• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery प्यास

सिकंदर

New Member
6
18
3
अनमने से मन से , कुछ थोड़ी नराजगी से मैं अपने कपडे और किताबो को जमा रहा था . अब ये पुराना छप्पर ही मेरा कमरा था . ये वैसे तो ज्यादा बड़ा नहीं था पर मेरा जुगाड़ हो ही सकता था . मैंने फिर एक तार की सहायता से बल्ब भी लगाया और थोड़ी बहुत सफाई भी कर ली, आखिर मुझे अब यही रहना था , ऐसा नहीं था की मेरे पास रहने को कमरा नहीं था, था, पर कुछ परिस्तिथिया ऐसी हो गयी थी की फ़िलहाल ये छप्पर ही मेरा आशियाना था .

तक़रीबन तीन महीने हॉस्पिटल में रहने के बाद आज ताउजी को घर लाया गया था तो जिस कमरे में मेरा जुगाड़ था अब वहां ताउजी को शिफ्ट कर दिया गया था, , कहने को तो हमारा घर ठीक ठाक सा था पर तीन भाइयो वाली फॅमिली में थोड़ी बहुत कमी तो वाजिब ही थी . और फिर पिछले कुछ महीने खास बढ़िया भी तो नहीं थे. वैसे तो ताउजी काफी सालो से अम्बाला में बसे हुए थे , एक जूतों की दुकान थी उनकी , आना जाना भी बस शादी ब्याह या फिर किसी मौत पर ही हो पता था हम और छोटे चाचा गाँव में रहते थे , पिताजी की नौकरी पास के ही शहर में थी तो सुबह जाके देर शाम तक घर आजाते थे, और चाचा हमारे दरजी , गाँव के अड्डे पर ही दुकान की हुई थी,फैशन के कपडे सीते थे तो अपना काम मस्ती में रहते थे.

मम्मी और चाची का ज्यादातर समय घर के कामो और खेत खलिहान में बीतता था , घर में बालको के नाम पर मैं था और ताउजी का एक लड़का था जो इसी साल कोई कोर्स करने देहरादून गया था . एक हमारी दादी थी जो घर की हिटलर थी और दादाजी हमारे रिटायर डॉक्टर थे, अब कब थे डॉक्टर ये तो मालूम नहीं जबसे देखा बस रिटायर ही देखा तो ये था इंट्रोडक्शन ...............................................

कहानी शुरू होती है अब.

ताउजी के एक्सीडेंट की खबर ने जैसे बिजली सी गिरा दी थी परिवार पर , अम्बाला का रास्ता गाँव से कोई पन्द्रह घंटे लग जाते थे बस में , कैसे कटा हम ही जानते थे, मैंने पहली बार ताईजी को रोते हुए देखा . मुस्किल घडी थी वो , पर ख़ुशी इस बात की थी की जान बच गयी थी , तीन महीने लगे और फिर डॉक्टर ने भी हार मान ली थी कमर के निचे का हिस्सा काम नहीं कर पायेगा ऐसा बताया तो हम सब सदमे में थे, फिर दादाजी ने निर्णय लिया और उनको गाँव ले आये. घर का माहौल थोडा सा उदास था ऊपर से अब मिलने जुलने वाले आ रहे थे जा रहे थे . तो मैंने छप्पर को सेट करने के बाद थोड़ी देर घर से बाहर निकल जाने का सोचा .

रेत पर बैठ कर डूबते सूरज को देखने का भी अपना ही सुख था मेरे लिए. गर्म रेत जब तक ठंडी होकर मेरे पैरो को चुभने नहीं लगती मैं नदी किनारे बैठा रहता था , ये नदी भी बस नाम की ही नदी थी पानी था ही नहीं इसमें , बड़े बुजुर्गो से बस सुना था तो मानते थे की नदी है. ये एक तरह की सरहद थी क्योंकि इसके पार जंगल शुरू हो जाता था . पर न जाने क्यों भरे गाँव में मेरा दिल यहीं पर लगता था .

वापसी में कुछ दोस्तों संग गप्पे मारते हुए मैं घर पंहुचा तो मेरा सामना ताईजी से हो गया . ताईजी का नाम गीता देवी था , उम्र कोइ अड़तीस साल होगी शरीर भी ठीक ठाक था .

ताईजी- बेटा, मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी . दूकान पे जाओ और कडवा तेल ले आओ मुझे जरुरत है .

मैं- घर में होगा न ताईजी उसमे से ले लो.

ताईजी- बेटा. उनके लिए मालिश का तेल बनाना है तो ज्यादा की जरुरत है .

मैंने आगे कुछ नहीं पूछा और पैसे लेकर दुकान की तरफ चल पड़ा. तेल लाके दिया , कुछ देर छोटी चाची के साथ टाइम पास किया इन्ही सब में दस- साढ़े दस बज गए, तो मैं छप्पर में आ गया, किवाड़ बंद किया और लैंप की रौशनी थोड़ी बढ़ा दी . इत्मिनान से मैंने अपनी किताबो के ढेर में हाथ दिया और उस चीज़ को ढूंढ ने लगा जिसकी अब मुझे जरुरत थी,

“कहाँ, गयी ” बुदबुदाते हुए मैंने कहा ,

कुछ और किताबो को इधर उधर सरकाया और फिर तमाम ढेर ही छान मारा पर वो किताब न मिली, होनी तो यही चाहिए थी मैंने सोचा . पर यहाँ थी नहीं. कल ही शहर से मैं अश्लील कहानियो की किताब खरीद कर लाया था जिसे आज पढने का सोचा था मैंने . दो तीन बार देख लिया पर किताब थी ही नहीं यहाँ पर , कही कमरे में तो नहीं रह गयी मेरे मन में ख्याल आया और ये बहुत ही गलत ख्याल था . घरवालो में से किसी को भी वो किताब मिली तो मेरी तो लंका लग जाएगी . मन बेचैन सा हो उठा , मैं आँगन में आया और चहलकदमी करने लगा.

पुरे घर में अँधेरा था बस ताउजी के कमरे में लैंप जल रहा था . कहीं किताब वहीँ तो नहीं रह गयी होगी. खिड़की खुली थी मैंने उसमे से झाँका. ताईजी अभी जागी हुई थी उनकी पीठ मेरी तरफ थी . उन्होंने अपनी साडी का पल्लू पकड़ा और साड़ी को उतार कर पलंग पर रख दिया. उस हलके से पेटीकोट में मैंने ताईजी के कुछ मोटे कुलहो की झलक देखि . मेरी आँखे जैसे उनके जिस्म पर चिपक ही गयी हों.

अब वो ब्लाउज खोल रही थी और जब ब्लाउज उतरा तो मेरी सांसे हलक में ही अटक गयी. गोरी पीठ की चिकनाहट का अंदाजा मुझे उस दुरी से ही हो गया था और वो काली ब्रा की डोरिया उस गोरे रंग पर क्या खूब सज रही थी . मुझे अपने बदन में बेहद तेज सनसनाहट महसूस हुई. उस वक़्त मेरी तमन्ना थी की वो मेरी तरफ पलट जाये और मैं सामने से उनकी छातियो को देख सकू. पर इन्सान की कहा सारी हसरते पूरी होती है .

ताईजी ने पेटीकोट के नाड़े में अपनी उंगलिया फंसाई और उनके कुलहो को चूमते हुए वो निचे पैरो पर गिर पड़ा. ताईजी उस समय सिर्फ ब्रा और कच्छी में थी , और वो कच्छी भी बस नाम की ही थी. मैं उनके गोल मटोल चुतड़ो को आँखे फाडे देख रहा था , कच्छी की वो पतली डोरी उनमे जैसे गुम ही हो गयी थी. पर हद तो होनी जैसे बाकी ही थी वो पेटीकोट उठाने निचे को झुकी तो कुल्हे और भी इतरा कर बाहर को आ गए. मेरे जीवन का ये पहला अवसर था जब मैंने किसी भी औरत को इस हाहाकारी रूप में देखा था .

मेरे होश गुम हो चुके थे, दिमाग में जैसे हजारो घंटिया एक साथ बज रही थी . ताई तीन चार पल ही झुकी रही थी पर वो नहीं जानती थी की कितने खूबसूरत थे वो पल. उन्होंने पास रखी मेक्सी पहनी और फिर लैंप को बुझा दिया.

मैं वापिस अपने बिस्तर पर आ गया पर आँखों में नींद की जगह ताईजी ने ले ली थी . मेरा हाथ लंड पर चला गया और अपनी आँखों में ताईजी के उस द्रश्य को लिए मैं मुट्ठी मारने लगा. उफ्फ्फ कितने सुकून से झडा था मैं उस रात. इतना वीर्य पहले कभी नहीं गिरा था मेरा. जिस्म से जैसे जान जुदा ही हो गयी थी उस लम्हात में .
 

सिकंदर

New Member
6
18
3
#2

सुबह सुबह घर में बहुत भागदौड़ रहती थी , मुझे नहाना था तो मैं बाथरूम की तरफ गया पर कुण्डी अन्दर से बंद थी . मैंने जोर से दरवाजा पीटा , “निकलो बाहर , नहाना है मुझे. ” मैंने जोर से चिल्लाया.

“बाहर पत्थर पर नहा ले, मुझे समय लगेगा ” अन्दर से चाची की आवाज आई.

मैं- चाची, वैसे तो शाम तक नहीं नहाती हो , आज क्या आफत आ गयी जो सुबह पहले, मुझे वैसे भी देर हो रही हैं.

“तो बोला न बाहर नाहा ले. और अब किवाड़ मत पीटना अंदर से चाची की आवाज आई. ”

मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं कर कुछ नहीं सकता था तो मैंने बाल्टी उठाई और बाहर पत्थर पर आ गया. नहाते हुए मैंने देखा की सामने से ताईजी आ रही थी , सिंदूरी साड़ी में बिलकुल हेरोइन सी , मेरी निगाह उनके थोड़े से फुले हुए पेट पर पड़ी . उनकी नाभि कितनी गहरी होगी मैंने ये सोचा.

“बाहर, क्यों नहा रहे हो , हवा चल रही है. ” ताई बोली.

मैं- अन्दर चाची नहा रही है इसलिए. आप सुबह सुबह कहा गए थे.

ताई- मंदिर .

मैं- अच्छा किया.

ताई अन्दर को बढ़ गयी और मेरी निगाह उसकी गांड से चिपकी रही. जबतक मैं घर से नहीं निकला मेरे दिमाग में बस ताई कि गांड ही रही. मुझे ताईजी के बारे में ऐसे गंदे विचार नहीं सोचने चाहिए थे पर मेरा मन मुझसे बगावत कर रहा था . और मैं मन को समझा नहीं पा रहा था. मेरी चढ़ती जवानी मुझे क्या इशारा कर रही थी .

दोपहर बाद मैं घर आया तो मुझे उस किताब की याद आई, मैं सोचने पर मजबूर हो गया की किताब गयी तो गई कहाँ . मैंने उसे ताउजी के कमरे में ढूँढने का सोचा और कमरे में चला गया . ताउजी सो रहे थे. मैंने इधर उधर नजर डाली और अलमारी खोली जहाँ मैं अपना सामान रखता था पर वहा कुछ भी नहीं था एक कागज भी नहीं . मैंने सारे खाने चेक किये पर कुछ नहीं मिला. मैं और परेशां हो गया.

“कुछ ढूंढ रहे हो ” ताईजी की आवाज मेरे कानो से टकराई और मेरी हालत ऐसी हो गयी जैसे की किसी ने मुझे चोरी करते हुए पकड़ लिया.

“नहीं, कुछ नहीं ताईजी ” मैंने थूक गटकते हुए कहा .

“तो फिर चेहरे पर हवाइया को उड़ रही है ” ताईजी ने कुछ मुस्कुराते हुए कहा.

मैं कुर्सी पर बैठ गया.

मैं- नहीं बस देख रहा था की कुछ मेरा सामान रह तो नहीं गया यहाँ कल जल्दी जल्दी में सामान हटाया था न इसलिए.

ताईजी- हम्म, अच्छे से देख लो कही कुछ रह तो नहीं गया .

कुछ तो गहराई महसूस की थी मैंने पर बोला नहीं कुछ. मेरे मन में ख्याल आया की कहीं वो किताब ताई को तो नहीं मिल गयी .

ताई- पढाई कैसी चल रही है तुम्हारी

मैं- जी, ठीक चल रही है .

ताईजी ताउजी के पास गयी और झुक कर उनकी चादर को सही करने लगी , मेरी निगाह उनके ब्लाउज के गले से होते हुए चुचियो की घाटी में फंस गयी , पता नहीं क्यों पर मेरी उस समय यही हसरत थी की मैं उनकी छातियो को देखू. पर इस से पहले की वो मेरी चोर निगाहों को पकड़ लेती मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली. बहुत देर तक वो मुझसे बाते करती रही , फिर मैं उठा तो उन्होंने मुझे एक पचास का नोट दिया . पचास का नोट मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी तब.

मैं- किसलिए ताईजी.

ताईजी- ये बाल कटवा लेना कितने बड़े किये हुए है और बाकि जो बचे तुम्हारे खर्चे के लिए.

“मेरे खर्चे के लिए ” मैंने थोड़े आश्चर्य से कहा .

ताई- हाँ , तुम्हारे लिए ही है.

मैंने ख़ुशी से उस नोट को पकड़ा तो मेरी उंगलिया ताई की उंगलियों से छू गयी और मैं बाहर को दौड़ पड़ा . मम्मी मुझे बोलती रह गयी चारा काटने को पर मैं रुका नहीं . शाम को एक थका देने वाले क्रिकेट मैच को हारने के बाद मैं नदी किनारे बैठा हुआ था. बस एक यही जगह थी जो मुझे सुकून देती थी .

यही वो जगह थी जहाँ मेरी तन्हाई मेरी दोस्त बन जाती थी , वैसे तो मेरी उम्र थी ही क्या पर मेरे दोस्त नहीं थे , गली मोहले के लडको से खेलना भर ही दोस्ती थोड़ी न थी , यहाँ बैठ कर मैं खुद से बात कर लिया करता था . दरअसल मैं फिल्मे बहुत देखता था तो मेरी खवाहिश थी की मैं भी इश्क करूँ. पर मुझसे कौन मोहब्बत करता. J

खैर, जा रहा था तो पडोसी के घर गाने बज रहे थे मेरी बहुत इच्छा थी की मैं एक डेक खरीदू पर मेरे पिता का स्वाभाव थोडा अलग था उन्हें ये पसंद नहीं था , ऐसा नहीं था की वो मेरे पालन पोषण में को कमी रखते थे पर घर में कुछ नियम थे जिन्हें सब मानते थे, तो मैं अपनी इच्छा को दबा लेता था पर उस चढ़ती उम्र में अरमानो का तंदूर सुलगता ही रहता था ये बात और थी.

माँ, की खरी खोटी सुनी और फिर मैं रसोई में चला गया जहाँ चाची खाना बना रही थी .

मैं- और चाची क्या हाल चाल

चाची- मिल गयी फुर्सत तुझे, आज तो पूरा दिन गुम है तू. मैं ढूंढ रही थी तुझे कब का .

मैं- क्यों भला.

चाची- तेरा चाचा रात को बर्फी लाया था तो तेरे लिए रखी थी .

मैं- मौज है तुम्हारी , क्या पति है तुम्हारा मुझे कभी दस रूपये नहीं देता और तुम्हे कभी बर्फी कभी समोसे.

चाची- जब तेरी बहु आएगी तू भी लाया करेगा.

मैं – देखेंगे. पर अभी मुझे भूख लगी है रोटी दो मुझे.

चाची- पहले बड़े जेठ जी के लिए खिचड़ी बना दू फिर रोटी बनाउंगी

मैं- ठीक है .

मैंने बाहर आकर देखा पापा चाचा से कुछ बात कर रहे थे पर मुझे देख कर चुप हो गए. मैं छप्पर की तरफ मुड़ा ही था की पापा ने मुझे बुलाया

पापा- आओ थोडा बाहर चलते है .

मैं हैरान था क्योंकि आज से पहले उन्होंने मुझसे ऐसे कभी बात नहीं की थी, मुझे लगा कुछ गड़बड़ तो नहीं है . हम दुकान तक आये पापा ने मेरे लिए एक पेप्सी की बोतल खरीदी और हम बैठ गए.

पापा- मैं जानता हु, उस छप्पर में तुम्हे परेशानी होगी, पर जल्दी ही मैं एक कमरा बनवा दूंगा. बस थोड़े दिन देख लो.

मैं- कोई परेशानी नहीं है पापाजी.

पापा- देखो, हालात ऐसे हो गए की मुझे भी समझ नहीं आया, भाईसाहब अब कभी अपने पैरो पर खड़े नहीं होंगे, डॉक्टर ने मुझे बता दिया था की पैर ख़राब हो चुके है ये तो शुक्र है की काटने से बच गए. मुझे भाभी की फ़िक्र है , तो तुम्हे मैं जिम्मेदारी दे रहा हु तुम उनके साथ रहो, कोशिश करो वो खुश रहे. वैसे तो तेरी मम्मी और छोटी बहु है पर भाभी बहुत सालो से बाहर रही थी तो टाइम लगेगा एडजस्ट होने में. तब तक तुम कोशिश करो अपनी ताईजी के साथ समय बिताओ, उनसे पूछते रहना, वैसे तो हम सब भी है .

मैं- जी पापाजी.

बहुत देर तक वो मुझे परिवार के बारे में बताते रहे, कुछ बाते की कैसे आज परिवार इस जगह तक आ पाया था. कुछ मैं समझा और कुछ नहीं .क्योंकि मेरी जिंदगी मुझे किसी और दिशा में ले जाने का सोच चुकी थी .

रात को एक बार फिर मैं करवट बदलते हुए ताईजी के बदन के बारे में सोच रहा था .
 

Assassin

Staff member
Moderator
4,493
3,987
159
:congrats:for new story sikandar sarkar
 
  • Like
Reactions: neer

Rahul

Kingkong
60,514
70,677
354
:congrats: नई कहानी शुरू करने पर
had hai bhaiya ji is story me pure saal me 2 update aaye hain upar aap aakar congrat bol rahe ho:lotpot:
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,723
35,231
219
had hai bhaiya ji is story me pure saal me 2 update aaye hain upar aap aakar congrat bol rahe ho:lotpot:
bhai writer ke pas notification jata hai to restart bhi ho sakti hai :D ummeed par ye forums chal rahi hain
pritam dada aur ajay kumar jaise writers bhi yahan hain............. jo forums badal jati hain....... readers badal jate hain lekin unhi adhuri stories ko kai-kai sal mein ek adh update dekar jinda banaye rakhte hain

aaj ........... koi to rok lo aur maryada ko wo bachche padh rahe hain ..... jinke mummy-papa ne hostel mein 'padhai' karte time :congrats: kiya tha

meri bhi koshish hai ki mein bhi itni hi mahan story likhoon........... :lol: akhir mahan banne ki khwahish har kisi ke man mein hoti hai

lekin mujhe sare hi readers dhurandhar mile hain......... ek hafte ka bhi break nahi lene dete .........
 
Top