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११
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सुनी का अतितावलोकन
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मैं सुबह देर से उठी। मेरा हर अंग और जोड़ दर्द से अकड़ा था। मीठे दर्द से और मोहक अकड़ से। मैंने प्यार भरी मुस्कान लिए अभी भी आँखें बंद किये शेरू को हाथों से टटोला। शेरू मेरे पास लिपट कर सोया था। वो फिर बिस्तर से गायब था। फिर मुझे झटके से होश आया।
हाय राम। मेरे देवरों और ससुरजी में से कोई एक फिर मेरे कमरे में से शेरू को सुबह की प्राकर्तिक ज़रूरतों की संतुष्टि के लिए बाहर ले गया था। मैं एक बार फिर नपत नंगी बिस्तर पे थी। फिर मुझे ज़ोर से धक्का लगा। मेरे बालों में , मुंह पर , जांघों के बीच में शेरू का वीर्य जमा हुआ था। मैं शर्म से लाल हो गयी। हाय जो भी थे वो मेरे बारे में क्या सोचते होंगे।
मैं हार मान कर नाहा धो कर तैयार हो गयी। इस बार मैंने अपनी नयी खरीदारी में से हलकी नीली चोली और सरसों जैसा गहरा बसंती पीला लहंगा पहना। मुझे खुद पर अपनी सुंदरता से बिना चाहे नाज़ आने लगा। मैंने अपने सर झटका और रसोई की ओर बढ़ गयी।
मैं चाय बनाते बनाते रात की यादों की खुमारी में इतनी खो गयी की मुझे वीनू की पदचाप बिलकुल भी नहीं सुनीं। जब उसके मज़बूत बाहें मेरे पेट के ऊपर लपट गयी और उसका साढ़े छह फूटा शरीर मेरे शरीर के पिछवाड़े से चुपक गया तो मुझे होश आया।
"भाभी तुम्हारे विचारों के लिए एक रुपया ," वीनू ने झुक कर मेरे गाल को चूमा।
" मेरे विचारों में तो बस मेरा एक ख़ास देवर रात दिन छाया रहता है , "मैंने मटक कर मुस्कुराते हुए कहा।
"भाभी विश्वास रखें उस देवर के दिमाग में भी तुम्हारी मुस्कुराती खूबसूरत मूरत दिन रात बसी रहती है ," वीनू ने मेरा पेट सहलाते हुए अपने हाथ ऊपर सरकाये धीरे धीरे।
" वाकई देवर जी ? आपको कैसे पता ? ," मैंने अपने चौड़े गोल गोल भारी चूतड़ पीछे कर वीनू की जांघों से रगड़ने लगी।
वीनू के हाथ अब मेरे उन्नत विशाल चूचियों के ऊपर थे। उसकी हथेलियां मेरे अकड़ते मोटे चूचुकों को सहलाने लगीं।
" वाकई भाभी , रात में सोने से पहले और सुबह उठते ही पहला विचार आपके नाम का होता है ,"नीनू ने हलके से मेरे उरोजों को दबाया।
मैंने मुश्किल से सिसकारी दबाई और चिड़ाते हुए कहा , " पर वीनू भैया मैं तो शेरू के बारे रही थी। वो ही तो मेरा सबसे मतवाला देवर है। मेरा पूरा भक्त है। सात में मेरे साथ सोता है मेरी देखभाल करने के लिए और जब देखो मेरे पीछे पूंछ हिलाता घूमता रहता है।”
वीनू ने हंस कर कहा , "भाभी मेरी तो किस्मत ही फुट गयी आपकी बात सुन कर। अरे मुझे मौका तो दीजिये मैं भी आपके आगे पीछे पूंछ हिलता घूमता रहूँगा। मेरे पास पीछे वाली पूंछ तो नहीं है पर आगे वाली पूंछ आपकी लिए हमेशा फहरती रहेगी ," वीनू ने अपनी 'आगे वाली पूंछ ' मेरी पीठ में गड़ाई।
" वीनू भैया , पहले तो आप अपनी भाभी की एक सीधे से अनुरोध का पालन तो कीजिये। आप बार बार भूल जातें हैं और मुझे ' आप - शाप ' की गालियां देने लगते हैं। " मैंने हँसते हुए वीनू को ताना दिया।
वीनू ने मेरे दोनों चूचियों को अपने बड़े बड़े हाथों में भर कर कस कर मसलते हुए कहा , " भाभी, तुम से तो मैं बातों में कभी भी नहीं जीत सकता। चलिए मैं हार मान रहा हूँ। "
"हाय देवर जी कैसी हार मान रहे हो ? अपनी भाभी के कोमल स्तनों को बेदर्दी से मसल मसल कर ?" मैंने इठला कर कहा।
"भाभी आखिर देवर हूँ तुम्हारा। थोड़ा सा तो हक़ बनता है मेरा भी भैया के ख़ज़ाने के ऊपर ," वीनू ने फिर से मेरी चूचियों को मसलते हुए गुहार दी।
" पहले अपने भैया से लिखी हुई अनुमति दिखाओ फिर उनके ख़ज़ाने पर हक़ जमाना ," मैंने बलखाते हुए वीनू की गिरफ्त से फिसल गयी, "अच्छा बोलो चाय पियोगे या नहीं?"
"अपने हाथ से पिलाओगी तो तभी पियूँगा। " वीनू ने भी मुस्करा कर चुनौती दी।
" ठीक है पर अपने हाथों को काबू में रखोगे तभी! ," मैंने भी नियम की सीमा बाँध दी।
"भाभी के हाथों से अमृत पीने के लिए तो जो तुम कहो मंज़ूर है ," वीनू ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
" अब तुम इतने अच्छे बच्चे बन गए हो तो चलो भाभी से इनाम भी ले लो ," मैं वीनू की गोद में बैठ गयी और उसे अपने ही कप से चाय पिलाने लगी। भाभी और देवर ने एक कप दो कप चाय पी धीरे धीरे। मेरे वीनू की गोद में बैठने के प्रभाव से उसका मुस्टंडा लण्ड आधा खड़ा हो गया , " देवर भैया इस चाय का कमाल तो देखो तुम्हारा कैसा उछल मचल रहा है। "
" भाभी यह चाय का नहीं भाभी के जानलेवा निटिम्बों का कमाल है ," वीनू के हाथ मेरी ओर बड़े।
मैं इठला कर वीनू की गोद से कूद कर अलग हो गयी , "चलो देवर जी अब छोटे अच्छे बच्चे की तरह स्नानघर में जा कर अपने मूसल की हाथ से सेवा करो। यह ठंडा हो जाये तो फिर आना अपनी भाभी के पास। "
मैं हँसते हुए ताज़ा चाय कप लिए रसोई से बाहर चल पड़ी।
अगले दो दिन ऐसे ही हंसी ख़ुशी से भरे गुजर गए। रोज़ की तरह मैंने अपने निर्मल को लम्बे लम्बे तीन टेक्स्ट, दो ईमेल भेजी। निर्मल ने हमेशा की तरह थोड़ी संक्षिप्त से जवाब भेजे। पर मेरे लिए उसमे अनमोल प्यार बसा था।
रात में हमेशा की तरह शेरू मेरे बिस्तर में सोता पहले अपनी भाभी की चूत चाट कर मुझे अनगिनत बार झाड़ कर फिर बेदर्दी से घंटे भर चोदता और मैं लगभग बेहोशी के आलम में सो जाती। मेरी वासना की संतुष्टि शेरू के हाथों में थी या कहूं की पंजों में।
दिन की शुरुआत एक या दुसरे देवर के चुहल बाजी करते हुए शुरू होती। शाम और रात के खाने के समय ससुरजी की गोद में बैठना का तो नियम सा बन गया।
दिन में जिस को मौका मिलता वो देवर मुझसे लिपटने का कोई मौका नहीं छोड़ता। सिर्फ विक्कू भैया के अलावा। विक्कू भैया बातों से कभी कभी शैतानी की बातें ज़रूर करते थे पर वो वाकई थोड़े शांत और स्थिर व्यवहार के पुरुष थे। मैं इतनी ख़ुशी अपनी याद में कभी भी नहीं महसूस की थी। बड़े प्यार भरे परिवार के सुख की ख़ुशी।
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