Update 7 -
रोहन ने ब्रेक दबाया तो उसकी कार एक तेज़ आवाज़ के साथ किले के बाहर रुक गयी। अमावस की रात के सन्नाटे में कार के ब्रेक की आवाज़ दूर तक गूंज उठी। रोहन ने कार का इंजिन बन्द किया और अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को देखा। रात के 12 बज चुके थे।
हालाँकि की कर्नल साहब चाहते थे कि उनका ड्राइवर रोहन को किले तक छोड़ दे मगर हरिचरण था कि आधी रात के वक़्त किले के आस पास फटकने से भी कतरा रहा था। इसलिए, रोहन खुद ही कर्नल की कार ड्राइव कर के आ गया।
कार पार्क करने के बाद रोहन ने हैंडीकैम और शूटिंग की ज़रूरत की दूसरी चीजों से भरा एक बैग लिए कार से बाहर निकला। उसकी चैनल के टेक्निशियंस ने किले में हर तरफ़ सीसीटीवी कैमरा लगवा दिए थे। हाँ, वो अलग बात है कि इसके लिए रोहन को अपनी शूटिंग एक हफ़्ते के लिए रोकनी पड़ी।
चैनल के डायरेक्टर्स ने शर्त ये रखी थी कि रोहन अकेला ही रात के वक़्त किले में जायेगा ताकि इस शो को लेकर ऑडियंस में रोमांच बन जाये। रोहन ने उनकी ये शर्त फ़ौरन मान ली क्योंकि उसकी नज़र में वहाँ ऐसी कोई शक्ति नहीं थी जिससे उसे कोई खतरा हो सकता था। फ़िर भी, कर्नल के कहने पर रोहन ने उनकी पिस्तौल अपने साथ रख ली थी। रोहन ने बैग को संभालकर थाम लिया और किले के अंदर चल पड़ा।
आज तक रोहन ने मेवटगढ़ के किले को सिर्फ़ तस्वीरों में देखा था। आज पहली बार किले में कदम रखते ही उसे ऐसा लगा जैसे वो न जाने कितनी बार इन राहों से गुज़र चुका है। वक़्त की मार से जूझती उन खण्डहरों की बेजान दीवारें, और उन दीवारों से लिपटी जँगली बेलों के पत्तों की सरसराहट, सब रोहन को ऐसे लग रहे थे जैसे अपनी ही किसी रहस्यमयी भाषा में उसके कानों में कोई राज़ फुसफुसा रहे हों।
एक पल को रोहन के बढ़ते कदम रुक गए जैसे वो प्रकृति के इस गुप्त संदेश को सुनने और समझने की कोशिश कर रहा हो। उसे ऐसा लगा जैसे उसके चारों और फैले अँधेरे की चादर में बहुत सी अनदेखी l परछाईयाँ मंडरा रही हों। वो उनके कदमों की आहट को महसूस करने लगा। मगर फ़िर उसे अपने काम की याद आयी और हैंडीकैम ऑन किये वो आगे बढ़ गया।
किले के अंदर तरह तरह की इमारतों के खंडहर थे। रात के सन्नाटे में, हर तरफ़ से न जाने कैसी कैसी खौफ़नाक आवाज़ें गूँज रही थीं। जंगली बेलों की पत्तियों से हवा भी सरसराते हुए गुज़रती तो रोहन चौंक जाता था। उसे ऐसा लगता जैसे कोई अदृश्य परछाई उसका पीछा कर रही है। वो चौंकते हुए पीछे मुड़ता मगर अपने पीछे किसी को नहीं पाता। रोहन अपना हर कदम सम्भाल कर रखते हुए आगे बढ़ने लगा।
किले के ठीक बीच में एक बड़ी सी इमारत का खंडहर था। रोहन को लगा यही इमारत किसी ज़माने में महाराज विक्रमदेव का राजमहल रहा होगा। मगर, वो पूरे यकीन के साथ नहीं कह सकता था। मगर, फ़िर रोहन ने सोचा उसके शो का सम्बंध मेवटगढ़ के इतिहास या किले की बनावट से तो नहीं था। वो तो यहाँ किसी पैरानॉर्मल एक्टिविटी की खोज करने आया था। फ़िर वो मेवटगढ़ के राजमहल में हो या चौपाटी पर, क्या फ़र्क पड़ता है?
रोहन उस इमारत के पास पहुँचा और हैंडीकैम उसकी तरफ़ कर के रेकॉर्डिंग शुरु कर दी।
"नमस्कार दोस्तों, 'सच की खोज' के पहले एपिसोड में
आप सबका स्वागत है, " इमारत के सामने खड़े होकर रोहन हैंडीकैम की तरफ़ देखते हुए बोला। "मैं, आपका होस्ट रोहन मल्होत्रा, आज देश के सबसे ज़्यादा ख़तरनाक बताए जाने वाले मेवटगढ़ के हॉन्टेड किले में, रात के साढ़े बारह बजे एकदम अकेला खड़ा हूँ।"
रोहन ने हैंडीकैम एक बार फ़िर उस इमारत की तरफ़ कर दिया।
"मेरे ठीक पीछे आप सब एक बड़ी सी इमारत देख रहे
हैं जो शायद उस वक़्त के राजा विक्रमदेव का राजमहल है। बताया जाता है कि मेवटगढ़ के हॉन्टेड होने की कहानी राजा विक्रमदेव और उनके पड़ोसी राज्य के राजा दिग्विजय प्रताप की आपसी दुश्मनी से शुरू हुई थी।"
हैंडीकैम को अपनी ओर घुमाने के बाद रोहन ने आगे कहना शुरू किया।
"मेवटगढ़ के लोगों का कहना है कि इस राजमहल में एक ऐसी भयानक आग लगी थी जिसमें बहुत लोग मारे गए। उन लोगों की अतृप्त आत्माएँ आज भी यहीं हैं और इसी वजह से किले को हॉन्टेड माना जाता है। तो आईये देखते हैं, लोगों का ये दावा मिथ्या है या सच?"
हैंडीकैम को मज़बूती से पकड़कर रोहन ने राजमहल के अंदर कदम रखा। उसके कदम जैसे ही उस इमारत के अंदर पड़े, रोहन की साँसें पल भर के लिए थम गयीं और उसके दिल की धड़कनें अचानक तेज़ हो गयीं। रोहन समझ नहीं पा रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है? उसे ऐसा लगा कि जिस चौखट पर उसने अभी अभी अपना पहला कदम रखा है, वो उसके कदमों की आहट को बहुत अच्छी तरह पहचानती थी।
अचानक उसे ऐसा लगा कई सारी इंसानी आवाज़ें उसके कानों में कुछ फुसफुसा रही है। रोहन ने हड़बड़ाकर चारों तरफ़ देखा। चारों तरफ़ अँधेरे और सन्नाटे के सिवाय और कुछ नहीं था। रोहन ने अपना सर झटका और खुद को यकीन दिलाया कि उसे वहम हुआ है। उसके सामने एक बड़ा सा गलियारा था जो शायद कभी राजमहल का मुख्य प्रवेश द्वार हुआ करता था। वो गलियारा आगे चलकर कई सारे गलियारों में बँट जाता था। जहाँ तक नज़र जाती थी सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं नज़र आता था। आगे बढ़ने से पहले रोहन ने हैंडीकैम को एक बार फ़िर अपनी तरफ़ घुमा लिया।
"कल सुबह का सूरज उगने तक मैं इस पूरे किले में घूमकर ये पता लगाने की कोशिश करूँगा कि यहाँ कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटी है या नहीं। मेरे पास ऐसे कुछ डिवाइस हैं जो किसी भी तरह की नेगटिव एनर्जी के संपर्क में आते ही सिग्नल देना शुरू कर देंगे। तो चलते हैं, मेवटगढ़ के रोमांचक सफ़र पर।
रोहन ने हैंडीकैम को एक बार फ़िर गलियारे की तरफ़ घुमा दिया। मगर, इस बार उसे उस बड़े से गलियारे के अंत में एक हल्की सी रोशनी नज़र आयी।
"अरे!" रोहन को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ, "वहाँ अचानक रोशनी कैसे नज़र आ रही है? कुछ 2 मिनट पहले तक तो हर तरफ़ बस अँधेरा था। चलो, देखते हैं।”
रोहन उस रोशनी की तरफ़ बढ़ चला। वो जैसे जैसे उस रोशनी के करीब बढ़ता गया उस इमारत में बड़ी अजीब सी तब्दीलियाँ होने लगीं। दीवारों पर पड़ी दरारें अपने आप ग़ायब होने लगीं और उनकी रंगत वापस आने लगी। उन पर लिपटी जँगली बेलें और मकड़ी के जाले हवा हो गए। धूल की अनगिनत परतों के नीचे दबे फ़र्श का संगमरमर, धुले आईने की तरह चमकने लगा।
रोहन जब गलियारे के अंत में पहुँचा तो देखा कि वहाँ से राजमहल बिल्कुल वैसा ही नज़र आ रहा था जैसा कि वो सैंकड़ो साल पहले, महाराज विक्रमदेव के समय पर लगता था। बेशकीमती कालीन से सजा संगमरमर का फर्श था, दीवारों और मीनारों की नक्काशी बेमिसाल थी, जगह जगह खूबसूरत झूमर लटक रहे थे जिनमें जलते चिरागों की रोशनी रात में भी दिन का एहसास कराती थी।
मगर, उससे भी अजीब बात ये थी कि रोहन को फ़र्श का वो कालीन, छत पर लगे झूमर ही नहीं, दीवारों पर उकेरी नक्काशी का हर बेल बूटा, हर पत्ता बहुत जाना पहचाना लगता है। उसे ऐसा जान पड़ता था जैसे ये नज़ारे न जाने कितनी बार उसकी आँखों के सामने से गुज़र चुके हों। वो आँखें फाड़े अपने चारों ओर बस देखता ही रह गया। तभी उसे किसी लड़की के चीखने की आवाज़ सुनायी दी और वो चौंक गया।
रोहन ने इधर उधर नज़रें घुमायी मगर कहीं कोई नज़र
न आया। वो ध्यान लगाकर सुनने लगा कि ये आवाज़ कहाँ से आयी थी। मगर, अब वहाँ सिर्फ़ सन्नाटा था। कुछ 5 मिनट बाद, वो सन्नाटा पायलों की आवाज़ से गूंज उठा। हर गुज़रते पल के साथ पायलों की झनकार की आवाज़ तेज़ होती गयी जैसे कोई करीब आ रहा हो। कुछ पलों बाद, पायलों की आवाज़ के साथ ही, बहुत सारे कदमों के एक साथ इसी दिशा में बढ़ने की आवाज़ भी सुनायी दी।
रोहन भौंचक्का सा होकर अपने चारों ओर उन लोगों को ढूँढता ही रहा जिनके कदमों की आहट उसे सुनायी दे रही थी। मगर उसे कहीं कोई भी नज़र नहीं आया। रोहन परेशान था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा था। तभी पीछे से किसी लड़की की आवाज़ आयी।
"वीरभद्र!"
रोहन तुरंत पीछे मुड़ा और उसे रेशमी कपड़ों और बेशकीमती ज़ेवरों से सजी एक खूबसूरत सी लड़की नज़र आयी। रोहन उसे देखते ही पहचान गया। ये वही लड़की थी जो उसे हर रात अपने सपनों में नज़र आती थी। रोहन को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान खिल उठी और उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े।
"आप कहाँ चले गए थे, वीरभद्र?" वो लड़की बाँहें पसारे, दौड़ती हुई रोहन की तरफ़ आयी।
उसे अपनी ओर आते देख रोहन की बाँहें भी खुद ब खुद फैल गयीं जैसे वो उस लड़की को अपनी आगोश में भरने के लिए बेक़रार हो। रोहन को अपनी इस हरकत पर बेहद ताज्जुब हुआ। जिस लड़की को वो जानता तक नहीं था उसे गले से लगाने को वो क्यों इतना उतावला हो रहा था?
वो लड़की रोहन के करीब पहुँची ही थी कि पीछे से एक खूँखार, जल्लाद जैसा आदमी आगे बढ़ा और उस लड़की को अपनी तरफ़ खींच लिया। उस जल्लाद के पीछे कई सारे आदमी सैनिकों की वर्दी पहने खड़े थे। उस जल्लाद ने लड़की का मुँह अपने शैतान के पंजे जैसे दिखने वाले हाथों से बन्द कर दिया। लड़की उसकी क़ैद से खुद को छुड़ाने के लिए मचल रही थी। नाक और मुँह बन्द होने की वजह से वो साँस नहीं ले पा रही थी। धीरे धीरे उसकी पलकें झपकने लगीं और कुछ ही पलों में वो उस जल्लाद की बाहों में बेहोश हो गयी। जल्लाद ने उस लड़की के बेहोश जिस्म को अपने कंधे पर लादा और अँधेरे की ओट में कहीं गयाब हो गया।
"मान्या!"
रोहन के मुँह से खुद ब खुद ये नाम निकला और कुछ देर तक उस सूनसान गलियारे में गूँजता रहा। मगर, अब उसकी पुकार सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था। राजमहल फ़िर से खंडहर में तब्दील हो गया और अँधेरे की चादर में समा गया। रोहन को सर में बड़ा तेज़ दर्द महसूस हुआ। हैंडीकैम उसके हाथों से छूटकर फ़र्श पर गिर गया। रोहन ने दोनों हाथों से अपने सर को कसकर पकड़ लिया। किले के अंदर फैला अँधेरा रोहन की आँखों में बस गया और उसकी नज़र धुंधलाने लगी। कुछ ही पलों में रोहन बेहोश होकर गिर गया ।