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Adultery प्यासी दुल्हन

odin chacha

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Gaandu No 1

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Update 2
दस दिन बाद मेरा बैंक का पेपर लखनऊ में था। मेरी कोई तैयारी नहीं थी। मैं घर मैं बोर हो रही थी, मैंने सासु मां से कहा- मैं पेपर दे आती हूँ।

सासु ने हाँ भर दी, सासु माँ बोली- तू अमित के घर कानपुर चली जाना, वहाँ से वो लखनऊ पेपर दिला लाएगा। उसकी मकान मालकिन बहुत अच्छी है, तेरी कम्पनी भी हो जाएगी, चाहे तो 6-7 दिन रुक भी आना।

अमित सासु की बहन का लड़का था और कानपूर मैं नौकरी करता था। देवर के यहाँ जाने की बात सुनकर मेरी चूत चुलबुली हो गई। मन ही मन ख़ुशी भी हो रही थी।

मैं गुरुवार को शताब्दी से कानपुर जा रही थी। मेरा पेपर रविवार को था। अमित बीच में देहली आया था, 3-4 दिन रुका था तो हम लोग आपस में थोड़ा खुल गए थे। उसने मुझे नॉन वेज जोक भी सुनाए थे और सेक्सी बातें भी की थीं।

अब मेरे मन के किसी कोने मैं उसके साथ मस्ती करने का मन कर रहा था, आज मंगलवार था। अभी जाने में एक दिन बीच में था। बुधवार को मैंने अपनी चूत के बाल साफ़ किये और ब्यूटी पार्लर मैं जाकर अपना बदन चिकना करवाया। रात को सामन रखते समय दो जोड़ी सेक्सी ब्रा-पैंटी और मेक्सी जिनसे पूरी चूचियाँ और चूत चमकती थीं जाने के लिए रख लीं। दो छोटी स्कर्ट और 2-3 लो-कट ब्लाउज भी रखे।

रात को अमित का फ़ोन 9 बजे आया, मुझसे बोला- और भाभी कैसी हो?
मैंने कहा- अच्छी हूँ ! भाभी के स्वागत की तैयारी कर लेना।

हँसते हुए बोला- मैंने तो कर ली है। तुम क्या तोहफ़ा ला रही हो मेरे लिए।
मुस्कराते हुए बोली- दो संतरे ला रही हूँ।

देवर हँसते हुए बोला- चूस चूस कर खाऊँगा, जल्दी लेकर आओ।
अमित बोला- कल मुर्गा खाओगी या आराम से दो दिन बाद खाओगी?

मैं हँसते हुए बोली- मुझे मुर्गे की आवाज़ आ रही है। कुँकङु कूं कुँकङु कूं बोल रहा है। अभी इसे सुला दो आकर बताउंगी की कब खाना है।

फ़ोन पर बातें करने के बाद मैं अपनी चूत सहलाती हुई सो गई।

अगले दिन मैं शताब्दी से कानपुर पहुँच गई, अमित मुझे लेने आया था, उतरते ही उसने मुझे गले लगाया और बोला- घर पर अच्छी तरह से गले मिलूँगा, मुझे आप से मिलकर बहुत ख़ुशी हो रही है।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और हम लोग बाहर आ गए। अमित की बाइक से हम उसके घर पहुँच गए। वहाँ उसकी 35 साल की मकान मालकिन रजनी ने मेरा स्वागत किया और हम लोगों के लिए चाय-नाश्ता ले आई।

हम सभी ने चाय पी, इसके बाद रजनी बोली- जाकर फ्रेश हो लो जब तक मैं बच्चों को देख लेती हूँ। आज रात को मेरे साथ सोना, इस नालायक का भरोसा नहीं, रात को सोने भी न दे।

मैं अमित के साथ उसके ऊपर वाले किराए के टू-रूम सेट में आ गई। कमरे की एंट्री बाहर और अंदर दोनों तरफ से थी। पहला कमरा बहुत छोटा था उसमें 4 कुर्सी, मेज और एक तखत था, अंदर का कमरा काफी साफ़ सुथरा और बड़ा था उसमें एक बड़ा पलंग पड़ा था, छोटी सी किचन और एक बाथरूम कमरे से जुड़ा था।

शाम के 4 बज रहे थे।

कमरे में घुसकर मैंने कमरा बंद कर लिया। अमित बोला- भाभी, मैं बाहर के कमरे मैं बैठता हूँ, आप अंदर फ्रेश हो लो।

मैंने कामुक अंगड़ाई ली और बोली- बाहर क्यों बैठते हो? अंदर आ जाओ। इतना शरमाओगे तो 5-6 दिन कैसे काटेंगे।

अमित और मैं अंदर वाले कमरे में आ गए। मैंने मुस्कराते हुआ कहा- सुबह से साड़ी लपेटी हुई है, अब कुछ हल्का हो लेती हूँ !

और मैंने अपनी साड़ी अमित के सामने उतार दी मेरी तनी हुई चूचियां अमित को ललचा रही थीं। पेटीकोट थोड़ा ठीक करते हुए मैंने नाभि के नीचे सरका दिया। मैंने अपनी बाहें फ़ैलाते हुए कहा- गले तो मिल लो !

अमित एक पुतले की तरह मेरी बाँहों में आ गया मैंने उसे कस कर चिपका लिया, अब मेरी चूचियाँ उसके सीने से दब रही थीं, अमित के लंड का उभार मैं अपनी नाभि पर महसूस कर रही थी। मैंने उसे 5 मिनट तक अपने से चिपके रखा और उसके गालों को कस कर चूम लिया। यह हमारा पहला सेक्स अनुभव था।

उसके बाद मैं बाथरूम में चली गई, मैंने अपनी चड्डी और ब्रा उतार दी और ब्लाउज दुबारा से पहन लिया। बाहर आकर अमित को दिखाती हुई बोली- इन्हें उतार कर बड़ा आराम लग रहा है।

अब मेरे बदन पर ब्लाउज और पेटीकोट था। बिस्तर पर अमित को बैठाकर मैं उसकी गोद में लेट गई और अपने चिकने पेट पर उसका हाथ रख लिया। अमित मेरी नाभि और पेट को सहलाने लगा।उसका मन मेरे दूध दबाने का कर रहा था लेकिन वो इसकी हिम्मत नहीं कर पा रहा था, मैं अंदर ही अंदर मुस्करा रही थी। मैंने 2 मिनट बाद अमित के गले में हाथ डालकर उसके होंटों को 2-3 बार चूमा और बोली- यह प्यार अब तुम्हें पूरे हफ्ते मिलेगा।

दस मिनट हम बात करते रहे। इसके बाद मैं उसे उठाकर उठ गई। मैंने अपना एक सलवार-कुरता निकाल लिया। बाथरूम अंदर से बहुत छोटा था और उसमें टांगने के लिए कुछ नहीं था। मैं अंदर सिर्फ अमित की टॉवेल लेकर चली गई और अमित से बोली- जब मांगूं तो केवल मेरा कुरता दे देना वो भी आँखें बंद करके।

मैंने बाथरूम मैं अपना ब्लाउज और पेटीकोट उतार दिया अब मैं पूरी नंगी थी। अमित के साथ मस्ताने से मेरी चूत गीली हो रही थी। मैंने उँगलियों से ही अपनी चूत को शांत कर लिया। यह तो कुछ देर की ही शांति थी दोस्तो, असल में लंड खाई चूत लंड से ही शांत होती है।

उसके बाद मैं नहा ली। अमित का तौलिया बहुत छोटा था, चूत ढकती तो चूचियाँ खुली रहतीं और चूची ढकती तो चूत खुली रहती। मैंने तौलिया अपनी कमर पर बाँध लिया और स्तन खुले छोड़ दिए। दरवाज़ा खोल कर बहार झाँका तो अमित टीवी देख रहा था, मैंने जानबूझ कर बाहर निकल कर अमित को आवाज़ दी, अमित तुम सुन नहीं रहे हो, मेरी कुर्ती दो न।

अमित ने मुड़कर देखा तो मेरी नंगी चूचियाँ और भरी भरी चिकनी जांघें देखता ही रह गया। अमित ने मुझे कुरता दे दिया, मैंने चूचियाँ कुरते से ढक लीं और मुस्कराती हुई मुड़कर बाथरूम में आकर कुरता पहना, कुरता सिर्फ मेरी जांघें ढक रहा था। जैसे ही मैं दरवाज़े से बाहर निकली, मैं चौंक गई, अमित अपने लंड की मुठ मार रहा था। उसने मुझे नहीं देखा, मैं बाथरूम के दरवाज़े के पीछे छुपकर अमित का लंड देखने लगी।

वाह ! क्या मोटा लंड था, मेरे पति से थोडा लम्बा ही लग रहा था, मन किया दौड़ कर मुँह में ले लूं और एक महीने से तड़प रही चूत में डलवा लूँ। दो मिनट बाद मैंने दरवाज़ा आवाज़ करके खोला तो अमित ने लंड जींस में डाल लिया और अपनी जींस ऊपर चढ़ा ली। इसके बाद मैं बाहर आ गई।

मैं कुरता पहन कर बाहर आई तो मेरी गुदाज़ जांघें और चूचियाँ अमित घूर घूर कर देख रहा था। मैंने अमित को आँख मारी और बोली- ऐसे क्या देख रहे हो? मेरी पजामी दो न। अमित ने हड़बड़ाते हुए मेरी पजामी मुझे दे दी। अमित के सामने ही मैंने अपनी पज़मी चूत छुपाते हुए ऊपर चढ़ा ली लेकिन अपनी गुदाज़ जांघें पूरी खोलकर अमित को दिखलाईं। अमित ललचाई नज़रों से मेरा बदन देख रहा था।

अमित को देखकर मैं मुस्कराई और शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई। शीशे में अपने को देखकर मैं चकित रह गई, मेरे गोल-गोल गीले स्तन और चुचूक कुरते में से बिल्कुल साफ़ दिख रहे थे। मैं समझ गई कि अमित इतना घूर घूर कर चूचियाँ क्यों देख रहा है, अगर मेरे पति इतना देख लेते तो मुझे अब तक नंगा करके मेरी चूत में लंड डाल चुके होते।

अमित को मैंने आवाज़ लगाई और बोली- अमित, इधर आओ !

अमित मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया।

“अपनी भाभी को एक मीठी पप्पी दे दो न !” मैंने उसके हाथ पकड़ कर अपनी कमर मैं डलवा लिए।

अमित गर्म था, उसने पूरा अपना लोड़ा मेरी गांड की दरार से छुलाते हुए मेरे गालों पर एक पप्पी दे दी और हटने लगा।

मैंने उसे प्यार से डांटा- इतना क्यों शर्मा रहे हो? चिपके रहो न ! अच्छा लग रहा है। अच्छा इधर कान में यह बताओ कि जब मैं बाहर आई थी तो मुझे घूर घूर कर क्या देख रहे थे?

अमित झेंपते हुए बोला- कुछ नहीं।

मैंने धीरे से कहा- हूँ, झूठ बोलते हो? सच सच बताओ, अभी तो 5 दिन साथ रहना है।

अमित धीरे से बोला- आपके दूध देख रहा था !

मैंने शीशे में देखते हुए कहा- ऊह ! ये तो पूरे नंगे दिख रहे हैं। तुम तो बहुत शैतान हो।

मेरी बातों से अमित पूरा गर्म हो रहा था, उसने मेरी चूचियाँ पीछे से दबाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसका हाथ कमर पर रख दिया और बोली- थोड़ा रुक जाओ ! सारे मज़े आज ही ले लोगे क्या? अच्छा अमित। यह बताओ मेरी चूचियाँ कैसी लगीं?

अमित बोला- भाभी, बहुत सुन्दर हैं, चूसने का मन कर रहा है।

हँसती हुई मैं बोली- चूस लेना लेकिन पहले एक रसीला चुम्बन होटों पर दे दो !

और मुड़कर मैंने उसे बाँहों में भरा और उसके होंठ अपने होटों में दबाकर दो मिनट तक उसके होंट चूसे। अमित के लंड का उभार मैं अपने पेट पर महसूस कर रही थी, मेरी चूचियाँ अमित के सीने से दबी हुई थी।

मैंने कहा- चूची चूसनी है?
अमित बोला- चुसवाओ न !

मैंने अपना कुरता ऊपर उठाया और बोली- सिर्फ एक-एक बार दोनों चुचूक चूस लो और काटना नहीं। मेरे दोनों चूतड़ों को दबाते हुए अमित ने दोनों चुचूक एक एक करके मुँह में लिए और लॉलीपोप की तरह एक एक बार चूसे।

इस बीच अमित झड़ गया। मेरी बुर भी पूरी गीली हो गई थी, मेरा देवर के साथ यह पहला सुंदर कामुक अनुभव था। अब हम दोनों अलग हो गए। मैंने हल्का सा शृंगार किया और कुरते पर चुन्नी डालकर नीचे आ गई।

कहानी जारी रहेगी।
Nice Update dost 😍
 
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Update 9
सतीश एक तरफ मेरी चूचियों का रस नोच नोच कर निकाल रहा था, अमित दूसरी तरफ गांड लंड से खोद रहा था।

कुछ धक्कों के बाद मेरी गांड का दर्द कम हो गया लेकिन मेरी ठुकाई अच्छी तरह से हो रही थी, मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे, मेरी गांड चुद चुद कर चौड़ी हो रही थी, मैं एक रंडी की तरह चुद रही थी। कुछ देर बाद अमित ने मुझे तिरछा करके लेटा लिया और मेरी जांघें फ़ैला दीं, लंड उसका मेरी गांड फाड़े हुए था, आगे से सतीश ने बिना देर किए मेरी चूत में लंड घुसा दिया। अब मैं दोनों के बीच सैंडविच बन गई थी, सतीश ने मेरी चुदाई 10 मिनट तक करी। अमित भी बीच बीच में धीरे धक्के मार रहा था। अब मैं दो दो लंडों से चुद रही थी।

इसके बाद दोनों ने अपने वीर्य से मेरी चूत और गांड भर दी। मैं अर्ध बेहोश सी हो गई थी, थोड़ी देर बाद मैं सो गई।

तीन बजे के करीब शाम को मेरी नींद खुली, मैं लंगडाती हुई बाथरूम गई, मेरी गांड और चूत के साथ साथ पूरा बदन दुःख रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरी गांड में लंड अब भी आगे पीछे हो रहा है। मैं सबसे नाराज़ थी, भाभी ने मुझे गर्म दूध पीने को दिया और मुझे समझाने लगीं, बोलीं- शुरू शुरू में ऐसे दर्द होता है लेकिन दो दिन बाद तेरा ये सब करवाने का बहुत मन करेगा। अब हम वापस चलकर कानपुर में आराम करेंगे।

पाँच बजे के करीब हमने लखनऊ छोड़ दिया और रात को सात बजे कानपुर पहुँच गए। आते ही हम लोग सो गए सुबह दस बजे मैं उठी। सिर्फ भाभी घर में थीं, उन्होंने गर्म पानी से मेरी चूत और गांड की सिकाई कर दी, मुझे बड़ा आराम मिला।

शाम को भाभी के बच्चे आ गए, अमित दो दिन के टूर पर बाहर चला गया। रात को अच्छी नींद आई।

अगले दिन सुबह मैं एकदम तरोताजा थी, मेरा गुस्सा भी कम हो गया था। मैंने अमित और सतीश से फ़ोन पर बात की और उन्हें प्यार से डाँटा भी ! दोनों ने फ़ोन पर माफ़ी मांग ली, अब मेरा गुस्सा ख़त्म था।

रात को अमित नहीं था, मैं उसके कमरे में सो रही थी, अकेले मुझे नींद नहीं आ रही थी, एक बार आदमियों के साथ सोने की आदत पड़ जाए तो अकेले नींद भी नहीं आती। किसी तरह मन मसोस कर सो गई।

सुबह छः बजे उठने पर चूत कुनमुना रही थी और सही बात कहूँ तो लंड मांग रही थी। मुझे अपने पर गुस्सा भी आ रहा था कि मेरी चूत रांड हो गई है, इतना चुदने के बाद भी खुजला रही है, पहले तो इतनी नहीं खुजलाती थी। देहली जाकर पता नहीं बिना चुदे कैसे रह पाएगी।

मैं आज शाम को दिल्ली जा रही थी, मैंने अमित को फोन किया, अमित बोला- शाम को आ नहीं पाऊँगा, सच कहूँ तो मेरी गांड मारने के बाद वो मुझसे नज़रें चुरा रहा था।

मैंने कहा- एक बार और नहीं डालोगे?

अमित बोला- भाभी आपके साथ मज़ा बहुत आया, लेकिन कुछ ज्यादती हो गई, मुझे माफ़ कर देना !

इसके बाद बात खत्म हो गई। मेरा मन थोड़ा सा दुखी हो रहा था, मैं सोच रही थी कि बेकार इतना डाँटा अमित को, मज़े तो मैंने भी लिए थे।

मैंने अपने सर को झटका और स्कर्ट टॉप पहन कर नीचे आ गई, सुबह के आठ बज़ गए थे। रात को भाई साहब आ गए थे और अखबार पढ़ रहे थे। बच्चे स्कूल चले गए थे।

भाभी ने मेरी और उनकी चाय बनाई, मैंने जाकर झुक के चाय भाईसाहब को दे दी, मेरी पूरी चूचियाँ भाईसाहब ने दर्शन कर लीं लेकिन अब मुझे यह सब नया नहीं लग रहा था। भाईसाहब के कमरे में फर्श पर कुछ कपड़े पड़े थे, मैंने उन्हें एक एक करके उठाया और बाहर धुलने रख दिया।

मैंने मुड़कर देखा तो भाईसाहब मुझे ऐसे घूर-घूर कर देख रहे थे जैसे मुझे अभी चोद डालेंगे।

बाहर आकर मैं भाभी के साथ काम करने लगी।

तभी पड़ोस से नीलिमा आ गई, बोली- भाभी, शर्मा जी के यहाँ नहीं चलना उनके यहाँ लड़का होने की कथा है।

भाभी बोलीं- ओह, मैं तो भूल ही गई थी।

भाभी मुझसे बोली- तू इनको को नाश्ता करा देना। मैं दो घंटे में आ जाऊँगी।

मैंने नाश्ता बना लिया, गर्मी बहुत हो रही थी अपने टॉप के दो बटन खोल लिए। जब मैं भाईसाहब को नाश्ता दे रही थी तो मेरी चूचियाँ झुकने पर पूरी नंगी दिख रही थीं।

भाईसाहब मुस्कराते हुए बोले- अर्चना आज तो लग रहा है, दूध पीने को मिलेगा।

मैं समझ गई कि भाईसाहब मेरी चूचियों का मज़ा ले रहे हैं, मैं भी मुस्कराते हुए बोली- आप दूध पी लेना ! किसका पियेंगे भैस का या किसी और का?

भाईसाहब ने आँख मारी- तुम जो पिला दोगी?

मैंने कहा- पहले आप नाश्ता कर लें, फिर जिसका आप कहेंगे उसका पिला दूंगी।

और मैं भी मुस्करा दी। इसके बाद पीछे मुड़कर मेज पर झुककर अखबार पढ़ने लगी। मेरी स्कर्ट बहुत छोटी थी जो ऊपर को उठ गई थी। भाईसाहब मेरी नंगी गांड और उसके नीचे से झांकती चूत का मज़ा नाश्ता करते हुए ले रहे थे। रोज़ की तरह मैंने चड्डी नहीं पहनी थी, रोज़ अमित से मज़े लेने के लिए नहीं पहनती थी तो आज पहनना ही भूल गई थी। मुझे इस बात का पता तब चला जब अचानक से किसी ने मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा।

मैंने मुड़कर देखा तो भाईसाहब मेरे नंगे चूतड़ सहला रहे थे। अब मुझे पता चला कि मैं तो अपनी नंगी गांड बार बार उन्हें दिखा रही हूँ इसलिए वो मुझे चोदने की नज़र से घूर रहे थे।

उनका इस तरह देखना गलत नहीं था।

भाईसाहब ने मेरे चूतड़ों को दबाते हुए मेरी चूत अपने हाथों से सहला दी और बोले- तुम तो गुरु हो ! इतनी देर से दिखा रही हो, अगर अब भी हाथ न लगाया तो तुम मुझे नामर्द समझोगी।

मैं एकदम से चौंक गई, मुझे अपनी गलती समझ मैं आ गई, मैं चड्डी पहनना भूल गई थी। इसके बाद भाईसाहब ने मुझे पीछे से बाँहों में जकड़ते हुए मेरी चूचियाँ अंदर हाथ डालकर मसलीं और अपना हाथ मेरी स्कर्ट पर सरका कर उसका एक मात्र बटन खोल दिया। स्कर्ट नीचे गिर गई और उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूत को सहलाते हुए कहा- चूत तो तुम्हारी गीली हो रही है। शर्मा क्यों रही हो? अकेले हैं, आओ तुम्हारी चूत और चूची दोनों का दूध पीते हैं।

मैं भी पूरी रांड हो गई थी, मैं मुस्करा दी और मैंने चुदने के लिए एक मूक सहमति दे दी थी। मन में रंडीबाज़ी जाग उठी, जाते जाते एक बार एक और लौड़े से सही।

भाईसाहब बोले- ऊपर चलते हैं, अमित के कमरे में चोदते हैं।

मैंने अपनी स्कर्ट पहन ली और हम दोनों ऊपर आ गए।

ऊपर आकर भाईसाहब ने मेरी स्कर्ट उतार दी और टॉप भी निकाल दिया। अब मैं अपने नंगे बदन का मुजरा पेश कर रही थी उन्होंने मुझे अमित के बाहर के कमरे में लिटा दिया और मेरी दूधों को चूसने लगे।

चूसते हुए भाईसाहब ने मेरी निप्पल कड़ी कर दीं। अब मेरी चूत की बारी थी, दाने पे मुँह लगते ही मेरी आहें निकलने लगीं। क्या चूसा था !

इसके बाद तो अच्छी से अच्छी औरत भी लंड लंड करने लगेगी, पूरा चूत रस बहने लगा।

पाँच मिनट चूसने के बाद मैं बोली- अब कुछ करिए न ! आह ! बहुत मन कर रहा है।

भाईसाहब ने अपना पजामा कुरता उतार दिया, उनका पाँच इंची लंड मेरी आँखों के आगे था, मुझे लगा कि आज चुदने में आनन्द कम आएगा लेकिन मेरा सोचना गलत था। उन्होंने मेरी टांगें उठाकर चूत में लंड घुसा दिया।

आह ! पूरा अंदर चला।

भाईसाहब ने धीरे धीरे मुझे चोदना शुरू कर दिया लेकिन पूरा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे, आराम से मेरी चुदाई चल रही थी, मैं भी धीरे धीरे आहें भर रही थी। बीच में 2-3 बार चुदाई रोककर लंड अंदर घुसाए घुसाए भाईसाहब ने मेरी चूचियाँ और होंटों की चुसाई की, चूचियों को कई तरह से दबाया और मसला।

उसके बाद बोले- आसन बदल कर चुदना हो तो बताना !

पूरे प्यार भरे तरीके से मेरी चुदाई हो रही थी, भाईसाहब ने लंड निकाल लिया और मेरी जाँघों पर अपने हाथों से मालिश करने लगे, मेरी नाभि को चूमा, गले पर सहलाया और मेरी जीभ निकलवा कर चूसी। उन्होंने मुझे काम रस में डुबो दिया।

मैं बोली- आपके साथ बहुत अच्छा लग रहा है, एक बार और चोदिये ना !

उन्होंने मुझे चिपका कर अपना लंड घुसा दिया और मुझसे सेक्सी बातें करने लगे, बोले- तुम्हारी जांघें बहुत गर्म हैं, तुम बहुत सेक्सी हो !

मेरी तारीफ़ करते हुए धीरे धीरे चोदने लगे। मुझे बहुत आनन्द आ रहा था, मैं भी चुदने में पूरा साथ दे रही थी।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

मैं हड़बड़ा गई और उठ गई। भाईसाहब बोले- जाली के दरवाजे में से मुँह नीचे डालकर देखो कौन है।

मैं नंगी उठी और टीशर्ट डालकर खिड़की का दरवाज़ा खोलकर नीचे देखा तो सब्जी वाला था, बोला- बहनजी, सब्जी !

मैंने कहा- नहीं चाहिए !

वो चला गया।

भाईसाहब मेरे पीछे आ गए और मुस्कराते हुए बोले- ऐसे नहीं घबराते हैं, तुम खिड़की की जाली से सड़क का नज़ारा देखो मैं तुम्हें पीछे से चोदता हूँ।

मैं दोनों हाथ खिड़की पर रखकर झुक गई और बाहर देखने लगी, भाई साहब ने प्यार से मेरी कमर पकड़ कर चूत में लंड लगाया और शुरू हो गए। इस बार वो थोड़े तेज शोटों से चोद रहे थे।

मैं नीचे झांक रही थी और अपनी चुदाई के मज़े ले रही थी।

दो मिनट बाद मुझे शर्म आने लगी और बोली- बिस्तर पर ही करते हैं।

हम लोग बिस्तर पर आ गए। भाईसाहब ने मुझे बिस्तर पर गोद में बैठा लिया और नीचे से अपना लोड़ा मेरी चूत में लगा दिया। भाईसाहब अब नीचे से धक्के मार कर चोदने लगे, मैं अपने स्तन उनके सीने से चिपकाए अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

कुछ देर बाद उन्होंने अपना पानी मेरी चूत में छोड़ दिया, हम दोनों आपस में चिपक कर एक दूसरे को चूमने लगे। मुझे चुदाई में प्यार भरा आनन्द आया था।

मैं भाईसाहब से बातें करने लगी।

भाईसाहब और मैं एक दूसरे के अंगों को छेड़ते हुए बातें कर रहे थे। मैंने उन्हें कई बार होटों पर चुम्बन किया तो उनका लंड दुबारा टन-टन करने लगा था, उन्होंने मेरे हाथ में अपना लौड़ा पकड़ा दिया और मेरी गांड में उंगली घुमाने लगे, मुस्कराते हुए बोले- तुमने 2-3 दिन पहले ही गांड मरवाई है।

मैं बोली- आपको कैसे पता?

हँसते हुए बोले- छेद उंगली डालते ही बड़ा हो रहा है।

मैं चुप रही।

भाईसाहब बोले- मुझसे मरवाओगी?

मैं बोली- दर्द बहुत होता है।

भाईसाहब बोले- दर्द अगर हो जाए तो मेरी जान ले लेना।

मुझे लगा कि भाईसाहब का लंड छोटा है, मज़ा ले लेती हूँ, और इन्होंने मेरी चूत को अमित और सतीश से ज्यादा मस्त मज़ा दिया है, एक बार गांड मैं और सही।

मैं बोली- प्यार से मारना।

भाईसाहब बोले- चिंता न करो, अब एक बार मेरा लोड़ा चूस कर थोड़ा कड़क कर दो।

मैंने उनकी जाँघों में लेटकर लौड़ा 10-12 बार चूसा। इसके बाद उन्होंने मुझे हटा दिया और अपना पर्स उठा कर उसमें से एक कंडोम निकाल कर लंड पर चढ़ा लिया।

मैंने पूछा- आप पर्स में कंडोम क्यों रखते हैं?

भाईसाहब मुस्कराते हुए बोले- जब भी मैं टूर पर जाता हूँ तो रात को बिना लड़की के नहीं सोता। पर्स में हमेशा 3-4 कंडोम रखता हूँ, इससे रात को आराम हो जाता है। एक रात में 2 से 4 बार लड़की को चोदता हूँ। अब ये छोड़ो और जिस आसन में गांड मरवानी है, लेट जाओ, थोड़ा टांगें फ़ैला कर रखना।

मैं बोली- आप ही लेटा दीजिए न।

भाईसाहब ने मेरे पेट के नीचे दो तकिये रख दिए और मुझे उल्टा लेटा दिया।

भाईसाहब ने मेरी गांड में दोनों हाथों की एक एक उंगली मिलकर आगे पीछे 5-6 बार करी। आह बड़ा मज़ा आया। टाँगे मेरी उन्होंने चौड़ी कर दीं थीं, उनके लंड का सुपारा मेरी गांड खटखटा रहा था जिसे उन्होंने हाथ से पकड़ कर गांड में डाल दिया और अपना लंड अंदर घुसाने लगे। थोड़ घुसने के बाद मेरी चूचियाँ मेरे ऊपर लेटकर हाथों से दबा लीं और बोले- चुदते समय आह ऊह खुलकर करना, इससे मुझे और तुम्हें दोनों को ख़ुशी मिलेगी।

अब वो धीरे धीरे चोदते हुए लण्ड अंदर डालने लगे। आह ऊह ऊह आह आह ऊह क्या मज़ा था ! लंड पूरा अंदर जा चुका था।

उन्होंने पूरा घुसने के बाद उसे बाहर खींचा और दुबारा अंदर तक पेल दिया। मेरी गांड अच्छी तरह से चुदने लगी, उनके टट्टे मेरी गांड पर बार बार छू रहे थे, मेरी गांड मरनी शुरू हो गई लेकिन कोई दर्द नहीं था। लंड कभी धीरे और कभी तेज अंदर-बाहर हो रहा था, मैं आह ऊह आह्ह ऊह बड़ा मज़ा आ रहा की आवाज़ों से मस्तिया रही थी। सच भाईसाहब ने मस्त कर दिया था। मुझे लग रहा था कि चूत गांड वाकई मज़े की चीज़ें होती हैं बस प्यार से मारने वाला चाहिए। आज मेरी गांड में गाडी बड़े प्यार से दौड़ रही थी, बहुत मज़ा आ रहा था।

भाईसाहब ने कुछ देर बाद लंड बाहर निकाल लिया, मेरे से रहा नहीं गया और बोल पड़ी- और करिए ना ! बड़ा मज़ा आ रहा है।

भाईसाहब ने गले पर पप्पी ली और बोले- अभी तो शुरुआत हुई है, चिंता क्यों करती हो।

भाईसाहब ने मेरे चूतड़ों पर हाथ मारा और बोले- अब उठो और घोड़ी बन जाओ !

भाईसाहब ने मुझे पलंग पर आधा लेटाकर नीचे जमीन पर मेरे पैर चौड़े करवाए और मुझे घोड़ी बना दिया। इसके बाद भाईसाहब मेरे चूतड़ों पर 6-7 चाटें प्यार से मारे और मेरी गांड में धीरे-धीरे पूरा लंड घुसा दिया और मुझे पेलने लगे।

5-6 शोटों के बाद उन्होंने टाँगे मिला दीं, अब मेरा छेद सिकुड़ गया था। उनका लंड अब कसा हुआ मोटा लग रहा था। उन्होंने ताकत से लौड़ा अंदर-बाहर किया। मुझे अब दर्द हो रहा था, मेरी आँखों से पानी आ गया, मैं बोल उठी- बाहर निकालिए, बड़ा दर्द हो रहा है।

उन्होंने झुककर मेरी पप्पी ली और टांगें दुबारा चोड़ी करा दीं, अब लौड़ा पूरी ईमानदारी से अन्दर-बाहर हो रहा था, मैं ऊह ऊह ऊह आहा की आवाज़ों से अपना आनंद प्रकट करने लगी थी।

भाईसाहब बोले- मज़ा आ रहा है?

मैं बोली- हाँ बहुत मज़ा आ रहा है, और करो और चोदो।

मेरी गांड में अंदर तक लंड घुसा कर भाईसाहब रुक गए और बोले- अर्चना, अब आगे पीछे होकर तुम खुद चुदो, उसमें और मज़ा आएगा।

मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर थी, मैंने अपनी गांड को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया और लौड़ा खाने लगी। हर शॉट पर भाईसाहब मेरी चूची पूरी दबा देते थे औरे मेरी चोटी भी बीच बीच में खींच देते थे। इसके बाद उन्होंने मेरी कमर को पकड़ लिया, अब वो लोड़ा आगे पेलते तो मैं गांड पीछे पेलती। मस्त होकर मैं गांड चुदवा रही थी। दस मिनट बाद मैं हांफ गई, भाईसाहब ने मुझे गोद में उठाकर पलंग पर डाल दिया और कंडोम निकाल कर फेंक दिया और बोले- मैं झड़ने वाला हूँ, तुम्हारी चूची पर रस डालूं या जमीन पर निकाल दूं !

मैं बोली- मुझे आप अपना रस मुँह में पिलाओ !

और मैंने मुँह में लंड ले लिया और तेज-तेज चूसने लगी। 2-3 चुसाई में लंड ने पानी छोड़ दिया, मेरा पूरा मुँह वीर्य से भर गया, भाईसाहब का पूरा रस प्यार से मैं गटक गई।

उसके बाद चिपक कर मैंने उन्हें चूम लिया और बोली- आप बहुत अच्छे हैं, आपने मुझे बहुत सुख दिया।

5 मिनट बाद चिपक कर हम अलग हो गए, मैं बाथरूम में चली गई।

बारह बज़ गए थे, भाभी एक बजे आईं, हम लोगों ने खाना बना कर खा लिया। इसके बाद मैं अमित के कमरे में चली गई और अपना सामन सेट करने लगी।

अमित का कमरा भी मैं सेट करने लगी, अमित के पलंग के नीचे मुझे उसका एक मेल आइ डी और पासवर्ड लिखा दिखा। पहले मैंने उसे नज़रंदाज़ कर दिया लेकिन फिर कुछ सोचकर मैंने उसे अपने पर्स में एक कागज़ पर लिखकर डाल लिया। उसके बाद मैं सो गई।

छः बजे उठी, रात को दस बजे मुझे जाना था, 11 बजे मेरी ट्रेन थी, मैंने अमित को फ़ोन किया, अमित बोला- मैं कानपुर से बाहर हूँ, भाईसाहब से कहना कि तुम्हें छोड़ दें।

भाईसाहब बच्चों के स्कूल के आने से पहले काम पर चले गए थे। मैं भाभी और बच्चे ही घर पर थे।

नौ बजे खाने के बाद और बच्चों के सोने के बाद भाईसाहब घर 9:30 पर आए और हम लोग स्टेशन के लिए निकल पड़े। जाते जाते मैंने भाभी के घर पर पड़ी एक सरिता किताब अपने बैग मैं रख ली। रास्ते में भाईसाहब ने एक सुनसान जगह कार खड़ी कर दी। हम दोनों ने दो गहरे चुम्बन लिए और मैंने भाईसाहब का लौड़ा निकाल कर कार में पूरा रस निकलने तक चूसा।

इसके बाद हम स्टेशन पहुंचे, स्टेशन से 11 बजे मेरी ट्रेन चल दी।मेरी चुदाई यात्रा समाप्त हो गई थी। सुबह 6 बजे मैं अपने सास-ससुर के पास थी। अब मैं 4-4 लंडों से खेली खाई औरत थी। दो दिन बाद ही मुझे लंड की चाहत महसूस होने लगी। भगवान् ने मेरी सुन ली, मेरे पति 5 दिन बाद विदेश से वापस आने वाले थे।

5 दिन बाद राजीव वापस आ गए, आते ही रात को उन्होंने मेरी 5-6 बार चूत चोदी और मुझसे पूछा- तुम्हारी गांड में ट्राई करूँ? विदेश में तो गांड मारना एक सामान्य सी बात है, और मेरे सारे विदेशी दोस्त अपनी गर्ल फ्रेंड की गांड मार चुके हैं।

मैं हल्के से मुस्करा कर बोली- जैसा आप चाहो !

और उन्होंने मेरी गांड मारने की कोशिश करी। 5-6 बार में थोड़ा सा घुसा पाए और उसके बाद उनका शेर ढेर हो गया। राजीव मुझे गांड मारने में नए खिलाड़ी लगे जबकि मैं अब एक खेली-खाई औरत थी लेकिन मुझे अपना लीगल लंड मिल गया था, मैं खुश थी और रोज़ उनसे चुदने लगी। मेरे सहयोग से वो मेरी गांड मारना भी सीख गए।

चार दिन बाद मैं राजीव के साथ बाहर होटल में खाना खाने गई। लौटते वक्त 5-6 गुंडों ने हमें घेर लिया और मुझे छेड़ने लगे। उनमें से दो आगे बढ़कर मेरी चूचियाँ दबाने लगे। राजीव उनसे भिड़ गए। तभी एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर राजीव को 2 गोलियां मार दीं और सभी गुंडे वहाँ से भाग गए।

शुरू में डॉक्टर ने राजीव को 2-3 दिन का मेहमान बताया। मैंने दिन-रात राजीव की सेवा की। इस समय लंड चूत सब भूल गई थी मैं। भगवान् की कृपा से राजीव 30 दिनों में सही हो गए। इन 30 दिनों में राजीव तो सही हो गए थे लेकिन मुझे अपने पर शर्म आ रही थी कि मेरे पति मुझ पर मरने को तयार हैं और मैं उनके पीछे अपने मज़े के लिए लौड़े खाती रही।

एक रात राजीव सो रहे थे, मैं ये सब सोच सोच कर परेशान हो रही थी।मैंने समय पास करने के लिए कंप्यूटर ऑन कर लिया, तभी मेरे मन में अमित का मेल देखने का ख्याल आया, मैंने अपने पर्स से उसका मेल आइ डी और पासवर्ड निकाला और उसका मेल बॉक्स खोल लिया।

ढेर सारे मेल इनबॉक्स और सेंट मेल में थे, मैं बोर हो रही थी मैंने इन बॉक्स पर क्लिक कर दिया। दसवें मेल का शीर्षक था- आधा आधा कर लेते हैं।

मैंने खोला तो अंदर लिखा था- अमित नाराज़ क्यों होते हो बबलू, सतीश और अजय ने मुझे कुल साठ हजार रुपए दिए हैं अर्चना के चोदने के बदले मैं। तुम बीस की जगह आधे ले लेना ! अब घर वापस आ जाओ और यहीं किराए पर रहो।तुम्हारी भाभी रजनी

मेरा दिमाग घूम गया मुझे समझ में आ गया, दोनों ने मुझे चालाकी से सतीश और बबलू से सौदेबाज़ी करके एक रंडी की तरह चुदवाया है और माल कमाया है। अब दोनों हिस्सेदारी कर रहे हैं। लेकिन यह अजय कौन है मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

आगे और मेल मैंने पढ़े, मुझे इतना समझ में और आया कि दोनों लोग मुझे नशे और कामौत्तेजक गोलियाँ देते रहे जिस कारण से मेरी चूत रोज़ लंड लंड चिल्लाती थी और मैं बेशर्म होकर चुदवाती थी।

मैं उत्तेजित होकर और मेल पढ़ने लगी। सब कुछ पढ़ने के बाद मुझे इतना और पता चला कि साठ हजार में से 15 बबलू ने, 30 सतीश ने और 15 अजय ने दिए थे।अमित कानपुर में ही था जिस दिन मैं वापस देहली आ रही थी। अब मेरे दिमाग में दो बातें घूम रहीं थीं कि यह अजय कौन है और अमित आखरी दिन कानपुर में होते हुए भी बाहर क्यों था।

मेरा दिमाग यह सब पढ़ कर ख़राब हो गया, मैं बेचैन हो रही थी, मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा था। मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया और पर्स में रखी सरिता किताब निकाल ली जो मैं भाभी के घर से लाई थी।

मैं किताब के पन्ने पलटने लगी, एक पेज पर मेरे हाथ रुक गए उस पेज में भाभी, भाईसाहब और उनके दोनों बच्चों की एक फोटो रखी थी लेकिन भाईसाहब उन साहब से अलग थे जिन्होंने मुझे भाईसाहब बनकर चोदा था।

अब सारी कहानी साफ़ थी सुबह जिन साहब ने मेरी चुदाई करी थी वो मेरे तीसरे ग्राहक अजय थे और उन्होंने रजनी भाभी का साहब बनकर मुझे चोदा था।

अमित भी उस दिन घर में इसलिए नहीं था ताकि अर्चना रंडी अच्छी तरह से अजय साहब से बज सके और भाभी भी बहाना बना कर घर से बाहर गई थीं।

अजय भाईसाहब बच्चों के आने से पहले ही गायब हो गए थे। मैं अपनी नज़रों में गिर गई थी और ठगी सी महसूस कर रही थी।

राजीव सो रहे थे। मैंने दुखी होकर पत्र लिखा- राजीव, मैं ख़ुदकुशी कर रहीं हूँ ! तुम्हारे पीछे मैंने 4-4 लोगों से चूत की आग के चलते अवैध सम्बन्ध बनाए, तुम मुझे माफ़ कर देना। अचानक मैंने मुड़ कर देखा तो राजीव मेरे पीछे थे और रो रहे थे, बोले- अर्चना, तुम्हारा प्यार इतना छोटा है। मुझे तुम्हारी सेवा से नई जिंदगी मिली है और मैं एक लम्बी जिन्दगी तुम्हारे साथ जीने की सोच रहा हूँ। तुम एक गलती पर ही हार मान गईं। आगे तो और गलतियाँ होंगी कुछ मुझसे और कुछ तुमसे और इन संबंधों में जितना तुम्हारा दोष है, उससे ज्यादा मेरा दोष है, मैं भी तो शादी करके पैसों के लालच मैं तुम्हें प्यासी दुल्हन बनाकर विदेश चला गया।

राजीव ने रोते हुए कागज़ फाड़कर फेंक दिया और बोले- अब मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा।

हम दोनों एक दूसरे से चिपक गए, उसके बाद मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरे कपड़े उतर गए और कब मेरी चूत में राजीव का लिंग घुस गया।

उस रात मुझे चुदते हुए शरीर से ज्यादा आत्मा का आनन्द महसूस हुआ, जो राजीव के विश्वास का परिणाम था।

अगले दिन सुबह जब मैं उठी तो मुझे लगा अब हमारा रिश्ता पहले से मज़बूत हो गया है। कुछ दिन बाद मुझे इस रात का ईनाम भी मिल गया, मेरे पाँव भारी हो गए थे। सच कुछ पल जिन्दगी ख़त्म कर देते हैं तो कुछ पल नया जीवन दे देते हैं।

थैंक्स राजीव, तुम्हारी महानता के लिए।


समाप्त
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Raja maurya

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Update 9
सतीश एक तरफ मेरी चूचियों का रस नोच नोच कर निकाल रहा था, अमित दूसरी तरफ गांड लंड से खोद रहा था।

कुछ धक्कों के बाद मेरी गांड का दर्द कम हो गया लेकिन मेरी ठुकाई अच्छी तरह से हो रही थी, मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे, मेरी गांड चुद चुद कर चौड़ी हो रही थी, मैं एक रंडी की तरह चुद रही थी। कुछ देर बाद अमित ने मुझे तिरछा करके लेटा लिया और मेरी जांघें फ़ैला दीं, लंड उसका मेरी गांड फाड़े हुए था, आगे से सतीश ने बिना देर किए मेरी चूत में लंड घुसा दिया। अब मैं दोनों के बीच सैंडविच बन गई थी, सतीश ने मेरी चुदाई 10 मिनट तक करी। अमित भी बीच बीच में धीरे धक्के मार रहा था। अब मैं दो दो लंडों से चुद रही थी।

इसके बाद दोनों ने अपने वीर्य से मेरी चूत और गांड भर दी। मैं अर्ध बेहोश सी हो गई थी, थोड़ी देर बाद मैं सो गई।

तीन बजे के करीब शाम को मेरी नींद खुली, मैं लंगडाती हुई बाथरूम गई, मेरी गांड और चूत के साथ साथ पूरा बदन दुःख रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरी गांड में लंड अब भी आगे पीछे हो रहा है। मैं सबसे नाराज़ थी, भाभी ने मुझे गर्म दूध पीने को दिया और मुझे समझाने लगीं, बोलीं- शुरू शुरू में ऐसे दर्द होता है लेकिन दो दिन बाद तेरा ये सब करवाने का बहुत मन करेगा। अब हम वापस चलकर कानपुर में आराम करेंगे।

पाँच बजे के करीब हमने लखनऊ छोड़ दिया और रात को सात बजे कानपुर पहुँच गए। आते ही हम लोग सो गए सुबह दस बजे मैं उठी। सिर्फ भाभी घर में थीं, उन्होंने गर्म पानी से मेरी चूत और गांड की सिकाई कर दी, मुझे बड़ा आराम मिला।

शाम को भाभी के बच्चे आ गए, अमित दो दिन के टूर पर बाहर चला गया। रात को अच्छी नींद आई।

अगले दिन सुबह मैं एकदम तरोताजा थी, मेरा गुस्सा भी कम हो गया था। मैंने अमित और सतीश से फ़ोन पर बात की और उन्हें प्यार से डाँटा भी ! दोनों ने फ़ोन पर माफ़ी मांग ली, अब मेरा गुस्सा ख़त्म था।

रात को अमित नहीं था, मैं उसके कमरे में सो रही थी, अकेले मुझे नींद नहीं आ रही थी, एक बार आदमियों के साथ सोने की आदत पड़ जाए तो अकेले नींद भी नहीं आती। किसी तरह मन मसोस कर सो गई।

सुबह छः बजे उठने पर चूत कुनमुना रही थी और सही बात कहूँ तो लंड मांग रही थी। मुझे अपने पर गुस्सा भी आ रहा था कि मेरी चूत रांड हो गई है, इतना चुदने के बाद भी खुजला रही है, पहले तो इतनी नहीं खुजलाती थी। देहली जाकर पता नहीं बिना चुदे कैसे रह पाएगी।

मैं आज शाम को दिल्ली जा रही थी, मैंने अमित को फोन किया, अमित बोला- शाम को आ नहीं पाऊँगा, सच कहूँ तो मेरी गांड मारने के बाद वो मुझसे नज़रें चुरा रहा था।

मैंने कहा- एक बार और नहीं डालोगे?

अमित बोला- भाभी आपके साथ मज़ा बहुत आया, लेकिन कुछ ज्यादती हो गई, मुझे माफ़ कर देना !

इसके बाद बात खत्म हो गई। मेरा मन थोड़ा सा दुखी हो रहा था, मैं सोच रही थी कि बेकार इतना डाँटा अमित को, मज़े तो मैंने भी लिए थे।

मैंने अपने सर को झटका और स्कर्ट टॉप पहन कर नीचे आ गई, सुबह के आठ बज़ गए थे। रात को भाई साहब आ गए थे और अखबार पढ़ रहे थे। बच्चे स्कूल चले गए थे।

भाभी ने मेरी और उनकी चाय बनाई, मैंने जाकर झुक के चाय भाईसाहब को दे दी, मेरी पूरी चूचियाँ भाईसाहब ने दर्शन कर लीं लेकिन अब मुझे यह सब नया नहीं लग रहा था। भाईसाहब के कमरे में फर्श पर कुछ कपड़े पड़े थे, मैंने उन्हें एक एक करके उठाया और बाहर धुलने रख दिया।

मैंने मुड़कर देखा तो भाईसाहब मुझे ऐसे घूर-घूर कर देख रहे थे जैसे मुझे अभी चोद डालेंगे।

बाहर आकर मैं भाभी के साथ काम करने लगी।

तभी पड़ोस से नीलिमा आ गई, बोली- भाभी, शर्मा जी के यहाँ नहीं चलना उनके यहाँ लड़का होने की कथा है।

भाभी बोलीं- ओह, मैं तो भूल ही गई थी।

भाभी मुझसे बोली- तू इनको को नाश्ता करा देना। मैं दो घंटे में आ जाऊँगी।

मैंने नाश्ता बना लिया, गर्मी बहुत हो रही थी अपने टॉप के दो बटन खोल लिए। जब मैं भाईसाहब को नाश्ता दे रही थी तो मेरी चूचियाँ झुकने पर पूरी नंगी दिख रही थीं।

भाईसाहब मुस्कराते हुए बोले- अर्चना आज तो लग रहा है, दूध पीने को मिलेगा।

मैं समझ गई कि भाईसाहब मेरी चूचियों का मज़ा ले रहे हैं, मैं भी मुस्कराते हुए बोली- आप दूध पी लेना ! किसका पियेंगे भैस का या किसी और का?

भाईसाहब ने आँख मारी- तुम जो पिला दोगी?

मैंने कहा- पहले आप नाश्ता कर लें, फिर जिसका आप कहेंगे उसका पिला दूंगी।

और मैं भी मुस्करा दी। इसके बाद पीछे मुड़कर मेज पर झुककर अखबार पढ़ने लगी। मेरी स्कर्ट बहुत छोटी थी जो ऊपर को उठ गई थी। भाईसाहब मेरी नंगी गांड और उसके नीचे से झांकती चूत का मज़ा नाश्ता करते हुए ले रहे थे। रोज़ की तरह मैंने चड्डी नहीं पहनी थी, रोज़ अमित से मज़े लेने के लिए नहीं पहनती थी तो आज पहनना ही भूल गई थी। मुझे इस बात का पता तब चला जब अचानक से किसी ने मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा।

मैंने मुड़कर देखा तो भाईसाहब मेरे नंगे चूतड़ सहला रहे थे। अब मुझे पता चला कि मैं तो अपनी नंगी गांड बार बार उन्हें दिखा रही हूँ इसलिए वो मुझे चोदने की नज़र से घूर रहे थे।

उनका इस तरह देखना गलत नहीं था।

भाईसाहब ने मेरे चूतड़ों को दबाते हुए मेरी चूत अपने हाथों से सहला दी और बोले- तुम तो गुरु हो ! इतनी देर से दिखा रही हो, अगर अब भी हाथ न लगाया तो तुम मुझे नामर्द समझोगी।

मैं एकदम से चौंक गई, मुझे अपनी गलती समझ मैं आ गई, मैं चड्डी पहनना भूल गई थी। इसके बाद भाईसाहब ने मुझे पीछे से बाँहों में जकड़ते हुए मेरी चूचियाँ अंदर हाथ डालकर मसलीं और अपना हाथ मेरी स्कर्ट पर सरका कर उसका एक मात्र बटन खोल दिया। स्कर्ट नीचे गिर गई और उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूत को सहलाते हुए कहा- चूत तो तुम्हारी गीली हो रही है। शर्मा क्यों रही हो? अकेले हैं, आओ तुम्हारी चूत और चूची दोनों का दूध पीते हैं।

मैं भी पूरी रांड हो गई थी, मैं मुस्करा दी और मैंने चुदने के लिए एक मूक सहमति दे दी थी। मन में रंडीबाज़ी जाग उठी, जाते जाते एक बार एक और लौड़े से सही।

भाईसाहब बोले- ऊपर चलते हैं, अमित के कमरे में चोदते हैं।

मैंने अपनी स्कर्ट पहन ली और हम दोनों ऊपर आ गए।

ऊपर आकर भाईसाहब ने मेरी स्कर्ट उतार दी और टॉप भी निकाल दिया। अब मैं अपने नंगे बदन का मुजरा पेश कर रही थी उन्होंने मुझे अमित के बाहर के कमरे में लिटा दिया और मेरी दूधों को चूसने लगे।

चूसते हुए भाईसाहब ने मेरी निप्पल कड़ी कर दीं। अब मेरी चूत की बारी थी, दाने पे मुँह लगते ही मेरी आहें निकलने लगीं। क्या चूसा था !

इसके बाद तो अच्छी से अच्छी औरत भी लंड लंड करने लगेगी, पूरा चूत रस बहने लगा।

पाँच मिनट चूसने के बाद मैं बोली- अब कुछ करिए न ! आह ! बहुत मन कर रहा है।

भाईसाहब ने अपना पजामा कुरता उतार दिया, उनका पाँच इंची लंड मेरी आँखों के आगे था, मुझे लगा कि आज चुदने में आनन्द कम आएगा लेकिन मेरा सोचना गलत था। उन्होंने मेरी टांगें उठाकर चूत में लंड घुसा दिया।

आह ! पूरा अंदर चला।

भाईसाहब ने धीरे धीरे मुझे चोदना शुरू कर दिया लेकिन पूरा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे, आराम से मेरी चुदाई चल रही थी, मैं भी धीरे धीरे आहें भर रही थी। बीच में 2-3 बार चुदाई रोककर लंड अंदर घुसाए घुसाए भाईसाहब ने मेरी चूचियाँ और होंटों की चुसाई की, चूचियों को कई तरह से दबाया और मसला।

उसके बाद बोले- आसन बदल कर चुदना हो तो बताना !

पूरे प्यार भरे तरीके से मेरी चुदाई हो रही थी, भाईसाहब ने लंड निकाल लिया और मेरी जाँघों पर अपने हाथों से मालिश करने लगे, मेरी नाभि को चूमा, गले पर सहलाया और मेरी जीभ निकलवा कर चूसी। उन्होंने मुझे काम रस में डुबो दिया।

मैं बोली- आपके साथ बहुत अच्छा लग रहा है, एक बार और चोदिये ना !

उन्होंने मुझे चिपका कर अपना लंड घुसा दिया और मुझसे सेक्सी बातें करने लगे, बोले- तुम्हारी जांघें बहुत गर्म हैं, तुम बहुत सेक्सी हो !

मेरी तारीफ़ करते हुए धीरे धीरे चोदने लगे। मुझे बहुत आनन्द आ रहा था, मैं भी चुदने में पूरा साथ दे रही थी।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

मैं हड़बड़ा गई और उठ गई। भाईसाहब बोले- जाली के दरवाजे में से मुँह नीचे डालकर देखो कौन है।

मैं नंगी उठी और टीशर्ट डालकर खिड़की का दरवाज़ा खोलकर नीचे देखा तो सब्जी वाला था, बोला- बहनजी, सब्जी !

मैंने कहा- नहीं चाहिए !

वो चला गया।

भाईसाहब मेरे पीछे आ गए और मुस्कराते हुए बोले- ऐसे नहीं घबराते हैं, तुम खिड़की की जाली से सड़क का नज़ारा देखो मैं तुम्हें पीछे से चोदता हूँ।

मैं दोनों हाथ खिड़की पर रखकर झुक गई और बाहर देखने लगी, भाई साहब ने प्यार से मेरी कमर पकड़ कर चूत में लंड लगाया और शुरू हो गए। इस बार वो थोड़े तेज शोटों से चोद रहे थे।

मैं नीचे झांक रही थी और अपनी चुदाई के मज़े ले रही थी।

दो मिनट बाद मुझे शर्म आने लगी और बोली- बिस्तर पर ही करते हैं।

हम लोग बिस्तर पर आ गए। भाईसाहब ने मुझे बिस्तर पर गोद में बैठा लिया और नीचे से अपना लोड़ा मेरी चूत में लगा दिया। भाईसाहब अब नीचे से धक्के मार कर चोदने लगे, मैं अपने स्तन उनके सीने से चिपकाए अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

कुछ देर बाद उन्होंने अपना पानी मेरी चूत में छोड़ दिया, हम दोनों आपस में चिपक कर एक दूसरे को चूमने लगे। मुझे चुदाई में प्यार भरा आनन्द आया था।

मैं भाईसाहब से बातें करने लगी।

भाईसाहब और मैं एक दूसरे के अंगों को छेड़ते हुए बातें कर रहे थे। मैंने उन्हें कई बार होटों पर चुम्बन किया तो उनका लंड दुबारा टन-टन करने लगा था, उन्होंने मेरे हाथ में अपना लौड़ा पकड़ा दिया और मेरी गांड में उंगली घुमाने लगे, मुस्कराते हुए बोले- तुमने 2-3 दिन पहले ही गांड मरवाई है।

मैं बोली- आपको कैसे पता?

हँसते हुए बोले- छेद उंगली डालते ही बड़ा हो रहा है।

मैं चुप रही।

भाईसाहब बोले- मुझसे मरवाओगी?

मैं बोली- दर्द बहुत होता है।

भाईसाहब बोले- दर्द अगर हो जाए तो मेरी जान ले लेना।

मुझे लगा कि भाईसाहब का लंड छोटा है, मज़ा ले लेती हूँ, और इन्होंने मेरी चूत को अमित और सतीश से ज्यादा मस्त मज़ा दिया है, एक बार गांड मैं और सही।

मैं बोली- प्यार से मारना।

भाईसाहब बोले- चिंता न करो, अब एक बार मेरा लोड़ा चूस कर थोड़ा कड़क कर दो।

मैंने उनकी जाँघों में लेटकर लौड़ा 10-12 बार चूसा। इसके बाद उन्होंने मुझे हटा दिया और अपना पर्स उठा कर उसमें से एक कंडोम निकाल कर लंड पर चढ़ा लिया।

मैंने पूछा- आप पर्स में कंडोम क्यों रखते हैं?

भाईसाहब मुस्कराते हुए बोले- जब भी मैं टूर पर जाता हूँ तो रात को बिना लड़की के नहीं सोता। पर्स में हमेशा 3-4 कंडोम रखता हूँ, इससे रात को आराम हो जाता है। एक रात में 2 से 4 बार लड़की को चोदता हूँ। अब ये छोड़ो और जिस आसन में गांड मरवानी है, लेट जाओ, थोड़ा टांगें फ़ैला कर रखना।

मैं बोली- आप ही लेटा दीजिए न।

भाईसाहब ने मेरे पेट के नीचे दो तकिये रख दिए और मुझे उल्टा लेटा दिया।

भाईसाहब ने मेरी गांड में दोनों हाथों की एक एक उंगली मिलकर आगे पीछे 5-6 बार करी। आह बड़ा मज़ा आया। टाँगे मेरी उन्होंने चौड़ी कर दीं थीं, उनके लंड का सुपारा मेरी गांड खटखटा रहा था जिसे उन्होंने हाथ से पकड़ कर गांड में डाल दिया और अपना लंड अंदर घुसाने लगे। थोड़ घुसने के बाद मेरी चूचियाँ मेरे ऊपर लेटकर हाथों से दबा लीं और बोले- चुदते समय आह ऊह खुलकर करना, इससे मुझे और तुम्हें दोनों को ख़ुशी मिलेगी।

अब वो धीरे धीरे चोदते हुए लण्ड अंदर डालने लगे। आह ऊह ऊह आह आह ऊह क्या मज़ा था ! लंड पूरा अंदर जा चुका था।

उन्होंने पूरा घुसने के बाद उसे बाहर खींचा और दुबारा अंदर तक पेल दिया। मेरी गांड अच्छी तरह से चुदने लगी, उनके टट्टे मेरी गांड पर बार बार छू रहे थे, मेरी गांड मरनी शुरू हो गई लेकिन कोई दर्द नहीं था। लंड कभी धीरे और कभी तेज अंदर-बाहर हो रहा था, मैं आह ऊह आह्ह ऊह बड़ा मज़ा आ रहा की आवाज़ों से मस्तिया रही थी। सच भाईसाहब ने मस्त कर दिया था। मुझे लग रहा था कि चूत गांड वाकई मज़े की चीज़ें होती हैं बस प्यार से मारने वाला चाहिए। आज मेरी गांड में गाडी बड़े प्यार से दौड़ रही थी, बहुत मज़ा आ रहा था।

भाईसाहब ने कुछ देर बाद लंड बाहर निकाल लिया, मेरे से रहा नहीं गया और बोल पड़ी- और करिए ना ! बड़ा मज़ा आ रहा है।

भाईसाहब ने गले पर पप्पी ली और बोले- अभी तो शुरुआत हुई है, चिंता क्यों करती हो।

भाईसाहब ने मेरे चूतड़ों पर हाथ मारा और बोले- अब उठो और घोड़ी बन जाओ !

भाईसाहब ने मुझे पलंग पर आधा लेटाकर नीचे जमीन पर मेरे पैर चौड़े करवाए और मुझे घोड़ी बना दिया। इसके बाद भाईसाहब मेरे चूतड़ों पर 6-7 चाटें प्यार से मारे और मेरी गांड में धीरे-धीरे पूरा लंड घुसा दिया और मुझे पेलने लगे।

5-6 शोटों के बाद उन्होंने टाँगे मिला दीं, अब मेरा छेद सिकुड़ गया था। उनका लंड अब कसा हुआ मोटा लग रहा था। उन्होंने ताकत से लौड़ा अंदर-बाहर किया। मुझे अब दर्द हो रहा था, मेरी आँखों से पानी आ गया, मैं बोल उठी- बाहर निकालिए, बड़ा दर्द हो रहा है।

उन्होंने झुककर मेरी पप्पी ली और टांगें दुबारा चोड़ी करा दीं, अब लौड़ा पूरी ईमानदारी से अन्दर-बाहर हो रहा था, मैं ऊह ऊह ऊह आहा की आवाज़ों से अपना आनंद प्रकट करने लगी थी।

भाईसाहब बोले- मज़ा आ रहा है?

मैं बोली- हाँ बहुत मज़ा आ रहा है, और करो और चोदो।

मेरी गांड में अंदर तक लंड घुसा कर भाईसाहब रुक गए और बोले- अर्चना, अब आगे पीछे होकर तुम खुद चुदो, उसमें और मज़ा आएगा।

मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर थी, मैंने अपनी गांड को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया और लौड़ा खाने लगी। हर शॉट पर भाईसाहब मेरी चूची पूरी दबा देते थे औरे मेरी चोटी भी बीच बीच में खींच देते थे। इसके बाद उन्होंने मेरी कमर को पकड़ लिया, अब वो लोड़ा आगे पेलते तो मैं गांड पीछे पेलती। मस्त होकर मैं गांड चुदवा रही थी। दस मिनट बाद मैं हांफ गई, भाईसाहब ने मुझे गोद में उठाकर पलंग पर डाल दिया और कंडोम निकाल कर फेंक दिया और बोले- मैं झड़ने वाला हूँ, तुम्हारी चूची पर रस डालूं या जमीन पर निकाल दूं !

मैं बोली- मुझे आप अपना रस मुँह में पिलाओ !

और मैंने मुँह में लंड ले लिया और तेज-तेज चूसने लगी। 2-3 चुसाई में लंड ने पानी छोड़ दिया, मेरा पूरा मुँह वीर्य से भर गया, भाईसाहब का पूरा रस प्यार से मैं गटक गई।

उसके बाद चिपक कर मैंने उन्हें चूम लिया और बोली- आप बहुत अच्छे हैं, आपने मुझे बहुत सुख दिया।

5 मिनट बाद चिपक कर हम अलग हो गए, मैं बाथरूम में चली गई।

बारह बज़ गए थे, भाभी एक बजे आईं, हम लोगों ने खाना बना कर खा लिया। इसके बाद मैं अमित के कमरे में चली गई और अपना सामन सेट करने लगी।

अमित का कमरा भी मैं सेट करने लगी, अमित के पलंग के नीचे मुझे उसका एक मेल आइ डी और पासवर्ड लिखा दिखा। पहले मैंने उसे नज़रंदाज़ कर दिया लेकिन फिर कुछ सोचकर मैंने उसे अपने पर्स में एक कागज़ पर लिखकर डाल लिया। उसके बाद मैं सो गई।

छः बजे उठी, रात को दस बजे मुझे जाना था, 11 बजे मेरी ट्रेन थी, मैंने अमित को फ़ोन किया, अमित बोला- मैं कानपुर से बाहर हूँ, भाईसाहब से कहना कि तुम्हें छोड़ दें।

भाईसाहब बच्चों के स्कूल के आने से पहले काम पर चले गए थे। मैं भाभी और बच्चे ही घर पर थे।

नौ बजे खाने के बाद और बच्चों के सोने के बाद भाईसाहब घर 9:30 पर आए और हम लोग स्टेशन के लिए निकल पड़े। जाते जाते मैंने भाभी के घर पर पड़ी एक सरिता किताब अपने बैग मैं रख ली। रास्ते में भाईसाहब ने एक सुनसान जगह कार खड़ी कर दी। हम दोनों ने दो गहरे चुम्बन लिए और मैंने भाईसाहब का लौड़ा निकाल कर कार में पूरा रस निकलने तक चूसा।

इसके बाद हम स्टेशन पहुंचे, स्टेशन से 11 बजे मेरी ट्रेन चल दी।मेरी चुदाई यात्रा समाप्त हो गई थी। सुबह 6 बजे मैं अपने सास-ससुर के पास थी। अब मैं 4-4 लंडों से खेली खाई औरत थी। दो दिन बाद ही मुझे लंड की चाहत महसूस होने लगी। भगवान् ने मेरी सुन ली, मेरे पति 5 दिन बाद विदेश से वापस आने वाले थे।

5 दिन बाद राजीव वापस आ गए, आते ही रात को उन्होंने मेरी 5-6 बार चूत चोदी और मुझसे पूछा- तुम्हारी गांड में ट्राई करूँ? विदेश में तो गांड मारना एक सामान्य सी बात है, और मेरे सारे विदेशी दोस्त अपनी गर्ल फ्रेंड की गांड मार चुके हैं।

मैं हल्के से मुस्करा कर बोली- जैसा आप चाहो !

और उन्होंने मेरी गांड मारने की कोशिश करी। 5-6 बार में थोड़ा सा घुसा पाए और उसके बाद उनका शेर ढेर हो गया। राजीव मुझे गांड मारने में नए खिलाड़ी लगे जबकि मैं अब एक खेली-खाई औरत थी लेकिन मुझे अपना लीगल लंड मिल गया था, मैं खुश थी और रोज़ उनसे चुदने लगी। मेरे सहयोग से वो मेरी गांड मारना भी सीख गए।

चार दिन बाद मैं राजीव के साथ बाहर होटल में खाना खाने गई। लौटते वक्त 5-6 गुंडों ने हमें घेर लिया और मुझे छेड़ने लगे। उनमें से दो आगे बढ़कर मेरी चूचियाँ दबाने लगे। राजीव उनसे भिड़ गए। तभी एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर राजीव को 2 गोलियां मार दीं और सभी गुंडे वहाँ से भाग गए।

शुरू में डॉक्टर ने राजीव को 2-3 दिन का मेहमान बताया। मैंने दिन-रात राजीव की सेवा की। इस समय लंड चूत सब भूल गई थी मैं। भगवान् की कृपा से राजीव 30 दिनों में सही हो गए। इन 30 दिनों में राजीव तो सही हो गए थे लेकिन मुझे अपने पर शर्म आ रही थी कि मेरे पति मुझ पर मरने को तयार हैं और मैं उनके पीछे अपने मज़े के लिए लौड़े खाती रही।

एक रात राजीव सो रहे थे, मैं ये सब सोच सोच कर परेशान हो रही थी।मैंने समय पास करने के लिए कंप्यूटर ऑन कर लिया, तभी मेरे मन में अमित का मेल देखने का ख्याल आया, मैंने अपने पर्स से उसका मेल आइ डी और पासवर्ड निकाला और उसका मेल बॉक्स खोल लिया।

ढेर सारे मेल इनबॉक्स और सेंट मेल में थे, मैं बोर हो रही थी मैंने इन बॉक्स पर क्लिक कर दिया। दसवें मेल का शीर्षक था- आधा आधा कर लेते हैं।

मैंने खोला तो अंदर लिखा था- अमित नाराज़ क्यों होते हो बबलू, सतीश और अजय ने मुझे कुल साठ हजार रुपए दिए हैं अर्चना के चोदने के बदले मैं। तुम बीस की जगह आधे ले लेना ! अब घर वापस आ जाओ और यहीं किराए पर रहो।तुम्हारी भाभी रजनी

मेरा दिमाग घूम गया मुझे समझ में आ गया, दोनों ने मुझे चालाकी से सतीश और बबलू से सौदेबाज़ी करके एक रंडी की तरह चुदवाया है और माल कमाया है। अब दोनों हिस्सेदारी कर रहे हैं। लेकिन यह अजय कौन है मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

आगे और मेल मैंने पढ़े, मुझे इतना समझ में और आया कि दोनों लोग मुझे नशे और कामौत्तेजक गोलियाँ देते रहे जिस कारण से मेरी चूत रोज़ लंड लंड चिल्लाती थी और मैं बेशर्म होकर चुदवाती थी।

मैं उत्तेजित होकर और मेल पढ़ने लगी। सब कुछ पढ़ने के बाद मुझे इतना और पता चला कि साठ हजार में से 15 बबलू ने, 30 सतीश ने और 15 अजय ने दिए थे।अमित कानपुर में ही था जिस दिन मैं वापस देहली आ रही थी। अब मेरे दिमाग में दो बातें घूम रहीं थीं कि यह अजय कौन है और अमित आखरी दिन कानपुर में होते हुए भी बाहर क्यों था।

मेरा दिमाग यह सब पढ़ कर ख़राब हो गया, मैं बेचैन हो रही थी, मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा था। मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया और पर्स में रखी सरिता किताब निकाल ली जो मैं भाभी के घर से लाई थी।

मैं किताब के पन्ने पलटने लगी, एक पेज पर मेरे हाथ रुक गए उस पेज में भाभी, भाईसाहब और उनके दोनों बच्चों की एक फोटो रखी थी लेकिन भाईसाहब उन साहब से अलग थे जिन्होंने मुझे भाईसाहब बनकर चोदा था।

अब सारी कहानी साफ़ थी सुबह जिन साहब ने मेरी चुदाई करी थी वो मेरे तीसरे ग्राहक अजय थे और उन्होंने रजनी भाभी का साहब बनकर मुझे चोदा था।

अमित भी उस दिन घर में इसलिए नहीं था ताकि अर्चना रंडी अच्छी तरह से अजय साहब से बज सके और भाभी भी बहाना बना कर घर से बाहर गई थीं।

अजय भाईसाहब बच्चों के आने से पहले ही गायब हो गए थे। मैं अपनी नज़रों में गिर गई थी और ठगी सी महसूस कर रही थी।

राजीव सो रहे थे। मैंने दुखी होकर पत्र लिखा- राजीव, मैं ख़ुदकुशी कर रहीं हूँ ! तुम्हारे पीछे मैंने 4-4 लोगों से चूत की आग के चलते अवैध सम्बन्ध बनाए, तुम मुझे माफ़ कर देना। अचानक मैंने मुड़ कर देखा तो राजीव मेरे पीछे थे और रो रहे थे, बोले- अर्चना, तुम्हारा प्यार इतना छोटा है। मुझे तुम्हारी सेवा से नई जिंदगी मिली है और मैं एक लम्बी जिन्दगी तुम्हारे साथ जीने की सोच रहा हूँ। तुम एक गलती पर ही हार मान गईं। आगे तो और गलतियाँ होंगी कुछ मुझसे और कुछ तुमसे और इन संबंधों में जितना तुम्हारा दोष है, उससे ज्यादा मेरा दोष है, मैं भी तो शादी करके पैसों के लालच मैं तुम्हें प्यासी दुल्हन बनाकर विदेश चला गया।

राजीव ने रोते हुए कागज़ फाड़कर फेंक दिया और बोले- अब मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा।

हम दोनों एक दूसरे से चिपक गए, उसके बाद मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरे कपड़े उतर गए और कब मेरी चूत में राजीव का लिंग घुस गया।

उस रात मुझे चुदते हुए शरीर से ज्यादा आत्मा का आनन्द महसूस हुआ, जो राजीव के विश्वास का परिणाम था।

अगले दिन सुबह जब मैं उठी तो मुझे लगा अब हमारा रिश्ता पहले से मज़बूत हो गया है। कुछ दिन बाद मुझे इस रात का ईनाम भी मिल गया, मेरे पाँव भारी हो गए थे। सच कुछ पल जिन्दगी ख़त्म कर देते हैं तो कुछ पल नया जीवन दे देते हैं।

थैंक्स राजीव, तुम्हारी महानता के लिए।


समाप्त
Bahot mast story Bhai maza aa gya
 

odin chacha

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Adirshi

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hind section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

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