राप्ति भी होगी।"

"लेकिन उन शक्तियों के दुरुपयोग के कारण मेरे ही भक्त के हाथों मृत्यु को प्राप्त होगा।"

पुत्र का नाम शक्तिदेव रहा गया। ज्यों-ज्यों शक्तिदेव की उम्र बढ़ती गई, भगवती के वचनानुसार उसका शैतानी स्वभाव जनता के समक्ष प्रगट होता गया।

सुंदर युवतियों को उसके अनुचर उठा लाते, विरोध करने पर उन युवतियों के पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया जाता।

इस अन्याय के समाचार महाराज विक्रमदेव तक भी पहुंचते थे, लेकिन महाराज पुत्र-मोह के वशीभूत अपने को विवश पाते थे।

इसके अतरिक्त समय पाकर शक्तिदेव ऐसा मजबूत विष-वृक्ष बन गया जिसको काटना अब असंभव था।

इसी बीच प्रजा को शक्तिदेव की तरफ से कुछ राहत मिली, जब वह राज्य के पश्चिमी सीमांत इलाके में शिकार खेलने के लिए चला गया।

उस इलाके में वह मृगों के झुंड का पीछा करते हुए एक अत्यंत शक्तिशाली नरभक्षियों के कबीले में जा पहुंचा, जिनसे महाराज विक्रमदेव भी मुकाबला करने में संकोच करते थे।

कहना नहीं होगा कि राजकुमार को बंदी बना लिया गया।

हालांकि उसने बड़े ही पराक्रम के साथ उन नरभक्षियों का मुकाबला किया लेकिन उसका जोर नहीं चल सका और उसे पराजित होना पड़ा।

राजकुमार को सरदार गंटारू के सामने प्रस्तुत किया गया।

जब सरदार को पता चला कि वह महाराज विक्रमदेव का पुत्र राजकुमार शक्तिदेव है तो उसकी खुशी का पारावार नहीं रहा।

सरदार की विक्रम देव के साथ दुश्मनी बहुत पुरानी थी क्योंकि विक्रम देव हमेशा उन नरभक्षियों के मानवता विरोधी कार्यों में एक बड़ी चट्टान की तरह बाधा बन कर खड़ा रहता था।

किंतु जब सरदार को पता चला कि राजकुमार शक्तिदेव एक नीच श्रेणी का मनुष्य है और अपने ही राज्य में घृणित कार्य कर रहा है, तो उसने राजकुमार के जरिए महाराज विक्रमदेव को नीचा दिखाने की सोची।

उसने राजकुमार को मुक्त कर दिया और अच्छी तरह से आदर-सत्कार करने के बाद, शक्तिदेव को कुछ समय कबीले में मेहमान बनकर रहने को कहा।

इसी दौरान राजकुमार की नजर सरदार गंतारू की पुत्री मंदारी से लड़ गई थी और मंदारी के ही लोभ में उसने उस कबीले में रहने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।मंदारी थी भी अत्यंत रूपवती, सांचे में ढले हुए उसके जिस्म को देखकर राजकुमार की शिराओं में रक्त ज्वालामुखी की तरह उबलने लगा था।

मंदारी शहरी बालाओं की तरह कोमल नहीं थी, वरन् उसका शरीर चट्टान की तरह मजबूत था।

उसके उन्नत वक्ष-स्थल और पतले कटि प्रदेश को देखकर राजकुमार उस पर विमोहित हो गया।

सरदार भी अपने गूढ़ उद्देश्य कि प्राप्ति होते देख अत्यंत प्रसन्न हो गया और उसने मंदारी को राजकुमार से मिलने की अनुमति से दी।

वैसे भी उस कबीले में काम पर कोई बंधन नहीं था।

कोई भी नर-नारी पसंद आने पर एक-दूसरे के साथ स्वतंत्रतापूर्वक रह सकते थे।

मानव-मांस तो उन नरभक्षियों को बहुत ही कम प्राप्त होता था।

किसी मानव के जाल में फंस जाने पर कबीले में उत्सव मनाया जाता था और उसका मांस पूरे कबीले में बांटा जाता था।

नर-मांस तो कबिलाइयों को प्रसादवत ही प्राप्त होता था, इसलिए उनकी जीविका का आधार मुख्यत: शिकार पर आधारित था।

मंदारी और राजकुमार भी प्रतिदिन शिकार पर जाते थे।

राजकुमार तो एक कुशल शिकारी था ही, मंदारी भी एक ही बाण में सिंह जैसे शक्तिशाली जानवर को भी मार गिराती थी।

राजकुमार और मंदारी का उन्मुक्त सहवास चल ही रहा था कि एक दिन एक मानव दुर्भाग्यवश उन कबिलाइयों के फंदे में फंस गया।

बड़ा भारी उत्सव मनाया गया।

उस मानव का वध करके, पहले तो उसका मांस देवता को अर्पित किया गया फिर सरदार ने उसका दिल निकालकर राजकुमार को भेंट कर दिया।

राजकुमार कोई नरभक्षी तो था नहीं, लेकिन सरदार के जोर देने पर, जिसमें यह धमकी भी शामिल थी कि कबीले में रहने वाला कोई भी व्यक्ति चाहे स्थायी निवासी होया कोई मेहमान, उसको नर-मांस का सेवन करना ही पड़ता है, वरना वह कबीले में नहीं रह सकता।

कबीला छोड़ने का अर्थ था, मंदारी को छोड़ना और यह त्याग राजकुमार करना नहीं चाहता था।

अंततः उसको मानव बलि के दिल का भक्षण करना ही पड़ा।

पाठक यह भी ध्यान रखे कि राजकुमार एक अत्यंत ही दुष्ट प्रकृति का मनुष्य था।

मासूम लड़कियों का बलात्कार और निर्दोष प्रजाजनों का वध करना ही उसके प्रमुख कार्य थे।

इसीलिए ऐसी दुष्ट प्रकृति वाले इंसान को सरदार द्वारा नर-मांस खिलाकर पतन के गहरे गड्ढे में धकेलना संभव हुआ।

इस घटना के उपरांत तो राजकुमार का सारा संकोच दूर हो गया और वह पूरी तरह नरभक्षी हो गया।

इस प्रकार कबीले के सरदार गंटारु का वह गूढ़ उद्देश्य पूरा हो गया जिसके तहत वह राजकुमार को नरभक्षी बनाकर, महाराज विक्रमदेव से बदला लेना चाहता था।

फिर एक दिन ऐसा आया कि मंदारी आखेट के समय सिंह के हमले का शिकार होकर मारी गई।

मंदारी की मृत्यु के पश्चात राजकुमार का दिल उस कबीले से उचाट हो गया और वह वहां से पलायन करने की सोचने लगा।

जब सरदार को उसकी इस सोच का पता चला तो उसने राजकुमार को कबीले की दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर यात्रा करने की सलाह दी।

हालांकि राजकुमार अपने राज्य में वापिस जाना चाहता था, लेकिन सरदार की तो अपनी एक योजना थी।

वह राजकुमार को दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसलिए भेजना चाहता था कि वहां आर्य ऋषियों के आश्रम थे।

ऋषियों के तपोबल से सरदार बहुत भयभीत रहता था और कभी भी उनकी ओर जाने का साहस नहीं कर पाता था।

सरदार ने राजकुमार को ऋषियों की कोमलांगी पत्नियों और कन्याओं के बारे में बताया तो राजकुमार उस दिशा में जाने को उत्सुक हो उठा।

सरदार ने राजकुमार को उन ऋषियों के तपोबल के बारे में नहीं बताया।

क्योंकि वह जानता था कि राजकुमार उधर जाकर निश्चित रूप से ऋषियों के कोप का भाजन बनेगा और दण्ड को प्राप्त होगा

जिससे वह महाराज विक्रम देव से दुश्मनी में एक कदम और बढ़त हासिल कर सकेगा।अंतरगोत्वा हुआ भी यही, राजकुमार उस दिशा में जाकर अपने दुष्कर्मों से बाज नहीं आया और एक ऋषि के श्राप वश कोढ़ी हो गया।


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राजकुमार किसी तरह मर-पड़कर अपने राज्य में पहुंचा।

हालांकि महाराज विक्रम देव राजकुमार से प्रसन्न नहीं थे किन्तु पुत्र-मोह के वशीभूत उन्होंने उसकी परिचर्या का प्रबंध करवा दिया।

राजवैद्य आचार्य भूषण ने नाड़ी देखकर महाराज को बताया कि यह रोग आयुर्वेद की पहुंच से बाहर है।

उन्होंने यह भी बताया कि राजकुमार को यह रोग वात, पित्त या कफ के बिगड़ने से नहीं हुआ।

उनके अनुमानानुसार यह किसी दुर्घटना का परिणाम था।

ज्यों-ज्यों दिन पे दिन गुजरने लगे त्यों-त्यों राजकुमार मृत्यु को अपने नजदीक आता महसूस करने लगा।

उन्हीं दिनों महाराज के कुलगुरु महान तांत्रिक और योगाचार्य भैरवानंद का आगमन हुआ।

भैरवानंद उस काल के महान तांत्रिक थे, जिनको तंत्र और योग दोनों में सिद्धि प्राप्त थी।

उन्होंने अपने तपोबल से राजकुमार के साथ हुई घटना को जानकर महाराज को बताया।

महाराज यह जानकर अति दु:खी हुए कि राजकुमार ने ऋषि कन्याओं को अपनी घृणित वासना का शिकार बनाया।

लेकिन मोहवश महाराज बारम्बार भैरवानंद के चरणों में गिरकर राजकुमार की जान बचाने की प्रार्थना करने लगे।

भैरवानंद ने महाराज को राजकुमार के कबीले में प्रवास और नर-मांस भक्षण के बारे में भी बताया।

उन्होने कहा, "महाराज, ऐसे नरभक्षी और बलात्कारी पुरुष को बचाने का क्या लाभ?"स्वस्थ होकर यह अन्य उपद्रव करेगा और प्रजाजनों को अधिक कष्ट देगा।"

किन्तु महाराज ने विनम्रता कि हद कर दी, वे भैरवानंद के चरणों में लोट गए और अपना मस्तक उनके पैरों में रख दिया।

द्रवित होकर भैरवानंद ने ध्यान लगाकर बताया, "महाराज, राजकुमार के शाप विमोचन का एक ही उपाय है।"

"विक्रमी संवत __ के मास___ की तिथि __ को एक अघोरी भगवती दक्षिण काली के तेज को वरदान स्वरूप ग्रहण करेगा।"

"अगर किसी तरह राजकुमार वह तेज बीच में ही ग्रहण कर ले तो बात बन सकती है।"

"उस तेज को प्राप्त कर राजकुमार महान तेजवान, बलशाली होगा और मृत्यु भी उसके नजदीक आने पर हिचकिचाएगी।"

"लेकिन भगवन, सैकड़ो वर्ष बाद अघोरी को प्राप्त होने वाले भगवती के तेज को राजकुमार कैसे ग्रहण कर सकता है?"

"क्या, कोई साधारण मनुष्य इतने वर्ष तक जीवित रह सकता है?"

भैरवानंद के चेहरे पर एक करुणा भरी मुस्कान आयी और उन्होंने महाराज से कहा, "यह सब तो संभव हो जाएगा।"

"मैं अपने योगबल द्वारा राजकुमार को समय के उसी क्षण में पहुंचा दूंगा, जब वह अघोरी महादेवी के तेज को ग्रहण कर रहा होगा।"

"किन्तु महाराज, एक बार और विचार कर ले।"

"राजकुमार जैसे नराधम को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"महादेवी के तेज को प्राप्त करने के बाद इसको पराजित करना अत्यंत दुष्कर कार्य होगा और शक्ति के घमंड में यह अत्याचारों की सीमा को भी लांघ देगा।"

"मैंने विचार कर लिया है भगवन्, आप राजकुमार को समय के उस महत्वपूर्ण क्षण में पहुंचाने की कृपा करें।"

"अगर यह उस महान शक्ति को प्राप्त कर, उद्दंडता करेगा तो भगवती किसी-न-किसी शक्ति को उसे दण्ड देने के लिए अवश्य भेजेंगी।"

महादेवी दक्षिण काली ने इसके जन्म का वरदान देते समय कहा भी था -

"यह मेरे आशीर्वाद के फलस्वरुप जन्म लेगा। अतः समय आने पर इसको मेरी शक्तियों के अंश की प्राप्ति भी होगी, लेकिन उन शक्तियों के दुरुपयोग के कारण मेरे ही भक्त के हाथों मृत्यु को प्राप्त होगा", महाराज ने कहा।

तांत्रिक व योगाचार्य भैरवानंद भी इस भविष्यवाणी को जानते थे।

अतः भावी को निश्चित जानकर उन्होने राजकुमार को अपने याेगबल से समय के उस क्षण में पहुंचा दिया, जब महादेवी अपने तेज का प्रक्षेपण वरदान स्वरूप अघोरी को ओर कर रही थी।

आगे का घटनाक्रम तो पाठक जानते ही है कि किस प्रकार राजकुमार ने भगवती दक्षिण काली के तेज को प्राप्त किया था। तथा वह कातिल जो सुंदर युवतियों का अपहरण और बलात्कार करता था, वह राजकुमार शक्तिदेव है।

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पिनाक इस समय प्रसिद्ध विद्वान गिरीश भटनागर के निवास स्थान पर उनके समक्ष उपस्थित थे।

गिरीश भटनागर अस्सी वर्ष के एक वृद्ध व्यक्ति थे।

उनकी भौंहों तक के बाल सफेद हो चुके थे, लेकिन इस उम्र में भी वे तन कर चलते थे।

उनके चेहरे पर असीम तेज था और शरीर की बनावट से यह पता नहीं चलता था कि उनकी उम्र अस्सी वर्ष की है।

गिरीश भटनागर ने अपनी उम्र का काफ़ी हिस्सा तिब्बत में, वहां के रहस्यों को जानने के लिए, बिताया था।

चूंकि कातिल के रहस्य के तार भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र से जुड़े पाए गए थे और गिरीश भटनागर भारत में तिब्बत मामलों पर मौजूदा समय के सबसे बड़े विद्वान थे, इसीलिए पिनाक ने उनसे मिलना उचित समझा।

पिनाक ने फोन पर गिरीश भटनागर से मुलाकात का समय लिया और सुबह दस बजे नई

दिल्ली स्थित उनके आवास पर जा पहुंचे।

पिनाक जब भी किसी भी व्यक्ति से सरकारी काम के उद्देश्य से मिलते थे, तो अपने आप को सीबीआई के उच्चाधिकारी के रूप में प्रस्तुत करते थे।

इस हेतु उनके पास सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर होने का पहचान पत्र (जिसका विवरण नई दिल्ली स्थित सीबीआई के हेडक्वार्टर में भी दर्ज था, ताकि उनकी पहचान ब्लैक हॉक के एक अधिकारी के रूप में सुरक्षित रह सके) और विजिटिंग कार्ड होते थे।

पिनाक ने गिरीश भटनागर के आवास के दरवाजे की घंटी बजाई तो लगभग तीस वर्षीय एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला।

रामकुमार नामक यह व्यक्ति गिरीश भटनागर के सभी कार्य संभालता था यानि कि उनका पीर, बावर्ची, भिस्ती, खर इत्यादि सब कुछ था।

पिनाक ने बड़ी ही शालीनता के साथ रामकुमार को गिरीश भटनागर के साथ अपनी मुलाकात तय होने के बारे में बताया और अपना विजिटिंग कार्ड उसे सौंपा।

रामकुमार ने विजिटिंग कार्ड को देखा और दरवाजे से एक तरफ हटते हुए पिनाक से कहा, "साहब उनका ही इंतजार कर रहे है।"

इसके उपरांत वह पिनाक को भटनागर जी के सम्मुख लेे आया।

गिरीश भटनागर इस समय अपनी स्टडी में मौजूद थे।

उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से पिनाक की तरफ हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया।

लेकिन पिनाक ने हाथ मिलाने की बजाय उनके पैरों की तरफ हाथ बढ़ाया।

"अरे, ये क्या करते हो, पिनाक जी, आप सीबीआई के इतने बड़े अधिकारी, मेरे चरण स्पर्श करें।"

"भटनागर जी, आप की विद्वता के सामनेमेरा पद कुछ भी नहीं।"

"कृपा करके मुझ नाचीज़ को आप की बजाय तुम कह कर संबोधित करें तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी", पिनाक ने कहा।

पिनाक के भव्य व्यक्तित्व से वैसे ही गिरीश भटनागर बहुत प्रभावित थे किन्तु साथ ही पिनाक की विनम्रता ने उन पर जादू का असर किया।

कुछ की पलों में वे ऐसे हो गए जैसे वर्षों से एक-दूसरे को जानते हो।

भटनागर जी ने रामकुमार को चाय-नाश्ता लाने की लिए कहा।

चाय नाश्ते के बाद भटनागर जी ने पिनाक से कहा, "अगर मैं तुम्हे बेटा कहकर संबोधित करूं तो?"

"यह तो मेरा अहोभाग्य होगा, मै आपको गुरुदेव कहूंगा", पिनाक ने कहा।

"हां तो बेटे, कौन सा ऐसा कार्य है, जो तुम्हे मुझ बूढ़े तक खेंच लाया"

"आप अभी बूढ़े कहां?, जवानों को भी माफ कर रहें है", पिनाक ने गिरीश भटनागर के तने हुए शरीर की तरफ देखकर हंसते हुए कहा।

फिर बात को पूरी करने के उद्देश्य से पिनाक ने कहा, "कार्य तो था ही, लेकिन ये नहीं मालूम था कि इस बहाने आप जैसी महान विभूति के दर्शन हो जाएंगे।"

उसके बाद पिनाक ने गिरीश भटनागर को अपहरणकर्ता के बारे में जो भी जानकारियां थी, उनसे अवगत कराया और यह भी बताया कि वह भारत-तिब्बत सीमांत क्षेत्र के दुर्गम पहाड़ों में गायब हो गया था।

पिनाक ने भटनागर जी को भारतीय अनुसंधान केन्द्र द्वारा तैयार किए गए अपहरणकर्ता के गमन के मैप को दिखाते हुए पूछा "क्या आप इस मैप को देखकर अपहरणकर्ता के छुपने का ठिकाना बता सकते है?"

"क्या यह क्षेत्र भारत में है या तिब्बत में?" ये मेरा दूसरा प्रश्न है, पिनाक ने कहा।

भटनागर जी काफ़ी देर तक नक्शे को ध्यान से देखते रहे फिर गहरी सोच में डूब गए।
 

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बहुत सोच-विचार करने के बाद वे बोले, "मुझे लगता है कि अपहरणकर्ता 'पिशाचों की घाटी' में गायब हो जाता है।"

"यह पिशाचों की घाटी क्या है, गुरुदेव?" पिनाक ने पूछा।

"पिशाचों की घाटी एक ऐसी दुर्लभ जगह है, जिसके अंदर प्रवेश पाना मानव जाति के लिए असंभव है।"

"यह भारत और तिब्बत की सीमा के पास है।"

"इसका ज्यादातर हिस्सा भारत में पड़ता है, किंतु कुछ हिस्सा तिब्बत में भी है", गिरीश भटनागर ने कहा।

"जब मैं अपने तिब्बत प्रवास पर था तो मैंने इस घाटी के बारे में एक तिब्बतन लामा से सुना था।"

"मैंने उस लामा को उस घाटी में चलने को बहुत मनाया, परंतु वह उधर जाने को तैयार नहीं हुआ।"

"असलियत में वह उस जगह से बहुत भयभीत था।"

"उसने बताया कि इस घाटी के चक्कर में पड़कर एक बार उसके प्राण जाते-जाते बचे थे।"

"इसके अतिरिक्त उसने बताया कि इस घाटी में पिशाचों एक बड़ा कबीला बसा हुआ है।"

"जिसका अपना एक निजाम है, एक शासक है, एक विशालकाय सेना है।"

"इस कबीले के शासक को 'कामा तारू' कहा जाता है।"

"मैंने अकेले ही तिब्बत की तरफ से पिशाचों की घाटी को खोजने का प्रयत्न किया, किन्तु असफल रहा।"

"बाद में मैंने यही प्रयत्न भारतीय छोर से किया।"

"स्थानीय लोगों में इस घाटी को लेकर इतना भय व्याप्त है, कि लोग इसका जिक्र तो क्या, इसके बारे में सोचने से भी डरते है।"

"वैसे तो पिशाचों की घाटी अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में है, उस तक मनुष्य पहुंच ही नहीं सकता, फिर भी अगर कोई मनुष्य वहां पहुंच भी जाए तो वापिस नहीं आ सकता।"

"जब मैंने स्थानीय लोगों को घाटी की खोज में जाने के अपने निश्चय के बारे में बताया, तो उन्होंने मेरा कोई सहयोग करने के बजाय, मेरा मार्ग रोकने की कोशिश की।"

"स्थानीय लोगों का मत था कि उस ओर किसी के भी जाने पर मुसीबत उन्हीं पर पड़ेगी।"

"समस्त विरोध के बाद भी मैंने अपना विचार नहीं त्यागा और एक दिन चुपचाप उस घाटी की खोज में निकल पड़ा।"

"मार्ग में अनेक बाधाओं के बावजूद मैं उस घाटी तक पहुंच गया था।"

"परंतु उसके बाद जो हुआ, उसे याद कर मेरे शरीर में आज भी सिहरन उठ आती है।"वास्तव में पिनाक को गिरीश भटनागर के जिस्म में एक सिहरन सी उठती महसूस हुई।

"असल बात यह है कि मैं मृत्यु की गोद में लगभग पहुंच ही गया था", भटनागर जी ने कहा।"

"वह कैसे गुरुदेव?", पिनाक ने पूछा।

"दरअसल पिशाचों की घाटी की एक सीमांत चौकी है, उस चौकी पर भयंकर और दुर्दांत पिशाच पहरा देते हैं।"

"घाटी में प्रवेश करने से पहले ही उन्होंने मेरा मार्ग रोक लिया।"

"वे मुझे खत्म ही कर डालते, लेकिन मेरे पास तिब्बत के एक महान सिद्ध लामा, जिनकी उम्र हजारों वर्ष समझी जाती है, का दिया हुआ एक रक्षा कवच था।"

"उस दिन उसी रक्षा कवच की वजह से मेरे प्राण बचे।"

"फिर भी मुझे पिशाचों की ओर से चेतावनी दी गई कि सिद्ध लामा की आन मानकर अबकी बार तो तुम्हारी जान को बख्श दिया है, अगर दोबारा तुमने इस ओर आने की हिमाकत कि तो यह रक्षा कवच भी तुम्हें बचा नहीं सकेगा।"

"क्या आपको उस घाटी में जाने का रास्ता याद है, गुरुदेव?" पिनाक ने पूछा।

"हां, अच्छी तरह से याद है, वैसे भी मैंने वहां से लौटकर, अपनी यादाश्त के आधार पर एक मानचित्र बना लिया था।"

"इस मानचित्र में पिशाचों की घाटी में जाने के रास्ते का सूक्ष्म से सूक्ष्म विवरण है।"

"इसके अतिरिक्त रास्ते में पड़ने वाली समस्त बाधाओं का भी जिक्र है", भटनागर जी ने कहा।

पूरी बात सुनकर पिनाक ने भटनागर जी से पूछा, "क्या आप मुझे वह मानचित्र उपलब्ध कराएंगे?"

"मानचित्र तो क्या बेटे, मैं तो स्वयं तुम्हारे साथ चलूंगा", भटनागर जी ने कहा।

इस पर पिनाक ने कहा, "नहीं गुरुदेव, आपको पिशाचों की तरफ से चेतावनी मिल चुकी है, मैं आपकी जान खतरे में नहीं डालूंगा।"

"अब जान का क्या डर, पिनाक बेटे, अस्सी वर्ष के जीवन का उपभोग कर चुका हूं।"

"साल-दो-साल में मृत्यु तो वैसे ही आनी है।"

इस प्रकार पिनाक के प्रतिरोध को खारिज कर भटनागर जी ने कहा।

"लेकिन गुरुदेव, मेरे मस्तिष्क में एक बात है।"

"आप कह रहे है कि मानव जाति का उस घाटी में प्रवेश असंभव है, तो अपहरणकर्ता उसमें कैसे प्रवेश कर गया?" पिनाक ने पूछा।इसके बारे में मैं क्या बता सकता हूं।"

"किंतु मेरा विचार है कि, जिस ढंग से तुमने अपहरणकर्ता का वर्णन किया है, उससे लगता है कि वह एक सिद्धि प्राप्त मनुष्य है।"

"संभव है कि पिशाच घाटी को उसने एक सुरक्षित ठिकाना समझ लिया हो और अपनी सिद्धियों के बल पर पिशाचों को पराजित या उनसे कोई समझौता कर वहां पर रहने लगा हो।"

"सही तथ्य तो उस जगह जाने से ही मालूम चलेंगे।"

"आपका विचार उचित ही लगता है, गुरुदेव", पिनाक ने कहा।

इसके उपरांत दोनों ने मार्ग की कठिनाइयों इत्यादि के बारे में चर्चा कर, पिशाचों की घाटी तक जाने का कार्यक्रम स्थिर कर लिया।
 

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कितनी सही सोच थी गिरीश भटनागर की।

राजकुमार शक्ति देव भगवती दक्षिण काली के तेज को प्राप्त कर और अघोरी की तरफ अहंकार भरी नजरों से देख कर, यकायक गायब होकर आकाश मार्ग से बिना किसी उद्देश्य या दिशा का विचार किए बगैर ही उड़ चला और अनायास ही पिशाचों की घाटी के ऊपर पहुंच गया।

जब सीमांत चौकी के दुर्दांत पिशाचों ने उसके आगमन को देखा तो वे शक्ति देव का रास्ता रोकने के लिए तत्पर हो गए।

शक्ति देव का पिशाचों की घाटी में जाने का न ही तो कोई इरादा था और न ही कोई उद्देश्य था, वह तो दिशाहीन ही जा रहा था।

परंतु पिशाचों के द्वारा रोके जाने पर वह भी डटकर खड़ा हो गया और उनसे लोहा लेने लगा।

उसके पास तो ऐसी शक्ति थी जिससे वह पिशाचों से तो क्या किसी भी महान से महान शक्ति से भी लोहा ले सकता था।

उसने सहज में ही सीमांत चौकी पर तैनात दुर्दांत पिशाचों को समाप्त कर दिया और उस घाटी में प्रवेश कर गया।

जब पिशाचों के शहंशाह कामा तारू को शक्ति देव के घाटी में प्रवेश का समाचार मिला तो वह अत्यंत चकित हो उठा।

उसके अनुसार तो पिशाचों के अतिरिक्त किसी भी जीवित प्राणी, जिसमें देव, दानव, राक्षस, असुर इत्यादि शामिल थे, का घाटी में प्रवेश असंभव था।

उसने तुरंत ही पिशाचों का एक जत्था, जिसमें एक से एक महाबली पिशाच योद्धा शामिल थे, को शक्ति देव से मुकाबला करने के लिए भेजा।

लेकिन बहुत ही सहज भाव से शक्ति देव ने उन महान पिशाचों को समाप्त कर दिया और अत्यंत क्रोधित होकर कामा तारु के राजदरबार में उसके समीप जा पहुंचा।

राजकुमार शक्ति देव को अपने निकट आया देख कामा तारु ने अत्यंत ही भयभीत होते हुए सोचा, "जिस स्थान पर देव, दानव, गंधर्व, असुर, राक्षस इत्यादि का प्रवेश असंभव है, फिर यह एक साधारण मनुष्य कैसे पहुंच गया, वह भी मेरे इतने समीप।"

"यह है अवश्य ही कोई महान शक्ति को धारण करने वाला मनुष्य है वरना तो यह कब का समाप्त हो चुका होता।"

यह सब सोच कर कामा तारु ने राजकुमार शक्ति देव की शक्ति का संधान करने के लिए उससे युद्ध की बजाय कूटनीति का प्रयोग करने का मन ही मन निर्णय लिया।

इसलिए इस नीति के तहत कामा तारु ने बड़े ही विनम्र भाव से और शहद जैसे मीठे वचनों से राजकुमार शक्ति देव को संबोधित करके कहा-

"मैं पिशाचों का राजा कामा तारु हूं।"

"हे महाबली, आप कौन हैं?

"किस योनि के प्राणी हैं?"

"आपको किस महान शक्ति का वरदान प्राप्त है जो आपने सहज भाव से ही अत्यंत पराक्रमी पिशाचों को परास्त कर दिया?"

राजकुमार शक्ति देव का क्रोध कामा तारु के विनम्र भाव और मधुर वचनों से कुछ कम हुआ और उसने कहा-

"हे पिशाचराज कामा तारु, मैं विजयगढ़ के परम प्रतापी राजा विक्रम देव का पुत्र शक्ति देव हूं, घटनाक्रम के प्रभाव से मैं प्राचीन समय से निकलकर इस आधुनिक समय में पहुंच गया हूं "मुझे सुंदर नवयुवतियों का सहवास और उनका मांस विशेषतः उनके दिल का भक्षण अति प्रिय है।"

"मुझे भगवती दक्षिण काली का तेज प्राप्त है।"

"तीनों लोगों में कोई भी शक्ति नहीं जो मुझे परास्त कर सके।"

"मैं तो अपनी इच्छा से ही बिना कोई लक्ष्य निर्धारित किए आकाश मार्ग से जा रहा था, किंतु तुम्हारे पिशाचों ने अनायास ही मेरा रास्ता रोक कर मुझे युद्ध के लिए विवश कर दिया।"

वैसे तो पिशाचराज कामा तारु एक बहुत ही निकृष्ट श्रेणी का प्राणी था और अपनी शक्ति के मद में सबको स्वयं से तुच्छ समझता था, परंतु कहावत है कि 'ऊंट भी कभी न कभी पहाड़ के नीचे आता है'।

उसने राजकुमार का पराक्रम देख ही लिया था और यह सुनकर कि राजकुमार को भगवती दक्षिण काली का वरदान भी प्राप्त है, वह घुटनों के बल आ गया।

वह अपने सिंहासन से नीचे उतरकर राजकुमार के समीप पहुंचा और उसके चरणों में गिरकर कहा, "हे सिद्ध पुरुष, मेरा आपसे कोई बैर नहीं है, न ही मेरे योद्धाओं का आपसे कोई बैर है, यह तो इस घाटी की आन ही है कि कोई भी जीवित प्राणी यहां प्रवेश नहीं कर सकता और न हीं इसके ऊपर से गमन कर सकता है।"

"अतः यही सोचकर मेरे पिशाचों ने आपके रास्ते में बाधा दी। आप उन्हें क्षमा करें।"इसके उपरांत यह सोचकर, यदि राजकुमार नर मांस का भक्षण करता है तो मनुष्य होते हुए भी यह पिशाचों के ही समतुल्य है, उसने बड़े ही विनम्र भाव से राजकुमार को संबोधित किया-

"हे महान शक्ति के धारक, हे समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ, हे महान बलशाली, मेरा आपसे निवेदन है कि कुछ समय आप मेरी इस घाटी में निवास कर मुझे अनुग्रहित करें।"

राजकुमार ने पिशाचराज़ के इस निमंत्रण को सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और मजे से वहां रहने लगा।

यहीं रहकर वह आकाश मार्ग से जाकर सुंदर नवयुवतियों का अपरहण कर, उनका बलात्कार करता था और उनका दिल निकाल कर खा जाता था।

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पिनाक ने पिशाचों की घाटी में जाने का कार्यक्रम स्थिर कर लिया।

गिरीश भटनागर सहित उसकी टीम में दस सदस्य थे।

पिनाक सहित बाकि ९ सदस्य ब्लैक हॉक संगठन से संबंध रखते थे।

वह सभी युद्ध की प्राचीन और आधुनिक युद्ध कला के ज्ञाता थे और परालौकिक विज्ञान पर भी उनका पूर्ण अधिकार था।

रवानगी से पहले सभी व्यक्तियों को हॉक हाउस में एक रिफ्रेश कोर्स करवाया गया।

देवदत्त शास्त्री, ब्लैक हॉक संगठन के आयुधों की निर्माण शाखा के प्रमुख थे।

यह शाखा परालौकिक शक्तियों से युद्ध के लिए नए-नए हथियारों का निर्माण करती थी और इनमें निरंतर सुधार कैसे हो, इस प्रक्रिया में भी लगी रहती थी।

देवदत्त शास्त्री ने इस अभियान के लिए एक विशेष प्रकार की गन तैयार की थी।

इस गन से एक बार फायर करने से सैकड़ों की संख्या में बाजरे से भी छोटे दानें निकलते थे, जो कारतूस की तरह फायर करने के बाद सामने के क्षेत्र में विस्तृत रूप से फैल जाते थे।

यह दानें एक विशेष धातु को फास्फोरस में मिलाकर बनाए जाते थे।

यह एक भी दाना अगर किसी पिशाच को छू जाता तो उसका खात्मा निश्चित था।

यह गन एक बार में सौ फायर कर सकती थी।

इसके अतिरिक्त विशेष प्रकार के चाबुकों का भी निर्माण किया गया था।

इस चाबुक की लंबाई करीब ढाई मीटर के लगभग थी, जिस पर किसी विशेष रसायन का लेप किया हुआ था।

इसका हत्था ठोस चांदी से बना हुआ था और उसमें पकड़ बनाने के लिए उंगलियों के आकार की जगह खुदी हुई थी।

इसमें एक बटन लगा हुआ था जिसको दबाने से चाबुक अंदर-बाहर किया जा सकता था।

इस चाबुक के छूने मात्र से किसी भी पिशाच का अंत निश्चित था।

छोटे-छोटे विशेष प्रकार के बम बनाए गए थे जिनको धरती पर पटकने पर अग्नि की लपट निकलती थी।

इसके अतिरिक्त किसी अलग प्रकार की धातु की तलवारों और अन्य आयुधों का निर्माण किया गया।

विशेष प्रकार की ऐनकों का निर्माण किया गया, जिसकी सहायता से पिशाचों को आसानी से देखा जा सकता था।

ये ऐनक साधारण ऐनकों की तरह नहीं थी। इनको आसानी से आंखों पर फिट किया जा सकता था जिससे उनका आंखों से गिरने का कोई खतरा नहीं रहे।

इसके अलावा ऐसे सूट तैयार किए गए थे जिनको धारण करने के बाद मनुष्य पर अग्नि का कुछ भी प्रभाव नहीं होता था।

सबसे महत्वपूर्ण वस्तु एक माला थी, जिसके गले में पहनने के पश्चात कोई भी पैशाचिक शक्ति मनुष्य पर प्रभाव नहीं डाल सकती थी।शोले निकल रहे थे।

अनेक पिशाचों की आकृति इतनी भयंकर थी कि उनको देखकर बहादुर से बहादुर व्यक्ति का कलेजा भी दहल जाए।

चारों तरफ पिशाच ही पिशाच नजर आ रहे थे जिनमें अनेक हाथ वाले और अनेक सिर वाले पिशाच शामिल थे।

कोई पिशाच जमीन पर रेंग रहा था, कोई हवा में उड़ रहा था तथा का किसी का आकार इतना विशाल था कि उसका सिर आकाश को छूता हुआ मालूम होता था।

पिशाचों के अति भयंकर व भांति-भांति के रूपों में प्रगट होने से युद्ध भूमि में एक भयानक वातावरण उत्पन्न हो गया था।

ऐसा लगता था कि वह पिशाच-सेना कुछ ही क्षणों में सबका विध्वंस कर देगी।

पिनाक ने भी अपने साथियों को आक्रमण करने का आदेश दे दिया।

उन्होंने फायर करने शुरू कर दिए जिससे हजारों-हजार पिशाचों का सफाया एक ही बार में होने लगा।

पिनाक और उसके साथियों ने अपने-अपने हथियारों का प्रयोग करते हुए लाखों पिशाचों को उनकी योनि से मुक्त करा दिया।

पिनाक का कोई साथी भूमि पर बम पटक रहा था, जिसकी ज्वाला से पिशाच जल रहे थे और चीख-चीख कर मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे।

कोई चाबुक को अपने हाथ में लेकर घुमा रहा था जिसके छूने मात्र से सैकड़ों पिशाचों का विध्वंस एक ही बार में हो जाता था।

बंदूक से निकले छोटे-छोटे दानों ने ऐसी तबाही करी कि पिशाच-सेना की कमर ही टूट गई।

शेष पिशाचों ने एक भयंकर अग्नि प्रगट कर पिनाक के दल पर फेंक दी।

लेकिन फायरप्रूफ सूट धारण करने की वजह से उन पर उस अग्नि का कोई असर नहीं हुआ।

अनेक पिशाचों ने अपनी माया का विस्तार किया।

वे भ्रम पैदा करने वाले विभिन्न रूप धरकर पिनाक और उनके साथियों के सम्मुख प्रगट हुए।

कोई पिशाच ब्राह्मण के वेश में, कोई सुंदर युवती के वेश में और कोई गाय के रूप में उनके सामने प्रगट हुए जिससे पिनाक की टीम उन पर आक्रमण न कर सके।

अनेक पिशाचों ने सिंह, बाघ और अन्य विशालाकाय जंतुओं के रूप में उन पर आक्रमण किया।

लेकिन पिनाक और उसके साथियों ने पिशाचों की माया से प्रभावित हुए बगैर समस्त पिशाच-सेना का उसके सेनापति लतारु व घाटी के अन्य पिशाचों सहित वध कर दिया।
 

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समस्त पिशाचों के समाप्त होने पर उनका राजा कामा तारु अब पिनाक के मुकाबले पर आया।

पिनाक और कामा तारु का युद्ध देखने लायक था।

कामा तारु के हाथों में विभिन्न प्रकार के आयुध प्रगट हो रहे थे जिनको वह पिनाक पर फेंक रहा था।

पिनाक भी अपनी विशेष तलवार से कामा तारु का मुकाबला करने लगे।

पिनाक एक हाथ में तलवार थी जिससे वह कामा तारू द्वारा फेंके गए अस्त्रों का सामना कर रहे थे।

उनके दूसरे हाथ में गन थी, जिससे वह दानों की बाढ़ कामा तारु पर छोड़ रहे थे।

उन दानों की भयंकर मार से पीड़ित होकर सम्मुख युद्ध के लिए कामा तारु पिनाक के समीप आया।

पिनाक ने गन छोड़कर दूसरे हाथ में चाबुक ले लिया।

अब उनके एक हाथ में तलवार थी और दूसरे हाथ में चाबुक।

कामा तारु के एक हाथ में एक अति भयंकर और विशालाकाय खड्ग और दूसरे हाथ में फरसा था।

दोनों ही महान योद्धा अपने अपने आयुधों का प्रयोग करते हुए सम्मुख युद्ध में तल्लीन हो गए।

दोनों योद्धा अपने-अपने पैंतरे चलकर एक-दूसरे को परास्त करने का यत्न कर रहे थे कि अचानक पिनाक ने अपने एक हाथ में मौजूद चाबुक से कामा तारु को जकड़ लिया तथा दूसरे हाथ में स्थित तलवार का प्रहार उसके हाथों पर किया जिससे उसके दोनों हाथ कटकर दूर जा गिरे।

हाथों के कट जाने पर कामा तारु ने उग्र होकर एक विशालाकाय बिच्छू का रूप धारण कर पिनाक पर आक्रमण कर दिया लेकिन पिनाक ने उसके भी दो टुकड़े कर दिए।

उस पर भी कामा तारु मरा नहीं।

वह एक भयावह विशाल परिंदे के रूप में बदल गया और पिनाक को अपने भयानक पंजों में जकड़ कर अपनी चोंच का प्रहार उनके उपर करने लगा।

परिंदे के रूप में किए गए कामा तारु के वारों से परेशान पिनाक ने अत्यंत ही क्रोधित होकर परिंदे की चोंच को काट डाला।

चोंच के काटे जाने पर कामा तारु अपने वास्तविक रूप में आकर भूमि पर गिर पड़ा।

पिनाक ने तुरंत ही उसे अपने दाएं हाथ में मौजूद चाबुक से जकड़ लिया तथा दूसरे हाथ से अपनी जेब से एक छोटी सी शीशी निकाली जिसमें एक विशेष प्रकार का रसायन भरा हुआ था।

पिनाक ने वह रसायन पिशाचराज कामा तारु पर उड़ेल दिया।

देव दत्त शास्त्री ने वह रसायन पिनाक को रवाना होने से पहले गुप्त रूप से देकर कहा था, "अगर पिशाचों के राजा या किसी अन्य पिशाच का वध किसी भी तरीके से संभव न हो सके तो इस रसायन का प्रयोग करना। इस रसायन से निश्चित रूप से उन पिशाचों का अंत होगा।"

वैसा ही हुआ, रसायन के पड़ते ही कामा तारु बुरी तरह से चिंघाड़ने लगा।

उसकी चिंघाड़ इतनी तेज थी कि चारों दिशाएं कम्पायमान हो उठी।

उसकी विरोध करने की शक्ति खत्म हो गई।

उसका आकार धीरे-धीरे घटकर छोटा होता गया और अंत में शून्य में विलीन हो गया।

इस प्रकार पिशाचों की घाटी को पिशाचों से मुक्त कर पिनाक और उसकी टीम उस बलात्कारी और कातिल (राजकुमार शक्ति देव) की तलाश करने लगी जिसको मारना या गिरफ्तार करना उनका प्रमुख उद्देश्य था।

पाठक गण सोचते होंगे कि इतना भयंकर युद्ध हुआ और राजकुमार शक्ति देव इसमें भाग लेने के लिए नहीं आया।

क्या उसने भयंकर युद्धनाद नहीं सुना?

क्या उसने कामा तारु की उन चिंघाडों को भी नहीं सुना, जिनकी वजह से चारों दिशाएं कम्पायमान ही उठी थी।

इसका उत्तर यह है कि राजकुमार शक्ति देव को पिशाचों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

वह उन्हें निकृष्ट योनि का प्राणी समझता था।

वह तो उन्हें उसी समय समाप्त कर डालता, जिस वक्तउसको घाटी के ऊपर से गमन करते हुए रोका गया था।

लेकिन कामा तारु के दीनता भरे वचनों को सुनकर उसने उस संहार को करने से स्वयं को वंचित कर लिया था।

दूसरा कारण थी मोना, वह एक बहुत ही बुद्धिमान नवयुवती थी।

जब मोना राजकुमार शक्ति देव द्वारा अपहरण कर पिशाचों की घाटी में लाई गई, तो वह समझ गई थी कि अपहरणकर्ता वही पुरुष था जिसने उससे पहले अनेक युवतियों का अपहरण कर उनका बलात्कार किया था तथा उनका दिल निकाल कर हत्या कर दी थी।

उल्लेखनीय है कि राजकुमार शक्ति देव ने पिशाचों की घाटी में अपनी शक्तियों के द्वारा एक सुसज्जित महल तैयार कर लिया था।

उसकी इच्छा मात्र से ही अनेक दास-दासियों की सृष्टि उसकी सेवा के लिए हो गई थी।

वह उस महल में बहुत ही उत्तम तरीके से रहता था और किसी भी तरह से पिशाचों पर आश्रित नहीं था।

मोना ने भी अपनी लीला का विस्तार किया। उसने स्वयं से पहले अपहरण की गई युवतियों की तरह कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया वरन् राजकुमार शक्ति देव के साथ सहयोग ही किया।

उसको मालूम था कि सहयोग न करने की दशा में बलात्कार तो उसका होना ही था।

फिर क्यों न उसका विश्वास जीता जाए ताकि समय आने पर मुक्ति की संभावना बन सके।

उसने अपने काम-बाणों द्वारा राजकुमार को दीवाना बना दिया और राजकुमार भी उसकी संगत को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहता था।

इसीलिए राजकुमार को यह पता होते हुए कि पिशाचों का विनाश हो रहा है और पिशाचराज कामा तारु भी मारा गया है। उसने मोना के मोहजाल में फंसकर बाहर जाना उचित नहीं समझा।

राजकुमार तो बाहर नहीं निकला लेकिन पिनाक की टीम उसके दरवाजे तक अवश्य पहुंच गई।

हत्यारे को खोजते-खोजते विराट को राजकुमार शक्ति देव का महल नजर आया।

उसने सोचा की इस महल को भी देख लिया जाए, कहीं हत्यारा इसी में मौजूद नहीं हो।

सभी व्यक्ति निर्विरोध महल में दाखिल हो गए।

चूंकि राजकुमार अपने-आप को दुनिया का सबसे शक्तिशाली मनुष्य समझता था, और सोचता था कि कोई भी प्राणी किसी भी प्रकार से उसे क्षति नहीं पहुंचा सकता इसीलिए महल पर कोई पहरा भी नहीं था।

उन्होंने एक कमरे में मोना के साथ एक व्यक्ति को देखा तो वे समझ गए कि वह कातिल को देख रहे थे।

पिनाक बेधड़क उस कमरे में घुस गए और राजकुमार को ललकारा।

उन सबको देखकर मोना समझ गई कि जिस मुक्ति के अवसर को वो तलाश कर रही थी, वह शायद आज आ गया है।

वह एक अदाकारा तो थी ही, इसलिए भयभीत होने का नाटक करते हुए राजकुमार से दूर हटकर, उसी कमरे के एक सुरक्षित कोने में पहुंच गई। पिनाक द्वारा राजकुमार को ललकारे जाने पर राजकुमार यह सोचकर क्रोधित हो उठा कि एक साधारण मनुष्य उसे ललकार रहा था।

उसने अत्यंत ही क्रोधित होकर, पिनाक से पूछा, "कौन हो तुम और पिशाचों द्वारा आरक्षित इस दुर्गम घाटी में पहुंचने का साहस कैसे किया?"क्या तुम्हे भगवती दक्षिण काली के पवित्र तेज से संपन्न, मुझ विजय गढ़ के राजकुमार शक्ति देव का जरा भी भय नहीं लगा?"

यह सुनकर पिनाक ने कहा, "मेरा नाम पिनाक है। मैं भारत देश का एक योद्धा हूं, जहां से तुमने लड़कियों का अपहरण कर उनकी हत्या की है।"

"मैं तुम्हारा अंत करने के लिए यहां आया हूं और मुझे तुम जैसे बलात्कारी और हत्यारे से भय खाने कि आवश्यकता भी क्या है।"

"और रहा तुम्हारे पिशाचों का प्रश्न, हम इस सम्पूर्ण घाटी को पिशाचों से मुक्त करवा चुके है", पिनाक ने कहा।

राजकुमार ने पुनः क्रोध वाले भाव में कहा, "हां, मैंने ही उन नवयुवतियों का बलात्कार किया है और उनका दिल निकाल कर खा लिया है।"

"तो तुम एक नरभक्षी भी हो, तब तो तुम्हारा वध करना मानवता के हित में होगा", पिनाक ने कहा।

"तो देखते है, कौन किसका वध करता है?", राजकुमार शक्ति देव ने हंसते हुए कहा।

अब राजकुमार का क्रोध यह सोचकर खत्म हो गया था कि इन भूनगे समान मनुष्यों को तो उसके क्रोध को भी प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।

राजकुमार शक्ति देव एक साधारण भाव से उठकर पिनाक और उसके साथियों के साथ युद्ध करने के लिए तत्पर हो गया।

उसने कहा, "तुम एक साथ युद्ध करोगे या अलग-अलग मृत्यु का शिकार बनोगे?"

पिनाक और उसके साथी महल के अंदर प्रवेश करने से पहले ही आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से लैस हो चुके थे।

पिनाक भी एक महाबली योद्धा थे, वह प्राचीन और आधुनिक युद्ध कलाओं के पूर्ण ज्ञाता थे।

उन्होंने राजकुमार से कहा, "मैं अकेला ही तुम्हारे लिए पर्याप्त हूं और तुम्हे मन-पसंद अस्त्र-शस्त्र लेने की छूट प्रदान करता हूं।"

"तुम भूनगे को मसलने के लिए मुझ जैसे वीर को किसी अस्त्र-शस्त्र की जरूरत है?", राजकुमार ने व्यंगात्मक अंदाज में प्रश्न किया।

इसके उपरांत दोनों महान योद्धा एक घोर युद्ध में सलंग्न हो गए।

पिनाक और शक्ति देव, दोनों ने कोई आयुध नहीं लिया और वे केवल अपने हाथ-पैरों से ही युद्ध कर रहे थे।

राजकुमार पिनाक को एक भूनगे के समान समझता रहा था, लेकिन जब उसे पिनाक के साथ मुकाबला करना पड़ा तो उसके पसीने छूट गए।

हालांकि राजकुमार एक महान योद्धा था और वह प्राचीन युद्ध कला का परम ज्ञाता था, लेकिन पिनाक का तो दोनों ही, प्राचीन और आधुनिक, युद्ध कलाओं पर पूर्ण अधिकार था।दोनों ही योद्धा बड़े ही विक्रम से युद्ध करने लगे।

कुछ देर तक तो दोनों का पलड़ा बराबर रहा किन्तु धीरे-धीरे राजकुमार शक्ति देव का पलड़ा कमजोर पड़ने लगा।

इसके उपरांत तो पिनाक ने राजकुमार को लात-घुंसों की ऐसी मार लगाई कि राजकुमार की आत्मा त्राहि-त्राहि करने लगी।

उसने गुस्से में आकर अपनी तलवार उठा ली और पिनाक पर एक जबरदस्त वार किया।

लेकिन पिनाक भी सतर्क थे, उन्होंने राजकुमार के वार को बचाकर खुद भी तलवार निकाल ली।

तलवारों के युद्ध में भी पिनाक राजकुमार पर हावी रहे।

राजकुमार के जिस्म पर कई गहरे जख्म आए परंतु पिनाक को कुछ साधारण जख्म ही लगे।

अंत में पिनाक ने राजकुमार को नीचे गिराकर अपनी तलवार उसका वध करने के लिए उठाई।
ज्योहिं पिनाक ने राजकुमार को मारने के लिए तलवार उठाई, यकायक राजकुमार शक्ति देव को भान हुआ कि वह तो भगवती दक्षिण काली के तेज से संपन्न है।

राजकुमार स्वयं पर क्रोधित हुआ कि एक साधारण मनुष्य से लड़ते वक्त वह इस बात को क्यों भूल गया, वरना इतनी मार नहीं खानी पड़ती।

भगवती दक्षिण काली के तेज की ध्यान में आते ही राजकुमार एक नए जोश से उठा और उसने भगवती के तेज का संघान पिनाक के वध के लिए कर दिया।

राजकुमार के स्मरण करते ही एक महाशक्ति उसके हाथों में प्रगट हुई जिसको उसने पिनाक पर छोड़ दिया।

उस शक्ति का कोई तोड़ पिनाक के पास नहीं था।

दरअसल उससे पहले पिनाक ने भगवती के तेज को धारण करने वाले किसी भी प्राणी से मुकाबला नहीं किया था।

राजकुमार द्वारा छोड़ी गई महाशक्ति के आघात से पिनाक मृतप्राय अवस्था में भूमि पर गिर पड़े।

----

पिनाक ने तंत्र-विज्ञान की शिक्षा महान तांत्रिक स्वामी अवधेशानंद जी महाराज से ली थी।

अवधेशानंद जी महाराज तंत्र-विज्ञान के महान पंडित थे।

अन्य तांत्रिकों के कठोर स्वभाव के विपरित वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे और सदैव लोक-कल्याण के कार्यों में सलंग्न रहते थे।

उनको कोई लोभ या लालच छू भी नहीं गया था।

उनके पास श्रद्धालुओ, जिज्ञासुओं तथा पीड़ितों की भीड़ पूरे दिन लगी रहती थी।

ऋषिकेश के समीप उनका विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ आश्रम था। इस आश्रम के नाम कई सौ बीघे जमीन भी थी।

जब उनका अंतिम समय आया तो उन्होंने पिनाक को अपने पास बुलाया।

पिनाक भी बिना देरी किए नई दिल्ली से चलकर उनके आश्रम में पहुंच गए।

अवधेशानंद जी महाराज के समीप पहुंच कर पिनाक ने उनको साष्टांग दंडवत किया, उनकी प्रदक्षिणा की तथा उसको बुलाने का कारण पूछा।

अवधेशानंद जी महाराज ने कहा, "पुत्र पिनाक, मेरा अंतिम समय नजदीक आ गया है, मैं फ्लां तिथि को अपना चोला (हिन्दू धर्म में मान्यता है कि शरीर के अंदर एक अविनाशी आत्मा निवास करती है, जब किसी शरीरधारी की मृत्यु होती है तो उसका शरीर मरता है न कि उसके अंदर रहने वाली अविनाशी आत्मा। यह आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर, नए शरीर को धारण करती है, जैसे कोई मनुष्य पुराने वस्त्रों का त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, इसी को चोला छोड़ना कहते है) छोड़ रहा हूं।"

स्वामीजी की बात सुनकर, पिनाक की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने रुंधे गले से कहा, "लेकिन गुरुजी, आप तो अपने तपोबल से लंबे समय तक जीवित रह सकते है, फिर चोला क्यों छोड़ रहे है?"
पुत्र, क्या तुम नहीं जानते कि विधि के विधान में कोई भी हस्तक्षेप अनुचित है।"

"जानता हूं गुरुदेव, लेकिन आपसे बिछुड़ने के भय से दिल बैठा जा रहा है", पिनाक ने कहा।

"पुत्र, तुम भी क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो।"

"तुम्हे मैंने तंत्र-विज्ञान की महान शिक्षा इसलिए नहीं दी कि तुम एक साधारण मानव की तरह व्यवहार करो", अवधेशानंद जी महाराज ने पिनाक को प्यार भरे भाव से डांटते हुए कहा।
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दिसंबर की भयंकर सर्दियां पड़ रही थी। २० दिसंबर की सुबह वातावरण में अन्य दिनों की भांति बहुत ज्यादा सर्दी थी और कोहरा भी घना था।

रुस्तम भाई का नियम था कि वह सुबह छः बजे अपना बिस्तर छोड़ देते थे। उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी प्राय: सात बजे सोकर उठती थी।

अन्य दिनों की भांति उस दिन भी वे छ: बजे नींद से जागे।

उन्होंने धीरे से रजाई को हटाने का प्रत्यन किया ताकि उनकी पत्नी की नींद न खुल जाए तो उन्होंने रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया।

रुस्तम भाई ने थोड़ा विचलित होकर टेबल लैंप का स्विच ऑन किया और रजाई को हटाकर अपनी पत्नी की ओर देखा तो चीख मार कर बेहोश हो गए।

रुस्तम भाई के निजी सेवक भवानी ने चीख सुनकर उनके कमरे में प्रवेश किया, तो पाया कि वे बेहोशी की हालत में है और उनके पास बिस्तर में किसी सुंदर नवयुवती की लाश पड़ी हुई है।

भवानी ने सबसे पहले रुस्तम भाई के फैमिली डॉक्टर रोहित सिंगला को फोन किया फिर पुलिस स्टेशन में फोन कर घटना की जानकारी दी।

रुस्तम भाई भारत के प्रमुख दस उद्योगपतियों में एक थे, केवल ३२ साल की उम्र में उन्होंने यह गौरव हासिल कर लिया था।

इतने बड़े उद्योगपति के घर से इस तरह के समाचार मिलने पर सभी जगह हड़कंप मच गया।

रुस्तम भाई के अनुसार वह रात को १० बजे अपनी पत्नी के साथ सोए थे। जब सुबह ६ बजे वह नींद से जागे तो रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया। उन्होंने टेबल लैंप ऑन करके देखा तो उनकी पत्नी अपने स्थान पर नहीं थी वरन् उसकी जगह किसी अन्य महिला का शव पड़ा हुआ था और इसके बाद वह बेहोश हो गये।

उस महिला के शव और रुस्तम भाई की पत्नी के फोटोग्राफ्स दिल्ली स्थित क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो व पूरे भारत वर्ष की पुलिस को वितरित कर दिए गए।

शव की पहचान मधु दास नामक प्रयागराज निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता तौर पर हुई।

तीन दिन पहले वह प्रयागराज से अचानक लापता हो गई थी।

मधु दास की मृत्यु किसी तेज धार वाले औजार से उसका दिल निकाल लिए जाने के कारण हुई।

उसे मारने से पहले उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया था।

उसको रुस्तम भाई के बिस्तर में मौत के घाट नहीं उतारा गया था बल्कि किसी अन्य जगह उसका कत्ल करके लाश को वहां पहुंचा दिया गया था।

रुस्तम भाई की पत्नी कहां गायब हो गई यह नहीं पता चल सका।

अभी इस केस की जांच चल ही रही थी कि इसी प्रकार के अन्य मामले ने पूरे भारत में हंगामा कर दिया।

इस घटना के केवल तीन दिन पश्चात एक रात को प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता दिवाकर अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी के साथ अपने आवास पर सोए।

सुबह उनकी नींद खुली तो उन्हें बिस्तर में अपनी पत्नी के स्थान पर रुस्तम भाई की पत्नी का शव प्राप्त हुआ।

पुलिस ने इस घटना के जो परिणाम निकाले, वह किसी भी प्रकार से रुस्तम भाई के साथ घटित घटना से भिन्न नहीं थे।

इसके बाद तो ऐसी घटनाओं का तांता ही लग गया।

कई व्यक्तियों की पत्नियां गायब हो गई और उनकी लाश दूसरों के बिस्तर में पाई गई।

अब तो पूरे देश में कयास लगाए जाने लगे कि कौन सी महिला गायब होगी और उसका शव किसके बिस्तर में पाया जाएगा।

अब तक विभिन्न प्रदेशों में दसियों हत्याएं हो चुकी थी और मरने वाली सभी महिलाएं अत्यंत खूबसूरत और जवान थी।

केन्द्र सरकार ने मामले का संज्ञान लिया और इसे सीबीआई को सौंप दिया।

सीबीआई ने समस्त देश से १०० सर्वाधिक सुंदर युवतियों का चयन कर उनकी चौबीस घंटे निगरानी और सुरक्षा का प्रबंध किया। यहां तक कि उनके बैडरूम में भी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए।

इसके बाद जो अपहरण हुए, उनसे सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि अपहरणकर्ता सिर्फ एक ही व्यक्ति है। वह छ: फीट से ऊपर के कद का, सुंदर चेहरे वाला और मजबूत कद-काठी का इंसान है।

उसका पूरा शरीर पर एक विशेष प्रकार की आभा से चमकता है।

वह अचानक प्रगट होकर बहुत तेजी के साथ महिला को उठा लेता है और उसकी जगह किसी अन्य औरत की लाश को रख देता है।

वह उस जगह अचानक कैसे प्रगट हो जाता है, नहीं पता चला।

उसकी पहचान स्थापित नहीं हो सकी।

यह मालूम नहीं चल सका कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है या वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह कार्य करता है।

हत्याओं के इस तरीके से यह समझ में आता था कि हत्यारा किसी मानसिक विकृति का शिकार है, परन्तु वह उन महिलाओं का दिल निकाल कर क्या करता है, यह भी नहीं मालूम हुआ।

अपहरण करने के बाद अपहरणकर्ता उन युवतियों को कहां ले जाता है, नहीं पता चल सका।

हत्यारे का लक्ष्य केवल सुंदर युवतियां ही थी, चाहे वे शादीशुदा हो या कुंवारी।

सीबीआई अपहरण और हत्याओं को नहीं रोक सकी, क्योंकि अपहरणकर्ता अचानक प्रगट हो
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दिसंबर की भयंकर सर्दियां पड़ रही थी। २० दिसंबर की सुबह वातावरण में अन्य दिनों की भांति बहुत ज्यादा सर्दी थी और कोहरा भी घना था।

रुस्तम भाई का नियम था कि वह सुबह छः बजे अपना बिस्तर छोड़ देते थे। उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी प्राय: सात बजे सोकर उठती थी।

अन्य दिनों की भांति उस दिन भी वे छ: बजे नींद से जागे।

उन्होंने धीरे से रजाई को हटाने का प्रत्यन किया ताकि उनकी पत्नी की नींद न खुल जाए तो उन्होंने रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया।

रुस्तम भाई ने थोड़ा विचलित होकर टेबल लैंप का स्विच ऑन किया और रजाई को हटाकर अपनी पत्नी की ओर देखा तो चीख मार कर बेहोश हो गए।

रुस्तम भाई के निजी सेवक भवानी ने चीख सुनकर उनके कमरे में प्रवेश किया, तो पाया कि वे बेहोशी की हालत में है और उनके पास बिस्तर में किसी सुंदर नवयुवती की लाश पड़ी हुई है।

भवानी ने सबसे पहले रुस्तम भाई के फैमिली डॉक्टर रोहित सिंगला को फोन किया फिर पुलिस स्टेशन में फोन कर घटना की जानकारी दी।

रुस्तम भाई भारत के प्रमुख दस उद्योगपतियों में एक थे, केवल ३२ साल की उम्र में उन्होंने यह गौरव हासिल कर लिया था।

इतने बड़े उद्योगपति के घर से इस तरह के समाचार मिलने पर सभी जगह हड़कंप मच गया।

रुस्तम भाई के अनुसार वह रात को १० बजे अपनी पत्नी के साथ सोए थे। जब सुबह ६ बजे वह नींद से जागे तो रजाई में कुछ गीलापन महसूस किया। उन्होंने टेबल लैंप ऑन करके देखा तो उनकी पत्नी अपने स्थान पर नहीं थी वरन् उसकी जगह किसी अन्य महिला का शव पड़ा हुआ था और इसके बाद वह बेहोश हो गये।

उस महिला के शव और रुस्तम भाई की पत्नी के फोटोग्राफ्स दिल्ली स्थित क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो व पूरे भारत वर्ष की पुलिस को वितरित कर दिए गए।

शव की पहचान मधु दास नामक प्रयागराज निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता तौर पर हुई।

तीन दिन पहले वह प्रयागराज से अचानक लापता हो गई थी।

मधु दास की मृत्यु किसी तेज धार वाले औजार से उसका दिल निकाल लिए जाने के कारण हुई।

उसे मारने से पहले उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया था।

उसको रुस्तम भाई के बिस्तर में मौत के घाट नहीं उतारा गया था बल्कि किसी अन्य जगह उसका कत्ल करके लाश को वहां पहुंचा दिया गया था।

रुस्तम भाई की पत्नी कहां गायब हो गई यह नहीं पता चल सका।

अभी इस केस की जांच चल ही रही थी कि इसी प्रकार के अन्य मामले ने पूरे भारत में हंगामा कर दिया।

इस घटना के केवल तीन दिन पश्चात एक रात को प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता दिवाकर अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी के साथ अपने आवास पर सोए।

सुबह उनकी नींद खुली तो उन्हें बिस्तर में अपनी पत्नी के स्थान पर रुस्तम भाई की पत्नी का शव प्राप्त हुआ।

पुलिस ने इस घटना के जो परिणाम निकाले, वह किसी भी प्रकार से रुस्तम भाई के साथ घटित घटना से भिन्न नहीं थे।

इसके बाद तो ऐसी घटनाओं का तांता ही लग गया।

कई व्यक्तियों की पत्नियां गायब हो गई और उनकी लाश दूसरों के बिस्तर में पाई गई।

अब तो पूरे देश में कयास लगाए जाने लगे कि कौन सी महिला गायब होगी और उसका शव किसके बिस्तर में पाया जाएगा।

अब तक विभिन्न प्रदेशों में दसियों हत्याएं हो चुकी थी और मरने वाली सभी महिलाएं अत्यंत खूबसूरत और जवान थी।

केन्द्र सरकार ने मामले का संज्ञान लिया और इसे सीबीआई को सौंप दिया।

सीबीआई ने समस्त देश से १०० सर्वाधिक सुंदर युवतियों का चयन कर उनकी चौबीस घंटे निगरानी और सुरक्षा का प्रबंध किया। यहां तक कि उनके बैडरूम में भी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए।

इसके बाद जो अपहरण हुए, उनसे सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि अपहरणकर्ता सिर्फ एक ही व्यक्ति है। वह छ: फीट से ऊपर के कद का, सुंदर चेहरे वाला और मजबूत कद-काठी का इंसान है।

उसका पूरा शरीर पर एक विशेष प्रकार की आभा से चमकता है।

वह अचानक प्रगट होकर बहुत तेजी के साथ महिला को उठा लेता है और उसकी जगह किसी अन्य औरत की लाश को रख देता है।

वह उस जगह अचानक कैसे प्रगट हो जाता है, नहीं पता चला।

उसकी पहचान स्थापित नहीं हो सकी।

यह मालूम नहीं चल सका कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है या वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह कार्य करता है।

हत्याओं के इस तरीके से यह समझ में आता था कि हत्यारा किसी मानसिक विकृति का शिकार है, परन्तु वह उन महिलाओं का दिल निकाल कर क्या करता है, यह भी नहीं मालूम हुआ।

अपहरण करने के बाद अपहरणकर्ता उन युवतियों को कहां ले जाता है, नहीं पता चल सका।

हत्यारे का लक्ष्य केवल सुंदर युवतियां ही थी, चाहे वे शादीशुदा हो या कुंवारी।

सीबीआई अपहरण और हत्याओं को नहीं रोक सकी, क्योंकि अपहरणकर्ता अचानक प्रगट हो
 

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लेकिन गुरुजी....,", पिनाक ने कुछ कहना चाहा।

परंतु स्वामीजी ने पिनाक को बीच में ही रोककर कहा, "मैंने तुम्हे व्यर्थ के वाद-विवाद के लिए यहां नहीं बुलाया, अपनी आज्ञा मनवाने के लिए बुलाया है।"

"आपकी आज्ञा पर तो मैं जान भी दे सकता हूं गुरुजी", पिनाक ने कहा।

"दरअसल मैं तुम्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना चाहता हूं, मेरे उपरांत मेरी गद्दी के तुम ही वारिस होगे", स्वामी जी ने कहा।

निश्चित तिथि को स्वामी जी ने अपना शरीर त्याग दिया।

पिनाक ने मृत शरीर का विधिवत अंतिम संस्कार किया।

इसअवसर पर स्वामी जी के गुरु भाई और अनेक शिष्य आश्रम में पधारे।

सभी ने धूमधाम से आश्रम के परिसर की भूमि में उनकी मृत देह को दबा दिया।

हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि साधू-सन्यासियों के मृत शरीर को अग्नि नहीं दी जाती वरन् उनको भूमि में दबा दिया जाता है।

उसके उपरांत एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें पूरे भारतवर्ष और विदेशों से भी साधु-सन्यासी और बहुत से महत्वपूर्ण व्यक्ति उपस्थित हुए। जिनमें बलैक हॉक संस्था के प्रमुख अजय गुप्ता भी थे।

पिनाक में सभी का यथायोग्य स्वागत-सत्कार किया।

इस के उपरांत सभी प्रमुख साधुओं की एक सभा हुई, जिसमें स्वामी जी के गुरु भाई और प्रमुख शिष्य भी उपस्थित थे।

उस सभा के दौरान सभी ने एकमत से पिनाक को स्वामीजी का उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया।

स्वामी जी के मृत शरीर को जिस जगह भूमि में दबाया गया था, वहां पिनाक ने एक विशाल और भव्य मढ़ी का निर्माण करवाया।

आश्रम के प्रबंधक अग्निहोत्री को पिनाक ने वहां कार्यरत सभी वैतनिक और अवैतनिक सेवकों से कार्य करवाने का अधिकार सौंप दिया।

आश्रम परिसर में एक अति प्राचीन शिवालय भी था।

इस शिवालय में पश्चिमाभिमुख शिवलिंग स्थापित था और इस शिवालय के अंदर या बाहर कहीं भी महादेव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित नहीं थी।

इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में मरते वक्त स्वामी जी ने पिनाक से कहा था, "यहां बैठकर प्रार्थना करने पर मनुष्य को अनेक सिद्धियां प्राप्त होती है, जिनका विवरण तुम्हें समय-समय पर पता चलता रहेगा।"

पिनाक को यहां स्थाई रूप से नहीं रहना था इसलिए उसने मंदिर में पूजा इत्यादि के लिए एक विद्वान पुजारी को नियुक्त कर दिया, जिसका कार्य मंदिर के अतिरिक्त मढ़ी की देखभाल करना भी था।
 

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पाठकों को याद होगा कि पिनाक राजकुमार की शक्ति के आघात से मृतप्राय अवस्था में भूमि गिर पड़ा था।

जब पिनाक को होश आया तो उसने अपने सम्मुख अजय गुप्ता और भव्य व्यक्तित्व के एक साधु को देखा।

पिनाक को होश में आता देखकर अजय गुप्ता का चेहरा खिल उठा और साधु के मुखमंडल पर भी एक करुणामयी मुस्कान दिखाई दी।

पिनाक को होश में आने पर उसे अपने साथ घटित हुआ घटनाक्रम याद आया तो उसके मस्तिष्क में अनेक प्रश्न घूमने लगे, जैसेकि "राजकुमार की शक्ति के आघात से वह जीवित कैसे बच गया?"

"उसके साथियों और मोना के साथ क्या हुआ?"

"यह कौन सी जगह है और वह यहां कैसे पहुंच गया?"

"यह साधु महाराज कौन है?" इत्यादि

प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए पिनाक ने अजय गुप्ता की ओर प्रश्न भरी नजरों से देखा।

पिनाक की प्रश्न भरी नजरों को समझते हुए अजय गुप्ता ने कहा कि यह साधु महाराज
महान तांत्रिक और योगाचार्य भैरवानंद है।

"इनका संबंध प्राचीन समय के एक राज्य विजयगढ़ से है।"

"यह वहां के महाराज विक्रम देव के कुलगुरू है।"

"इन्होंने ही महाराज विक्रम देव के पुत्र राजकुमार शक्ति देव के स्वास्थ्य वर्धन के लिए उसे आधुनिक समय के उस क्षण में भेजा था जब एक अघोरी महादेवी दक्षिण काली का तेज प्राप्त कर रहा था।"

"परंतु राजकुमार शक्ति देव ने वह तेज अघोरी के ग्रहण करने से पहले ही बीच में पहुंचकर दस्युवृति द्वारा स्वयं ग्रहण कर लिया।"

"जिससे वह अतिशक्तिशाली और अविजीत हो गया।"

"समय चक्र को भेदते हुए प्राचीन समय से इस आधुनिक समय में इनका पदार्पण, तुम्हारी जान बचाने और राजकुमार शक्ति देव को अपराध करने से कैसे रोका जाए, इसलिए हुआ है।"

पाठक गण जब राजकुमार शक्ति देव पिनाक पर महादेवी दक्षिण काली के तेज का आघात कर रहा था तो उस समय भैरवानंद अपने दिव्य चक्षुओं से समस्त घटनाक्रम देख रहे थे।

उन्होंने पिनाक और उसके साथियों की जान बचाने के लिए तुरंत ही समय के उस पीड़ादायक क्षण में प्रवेश किया और अपने योग बल से मोना के अतिरिक्त अन्य सभी व्यक्तियों को पिनाक के आश्रम में पहुंचा दिया।

पिनाक 10 दिनों तक बेहोश रहा।

इस दौरान भैरवानंदजी ने ही इनकी परिचर्या कीउन्होंने पिनाक के घाव पर लगाने के लिए मंत्रपुरित जड़ी बूटियों का एक विशेष लेप तैयार किया।

भैरवानंदजी जब तक पिनाक को होश नहीं आया तब तक दिन-रात जागकर महादेवी दक्षिण काली के महामंत्र का जप करते रहे।

अजय गुप्ता से समस्त वस्तुस्थिति जानने के बाद, पिनाक ने कृतज्ञ नजरों से भैरवानंदजी की तरफ देखा जैसे उसकी जान बचाने के लिए उनका धन्यवाद करना चाहते हो।

भैरवानंदजी ने पिनाक की आंखों की भाषा को समझते हुए कहा, "वत्स, तुम्हारी जान बचाने में मेरी कोई विशेष भूमिका नहीं है।"

"असल में स्वामी अवधेशानंदजी महाराज को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त थी।"

"उस महान पुण्यात्मा के उत्तराधिकारी होने के नाते वह कृपा तुम्हें भी प्राप्त है।"

इसीलिए भगवती दक्षिण काली के तेज की शक्ति ने, शिव की कृपा प्राप्त किसी प्राणी का वध करना उचित नहीं समझा और तुम्हारी जान बच गई।"

"लेकिन स्वामीजी आपने उस नराधम राजकुमार को वर्तमान समय में क्यों पहुंचा दिया, जिससे वो भगवती के तेज को प्राप्त कर सका?", पिनाक की जिज्ञासा थी।

भैरवानंदजी ने कहा, "यह समस्त कार्य विधि के विधान के अनुसार ही हो रहे है।"

"महादेवी दक्षिण काली ने शक्ति देव के जन्म का वरदान देते समय उसके पिता महाराज विक्रम देव से कहा था "यह मेरे आशीर्वाद के फलस्वरुप जन्म लेगा अतः समय आने पर इसको मेरी शक्तियों के अंश की प्राप्ति भी होगी, लेकिन उन शक्तियों के दुरुपयोग के कारण मेरे ही भक्त के हाथों मृत्यु को प्राप्त होगा।"

"इसी वरदान को पूरा करने के लिए ही भगवती ने उसे अपने तेज को धारण करने दिया वरना महादेवी के वरदान को कोई उसके भक्त से कैसे छीन सकता है", स्वामीजी ने आगे कहा।

"लेकिन स्वामीजी आपने मोना को उस दुष्ट राजकुमार की दया पर क्यों छोड़ दिया", पिनाक ने पुनः जिज्ञासा प्रस्तुत की।

"वह इस हेतु वत्स, एक तो मोना को अगर मैं उसके नियंत्रण से मुक्त करा देता, तो वह पुनः उसका अपहरण कर सकता था।"

"राजकुमार महादेवी के तेज को धारण करने के बाद इतना बलशाली हो गया है कि तीनों लोकों में उसे कोई भी मोना का अपहरण करने से नहीं रोक सकता था।"

"दूसरे मोना के प्रति वह इतना कामांध हो गया है कि अन्य लड़कियों के अपहरण के बारे में नहीं सोच रहा।"

"इसके अतिरिक्त मैंने घाटी से वापसी के दौरान मोना से मुलाकात कर उसे अभय प्रदान किया है कि जब भी उसको मेरी जरूरत पड़ेगी, मैं उपस्थित ही जाऊंगा", स्वामीजी ने कहा।

"लेकिन भगवन्, अब उस अधम राजकुमार का मुकाबला कैसे किया जाए", पिनाक ने भैरवानंदजी से पूछा।

"इसके लिए भी वत्स, तुम्हे ही प्रयत्न करना होगा", स्वामीजी ने कहकिंतु महाराज, उसने तो मुझे बुरी तरह परास्त कर, मरणासन्न अवस्था में छोड़ दिया था।"

"भगवती के तेज को धारण करने वाले उस दुष्ट से मेरा मुकाबला तो लाठी के साथ तिनके की लड़ाई के समान है", पिनाक ने कहा।

"उसका उपाय भी मेरे पास है", स्वामीजी ने गंभीर भाव से कहना आरंभ किया।

"दरअसल हिमालय में स्थित किसी गुप्त स्थान में १०० से ज्यादा गुफ़ाएं है।"

"प्रत्येक गुफा में भगवती दक्षिण काली की सिद्ध प्रतिमाएं विराजमान है।"

"समस्त भारत वर्ष के अतिरिक्त विदेशों से भी तंत्र साधक वहां तंत्र साधना करने जाते है।"

'मैंने भी एक बार उस स्थान पर भगवती की साधना की है।"

"भगवती के प्रत्येक भक्त की यही इच्छा होती है कि जीवन में एक बार वहां जाकर मां का आशीर्वाद प्राप्त करे।"

"कौन साधक उस गुप्त स्थान पर जाकर भगवती की कृपा प्राप्त करने का अधिकारी है, उसका निर्णय भगवती दक्षिण काली स्वयं करती है।"

"भगवती के अनन्य भक्तों के द्वारा उस स्थान पर जाने की प्रार्थना करने पर उनके पास सोने का एक प्राचीन सिक्का स्वयं प्रगट होता है।"

"उस सिक्के को कोई चुरा नहीं सकता, वह गुम भी नहीं सकता, किसी अवस्था में गुम होने पर वह पुनः साधक के पास प्रगट हो जाता है।"

"यह सिक्का एक तरह से उस जगह जाने और साधना करने का अनुमति पत्र है।"

"उस सिक्के के बगैर कोई भी प्राणी इस गुप्त स्थान में प्रवेश नहीं कर सकता।"

"वह गुप्त स्थान हिमालय पर्वत श्रृंखला में कहीं स्थित है, परंतु बिल्कुल सही स्थान आज तक किसी को भी नहीं पता चल सका है।"

"वहां पहुंचने के लिए वह सिक्का स्वयं मार्ग निर्देशन करता है।"

"वहां के मार्ग को कोई याद नहीं रख सकता, यहां तक कि एक बार जाने वाला व्यक्ति दूसरी बार स्वयं नहीं जा सकता।"

"इस स्थान के प्रबंधकर्ता भी है, वे मनुष्य है या किसी अन्य लोक के प्राणी, कोई नहीं जानता, उन्हें आज तक किसी ने भी नहीं देखा।" । साधकों की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति वे प्रबंधकर्ता ही करते है। परंतु साधकों को ये कार्य अपने आप होते लगते है।"

इस प्रकार उस गुप्त स्थान का विस्तृत विवरण देने के बाद, स्वामीजी ने कहा, "वत्स, तुम्हे उस स्थान पर जाकर भगवती की कृपा प्राप्त करनी होगी जिससे तुम उस नराधम का मुकाबला करने में सक्षम हो जाओ।"

इसके उपरांत स्वामीजी ने आगे कहा, "अब तुम भगवती दक्षिण काली से प्रार्थना करो कि वह तुम्हे उस गुप्त स्थान पर जाने का अनुमति-पत्र प्रदान करें।"पिनाक की प्रार्थना भगवती दक्षिण काली ने स्वीकार कर ली और उनको अनुमति-पत्र प्राप्त हो गया।

इस समय वह हिमालय में स्थित उस गुप्त स्थान की एक गुफा में भगवती दक्षिण काली के बीज मंत्र 'क्रीं' का मानसिक जप करते हुए उनकी तपस्या में तल्लीन थे।

वह स्थान ही ऐसा था जहां भगवती की कृपा आसानी से प्राप्त हो जाती थी।

दरअसल वही मनुष्य उस जगह तक पहुंच पाते थे, जिन पर महादेवी की पहले से ही कृपा होती थी।

या कोई समाज हित का ऐसा कार्य जो अत्यंत दुष्कर हो, और मानवीय प्रयासों से उसे पूर्ण नहीं किया जा सके तथा उसे पूरा करने के लिए दैवीय शक्ति की आवश्यकता हो तो उस दुष्कर कार्य को पूरा करने का निश्चय करने वाले व्यक्ति को उस स्थान पर पहुंचने का अनुमति-पत्र प्राप्त होता था।

किंतु पिनाक को भगवती की तपस्या कई माह तक करनी पड़ी।

तपस्या की शुरुआत में वह बैठ कर तपस्या करते और दिन में एक बार भोजन करते थे।

इसके उपरांत उन्होने खड़े होकर और कंदमूल खाकर तपस्या की।

जब भी भगवती प्रसन्न नहीं हुई तो, पिनाक ने केवल वायु का सेवन करते हुए एक पैर पर खड़े होकर भगवती दक्षिण काली की आराधना की।

जैसा कि ऊपर भी बताया गया है, समस्त तपस्या के दौरान पिनाक महादेवी दक्षिण काली के बीज मंत्र 'क्रीं' का मानसिक जप करते रहे थे।

वह बारम्बार भगवती से प्रार्थना करते, "हे मां दक्षिण कालिके, मुझ पर प्रसन्न होकर, मुझे दर्शन देकर कृतार्थ करें।"

और अंत में एक दिन महादेवी पिनाक के सम्मुख प्रगट हो गई।

पिनाक ने तुरंत भगवती के चरणों में गिरकर साष्टांग दंडवत किया।

भगवती दक्षिण काली ने पिनाक को कहा, "हे वत्स, मैं तुम पर प्रसन्न हूं, बताओ तुम्हे क्या वरदान चाहिए।"

पिनाक ने पहले तो बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में देवी की स्तुति की तथा उसके उपरांत बहुत ही दीन शब्दों में भगवती से कहा, "हे माते, आपके दर्शनों के उपरांत कोई भी अभिलाषा शेष नहीं रहती, किंतु जनकल्याण हेतु आपसे एक वरदान प्राप्त करना चाहता हूं।"

"निर्भय होकर मांगों पुत्र, जो तुम्हे चाहिए, वह तुम्हे अवश्य प्राप्त होगा", भगवती ने कहा।

"मां, आप तो प्रत्येक प्राणी के दिलों के भेद जानती हो, कोई भी रहस्य आप से छुपा हुआ नहीं है इसलिए मांगने में संकोच होता है", पिनाक ने कहा।

इस पर भगवती ने कहा, "पुत्र पिनाक, क्या कोई पुत्र भी माता के सम्मुख मांगने में संकोच करता है?"
निसंकोच होकर कहो, क्या वरदान चाहिए।"

"हे माते भगवती, हे विशाल हृदय की स्वामिनी, हे भक्तों को अभय प्रदान करने वाली देवी, आप के तेज से संपन्न राजकुमार शक्ति देव नाम का एक मानव, आपकी शक्ति के मद में बहुत उपद्रव करता घूम रहा है।"

"उसने अनेक युवतियों से बलात्कार कर तथा उनका दिल निकाल कर खा लिया है।"

"मेरी उससे एक बार मुठभेड़ भी हो चुकी है, जिसमें मेरा जीवन केवल आपकी कृपया से ही सुरक्षित रह सका।"

"हे माता, मुझ अधम पर कृपा करके आप मुझसे राजकुमार शक्ति देव के अंत का उपाय कहिए", पिनाक ने भगवती से प्रार्थना की।

"वत्स पिनाक, मेरा तेज धारण करने के बाद उसका अंत करना संभव नहीं है और उसे परास्त भी नहीं किया जा सकता।"

"अगर वह मेरी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करता तो हजारों वर्ष तक अक्षय यौवन का स्वामी होकर जीवन का उपभोग करता, किंतु अब भी सैकड़ों वर्ष तक उसके जीवन का अंत नहीं हो सकता", महादेवी ने कहा।क्या उसका अंत संभव नहीं है, मां?" और क्या वह अधम प्राणी ऐसे ही अपराध करता रहेगा?" पिनाक ने भगवती से प्रश्न किए।

"वत्स, मैंने ऐसा तो नहीं कहा, प्रत्येक दुष्ट प्राणी का वध अवश्य होता है, उसका भी होगा।"

"राजकुमार का अंत तो समय आने पर ही होगा, किंतु उसके अंदर स्थापित मेरे तेज को सुप्तावस्था में किया जा सकता है", भगवती ने कहा।

"मेरे उस तेज के सुप्तावस्था में जाने पर राजकुमार एक साधारण प्राणी के समान हो जाएगा जब तक कि उसके तेज को जगाया नहीं जाएगा।"

"वो कैसे माता?", पिनाक का प्रश्न था।

"इसके लिए तुम्हें तुम्हारे आश्रम के शिवालय में स्थापित पश्चिमाभिमुख शिवलिंग के सम्मुख मेरे सहस्त्र नाम का एक लाख बार पाठ करना होगा"

"इस पाठ का दूसरा नाम वरदान भी है, इसके एक लाख बार जप करने से तुम्हे मेरे और भगवान महाकाल के संयुक्त वरदान की प्राप्ति होगी, जिससे तुम अपने कार्य को सिद्ध कर सकोगे", भगवती ने कहा।

"इस सहस्त्र नामावली को मैं तुम्हारे हृदय में स्थापित कर रही हूं, जिससे तुम इन नामों का एक लाख बार जप अल्प समय में कर सकोगे", भगवती ने आगे कहा।

"इसके अतिरिक्त मैं तुम्हे बताती हूं कि आश्रम में विराजमान शिवलिंग में अमोघ शक्ति है।"

"अब तुम्हे बिना कोई आवश्यक कार्य के आश्रम को छोड़कर नहीं जाना चाहिए वरन् वहीं रहकर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।"

"यह तुम्हे मरते समय अवधेशानंद ने भी बताया होगा", महादेवी दक्षिण काली ने कहा।

"अपनी आंखे बंद करो वत्स, अब मैं तुम्हे सीधे तुम्हारे आश्रम में पहुंचा रही हूं, जाओ अपना कार्य आरंभ करो, मेरे आशीर्वाद से तुम्हें इस कार्य में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होगी।"

पिनाक ने भगवती की परिक्रमा की, साष्टांग दंडवत कर प्रणाम किया और अपनी आंखे बंद करली।

जब उसने आंखे खोली तो अपने आप को आश्रम में पाया।
 
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