#9
आँख खुली तो पाया की सूरज सर पर चढ़ आया है , पंखा बंद था यानि की बिजली नहीं थी , उबासी लेते हुए मैंने बिस्तर छोड़ा और छज्जे पर आया . निचे भाभी आंगन में कुछ काम कर रही थी . गोर चेहरे पर सुनहरी धुप जैसे सितम ही ढा रही थी . हमारी नजरे मिली . वो मुस्कुराई और मैं छज्जे से हट गया .
मैं निचे आया और घर से बाहर निकल ही रहा था की उन्होंने आवाज दी .
“देवर जी रुको ”
मैं- मुझे देर हो रही है
भाभी- ऐसा कोई काम नहीं तुम्हे जो देर हो
मैं- फिर भी मुझे जाना है
भाभी- नाश्ता करके जाओ. मुझे मालूम है कल से कुछ नहीं खाया तुमने .
मैं- उसकी जरुरत नहीं फिलहाल मुझे जाना है
भाभी मेरे पास आई
भाभी- कितना दूर भागोगे
मैं- क्या करू इस घर में मेरा जी नहीं लगता . मेरे लिए ये सब बेगाना है ये मेरी मज़बूरी है की बार बार मुझे यहाँ लौट आना होता है
भाभी- जानती हूँ , भला मुझसे ज्यादा कौन समझता है तुम्हे
मैं बस मुस्कुरा दिया.
भाभी ने एक आह भरी और बोली- रोटी से भला कैसा बैर तुम्हे तो पसंद है न मेरे हाथ का बना खाना , तुम हम सब से नफरत कर सकते हो पर खाने से बैर न करो
मैं- नफरत अगर कर पाता तो ये घर , घर नहीं होता . आप कहती है , आप जानती है और मुझसे ही पूछती है . मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देती आप .
भाभी- क्योंकि तुम्हे इस तरह टूटते हुए नहीं देख सकती मैं, जिंदगी बस ये ही नहीं है जो तुम देख रहे हो , जिंदगी वो है जो हम सब जी रहे है .
मैं- फ़िलहाल तो यूँ है की कुछ कर नहीं सकते.
भाभी- तुम्हारे भैया भी कल से भूखे है , तुम जानते हो जब तक उन्हें मालूम न हो की तुमने खाना खा लिया वो भी नहीं खाते
मैं- इसमें मेरा क्या दोष भला
भाभी- दोष तो उनका भी नहीं है , तो उन्हें क्यों सजा दे रहे हो तुम
मैं- मैं बस खुद को सजा दे रहा हूँ भाभी . आप सब अपनी जिन्दगी जिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.
मैंने कहा और घर से बाहर निकल गया . मैं चाची के घर गया तो प्रोफेसर साहब वही पर थे .
चाचा- अरे मेरे शेर, कितने दिन हुए मिलते ही नहीं हो तुम
मैं- बस ऐसे ही
चाचा-- तुम्हारी चाची कह रही थी तुम्हे कुछ किताबे चाहिए.
मैं- जी
चाचा- मुझे बताओ मैं निकाल देता हूँ
मैंने दो चार किताबे यु ही बता दी उन्होंने. वो अन्दर चले गए. मैंने देखा की चाची के माथे पर तनाव था .
मैं- चाची क्या हुआ
चाची- कुछ नहीं
मैं- बताओ भी
चाची के बोलने से पहले ही चाचा किताबे लेकर आ गए तो बात अधूरी रह गयी .
चाचा- भाई जी , कह रहे थे की तुम बम्बई जा रहे हो
मैं- नहीं बिलकुल नहीं , पिताजी चाहते है पर मैं नहीं जाने वाला
चाचा- पर इसमें गलत क्या है
मैं- जब अपने शहर में कालेज है तो वहां क्या जाना
चाचा- भाई जी ने कुछ सोच कर ही निर्णय लिया होगा
मैं- बाद में मिलता हूँ अभी जल्दी है मुझे .
मैं वहां से निकला और थोड़ी दूर चलते ही मुझे मीता दिखी. हमारी नजरे मिली, वो हमेशा की तरह मुस्कुराई .
मैं- कैसी हो
वो- बढ़िया, तुम बताओ
मैं- मैं भी ठीक हूँ
वो- शहर जा रही हूँ
मैं- मैं भी उधर ही जा रहा था साथ चले
उसने एक बार कुछ सोचा और बोली- हाँ , बिलकुल
मैं- दो मिनट रुको मैं गाड़ी ले आता हूँ
मीता -तुम्हे परेशानी होगी
मैं- भला मुझे क्या परेशानी हो गी
मैं दौड़कर गया , और गाड़ी ले आया . ये पहली बार था जब ऐसे कोई लड़की मेरे साथ थी . मीता ने शीसा थोडा निचे किया . ठंडी हवा ने गाड़ी में जगह बना ली.
“शुक्रिया ” उसने हौले से कहा
मैं- भला किसलिए
वो- तुम्हे मालूम है
मैं- क्या आप भी . हम दोस्त है और दोस्त एक दुसरे को शुक्रिया नहीं कहते है
मीता- सो तो है , कल मिले नहीं तुम
मैं- उलझा था कुछ काम में .
मीता- ये तो अच्छा है , जीवन में काम होना बहुत जरुरी है .
बाते करते करते हम शहर पहुच गए . उसने एक दूकान के बाहर गाड़ी रोकने को कहा .
“आओ न रुक क्यों गए ”उसने कहा
मैं- भला मेरा क्या काम यहाँ
वो- हो सकता है तुम्हारी नजरे कुछ पसंद कर ले मेरे लिए .
मीता कितनी सरल थी , न जाने कैसे वो जान लेती थी मेरे मन को मुझसे पहले .
मैं उसके साथ अन्दर गया . उसकी पसंद बिलकुल निराली थी कोई फैशन नहीं , प्योर सिम्पल पर उसकी सादगी ही उसका गहना थी . न जाने मुझे क्या सुझा उसे लेकर मैं सुनार के पास गया .
“पायल पसंद करो ” मैंने उसे कहा
वो- किसके लिए
मैं- किस्मत के लिए
उसने न जाने कितनी जोड़ी देखि और फिर एक जोड़ी पायल पसंद की
“ये वाली कैसी है देखो जरा ” उसने कहा .
तीन लडियो से बनी चांदी की पायल ,जिसमे बेहद बारीक घुंघरू जड़े थे.
“हाय रे नसीब ” मेरे होंठो से अपने आप निकल पड़ा .
“कुछ कहा तुमने ” उसने पूछा
मैं- नहीं कुछ नहीं .
“क्या कीमत है इसकी ” उसने सुनार से कहा
“”५ हजार “ सुनार से पहले मेरे होंठो से निकल गया .
मीता ने हैरानी से मेरी तरफ देखा
“बढ़िया पसंद है आपकी , ये पायल बस दो जोड़ी ही बनी थी , कारीगर ने इसके बाद कभी पायल नहीं बनाई ” सुनार ने कहा
मैं- तुम पैसे लो न यार
मैंने पैसे सुनार को दिए और पायल को जेब में रख लिया .
”खाना खाते है ” मैंने कहा और हम एक होटल में आ गए.
“मैं नौकरी करना चाहती हूँ ” मीता ने कहा
मैं- ये तो बढ़िया बात है , किस विभाग में दिलचस्पी है आपकी
मीता- तुम्हे हंसी आयेगी सुनकर , मैं रेडियो की नौकरी करना चाहती हूँ
मैं- रेडिओ मकेनिक
मीता- नहीं , वो जो रेडिओ पर बोलते है न वो .
“हम्म, और ये नौकरी कैसे मिलती है मतलब आवेदन करना पड़ता है इसके लिए ” मैंने पूछा
मीता- एक कोर्स करना पड़ता है , जल्दी ही दाखिला लें लुंगी मैं
मैं- बढ़िया है .
मीता- तुमने क्या सोचा है
मैं- रडियो सुनने का
और हम दोनों ही हंस पड़े. पूरा दिन मैं उसके साथ रहा , ये दिन कब बीत गया क्या ही मालूम चला. उसे छोड़ कर जब मैं गाड़ी खड़ी करने चाची के घर गया तो वो थोडा परेशां लग रही थी .
“मैं तेरा ही इंतज़ार कर रही थी ” चाची ने कहा .