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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Sala had hain kahe aise ghar mein rah raha hain, jahan ratti bhar bhi na izzat hain na pyar.. Jab itna hi gairatmand hai, toh kyun sah raha hain, aaj tak sidhe muh jis bhai se baat na kiya, jo bhai isse baat karne ke liye pahal karta tha, aaj achanak itne tewar kahan se aa gaye... Baap hain koi khuda nahin, jo uski kahee baat pathhar kee lakeer ho..

Aur iska maiya ka saiya kahan tha, ab toh wo bhi fatega, bahar toh theek se kut na paya... Uski muchh jo niche kar aaya hain.... Iski mata shree toh idhar bhi apne pati parmeshwar kee hi tarafdari karte najar aayengi, ya toh gulam hain ya phir baagi.. Bas do hi kism ke log rah rahe hain iss ghar mein..

Ab bimla bhaujee ke chakkar mein isli zindagi chakkarghinni ban gayee hain, na ghar mein izzat rahi na bahar... Doosre ke fate mein tang arane se pehle yeh bhi dhyan rakhna parta hain kee khud kee tang bhi zakhmi ho shakti hain, yehan toh sala pura peetch chhil diya hain..

Umar toh abhi tak iski college waali lagti hain, toh itti si umar mein iske kitne kaand kar liye hain, jo yaade iski jehan mein aati hain yeh issi kee hain ya phir... apne punarjanam wala concept toh pehle hi nakar diya hain.. Kuchh patte bhi khol de janab aise bekhabar kab tag rahenge...
Kahani jaise jaise aage badhegi sabke role twist hote jayenge
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#16

“मैं बस इतना जानता हूँ की मेरा दाखिले का फार्म क्यों रद्द किया गया है ” मैंने प्रिंसिपल से पूछा

“सारी सीट फुल है , ” उसने रुखा सा जवाब दिया.

मैं- पर अभी तो फॉर्म ही भरे जा रहे है . लिस्ट तो दस दिन बाद लगेगी न .

प्रिंसिपल- प्रशासनिक निर्णय होते है , लिस्ट बन चुकी है इसलिए मुझे मालूम है

मैं- पर ये तो गलत है न

प्रिंसिपल- देखो बेटे, कुछ चीजों पर चाह कर भी हमारा बस नहीं होता इस कालेज न सही किसी और कालेज में तुम्हारा दाखिला हो ही जायेगा. ,

न जाने क्यों मुझे उसकी बातो में दम नहीं लगा पर अचानक ही मुझे ख्याल आया की कही पिताजी ने तो इसे ऐसा करने को कहा हो .

मैं- क्या पिताजी ने आपको मजबूर किया है की आप मेरा दाखिला न करो

प्रिंसिपल- नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं . खैर, अब तुम जाओ मुझे काम

बहुत है



वहां से बाहर आने के बाद मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया . दाखिला किसी ने रुकवाया था और ये पक्का पिताजी ही थे मुझे पक्का यकीं हो गया था इस बात का.

“कैंटीन में बैठते है थोड़ी देर ” मीता ने कहा

“शायद चाचा कुछ मदद कर सके, हमें उनसे मिलना चाहिए ” मैंने कहा और चाचा के डिपार्टमेंट में पहुँच गए .पर वहां जाकर कुछ और ही मालूम हुआ .चाचा पिछले महीने भर से छुट्टी पर चल रहे थे स्टडी लीव ली हुई थी उन्होंने . अब ये अलग तमाशा था .

“पर घर से तो रोज कालेज के लिए निकलते है .” मैंने मीता से कहा .

मीता- उनसे मिलके पूछना

मैं- सही कहती हो .

मैंने मीता को कालेज में छोड़ा और गाँव के लिए चल दिया. मेरे मन में हजारो सवाल थे पर मैं ये नहीं जानता था की एक सुलगता सवाल मेरा इंतज़ार कर रहा था. मेरे चोबारे में आग लग गयी थी . जब मैं घर पहुंचा तो घर वाल आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे .मैं भी दौड़ा उस तरफ पर सब ख़ाक हो चूका था अन्दर पूरा सामान बर्बाद हो गया था , राख हो गया था .

“कैसे हुआ ये ” मैंने पूछा

माँ- धुंआ निकलते देखा , कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही आग धधक उठी.

मेरा तो दिल ही टूट गया अन्दर ऐसा बहुत कुछ था जिससे बड़ा लगाव था मुझे, गानों की कसेट, श्रीदेवी के पोस्टर , धधक कुछ शांत सी हुई तो मैं अन्दर गया . देखा दीवारे गहरी काली पड़ गयी थी . मैं देखने लगा की कहीं कुछ बच गया हो तो .. मैंने देखा कुछ किताबे अधजली सी रह गयी थी . मैं उन्हें बाहर लाया. हालत बुरी थी . किताबे आधी जली थी तो कुछ ख़ाक थी अब भला किस काम की थी

ऐसे ही एक किताब को मैं बाहर फेंक रहा था की उसमे से कुछ निकल कर गिरा. ये एक तस्वीर थी . इसमें मैं था किसी के साथ , सरसों के पीले खेत में पर जिसके साथ था वो हिस्सा जल गया था . मैंने तस्वीर को जेब में रख लिया. एक किताब में मुझे मुरझाये फूल मिले. अजीब था मेरे लिए क्योंकि मुझे याद ही नहीं था की मैंने वो फूल कब रखे थे .



कोतुहल में मैंने कुछ और किताबे खंगाली . एक जला हुआ और कागज था जो किताब से अलग था क्योंकि वो हाथ से लिखा गया था . जला होने के बाद भी मैं उसके कुछ टुकडो को पढ़ पा रहा था .

“अब सहन नहीं होता, ये बंदिशे जान ले रही है मेरी. कल शाम तुम्हारा इंतजार करुँगी उसी जगह पर जहाँ मोहब्बत परवान चढ़ी थी . ”

दो लाइन और पढ़ी मैंने

“मुश्किल से ये खत भेज रही हूँ , तुम को आना ही होगा ” इस से पहले की कुछ और पढ़ पाता हवा के झोंके से वो कागज मेरे हाथ से उड़ गया और निचे की तरफ चला गया . मैं दौड़ा ,

“नहीं भाभी नहीं ” मैं चिलाया पर तब तक भाभी का पैर उस जले कागज़ पर रखा जा चूका था .

“ये क्या किया भाभी ”

भाभी- क्या हुआ कागज का टुकड़ा ही तो था .

मैंने कोई जवाब नहीं दिया अब भला क्या ही कहना था



तभी हाँफते हुए एक आदमी घर में दाखिल हुआ .

“मालकिन, चौधरी साहब कहा है . ” उसने एक सांस में कहा

मैं- क्या हुआ काका , हांफ काहे रहे हो .

“किसी ने , किसी ने मन्नत का पेड़ काट दिया ” उसने कहा

“ये नहीं हो सकता . कह दो ये झूठ है ” माँ दूर से ही चीख पड़ी .

मैंने माँ के चेहरे पर ज़माने भर का खौफ देखा .

“इसे घर पर ही रखना , ” माँ ने चाची से कहा और नंगे पाँव की घर से बाहर दौड़ पड़ी .

मैं माँ के पीछे जाना चाहता था पर चाची ने मुझे रोक लिया और थोड़े गुस्से से बोली- सुना नहीं तुमने, यही पर रहो . बहु तुम दरवाजा बंद करो .

पर वो कुछ करती उस से पहले ही मैं घर से बाहर निकल गया . मैं माँ के पीछे भागा जो निपट दोपहर में जलती रेत पर नंगे पाँव दौड़े जा रही थी और जब वो रुकी तो मैंने देखा की सफ़ेद सीढियों पर एक पेड़ गिरा हुआ था . ऐसा लगता था की जैसे किसी ने इसके दो टुकड़े कर दिए हो . जिंदगी में पहली बार मैंने माँ की आँखों में आंसू देखे वो रोये जा रही थी . फिर उन्होंने अपनी कटार से कलाई पर जख्म किया . रक्त की धार बह चली .

“माँ ये क्या कर रही है आप ”
माँ को ऐसा करते देख तड़प उठा मैं .माँ ने एक नजर मुझे देखा और फिर रक्त की धार उस पेड़ पर गिराने लगी . और हैरत की बात वो पेड़ सुलग उठा . उसमे आग लग गयी . एक हरा भरा पेड़ धू धू करके जलने लगा. आँखों में आंसू लिए माँ उस जलते पेड़ को देखती रही . तभी कुछ ऐसा हुआ की मैं सफ़ेद सीढियों पर लडखडा कर गिर पड़ा . मेरा कलेजा जैसे जलने लगा.
 
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