kamdev99008
FoX - Federation of Xossipians
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नयी कहानी बढ़िया लग रही है
इसके अपडेट थोड़े जल्दी देना
Nice update bhai
Update 5
रोहन की ट्रेन मेवटगढ़ के सूनसान स्टेशन पर रुकी तो वो बड़े जोश के साथ अपना सामान लेकर प्लेटफॉर्म पर उतर गया। शाम ढ़ल चुकी थी। सूरज की बुझती रोशनी पर अँधेरे की काली चादर हावी हो रही थी। चारों तरफ़ एक मनहूस सा सन्नाटा छाया हुआ था। रोहन ने अपने जिस्म में एक अजीब सी ठंडक महसूस की और वो सिहर उठा। मेवटगढ़ कि ज़मीन पर कदम रखते ही रोहन को ऐसा लगा जैसे वहाँ का किला ही नहीं, वहाँ की मिट्टी, हवा और बाकी सब कुछ शापित है। जिस नकारात्मक शक्ति के यहाँ होने का ज़िक्र उसने सुना था, रोहन को ऐसा लगा कि वो शक्ति सचमुच अपने होने का एहसास उसे करवा रही है।
रोहन ने अपने जैकेट की ज़िप बन्द कर ली और अपना सामान लेकर स्टेशन से बाहर निकल आया । बाहर एक बड़ी सी कार खड़ी थी जिसका ड्राइवर, रोहन को देखकर यूँ मुस्कुराया जैसे वो रोहन को पहले से जानता हो। उसकी उम्र करीब 40 - 45 साल की होगी और वो साफ़ सुथरी, सफ़ेद वर्दी पहने हुए था। उसके सर पर बालों का तो अकाल था मगर चेहरे पर मुस्कान बाढ़ के पानी की तरह बह रही थी।
"मैं हरीचरण प्रसाद हूँ," वो रोहन के हाथ से उसका सामान लेकर कार की डिक्की में रखते हुए बोला, "कर्नल साहब का ड्राइवर। आप कार में आराम से बैठ जाईये, रोहन बाबू । यहाँ से कर्नल साहब की हवेली तक का सफ़र करीब घन्टे भर का होगा। यहाँ की सड़कें उबड़ खाबड़ हैं और ऊपर से रात का अँधियारा भी, जिसकी वजह से वक़्त थोड़ा ज़्यादा भी लग सकता है।"
"आपने मुझे कैसे पहचान लिया?" रोहन हैरान था।
"अरे! इस भूतिया नगर में कितने लोग आते हैं जो न पहचानने का सवाल उठे?" हरिचरण ने मुस्कुराते हुए पूछा। "अब आप ही बताइए, उस ट्रैन से आपके अलावा और कोई और उतरा इस स्टेशन पर? “
"हाँ, बात तो आपकी सही है," रोहन कार की पिछली सीट पर बैठ गया और खिड़की खोल ली।
"बाबू जी," सामने लगे शीशे में पीछे बैठे रोहन को देखते हुए हरिचरण बोला, "आप खिड़की बन्द ही रखें तो अच्छा है। आगे का रास्ता काफ़ी सूनसान है। सड़क का एक हिस्सा तो जंगल के बीच से होकर जाता है। इस बख़त जंगल से बड़ी अजीब अजीब सी अवाज़ें सुनायी देती हैं। और वैसे भी ठंड बहुत है। बीमार पड़ जायेंगे आप।"
"आपकी ये बात भी सही है," रोहन ने मुस्कुराते हुए कार की खिड़की बन्द कर ली।
हरिचरण ने कार स्टार्ट की और साथ ही कार का स्टीरियो ऑन कर के उस पर बड़ी तेज़ आवाज़ में हनुमान चालीसा चला दिया।
"आप बजरंग बली के बड़े भक्त मालूम होते हैं, " रोहन मुस्कुराया।
"आप भी रट लीजिए हनुमान चालीसा," हरिचरण बोला, "इस मेवटगढ़ में आपकी रक्षा सिर्फ़ बजरंग बली ही कर सकते हैं।"
"यहाँ का किला सचमुच भूतिया है क्या, हरिचरण जी?" कार सूनसान सड़क पर आगे बढ़ी तो रोहन ने पूछा।
"हाँ, जी बिल्कुल है," हरिचरण इतने धीमे से फुसफुसाए जैसे भूत भी इस सफ़र में उनके हमसफ़र हों।
"ये बात आप इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं?" रोहन भौहें सिकोड़े हरिचरण को देखने लगा। "आपका कभी सामना हुआ है भूतों से?"
"अगर भूतों से सामना हो गया होता तो हम यूँ आपके सामने बैठे होते क्या?"
"तो आप क्या बस सुनी सुनायी बातों पर यकीन करते हो?"
"सुनी, सुनायी नहीं बाबूजी, " हरिचरण के चेहरे का रंग उड़ गया, "हमारे बहुत सारे करीबी लोगों की आपबीती है। अभी पिछले साल ही हमारे पड़ोसी का लड़का सोहन इन बुरी शक्तियों का शिकार हो गया। एक शाम उसके बाबा की तबियत अचानक बिगड़ गयी। उन्हें शहर के अस्पताल में भर्ती करवा कर सोहन घर से कुछ पैसे, कपड़े वगैरह लेने यहाँ वापस आया। "यहाँ पहुँचा तो सूरज ढ़ल चुका था। उसके घर तक जाने वाली सड़क से किला दिखता था। सोहन किसी तरह भगवान का नाम लेकर उस रास्ते से निकल रहा था कि उसे किले में एक रोशनी नज़र आयी। उसे ऐसा लगा कि वो रोशनी उसे अपनी तरफ़ खींच रही है। न चाहते हुए भी वो इस रोशनी की तरफ़ बढ़ गया। फ़िर न जाने उसके साथ क्या हुआ कि वो पगला गया। दिन भर मंदिर में बैठा रहता है और पागलों की तरह न जाने क्या बड़बड़ाता रहता है?"
"ये सब मन का वहम है और कुछ नहीं," रोहन ने ज़ोर से अपना सर झटका। " आप सब लोगों के मन में ये बात गहरायी में बैठ गयी है कि वो किला भूतिया है। अब अगर उस किले में रात के वक़्त आपको कोई मामूली सी हरकत भी नज़र आये तो आप लोग न जाने क्या समझ बैठेंगे?"
"आपसे पहले भी शहर से एक बाबू आये थे," हरिचरण ने आह भरी, "वो भी ऐसी ही बातें किया करते थे। फ़िर सुनने में आया कि उनका भी हाल कुछ सोहन जैसा ही हो गया था।"
"मैं सच का पता लगाने ही आया हूँ, हरिचरण जी," रोहन ने मुस्कुराते हुए हरिचरण को देखा।
"आप बड़े भले मानुस लगते हो, बाबूजी । " हरिचरण ने अपने गले में बंधी ताबीज़ को कसकर पकड़ लिया और बोला, "मैं तो आपसे यही कहना चाहूँगा कि उस किले से दूर रहिये। बाकी आपकी मर्ज़ी। आप हमसे ज़्यादा पढ़े लिखे हो, समझदार हो।"
"फिलहाल, ये चर्चा हम यहीं बंद कर देते हैं, " रोहन मुस्कुराया | "वैसे कर्नल साहब की हवेली और कितनी दूर है?”
"बस 15 मिनट और लगेंगे, " हरिचरण ने कहा ।
"बातों ही बातों में सफ़र कितनी जल्दी कट गया न?"
रोहन ने अपना मोबाइल फ़ोन निकाला और उस पर मैसेज और मेल्स चेक करने लगा।
“सो तो है, बाबू जी,” इतना कहकर हरिचरण ने चुप्पी साध ली |
हालाँकि हरिचरण चाहता था कि बाकी का रास्ता भी बतियाते हुए कटे, मगर रोहन को काम में मसरूफ़ देखकर वो चुप हो गया |
कुछ देर बाद, रोहन ने अपने मोबाईल फ़ोन से नज़रें उठाकर सड़क की ओर देखा तो उसे अँधेरे में डूबी सड़क पर रोशनी की झलक नज़र आयी। कार थोड़ी और आगे बढ़ी और एक बड़े से लोहे के गेट के अंदर दाखिल हो गयी। उस गेट के दोनों तरफ़ दो बड़ी लाइट लगी हुई थी जो सूनी सड़क को रोशन किये हुई थी। गेट से एक तंग सा रास्ता, एक बड़े से बँगले की तरफ़ जाता था। उस रास्ते की दोनों तरफ़ लाइट्स लगीं हुई थी। रास्ते के दोनों तरफ़ बड़ा सा बगीचा था।
"आ गयी हमारी मंज़िल, " बँगले के बरामदे में कार रोकते हुए हरिचरण ने कहा। "हनुमान चालीसा की शक्ति ने हमें सही सलामत पहुँचा दिया। जय बजरंग बली की!'
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Shaandar jabardast Romanchak Update• Update - 2
रोहन अपने ऑफिस में बैठा लैपटॉप पर मेवटगढ़ के किले की फ़ोटो देख रहा था। सुबह के 10 बज चुके थे और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ उसके प्रेसेंटेशन में करीब एक घंटा और बाकी था। किले की तस्वीर को देखते ही उसे उस भयानक सपने की याद आ गयी जो उसने काल रात देखा था। उस सपने की याद आते ही रोहन के मन में कई सारे सवाल उठे।
'कल रात मैंने खुद को उस किले के अंदर पाया जब कि मैं तो आज तक कभी वहाँ गया ही नहीं? फ़िर मुझे ऐसा क्यों लगा कि मैं उस किले के अंदर के चप्पे चप्पे से अच्छी तरह वाकिफ़ हूँ। वहाँ की हर इमारत, हर गली, हर चबूतरे को पहचानता हूँ। और वो लड़की? कौन थी वो कमसिन हसीना? क्यूँ उसकी चीखों से मेरा दिल तड़प उठता है? क्यों उस पर ढाए हर सितम के दर्द का एहसास मुझे होता है? क्या रिश्ता है मेरा उससे ? इस एहसास को क्या नाम दूँ, मैं? हमदर्दी, इंसानियत या फिर कुछ और?'
मेज़ पर रखे लैंडफोन कि घंटी बजी तो रोहन ने चौंकते हुए उसे देखा। उसने फ़ौरन खुद को संभाला और रिसीवर उठा लिया।
"हेलो?"
."सर, मिस्टर चौधरी आपको अपने केबिन में बुला रहे हैं।" रिसेप्शनिस्ट की मीठी आवाज़ रोहन के कानों में पड़ी।
"ओके, मैं अभी आता हूँ।" रोहन ने फ़ोन रख दिया और सोच में पड़ गया | प्रेज़ेंटेशन में तो अभी काफ़ी वक़्त है फ़िर चैनल के मैनेजिंग डायरेक्टर मिस्टर अरविंद चौधरी ने उससे अभी क्यों मिलना चाहते हैं? उन दोनों के बीच सारी बातें तो काफ़ी पहले ही तय हो गयीं थीं। कहीं लास्ट मिनट में मिस्टर चौधरी ने कोई रोड़ा अटकाने का प्लान तो नहीं बना लिया?
रोहन ने सर झटका और सारे बुरे ख़यालों को अपने दिमाग से निकाल दिया। रोहन अपनी कुर्सी से उठा और वॉशरूम चला गया। उसने खुद को वॉशरूम के आईने में देखा। रोहन के 6 फुट लंबे, सुड़ौल शरीर पर काला सूट खूब जच रहा रहा। उसके नयन नक्श भी काफ़ी दिलकश थे।
उसने अपनी टाई सीधी की, बाल सँवारे और वॉशरूम से बाहर निकलकर मिस्टर चौधरी के केबिन की तरफ़ चल पड़ा। ऑफिस के गलियारे में खड़े लड़कियों के एक ग्रुप ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा। मगर, रोहन उन्हें अनदेखा कर आगे बढ़ गया और मिस्टर चौधरी के केबिन के दरवाज़े पर दस्तक दी।
"कम इन" अंदर से एक कड़क आवाज़ आयी और रोहन ने केबिन के अंदर कदम रखा।
"आओ रोहन," स्टाइलिश गॉगल्स पहने, 45 साल के अरविंद चौधरी ने रोहन को देखते ही एक औपचारिक मुस्कान के साथ कहा। "प्लीज़ हेव ए सीट।"
ऑफिस में बाकी सबकी तरह चौधरी भी रोहन को 'रो' कहकर बुलाता था।
"कहिए सर, कैसे याद किया आपने मुझे?" चौधरी की आँखों में झाँककर उसके मनसूबों को भाँपने की कोशिश करते हुए रोहन ने पूछा।
"रो, तुम्हारा ये जो शो है," अपने लैपटॉप पर रोहन के भेजे मेवटगढ़ वाले प्रेज़ेंटेशन को देखते हुए चौधरी ने पूछा, "क्या इसमें हॉन्टेड जगहों की असलियत ही दिखाना ज़रूरी है?"
"हम इस बारे में पहले भी डिस्कस कर चुके हैं सर," बुरे ख्याल फिर से रोहन के मन में घर कर गए और उसका चेहरा उतर गया। "और आपने इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी भी दे दी थी। फ़िर, अब ये सवाल क्यूँ ?"
"ऑफ कोर्स!" चौधरी ने खाँसकर गला साफ़ किया और फ़िर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए रोहन को देखा और पूछा, "मगर क्या तुम्हें नहीं लगता ये थोड़ा ...आय मीन...थोड़ा ज़्यादा ही रिस्की हो जाएगा?"
रोहन चुप रहा और चौधरी की आँखों में देखकर उसके लब्ज़ों में छुपे मतलब को समझने की कोशिश करने लगा।
"देखो, मैं तुम्हें एक हॉरर सिरीस के लिए आसान सा कॉन्सेप्ट बताता हूँ।" चौधरी की आँखें बड़े जोश से दमक उठीं। "एक 24 - 25 साल की खूबसूरत सी लड़की, एक हॉन्टेड बँगले में अकेले रहने आती है। रात को उसे कुछ पैरानॉर्मल एक्सपीरिएन्सेस होते हैं। वो ड़र जाती है और एक सेक्सी सा नाईट गाउन पहने, आधी रात के वक़्त बाहर सड़क पर दौड़ने लगती है।"
"तभी वो हीरो की गाड़ी से टकराते टकराते बच जाती है। दोनों की नज़रें मिलती हैं और प्यार हो जाता है। लड़की उस जाँबाज़ हैंडसम से मदद माँगती है। और हीरो उसके साथ उस हॉन्टेड बँगले में रहने लगता है। बस फ़िर क्या? हर रात प्यार में पागल इस जवान, हसीन जोड़े के बेडरूम सीन दिखाकर ऑडियंस को उकसायेंगे और साथ ही भूत का स्पेशल इफ़ेक्ट डालकर डराएंगे। अपने शो की TRP आसमान छूने लगेगी। बोलो, क्या कहते हो? इस कॉन्सेप्ट पर शो करना चाहोगे?"
"जी नहीं सर," अपने अंदर उबलते गुस्से और घिन्न को दबाते हुए रोहन बोला, "ये शो आप उस ठरकी रणदीप को दे दीजिए। वो इसे सुपरहिट बना देगा। मैं काम करूँगा तो अपने प्रोजेक्ट पर वरना नहीं।"
चौधरी ने आह भरी और कुर्सी पर तनकर बैठ गया। रोहन की बात से न उसे हैरानी हु,ई न निराशा। उसे रोहन से इसी जवाब की उम्मीद थी।
"विशाल आहूजा का नाम तो सुना ही होगा?" चौधरी ने एक मग में थोड़ी कॉफी उड़ेली और उसे रोहन की तरफ़ बढ़ा दिया। "कुछ साल पहले तक बड़ा फेमस टेलिविज़न रिपोर्टर हुआ करता रहा। उसके शोज़ सुपर डुपर हिट हुआ करते थे। रातों रात बड़ा हॉट स्टार बन गया था। हर चैनल चाहता था कि विशाल उनके लिए काम करे। उसे मुँह माँगी कीमत देने के लिए तैयार थे सबके सब।"
"अच्छा खासा कैरियर बना किया था उसने। फ़िर एक दिन, तुम्हारी तरह पेरानॉर्मल चीजों की हकीकत खोजने का भूत सवार हो गया था उसके सर पर भी। उसने भी अपने शो के पहले एपिसोड के लिए इसी मेवटगढ़ के किले को ही चुना था। फ़िर कुछ ऐसा हुआ उसके साथ कि उसने अपना बना बनाया कैरियर छोड़कर जर्नलिज्म से ही सन्यास ले लिया। पता है क्या हुआ था उसके साथ?"
करीब 5 साल पहले, रोहन ने भी विशाल आहूजा के हॉरर शो से जुड़ी कुछ खबरें और कई सारी मसालेदार अफवायें सुनी थी।
"हाँ, कुछ सुना तो मैंने भी है," पुरानी बातें याद करते हुए रोहन के माथे पर शिकन पड़ी।
"किले में रात के वक़्त शूट करते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया...हम्म...उसे कुछ...बहुत सीरियस चोट लगी। कुछ दिन ICU में भी था। फ़िर काफ़ी अरसे तक विदेशों में उसका इलाज चलता रहा। अब सर, शूटिंग पर ऐसे हादसों का होना तो आम बात है, ना?"
"ये सब तो वो बातें हैं जो आहूजा परिवार ने मीडियावालों से अपना पिंड छुड़ाने के लिए बतायीं" चौधरी ने रोहन को घूरते हुए कहा। "अंदर की बात बस हम कुछ ही लोग जानते हैं। पता भी ICU के अंदर विशाल कैसी कैसी हरकतें किया करता था?"
रोहन ने चौंकते हुए चौधरी को देखा।
"उसका बदन ऐसे कांपता था जैसे उसे मिर्गी के दौरे पड़ रहे हों। वो कुछ अजीब से शब्दों को बार बार दोहराता रहता। दीवारों पर नाखूनों से कुरेद कर कुछ अजीब अजीब सी चीज़े बनाता रहता। बड़े बड़े डॉक्टर भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उसका मर्ज़ क्या है? जब मर्ज़ ही नही समझ पाते तो क्या ख़ाक इलाज करते?"
"उसके हॉस्पिटल के बाहर हर वक़्त मीडियावालों का मेला लगा रहता था। ये बात बाहरवालों को पता न चल जाये इसलिए उसके परिवार ने ज़बरदस्ती उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा लिया और वहाँ से ले गए। फ़िर किसी को उसकी कोई ख़बर नहीं मिली। उसके घरवाले उसे कहाँ ले गए? कहाँ उसका इलाज करवाया? कोई नहीं जानता। साल भर बाद पता चला कि उसने अपनी गर्लफ्रैंड से शादी कर ली है और अब अपने ससुर का बिज़नेस संभाल रहा है।"
चौधरी ने एक गहरी साँस ली और रोहन की आँखों में देखकर कहा, "I am warning you, Ro उस जगह ज़रूर कुछ है जो बहुत खतरनाक है। अब तुम बताओ, क्या इतना बड़ा रिस्क लेना ज़रूरी है। अभी भी वक़्त है बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ मीटिंग में। तुम चाहो तो मेवटगढ़ वाले कांसेप्ट को बदलकर, कोई नया कांसेप्ट प्रेज़ेंट कर सकते हो।"
"मैं समझ सकता हूँ सर कि आपको मेरी कितनी फ़िक्र है।" रोहन ने एक गहरी साँस छोड़ी और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, "मगर, चाहे जो हो जाये, मैं इसी प्रॉजेक्ट पर काम करना चाहूँगा।"
"फाइन!" चौधरी ने हाथ खड़े कर लिए "डायरेक्टर बोर्ड की मीटिंग में बस आधा घंटा बाकी है। मीटिंग के बाद मैं चाहूँगा कि तुम विशाल आहूजा के ऑफिस जाकर उससे एक बार मिल लो। अगर विशाल से मिलने के बाद तुम्हारा इरादा बदल जाये तो डायरेक्टर बोर्ड को मैं हैंडल कर लूँगा। और अगर फ़िर भी तुम्हें इसी प्रोजेक्ट पर काम करना है तो विशाल का एक्सपीरियंस तुम्हारे काम आएगा।"
"जी ज़रूर," रोहन कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और बोला, "Thank you sir."
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