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Incest पूरे परिवार की वधु

SEEMASINGH

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सुनी का अतितावलोकन
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मैं और निर्मल रोज़ ईमेल या टेक्स्ट से एक दुसरे का हाल चाल पूछते थे। मेरी ईमेल और टेक्स्ट लम्बे और वार्तालापी होते थे पर निर्मल के जवाब छोटे और मतलब से सम्पादित होते। मैंने उनके परिवार की बड़ाई के पुलंदे बाँध दिए।
शेरू अब मेरा हमराज़ और अंतरंग मित्र बन गया था। हमने उस दिन एक बार और सम्भोग किया। शाम के खाना मेरे निरिक्षण में बना और सभी ने सराहा। एक ही दिन में मैं पाँचों देवरों और ससुरजी से बिलकुल खुल गयी थी। शाम के ड्रिंक्स पीते हुए मैं ससुरजी की गोद में बैठ गयी अपने देवरों को चिढ़ाने के लिए।


####### rest edited ####### available at the other site x o s s i p z . com
 

SEEMASINGH

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१०
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सुनी का अतितावलोकन
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मैंने अपनी घुंघराली झांटों को के नीचे छुपे चूत के गुलाबी भगोष्ठों को फैला दिया। मेरी चूत से रति-रस अविरल बह रहा था। शेरू की अत्यन्त विकसित संवेदन शील सूंघने की क्षमता ने मेरे योनि से निकलते सम्भोग के कस्तूरी की सौंधी सुगंध को तुरंत ढूंढ लिया।


####### edited ######### please find it elsewhere x o s s i p z. c o m
 

SEEMASINGH

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११
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सुनी का अतितावलोकन
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मैं सुबह देर से उठी। मेरा हर अंग और जोड़ दर्द से अकड़ा था। मीठे दर्द से और मोहक अकड़ से। मैंने प्यार भरी मुस्कान लिए अभी भी आँखें बंद किये शेरू को हाथों से टटोला। शेरू मेरे पास लिपट कर सोया था। वो फिर बिस्तर से गायब था। फिर मुझे झटके से होश आया।
हाय राम। मेरे देवरों और ससुरजी में से कोई एक फिर मेरे कमरे में से शेरू को सुबह की प्राकर्तिक ज़रूरतों की संतुष्टि के लिए बाहर ले गया था। मैं एक बार फिर नपत नंगी बिस्तर पे थी। फिर मुझे ज़ोर से धक्का लगा। मेरे बालों में , मुंह पर , जांघों के बीच में शेरू का वीर्य जमा हुआ था। मैं शर्म से लाल हो गयी। हाय जो भी थे वो मेरे बारे में क्या सोचते होंगे।
मैं हार मान कर नाहा धो कर तैयार हो गयी। इस बार मैंने अपनी नयी खरीदारी में से हलकी नीली चोली और सरसों जैसा गहरा बसंती पीला लहंगा पहना। मुझे खुद पर अपनी सुंदरता से बिना चाहे नाज़ आने लगा। मैंने अपने सर झटका और रसोई की ओर बढ़ गयी।
मैं चाय बनाते बनाते रात की यादों की खुमारी में इतनी खो गयी की मुझे वीनू की पदचाप बिलकुल भी नहीं सुनीं। जब उसके मज़बूत बाहें मेरे पेट के ऊपर लपट गयी और उसका साढ़े छह फूटा शरीर मेरे शरीर के पिछवाड़े से चुपक गया तो मुझे होश आया।
"भाभी तुम्हारे विचारों के लिए एक रुपया ," वीनू ने झुक कर मेरे गाल को चूमा।
" मेरे विचारों में तो बस मेरा एक ख़ास देवर रात दिन छाया रहता है , "मैंने मटक कर मुस्कुराते हुए कहा।
"भाभी विश्वास रखें उस देवर के दिमाग में भी तुम्हारी मुस्कुराती खूबसूरत मूरत दिन रात बसी रहती है ," वीनू ने मेरा पेट सहलाते हुए अपने हाथ ऊपर सरकाये धीरे धीरे।
" वाकई देवर जी ? आपको कैसे पता ? ," मैंने अपने चौड़े गोल गोल भारी चूतड़ पीछे कर वीनू की जांघों से रगड़ने लगी।
वीनू के हाथ अब मेरे उन्नत विशाल चूचियों के ऊपर थे। उसकी हथेलियां मेरे अकड़ते मोटे चूचुकों को सहलाने लगीं।
" वाकई भाभी , रात में सोने से पहले और सुबह उठते ही पहला विचार आपके नाम का होता है ,"नीनू ने हलके से मेरे उरोजों को दबाया।
मैंने मुश्किल से सिसकारी दबाई और चिड़ाते हुए कहा , " पर वीनू भैया मैं तो शेरू के बारे रही थी। वो ही तो मेरा सबसे मतवाला देवर है। मेरा पूरा भक्त है। सात में मेरे साथ सोता है मेरी देखभाल करने के लिए और जब देखो मेरे पीछे पूंछ हिलाता घूमता रहता है।”
वीनू ने हंस कर कहा , "भाभी मेरी तो किस्मत ही फुट गयी आपकी बात सुन कर। अरे मुझे मौका तो दीजिये मैं भी आपके आगे पीछे पूंछ हिलता घूमता रहूँगा। मेरे पास पीछे वाली पूंछ तो नहीं है पर आगे वाली पूंछ आपकी लिए हमेशा फहरती रहेगी ," वीनू ने अपनी 'आगे वाली पूंछ ' मेरी पीठ में गड़ाई।
" वीनू भैया , पहले तो आप अपनी भाभी की एक सीधे से अनुरोध का पालन तो कीजिये। आप बार बार भूल जातें हैं और मुझे ' आप - शाप ' की गालियां देने लगते हैं। " मैंने हँसते हुए वीनू को ताना दिया।
वीनू ने मेरे दोनों चूचियों को अपने बड़े बड़े हाथों में भर कर कस कर मसलते हुए कहा , " भाभी, तुम से तो मैं बातों में कभी भी नहीं जीत सकता। चलिए मैं हार मान रहा हूँ। "
"हाय देवर जी कैसी हार मान रहे हो ? अपनी भाभी के कोमल स्तनों को बेदर्दी से मसल मसल कर ?" मैंने इठला कर कहा।
"भाभी आखिर देवर हूँ तुम्हारा। थोड़ा सा तो हक़ बनता है मेरा भी भैया के ख़ज़ाने के ऊपर ," वीनू ने फिर से मेरी चूचियों को मसलते हुए गुहार दी।
" पहले अपने भैया से लिखी हुई अनुमति दिखाओ फिर उनके ख़ज़ाने पर हक़ जमाना ," मैंने बलखाते हुए वीनू की गिरफ्त से फिसल गयी, "अच्छा बोलो चाय पियोगे या नहीं?"
"अपने हाथ से पिलाओगी तो तभी पियूँगा। " वीनू ने भी मुस्करा कर चुनौती दी।
" ठीक है पर अपने हाथों को काबू में रखोगे तभी! ," मैंने भी नियम की सीमा बाँध दी।
"भाभी के हाथों से अमृत पीने के लिए तो जो तुम कहो मंज़ूर है ," वीनू ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
" अब तुम इतने अच्छे बच्चे बन गए हो तो चलो भाभी से इनाम भी ले लो ," मैं वीनू की गोद में बैठ गयी और उसे अपने ही कप से चाय पिलाने लगी। भाभी और देवर ने एक कप दो कप चाय पी धीरे धीरे। मेरे वीनू की गोद में बैठने के प्रभाव से उसका मुस्टंडा लण्ड आधा खड़ा हो गया , " देवर भैया इस चाय का कमाल तो देखो तुम्हारा कैसा उछल मचल रहा है। "
" भाभी यह चाय का नहीं भाभी के जानलेवा निटिम्बों का कमाल है ," वीनू के हाथ मेरी ओर बड़े।
मैं इठला कर वीनू की गोद से कूद कर अलग हो गयी , "चलो देवर जी अब छोटे अच्छे बच्चे की तरह स्नानघर में जा कर अपने मूसल की हाथ से सेवा करो। यह ठंडा हो जाये तो फिर आना अपनी भाभी के पास। "
मैं हँसते हुए ताज़ा चाय कप लिए रसोई से बाहर चल पड़ी।
अगले दो दिन ऐसे ही हंसी ख़ुशी से भरे गुजर गए। रोज़ की तरह मैंने अपने निर्मल को लम्बे लम्बे तीन टेक्स्ट, दो ईमेल भेजी। निर्मल ने हमेशा की तरह थोड़ी संक्षिप्त से जवाब भेजे। पर मेरे लिए उसमे अनमोल प्यार बसा था।
रात में हमेशा की तरह शेरू मेरे बिस्तर में सोता पहले अपनी भाभी की चूत चाट कर मुझे अनगिनत बार झाड़ कर फिर बेदर्दी से घंटे भर चोदता और मैं लगभग बेहोशी के आलम में सो जाती। मेरी वासना की संतुष्टि शेरू के हाथों में थी या कहूं की पंजों में।
दिन की शुरुआत एक या दुसरे देवर के चुहल बाजी करते हुए शुरू होती। शाम और रात के खाने के समय ससुरजी की गोद में बैठना का तो नियम सा बन गया।
दिन में जिस को मौका मिलता वो देवर मुझसे लिपटने का कोई मौका नहीं छोड़ता। सिर्फ विक्कू भैया के अलावा। विक्कू भैया बातों से कभी कभी शैतानी की बातें ज़रूर करते थे पर वो वाकई थोड़े शांत और स्थिर व्यवहार के पुरुष थे। मैं इतनी ख़ुशी अपनी याद में कभी भी नहीं महसूस की थी। बड़े प्यार भरे परिवार के सुख की ख़ुशी।

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SEEMASINGH

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वर्तमान काल [कहानी के दिवस में वापसी ]
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१२
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मैंने गहरी सांस ले कर उठी और वापस पिछले दिनों की मीठी यादों से वापस वर्तमान में वापस आ गयी। कल रात शेरू मेरे कमरे में नहीं आया था। सारी रात में उलट पलट कर सोयी। रसोई में इस बार टीटू और बबलू ने मुझे दूध पीते हुए मुझे सुबह के लिपटा लुपति की। मैं रात में बिना शेरू के लण्ड से चुदे वैसे हीअसंतुष्ट थी। टीटू और बबलू के कमसिन खूबसूरत चेहरों और उनके शैतान भटकते हाथों ने मेरी वासना की अग्नि को और भी प्रज्ज्वलित कर दिया।
मैं जब बाहर आई तो सारे देवर किसी न किसी खेत पर काम की निगरानी के लिए जा चुके थे। ससुरजी भी कहीं नहीं दिखे। शेरू तभी दौड़ता हांफता कहीं से आया और मेरे ऊपर उछल उछल कर मुझे चूमने का प्रयास करने लगा।
मैं भी शेरू को देख कर खिल उठी। मेरी चूत बेशर्मी से रति रस से भर गयी। मैं घर में शेरू के साथ दिन में कमरे में नहीं जाना छह रही थी। घर की नौकरानियां कमरे साफ़ करने में लगीं होंगीं। मैं शेरू को अपने साथ अस्तबल की और ले चली। पिछले दिनों के अनुभव के हिसाब अस्तबल में इस समय कोई भी नहीं होता था।
मैं और शेरू तूफ़ान के बड़े तबेले के दूसरी और चले गए। उस और एक खिड़की थी जिस से रौशनी भी आती और बहार नज़र भी रखने में आसानी हो जाती।


#### EDITED PARTS #############


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जब मैं घर के निकट पहुंची तो दो बलशाली बाहों ने मुझे एक भीमकाय शरीर के साथ लिपटा लिया। यह मेरे सबसे बड़े देवर विक्कू भैया थे।
" भाभी, तुम्हे अपने देवर से क्या भेंट चाहिए अपने जनम-दिन के ऊपर ?" विक्कू ने मुझे कर पुछा।
मेरा ध्यान तीन दो दिन बाद के जनम दिवस के ऊपर गया। मेरा जनम दिन और ससुरजी का जनम दिन एक ही दिन था। इस बात से ससुरजी बहुत भावुक हो गए थे।
" विक्कू भैया पापाजी का भी तो जनम दिन है उस दिन," मैंने कहा।
" हमें पता है की पापा को क्या चाहिए। मैं तो तुम्हारे बारे में सोच सोच कर थक गया।" विक्कू ने मेरे पेट को सहलाते हुए कहा।
" विक्कू भैया आपकी भाभी के लिए तो उसके पांच देवर सबसे बड़ा तोहफा हैं। उसके ऊपर पापाजी को जोड़ लो और कौन बहु इतनी भाग्यशाली होगी? " मैंने मुस्करा कर विक्कू भैया के मर्दाने विशाल हाथों को सहलाते हुए कहा, " भैया यदि पापाजी दिखें तो उनसे कहना की यदि वो शहर की और जाने की सोच रहें हों तो मैं भी उनके साथ जाऊंगी। मुझे जनम दिन के केक के लिए खरीदारी करनी है। "
मैं अभी भी शेरू की भीषण चुदाई के प्रभाव से उत्तेजित थी। मेरी चूत अभी भी बिलबिला रही थी उसके मोठे लण्ड और गाँठ की प्रतारणा से। मेरे उरोज मेरे अनगिनत चरम-आनंद की वजह से सूजे सूजे और नर्म और नाज़ुक महसूस हो रहे थे।
विक्कू भैया ने मुझे छोड़ते छोड़ते अपने हाथों से मेरे संवेदन शील चूचियों को हलके से सहला दिया , जैसे अंजाने में हुआ हो।
 

SEEMASINGH

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१३
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मैं बड़ी मुश्किल से सिसकारी दबा पायी।
" भाभी यदि भैया की याद रात में सोने न दे तो अपने पाँचों देवरों में से जो पसंद हो उसे हुक्म दे देना। रात में सर के बल तुम्हारी सेवा के लिए हाज़िर हो जायेगा," विक्कू ने टेडी मुस्कान के साथ कहा।
"और मेरे देवर क्या करेंगें ? मुझे लोरी दे कर सुला देंगें ?" मैंने फिर से चिढ़ाने रिझाने का तीर छोड़ा।
"यदि तुम भैया के उसको लोरी कहती हो तो बिलकुल सही बात है। तुम्हारे सारे देवर लोरी तैयार कर के ही आएंगें ," विक्कू से मुझे इतनी शरारत की उपेक्षा नहीं थी। मैं शर्म से लाल हो गयी।
"विक्कू भैया आप बहुत बशरम हो ,"मैंने अपने नाज़ुक हाथों की मुट्ठियों से विक्कू चौड़ी बलशाली मांसल सीने को तीन चार बार पीटा। विक्कू भैया हँसते हुए मुड़ कर वापस काम पर चले गए।
मैंने कमरे में जाते ही कपडे उतारने शुरू कर दिये। मैंने लहंगा उतरा ही था की मेरे कमरे के दरवाज़े पर खटखटाहट दी।
मैंने सोचा गहरा साफ़ करने वाली नौकरानी चंपा होगी ," खुला है अंदर आ जाओ। "
मैं अपनी चोली के बटन खोलती स्नानघर कीओर मुड़ गयी। जैसे ही मैंने अपनी चोली भी उतार फेंकी तो मुझे पीछे से आती आवाज़ सुनकर दिल का दौरा सा पड़ गया, " सुनी बेटा , मैं शहर की ओर जा रहा हूँ। जब तैयार हो जाओ तो मुझे बता देना। "
मैं घबराहट में सोच नहीं पाई की अपने हाथों से अपने नग्न शारीर का कौनसा अंग धकू। ऊपर से मेरी घबराहट के बदहोशी में मैंने अच्छे शिष्टाचार के स्वाभाविक रीती में बोलने वाले की और मुड़ गयी। मैं अब अपने ससुरजी जी के सामने अपना आगे का नग्न गदराया शरीर का प्ररदर्शन कर रही थी।
" मैं नहाने जा रही थी। .... अर ठीक है प पा पापा ज जी मैं अभी आतीं हूँ ," मैंने हकलाते हुए फुसफुसाया।
ससुरजी ने मुझे प्यार से देख कर मुझे बिलकुल भी अहसास नहीं होने दिया की मैं जन्म-जात नागिन कड़ी थी अपने पिता-तुल्य ससुरजी के सामने। पिता-तुल्य नहीं अब तो वो मेरे जीवित पिता बन गए थे।
ससुर जी ने मेरे बालों को सहलाया और स्नेह से बोले ," सुनी बेटी मैं तो तेरे जैसी अप्सरा जैसी बहुत नहीं बेटी पा कर धन्य हो गया। "
मैं शरमाते हुए अपने ससुर जी को कमरा छोड़ने के बाद दरवाज़ा बंद करते देखती रही बड़ी देर तक।
मैं जल्दी से नहा धो कर शेरू की चुदाई की मोहनी सुगंध को अनिच्छा से साफ़ किया। मैंने सफ़ेद सूती कमीज़ और जींस पहन ली। गर्मी की वजह से मैंने कमीज़ के नीचे ब्रा नहीं पहनी।
मैं शरमाते हुए ससुरजी की और बढ़ चली
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ससुरजी ने ट्रक जब घर से बाहर निकला दिया तो मैंने शरमाते हुए कहा , "पापा जी मैं माफ़ी चाहती हूँ। मुझे लगा की चंपा काकी कमरा साफ़ करने आई होगी। "
"अरे बेटी माफ़ी की क्या ज़रुरत है। अपने पिता के सामने क्या शर्माना। यदि मैं तेरा जन्म-पिता होता तो न जाने कितनी बार तुझे नहलाता और तेरी गन्दी नैप्पी बदलता। " ससुरजी ने मुझे झिड़का।
"पर मैं तब नन्ही बच्ची होती पापा जी। पूरी बेशरम जवान बेटी नहीं, " मैं भी हंस दी।
"यह तो सही है बेटा। लेकिन देख तेरी सासुमां को सिधारे चौदह चौदह साल हो गए इस बहाने तेरे पापा ने अप्सरा जैसी सुंदर मूरत का नेत्रपान तो कर लिया ," ससुरजी ने ठहाका मारते हुए मुझे और भी लज्जा से लाल कर दिया।
"वैसे सुनी बेटा माफ़ी तो मुझे तुझसे मांगनी है। मैंने बिना चाहे अनजाने में दो सुबह तेरे कमरे में से शेरू को बाहर निकलने के लिए घुस गया। मैं तुम्हे जगाना नहीं चाहता था। और शेरू को सुबह जल्दी बाहर जाने की आदत है। वो बेचारा बहुत परेशान हो जाता है वर्ना ," ससुरजी ने थोड़ी गम्भीर अव्वज में मुझसे कहा।
मेरा दिल धक् से रुक गया। हाय राम पहले दिन तो चलो पापाजी मुझे नंगा ही देखा। पर दुसरे दिन तो मैं शेरू के वीर्य से सनी लिसी थी। मैं डर और शर्म से पागल गयी। मुझे लगा की मरना ज़्यादा अच्छा है।
मैं बिना समझे सबक उठीं और अपना शर्म से लाल मुंह अपने हाथों में छुपा कर ज़ोर से रोने लगी।
 

Incestlala

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मैं बड़ी मुश्किल से सिसकारी दबा पायी।
" भाभी यदि भैया की याद रात में सोने न दे तो अपने पाँचों देवरों में से जो पसंद हो उसे हुक्म दे देना। रात में सर के बल तुम्हारी सेवा के लिए हाज़िर हो जायेगा," विक्कू ने टेडी मुस्कान के साथ कहा।
"और मेरे देवर क्या करेंगें ? मुझे लोरी दे कर सुला देंगें ?" मैंने फिर से चिढ़ाने रिझाने का तीर छोड़ा।
"यदि तुम भैया के उसको लोरी कहती हो तो बिलकुल सही बात है। तुम्हारे सारे देवर लोरी तैयार कर के ही आएंगें ," विक्कू से मुझे इतनी शरारत की उपेक्षा नहीं थी। मैं शर्म से लाल हो गयी।
"विक्कू भैया आप बहुत बशरम हो ,"मैंने अपने नाज़ुक हाथों की मुट्ठियों से विक्कू चौड़ी बलशाली मांसल सीने को तीन चार बार पीटा। विक्कू भैया हँसते हुए मुड़ कर वापस काम पर चले गए।
मैंने कमरे में जाते ही कपडे उतारने शुरू कर दिये। मैंने लहंगा उतरा ही था की मेरे कमरे के दरवाज़े पर खटखटाहट दी।
मैंने सोचा गहरा साफ़ करने वाली नौकरानी चंपा होगी ," खुला है अंदर आ जाओ। "
मैं अपनी चोली के बटन खोलती स्नानघर कीओर मुड़ गयी। जैसे ही मैंने अपनी चोली भी उतार फेंकी तो मुझे पीछे से आती आवाज़ सुनकर दिल का दौरा सा पड़ गया, " सुनी बेटा , मैं शहर की ओर जा रहा हूँ। जब तैयार हो जाओ तो मुझे बता देना। "
मैं घबराहट में सोच नहीं पाई की अपने हाथों से अपने नग्न शारीर का कौनसा अंग धकू। ऊपर से मेरी घबराहट के बदहोशी में मैंने अच्छे शिष्टाचार के स्वाभाविक रीती में बोलने वाले की और मुड़ गयी। मैं अब अपने ससुरजी जी के सामने अपना आगे का नग्न गदराया शरीर का प्ररदर्शन कर रही थी।
" मैं नहाने जा रही थी। .... अर ठीक है प पा पापा ज जी मैं अभी आतीं हूँ ," मैंने हकलाते हुए फुसफुसाया।
ससुरजी ने मुझे प्यार से देख कर मुझे बिलकुल भी अहसास नहीं होने दिया की मैं जन्म-जात नागिन कड़ी थी अपने पिता-तुल्य ससुरजी के सामने। पिता-तुल्य नहीं अब तो वो मेरे जीवित पिता बन गए थे।
ससुर जी ने मेरे बालों को सहलाया और स्नेह से बोले ," सुनी बेटी मैं तो तेरे जैसी अप्सरा जैसी बहुत नहीं बेटी पा कर धन्य हो गया। "
मैं शरमाते हुए अपने ससुर जी को कमरा छोड़ने के बाद दरवाज़ा बंद करते देखती रही बड़ी देर तक।
मैं जल्दी से नहा धो कर शेरू की चुदाई की मोहनी सुगंध को अनिच्छा से साफ़ किया। मैंने सफ़ेद सूती कमीज़ और जींस पहन ली। गर्मी की वजह से मैंने कमीज़ के नीचे ब्रा नहीं पहनी।
मैं शरमाते हुए ससुरजी की और बढ़ चली
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ससुरजी ने ट्रक जब घर से बाहर निकला दिया तो मैंने शरमाते हुए कहा , "पापा जी मैं माफ़ी चाहती हूँ। मुझे लगा की चंपा काकी कमरा साफ़ करने आई होगी। "
"अरे बेटी माफ़ी की क्या ज़रुरत है। अपने पिता के सामने क्या शर्माना। यदि मैं तेरा जन्म-पिता होता तो न जाने कितनी बार तुझे नहलाता और तेरी गन्दी नैप्पी बदलता। " ससुरजी ने मुझे झिड़का।
"पर मैं तब नन्ही बच्ची होती पापा जी। पूरी बेशरम जवान बेटी नहीं, " मैं भी हंस दी।
"यह तो सही है बेटा। लेकिन देख तेरी सासुमां को सिधारे चौदह चौदह साल हो गए इस बहाने तेरे पापा ने अप्सरा जैसी सुंदर मूरत का नेत्रपान तो कर लिया ," ससुरजी ने ठहाका मारते हुए मुझे और भी लज्जा से लाल कर दिया।
"वैसे सुनी बेटा माफ़ी तो मुझे तुझसे मांगनी है। मैंने बिना चाहे अनजाने में दो सुबह तेरे कमरे में से शेरू को बाहर निकलने के लिए घुस गया। मैं तुम्हे जगाना नहीं चाहता था। और शेरू को सुबह जल्दी बाहर जाने की आदत है। वो बेचारा बहुत परेशान हो जाता है वर्ना ," ससुरजी ने थोड़ी गम्भीर अव्वज में मुझसे कहा।
मेरा दिल धक् से रुक गया। हाय राम पहले दिन तो चलो पापाजी मुझे नंगा ही देखा। पर दुसरे दिन तो मैं शेरू के वीर्य से सनी लिसी थी। मैं डर और शर्म से पागल गयी। मुझे लगा की मरना ज़्यादा अच्छा है।
मैं बिना समझे सबक उठीं और अपना शर्म से लाल मुंह अपने हाथों में छुपा कर ज़ोर से रोने लगी।
Superb update
 

Harshit

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Aapse request hai please aise words ka use na karen jo iss situation aisi jagah sahi na lage aapne ek jagah bajrangbali ka naam liya please aage se dhyan rakhen dharmik shabdon ka istemaal na karen please
 
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