- 1,166
- 3,223
- 144
पिनाक ने आश्रम के शिवालय में स्थापित पश्चिमाभिमुख शिवलिंग के समक्ष विधि-विधान के अनुसार एक लाख बार दक्षिण काली के सहस्त्र नामों का जप बिना किसी विघ्न या बाधा के पूरा कर लिया।
इस जप के परिणाम-स्वरूप पिनाक को भगवती दक्षिण काली के दर्शन भगवान महाकाल सहित हुए।
पिनाक को भगवान और भगवती का संयुक्त वरदान प्राप्त हो गया।
इस वरदान के फलस्वरुप पिनाक को वह वरदान तो प्राप्त हुए ही, जो भगवती दक्षिण काली के तेज को प्राप्त करने पर होते, इसके अतिरिक्त अब वह तीनों काल यानि कि भूत, भविष्य या वर्तमान में कहीं भी गमन कर सकता था।
वह एक स्थान पर मौजूद रहकर तीनों काल की घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप में देख सकता था।
इस वरदान के फलस्वरुप पिनाक को कई अन्य सिद्धियां भी प्राप्त हुई जिनकी जानकारी समय-समय पर पता चलती रहेगी।
पिनाक अब सभी प्राणियों से अजेय था और वह राजकुमार शक्ति देव का मुकाबला करने को तैयार था।
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सर्दियों के दिन थे, दिल्ली निवासी प्रसिद्ध सेठ दीनदयाल का 22 वर्षीय इकलौता पुत्र रवि गुप्ता रात्रि के समय अपनी पत्नी के साथ स्वयं द्वारा चालित कार से एक सुनसान सड़क से गुजर रहा था। सड़क के दोनों ओर खेत थे।
वे दोनों कुछ ही दिन पहले विवाह-बंधन में बंधे थे तथा एक विवाह में शामिल लेकर लौट रहे थे।
नए-नए विवाह का खुमार था कि रवि ने एक उचित जगह तलाश कर कार को रोक दिया और अपनी पत्नी को आगोश में लेकर उसके होठों पर एक गहन चुंबन चस्पां कर दिया।
दोनों शीघ्र ही उत्तेजित होकर कार की पिछली सीट पर पहुंच गए और उस कार्य को संपन्न करने में तल्लीन हो गए किया जो एक नवविवाहित स्त्री-पुरुष को करना शोभा देता था।
उपरोक्त कार्य को संपन्न करने के बाद वे अपने रास्ते पर कुछ ही आगे चले थे कि रवि ने कार को रोक लिया और सड़क के किनारे जाकर लघु-शंका करने के लिए अपनी पतलून की जिप खोली।
तभी वहां एक चेतावनी गूंजी, "सावधान मानवजात, यहां शहजादा-ए-जिन्न आराम फरमा रहे हैं, अगर तुमने यहां पर पेशाब करने की उद्दंडता की तो तुम्हें इसका दण्ड भुगतना होगा।"
रवि एक आधुनिक विचारों का युवक था तथा भूत, प्रेत, जिन्न इत्यादि को नहीं मानता था।
उसने उस घोषित चेतावनी को नजरंदाज कर वहीं पर लघु-शंका कर दी और अपनी पत्नी के साथ उस स्थान को छोड़कर चलता बना।
रात्रि का समय था, रवि सपत्नीक अपने बेडरूम में सो रहा था।
अचानक वह जोर जोर से चीखने लगा, "बचाओ, बचाओ, आग...आग...मेरा सम्पूर्ण शरीर आग से जला रहा है।"
रवि की पत्नी अनीता उसकी चीखों को सुनकर भयभीत होकर उठ बैठी।
रवि ने जोर से अनीता को अपनी बाहों में जकड़कर कहा, "अनीता, मुझे बचाओ मेरा पूरा शरीर आग से जला जा रहा है।"
अनीता को कहीं भी आग नहीं दिखाई दी, तो वह घबरा कर उठी और जाकर अपने ससुर दीन दयाल के बेडरूम का दरवाजा खटखटाकर करुण स्वर में उनको पुकारा,
'पिताजी, माता जी'
दीन दयाल उस समय पुत्र-वधू अनीता की पुकार सुनकर थोड़ा सा घबराए हुए से अपनी पत्नी सहित कक्ष से बाहर आए और अनीता से पूछा,
"क्या हुआ बहू, इतनी रात गए तुम हमारे कक्ष के बाहर, क्या कोई बुरा स्वपन देखा है?"
"नहीं पिताजी, आप के पुत्र...."
पुत्र का जिक्र आने पर दीन दयाल विचलित हो उठा और बीच में अपनी पुत्र वधू को टोक कर कहा,
"क्या हुआ रवि को, अनीता, बताओ क्या हुआ उसे?"
अनीता ने कहा, पिताजी, वे आग-आग चिल्ला रहे हैैं, लेकिन आस-पास कहीं भी अग्नि नजर नहीं आ रही, इसके अतिरिक्त वे कह रहे है कि उनका पूरा शरीर आग से जला जा रहा है।"
अनीता की बातें सुनकर दीन दयाल बहुत ही ज्यादा घबरा गए और अपनी पत्नी सहित रवि के बेडरूम की तरफ भागे।
रवि माता-पिता को अपने समीप देखकर जोर-जोर से रोने लगा और कहा, "मैं आग से जला जा रहा हूं पिताजी, मुझे बचाइए, मुझे बचाइए, वरना मैं जलकर भस्म हो जाऊंगा।"
दीनदयाल और उसकी पत्नी को भी कहीं अग्नि नजर नहीं आई।
वे दोनों सोचने लगे कि आग तो कहीं भी नहीं दिखाई दे रही, फिर उसका पुत्र किस अग्नि की बात कर रहा है, उसे हो क्या हो गया है?
इसके उपरांत उन दोनों के देखते-देखते रवि के पूरे शरीर पर फफोले पड़ गए और उनसे मवाद रिसने लगा।
अचानक रवि के मुख से एक अजनबी आवाज निकलने लगी जैसे वह नहीं बोल रहा हो वरन् उसके अंदर से कोई ओर बोल रहा हो...."तूने मेरे स्थान पर पेशाब कर मुझे जलाया है, अब मैं भी तुझे जलाऊंगा।"
दीनदयाल ने अपने पुत्र रवि को तुरंत ही नई दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में पहुंचाया।
एक से एक विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा रवि का इलाज किया गया, परंतु उसका रोग ठीक नहीं हुआ।
उसके मुख से अजनबी आवाज को सुनकर मनोवैज्ञानिकों की भी सलाह ली गई लेकिन वही ढाक के तीन पात रहे।
उसकी हालत में कोई सुधार न तो होना था और न ही हुआ।
दीनदयाल अपने पुत्र रवि को लेकर पूरे भारतवर्ष के डाक्टरों और मनोवैज्ञनिकों के पास गए लेकिन उसका रोग दूर नहीं हुआ।
अपने पुत्र के गम में दीनदयाल भी दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था और उसके चेहरे पर गम की परछाइयां साफ नजर आती थी।
एक दिन दीनदयाल की पत्नी ने दीनदयाल से कहा,"आप पुत्र को लेकर स्वामी अवधेशानंदजी के आश्रम में क्यों नहीं जाते?"
"लेकिन उनका तो स्वर्गवास हो चुका है, अब उधर रवि को कौन ठीक करेगा", दीनदयाल ने कहा।
"स्वामी अवधेशानंद के प्रमुख शिष्य तथा उत्तराधिकारी पिनाक तो वहां जरूर उपस्थित होंगे", दीनदयाल की पत्नी ने उत्तर दिया।
दीनदयाल को अपनी पत्नी की बात उचित लगी किंतु वह उसको और अपने पुत्र रवि को साथ लिए बैगर अकेला ही सुबह-सुबह अपनी कार द्वारा स्वामी अवधेशानंद के आश्रम में पहुंच गया।
उस वक्त उसके चेहरे पर मलीनता के भाव थे, दाढ़ी कई दिनों की बढ़ी हुई थी और कपड़ों में भी सिलवटों के निशान थे।
सेठ दीनदयाल को अब इन बातों का कोई ख्याल भी नहीं था।
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उधर पिनाक अपने कक्ष में बैठे ध्यान लगाकर देखने की कोशिश कर रहे थे कि राजकुमार शक्ति देव उस समय कहां था, ताकि वहां पहुंच कर उसे पाठ पढ़ाया जा सके।
पिनाक के गुरु स्वामी अवधेशानंद बहुत ही साधारण प्रकार से रहते थे।
पिनाक ने भी आश्रम में साधारण प्रकार से रहना शुरू कर दिया था।
उनके कक्ष में फर्नीचर के नाम पर केवल लकड़ी का एक तख्त था, जिस पर साधारण दरी बिछी हुई थी और कुछ कुर्सियां पड़ी हुई थी जिन पर आने वाले विशेष मेहमान बैठते थे।
श्रद्धालुओं के लिए एक अन्य विशाल कक्ष था, जिसमें स्वामी अवधेशानंद उनसे मुलाकात करते थे और प्रवचन देते थे।
पिनाक प्रवचन तो नहीं करते थे परंतु उस कक्ष का उपयोग आम श्रद्धालुओं से मिलने के लिए करने लगे।
जिस कक्ष में स्वामी अवधेशानंद रहते थे, पिनाक ने उस कक्ष को उनका स्मृति-स्थल बना दिया और अपने रहने के लिए एक अलग कक्ष नियत किया।
जिस समय पिनाक ध्यान लगा रहे थे उसी समय आश्रम के मैनेजर अग्निहोत्री ने उनके कक्ष का दरवाजा खटखटाया तथा अंदर आने की अनुमति चाही।
पिनाक ने बहुत ही सहज भाव से अग्निहोत्री को अंदर आने की अनुमति प्रदान कर दी।
मैनेजर अग्निहोत्री उनके समीप पाए और प्रणाम कर कहा कि सेठ दीनदयाल अपनी किसी निजी समस्या के समाधान हेतु उनसे मिलना चाहते हैं।
मैनेजर ने उनको बताया कि सेठ दीनदयाल नई दिल्ली के एक बड़े व्यापारी है और स्वामी अवधेशानंदजी के परम भक्त है।
पिनाक अभी किसी से मिलना तो नहीं चाहते थे लेकिन दीनदयाल के स्वामीजी का भक्त होने के कारण उन्होंने अनुमति प्रदान कर दी और कहा, "ठीक है, उन्हें मेरे इसी कक्ष में ले आओ।"
सेठ दीनदयाल ने पिनाक के कक्ष में आकर बड़ी ही भक्ति भाव से उनके चरण-स्पर्श किए। सेठजी की उम्र पिनाक से बहुत ज्यादा थी, इसलिए उनके द्वारा अपने चरण-स्पर्श करने पर उन्हें कुछ अलग सा महसूस किया।फिर उन्हें ध्यान आया कि वह स्वामी अवधेशानंद के उत्तराधिकारी के रूप में यहां उपस्थित है।
भक्तों द्वारा चरण-स्पर्श करने की प्रक्रिया की उनको आदत डालनी ही होगी।
पिनाक ने दीनदयाल को आशीर्वाद देकर तथा उनको अपने सामने एक कुर्सी पर बैठने को कहकर, अपनी समस्या बताने को कहा।
सेठ जी कुछ बताते, उससे पहले ही उनका गला रूंध गया और वह फूट-फूटकर रोने लगे।
पिनाक अपने तख्त से नीचे उतरे और गहन भाव से सेठजी का आलिंगन कर उनको सांत्वना दी और ढांढस बंधाया।
पिनाक ने कहा, "सेठ जी भगवती दक्षिण काली और भगवान महाकाल की कृपा से, मैं आपका प्रत्येक कार्य चाहे संभव हो या असम्भव, करने में सक्षम हूं।"
"किंतु कुछ भी बताने से पहले आपको जलपान करना होगा", पिनाक ने सेठजी को शांत करने के उद्देश्य से आगे कहा।
यह कहकर पिनाक ने आश्रम के एक कर्मचारी को सेठ जी के लिए जलपान लाने को कहा।
सेठजी जलपान कर कुछ स्वस्थ हुए तो पिनाक ने पुनः उनको अपनी समस्या बताने को कहा।
सेठ जी ने बड़े ही गमगीन भाव बताया, "उनका २२ वर्षीय पुत्र रवि अपनी पत्नी सहित किसी विवाह में शामिल होकर एक रात को लौटा था, उसने उसी रात आग-आग चिल्लाना शुरू कर दिया।"
"इसके उपरांत उसके सम्पूर्ण शरीर पर फफोले हो गए और उसी समय उनमें से मवाद रिसने लगा।"
"वह अजनबी आवाज में बार-बार कहता है, "तूने मेरे स्थान पर पेशाब कर मुझे जलाया है, अब मैं तुझे जलाऊंगा।"
"पूरे भारत के डॉक्टर, वैद्य, हकीम, मनोवैज्ञानिकों से इलाज करवा चुका हूं, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ", सेठ दीनदयाल ने आगे कहा।
इसके उपरांत दीन दयाल ने प्रार्थना करते हुए कहा, "अब तो आप ही मेरे पुत्र का जीवन बचा सकते है स्वामीजी, उसको कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा।"
पिनाक ने तुरंत ध्यान लगाकर पूर्ण घटनाक्रम को जान लिया।
उन्होंने दीनदयाल से कहा, "सेठजी जिस रात्रि आपका पुत्र रवि अपनी पत्नी के साथ विवाह में सम्मिलित होकर लौट रहा था, उसने रास्ते में जिन्नों के शहजादे आलम की मढ़ी पर पेशाब कर दिया।"
"तुम्हारे पुत्र के उस जगह पेशाब करने से जिन्नों के शहजादे के जिस्म पर फफोले पड़ गए।"
"उन फफोले के कारण शहजादे के जिस्म में भयंकर जलन हो रही है।"
"क्योंकि रवि के शहजादे की मढ़ी पर पेशाब करने के कारण उसे कष्ट हो रहा है, इसीलिए वह रवि को भी कष्ट पहुंचा रहा है, किंतु भगवती की कृपा से मैं दोनों को ही स्वस्थ करूंगा", पिनाक ने आइसके उपरांत पिनाक ने आश्रम के ड्राइवर सुखवीर को बुलाया और कार तैयार करने को कहा।
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पिनाक और सेठ दीनदयाल अपनी-अपनी कारों द्वारा आलम की मढ़ी पर दो घंटे में पहुंच गए।
यह मढ़ी सड़क के किनारे खेतों में थी।
खेतों में उस समय कुछ ग्रामीण कार्य कर रहे थे।
पिनाक ने सुखबीर के द्वारा उनमें से एक को अपने पास बुलवाया।
"क्यों भाई क्या नाम है तुम्हारा"? पिनाक ने उस ग्रामीण से पूछा।
"मेरा नाम बसंता है, हुजूर।"
"जानते हो बसंता, यह किसकी मढ़ी है?"
"हुजूर पक्का तो पता नहीं परंतु कहते हैं किसी जिन्न की है।"
"क्या इसकी कोई देखभाल करता है?"
"हां करते हैं हुजूर, सब आसपास के गांव वाले मिलकर इसकी साफ-सफाई और मरम्मत इत्यादि करवाते हैं।"
बसंता, पिनाक ने सेठ जी की तरफ इशारा करते हुए कहा, "यह दिल्ली के सेठ दीनदयाल है, यह इस मढ़ी पर कुछ निर्माण कार्य करवाना चाहते हैं।"
"क्यों नहीं हुजूर, मैं अभी गांव वालों को इकट्ठा कर लेता हूं", बसंता ने कहा।
कुछ ही समय बाद बहुत से गांव वाले उधर इकट्ठे हो गए।
कार्य की रूपरेखा तैयार की गई जिसके अनुसार मढ़ी के ऊपर संगमरमर के पत्थरों का लगवाया जाना, पेंट करवाना और इसके चारों ओर लोहे के दरवाजे सहित चारदीवारी का निर्माण शामिल था।
स्वामी अवधेशानंद पूरे भारत में अपने अच्छे कार्यों के लिए प्रसिद्ध थे।
जब ग्रामीणों को पता चला कि पिनाक उनका उत्तराधिकारी है तथा आश्रम के कार्य अब इन्हीं के जिम्मे है, तो उनमें पिनाक के चरण-स्पर्श करने की होड़ लग गई।
कुछ ही समय में पिनाक के सामने ग्रामीणों ने भेंट-स्वरूप बहुत सी सामग्री उपस्थित कर दी जिसमें मुख्यतः खेतों में उपजी सब्जियां, दूध, दही इत्यादि थे।
इतनी भावना के साथ दी गई भेंट को पिनाक अस्वीकार नहीं कर सके।उन्होंने उस सामग्री में से कुछ अपने पास रख कर, बची हुई सामग्री को ग्रामीणों में ही वापिस लौटा दिया।
ग्रामीणों ने भी उसको आश्रम का प्रसाद समझकर तुरंत ही स्वीकार कर लिया।
इसके उपरांत ग्रामीणों में से एक मुख्य व्यक्ति को निर्माण कार्य पर होने वाले अनुमानित खर्च से कुछ ज्यादा ही देकर उन्होंने नई दिल्ली के लिए प्रस्थान कर दिया।
ग्रामीणों ने भी इस निर्माण कार्य को अति शीघ्र पूरा करवाने का वचन दिया।
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इस जप के परिणाम-स्वरूप पिनाक को भगवती दक्षिण काली के दर्शन भगवान महाकाल सहित हुए।
पिनाक को भगवान और भगवती का संयुक्त वरदान प्राप्त हो गया।
इस वरदान के फलस्वरुप पिनाक को वह वरदान तो प्राप्त हुए ही, जो भगवती दक्षिण काली के तेज को प्राप्त करने पर होते, इसके अतिरिक्त अब वह तीनों काल यानि कि भूत, भविष्य या वर्तमान में कहीं भी गमन कर सकता था।
वह एक स्थान पर मौजूद रहकर तीनों काल की घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप में देख सकता था।
इस वरदान के फलस्वरुप पिनाक को कई अन्य सिद्धियां भी प्राप्त हुई जिनकी जानकारी समय-समय पर पता चलती रहेगी।
पिनाक अब सभी प्राणियों से अजेय था और वह राजकुमार शक्ति देव का मुकाबला करने को तैयार था।
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सर्दियों के दिन थे, दिल्ली निवासी प्रसिद्ध सेठ दीनदयाल का 22 वर्षीय इकलौता पुत्र रवि गुप्ता रात्रि के समय अपनी पत्नी के साथ स्वयं द्वारा चालित कार से एक सुनसान सड़क से गुजर रहा था। सड़क के दोनों ओर खेत थे।
वे दोनों कुछ ही दिन पहले विवाह-बंधन में बंधे थे तथा एक विवाह में शामिल लेकर लौट रहे थे।
नए-नए विवाह का खुमार था कि रवि ने एक उचित जगह तलाश कर कार को रोक दिया और अपनी पत्नी को आगोश में लेकर उसके होठों पर एक गहन चुंबन चस्पां कर दिया।
दोनों शीघ्र ही उत्तेजित होकर कार की पिछली सीट पर पहुंच गए और उस कार्य को संपन्न करने में तल्लीन हो गए किया जो एक नवविवाहित स्त्री-पुरुष को करना शोभा देता था।
उपरोक्त कार्य को संपन्न करने के बाद वे अपने रास्ते पर कुछ ही आगे चले थे कि रवि ने कार को रोक लिया और सड़क के किनारे जाकर लघु-शंका करने के लिए अपनी पतलून की जिप खोली।
तभी वहां एक चेतावनी गूंजी, "सावधान मानवजात, यहां शहजादा-ए-जिन्न आराम फरमा रहे हैं, अगर तुमने यहां पर पेशाब करने की उद्दंडता की तो तुम्हें इसका दण्ड भुगतना होगा।"
रवि एक आधुनिक विचारों का युवक था तथा भूत, प्रेत, जिन्न इत्यादि को नहीं मानता था।
उसने उस घोषित चेतावनी को नजरंदाज कर वहीं पर लघु-शंका कर दी और अपनी पत्नी के साथ उस स्थान को छोड़कर चलता बना।
रात्रि का समय था, रवि सपत्नीक अपने बेडरूम में सो रहा था।
अचानक वह जोर जोर से चीखने लगा, "बचाओ, बचाओ, आग...आग...मेरा सम्पूर्ण शरीर आग से जला रहा है।"
रवि की पत्नी अनीता उसकी चीखों को सुनकर भयभीत होकर उठ बैठी।
रवि ने जोर से अनीता को अपनी बाहों में जकड़कर कहा, "अनीता, मुझे बचाओ मेरा पूरा शरीर आग से जला जा रहा है।"
अनीता को कहीं भी आग नहीं दिखाई दी, तो वह घबरा कर उठी और जाकर अपने ससुर दीन दयाल के बेडरूम का दरवाजा खटखटाकर करुण स्वर में उनको पुकारा,
'पिताजी, माता जी'
दीन दयाल उस समय पुत्र-वधू अनीता की पुकार सुनकर थोड़ा सा घबराए हुए से अपनी पत्नी सहित कक्ष से बाहर आए और अनीता से पूछा,
"क्या हुआ बहू, इतनी रात गए तुम हमारे कक्ष के बाहर, क्या कोई बुरा स्वपन देखा है?"
"नहीं पिताजी, आप के पुत्र...."
पुत्र का जिक्र आने पर दीन दयाल विचलित हो उठा और बीच में अपनी पुत्र वधू को टोक कर कहा,
"क्या हुआ रवि को, अनीता, बताओ क्या हुआ उसे?"
अनीता ने कहा, पिताजी, वे आग-आग चिल्ला रहे हैैं, लेकिन आस-पास कहीं भी अग्नि नजर नहीं आ रही, इसके अतिरिक्त वे कह रहे है कि उनका पूरा शरीर आग से जला जा रहा है।"
अनीता की बातें सुनकर दीन दयाल बहुत ही ज्यादा घबरा गए और अपनी पत्नी सहित रवि के बेडरूम की तरफ भागे।
रवि माता-पिता को अपने समीप देखकर जोर-जोर से रोने लगा और कहा, "मैं आग से जला जा रहा हूं पिताजी, मुझे बचाइए, मुझे बचाइए, वरना मैं जलकर भस्म हो जाऊंगा।"
दीनदयाल और उसकी पत्नी को भी कहीं अग्नि नजर नहीं आई।
वे दोनों सोचने लगे कि आग तो कहीं भी नहीं दिखाई दे रही, फिर उसका पुत्र किस अग्नि की बात कर रहा है, उसे हो क्या हो गया है?
इसके उपरांत उन दोनों के देखते-देखते रवि के पूरे शरीर पर फफोले पड़ गए और उनसे मवाद रिसने लगा।
अचानक रवि के मुख से एक अजनबी आवाज निकलने लगी जैसे वह नहीं बोल रहा हो वरन् उसके अंदर से कोई ओर बोल रहा हो...."तूने मेरे स्थान पर पेशाब कर मुझे जलाया है, अब मैं भी तुझे जलाऊंगा।"
दीनदयाल ने अपने पुत्र रवि को तुरंत ही नई दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में पहुंचाया।
एक से एक विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा रवि का इलाज किया गया, परंतु उसका रोग ठीक नहीं हुआ।
उसके मुख से अजनबी आवाज को सुनकर मनोवैज्ञानिकों की भी सलाह ली गई लेकिन वही ढाक के तीन पात रहे।
उसकी हालत में कोई सुधार न तो होना था और न ही हुआ।
दीनदयाल अपने पुत्र रवि को लेकर पूरे भारतवर्ष के डाक्टरों और मनोवैज्ञनिकों के पास गए लेकिन उसका रोग दूर नहीं हुआ।
अपने पुत्र के गम में दीनदयाल भी दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था और उसके चेहरे पर गम की परछाइयां साफ नजर आती थी।
एक दिन दीनदयाल की पत्नी ने दीनदयाल से कहा,"आप पुत्र को लेकर स्वामी अवधेशानंदजी के आश्रम में क्यों नहीं जाते?"
"लेकिन उनका तो स्वर्गवास हो चुका है, अब उधर रवि को कौन ठीक करेगा", दीनदयाल ने कहा।
"स्वामी अवधेशानंद के प्रमुख शिष्य तथा उत्तराधिकारी पिनाक तो वहां जरूर उपस्थित होंगे", दीनदयाल की पत्नी ने उत्तर दिया।
दीनदयाल को अपनी पत्नी की बात उचित लगी किंतु वह उसको और अपने पुत्र रवि को साथ लिए बैगर अकेला ही सुबह-सुबह अपनी कार द्वारा स्वामी अवधेशानंद के आश्रम में पहुंच गया।
उस वक्त उसके चेहरे पर मलीनता के भाव थे, दाढ़ी कई दिनों की बढ़ी हुई थी और कपड़ों में भी सिलवटों के निशान थे।
सेठ दीनदयाल को अब इन बातों का कोई ख्याल भी नहीं था।
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उधर पिनाक अपने कक्ष में बैठे ध्यान लगाकर देखने की कोशिश कर रहे थे कि राजकुमार शक्ति देव उस समय कहां था, ताकि वहां पहुंच कर उसे पाठ पढ़ाया जा सके।
पिनाक के गुरु स्वामी अवधेशानंद बहुत ही साधारण प्रकार से रहते थे।
पिनाक ने भी आश्रम में साधारण प्रकार से रहना शुरू कर दिया था।
उनके कक्ष में फर्नीचर के नाम पर केवल लकड़ी का एक तख्त था, जिस पर साधारण दरी बिछी हुई थी और कुछ कुर्सियां पड़ी हुई थी जिन पर आने वाले विशेष मेहमान बैठते थे।
श्रद्धालुओं के लिए एक अन्य विशाल कक्ष था, जिसमें स्वामी अवधेशानंद उनसे मुलाकात करते थे और प्रवचन देते थे।
पिनाक प्रवचन तो नहीं करते थे परंतु उस कक्ष का उपयोग आम श्रद्धालुओं से मिलने के लिए करने लगे।
जिस कक्ष में स्वामी अवधेशानंद रहते थे, पिनाक ने उस कक्ष को उनका स्मृति-स्थल बना दिया और अपने रहने के लिए एक अलग कक्ष नियत किया।
जिस समय पिनाक ध्यान लगा रहे थे उसी समय आश्रम के मैनेजर अग्निहोत्री ने उनके कक्ष का दरवाजा खटखटाया तथा अंदर आने की अनुमति चाही।
पिनाक ने बहुत ही सहज भाव से अग्निहोत्री को अंदर आने की अनुमति प्रदान कर दी।
मैनेजर अग्निहोत्री उनके समीप पाए और प्रणाम कर कहा कि सेठ दीनदयाल अपनी किसी निजी समस्या के समाधान हेतु उनसे मिलना चाहते हैं।
मैनेजर ने उनको बताया कि सेठ दीनदयाल नई दिल्ली के एक बड़े व्यापारी है और स्वामी अवधेशानंदजी के परम भक्त है।
पिनाक अभी किसी से मिलना तो नहीं चाहते थे लेकिन दीनदयाल के स्वामीजी का भक्त होने के कारण उन्होंने अनुमति प्रदान कर दी और कहा, "ठीक है, उन्हें मेरे इसी कक्ष में ले आओ।"
सेठ दीनदयाल ने पिनाक के कक्ष में आकर बड़ी ही भक्ति भाव से उनके चरण-स्पर्श किए। सेठजी की उम्र पिनाक से बहुत ज्यादा थी, इसलिए उनके द्वारा अपने चरण-स्पर्श करने पर उन्हें कुछ अलग सा महसूस किया।फिर उन्हें ध्यान आया कि वह स्वामी अवधेशानंद के उत्तराधिकारी के रूप में यहां उपस्थित है।
भक्तों द्वारा चरण-स्पर्श करने की प्रक्रिया की उनको आदत डालनी ही होगी।
पिनाक ने दीनदयाल को आशीर्वाद देकर तथा उनको अपने सामने एक कुर्सी पर बैठने को कहकर, अपनी समस्या बताने को कहा।
सेठ जी कुछ बताते, उससे पहले ही उनका गला रूंध गया और वह फूट-फूटकर रोने लगे।
पिनाक अपने तख्त से नीचे उतरे और गहन भाव से सेठजी का आलिंगन कर उनको सांत्वना दी और ढांढस बंधाया।
पिनाक ने कहा, "सेठ जी भगवती दक्षिण काली और भगवान महाकाल की कृपा से, मैं आपका प्रत्येक कार्य चाहे संभव हो या असम्भव, करने में सक्षम हूं।"
"किंतु कुछ भी बताने से पहले आपको जलपान करना होगा", पिनाक ने सेठजी को शांत करने के उद्देश्य से आगे कहा।
यह कहकर पिनाक ने आश्रम के एक कर्मचारी को सेठ जी के लिए जलपान लाने को कहा।
सेठजी जलपान कर कुछ स्वस्थ हुए तो पिनाक ने पुनः उनको अपनी समस्या बताने को कहा।
सेठ जी ने बड़े ही गमगीन भाव बताया, "उनका २२ वर्षीय पुत्र रवि अपनी पत्नी सहित किसी विवाह में शामिल होकर एक रात को लौटा था, उसने उसी रात आग-आग चिल्लाना शुरू कर दिया।"
"इसके उपरांत उसके सम्पूर्ण शरीर पर फफोले हो गए और उसी समय उनमें से मवाद रिसने लगा।"
"वह अजनबी आवाज में बार-बार कहता है, "तूने मेरे स्थान पर पेशाब कर मुझे जलाया है, अब मैं तुझे जलाऊंगा।"
"पूरे भारत के डॉक्टर, वैद्य, हकीम, मनोवैज्ञानिकों से इलाज करवा चुका हूं, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ", सेठ दीनदयाल ने आगे कहा।
इसके उपरांत दीन दयाल ने प्रार्थना करते हुए कहा, "अब तो आप ही मेरे पुत्र का जीवन बचा सकते है स्वामीजी, उसको कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा।"
पिनाक ने तुरंत ध्यान लगाकर पूर्ण घटनाक्रम को जान लिया।
उन्होंने दीनदयाल से कहा, "सेठजी जिस रात्रि आपका पुत्र रवि अपनी पत्नी के साथ विवाह में सम्मिलित होकर लौट रहा था, उसने रास्ते में जिन्नों के शहजादे आलम की मढ़ी पर पेशाब कर दिया।"
"तुम्हारे पुत्र के उस जगह पेशाब करने से जिन्नों के शहजादे के जिस्म पर फफोले पड़ गए।"
"उन फफोले के कारण शहजादे के जिस्म में भयंकर जलन हो रही है।"
"क्योंकि रवि के शहजादे की मढ़ी पर पेशाब करने के कारण उसे कष्ट हो रहा है, इसीलिए वह रवि को भी कष्ट पहुंचा रहा है, किंतु भगवती की कृपा से मैं दोनों को ही स्वस्थ करूंगा", पिनाक ने आइसके उपरांत पिनाक ने आश्रम के ड्राइवर सुखवीर को बुलाया और कार तैयार करने को कहा।
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पिनाक और सेठ दीनदयाल अपनी-अपनी कारों द्वारा आलम की मढ़ी पर दो घंटे में पहुंच गए।
यह मढ़ी सड़क के किनारे खेतों में थी।
खेतों में उस समय कुछ ग्रामीण कार्य कर रहे थे।
पिनाक ने सुखबीर के द्वारा उनमें से एक को अपने पास बुलवाया।
"क्यों भाई क्या नाम है तुम्हारा"? पिनाक ने उस ग्रामीण से पूछा।
"मेरा नाम बसंता है, हुजूर।"
"जानते हो बसंता, यह किसकी मढ़ी है?"
"हुजूर पक्का तो पता नहीं परंतु कहते हैं किसी जिन्न की है।"
"क्या इसकी कोई देखभाल करता है?"
"हां करते हैं हुजूर, सब आसपास के गांव वाले मिलकर इसकी साफ-सफाई और मरम्मत इत्यादि करवाते हैं।"
बसंता, पिनाक ने सेठ जी की तरफ इशारा करते हुए कहा, "यह दिल्ली के सेठ दीनदयाल है, यह इस मढ़ी पर कुछ निर्माण कार्य करवाना चाहते हैं।"
"क्यों नहीं हुजूर, मैं अभी गांव वालों को इकट्ठा कर लेता हूं", बसंता ने कहा।
कुछ ही समय बाद बहुत से गांव वाले उधर इकट्ठे हो गए।
कार्य की रूपरेखा तैयार की गई जिसके अनुसार मढ़ी के ऊपर संगमरमर के पत्थरों का लगवाया जाना, पेंट करवाना और इसके चारों ओर लोहे के दरवाजे सहित चारदीवारी का निर्माण शामिल था।
स्वामी अवधेशानंद पूरे भारत में अपने अच्छे कार्यों के लिए प्रसिद्ध थे।
जब ग्रामीणों को पता चला कि पिनाक उनका उत्तराधिकारी है तथा आश्रम के कार्य अब इन्हीं के जिम्मे है, तो उनमें पिनाक के चरण-स्पर्श करने की होड़ लग गई।
कुछ ही समय में पिनाक के सामने ग्रामीणों ने भेंट-स्वरूप बहुत सी सामग्री उपस्थित कर दी जिसमें मुख्यतः खेतों में उपजी सब्जियां, दूध, दही इत्यादि थे।
इतनी भावना के साथ दी गई भेंट को पिनाक अस्वीकार नहीं कर सके।उन्होंने उस सामग्री में से कुछ अपने पास रख कर, बची हुई सामग्री को ग्रामीणों में ही वापिस लौटा दिया।
ग्रामीणों ने भी उसको आश्रम का प्रसाद समझकर तुरंत ही स्वीकार कर लिया।
इसके उपरांत ग्रामीणों में से एक मुख्य व्यक्ति को निर्माण कार्य पर होने वाले अनुमानित खर्च से कुछ ज्यादा ही देकर उन्होंने नई दिल्ली के लिए प्रस्थान कर दिया।
ग्रामीणों ने भी इस निर्माण कार्य को अति शीघ्र पूरा करवाने का वचन दिया।
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