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Incest पूर्णिमा की रात्रि

Ek number

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Update 09

वो आदमी मां को घूरता ही रहा और कुछ सोच के बोल पड़ा "डॉक्टर इशिता.." और वो मां के जवाब का इंतजार करते हुए रुका...

मां ने दबी आवाज में कहा "जी हा" वो आदमी के सारे हाव भाव एक दम ही बदल गई और उसकी आंखों मे नमी और चहरे पे एक मुस्कान छा गई...

"आप को याद ये कुछ साल पहले आप ने सड़क हादसे में बुरी तरह घायल एक महिला को अस्पताल ले गई थी.. और जब वहा डॉक्टर हाजिर नहीं थे तब आप ने खुद ही उसका इलाज़ किया था"

"अच्छा प्रिया नाम था उसका जो प्रेगेंट थी वही ना ?" मां ने याद कर के कहा...

"जी वही वो मेरी पत्नी है और सिर्फ आप की वजह से वो और मेरा बेटा आज सही सलामत है आप के तो बड़े उपकार है मुझ पे.. जब में अस्पताल पहुंचा तब तक आप जा चुकी थी और फिर आप कभी मिली ही नही.. आप का बहोत बहोत शुक्रिया उस दिन आप नही होती तो क्या होता मेरा"

ये सब सुन मां और मेने राहत की सास ली...

"डॉक्टर आप को यहां से कही दूर चला जाना चाहिए वो सब गुंडे है उनका कुछ कह नहीं सकते हैं जो आप के पति ने किया है उसका बदला वो आप से लेगा.."

"उन्होंने ऐसा क्या किया है... और आप कोन है और हमारा पीछा क्यों कर रहे हो"

"में अमित हु और ये मेरे साथ है हम दोनो ही पुलिसवाले है.. और हमे आप का पीछा करने के लिए कहा गया है रंगा के बाप की पहचान यहां सब जगा है आप पुलिस के पास भी नहीं जा सकते.. और जो आप के पति ने उसकी बहू के साथ किया है वो कैसी भी तरह माफी के लायक नही.. ये तो अच्छा हुआ की उनकी बहू ने खुद ही आप के पति के खिलाफ हुए एफ.आई.आर को वापस ले लिया.."

मां ने फिर से बीच में ही पूछ लिया " लेकिन उन्होंने ऐसा क्या किया है आप साफ साफ बोलिए"

"अब में किस तरह बोलूं आप से की आप के पति ने उस औरत की बेरहमी से इज्जत लूटी है मेडिकल रिपोर्ट में भी सब आ चुका है.. माफ कीजिएगा लेकिन मैने इतना बड़ा हैवान नही देखा.. और रंगा भी मारा गया है और ये भी आप के पति का ही काम होगा.."

मां की आखों से आसू निकल आई

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"अब आप पे सब से अधिक खतरा है वो आप के साथ भी वही करेगा जो उसकी बहू के साथ हुआ.. में अब आप के पीछे नही आऊंगा और मेरे साहब को बोल दूंगा आप कहा गई हमें पता नही चला इस से ज्यादा में भी कुछ नही कर सकता..

"बेटा अपनी मां को कही इसी जगा ले जाओ जगा तुम आम तौर पे नही जाते.. घर या किसी रिश्तेदार के वहा मत जाना नही तो वो लोग आज नही तो कल ढूंढ ही लेंगे.. अब हिम्मत से काम लेना आप की मां की इज्जत अब आप के हाथो में है.."

और वो दोनो जाने लगे... और वो मुड़ के वापस आया... और मुझे दो मिनिट रुकने को बोला और दूसरा आदमी एक गन लेके आया जो वो मेरे हाथ में रख बोले "ये रख लो काम आएगी जरूर पढ़ें तभी चलाना.. हो सके उतना रिमोट एरिया में ही चले जाओ"

मेने गन रख दी और मां की आखों में देखा और कहा "आप आप चिंता मत करो में हूं ना" और तेज रफ्तार से गाड़ी भागा दी...

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कहा जाऊ बस यहां से पहले दूर जाना था यही मेने सोचा....

जल्दबाजी में एक गड़बड़ हो गई की पापा नॉर्थ की और जा रहे थे और हम साउथ की और...


जब तक हमें को ये समझ आया बहुत देर हो गई थी.. अब हम वापस लौट के आना मतलब खतरे को मोड़ लेना.. क्यों की हम दोनो को गुंडे और पुलिस दोनो खोज रहे थे..

अब अब दुसरे स्टेट में भी नही जा सकते थे क्यू की बॉर्डर क्रॉस करते तो कोई हमे पहंचान सकता था.. क्यू की पापा पे दो बड़े बड़े गुना करने के एंजाम थे.. हालाकि भाभी ने एफआईआर वापस के लि लेकिन रंगा के खून का इंजाम तो था ही और दूसरी एफआईआर भी कर दी थी भाभी के ससुर ने जिस का हमे पता नही था...

मां तो पापा से बात तक नहीं की और जब उनको पता चला कि वो उस भाभी के साथ ही है वो और गुस्सा हो गई.. और जिद करने लगी की उन्हें उनके पास जाना है अभी के अभी...

(यहां से प्रतिज्ञा को आंटी कहूंगा तो ध्यान रखना)

वही दुसरी और पापा और प्रतिज्ञा आंटी ने एक छोटा सा गांव देखा कहा बहुत कम लोग थे कुछ घर खाली पड़े थे और ये पूरा जंगल से घिरा हुआ गांव था... पापा के कोई दोस्त का ये गांव था कहा वो रहते नही थे.. तो पापा वहा जा सकते थे...

करीब रात के समय वो घर तक पहुंच गई.. गांव में घर काफी दूर दूर बने हुए थे तो कोई इस और वैसे भी आता जाता नही था और ये गांव में बस बुड़े लोग ही बेच थे...

रास्ते में ही पापा ने महीने भर का राशन ले लिया था.. घर बड़ा था लेकिन पुराने समय का था.. बड़ा सा आंगन पीछे से खेत सुरु हो जाते थे.. बड़े बड़े कमरे थे लेकिन खिड़की दरवाजे ठीक से बंद नही रोते थे.. जरूरत का सब सामान यहां था.. घर के पीछे ही हैंड पंप लगा हुआ था तो पानी की कोई पर परेशानी नहीं थी...घर के पीछे ही एक बाथरूम बना हुआ था...

पापा और आंटी ने होटल से लाया हुआ खाना खाया और सोने के लिए कमरे में जाने लगे.. दोनो के बीच बात न के बराबर हो रही थी...

दोनो अलग अलग कमरे में चले गई...

पापा बिस्तर पे लेट तो गई लेकिन उन्हें नींद नही आई.. वो मां और मेरे बारे में सोच सोच के परेशान थे और अब मेरा फोन भी नही लग रहा था...वो बार बार कॉल करते और हर भर निराशा हाथ लगती...

प्रतिज्ञा के नजरिए से.....

मेने दरवाजा खोला और कमरे में चली गई.. और पहले दरवाजे की कुंडी लगा दी.. में बिस्तर पे बैठ बाहर देखने लगी रात का काला अंधेरा चारो और छाया हुआ था..

में अभी तक यही उलझन में थी की मेने क्या सही किया अपने ही बलात्कार को यू बचा के.. और में ये कहा आके फस गई.. अब क्या सारी जिंदगी इसे छुपते छिपाते कटेगी... पहले रंगा और अब वे आदमी जिसे में ठीक से जानती तक नही... फिर भी मुझे क्यों इसे बचा रही हू में क्यों अपने आप को संभाल नहीं पाई.. क्यों मुझे इसे आदमी की और खीचाव महसूस हो रहा है जिस ने मेरी इज्जत लूटी... एक वजह ये भी थी की मेने उन्हें बचाया ताकि में डॉक्टर इशिता के साथ हुए घटना का पश्चताभ कर पाऊ... अगर में उनको लेके नही जाती वहा तो आज हम सब की जिंदगी कितनी आसान चल रही होती...

लेकिन ये बच्चा जो ये भी तो एक वजह से की मेने इतना बड़ा कदम उठाया.. में नही चाहती की सारी जिंदगी ये भी गुंडों के साथ रहे.. वहा रहा तो गुंडा ही बनेगा.. इस से अच्छा तो यहां चुप के रहु....

लेकिन क्या इस बच्चे को ये अपना पाएंगे.. क्यों नहीं आखिर बच्चा तो उनका है.. इतने समय से मेरे साथ है आंख उठा के भी नही देखा मेरी और.. दिल के तो अच्छे लगते है... सायद नसे की हालत में और बदले की आग में...

एक एक मुझे फिर से वो दर्द भरी दास्तां याद आ गई और में कुछ देर तक ऐसे ही बाहर देखती रही...

पता नही मुझे क्या हो रहा था जैसे एक मदहोशी छाने लगी थी.. इसे हालत में भी में पता नही कैसे गरम हो चुकी थी.. मेरी जान निकल रही थी.. धीरे धीरे मेरी काम आग और भड़क उठी.. मुझे ये गर्मी बादस्त नही हुए.. में खुद को ही सहलाने लगी.. जिस ही अपनी आंखे बंद की मुझे फिर से कल रात की यौन संबंध बनाती में खुद को देख सकती थी..में देख रही थी की मुझे कितना दर्द हो रहा था लेकिन अब मुझे बो सब यार कर जैसे अजीब सा सुकून मिल रहा था मेरा हाथ मेरी योनी पटल पे चला गया और दूसरे ही पल मेरी एक उंगली मेरी योनि में प्रवेश कर गई और मेरी हल्की सी सिसकारी निकल गई...

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में काम आग में यू डूब गई की पता ही नही चला मेने एक एक कर मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा के तेज तेज रफ्तार से उंगली करती रही..

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मुझे एक अजीब सा अहसास हुए जैसे कल वाला लिंग मेरी योनि में आगे पीछे हो रहा हो..और मेरी योनि ने जवाब दे दिया...

एक तेज हवा चली और मेरा काम रस उसके साथ ही छूट गया.. मेने राहत की सास लि....

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और अपनी हालत को देखकर मुस्करा दी... मन ही मन बोल पड़ी "क्या हो गया है तुझे की इतना गलत किया जिस आदमी ने उसे सोच के ही तू अब उंगली कर रही हैं"

और में अपने आप को कोसती समझती कब सो गई मुझे पता ही न चला.. अर्ध नही अवस्था में इसे ही सो गए...
Nice update
 

kabir018

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जबरदस्त अपडेट

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