• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


  • Total voters
    102
  • Poll closed .

Abhi123

Active Member
670
1,489
138
Bahut badiya
भाग 4


पवन अपने खेत में काम कर रहा था। उसके साथ उसका दोस्त चंदन, (आँचल का बेटा) था। दोनो का खेत पास पास था, इस लिए दोनों काम के वक्त भी साथ साथ रहते।


पवन के एक खेत में धान और दूसरे खेत में सब्जी का चारा लगा हुया था। पवन सब्जी के खेत में घास छांटने में लगा था। वहीं उसके काम में चंदन हाथ बटा रहा था।


"पवन सोच रहा हूँ इस सप्ताह को नगर घूमने चलूँ। वह चंचल ने परेशान कर रखा है। तू जाएगा क्या?"


"वहां तो अगले सप्ताह से मेला लगने वाला है शायद?"


"हाँ इसी लिए तो चंचल जिद कर रही है। तू भी चल ना राधा को लेकर! सुबह सूरज निकलने के बाद चल देंगें तो शाम तक घर लौट कर आ सकते हैं।"


"ठीक है देखता हुँ। वैसे भी तुझे पता तो है अम्मा राधा को कहीं जाने नहीं देती, वह भी परेशान हो जाती है। नहीं तो मेरा कितना शौक है मैं पुणे शहर में घुमने जाऊँ।"


"हाँ यार, मेरा भी बहुत मन है पुणे जाने का। सुधा मौसी ने बार बार कहा है जाने को। एक बात सूझी है, क्यों ना, हम मौसी के लडके की शादी के अवसर में चलें। कुसुम मौसी भी इन्कार नहीं कर पायेगी। क्या बोलता है?"


"हाँ, मैं ने भी सोचा है। देखते हैं, पहले मौसी की तरफ से न्योता आ जाये।"


"वह तो आ ही जाएगा।"


"अरे बुद्धू, आ जायेगा, वह हमें भी पता है, लेकिन किस समय जाना है उसके लिए तो न्योता चाहिए ना??" पवन की बात पे चंदन हंसने लगता है।


काफी देर तक दोनों काम में लगे रहे। फिर थोडी देर के लिए दोनों छप्पर के पास साये में आकर सुस्ताने लगे।


"यार पवन, तूने कुछ मालुम किया? आखिर कब तक एसा चलता रहेगा?" चंदन की बात पे पवन थोडी देर सोच में गमगीन हो जाता है।


"नहीं चंदन, मुझे कुछ भी मालुम नहीं हुया। मैं ने गावँ में कई बुजुर्गों से पूछा पर किसी को मेरे बाप के बारे में कुछ पता नहीं। सब ने कहा, मेरे बाप को ज्यादा किसी ने देखा नहीं। अब वह कहाँ से आये और कहाँ चले गए यह किसी को नहीं पता।"


"माँ कहती है तू बिल्कुल अपने बाप जेसा दिखता है। क्या यह सच है?"


"हाँ, मैं ने माँ से भी यही सुना है। और उस दिन जब सुधा मौसी हमारे घर आई थी, उन्होनें जब मुझे देखा तो बहुत हयरान हो गई थी, उन्हें लगा मैं माँ का पति हुँ। मुझे बड़ी शर्म आई। मैं तो सिर नीचे करके बस वहां से भाग गया।"


"क्या सच में?" चंदन चौंक जाता है।


"अरे हाँ यार। झूट क्यों बोलूंगा। अब मुझे भी लगने लगा है मैं वाकई अपने बाप जेसा दिखता हूँ। इसी लिये शायद माँ कभी कभी मुझ से बात करते हुए शर्मा जाती है।"


दोनों आपसी बातों में मगन थे इतने में दूर से चंदन को पवन की माँ कुसुम मौसी आती दिखाई दी।


"पवन, मौसी आ रही है। शायद तेरा खाना ला रही होगी।"


"हम्म।"


"मैं चलता हूँ फिर, मुझे माँ ने घर आने को कहा था। तू बाकी का काम निपटाके आ जाना।" चंदन जाने को लगता है।


"अरे खाना तो खाके जाता।"


"नहीं यार, देर हो जायेगी।" पवन ने उसे रोका नहीं। वैसे भी चंदन और पहले जाने लगा था।

कुसुम छप्पर के पास आकर पवन के पास बेठ जाती है। और बेठकर पोटली खोलके पवन के आगे रोटी निकाल कर देती है।


"काम निमट गया क्या बेटा?" कुसुम ने पवन को देखते हूए पूछा।


"थोड़ा और बाकी है।" पवन ने निवाला मुहं में डाला।

दोनों माँ बेटा एक दूसरे की और देखे जा रहे थे। कोई अजनबी आकर इन्हें देखके कह सकता था एक पत्नी अपने पति को बड़े प्यार से खाना खिला रही है। कुसुम जिसे अपने आप को एक विधवा मानने से इन्कार था। वह हमेशा एक सुहागन की तरह बनी सजी रहती थी। उसके गले में आज भी एक लाल धागा बंधा था। जो समय के साथ फीका पड़ गया था। यह लाल धागे का हार उसके पति का बाँधा हुया था। यह उसके पति ने उसे मंगलसूत्र के तौर पर दिया था। उसकी माँग में आज भी हर दिन की तरह चमचमाती सिंदूर की झलक थी। जो कुसुम हर रोज नहाने के बाद अपनी माँग में लगाया करती है। इतना सजना संवरना कुसुम इसी लिए करके रखती क्यौंकि उसके मन में आज भी यकीन है उसका पति एकदिन जरुर वापिस आयेगा। इसी लिये कुसुम आज भी शरीर और मन से एक यौवन कन्या से कम नहीं थी। उसे हर दिन एसा लगता है शायद आज उसका पति उससे मिलने आयेगा? इसी लिए वह हर रोज इस तरह सजी हुई रहती है।


कुसुम चाह कर भी अपने पति को भुला नहीं सकती थी। जेसे जैसे पवन बड़ा होता गया वह बिल्कुल अपने बाप जेसा दिखने लगा था। इस तरह कुसुम जब भी अपने बेटे को देखती उसे अपने पति की याद ताजा हो जाती। अपने बेटे को देख कुसुम सौ प्यार बरसा रही थी।


"माँ तुम से मुझे बहुत सारी बातें पूछनी है।"


"किस बारे में?"


"मेरे बाप के बारे में, मुझे अपने बाप को ढूँढना है।" पवन खाना खत्म करके हाथ धोकर पानी पीकर माँ के पास बेठता है।


"माँ, क्या बापू की कोइ निशानी है तुम्हारे पास? जिससे पता किया जा सके वह कहाँ के रहने वाले थे? क्या कभी उन्होने किसी जगह का नाम बताया था?"


"निशानी तो बस यही है मेरे पास!" कुसुम अपने गले का धागा दिखाती है।

"बाकी तेरे बापू ने कहा था वह राधानगर के रहने वाले थे। वह कहते थे, इस तीन पहाड़ी के उस पार से वह आये हैं। हमारे गावँवाले कभी उस तरफ गए नहीं थे। लम्बा पहाड़ तै करके कौन जाना चाहेगा। तेरी नानी ने एकबार एक सौदागर से पूछा था राधानगर के बारे में। लेकिन उसने बताया था तीन पहाड़ी के उसपार इस नाम से कोई जगह नहीं है। इस लिए मैं ने भी उम्मीदें छोड़ दी थी।" कुसुम मायुस हो पडती है।


"लेकिन माँ हमें जानना तो पड़ेगा ना! आखिर कब तक तुम इस तरह आस लगाये बैठी रहोगी।"


"लेकिन पवन मैं इस के अलावा और क्या कर सकती हूँ?"


"तुम चिंता मत करो माँ, मैं तुम्हारी हंसी और पुराना दिन फिर से वापिस लाऊँगा। बापू को ढूँढ के तुम्हारे पास लेके आऊँगा। यह मेरा वादा रहा। तुम्हारे इस सिन्दूर के दाग को मैं मिटने नहीं दूँगा। तुम सुहागन थी और हमेशा रहोगी।" अपने बेटे की साहस भरी बातों से कुसुम को पवन पर गर्व महसूस होता है। आज उसे लगता है सच में उसका बेटा उसके पति जेसा हो गया है।
 
  • Like
Reactions: I AM JD
Top