• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

Naik

Well-Known Member
21,000
76,665
258
#12

मेरे गाँव से अर्जुनगढ़ की दुरी कोई ज्यादा नहीं थी मुश्किल से दस किलोमीटर होगी, पर कच्चे रस्ते से थोडा और कम हो जाती थी .ये शंखनाद जो मेरे कानो में गूँज रहा था. ये संकेत होता था की दोपहर का प्रसाद तैयार है . अर्जुनगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर जहा पर हर दोपहर आलू की सब्जी और पूरी मिलती थी खाने को . ये नाद जैसे मुझसे कह रहा था की बहुत देर हुई अब और नहीं , किस का है इंतज़ार तुझे उठा कदम और आ पास मेरे .

पर मैंने उस दिशा से मुह मोड़ लिया . तबियत ठीक नहीं लग रही थी , चक्कर आ रहे थे तो मैं वापिस भाभी के घर आया और सो गया . आँख खुली तो मैंने देखा कमरे में बल्ब जल रहा था . मेरी नजर सामने दिवार घड़ी पर गयी रात का डेढ़ बज रहा था . पास सोफे पर भाभी बैठी थी जिनकी निगाहे मेरे ऊपर ही थी .

“आप अभी तक जाग रही है ” मैंने कहा

भाभी- तुम ऐसे ही सो गए थे . मैंने इंतजार करने का सोचा तुम्हारे जागने का क्योंकि जागते ही तुम्हे भूख लगती है

मैं- माफ़ी चाहूँगा, यु ऐसे आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था जब आप अपने घर पर है , मुझे चक्कर आ रहे थे अवसाद में आँख लग गयी .

भाभी- तुम्हारी वजह से मैं कभी शर्मिंदा नहीं हो सकती . ऐसा सोचना भी गलत है . नींद का क्या है वैसे भी मैं बस थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई वर्ना घरवालो से गप्पे ही लड़ा रही थी .

जग से गिलास भर का मैंने थोडा पानी पिया जो सीधा कलेजे को लगा.

“आप जाओ भाभी , सुबह मिलते है ” मैंने कहा और वापिस बिस्तर पर लेट गया .भाभी जाते जाते दरवाजे पर रुकी जिस तरह से उन्होंने पलट कर मुझे देखा , एक पल वो नजर मुझे दिल में उतरती दिखी .

अगली सुबह बड़ी खुशगवार और सुहानी थी . मैं सुबह सुबह ही बाहर निकल गया , अर्जुनगढ़ में ये दूसरा दिन था मेरा. घूमते घूमते मैं एक बार फिर बाजार की तरफ आ गया था . मैं बनारसी की दुकान पर जाना चाहता था पर मेरे कदम रस्ते से ही रुक गए . मैंने ठीक उसी तरह की तान सुनी जैसा वो औरत उस रात बियाबान में इकतारा बजा रही थी . मैं उस आवाज को साफ़ साफ़ महसूस कर पा रहा था .

और चलते चलते मैं ठीक उन सीढियों के पास आकर रुक गया जो ऊपर पहाड़ की तरफ जा रही थी . बहुत दूर वो शान से लहराता केसरिया झंडा हवा में गर्व से लहरा रहा था . सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. काली चट्टान के फर्श पर पानी बिखरा हुआ था और उसी फर्श पर बड़ी शान से बैठे वो इकतारा बजा रही थी .

हमारी नजरे मिली वो मुस्काई मैं मुस्कुराया.

“क्या ये इतेफाक है जो हम यहाँ यूँ मिले ” मैंने उसके पास जाकर कहा

वो- नियति भी हो सकती है . शायद इनकी मर्जी हो इस मुलाकात के पीछे

उसने सामने उस बड़ी सी मूर्ति की तरफ इशारा किया.

वो मूर्ति अपने आप में निराली ही थी . मिटटी की बनी हुई मूर्ति . जिस पर सिंदूर चढाया हुआ था .

“दर्शन कर आओ ” उसने कहा

मैं मूर्ति के पास गया शीश नवाया. दो पल मैं उस मूर्ति के पास बैठा.

“सकून मिलता है न यहाँ ” उसने मेरे पास बैठ्ते हुए कहा .

मैं- कुछ तो बात है

वो- क्या मालूम क्या होता है सकून, कुछ परछाई है सामने , एक धुंधलापन हमेशा साथ होता है .कुछ याद है कुछ नहीं . अपने आप से झुझता रहता हूँ.

वो- समझती हूँ इस बंजारेपन को

मैं- आपने उस रात जब मेरा हाथ पकड़ा था क्या देखा था

वो- कुछ नहीं

मैं- कम से कम इसके सामने तो झूठ न बोलो

मैंने मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा .

“”मैंने ज़माने भर का दुःख देखा था . वो दुःख जो तू हर घडी देखता है , वो दुःख जो तुझे जीने नहीं देगा और मर तू पायेगा नहीं .

“क्या कह रही है आप , बकवास है ये ” मैंने कहा

“फिर मुलाकात हुई तो बात करेंगे इस बारे में ” उसने कहा और उठ खड़ी हुई .

मैं- कहाँ जा रही है आप

वो- जहाँ नसीब ले जाए .

उसके जाने के बाद मैं भी उठ खड़ा हुआ . मैंने एक नजल कलाई पर बंधी घड़ी पर डाली और भाभी के घर की तरफ चल पड़ा. मैं बाजार पहुंचा ही था की आँखों में लश्कारे की चमक आन पड़ी . मैंने देखा तो थोड़ी दूर मीता थी . हाँ ये मीता ही दुपट्टे खरीदते हुए .

“ये क्या कर रही है यहाँ ” मैंने उस की तरफ जाते हुए सोचा .

“हलके केसरी रंग में दिखाओ न कुछ ” वो दूकान वाले से जिरह कर रही थी .

“गहरा नीला अच्छा लगेगा आप पर ” मैंने कहा .

वो मेरी तरह घूमी. हमारी नजरे मिली .

वो- तुम यहाँ

मैं- आप भी तो हैं यहाँ

वो- सो तो है , ठीक है भैया, गहरा नीला दुपट्टा ही दो मुझे .

उसने पैसे चुकाए .

“तो कैसे यहाँ ” उसने कहा

मैं- अपने आस पास के गाँवो में बड़ा बाजार यही है तो बस ऐसे ही चला आया.

मीता- न जाने क्यों आजकल हम दोनों के बहाने एक से ही होते है

मैं- शायद किसी किस्म का इशारा है ये .

हम बाते कर ही रहे थे की मैंने जूही को उसकी माँ के संग आते हुए देखा .

जूही- बाबु, आज आओगे न चूड़ी लेने .

“जूही , कितनी बार कहा है तुझे ” उसकी माँ ने उसे कहा .

मैं- बिलकुल आयेंगे, आप मेमसाहब से पूछो उनको कौन से रंग की पसंद है

मीता- क्या

जूही- दीदी आओ हमारी दूकान पर पास में ही है

जूही ने मीता का हाथ पकड़ा तो मैंने नजरो से उसे हाँ कहा .

हम जूही की दूकान पर आ गए .

जूही- दीदी ये देखो , ये वाली आप को अच्छी लगेगी . नहीं आप ये वाली देखो

मीता- तुम पसंद करो मेरे लिए

उसने मुझ से कहा .

मैं- मुझे तो बस हरी कांच की चुडिया पसंद है , लखोरी कांच की चूडियो की बात ही अलग है .

मीता- तो जूही मुझे वही दिखाओ .

“माँ ये कौन सी चुडिया है ” जूही ने माँ से पूछा

“नसीबो की चूडिया है वो बेटा. मैं निकालती हूँ ” जूही की माँ ने कहा और अन्दर से वो बक्सा ले आई. गहरे हरे कांच में जड़े सितारे धुप में चमकने लगे. उसने वो चुडिया मीता के हाथ में रखी और बोली-जोड़ी बनी रहे .


मीता एक पल हैरान हुई और मुस्कुरा पड़ी. मीता को कुछ सामान और खरीदना था वो एक दूकान में रुकी थी , तभी मेरी नजर सामने किसी पर पड़ी और ............. ...........
Bahot khoobsurat shaandaar update bhai
 
  • Like
Reactions: Nevil singh

aalu

Well-Known Member
3,073
13,048
143
Ajeeb banda hain sochta kuchh, karta kuchh aur hota kuchh hain...
Hamesha madhosh hi rahta hain, kabhi yaado mein toh kabhi kisi ko dekh ke, aise jee raha hain jaise jinda hee na ho..

Kis ka intejar kar raha hain, banjara kehta hain khud ko lekin ghum-phir ke wahee purani jagah pe hi rukta hain..

Ab is banjaran se baar-baar takrana kyun ho raha hain, kaheen yeh pechhe na kar rahi ho, lagti toh jogan hee hain, milna toh kisi aur ko chahiye aur wo dikh bhi gayee, itne ittefaq, shab issi ke saath hote hain..

Ab jo dil mein hain wo juba pe nahin, na yeh bolta hain na wo samajhti hain...
Bas hawa ke sahare dol rahe hain, agar mil gaye toh theek, nahi toh ram jaane, ab pyar hain toh izhar kyun nahin, ikrar kyun nahin...
 
Top