#2
आँख खुली तो सूरज मेरे सर पर चढ़ा हुआ था , पसीने से लथपथ मैं मिटटी में पड़ा था . थोड़ी देर लगी खुद को सँभालने में और फिर दर्द ने मुझे मेरे होने का अहसास करवाया . जैसे तैसे करके मैं अपने ठिकाने पर पहुंचा . पास के खेत में काम कर रहे एक लड़के के हाथ मैंने बैध को बुलावा भेजा .
“सब मेरी गलती है ” मैंने अपने आप से कहा . दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हुई और मैंने देखा कैसे उस लड़की ने मुझे थाम लिया था , मेरे होंठो पर उसके हाथ रखते हुए मैंने उसकी आँखों की गहराई देखि थी . चेहरे का तो मुझे ख़ास ध्यान नहीं था , सब इतना जल्दी जो हुआ था पर उन आँखों की कशिश जो शायद भुलाना आसान नहीं था .
“कुंवर , बुलाया आपने ” बैध की आवाज ने मेरी तन्द्रा तोड़ी .
मैं- पीठ में चोट लगी है देखो जरा काका
बैध ने बिना देर किये अपना काम शुरू किया .
“लम्बा चीरा है, एक जगह घाव गहरा है .. ” उसने कहा
मैं- ठीक करो काका
बैध ने मलहम लगा के पट्टी बांध दी और तीसरे दिन दिखाने को कह कर चला गया .मुझे दुःख इस जख्म का नहीं था दुख था इस खानाबदोश जिन्दगी का , ऐसा नहीं था की मेरे पास कुछ नहीं था ,
“कुंवर सा , खाना लाया हूँ ”
मैंने दरवाजे पर देखा, और इशारा करते हुए बोला- कितनी बार कहा है यार, तुम मत आया करो , जाओ यहाँ से .
“बड़ी मालकिन बाहर है ” लड़के ने कहा
मैं बाहर आया और देखा की बड़ी मालकिन यानि मेरी ताईजी सामने थी
“ये ठीक नहीं है कबीर, रोज रोज तुम खाने का डिब्बा वापिस कर देते हो , खाने से कैसी नाराजगी ” ताई ने कहा
मैं- मुझे नहीं चाहिए किसी के टुकड़े
ताई- सब तुम्हारा ही है कबीर,अपने हठ को त्याग दो और घर चलो , तीन साल हो गए है कब तक ये चलेगा ,और ऐसी कोई बात नहीं जिसका समाधान नहीं हो .
मैं- मेरा कोई घर नहीं , आप बड़े लोगो को अपना नाम, रुतबा , दौलत मुबारक हो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.
ताई- तुम्हारी इस जिद की बजह से आने वाला जीवन बर्बाद हो रहा है तुम्हारा, पढाई तुमने छोड़ दी, हमारा दिल दुखता है तुम्हे ये छोटे मोटे काम करते हुए, गाँव भर की जमीं का मालिक यूँ मजदूरी करता है , मेरे बेटे लौट आओ
मैं- ताईजी हम इस बारे में बात कर चुके है ,
ताई - मेरी तरफ देखो बेटे, मैं किसका पक्ष लू उस घर का या तुम्हारा , काश तुम समझ सकते, खैर, खाना खा लेना तुम्हारी माँ ने तुम्हारे मनपसन्द परांठे बनाये है, कम से कम उसका तो मान रख लो .
ताई चली गयी रह गया वो खाने का डिब्बा और मैं, वो मेरी तरफ देखे मैं उसकी तरफ. न जाने क्यों कुछ आंसू आ गये आँख में. ऐसा नहीं था की घर की याद नहीं आती थी , हर लम्हा मैं तडपता था घर जाने को , दिन तो जैसे तैसे करके कट जाता था पर हर रात क़यामत थी, मेरी तन्हाई ,मेरा अकेलापन , और इन बीते तीन साल में क्या कुछ नहीं हो गया था , पर कोई नहीं आया सिवाय ताईजी के .
पर फ़िलहाल ये जिन्दगी थी, जो मुझे किसी और तरफ ले जाने वाली थी .
तीन रोज बाद की बाद की बात है मेरी नींद , झटके से खुल गयी . एक शोर था जानवरों के रोने का मैं ठीक ठीक तो नहीं बता सकता पर बहुत से जानवर रो रहे थे. मेरे लिए ये पहली बार था , अक्सर खेतो में नील गाय तो घुमती रहती थी पर ऐसे जंगली जानवरों का रोना . मैंने पास पड़ा लट्ठ उठाया और आवाजो की दिशा में चल पड़ा. वैसे तो पूरी चाँद रात थी पर फिर भी जानवर दिखाई नहीं दे रहे थे . आवाजे कभी पास होती तो कभी दूर लगती ,
कशमकश जैसे पूरी हुई, अचानक ही सब कुछ शांत हो गया , सन्नाटा ऐसा की कौन कहे थोड़ी देर पहले कोतुहल था शौर था. मैं हैरान था की ये क्या हुआ तभी गाड़ी की आवाज आती पड़ी और फिर तेज रौशनी ने मेरी आँखों को चुंधिया दिया .
मैं सड़क के बीचो बीच था , सड़क जो मेरे गाँव और शहर को जोडती थी . गाड़ी के ब्रेक लगे एक तेज आवाज के साथ . .........
“अबे, मरना है क्या , ” ड्राईवर चीखा
मैं- जा भाई .....
तभी पीछे बैठी औरत पर मेरी नजर पड़ी , ये सविता थी , हमारे गाँव के स्कूल की हिंदी अध्यापिका .
मैं- अरे मैडम जी आप, इतनी रात.
मैडम- कबीर तुम, इतनी रात को ऐसे क्यों घूम रहे हो सुनसान में देखो अभी गाड़ी से लग जाती तुम्हे . खैर, आओ अन्दर बैठो.
मैं- मैं चला जाऊंगा .
मैडम- कबीर, बेशक तुमने पढाई छोड़ दी है पर मैं टीचर तो हूँ न.
मैं गाड़ी में बैठ गया.
मैं- आप इतनी रात कहाँ से आ रही थी .
मैडम-शहर में मास्टर जी के किसी मित्र के समारोह था तो वहीँ गयी थी .
मैं- और मास्टर जी .
मैडम- उन्हें रुकना पड़ा , पर मुझे आना था तो गाड़ी की .
मैं- गाँव के बाहर ही उतार देना मुझे.
मैडम- मेरे साथ आओ, मेरा सामान है थोडा घर रखवा देना
अब मैं सविता मैडम को क्या कहता
सविता मैडम हमारे गाँव में करीब १६-१७ साल से रह रही थी , उनके पति भी यहीं मास्टर थे, 38-39 साल की मैडम , थोड़े से भरे बदन का संन्चा लिए, कद पञ्च फुट कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी पर देखने में आकर्षक थी, ऊपर से अध्यापिका और सरल व्यवहार , गाँव में मान था . मैडम का सामान मैंने घर में रखवाया .
मैडम- बैठो,
मैं बैठ गया. थोड़ी देर बाद मैडम कुछ खाने का सामान ले आई,
मैडम- कबीर, वैसे मुझे बुरा लगता है तुम्हारे जैसा होशियार लड़का पढाई छोड़ दे.
मैं- मेरे हालात ऐसे नहीं है , पिछला कुछ समय ठीक नहीं हैं .
मैडम- सुना मैंने. वैसे कबीर, तुम मेरे पसंदिद्दा छात्र रहे हो , कभी कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकते हो. मैं तुम्हारे निजी फैसलों के बारे में तो नहीं कहूँगी पर तुम चाहो तो पढाई फिर शुरू कर लो
मैं- सोचूंगा
मैडम- आ जाया करो कभी कभी .
मैंने मिठाई की प्लेट रखी और सर हिला दिया .
वहां से आने के बाद , मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी की जानवरों का रोना कैसे अपने आप थम गया और मुझे जानवर दिखे क्यों नहीं , ये सवाल जैसे घर कर गया था मेरे मन में . इसी बारे में सोचते हुए मैं उस दोपहर सड़क के उस पार जंगल की तरफ पहुच गया, शायद वो आवाजे इधर से आई थी या उधर से . सोचते हुए मैं बढे जा रहा था तभी मैंने कुछ ऐसा देखा जो उस समय अचंभित करने वाला था .
भरी दोपहर ये कैसे, और कौन करेगा ऐसा. .........................